जाल, परिक्षाएँ और प्रलोभन
परिचय
अजय गोहिल एक हिंदु परिवार में बढ़े हुए और उत्तरी लंडन में एक न्युजएजेंट में परिवारिक व्यवसाय में काम करते थे। 21 वर्ष की आयु में उन्हें एरिथ्रोडर्मिक सोरिअसिस नामक एक त्वचा रोग हो गया। उनका वचन 11.5 स्टोन (73 किलो) से घटकर 7.5 स्टोन (47.6 किलो) हो गया। यह रोग उनके सिर से लेकर पैरों तक फैल चुका था। उनके सारे मित्रों ने उन्हें छोड़ दिया था। उनकी पत्नी और बेटा उन्हें छोड़कर चले गए थे। वह मरना चाहते थे।
जैसे ही अजय मरने की अवस्था में अस्पताल में लेटे हुए थे, उन्होंने परमेश्वर को पुकारा। उन्होंने अपने लॉकर में देखा और उन्हें एक बाईबल मिली। उन्होंने भजनसंहिता 38 खोला – आज के लिए भजन। हर वचन उनके लिए महत्वपूर्ण था। उन्होंने प्रार्थना कि की परमेश्वर उन्हें चंगा करे। वह गहरी नींद में सो गए। अगले दिन सुबह वह पूरी तरह से चंगे हो चुके थे। उनकी त्वचा शीशु के समान नई हो चुकी थी और उनका जीवन पुरी तरह से बदल चुका था। वह फिर से अपने बेटे के साथ रहने लगे। एच.टी.बी. में एक सभा में मैंने उनका साक्षात्कार लिया। उन्होनें बताया, 'हर दिन मैं यीशु के लिए जीता हूँ।'
जीवन एक आसान यात्रा नहीं है। आप बहुत सी चुनौतियों का सामना करेंगे। आज जिस किसी चीज का आप सामना कर रहे हैं, परमेश्वर आपको बचाने में सक्षम हैं। आज के लेखांश में हम जालों, परिक्षाओं और प्रलोभनों के उदारहण को देखते हैं – और कैसे उनसे निबटना है यह भी हम देखेंगे।
भजन संहिता 38:1-12
38हे यहोवा, क्रोध में मेरी आलोचना मत कर।
मुझको अनुशासित करते समय मुझ पर क्रोधित मत हो।
2 हे यहोवा, तूने मुझे चोट दिया है।
तेरे बाण मुझमें गहरे उतरे हैं।
3 तूने मुझे दण्डित किया और मेरी सम्पूर्ण काया दु:ख रही है,
मैंने पाप किये और तूने मुझे दण्ड दिया। इसलिए मेरी हड्डी दु:ख रही है।
4 मैं बुरे काम करने का अपराधी हूँ,
और वह अपराध एक बड़े बोझे सा मेरे कन्धे पर चढ़ा है।
5 मैं बना रहा मूर्ख,
अब मेरे घाव दुर्गन्धपूर्ण रिसते हैं और वे सड़ रहे हैं।
6 मैं झुका और दबा हुआ हूँ।
मैं सारे दिन उदास रहता हूँ।
7 मुझको ज्वर चढ़ा है,
और समूचे शरीर में वेदना भर गई है।
8 मैं पूरी तरह से दुर्बल हो गया हूँ।
मैं कष्ट में हूँ इसलिए मैं कराहता और विलाप करता हूँ।
9 हे यहोवा, तूने मेरा कराहना सुन लिया।
मेरी आहें तो तुझसे छुपी नहीं।
10 मुझको ताप चढ़ा है।
मेरी शक्ति निचुड़ गयी है। मेरी आँखों की ज्योति लगभग जाती रही।
11 क्योंकि मैं रोगी हूँ,
इसलिए मेरे मित्र और मेरे पड़ोसी मुझसे मिलने नहीं आते।
मेरे परिवार के लोग तो मेरे पास तक नहीं फटकते।
12 मेरे शत्रु मेरी निन्दा करते हैं।
वे झूठी बातों और प्रतिवादों को फैलाते रहते हैं।
मेरे ही विषय में वे हरदम बात चीत करते रहते हैं।
समीक्षा
जाल
दाऊद जानते थे कि स्वास्थ में खराबी का अनुभव कैसा होता हैः 'मेरे पीठ में तीक्ष्ण दर्द है; मेरे शरीर में कोई स्वास्थ नहीं है' (व.7)। यद्यपि कुछ वचन है जो अजय की परिस्थिति से मेल खाते थे, जैसे ही उन्होंनें अस्पताल के बिस्तर पर लेटे हुए इस भजन को पढ़ा।
दाऊद को यह भी पता था कि असफल होने का क्या अर्थ है। परमेश्वर ने उन्हें उनके पाप का एहसास दिलायाः 'मेरे पाप के कारण... मैं तेरे हाथ के नीचे दबा हूँ। मेरे बुरे कामों में मेरा सिर डूब गया, और वे भारी बोझ के समान मेरे सहने से बाहर हो गए हैं...मेरी मूढ़ता के कारण...मेरी आँखों की ज्योति भी बुझ जाती है' (वव.2-5,8,10)।
इन सब के बावजूद, दाऊद को विरोध का सामना करना था। वह उन लोगों से घिरा हुआ था जो उसे नीचे गिराना चाहते थे। उसने लिखा, 'मेरे प्राण के ग्राहक मेरे लिये जाल बिछाते हैं, और मेरी हानि का यत्न करनेवाले दुष्टता की बातें बोलते, और दिन भर छल की युक्ति सोचते हैं' (व.12)।
फिर भी इन जालों और स्वयं की असफलताओं और कठिनाईयों के बीच में, दाऊद ने परमेश्वर को पुकारा। वह जानते थे कि परमेश्वर उसे क्षमा कर सकते हैं, उसे बचा सकते हैं, और उसे चंगा कर सकते हैं। आप चाहे जिस किसी असफलताओं या कठिनाईयों का सामना कर रहे हैं, आप भी उन चीजों को प्रार्थना में परमेश्वर के सामने ला सकते हैं।
प्रार्थना
परमेश्वर, मैं आप आपको पुकारता हूँ – मेरे पाप क्षमा किजिए, मेरे शरीर को चंगा किजिए और मेरे लिए बिछाए गए जालों से मुझे बचाईये।
लूका 7:11-35
मृतक को जीवन-दान
11 फिर ऐसा हुआ कि यीशु नाइन नाम के एक नगर को चला गया। उसके शिष्य और एक बड़ी भीड़ उसके साथ थी। 12 वह जैसे ही नगर-द्वार के निकट आया तो वहाँ से एक मुर्दे को ले जाया जा रहा था। वह अपनी विधवा माँ का एकलौता बेटा था। सो नगर के अनगिनत लोगों की भीड़ उसके साथ थी। 13 जब प्रभु ने उसे देखा तो उसे उस पर बहुत दया आयी। वह बोला, “रो मत।” 14 फिर वह आगे बढ़ा और उसने ताबूत को छुआ वे लोग जो ताबूत को ले जा रहे थे, निश्चल खड़े थे। यीशु ने कहा, “नवयुवक, मैं तुझसे कहता हूँ, खड़ा हो जा!” 15 सो वह मरा हुआ आदमी उठ बैठा और बोलने लगा। यीशु ने उसे उसकी माँ को वापस लौटा दिया।
16 और फिर वे सभी श्रद्धा और विस्मय से भर उठे। और यह कहते हुए परमेश्वर की महिमा करने लगे कि “हमारे बीच एक महान नबी प्रकट हुआ है।” और कहने लगे, “परमेश्वर अपने लोगों की सहायता के लिये आ गया है।”
17 यीशु का यह समाचार यहूदिया और आसपास के गाँवों में सब कहीं फैल गया।
यूहन्ना का प्रश्न
18 इन सब बातों के विषय में यूहन्ना के अनुयायियों ने उसे सब कुछ जा बताया। सो यूहन्ना ने अपने दो शिष्यों को बुलाकर 19 उन्हें प्रभु से यह पूछने को भेजा: “क्या तू वही है, जो आने वाला है या हम किसी और की बाट जोहें?”
20 फिर वे लोग जब यीशु के पास पहुँचे तो उन्होंने कहा, “बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना ने हमें तुझसे यह पूछने भेजा है: ‘क्या तू वही है जो आने वाला है या हम किसी और की बाट जोहें?’”
21 उसी समय उसने बहुत से रोगियों को निरोग किया और उन्हें वेदनाओं तथा दुष्टात्माओं से छुटकारा दिलाया। और बहुत से अंधों को आँखें दीं। 22 फिर उसने उन्हें उत्तर दिया, “जाओ और जो तुमने देखा है और सुना है, उसे यूहन्ना को बताओ: अंधे लोग फिर देख रहे हैं, लँगड़े लूले चल फिर रहे हैं और कोढ़ी शुद्ध हो गये हैं। बहरे सुन पा रहे हैं और मुर्दे फिर जिलाये जा रहे हैं। और धनहीन लोगों को सुसमाचार सुनाया जा रहा है। 23 वह व्यक्ति धन्य है जिसे मुझे स्वीकार करने में कोई समस्या नहीं।”
24 जब यूहन्ना का संदेश लाने वाले चले गये तो यीशु ने भीड़ में लोगों को यूहन्ना के बारे में बताना प्रारम्भ किया: “तुम बियाबान जंगल में क्या देखने गये थे? क्या हवा में झूलता कोई सरकंडा? नहीं? 25 फिर तुम क्या देखने गये थे? क्या कोई पुरुष जिसने बहुत उत्तम वस्त्र पहने हों? नहीं, वे लोग जो उत्तम वस्त्र पहनते हैं और जो विलास का जीवन जीते हैं, वे तो राज-भवनों में ही पाये जाते हैं। 26 किन्तु बताओ तुम क्या देखने गये थे? क्या कोई नबी? हाँ, मैं तुम्हें बताता हूँ कि तुमने जिसे देखा है, वह किसी नबी से कहीं अधिक है। 27 यह वही है जिसके विषय में लिखा गया है:
‘देख मैं तुझसे पहले ही अपना दूत भेज रहा हूँ,
वह तुझसे पहले ही राह तैयार करेगा।’
28 मैं तुम्हें बताता हूँ कि किसी स्त्री से पैदा हुओं में यूहन्ना से महान् कोई नहीं है। किन्तु फिर भी परमेश्वर के राज्य का छोटे से छोटा व्यक्ति भी उससे बड़ा है।”
29 (तब हर किसी ने, यहाँ तक कि कर वसूलने वालों ने भी यूहन्ना को सुन कर उसका बपतिस्मा लेकर यह मान लिया कि परमेश्वर का मार्ग सत्य है। 30 किन्तु फरीसियों और व्यवस्था के जानकारों ने उसका बपतिस्मा न लेकर उनके सम्बन्ध में परमेश्वर की इच्छा को नकार दिया।)
31 “तो फिर इस पीढ़ी के लोगों की तुलना मैं किस से करूँ वे कि कैसे हैं? 32 वे बाज़ार में बैठे उन बच्चों के समान हैं जो एक दूसरे से पुकार कर कहते है:
‘हमने तुम्हारे लिये बाँसुरी बजायी पर
तुम नहीं नाचे।
हमने तुम्हारे लिए शोक-गीत
गाया पर तुम नहीं रोये।’
33 क्योंकि बपतिस्मा देने वाला यूहन्ना आया जो न तो रोटी खाता था और न ही दाखरस पीता था और तुम कहते हो, ‘उसमें दुष्टात्मा है।’ 34 फिर खाते पीते हुए मनुष्य का पुत्र आया, पर तुम कहते हो, ‘देखो यह पेटू है, पियक्कड़ है, कर वसूलने वालों और पापियों का मित्र है।’ 35 बुद्धि की उत्तमता तो उसके परिणाम से ही सिद्ध होती है।”
समीक्षा
परीक्षाएँ
जिस किसी व्यक्ति से आप मिलते हैं और हर स्थिति जिसका आप सामना करते हैं, वह असल में एक परिक्षा है। अपने आस-पास के लोगों की जरुरतों के लिए और जिस स्थिति में आप अपने आपको पाते हैं उसमें, आपका उत्तर क्या होगा?
1. दूसरों की जरुरतें
मैंने एक जवान व्यक्ति को दफनाने की विधी की थी जो तीस वर्ष की आयु में कैंसर से मर चुका था। मैंने देखा कि उसकी मॉं (तीस साल हमारी एक मित्र) उसके इकलौते पुत्र के ताबुत के पास खड़ी थी। मैं समझता हॅं कि कैसे, जब यीशु ने आज के लेखांश में महिला को उसी स्थिति में देखा, तब 'उनका हृदय उसके लिए करुणा से भर गया' (व.13)।
यीशु के पास सामर्थ और अधिकार था उसके पुत्र को मरे हुओं में से जीवित करने का, लेकिन फिर भी विश्वास में बाहर आकर इसे करने के लिए उन्हें साहस की आवश्यकता थी।
हम सभी को अपने विश्वास की सीमा में काम करने की आवश्यकता है। इस प्रकार की स्थिति में उत्तर देना बहुत बड़ी परीक्षा हो सकती है। इसे गलत रीति से करने का अर्थ होगा पास्टर के रूप में विपदा। निश्चित ही, मैं वह करने की सलाह नहीं दूँगा जो यीशु ने किया था, जब तक कि आपके पास उनका अधिकार, सामर्थ, विश्वास और परमेश्वर से एक निर्देश नहीं है। लेकिन हमें सभी जरुरतमंदो के लिए सही वचनें और सही उत्तर को अवश्य ही खोजना चाहिए। जो कुछ हम करते हैं, उसे अवश्य ही 'करुणा' के द्वारा उत्साहित होना चाहिए (व.13, ए.एम.पी.)।
यीशु कहते हैं, 'वापिस जाओ और जो तुमने देखा और सुना है, यूहन्ना को बताओः अंधे देखते हैं, लंगड़े चलते हैं, कोढ़ी शुद्ध होते हैं, बहरे सुनते हैं, मरे हुए जीवित होते हैं और गरीबों को सुसमाचार सुनाया जाता है (व.22)। शायद से आप यें सारी चीजें न कह पाएँ, लेकिन आप बीमारों के लिए प्रार्थना कर सकते हैं और आप निश्चित ही गरीबों को अच्छा समाचार सुना सकते हैं।
2. आलोचना
इस तथ्य के बावजूद कि यीशु बहुत कुछ कर रहे थे जो कि असाधारण, अद्भुत और जीवन को बदलनेवाला था, तब भी सभी ने उन्हें स्वीकार नहीं किया। उस समय के धार्मिक लीडर्स ने 'उनके लिए परमेश्वर के उद्देश्य को नकार दिया (व.30) और यूहन्ना और यीशु के विरुद्ध झूठे आरोप लगाए।
आलोचना के प्रति आप कैसा उत्तर देते हैं, यह भी एक परिक्षा है। यीशु ने कहा, 'क्योंकि यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला न रोटी खाता आया, न दाखरस पीता आया, और तुम कहते हो, 'उसमें दुष्टात्मा है।' मनुष्य का पुत्र खाता – पीता आया है और तुम कहते हो, 'देखो, पेटू और पियक्कड़ मनुष्य, चुंगी लेनेवालों का और पापियों का मित्र' (वव.33-34)।
यीशु कह रहे हैं कि आलोचना को नजरअंदाज करना लगभग असंभव है। जैसा कि एरिस्टोटल ने कहा, 'आलोचना को नजरअंदाज करने का एकमात्र तरीका है कुछ नहीं करना, कुछ न कहना और कुछ न होन'' आप चाहें जो भी करें, कुछ लोगों को गलती दिखाई देगी, लेकिन यीशु आलोचना के द्वारा निराश नहीं हुए। वह कहते हैं, 'पर ज्ञान अपनी सब संतानों द्वारा सच्चा ठहराया गया है' (व.35)। शायद से उनका अर्थ है कि अंत में, बुद्धि (और यीशु के कार्य) परिणामों के द्वारा साबित हो जाएँगे, या हम कहे, 'पकवान का प्रमाण खाने से पता चलता है' (व.35, एम.एस.जी.)। यीशु और यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला दोनों बहुत अलग थे लेकिन वे दोनों 'बुद्धि की संतान' थे।
प्रार्थना
परमेश्वर, मेरी सहायता किजिए कि आज मैं जिस किसी से मिलता हूँ, उनसे सही शब्दों को बोलूँ, अच्छा समाचार लाऊँ, करुणामयी हृदय रखूं और दूसरों की सेवा करने का प्रयास करूँ, जैसा कि यीशु ने किया।
गिनती 23:27-26:11
27 तब बालाक ने बिलाम से कहा, “इसलिए तुम मेरे साथ दूसरे स्थान पर चलो। सम्भव है कि परमेश्वर प्रसन्न हो जाये और तुम्हें उस स्थान से शाप देने दे।” 28 इसलिए बालाक बिलाम को पोर पर्वत की चोटी पर ले गया। यह पर्वत मरुभूमि के छोर पर स्थित है।
29 बिलाम ने कहा, “यहाँ सात वेदियाँ बनाओ। तब सात साँड़ तथा सात मेढ़े वेदियों पर बलि के लिए तैयार करो।” 30 बालाक ने वही किया जो बिलाम ने कहा। बालाक ने बलि के रूप में हर एक वेदी पर एक साँड़ तथा एक मेढ़ा मारा।
बिलाम की तीसरी भविष्यवाणी
24बिलाम को मालूम हुआ कि यहोवा इस्राएल को आशीर्वाद देना चाहता है। इस्रालिए बिलाम ने किसी प्रकार के जादू मन्तर का उपयोग करके उसे बदलना नहीं चाहा। किन्तु बिलाम मुड़ा और उसने मरुभूमि की ओर देखा। 2 बिलाम ने मरुभूमि के पार तक देखा और इस्राएल के सभी लोगों को देख लिया। वे अपने अलग—अलग परिवार समूहों के क्षेत्र में डेरा डाले हुए थे। तब परमेश्वर ने बिलाम को प्रेरित किया। 3 और बिलाम ने ये शब्द कहेः
“बोर का पुत्र बिलाम जो सब कुछ स्पष्ट देख सकता है
ये बातें कहता है।
4 ये शब्द कहे गए, क्योंकि मैं परमेश्वर की बात सुनता हूँ।
मैं उन चीज़ों को देख सकता हूँ जिसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर चाहता है की मैं देखूँ।
मैं जो कुछ स्पष्ट देख सकता हूँ वही नम्रता के साथ कहता हूँ।
5 “याकूब के लोगो तुम्हारे खेमे बहुत सुन्दर हैं!
इस्राएल के लोगो जिनके घर सुन्दर हैं!
6 तुम्हारे डेरे घाटियों की तरह
प्रदेश के आर—पार फैले हैं.
ये नदी के किनारे उगे
बाग की तरह हैं।
ये यहोवा द्वारा बोयी गई
फसल की तरह हैं।
ये नदियों के किनारे उगे
देवदार के सुन्दर पेड़ों की तरह हैं।
7 तुम्हें पीने के लिए सदा पर्याप्त पानी मिलेगा।
तुम्हें फसलें उगाने के लिए पर्याप्त पानी मिलेगा।
तुम लोगों का राजा अगाग से महान होगा।
तुम्हारा राज्य बहुत महान हो जाएगा।
8 “परमेश्वर उन लोगों को मिस्र से बाहर लाया।
वे इतने शक्तिशाली हैं जितना कोई जंगली साँड।
वे अपने सभी शत्रुओं को हरायेंगे।
वे अपने शत्रुओं की हड्डियाँ चूर करेंगे।
और उनके बाण उनके शत्रु को मार डालेंगे वे उस सिंह की तरह हैं
जो अपने शिकार पर टूट पड़ना चाहता हो।
9 वे उस सिंह की तरह है जो सो रहा हों।
कोई व्यक्ति इतना साहसी नहीं जो उसे जगा दे!
कोई व्यक्ति जो तुम्हें आशीर्वाद देगा, आशीष पाएगा,
और कोई व्यक्ति जो तुम्हारे विरुद्ध बोलेगा विपत्ति में पड़ेगा।”
10 तब बिलाम पर बालाक बहुत क्रोधित हुआ। बालाक ने बिलाम से कहा, “मैंने तुम्हे आने और अपने शत्रुओं के विरुद्ध कुछ कहने के लिए बुलाया। किन्तु तुमने उनको आशीर्वाद दिया है। तुमने उन्हें तीन बार आशीर्वाद दिया है। 11 अब विदा हो और घर जाओ। मैंने कहा था कि मैं तुम्हें बहुत अधिक सम्पन्न बनाऊँगा। किन्तु यहोवा ने तुम्हें पुरस्कार से वंचित कराया है।”
12 बिलाम ने बालाक से कहा, “तुमने आदमियों को मेरे पास भेजा। उन व्यक्तियों ने मुझसे आने के लिए कहा। किन्तु मैंने उनसे कहा, 13 ‘बालाक अपना सोने—चाँदी से भरा घर मुझको दे सकता है। परन्तु मैं तब भी केवल वही बातें कह सकता हूँ जिसे कहने के लिए यहोवा आदेश देता है। मैं अच्छा या बुरा स्वयं कुछ नहीं कर सकता। मुझे वही करना चाहिए जो यहोवा का आदेश हो।’ क्या तुम्हें याद नहीं कि मैंने ये बातें तुम्हारे लोगों से कहीं।’ 14 अब मैं अपने लोगों के बीच जा रहा हूँ किन्तु तुमको एक चेतावनी दूँगा। मैं तुमसे कहूँगा कि भविष्य में इस्राएल के ये लोग तुम्हारे और तुम्हारे लोगों के साथ क्या करेंगे।”
बिलाम की अन्तिम भविष्यवाणी
15 तब बिलाम ने ये बातें कहीं:
“बोर के पुत्र बिलाम के ये शब्द हैं:
ये उस व्यक्ति के शब्द हैं जो चीज़ों को साफ—साफ देख सकता है।
16 ये उस व्यक्ति के शब्द हैं जो परमेश्वर की बातें सुनता है।
सर्वोच्च परमेंश्वर ने मुझे ज्ञान दिया है।
मैंने वह देखा है जिसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मुझे दिखाना चाहा है।
मैं जो कुछ स्पष्ट देखता हूँ वही नम्रता के साथ कहता हूँ।
17 “मैं देखता हूँ कि यहोवा आ रहा है, किन्तु अभी नहीं।
मैं उसका आगमन देखता हूँ, किन्तु यह शीघ्र नहीं है।
याकूब के परिवार से एक तारा आएगा।
इस्राएल के लोगों में से एक नया शासक आएगा।
वह शासक मोआबी लोगों के सिर कुचल देगा।
वह शासक सेईर के सभी पुत्रों के सिर कुचल देगा।
18 एदोम देश पराजित होगा
नये राजा का शत्रु सेईर पराजित होगा।
इस्राएल के लोग शक्तिशाली हो जाएंगे।
19 “याकूब के परिवार से एक नया शासक आएगा।
नगर में जीवित बचे लोगों को वह शासक नष्ट करेगा।”
20 तब बिलाम ने अपने अमालेकी लोगों को देखा और ये बातें कहीं:
“सभी राष्ट्रों में अमालेक सबसे अधिक बलवान था।
किन्तु अमालेक भी नष्ट किया जाएगा।”
21 तब बिलाम ने केनियों को देखा और उनसे ये बातें कहीं:
“तुम्हें विश्वास है कि तुम्हारा देश उसी प्रकार सुरक्षित है।
जैसे किसी ऊँचे खड़े पर्वत पर बना घोंसला।
22 किन्तु केनियों, तुम नष्ट किये जाओगे।
अश्शूर तुम्हें बन्दी बनाएगा।”
23 तब बिलाम ने ये शब्द कहे,
“कोई व्यक्ति नहीं रह सकता जब परमेश्वर यह करता है।
24 कित्तियों के तट से जहाज आएंगे।
वे जहाज अश्शूर और एबेर को हराएंगे।
किन्तु तब वे जहाज भी नष्ट कर दिए जाएंगे।”
25 तब बिलाम उठा और अपने घर को लौट गया और बालाक भी अपनी राह चला गया।
पोर में इस्राएल
25इस्राएल के लोग अभी तक शित्तीम के क्षेत्र मे डेरा डाले हुए थे। उस समय लोग मोआबी स्त्रियों के साथ यौन सम्बन्धी पाप करने लगे। 2 मोआबी स्त्रियों ने पुरुषों को आने और अपने मिथ्या देवताओं को भेंट चढ़ाने में सहायता करने के लिए आमंन्त्रित किया। इस्राएली लोगों ने वहाँ भोजन किया और मिथ्या देवताओं की पूजा की। 3 अतः इस्राएल के लोगों ने इसी प्रकार मिथ्या देवता पोर के बाल की पूजा आरम्भ की। यहोवा इन लोगों पर बहुत क्रोधित हुआ।
4 यहोवा ने मूसा से कहा, “इन लोगों के नेताओं को लाओ। तब उन्हें सभी लोगों की आँखों के सामने मार डालो। उनके शरीर को यहोवा के सामने डालो । तब यहोवा इस्राएल के लोगों पर क्रोधित नहीं होगा।”
5 इसलिए मूसा ने इस्राएल के न्यायाधीशों से कहा “तुम लोगों में से हर एक को अपने परिवार समूह में उन लोगों को ढूँढ निकालना है जिन्होंने लोगों को पोर के मिथ्या देवता बाल की पूजा के लिए प्रेरित किया है। तब तुम्हें उन लोगों को अवश्य मार डालना चाहिए।”
6 उस समय मूसा और सभी इस्राएल के अग्रज (नेता) मिलापवाले तम्बू के द्वार पर एक साथ इकट्ठे थे। एक इस्राएली व्यक्ति एक मिद्यानी स्त्री को अपने भाईयों के पास अपने घर लाया। उसने यह वहाँ किया जहाँ उसे मूसा और सारे नेता देख सकते थे। मूसा और नेता बहुत दुःखी हुए। 7 याजक हारून के पोते तथा एलीआज़ार के पुत्र पीनहास ने इसे देखा। इसलिए उसने बैठक छोड़ी और अपना भाला उठाया। 8 वह इस्राएली व्यक्ति के पीछे—पीछे उसके खेमे में गया। तब उसने इस्राएली पुरुष और मिद्यानी स्त्री को अपने भाले से मार डाला। उसने अपने भाले को दोनों के शरीरों के पार कर दिया। उस समय इस्राएल के लोगों में एक बड़ी बीमारी फैली थी। किन्तु जब पीनहास ने इन दोनों लोगों को मार डाला तो बीमारी रूक गई। 9 इस बीमारी से चौबीस हजार लोग मर चुके थे।
10 यहोवा ने मूसा से कहा, 11 “याजक हारून के पोते तथा एलीआजार के पुत्र पीनहास ने इस्राएल लोगों को मेरे क्रोध से बचा लिया है। उसने मुझे प्रसन्न करने के लिए कठिन प्रयत्न किया। वह वैसा ही है जैसा मैं हूँ। उसने मेरी प्रतिष्ठा को लोगों में सुरक्षित रखने का प्रयत्न किया। इसलिए मैं लोगों को वैसे ही नहीं मारूँगा जैसे मैं मारना चाहता था। 12 इसलिए पीनहास से कहो कि मैं उसके साथ एक शान्ति की वाचा करना चाहता हूँ। 13 वह और उसके बाद के वंशज मेरे साथ एक वाचा करेंगे। वे सदा याजक रहेंगे क्योंकि उसने अपने परमेश्वर की प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए कठिन प्रयत्न किया। इस प्रकार उसने इस्राएली लोगों के दोषों के लिए हर्जाना दिया।”
14 जो इस्राएली मिद्यानी स्त्री के साथ मारा गया था उसका नाम जिम्रि था वह साल का पुत्र था। वह शिमोन के परिवार समूह के परिवार का नेता था 15 और मारी गई मिद्यानी स्त्री का नाम कोजबी था। 15 वह सूर की पुत्री थी। वह अपने परिवार का मुखिया था और वह मिद्यानी परिवार समूह का नेता था।
16 यहोवा ने मूसा से कहा, 17 “मिद्यानी लोग तुम्हारे शत्रु हैं। तुम्हें उनको मार डालना चाहिए। 18 उन्होंने पहले ही तुमको अपना शत्रु बना लिया है। उन्होंने तुमको धोखा दिया और तुमसे अपने मिथ्या देवताओं की पोर में पूजा करवाई और उन्होंने तुममें से एक व्यक्ति का विवाह कोजबी के साथ लगभग करा दिया जो मिद्यानी नेता की पुत्री थी। यही स्त्री उस समय मारी गयी जब इस्राएली लोगों में बीमारी आई। बीमारी इसलिए उत्पन्न की गई कि लोग पोर में मिथ्या देवता बाल की पूजा कर रहे थे।”
दूसरी गिनती
26बड़ी बीमारी के बाद यहोवा ने मूसा और हारून के पुत्र याजक एलीआज़ार से बातें कीं। 2 उसने कहा, “सभी इस्राएली लोगों की संख्या गिनो। हर एक परिवार को देखो और बीस वर्ष या उससे अधिक उम्र के हर एक पुरुष को गिनो। ये वे पुरुष हैं जो इस्राएल की सेना में सेवा करने योग्य हैं।”
3 इस समय लोग मोआब के मैदान में डेरा डाले थे। यह यरीहो के पार यरदन नदी के समीप था। इसलिए मूसा और याजक एलीआज़ार ने लोगों से बातें कीं। 4 उन्होंने कहा, “तुम्हें बीस वर्ष या उससे अधिक उम्र के हर एक पुरुष को गिनना चाहिए। यही वह आदेश था जो यहोवा ने मूसा को पालन करने के लिए दिया था।”
यहाँ उन इस्राएल के लोगों की सूची है जो मिस्र से आए थेः
5 ये रूबेन के परिवार के लोग हैं। (रूबेन इस्राएल (याकूब) का पहलौठा पुत्र था।) ये परिवार थेः
हनोक—हनोकी परिवार।
पल्लू—पल्लिय परिवार।
6 हेस्रोन—हेस्रोनी परिवार।
कर्मी—कर्मी परिवार।
7 रूबेन के परिवार समूह में वे परिवार थे। योग में सभी तैंतालीस हजार सात सौ तीस पुरुष थे।
8 पल्लू का पुत्र एलीआब था। 9 एलीआब के तीन पुत्र थे—नमूएल, दातान और अबीराम। याद रखो कि दातान और अबीराम वे दो नेता थे जो मूसा और हारून के विरोधी हो गए थे। वे कोरह के अनुयायी थे और कोरह यहोवा का विरोधी हो गया था। 10 वही समय था जब पृथ्वी फटी थी और कोरह एवं उसके सभी अनुयायियों को निगल गई थी। कुल दो सौ पचास पुरुष मर गये थे। यह इस्राएल के सभी लोगों के लिए एक संकेत और चेतावनी थी। 11 किन्तु कोरह के परिवार के अन्य लोग नहीं मरे।
समीक्षा
प्रलोभन
आज हमने जिन घटनाओं के विषय में पढ़ा, वे 'एक चेतावनी के चिह्न' हैं (26:10)। जैसा कि हमने देखा है, जब पौलुस प्रलोभनों के विषय में लिखते हैं (1कुरिंथियो 10) वे इस खंड को गिनती की पुस्तक के साथ मिलाकर बताते हैं और कहते हैं कि यहाँ पर जो लिखा है वह एक 'चेतावनी' है।
ये सभी चेतावनी के चिह्न हैं – खतरा! – हमारे इतिहास की किताबों में लिखा है ताकि हम उनकी गलतियों को न दोहराएँ...हम इसे बिगाड़ने में उतने ही सक्षम हैं जितना कि वे थे...आप उतनी ही सरलता से अपने मुँह के बल गिर सकते हैं जितना कि कोई दूसरा गिर सकता था। आत्म विश्वास के बारे में भूल जाईये; यह बेकार है। परमेश्वर विश्वास को विकसित किजिए (1कुरिंथियो 10:11-12, एम.एस.जी.)।
हमें किस चीज की चेतावनी मिल रही है? ये प्रलोभन क्या है?
1. काला जादू
'जादू-टोना' (कभी भी अनुवाद है, भावी कहलाना) का अर्थ है दैविय, जादुई ताकत के पास जाना, जो परमेश्वर की ओर से नहीं मिलती है, कुछ ढूंढने के लिए, या कुछ करवाने के लिए। आज, हम कुंडली, tarot card, भविष्य बतानेवाले, ओज़ा बोर्ड्स, हाथ पढ़ने वाले इत्यादि का उपयोग देखते हैं।' लोग जानना चाहते हैं कि क्या होनवाला है। विशेषरूप से मुसीबत के समय में, वे कभी कभी इन गलत तरीको में चले जाते हैं।
भालाम का जीवन एक जिज्ञासु मिश्रण था। एक बार वह 'परमेश्वर के आत्मा' की प्रेरणा में काम करने में सक्षम था (गिनती 24:2)। उसने एक महान मसीहा की भविष्यवाणी कीः 'याकूब में से एक तारा उदाय होगा; और इस्त्राएल में से एक राजदंड उठेगा...याकूब में से एक अधिपति आएगा जो प्रभुता करेगा' (वव.17-19; मत्ती 2:1-10 भी देखे)। यीशु अपने आपको 'भोर का तारा' कहते है (प्रकाशितवाक्य 22:16)।
फिर भी नये नियम में बालाम दोषी ठहरा है। हम यहॉं पर इसके कारण को देखते हैं। वह एक जादू – टोना करनेवाला था। सामान्य रूप से उसे 'भावी कहने के लिए फिस' मिल सकती थी (गिनती 22:7) और उसके जादू-टोने के लिए अच्छा ईनाम मिल सकता था (24:11)। जिस क्षण उसने परमेश्वर के आत्मा के अधीन काम किया, वह अपवाद थे। ऐसे समय थे जब, 'उसने बाकी समयों की तरह जादू-टोने का सहारा नहीं लिया' (व.1)।
2. व्यभिचार
लोग यौन संबंधी कुकर्म करने लगेः 'पुरुष मोआबी ल्ा़डकियो के संग कुकर्म करने लगे (25:1)। उन सभी ने धोखा खाया (व.18)। परमेश्वर का न्याय उनके विरूद्ध उठा और विशेष रूप से उनके एक लीडर, जिम्री, 'शिमोनियों का प्रधान' (व.14)। व्यभिचार ऐसा एक प्रलोभन नहीं है जिससे चर्च के लिडर मुक्त है। यदि लीडर असफल हो जाते हैं तो यह और भी गंभीर और हानिकारक है, उनके प्रभाव के कारण।
3. परमेश्वर का विकल्प
लोग परमेश्वर के प्रति वफादार नहीं थे। उन्होंने दूसरे देवताओं की आराधना की और उनके सामने दंडवत किया। वे 'बालपोर की आराधना में उनके साथ जुड़ गए' (वव.3,5)। ये मूर्तियाँ अन्य देवताओं से ज्यादा विशाल हैं'। मूर्ति परमेश्वर का विकल्प है। वे निर्माण की गई वस्तुएँ हैं जिन्हे हम अपने जीवन में नंबर एक स्थान देकर सेवा कर रहे हैं, सृजनहार की सेवा करने के बजाय (रोमियों 1:25 देखे)।
पौलुस प्रेरित हमें इसी प्रलोभन में पड़ने के खतरे के विषय में चेतावनी दे रहे हैं लेकिन अंत में ये उत्साहित करनेवाले वचन देते हैः
तुम किसी ऐसी परीक्षा में नही पड़े, जो मनुष्य के सहने से बाहर है। परमेश्वर सच्चा है और वह तुम्हें सामर्थ से बाहर परीक्षा में न पड़ने देगा, वरन् परीक्षा के साथ निकास भी करेगा कि तुम सह सको (1कुरिंथियो 10:13, एम.एस.जी.)।
प्रार्थना
पिता, शत्रु के प्रलोभन के विरूद्ध खड़े रहने में मेरी मदद कीजिये. मैं ऐसा कोई काम न करूँ जो यीशु के नाम को अपमानित करे. मैं जो भी करूँ उन सभी में आपके नाम को महिमा मिले.
पिप्पा भी कहते है
लूका 7:11-35
पर हम यीशु की असाधारण करुणा और सामर्थ को देखते हैं। यह माँ, जिसका बेटा अभी अभी मरा था, वह एक विधवा औरत भी थी। उसने पहले ही अपने पति के खो देने पर गहरे दुख का अनुभव किया था। वह अभाव में भी रही होगी, क्योंकि उसे और उसके परिवार को देनेवाला कोई नही था। कोई कुशल अवस्था नहीं ज्ञी।
महान आनंद का समय होगा जब उसका बेटा मेरे हुओं मे से जीवित किया गया और यीशु ने उसे वापिस अपनी माँ को दे दिया।
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संदर्भ
नोट्स:
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