जीवन के संघर्ष का सामना कैसे करें
परिचय
बल्कि मुझे उसका नाम भी याद नहीं है और मैं उसकी बातचीत के बारे में ज्यादा नहीं सोचता. हम दोनों अठारह साल के थे. वह तभी सेना में भर्ती हुआ था. जब वह अपना संदेश देने के लिए खड़ा हुआ तो उसने दृश्य साधन के रूप में सेना के जूते पेश किये. उसने एक जूते को 'भरोसा' और दूसरे जूते को 'आज्ञा पालन' नाम रखा. उसने उनका उल्लेख मसीही जीवन के दायें और बायें जूते के रूप में किया. वह केवल सतरह मिनट तक बोला, लेकिन उसके चित्रण ने घर को मारा और मैं इसे कभी नहीं भूल सकता.
जैसा कि उसने बताया 'भरोसा, और 'आज्ञा पालन', मसीही जीवन का बहुत अच्छा सारांश है. हम आज के लेखांश में देखते हैं कि ये परीक्षा, प्रलोभन, चिंता, नराशा, डर, असफलता और जीवन के सभी संघर्ष के उत्तर हैं.
भजन संहिता 42:6-11
5-6 मैं इतना दुखी क्यों हूँ?
मैं इतना व्याकुल क्यों हूँ?
मुझे परमेश्वर के सहारे की बाट जोहनी चाहिए।
मुझे अब भी उसकी स्तुति का अवसर मिलेगा।
वह मुझे बचाएगा।
हे मेरे परमेश्वर, मैं अति दुखी हूँ। इसलिए मैंने तुझे यरदन की घाटी में,
हेर्मोन की पहाड़ी पर और मिसगार के पर्वत पर से पुकारा।
7 जैसे सागर से लहरे उठ उठ कर आती हैं।
मैं सागर तंरगों का कोलाहल करता शब्द सुनता हूँ, वैसे ही मुझको विपतियाँ बारम्बार घेरी रहीं।
हे यहोवा, तेरी लहरों ने मुझको दबोच रखा है।
तेरी तरंगों ने मुझको ढाप लिया है।
8 यदि हर दिन यहोवा सच्चा प्रेम दिखएगा, फिर तो मैं रात में उसका गीत गा पाऊँगा।
मैं अपने सजीव परमेश्वर की प्रार्थना कर सकूँगा।
9 मैं अपने परमेश्वर, अपनी चट्टान से बातें करता हूँ।
मैं कहा करता हूँ, “हे यहोवा, तूने मूझको क्यों बिसरा दिया हे
यहोवा, तूने मुझको यह क्यों नहीं दिखाया कि मैं अपने शत्रुऔं से बच कैसे निकलूँ?”
10 मेरे शत्रुओं ने मुझे मारने का जतन किया।
वे मुझ पर निज घृणा दिखाते हैं जब वे कहते हैं, “तेरा परमेश्वर कहाँ है?”
11 मैं इतना दुखी क्यों हूँ?
मैं क्यों इतना व्याकुल हूँ?
मुझे परमेश्वर के सहारे की बाट जोहनी चाहिए।
मुझे अब भी उसकी स्तुति करने का अवसर मिलगा।
वह मुझे बचाएगा।
समीक्षा
परीक्षा और प्रलोभन
अक्सर परेशानियों के समय में हम गहरी जड़ पकड़ते हैं. भजन लिखने वाला याद ताजा करने वाली अभिव्यक्ति का उपयोग करता है ' गहराई, गहराई को पुकारती है' (व.7). कोई भी चीज जो हम में गहरी नहीं है वह दूसरों में गहराई तक नहीं पहुँचेगी.
भजन लिखने वाला 'निराश' है (व.6ब). उसे लगता है कि परमेश्वर उसे भूल गए हैं (व.9). वह 'शोक' मनाता है, और शत्रु द्वारा दबाया गया है (व.9ब).. वह 'दु:खी' है (व.10अ). लोग यह कह कर उसका मजाक उड़ाते हैं कि 'तेरा परमेश्वर कहां है?' (व.10ब) – उसी तरह से आज भी कुछ मसीही लोगों का मजाक उड़ाया जाता है.
जीवन की परीक्षा और प्रलोभन ने बड़ी जलधाराओं के समान उसे पराजित कर दिया है (व.7). फिर भी दिल की गहराई में वह जानता है कि जीवन की लहरों में डूबने के बावजूद, वह परमेश्वर पर भरोसा कर सकता है: 'परमेश्वर ने सदा उससे प्रेम करने का वायदा किया है' (व.8, एमएसजी).
प्रचंड नदी की छवि को जारी रखते हुए, वह परमेश्वर को 'मेरी चट्टान' के रूप में संबोधित करता है (व.9). हालाँकि उसे लगता है कि परमेश्वर ने उसे भुला दिया है, फिर भी वह सच्चाई जानता है कि परमेश्वर सबसे महान सुरक्षा है जिस पर वह खड़ा रह सकता है.
इन सबके बीच वह खुद से कहता है: ' हे मेरे प्राण तू क्यों गिरा जाता है? तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है? परमेश्वर पर भरोसा रख; क्योंकि वह मेरे मुख की चमक और मेरा परमेश्वर है, मैं फिर उसका धन्यवाद करूंगा' (व.11). वह सभी संघर्षों, परीक्षाओं और प्रलोभनों को जानता है, आपको अपनी नजरें परमेश्वर पर केंद्रित करनी चाहिये और उन पर भरोसा रखते हुए उनकी आज्ञा का पालन करना चाहिये.
प्रार्थना
प्रभु, आपको धन्यवाद कि आपने अपना प्रेम मुझ पर केंद्रित किया है. 'मेरे उद्धारकर्ता और मेरे परमेश्वर, मुझे आप पर भरोसा रखने और आपकी आज्ञा का पालन करने में मेरी मदद कीजिये (व.11).
लूका 12:1-34
फरीसियों जैसे मत बनो
12और फिर जब हजारों की इतनी भीड़ आ जुटी कि लोग एक दूसरे को कुचल रहे थे तब यीशु पहले अपने शिष्यों से कहने लगा, “फरीसियों के ख़मीर से, जो उनका कपट है, बचे रहो। 2 कुछ छिपा नहीं है जो प्रकट नहीं कर दिया जायेगा। ऐसा कुछ अनजाना नहीं है जिसे जाना नहीं दिया जायेगा। 3 इसीलिये हर वह बात जिसे तुमने अँधेरे में कहा है, उजाले में सुनी जायेगी। और एकांत कमरों में जो कुछ भी तुमने चुपचाप किसी के कान में कहा है, मकानों की छतों पर से घोषित किया जायेगा।
बस परमेश्वर से डरो
4 “किन्तु मेरे मित्रों! मैं तुमसे कहता हूँ उनसे मत डरो जो बस तुम्हारे शरीर को मार सकते हैं और उसके बाद ऐसा कुछ नहीं है जो उनके बस में हो। 5 मैं तुम्हें दिखाऊँगा कि तुम्हें किस से डरना चाहिये। उससे डरो जो तुम्हें मारकर नरक में डालने की शक्ति रखता है। हाँ, मैं तुम्हें बताता हूँ, बस उसी से डरो।
6 “क्या दो पैसे की पाँच चिड़ियाएँ नहीं बिकतीं? फिर भी परमेश्वर उनमें से एक को भी नहीं भूलता। 7 और देखो तुम्हारे सिर का एक एक बाल तक गिना हुआ है। डरो मत तुम तो बहुत सी चिड़ियाओं से कहीं अधिक मूल्यवान हो।
यीशु के नाम पर लज्जाओ मत
8 “किन्तु मैं तुमसे कहता हूँ जो कोई व्यक्ति सभी के सामने मुझे स्वीकार करता है, मनुष्य का पुत्र भी उस व्यक्ति को परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने स्वीकार करेगा। 9 किन्तु वह जो मुझे दूसरों के सामने नकारेगा, उसे परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने नकार दिया जायेगा।
10 “और हर उस व्यक्ति को तो क्षमा कर दिया जायेगा जो मनुष्य के पुत्र के विरोध में कोई शब्द बोलता है, किन्तु जो पवित्र आत्मा की निन्दा करता है, उसे क्षमा नहीं किया जायेगा।
11 “सो जब वे तुम्हें यहूदी आराधनालयों, शासकों और अधिकारियों के सामने ले जायें तो चिंता मत करो कि तुम अपना बचाव कैसे करोगे या तुम्हें क्या कुछ कहना होगा। 12 चिंता मत करो क्योंकि पवित्र आत्मा तुम्हें सिखायेगा कि उस समय तुम्हें क्या बोलना चाहिये।”
स्वार्थ के विरुद्ध चेतावनी
13 फिर भीड़ में से उससे किसी ने कहा, “गुरु, मेरे भाई से पिता की सम्पत्ति का बँटवारा करने को कह दे।”
14 इस पर यीशु ने उससे कहा, “ओ भले मनुष्य, मुझे तुम्हारा न्यायकर्ता या बँटवारा करने वाला किसने बनाया है?” 15 सो यीशु ने उनसे कहा, “सावधानी के साथ सभी प्रकार के लोभ से अपने आप को दूर रखो। क्योंकि आवश्यकता से अधिक सम्पत्ति होने पर भी जीवन का आधार उसका संग्रह नहीं होता।”
16 फिर उसने उन्हें एक दृष्टान्त कथा सुनाई: “किसी धनी व्यक्ति की धरती पर भरपूर उपज हुई। 17 वह अपने मन में सोचते हुए कहने लगा, ‘मैं क्या करूँ, मेरे पास फ़सल को रखने के लिये स्थान तो है नहीं।’
18 “फिर उसने कहा, ‘ठीक है मैं यह करूँगा कि अपने अनाज के कोठों को गिरा कर बड़े कोठे बनवाऊँगा और अपने समूचे अनाज को और सामान को वहाँ रख छोड़ूँगा। 19 फिर अपनी आत्मा से कहूँगा, अरे मेरी आत्मा अब बहुत सी उत्तम वस्तुएँ, बहुत से बरसों के लिये तेरे पास संचित हैं। घबरा मत, खा, पी और मौज उड़ा।’
20 “किन्तु परमेश्वर उससे बोला, ‘अरे मूर्ख, इसी रात तेरी आत्मा तुझसे ले ली जायेगी। जो कुछ तूने तैयार किया है, उसे कौन लेगा?’
21 “देखो, उस व्यक्ति के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है, वह अपने लिए भंडार भरता है किन्तु परमेश्वर की दृष्टि में वह धनी नहीं है।”
परमेश्वर से बढ़कर कुछ नहीं है
22 फिर उसने अपने शिष्यों से कहा, “इसीलिये मैं तुमसे कहता हूँ, अपने जीवन की चिंता मत करो कि तुम क्या खाओगे अथवा अपने शरीर की चिंता मत करो कि तुम क्या पहनोगे? 23 क्योंकि जीवन भोजन से और शरीर वस्त्रों से अधिक महत्त्वपूर्ण है। 24 कौवों को देखो, न वे बोते हैं, न ही वे काटते है। न उनके पास भंडार है और न अनाज के कोठे। फिर भी परमेश्वर उन्हें भोजन देता है। तुम तो कौवों से कितने अधिक मूल्यवान हो। 25 चिन्ता करके, तुम में से कौन ऐसा हे, जो अपनी आयु में एक घड़ी भी और जोड़ सकता है। 26 क्योंकि यदि तुम इस छोटे से काम को भी नहीं कर सकते तो शेष के लिये चिन्ता क्यों करते हो?
27 “कुमुदिनियों को देखो, वे कैसे उगती हैं? न वे श्रम करती है, न कताई, फिर भी मैं तुमसे कहता हूँ कि सुलैमान अपने सारे वैभव के साथ उन में से किसी एक के समान भी नहीं सज सका। 28 इसीलिये जब मैदान की घास को, जो आज यहाँ है और जिसे कल ही भाड़ में झोक दिया जायेगा, परमेश्वर ऐसे वस्त्रों से सजाता है तो ओ अल्प विश्वासियो, तुम्हें तो वह और कितने ही अधिक वस्त्र पहनायेगा।
29 “और चिन्ता मत करो कि तुम क्या खाओगे और क्या पीओगे। इनके लिये मत सोचो। 30 क्योंकि जगत के और सभी लोग इन वस्तुओं के पीछे दौड़ रहे हैं पर तुम्हारा पिता तो जानता ही है कि तुम्हें इन वस्तुओं की आवश्यकता है। 31 बल्कि तुम तो उसके राज्य की ही चिन्ता करो। ये वस्तुएँ तो तुम्हें दे ही दी जायेंगी।
धन पर भरोसा मत करो
32 “मेरी भोली भेड़ो डरो मत, क्योंकि तुम्हारा परम पिता तुम्हें स्वर्ग का राज्य देने को तत्पर है। 33 सो अपनी सम्पत्ति बेच कर धन गरीबों में बाँट दो। अपने पास ऐसी थैलियाँ रखो जो पुरानी न पड़ें अर्थात् कभी समाप्त न होने वाला धन स्वर्ग में जुटाओ जहाँ उस तक किसी चोर की पहँच न हो। और न उसे कीड़े मकौड़े नष्ट कर सकें। 34 क्योंकि जहाँ तुम्हारा कोष है, वहीं तुम्हारा मन भी रहेगा।
समीक्षा
चिंता और निराशा
क्या आप बहुत चिंता करते हैं? क्या आप 'डर से प्रभावित हैं' या 'चेतावनी में जब्त हैं' (वव.7,32. एएमपी)? क्या आप कभी चिंतित और परेशान थे' (व.22, एएमपी)?
यीशु ने कभी नहीं कहा, 'चिंता मत करना क्योंकि चिंता करने की कोई बात ही नहीं है.' बल्कि उन्होंने कहा है कि, 'वास्तव में चिंता करने के लिए बहुत कुछ है फिर भी चिंता मत करो.' यीशु ने कई बार अपने शिष्यों से कहा, 'मत डर' (वव. 4,7,32) और 'चिंता मत करो' (वव.11,22,29). डर और चिंता का जवाब है भरोसा करना और आज्ञा पालन करना. चिंता, निराशा और डर से निपटने के लिए यीशु हमें सात तरीके बताते हैं.
- परमेश्वर का भय मानो और किसी का नहीं
यदि आप सही रीति से परमेश्वर का भय मानते हैं, तो आपको किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है (व.5). ' मैं तुम्हें चिताता हूँ कि तुम्हें किस से डरना चाहिए, घात करने के बाद जिस को नरक में डालने का अधिकार है, उसी से डरो : वरन मैं तुम से कहता हूँ उसी से डरो' (व.5).
- परमेश्वर के लिए अपना मूल्य समझें
यीशु आपसे कहते हैं चिंता मत करो या मत डरो क्योंकि परमेश्वर के लिए आप मूल्यवान हैं. वह आपसे प्रेम करते हैं; ' तुम बहुत गौरैयों से बढ़कर हो' (व.7ब). वह नजदीक से जानते हैं: ' तुम्हारे सिर के सब बाल भी गिने हुए हैं' (व.7अ).
- पवित्र आत्मा पर भरोसा करें
वह आपसे कहते हैं कि चिंता मत करो, क्योंकि आप सहायता के लिए पवित्र आत्मा पर भरोसा कर सकते हैं. जब आप विरोध, कठिन परिस्थिति, मीटिंग आदि का सामना करें, तो यीशु कहते हैं कि, 'जब लोग तुम्हें सभाओं और हाकिमों और अधिकारियों के सामने ले जाएं, तो चिन्ता न करना कि हम किस रीति से या क्या उत्तर दें, या क्या कहेंगे। क्योंकि पवित्र आत्मा उसी घड़ी तुम्हें सिखा देगा, कि क्या कहना चाहिए' (व.11-12).
- जीवन के उद्देश्य से न चूकें
यीशु कहते हैं कि चिंता करने से आप जीवन के संपूर्ण उद्देश्य से चूक जाएंगे: 'किसी का जीवन उस की संपत्ति की बहुतायत से नहीं होता' (व.15).
वह एक व्यापारी का दृष्टांत सुनाते हैं, जिसने बहुत ही सफल व्यवसाय स्थापित किया और बहुत धन कमाया. शायद पूरी दुनिया उसकी तारीफ करती थी. मगर, यीशु उसका वर्णन एक मूर्ख और असफल व्यक्ति के रूप में करते हैं (व.20). उसने गलत अनुमान लगाया कि वह कई सालों तक जीवित रहेगा (वव.19-20). उसने इस जीवन के परे कभी नहीं देखा (व.20).
उसका जीवन सिर्फ उस पर केंद्रित था. शब्द 'मैं' या 'मेरा' ग्यारह बार आता है (वव.17-19). उसने सोचा कि वह योग्य है और उसकी संपत्ती भी योग्य है. वह धनी बनने के तरीके को समझने में सच में असफल रहा. वह 'परमेश्वर के प्रति धनी नहीं था' (व.21). जैसा कि बताया गया है, 'एक व्यक्ति अपने आप में लिपटा हुआ बहुत छोटा पैकेज बन जाता है.'
- यह एहसास करना कि गड़बड़ी करना व्यर्थ है
यीशु आपसे कहते हैं कि भौतिक धन संपत्ती और शारीरिक जरूरतों के परे देखो, 'अपने प्राण की चिन्ता न करो, कि हम क्या खाएंगे; न अपने शरीर की कि क्या पहनेंगे' (व.22). इसमे कोई गलत नहीं है, लेकिन यह आपका केंद्र नहीं होना चाहिये – ' भोजन से प्राण, और वस्त्र से शरीर बढ़कर है' (व.23).
- परमेश्वर की देखभाल और प्रावधान पर भरोसा रखें
यीशु बताते हैं कि चिंता विश्वास के विपरीत है (व.28). यदि आप भरोसा करेंगे तो आप चिंता नहीं करेंगे. 'यदि परमेश्वर मैदान की घास को जो आज है, और कल भाड़ में झोंकी जाएगी, ऐसा पहिनाता है; तो हे अल्प विश्वासियों, वह तुम्हें क्यों न पहिनाएगा?' (व.28). परमेश्वर की देखभाल और प्रावधान में भरोसा करने के लिए विश्वास शामिल है.
- परमेश्वर के राज्य की खोज करें
भरोसा और आज्ञा पालन साथ-साथ चलते हैं. बजाय इसके कि आप खुद के लिए इकठ्ठा करें आपको 'परमेश्वर की नजर में धनी होना जरूरी है' (व.21). भौतिक चीजों के बारे में चिंता करने के बजाय आपको उसके राज्य की खोज करनी चाहिये (व.31) – जिसे परमेश्वर ने अपनी प्रसन्नता में आपको दिया है (व.32). यह आपके जीवन का केंद्र होना चाहिये. 'क्योंकि जहां तुम्हारा धन है, वहां तुम्हारा मन भी लगा रहेगा' (व.34).
प्रार्थना
प्रभु आपको धन्यवाद, आपने मुझे बारबार कहा कि चिंता मत करो और मत डरो. मुझे आपके राज्य की खोज करने और मुझे इस बात पर भरोसा करने में मेरी मदद कीजिये कि, 'ये वस्तुऐं भी तुम्हें मिल जाएंगी' (व.31).
व्यवस्था विवरण 9:1-10:22
यहोवा इस्राएल के लोगों का साथ देगा!
9“ध्यान दो, इस्राएल के लोगो! आज तुम यरदन नदी को पार करोगे। तुम उस देश में अपने से बड़े और शक्तिशाली राष्ट्रों को बलपूर्वक हटाने के लिए जाओगे। उनके नगर बड़े और उनकी दीवारें आकाश को छूती हैं। 2 वहाँ के लोग लम्बे और बलवान हैं। वे अनाकी लोग हैं। तुम इन लोगों के बारे में जानते हो। तुम लोगों ने अपने गुप्तचरों को यह कहते हुए सुना, ‘कोई व्यक्ति अनाकी लोगों को नहीं हरा सकता।’ 3 किन्तु तुम पूरा विश्वास कर सकते हो कि यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर भस्म करने वाली आग की तरह तुम्हारे आगे नदी के पार जा रहा है। यहोवा उन राष्ट्रों को नष्ट करेगा। वह उन्हें तुम्हारे सामने पराजित करायेगा। तुम उन राष्ट्रों को बलपूर्वक निकाल बाहर करोगे। तुम शीघ्र ही उन्हें नष्ट करोगे। यहोवा ने यह प्रतिज्ञा की है कि ऐसा होगा।
4 “यहोवा तुम्हारा परमेश्वर जब उन राष्ट्रों को बलपूर्वक तुमसे दूर हटा दे तो अपने मन में यह न कहना कि, ‘यहोवा हम लोगों को इस देश में रहने के लिए इसलिए लाया कि हम लोगों के रहने का ढंग उचित है।’ यहोवा ने उन राष्ट्रों को तुम लोगों से दूर बलपूर्वक क्यों हटाया? क्योंकि वे बुरे ढंग से रहते थे। 5 तुम उनका देश लेने के लिए जा रहे हो, किन्तु इसलिए नहीं कि तुम अच्छे हो और उचित ढंग से रहते थे। तुम उस देश में जा रहे हो और यहोवा तुम्हारा परमेश्वर चाहता है कि जो वचन उसने तुम्हारे पूर्वजों—इब्राहीम, इसहाक और याकूब को दिया वह पूरा हो। 6 यहोवा तुम्हारा परमेश्वर उस अच्छे देश को तुम्हें रहने के लिए दे रहा है, किन्तु तुम्हें यह जानना चाहिए कि ऐसा तुम्हारी जिन्दगी के अच्छे ढंग के होने के कारण नहीं हो रहा है। सच्चाई यही है कि तुम अड़ियल लोग हो!
यहोवा का क्रोध याद रखो
7 “यह मत भूलो कि तुमने यहोवा अपने परमेश्वर को मरुभूमि में क्रोधित किया! तुमने उसी दिन से जिस दिन से मिस्र से बाहर निकले और इस स्थान पर आने के दिन तक यहोवा के आदेश को मानने से इन्कार किया है। 8 तुमने यहोवा को होरेब (सीनै) पर्वत पर भी क्रोधित किया। यहोवा तुम्हें नष्ट कर देने की सीमा तक क्रोधित था! 9 मैं पत्थर की शिलाओं को लेने के लिए पर्वत के ऊपर गया, जो वाचा यहोवा ने तुम्हारे साथ किया, उन शिलाओं में लिखे थे। मैं वहाँ पर्वत पर चालीस दिन और चालीस रात ठहरा। मैंने न रोटी खाई, न ही पानी पिया। 10 तब यहोवा ने मुझे पत्थर की शिलाएँ दीं। यहोवा ने उन शिलाओं पर अपनी उंगलियों से लिखा है। उसने उस हर एक बात को लिखा है जिन्हें उसने आग में से कहा था। जब तुम पर्वत के चारों ओर इकट्ठे थे।
11 “इसलिए, चालीस दिन और चालीस रात के अन्त में यहोवा ने मुझे साक्षीपत्र की दो शिलाएँ दीं। 12 तब यहोवा ने मुझसे कहा, ‘उठो और शीघ्रता से यहाँ से नीचे जाओ। जिन लोगों को तुम मिस्र से बाहर लाए हो उन लोगों ने अपने को बरबाद कर लिया है। वे उन बातों से शीघ्रता से हट गए हैं, जिनके लिए मैंने आदेश दिया था। उन्हो ने सोने को पिघला कर अपने लिए एक मूर्ति बना ली है।’
13 “यहोवा ने मुझसे यह भी कहा, ‘मैंने इन लोगों पर अपनी निगाह रखी है। वे बहुत अड़ियल हैं! 14 मुझे इन लोगों को पूरी तरह नष्ट कर देने दो, कोई व्यक्ति उनका नाम कभी याद नहीं करेगा। तब मैं तुमसे दूसरा राष्ट्र बनाऊँगा जो उन के राष्ट्र से बड़ा और अधिक शक्तिशाली होगा।’
सोने का बछड़ा
15 “तब मैं मुड़ा और पर्वत से नीचे आया। पर्वत आग से जल रहा था। साक्षीपत्र की दोनों शिलाएँ मेरे हाथ में थीं। 16 जब मैंने नजर डाली तो देखा कि तुमने यहोवा अपने परमेश्वर के विरूद्ध पाप किया है, तुमने अपने लिए पिघले सोने से एक बछड़ा बनाया है। यहोवा ने जो आदेश दिया है उससे तुम शीघ्रता से दूर हट गए हो। 17 इसलिए मैंने दोनों शिलाएँ लीं और उन्हें नीचे डाल दिया। वहाँ तुम्हारी आँखों के सामने शिलाओं के टुकड़े कर दिए। 18 तब मैं यहोवा के सामने झुका और अपने चेहरे को जमीन पर करके चालीस दिन और चालीस रात वैसे ही रहा। मैंने न रोटी खाई, न पानी पिया। मैंने यह इसलिए किया कि तुमने इतना बुरा पाप किया था। तुमने वह किया जो यहोवा के लिए बुरा है और तुमने उसे क्रोधित किया। 19 मैं यहोवा के भयंकर क्रोध से डरा हुआ था। वह तुम्हारे विरुद्ध इतना क्रोधित था कि तुम्हें नष्ट कर देता। किन्तु यहोवा ने मेरी बात फिर सुनी। 20 यहोवा हारून पर बहुत क्रोधित था, उसे नष्ट करने के लिए उतना क्रोध काफी था! इसलिए उस समय मैंने हारून के लिए भी प्रार्थना की। 21 मैंने उस पापपूर्ण तुम्हारे बनाए सोने के बछड़े को लिया और उसे आग मे जला दिया। मैंने उसे छोटे—छोटे टुकड़ों में तोड़ा और मैंने बछड़े के टुकड़ों को तब तक कुचला जब तक वे धूलि नहीं बन गए और तब मैंने उस धूलि को पर्वत से नीचे बहने वाली नदी में फेंका।
मूसा यहोवा से इस्राएल के लिये क्षमा माँगता है
22 “मस्सा में तबेरा और किब्रोतहतावा पर तुमने फिर यहोवा को क्रोधित किया 23 और जब यहोवा ने तुमसे कादेशबर्ने छोड़ने को कहा तब तुमने उसकी आज्ञा का पालन नहीं किया। उसने कहा, ‘आगे बढ़ो और उस देश में रहो जिसे मैंने तुम्हें दिया है।’ किन्तु तुमने उस पर विश्वास नहीं किया। तुमने उसके आदेश की अनसुनी की। 24 पूरे समय जब से मैं तुमहें जानता हूँ तुम लोगों ने यहोवा की आज्ञा पालन करने से इन्कार किया है।
25 “इसलिए मैं चालीस दिन और चालीस रात यहोवा के सामने झुका रहा। क्यों?क्योंकि यहोवा ने कहा कि वह तुम्हें नष्ट करेगा। 26 मैंने यहोवा से प्रार्थना की। मैंने कहाः यहोवा मेरे स्वामी, अपने लोगों को नष्ट न कर। वे तेरे अपने हैं। तूने अपनी बडी शक्ति और दृढ़ता से उन्हें स्वतन्त्र किया और मिस्र से लाया। 27 तू अपने सेवक इब्राहीम, इसहाक और याकूब को दी गई अपनी प्रतिज्ञा को याद कर। तू यह भूल जा कि ये लोग कितने हठीले हैं। तू उनके बुरे ढंग और पाप को न देख। 28 यदि तू अपने लोगों को दण्ड देगा तो मिस्री कह सकते हैं, ‘यहोवा अपने लोगों को उस देश में ले जाने में समर्थ नहीं था जिसमें ले जाने का उसने वचन दिया था और वह उनसे घृणा करता था। इसलिए वह उन्हें मारने के लिए मरुभूमि में ले गया।’ 29 किन्तु वे लोग तेरे लोग हैं, यहोवा वे तेरे अपने हैं। तू अपनी बड़ी शक्ति और दृढ़ता से उन्हें मिस्र से बाहर लाया।
नई पत्थर की शिलाएँ
10“उस समय, यहोवा ने मुझसे कहा, ‘तुम पहली शिलाओं की तरह पत्थर काटकर दो शिलाएँ बनाओ। तब तुम मेरे पास पर्वत पर आना। अपने लिए एक लकड़ी का सनदूक भी बनाओ। 2 मैं पत्थर की शिलाओं पर वे ही शब्द लिखूँगा जो तुम्हारे द्वारा तोड़ी गई पहली शिलाओं पर थे। तब तुम्हें इन नयी शिलाओं को सन्दूक में रखना चाहिए।’
3 “इसलिए मैंने देवदार का एक सन्दूक बनाया। मैंने पहली शिलाओं की तरह पत्थर काटकर दो शिलाएँ बनाईं। तब मैं पर्वत पर गया। मेरे हाथ में दोनों शिलाएँ थीं 4 और यहोवा ने उन्हीं शब्दों को लिखा जिन्हें उसने तब लिखा था जब दस आदेशों को उसने आग में से तुम्हें दिया था और तुम पर्वत के चारों ओर इकट्ठे थे। तब यहोवा ने पत्थर की शिलाएँ मुझे दीं। 5 मैं मुड़ा और पर्वत के नीचे आया। मैंने अपने बनाएँ सन्दूक में शिलाओं को रखा। यहोवा ने मुझे उसमें रखने को कहा और शिलाएँ अब भी उसी सन्दूक में हैं।”
6 (इस्राएल के लोगों ने याकान के लोगों के कुँए से मोसेरा की यात्रा की। वहाँ हारून मरा और दफनाया गया। हारून के पुत्र एलीआजर ने हारून के स्थान पर याजक के रूप में सेवा आरम्भ की। 7 तब इस्राएल के लोग मोसेरा से गुदगोदा गए और वे गुदगोदा से नदियों के प्रदेश योतबाता को गए। 8 उस समय यहोवा ने लेवी के परिवार समूह को अपने विशेष काम के लिए अन्य परिवार समूहों से अलग किया। उन्हें यहोवा के साक्षीपत्र के सन्दूक को ले चलने का कार्य करना था। वे याजक की सहायता भी यहोवा के मन्दिर में करते थे और यहोवा के नाम पर, वे लोगों को आशीर्वाद देने का काम भी करते थे। वे अब भी यह विशेष काम करते हैं। 9 यही कारण है कि लेवीवंश के लोगों को भूमि का कोई भाग अन्य परिवार समूहों की भांति नहीं मिला। लेविवंशियों के हिस्से में यहोवा पड़ा। यही योहवा तुम्हारे परमेश्वर ने उन्हें दिया।)
10 “मैं पर्वत पर पहली बार की तरह चालीस दिन और चालीस रात रुका रहा। यहोवा ने उस समय भी मेरी बातें सुनीं। यहोवा ने तुम लोगों को नष्ट न करने का निश्चय किया। 11 योहवा ने मुझसे कहा, ‘जाओ और लोगों को यात्रा पर ले जाओ। वे उस देश में जाएंगे और उसमें रहेंगे जिसे मैंने उनके पूर्वजों को देने का वचन दिया है।’
यहोवा वास्तव में क्या चाहता है
12 “इस्राएल के लोगो, अब सुनो! यहोवा तुम्हारा परमेश्वर चाहता है कि तुम ऐसा करोः यहोवा अपने परमेश्वर का सम्मान करो और वह जो कुछ तुमसे कहे, करो। यहोवा अपने परमेश्वर से प्रेम करो और उसकी सेवा हृदय और आत्मा से करो। 13 आज मैं जिस यहोवा के नियमों और आदेशों को बता रहा हूँ, उसका पालन करो। ये आदेश और नियम तुम्हारी अपनी भलाई के लिए हैं।
14 “हर एक चीज, यहोवा तुम्हारे परमेश्वर की है। स्वर्ग, सबसे ऊँचा भी उसी का है। पृथ्वी और उस पर की सार चीजें यहोवा तुम्हारे परमेश्वर की हैं। 15 यहोवा तुम्हारे पूर्वजों से बहुत प्रेम करता था। वह उनसे इतना प्रेम करता था कि उनके वंशज, तुमको, उसने अपने लोग बनाया। उसने किसी अन्य राष्ट्र के स्थान पर तुम्हें चुना और आज भी तुम उसके चुने हुये लोग हो।
इस्राएलियों को यहोवा को याद रखना चाहिए
16 “तुम्हें अड़ियल होना छोड़ देना चाहिए और अपने हृदय को यहोवा पर लगाना चाहिए। 17 क्यों? क्योंकि यहोवा तुम्हारा परमेश्वर है। वह देवताओं का परमेश्वर, और ईश्वरों का ईश्वर है। वह महान परमेश्वर है। वह आश्यर्जनक और शक्तिशाली योद्धा है। यहोवा की दृष्टि में सभी मनुष्य बराबर हैं। यहोवा अपने इरादे को बदलने के लए धन नहीं लेता। 18 वह अनाथ बच्चों की सहायता करता है। वह विधवाओं की सहायता करता है। वह हमारे देश में अजनबियों से भी प्रेम करता है। वह उन्हें भोजन और वस्त्र देता है। 19 इसलिए तुम्हें भी इन अजनबियों से प्रेम करना चाहिए। क्यों? क्योंकि तुम स्वयं भी मिस्र में अजनबी थे।
20 “तुम्हें यहोवा अपने परमेश्वर का सम्मान करना चाहिए और केवल उसी की उपासना करनी चाहिए। उसे कभी न छोड़ो। जब तुम वचन दो तो केवल उसके नाम का उपयोग करो। 21 तुम्हें एकमात्र यहोवा की प्रशंसा करनी चाहिए। उसने तुम्हारे लिए महान और आश्चर्यजनक काम किया है। इन कामों को तुमने अपनी आँखों से देखा है। 22 जब तुम्हारे पूर्वज मिस्र गए थे तो केवल सत्तर थे। अब यहोवा तुम्हारे परमेश्वर ने तुम्हें बहुत अधिक लोगों के रूप में इतना बढ़ा दिया है जितने आकाश में तारे हैं।
समीक्षा
डर और असफलता
परमेश्वर की आशीषें शुद्ध अनुग्रह हैं: ' इसका कारण तेरा धर्म व मन की सीधाई नहीं है;' (9:5). मूसा परमेश्वर के लोगों को याद दिलाता है कि पिछले दिनों में सभी चीजें उनके लिए गलत साबित हुईं. वह उनसे कहता है, कारण यह था कि, ' तुम ने अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के विरुद्ध बलवा किया, और न तो उसका विश्वास किया, और न उसकी बात मानी' (व.23).
मूसा उनसे कहता है कि अब उन्हें परमेश्वर पर भरोसा करना होगा और उनकी आज्ञा माननी होगी. ' तू अपने परमेश्वर का भय मानें, और उसके सारे मार्गों पर चले, उस से प्रेम रखे, और अपने पूरे मन और अपने सारे प्राण से उसकी सेवा करे, और यहोवा की जो आज्ञा और विधि मैं आज तुझे सुनाता हूं उन को ग्रहण करे, जिस से तेरा भला हो?' (10:12-13).
जब हमे परमेश्वर की आज्ञा का पालन न करने की इच्छा होती है, तो इसका कारण यह है कि हम भरोसा नहीं करते कि उनके दिल में हमारे लिए सिर्फ भलाई है. हमें यह सोचना अच्छा लगता है कि हम परमेश्वर से बेहतर जानते हैं कि हमारे लिए क्या अच्छा है. मगर, सच्चाई यह है कि परमेश्वर की आज्ञाएं 'आपके भले के लिए हैं'. परमेश्वर आपसे प्रेम करते हैं, वह आपकी चिंता करते हैं और वह आपको जानते हैं और इसलिए वह चाहते हैं कि आप उनकी आज्ञा मानें.
सच्चाई यह है कि आप परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हैं, चाहें आपको उनकी आज्ञाएं कठिन या प्रतिबंधित प्रतीत हों. सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने आपको चुना है: 'स्वर्ग और सब से ऊंचा स्वर्ग भी, और पृथ्वी और उस में जो कुछ है, वह सब तेरे परमेश्वर ही का है; तब भी परमेश्वर ने तेरे पूर्वजों से स्नेह और प्रेम रखा और तुझे चुना है' (वव.14-15).
यह विश्वास आंतरिक है, ना कि बाहरी: ' अपने अपने हृदय का खतना करो' (व.16). फिर भी विश्वास क्रियाशील होता है. आपको परमेश्वर के आदर्शों का अनुसरण करने और अनाथों और विधवाओं का न्याय चुकाने, और परदेशियों से प्रेम करने, और उन्हें भोजन तथा वस्त्र देने के लिए बुलाया गया है (व.18). इसमें जाति भेदभाव नहीं होना चाहिये. हमें गरीबों और कम अधिकार प्राप्त लोगों से विशेष प्रेम रखना चाहिये और उनकी सेवा करनी चाहिये.
परमेश्वर का वायदा है कि यदि आप उन पर भरोसा करें और उनकी आज्ञा मानें तो आप बढ़ता और बहुतायत देखेंगे. 'तेरे पुरखा जब मिस्र में गए तब सत्तर ही मनुष्य थे; परन्तु अब तेरे परमेश्वर यहोवा ने तेरी गिनती आकाश के तारों के समान बहुत कर दी है' (व.22).
प्रार्थना
प्रभु, आपको धन्यवाद कि आपने मुझ से प्रेम किया है और मुझे चुना है. आज मेरी मदद कीजिये कि मैं आपका भय मानूँ, आपकी इच्छा के अनुसार चलूँ, संपूर्ण मन और संपूर्ण प्राण से आपसे प्रेम करूँ और आपकी सेवा करूँ. अनाथों, विधवाओं का न्याय चुकाने और परदेशियों से प्रेम करने में मेरी मदद कीजिये. मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप अपने चर्च को आकाश के तारों के समान गिनती में बहुत कर दें.
पिप्पा भी कहते है
लूका 12:22
' अपने प्राण की चिन्ता न करो, कि हम क्या खाएंगे; न अपने शरीर की कि क्या पहनेंगे'
शरीर के आकार, छवि, स्वास्थय और पौष्टिकता के बारे में चिंता करना बहुत आसान है. मुझे यह मानना होगा कि जब हम आने वाले समारोह के बारे में सोचते हैं, तो सबसे पहले दिमाग में यही आता है कि – मैं क्या पहनूँगी?!
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संदर्भ
नोट्स:
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