प्यार कैसे करें
परिचय
पोप जॉन पॉल को 4 गोलियाँ लगीं – उन में से दो उनकी निचली आंतों में, और दूसरी उनके दाये और बाये हाथों में. पोप पर हत्या का यह प्रयास मई 1981 में किया गया था, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गए थे और उनका काफी खून बह गया था – उनका स्वास्थ्य पहले जैसा फिर कभी नहीं हो पाया. जुलाई 1981 में अपराधी अली एका को उम्र कैद हुई. पोप जॉन पॉल ने लोगों से कहा, 'मेरे भाई एका के लिए प्रार्थना करें, जिसे मैंने सच में क्षमा कर दिया है.'
दो साल बाद, उन्होंने अली आग्का के पास बंदीगृह में संदेश भिजवाया कि उसने जो भी किया था उसके लिए उन्होंने उसे क्षमा कर दिया है (हालाँकि उनके हत्यारे ने उनसे क्षमा नहीं मांगी थी). 1987 में आग्का की माँ और एक दशक के बाद उसके भाई से मिलने पर कुछ वर्षों बाद उनकी दोस्ती बढ़ गई. जून 2000 में पोप के आग्रह पर इटली के राष्ट्रपति ने आग्का को रिहा कर दिया. फरवरी 2005 में एका ने उन्हें स्वस्थ होने की शुभकामनाएं भेजीं. जब 2 अप्रैल 2005 को पोप का देहांत हुआ, तो एका के भाई, एड्रियान ने एक मुलाकात में कहा कि एका और उनका परिवार दु:ख मना रहा है और यह कि पोप उनके बहुत अच्छे दोस्त रहे हैं.
पोप जॉन पॉल के प्रेम और दया का उदाहरण अवर्णनीय है. परमेश्वर का प्रेम और दया इससे भी ज्यादा असाधारण है क्योंकि 'यीशु के क्रूस पर, क्षमा पूरी हुई. प्रेम और न्याय संयुक्त हुए और सत्य तथा दया, कृपा मिल गए.'
भजन संहिता 40:9-17
9 महासभा के मध्य मैं तेरी धार्मिकता का सुसन्देश सुनाऊँगा।
यहोवा तू जानता है कि मैं अपने मुँह को बंद नहीं रखूँगा।
10 यहोवा, मैं तेरे भले कर्मो को बखानूँगा।
उन भले कर्मो को मैं रहस्य बनाकर मन में नहीं छिपाए रखूँगा।
हे यहोवा, मैं लोगों को रक्षा के लिए तुझ पर आश्रित होने को कहूँगा।
मैं महासभा में तेरी करुणा और तेरी सत्यता नहीं छिपाऊँगा।
11 इसलिए हे यहोवा, तूअपनी दया मुझसे मत छिपा!
तू अपनी करुणा और सच्चाई से मेरी रक्षा कर।
12 मुझको दुष्ट लोगों ने घेर लिया,
वे इतने अधिक हैं कि गिने नहीं जाते।
मुझे मेरे पापों ने घेर लिया है,
और मैं उनसे बच कर भाग नहीं पाता हूँ।
मेरे पाप मेरे सिर के बालों से अधिक हैं।
मेरा साहस मुझसे खो चुका है।
13 हे यहोवा, मेरी ओर दौड़ और मेरी रक्षा कर!
आ, देर मत कर, मुझे बचा ले!
14 वे दुष्ट मनुष्य मुझे मारने का जतन करते हैं।
हे यहोवा, उन्हें लज्जित कर
और उनको निराश कर दे।
वे मनुष्य मुझे दु:ख पहुँचाना चाहते हैं।
तू उन्हें अपमानित होकर भागने दे!
15 वे दुष्ट जन मेरी हँसी उड़ाते हैं।
उन्हें इतना लज्जित कर कि वे बोल तक न पायें!
16 किन्तु वे मनुष्य जो तुझे खोजते हैं, आनन्दित हो।
वे मनुष्य सदा यह कहते रहें, “यहोवा के गुण गाओ!” उन लोगों को तुझ ही से रक्षित होना भाता है।
17 हे मेरे स्वामी, मैं तो बस दीन, असहाय व्यक्ति हूँ।
मेरी रक्षा कर,
तू मुझको बचा ले।
हे मेरे परमेश्वर, अब अधिक देर मत कर!
समीक्षा
प्रेम और सत्य
यीशु परमेश्वर के प्रेम का व्यक्तित्व हैं, लेकिन उन्होंने यह भी कहा है, 'मैं...... सत्य हूँ.' (यूहन्ना 14:6). पवित्र आत्मा आपके दिल में परमेश्वर का प्रेम उंडेलते हैं (रोमियों 5:5) लेकिन वह सत्य की आत्मा भी हैं (यूहन्ना 15:26). सत्य कठोर हो जाता है यदि इसे प्रेम द्वारा नरम न किया जाए; प्रेम नरम बन जाता है यदि इसे सत्य द्वारा बल नहीं मिले.
दाऊद कहते हैं, ' मैं ने तेरी करूणा और सत्यता बड़ी सभा से गुप्त नहीं रखी' (भजनसंहिता 40:10क). वह प्रार्थना करते हैं, ' तेरी करूणा और सत्यता से निरन्तर मेरी रक्षा होती रहे!' (व.11ब). वह किसी भी तरह से प्रेम और सत्य को परस्पर अनन्य नहीं मानते, बल्कि इन्हें अनुपूरक मानते हैं. परमेश्वर के बारे में सत्य यह है कि वह आपसे प्रेम करते हैं, वह सत्यनिष्ठ और विश्वासयोग्य हैं और वह इस धरती पर न्याय लाते हैं.
जिस तरह से प्रेम और सत्य एकसाथ रहते हैं, उसी तरह से न्याय और दया भी साथ-साथ रहते हैं. पवित्र शास्त्र में सत्यनिष्ठ और न्याय की अवधारणा में बहुत नजदीकी संबंध है. इस लेखांश में, परमेश्वर की सत्यनिष्ठा के उनके ज्ञान के आधार पर दाऊद परमेश्वर की दया के लिए विनती करते हैं: ' हे यहोवा, तू भी अपनी बड़ी दया मुझ पर से न हटा ले,...... मेरे अधर्म के कामों ने मुझे आ पकड़ा और मैं दृष्टि नहीं उठा सकता' (वव.11अ, 12ब). पाप हमें अंधा बना देता है. हमें परमेश्वर की दया और क्षमा की जरूरत है ताकि हम स्पष्ट रूप से देख सकें.
प्रार्थना
प्रभु, आपका प्रेम और आपका सत्य मेरी सदा रक्षा करे.
लूका 9:28-56
मूसा और एलिय्याह के साथ यीशु
28 इन शब्दों के कहने के लगभग आठ दिन बाद वह पतरस, यूहन्ना और याकूब को साथ लेकर प्रार्थना करने के लिए पहाड़ के ऊपर गया। 29 फिर ऐसा हुआ कि प्रार्थना करते हुए उसके मुख का स्वरूप कुछ भिन्न ही हो गया और उसके वस्त्र चमचम करते सफेद हो गये। 30 वहीं उससे बात करते हुए दो पुरुष प्रकट हुए। वे मूसा और एलिय्याह थे। 31 जो अपनी महिमा के साथ प्रकट हुए थे और यीशु की मृत्यु के विषय में बात कर रहे थे जिसे वह यरूशलेम में पुरा करने पर था। 32 किन्तु पतरस और वे जो उसके साथ थे नींद से घिरे थे। सो जब वे जागे तो उन्होंने यीशु की महिमा को देखा और उन्होंने उन दो जनों को भी देखा जो उसके साथ खड़े थे। 33 और फिर हुआ यूँ कि जैसे ही वे उससे विदा ले रहे थे, पतरस ने यीशु से कहा, “स्वामी, अच्छा है कि हम यहाँ हैं, हमें तीन मण्डप बनाने हैं — एक तेरे लिए। एक मूसा के लिये और एक एलिय्याह के लिये।” (वह नहीं जानता था, वह क्या कह रहा था।)
34 वह ये बातें कर ही रहा था कि एक बादल उमड़ा और उसने उन्हें अपनी छाया में समेट लिया। जैसे ही उन पर बादल छाया, वे घबरा गये। 35 तभी बादलों से आकाशवाणी हुई, “यह मेरा पुत्र है, इसे मैंने चुना है, इसकी सुनो।”
36 जब आकाशवाणी हो चुकी तो उन्होंने यीशु को अकेले पाया। वे इसके बारे में चुप रहे। उन्होंने जो कुछ देखा था, उस विषय में उस समय किसी से कुछ नहीं कहा।
लड़के को दुष्टात्मा से छुटकारा
37 अगले दिन ऐसा हुआ कि जब वे पहाड़ी से नीचे उतरे तो उन्हें एक बड़ी भीड़ मिली। 38 तभी भीड़ में से एक व्यक्ति चिल्ला उठा, “गुरु, मैं प्रार्थना करता हूँ कि मेरे बेटे पर अनुग्रह-दृष्टि कर। वह मेरी एकलौती सन्तान है। 39 अचानक एक दुष्ट आत्मा उसे जकड़ लेती है और वह चीख उठता है। उसे दुष्टात्मा ऐसे मरोड़ डालती है कि उसके मुँह से झाग निकलने लगता है। वह उसे कभी नहीं छोड़ती और सताए जा रही है। 40 मैंने तेरे शिष्यों से प्रार्थना की कि वह उसे बाहर निकाल दें किन्तु वे ऐसा नहीं कर सके।”
41 तब यीशु ने उत्तर दिया, “अरे अविश्वासियों और भटकाये गये लोगों, मैं और कितने दिन तुम्हारे साथ रहूँगा और कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा? अपने बेटे को यहाँ ले आ।”
42 अभी वह लड़का आ ही रहा था कि दुष्टात्मा ने उसे पटकी दी और मरोड़ दिया। किन्तु यीशु ने दुष्ट आत्मा को फटकारा और लड़के को निरोग करके वापस उसके पिता को सौंप दिया। 43 वे सभी परमेश्वर की इस महानता से चकित हो उठे।
यीशु द्वारा अपनी मृत्यु की चर्चा
यीशु जो कुछ कर रहा था उसे देखकर लोग जब आश्चर्य कर रहे थे तभी यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, 44 “अब जो मैं तुमसे कह रहा हूँ, उन बातों पर ध्यान दो। मनुष्य का पुत्र मनुष्य के हाथों पकड़वाया जाने वाला है।” 45 किन्तु वे इस बात को नहीं समझ सके। यह बात उनसे छुपी हुई थी। सो वे उसे जान नहीं पाये। और वे उस बात के विषय में उससे पूछने से डरते थे।
सबसे बड़ा कौन?
46 एक बार यीशु के शिष्यों के बीच इस बात पर विवाद छिड़ा कि उनमें सबसे बड़ा कौन है? 47 यीशु ने जान लिया कि उनके मन में क्या विचार हैं। सो उसने एक बच्चे को लिया और उसे अपने पास खड़ा करके 48 उनसे बोला, “जो कोई इस छोटे बच्चे का मेरे नाम में सत्कार करता है, वह मानों मेरा ही सत्कार कर रहा है। और जो कोई मेरा सत्कार करता है, वह उसका ही सत्कार कर रहा है जिसने मुझे भेजा है। इसीलिए जो तुममें सबसे छोटा है, वही सबसे बड़ा है।”
जो तुम्हारा विरोधी नहीं है, वह तुम्हारा ही है
49 यूहन्ना ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “स्वामी, हमने तेरे नाम पर एक व्यक्ति को दुष्टात्माएँ निकालते देखा है। हमने उसे रोकने का प्रयत्न किया, क्योंकि वह हममें से कोई नहीं है, जो तेरा अनुसरण करते हैं।”
50 इस पर यीशु ने यूहन्ना से कहा, “उसे रोक मत, क्योंकि जो तेरे विरोध में नहीं है, वह तेरे पक्ष में ही है।”
एक सामरी नगर
51 अब ऐसा हुआ कि जब उसे ऊपर स्वर्ग में ले जाने का समय आया तो वह यरूशलेम जाने का निश्चय कर चल पड़ा। 52 उसने अपने दूतों को पहले ही भेज दिया था। वे चल पड़े और उसके लिये तैयारी करने को एक सामरी गाँव में पहुँचे। 53 किन्तु सामरियों ने वहाँ उसका स्वागत सत्कार नहीं किया क्योंकि वह यरूशलेम को जा रहा था। 54 जब उसके शिष्यों याकूब और यूहन्ना ने यह देखा तो वे बोले, “प्रभु क्या तू चाहता है कि हम आदेश दें कि आकाश से अग्नि बरसे और उन्हें भस्म कर दे?”
55 इस पर वह उनकी तरफ़ मुड़ा और उनको डाँटा फटकारा, 56 फिर वे दूसरे गाँव चले गये।
समीक्षा
प्रेम और दया
जब आपने यीशु की असाधारण नजदीकी को महसूस किया था, तब क्या आपने अपने जीवन में परमेश्वर की अतिमहान उपस्थिति का अनुभव किया है? यह लेखांश ऐसे ही एक अनुभव से आरंभ होता है.
यीशु पतरस, यूहन्ना और याकूब को पहाड़ पर प्रार्थना करने के लिए ले जाते हैं. जब यीशु प्रार्थना कर रहे थे तब उन्होंने अपने सामने यीशु का रूपांतरण देखा. उन्होंने उनकी महिमा देखी (व. 32). पतरस ने यीशु से कहा, 'स्वामी यह सबसे बढ़िया पल है! (व. 33, एमएसजी). उन्होंने 'परमेश्वर को गहराई से जाना' (व. 34, एमएसजी). उन्होंने परमेश्वर को कहते हुए सुना, 'यह मेरा पुत्र है और मेरा चुना हुआ है; इसकी सुनो' (व.35).
फिर भी, शिष्यों की तरह जो, पहाड़ से नीचे आए', आप के साथ भी ऐसा समय आता है जब आपको भी कम होना जरूरी है (व.37). पर्वत की चोटी हमें प्रेरित करती है, लेकिन तराई हमें परिपक्व करती है.
जीवन की कठिन वास्तविकता नीचे तल पर शिष्यों का इंतजार कर रही थी – जैसे उनकी सेवकाई में असफलता, समझ की कमी और प्रतिद्वंदिता. लेकिन पर्वत का अनुभव आपको अपने जीवन में बिल्कुल नए तरीके से नीचे देखने में मदद करता है.
यीशु उनके मानने वालों को प्रेम करने के लिए बुलाते हैं जो कि गले लगाना है. वह आपको लोगों का स्वागत करने के लिए बुलाते हैं: ' जो कोई मेरे नाम से इस बालक को ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है; और जो कोई मुझे ग्रहण करता है, वह मेरे भेजने वाले को ग्रहण करता है' (व.48). लोगों का स्वागत करें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे आपके लिए क्या कर सकते हैं.
आप लोगों का कैसे स्वागत करते हैं यह सच में मायने रखता है. कुछ लोग गर्मजोशी से स्वागत करते हैं, दूसरे ऐसा नहीं करते. कुछ चर्च गर्म जोशी से स्वागत करते हैं कुछ नहीं. मैं हिल सॉन्ग चर्च से बहुत प्रभावित हूँ जिस तरह से वे लोग वहाँ पर सभाओं या सम्मेलनों में आने वाले हर व्यक्ति का स्वागत करते हैं. उनकी यह व्यापक समझ है कि लोगों का स्वागत करना यानि यीशु का स्वागत करना है. यीशु का स्वागत करने में वे उनका भी स्वागत करते हैं जिसने उन्हें भेजा है.
यूहन्ना ने कहा, ' हे स्वामी, हम ने एक मनुष्य को तेरे नाम से दुष्टात्माओं को निकालते देखा, और हम ने उसे मना किया, क्योंकि वह हमारे साथ होकर तेरे पीछे नहीं हो लेता' (व.49). यीशु ने कहा, 'उसे मना मत करो; क्योंकि जो तुम्हारे विरोध में नहीं, वह तुम्हारी ओर है' (व.50; सीफ. लूका 11:23). अपने करीबी संपर्क, जाति और परंपराओं से बाहर के लोगों को ग्रहण करें. यदि वे यीशु के विरोध में नहीं हैं, तो वे उनके लिए हैं. उनका उसी रूप में स्वागत कीजिये.
दूसरी तरफ, यदि आपका हमेशा स्वागत नहीं होता है, तो आश्चर्य न करें. बल्कि यीशु का भी हमेशा स्वागत नहीं होता था. जब यीशु यररूशलेम से से बाहर जा रहे थे उन्होंने अपने आगे एक दूत को भेजा जिसने एक सामरी गांव जाकर उनके लिए चीजों को तैयार किया, लेकिन वहाँ लोगों ने उन्हें ग्रहण नहीं किया (9:51-53).
ग्रहण न किये जाने के लिए मेरी तुरंत प्रतिक्रिया याकूब और यूहन्ना के समान होगी – बदला लेना जब शिष्यों ने देखा कि यीशु के साथ किस तरह से व्यवहार किया जा रहा है, तो उन्होंने पूछा, ' हे प्रभु; क्या तू चाहता है, कि हम आज्ञा दें, कि आकाश से आग गिरकर उन्हें भस्म कर दे?' (व.54). मगर बदला लेना सही प्रतिक्रिया नहीं है: 'परन्तु उस ने फिर कर उन्हें डांटा' (व.55).
यीशु, जो कि सत्य हैं और जो क्रूस पर परमेश्वर का न्याय खुद पर लेने वाले थे, यह हमें दिखाते हैं कि अपने शत्रुओं से भी प्यार करने और उन पर दया करने का मतलब क्या है.
प्रार्थना
प्रभु, यीशु के जैसे सभी को गले लगाकर प्रेम करने में मेरी मदद कीजिये. मेरी मदद कीजिये कि मैं कभी बदला न लूं, बल्कि अपने शत्रुओं पर भी दया करूँ और उनसे प्रेम करूँ.
गिनती 35:1-36:13
लेवीवंश के नगर
35यहोवा ने मूसा से बात की जो यरीहो के पार यरदन नदीं के किनारे मोआब की यरदन घाटी में हुई। यहोवा ने कहा, 2 “इस्राएल के लोगों से कहो कि उन्हें अपने हिस्से के देश में से कुछ नगर लेवीवंशियों को देना चाहिए। इस्राएल के लोगों को नगर और उसके चारों ओर की चरागाहें लेविवंशियों को देनी चाहिए। 3 लेवीवंशी उन नगरों में रह सकेंगे और सभी मवेशी तथा अन्य जानवर, जो लेवीवंशियों के होंगे, नगर के चारों ओर की चरागाहों में चर सकेंगे। 4 तुम लेवीवंशियों को अपने देश का कितना भाग दोगे? नगरों की दीवारों से डेढ़ हजार फीट बाहर तक नापते जाओ। वह सारी भूमि लेवीवंशियों की होगी। 5 सारी तीन हजार फीट भूमि नगर के पूर्व तीन हजार फीट नगर के दक्षिण, तीन हजार फीट नगर के पश्चिम तथा तीन हजार फीट नगर के उत्तर, भी लेवीवंशियों की होगी उस भूमि के मध्य में नगर होगा। 6 उन नगरों में से छः नगर सुरक्षा नगर होंगे। यदि कोई व्यक्ति किसी को संयोगवश मार डालता है तो वह सुरक्षा के लिए उन नगरों में भाग कर जा सकता है। उन छः नगरों के अतिरिक्त तुम लेवीवंशियों को बयालीस अन्य नगर दोगे। 7 इस प्रकार तुम लेवीवंशियों को कुल अड़तालीस नगर दोगे। तुम उन नगरों के चारों ओर की भूमि भी दोगे। 8 इस्राएल के बड़े परिवार भूमि के बड़े भाग देंगे। इस्राएल के छोटे परिवार भूमि के छोटे भाग देंगे। सभी परिवार समूह लेवीवंशियों को अपने हिस्से के प्रदेश में से कुछ भाग प्रदान करेंगे।”
9 तब यहोवा ने मूसा से बात की। उसने कहा, 10 “लोगों से यह कहोः तुम लोग यरदन नदी को पार करोगे और कनान देश में जाओगे। 11 तुम्हें सुरक्षा नगर बनाने के लिए नगरों को चुनना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति संयोगवश किसी को मार डालता है, तो यह सुरक्षा के लिए इन नगरों में से किसी में भागकर जा सकता है। 12 वह उस किसी भी व्यक्ति से सुरक्षित रहेगा जो मृतक व्यक्ति के परिवार का हो और उसे पकड़ना चाहता हो। वह तब तक सुरक्षित रहेगा जब तक न्यायालय में उनके बारे में निर्णय नहीं हो जाता। 13 सुरक्षा नगर छः होंगे। 14 उन नगरों में तीन नगर यरदन नदी के पूर्व होंगे और तीन अन्य नगर कनान प्रदेश में यरदन नदी के पश्चिम में होंगे। 15 वे नगर इस्राएल के नागरिकों, विदेशियों और यात्रियों के लिए सुरक्षा नगर होंगे। कोई भी व्यक्ति, जो संयोगवश किसी को मार डालता है, इन किसी एक नगर में भाग कर जा सकेगा।
16 “यदि कोई व्यक्ति किसी को मारने के लिए लोहे का हथियार उपयोग में लाता है, तो उस व्यक्ति को मरना चाहिए 17 और यदि कोई व्यक्ति एक पत्थर उठाता है और किसी को मार डालता है, तो उसे भी मरना चाहिए। पत्थर उस आकार का होना चाहिए जिसे व्यक्तियों को मारने के लिए प्रायः उपयोग में लाया जाता है। 18 यदि कोई व्यक्ति किसी लकड़ी का उपयोग करता है और किसी को मार डालता है, तो उसे मरना चाहिए। लकड़ी एक हथियार के रूप में होनी चाहिए जिसका उपयोग प्रायः लोग मनुष्यों को मारने के लिए करते हैं। 19 मृतक व्यक्ति के परिवार का सदस्य उस हत्यारे का पीछा कर सकता है और उसे मार सकता है।
20-21 “कोई व्यक्ति किसी पर हाथ से प्रहार कर सकता है और उसे मार सकता है या कोई व्यक्ति किसी को धक्का दे सकता है और उसे मार सकता है या कोई व्यक्ति पर कुछ फेंक सकता है और उसे मार सकता है। यदि उस मारने वाले ने घृणा के कारण ऐसा किया तो वह हत्यारा है। उस व्यक्ति को मार डालना चाहिए। मृतक के परिवार का कोई सदस्य उस हत्यारे का पीछा कर सकता है और उसे मार सकता है।
22 “किन्तु कोई व्यक्ति संयोगवश किसी को मार सकता है। वह व्यक्ति उस व्यक्ति से घृणा नहीं करता था, वह घटना संयोगवश हो गई या कोई व्यक्ति कुछ फेंक सकता है और संयोगवश किसी को मार सकता है, उसने मारने का इरादा नहीं किया था। 23 या कोई व्यक्ति कोई बड़ा पत्थर फेंक सकता है और वह पत्थर किसी ऐसे व्यक्ति पर गिर पड़े जो उसे न देख रहा हो और वह उसे मार डाले। उस व्यक्ति ने किसी को मार डालने का इरादा नहीं किया था। उसने मृतक व्यक्ति के प्रति घृणा नहीं रखी थी, यह केवल संयोगवश हुआ। 24 यदि ऐसा हो, तो जाति निर्णय करेगी कि क्या किया जाए। जाति का न्यायालय यह निर्णय देगा कि मृतक व्यक्ति के परिवार का सदस्य उसे मार सकता है। 25 यदि न्यायालय को यह निर्णय देना है कि वह जीवित रहे तो उसे अपने “सुरक्षा नगर” में जाना चाहिए। उसे वहाँ तब तक रहना चाहिए जब तक महायाजक न मरे, यह महायाजक वही होना चाहिए जिसका अभिषेक पवित्र तेल से हुआ हो।
26-27 “उस व्यक्ति को अपने सुरक्षा नगर की सीमाओं के कभी बाहर नहीं जाना चाहिए। यदि वह सीमाओं के पार जाता है और मृतक व्यक्ति परिवार का सदस्य उसे पकड़ता है और उसको मार डालता है तो वह सदस्य हत्या का अपराधी नहीं होता। 28 उस व्यक्ति को, जिसने संयोगवश किसी को मार डाला है सुरक्षा नगर में तब तक रहना पड़ेगा जब तक महायाजक मर नहीं जाता। महायाजक के मरने के बाद वह व्यक्ति अपने देश को लौट सकता है। 29 ये नियम तुम्हारे लोगों के नगरों के लिए सदा के लिए नियम होंगे।
30 “हत्यारे को तभी मृत्यु दण्ड दिया जा सकेगा। जब उसके विरोध में एक से अधिक गवाहियाँ होंगी। यदि एक ही गवाह होगा तो किसी व्यक्ति को प्राणदण्ड नहीं दिया जाएगा।
31 “यदि कोई व्यक्ति हत्यारा है, तो उसे मार डालना चाहिए। धन के बदले उसे छोड़ नहीं दिया जाना चाहिए। उस हत्यारे को मार दिया जाना चाहिए।
32 “यदि किसी व्यक्ति ने किसी को मारा और वह भाग कर किसी “सुरक्षा नगर” में गया, तो घर लौटने के लिये उससे धन न लो। उस व्यक्ति को उस नगर में तब तक रहना पड़ेगा जब तक याजक न मरे।
33 “अपने देश को निरपराधों के खून से भ्रष्ट मत होने दो। यदि कोई व्यक्ति किसी को मारता है, तो उस अपराध का बदला केवल यही है कि उस व्यक्ति को मार दिया जाए। अन्य कोई ऐसा भुगतान नहीं है जो उस अपराध से उस देश को मुक्त कर सके। 34 मैं यहोवा हूँ! मैं इस्राएल के लोगों के साथ तुम्हारे देश में सदा रहता रहूँगा। मैं उस देश में रहता रहूँगा अतः निरपराध लोगों के खून से उस देश को अपवित्र न करो।”
सलोफाद की पुत्रियों का देश
36मनश्शे यूसुफ का पुत्र था। माकीर मनश्शे का पुत्र था। गिलाद माकीर का पुत्र था। गिलाद परिवार के नेता मूसा और इस्राएल के परिवार समूह के नेताओं से बात करने गए। 2 उन्होंने कहा, “महोदय, यहोवा ने आदेश दिया कि हम लोग अपनी भूमि गोट डालकर प्राप्त करें और महोदय, यहोवा ने आदेश दिया कि सलोफाद की भूमि उसकी पुत्रियों को मिले। सलोफाद हमारा भाई था। 3 यह हो सकता है कि किसी दूसरे परिवार समूह का व्यक्ति सलोफाद की किसी पुत्री से विवाह करे। क्या वह भूमि हमारे परिवार से निकल जाएगी क्या उस दूसरे परिवार समूह के व्यक्ति उस भूमि को प्राप्त करेंगे क्या हम लोग वह भूमि खो देंगे जिसे हम लोगों ने गोट डालकर प्राप्त किया था 4 लोग अपनी भूमि बेच सकते हैं। किन्तु जुबली के वर्ष में सारी भूमि उस परिवार समूह को लौट जाती है जो इसका असली मालिक होता है। उस समय सलोफाद की पुत्रियों की भूमि कौन पाएगा यदि वैसा होता है तो हमारा परिवार उस भूमि से सदा के लिए वंचित हो जाएगा।”
5 मूसा ने इस्राएल के लोगों को यह आदेश दिया। यह आदेश यहोवा का था, “यूसुफ के परिवार समूह के ये व्यक्ति ठीक कहते हैं! 6 सलोफाद की पुत्रियों के लिए यहोवा का यह आदेश हैः यदि तुम किसी से विवाह करना चाहती हो तो तुम्हें अपने परिवार समूह के किसी पुरुष के साथ ही विवाह करना चाहिए। 7 इस प्रकार, इस्राएल के लोगों में भूमि एक परिवार समूह से दूसरे परिवार समूह में नहीं जाएगी। हर एक इस्राएली अपने पूर्वजों की भूमि को ही अपने पास रखेगा। 8 और यदि कोई पुत्री पिता की भूमि प्राप्त करती है, तो उसे अपने परिवार समूह में से ही किसी के साथ विवाह करना चाहिए। इस प्रकार, हर एक व्यक्ति वही भूमि अपने पास रखेगा जो उसके पूर्वजों की थी। 9 इस प्रकार, इस्राएल के लोगों में एक परिवार समूह से दूसरे परिवार समूह में नहीं जाएगी। हर एक इस्राएली वह भूमि रखेगा जो उसके अपने पूर्वजों की थी।”
10 सलोफाद की पुत्रियों ने, मूसा को दिये गए यहोवा के आदेश को स्वीकार किया। 11 इसलिए सलोफाद की पुत्रियाँ महला, तिर्सा, होग्ला, मिल्का और नोआ ने अपने चचेरे भाइयों के साथ विवाह किया। 12 उनके पति यूसुफ के पुत्र मनश्शे के परिवार समूह के थे, इसलिए उनकी भूमि उनके पिता के परिवार और परिवार समूह की बनी रही।
13 इस प्रकार ये नियम और आदेश यरीहो के पार यरदन नदी के किनारे मोआब क्षेत्र में मूसा को दिये गए यहोवा के आदेश थे और मूसा ने उन नियमों और आदेशों को इस्राएल के लोगों को दिया।
समीक्षा
प्रेम और न्याय
पूरे इस्राएल का राष्ट्रीय जीवन सीधे परमेश्वर द्वारा संचालित था. यह हमारी दुनिया से बहुत अलग तरीके से संचालित हो रहा था. कुछ कानून सार्वभौमिक तरीके से लागू थे. कुछ प्राचीन इस्रालियों के लिए अतिविशेष थे. यहाँ हम कानूनी प्रक्रिया का आरंभ देखते हैं जो कि प्राचीन इस्रालियों के लिए विशिष्ट था.
हत्या के लिए मृत्यु दंड मनुष्य जीवन के पवित्रता की अभिव्यक्ति थी (उत्पत्ती 9:6). वह इसलिए क्योंकि किसी मनुष्य का जीवन लेना बहुत गंभीर बात थी जिसकी बहुत गंभीर सजा मिलनी जरूरी थी. यह एक ऐसा समाज था जिसमें वैकल्पिक सजा – उदाहरण के लिए उम्र कैद, सच में व्यवहारिक नहीं थी.
हम देखते हैं कि बैर की वजह से किसी की हत्या करना और प्रभावशाली तरीके से मानव हत्या करना ('बिना किसी शत्रुता से' और 'बिना किसी इरादे से', व.22). यहाँ हम न्याय करने वाले के द्वारा – यानि लोगों द्वारा न्याय करने के अधिकार की शुरूवात को देखते हैं. जो अपराधी होता था उसे समाज में न्यायालय के सामने उपस्थित किया जाता था (व.12, एमएसजी). 'समाज को न्याय करना होता था' (व. 24, एमएसजी).
'खून का बदला लेने वाला' (व.19) निजी रूप से प्रतिशोध नहीं ले सकता था. उस मामले को न्यायालय के सामने लाना जरूरी था ('संविधान', व.12) जिसमें एक से ज्यादा गवाह होते थे और न्यायालय द्वारा निर्णय लिया जाता था. वहाँ सच में बहुत अच्छे सबूत होना जरूरी था (व.30). और भ्रष्टाचार नहीं होना चाहिये था (व.31).
नया नियम राज्य और व्यक्तिगत नैतिकता के बीच भेद बतलाता है. संचालक अधिकारियों को परमेश्वर द्वारा नियुक्त किया जाता था और ' वह तेरी भलाई के लिये परमेश्वर का सेवक है.... और परमेश्वर का सेवक है; कि उसके क्रोध के अनुसार बुरे काम करने वाले को दण्ड दे' (रोमियों 13:4). राज्य की जिम्मेदारी दूसरों की रक्षा करना था. समर्थन करना और अन्याय में शामिल होना वास्तव में गैरमसीही और प्रेमरहित होता था. दुष्टता को बिना जाँचे और पीड़ित के दर्द को अनदेखा किया जाता था.
फिर भी व्यक्तिगत नैतिकता के बारे में यीशु और प्रेरितो पौलुस दोनों ने कहा है कि बदला न लेना (मत्ती 5:38-42; रोमियों 12:17-19). प्यार और क्षमा का व्यवहार न्याय से इंकार करना नहीं है बल्कि यह परमेश्वर के अंतिम न्याय पर भरोसा करना है (रोमियों 12:19 देखें). जब हम परमेश्वर के न्याय पर भरोसा करते हैं, तो हम उनके प्यार को प्रकट करने के लिए सशक्त हो जाते हैं. जैसा कि मिरोस्लॅव वॉल्फ लिखते हैं, 'अहिंसा के लिए दैवीय प्रतिशोध पर विश्वास करना जरूरी है.' वह समझाते हैं कि जब हम जान लेते हैं कि ताड़ना पीड़ित पर अंनत काल तक जय नहीं पाएगी, हम फिर से किसी व्यक्ति की इंसानियत और उनके लिए परमेश्वर का प्रेम जानने के लिए मुक्त रहते हैं.
हमारी नैतिकता और वह अवस्था जो हमारे अंदर सभी तनाव पैदा करती है उसके बीच फर्क है. यीशु की ओर हम सभी को आज्ञा दी गई है कि हमें प्रतिशोध नहीं लेना है. हम उस राज्य के नागरिक भी हैं जिसकी जिम्मेदारी अपराध और अन्याय को रोकना है. इस तनाव को बनाए रखना आसान नहीं है, बल्कि प्यार का व्यवहार बनाए रखना आसान है जो हम करते हैं. हमेशा हमारा मकसद प्रेम और न्याय करना होना चाहिये, ना कि बदला या प्रतिशोध लेना. हमें हरएक परिस्थिति में प्रेमपूर्ण व्यवहार रखना चाहिये.
प्रार्थना
प्रभु, प्यार और दया का व्यवहार करते हुए सत्य और न्याय के लिए संयुक्त अभिलाषा रखने में मेरी मदद कीजिये.
पिप्पा भी कहते है
लूका 9:46-48
मैं यकीन नहीं कर सकती हम फिर से वाद-विवाद कर रहे हैं कि सबसे महान कौन हैं. मैं विशेष रूप से प्रतिस्पर्धात्मक नहीं हूँ, बल्कि जब मेरा कोलेस्ट्रोल 5% से कम हो गया तो मैं बहुत ही रोमांचित हो गई (और इसलिए) निकी से बेहतर है!

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संदर्भ
नोट्स:
जॉनसन एडिसन, 'एट द क्रॉस ऑफ़ जीसस', © Scripture Union
मिरोस्लॅव वोल्फ, एक्सक्लूज़िव एंड एम्ब्रेस, (एबिंग्डन 1996). प. 304
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।