दिन 10

जीवन के तूफानों का सामना करना

बुद्धि भजन संहिता 7:10-17
नए करार मत्ती 8:23-9:13
जूना करार उत्पत्ति 21:1-23:20

परिचय

31 जुलाई 2003 को साहसिक बीयर ग्रिल्स ने हवा वाली एक छोटी मज़बूत नाव में पाँच लोगों के दल की पूरे उत्तरी अटलांटिक सागर में अगुआई की। वे हॆलिफॅक्स, नोवा स्कोशिया से जॉनो ग्रोट्स, स्कॉटलैंड तक गए। 5 अगस्त, को एक बड़ा तूफान उठा। वहाँ पर 100 फुट ऊँची लहरें थीं। उनका सैटेलाइट से संपर्क टूट गया। उन्हें (और हमें) अपने जीवन का डर लगने लगा। कृतज्ञता पूर्वक कहानी बताते हुए, वे बच गए (बीयर ग्रिल्स द्वारा फेसिंग द फ्रोज़न ओशन देखें)।

हम में से किसी को इस तरह के भौतिक तूफानों का सामना नहीं करना पड़ता। लेकिन यीशु ने कहा है कि हम सभी को जीवन में आने वाले तूफ़ानों का सामना करना पड़ेगा (मत्ती 7:27-27)। जीवन आसान नहीं है। जीवन में आने वाले तूफान कई हैं और ये अलग - अलग हैं। जब हम आज का पद्यांश देखते हैं, तो अब्राहम, दाऊद और यीशु के शिष्य इन सभी ने अपने जीवन में तूफ़ानों का सामना किया था। हम उनके उदाहरण से क्या सीख सकते हैं ?

बुद्धि

भजन संहिता 7:10-17

10 जिन के मन सच्चे हैं, परमेश्वर उन व्यक्तियों की सहायता करता है।
 इसलिए वह मेरी भी सहायता करेगा।
11 परमेश्वर उत्तम न्यायकर्ता है।
 वह कभी भी अपना क्रोध प्रकट कर देगा।
12-13 परमेश्वर जब कोई निर्णय ले लेता है,
 तो फिर वह अपना मन नहीं बदलता है।
 उसमें लोगों को दण्डित करने की क्षमता है।
 उसने मृत्यु के सब सामान साथ रखे हैं।

14 कुछ ऐसे लोग होते हैं जो सदा कुकर्मों की योजना बनाते रहते हैं।
 ऐसे ही लोग गुप्त षड़यन्त्र रचते हैं,
 और मिथ्या बोलते हैं।
15 वे दूसरे लोगों को जाल में फँसाने और हानि पहुँचाने का यत्न करते हैं।
 किन्तु अपने ही जाल में फँस कर वे हानि उठायेंगे।
16 वे अपने कर्मों का उचित दण्ड पायेंगे।
 वे अन्य लोगों के साथ क्रूर रहे।
 किन्तु जैसा उन्हें चाहिए वैसा ही फल पायेंगे।

17 मैं यहोवा का यश गाता हूँ, क्योंकि वह उत्तम है।
 मैं यहोवा के सर्वोच्च नाम की स्तुति करता हूँ।

समीक्षा

विश्वास की ढाल लें

तूफान के बीच में दाऊद कहता है, ‘मेरी ढाल परमेश्वर के हाथ में है …. मैं यहोवा के धर्म के अनुसार उसका धन्यवाद करूंगा, और परमप्रधान यहोवा के नाम का भजन गाऊंगा॥’ (पद - 10अ, 17)।

यदि हम सब अभिलाषा में गिर जाएं और इसका आनंद लेने लगें और इसे बढ़ाएं, तो दाऊद चेतावनी देता है कि, ‘दुष्ट को अनर्थ काम की पीड़ाएं हो रही हैं, उसको उत्पात का गर्भ है, और उससे झूठ उत्पन्न हुआ।’ (पद - 14)। दूसरी कल्पना में ‘उसने गड़हा खोदकर उसे गहरा किया, और जो खाई उसने बनाई थी उस में वह आप ही गिरा’ (पद -15)।

प्रेरित पौलुस कहते हैं कि तुम्हें एक ढाल लेनी है जिससे तुम दुष्ट के सभी जलते हुए तीरों को बुझा सको (इफिसियो 6:16)। ढाल यानि ‘विश्वास की ढाल’ है या जैसे दाऊद यहाँ पर लिखते हैं, उसकी ढाल ‘परम प्रधान परमेश्वर हैं’ (भजन संहिता 7:10)। शत्रु के आक्रमण के विरूद्ध यह सबसे अच्छी सुरक्षा है।

प्रार्थना

प्रभु, मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि, मैं भजन लिखनेवाले के साथ कह सकता हूँ कि, ‘परम प्रधान परमेश्वर मेरी ढाल हैं।’

नए करार

मत्ती 8:23-9:13

यीशु का तूफान को शांत करना

23 तब यीशु एक नाव पर जा बैठा। उसके अनुयायी भी उसके साथ थे। 24 उसी समय झील में इतना भयंकर तूफान उठा कि नाव लहरों से दबी जा रही थी। किन्तु यीशु सो रहा था। 25 तब उसके अनुयायी उसके पास पहुँचे और उसे जगाकर बोले, “प्रभु हमारी रक्षा कर। हम मरने को हैं!”

26 तब यीशु ने उनसे कहा, “अरे अल्प विश्वासियों! तुम इतने डरे हुए क्यों हो?” तब उसने खड़े होकर तूफान और झील को डाँटा और चारों तरफ़ शांति छा गयी।

27 लोग चकित थे। उन्होंने कहा, “यह कैसा व्यक्ति है? आँधी तूफान और सागर तक इसकी बात मानते हैं!”

दो व्यक्तियों का दुष्टात्माओं से छुटकारा

28 जब यीशु झील के उस पार, गदरेनियों के देश पहुँचा, तो उसे कब्रों से निकल कर आते दो व्यक्ति मिले, जिनमें दुष्टात्माएँ थीं। वे इतने भयानक थे कि उस राह से कोई निकल तक नहीं सकता था। 29 वे चिल्लाये, “हे परमेश्वर के पुत्र, तू हमसे क्या चाहता है? क्या तू यहाँ निश्चित समय से पहले ही हमें दंड देने आया है?”

30 वहाँ कुछ ही दूरी पर बहुत से सुअरों का एक रेवड़ चर रहा था। 31 सो उन दुष्टात्माओं ने उससे विनती करते हुए कहा, “यदि तुझे हमें बाहर निकालना ही है, तो हमें सुअरों के उस झुंड में भेज दे।”

32 सो यीशु ने उनसे कहा, “चले जाओ।” तब वे उन व्यक्तियों में से बाहर निकल आए और सुअरों में जा घुसे। फिर वह समूचा रेवड़ ढलान से लुढ़कते, पुढ़कते दौड़ता हुआ झील में जा गिरा। सभी सुअर पानी में डूब कर मर गये। 33 सुअर के रेवड़ों के रखवाले तब वहाँ से दौड़ते हुए नगर में आये और सुअरों के साथ तथा दुष्ट आत्माओं से ग्रस्त उन व्यक्तियों के साथ जो कुछ हुआ था, कह सुनाया। 34 फिर तो नगर के सभी लोग यीशु से मिलने बाहर निकल पड़े। जब उन्होंने यीशु को देखा तो उससे विनती की कि वह उनके यहाँ से कहीं और चला जाये।

लकवे के रोगी को अच्छा करना

9फिर यीशु एक नाव पर जा चढ़ा और झील के पार अपने नगर आ गया। 2 लोग लकवे के एक रोगी को खाट पर लिटा कर उसके पास लाये। यीशु ने जब उनके विश्वास को देखा तो उसने लकवे के रोगी से कहा, “हिम्मत रख हे बालक, तेरे पाप को क्षमा किया गया!”

3 तभी कुछ यहूदी धर्मशास्त्री आपस में कहने लगे, “यह व्यक्ति (यीशु) अपने शब्दों से परमेश्वर का अपमान करता है।”

4 यीशु, क्योंकि जानता था कि वे क्या सोच रहे हैं, उनसे बोला, “तुम अपने मन में बुरे विचार क्यों आने देते हो? 5-6 अधिक सहज क्या है? यह कहना कि ‘तेरे पाप क्षमा हुए’ या यह कहना ‘खड़ा हो और चल पड़?’ ताकि तुम यह जान सको कि पृथ्वी पर पापों को क्षमा करने की शक्ति मनुष्य के पुत्र में हैं।” यीशु ने लकवे के मारे से कहा, “खड़ा हो, अपना बिस्तर उठा और घर चला जा।”

7 वह लकवे का रोगी खड़ा हो कर अपने घर चला गया। 8 जब भीड़ में लोगों ने यह देखा तो वे श्रद्धामय विस्मय से भर उठे और परमेश्वर की स्तुति करने लगे जिसने मनुष्य को ऐसी शक्ति दी।

मत्ती (लेवी) यीशु के पीछे चलने लगा

9 यीशु जब वहाँ से जा रहा था तो उसने चुंगी की चौकी पर बैठे एक व्यक्ति को देखा। उसका नाम मत्ती था। यीशु ने उससे कहा, “मेरे पीछे चला आ।” इस पर मत्ती खड़ा हुआ और उसके पीछे हो लिया।

10 ऐसा हुआ कि जब यीशु मत्ती के घर बहुत से चुंगी वसूलने वालों और पापियों के साथ अपने अनुयायियों समेत भोजन कर रहा था 11 तो उसे फरीसियों ने देखा। वे यीशु के अनुयायियों से पूछने लगे, “तुम्हारा गुरु चुंगी वसूलने वालों और दुष्टों के साथ खाना क्यों खा रहा है?”

12 यह सुनकर यीशु उनसे बोला, “स्वस्थ लोगों को नहीं बल्कि रोगियों को एक चिकित्सक की आवश्यकता होती है। 13 इसलिये तुम लोग जाओ और समझो कि शास्त्र के इस वचन का अर्थ क्या है, ‘मैं बलिदान नहीं चाहता बल्कि दया चाहता हूँ।’ मैं धर्मियों को नहीं, बल्कि पापियों को बुलाने आया हूँ।”

समीक्षा

उद्धारकर्ता यीशु पर विश्वास करें

हमारे जीवन में कभी-कभी तूफान बिना किसी चेतावनी के आ जाता है। यीशु अपने शिष्यों के साथ नाव में सो रहे थे, ‘और देखो, बिना चेतावनी दिये, झील में एक ऐसा बड़ा तूफान उठा कि नाव लहरों से ढंकने लगी;’ (8:24)।

संभवत: शिष्य गलील के सागर में इन तूफानों के आदी हो चुके थे; पर वहाँ अचानक से तूफान आना एक खास बात थी, जिसमे 20 फुट ऊँची लहरें उठ रहीं थीं। फिर भी, यह तूफान खास तौर से गंभीर रहा होगा, क्योंकि शिष्यों ने यीशु को जगाकर कहा, ‘हम नाश हुए जाते हैं! ’ (पद - 25)।

तूफान के समय में घबरा जाना स्वाभाविक है (अवश्य ही, मैं घबरा जाता हूँ)। कभी - कभी ऐसा प्रतीत होता है कि यीशु ‘सो रहे हैं’ (पद -24)। और ऐसा नहीं लगता कि वह हमारी परेशानियों के लिए कुछ कर रहे हैं। धन्यवाद पूर्वक, हम सब कोशिश कर सकते हैं, जैसा कि उन्होंने कहा, ‘हे प्रभु, हमें बचा!’ (पद - 25)।

तूफान के प्रति स्वाभाविक प्रतिक्रिया डर और सन्देह है। यीशु हमें बताते हैं कि तूफान के लिए प्रतिक्रिया में भरोसा होना चाहिये (‘हे अल्पविश्वासियों’, पद - 26अ) और यह कि आपको डरना नहीं चाहिये (‘तुम क्यों डरते हो?’, 26अ)। यीशु तूफान को शांत करने में सक्षम हैं और उन्होंने ऐसा ही किया।

उन्होंने सारे तत्वों पर अपना नियंत्रण दिखाया (‘आन्धी और पानी भी उस की आज्ञा मानते हैं! ’ (पद - 27)। यीशु धन - संपत्ति के बजाय लोगों के बारे में ज़्यादा चिंतित थे, उन लोगों से भिन्न जब उन्होंने यीशु से विनती की कि हमारे क्षेत्र से बाहर निकल जा। (पद - 34)।

यीशु आगे कहते हैं कि चंगाई से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण क्षमा है। लेकिन चंगाई महत्त्वहीन नहीं है। यीशु ने दोनों किया। उन्होंने लकवे के मारे व्यक्ति पर प्रार्थना करके बीमारी और विकलांगता पर अपनी सामर्थ दिखाई (9:1-2)। ‘लोग यह देखकर डर गए और परमेश्वर की महिमा करने लगे जिसने मनुष्यों को ऐसा अधिकार दिया है।’ (पद - 8, एम.एस.जी.)।

तूफान के बीच में शांति के पल भी आते हैं। आज का पद्यांश ऐसे क्षण के साथ समाप्त होता है जिसमे यीशु मत्ती से कहते हैं मेरे पीछे हो ले। यीशु को मत्ती के घर पर भोजन करने का आमंत्रण मिला है।

‘बहुतेरे महसूल लेने वाले और पापियों को देखकर फरीसी अचंभित हो गए’ (पद - 10, एम.एस.जी.) और उन्होंने कहा, ‘तुम्हारा गुरू महसूल लेने वालों और पापियों के साथ क्यों खाता है ? ’ (पद - 11, एम.एस.जी.)।

यीशु का सुनना, और जवाब देना, “वैद्य भले चंगों को नहीं परन्तु बीमारों के लिए आवश्यक है। सो तुम जाकर इस का अर्थ सीख लो, कि मैं बलिदान नहीं परन्तु दया चाहता हूं; क्योंकि मैं धमिर्यों को नहीं परन्तु पापियों को बुलाने आया हूं। ” (पद - 12-13)।

परमेश्वर की दया उन लोगों के प्रति उसकी कृपा और क्षमा है जिसके वे योग्य नहीं है। आज ही, उनकी दया पाइये और आनंद मनाइये और दूसरों के प्रति दयालु रहिये।

प्रार्थना

प्रभु, आपका धन्यवाद कि जीवन के सभी तूफानों में मैं आपको पुकार सकता हूँ, ‘प्रभु, मुझे बचाइये’। ऐसे समय में आप पर भरोसा करने और भयभीत न होने में मेरी मदद कीजिये।

जूना करार

उत्पत्ति 21:1-23:20

अन्त में सारा को एक बच्चा

21यहोवा ने सारा को यह वचन दिया था कि वह उस पर कृपा करेगा। यहोवा अपने वचन के अनुसार उस पर दयालु हुआ। 2 सारा गर्भवती हुई और बुढ़ापे में इब्राहीम के लिए एक बच्चा जनी। सही समय पर जैसा परमेश्वर ने वचन दिया था वैसा ही हुआ। 3 सारा ने पुत्र जना और इब्राहीम ने उसका नाम इसहाक रखा। 4 परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार इब्राहीम ने आठ दिन का होने पर इसहाक का खतना किया।

5 इब्राहीम सौ वर्ष का था जब उसका पुत्र इसहाक उत्पन्न हुआ 6 और सारा ने कहा, “परमेश्वर ने मुझे सुखी बना दिया है। हर एक व्यक्ति जो इस बारे में सुनेगा वह मुझसे खुश होगा। 7 कोई भी यह नहीं सोचता था कि सारा इब्राहीम को उसके बुढ़ापे के लिए उसे एक पुत्र देगी। लेकिन मैंने बूढ़े इब्राहीम को एक पुत्र दिया है।”

घर में परेशानी

8 अब बच्चा इतना बड़ा हो गया कि माँ का दूध छोड़ वह ठोस भोजन खाना शुरू करे। जिस दिन उसका दूध छुड़वाया गया उस दिन इब्राहीम ने एक बहुत बड़ा भोज रखा। 9 सारा ने हाजिरा के पुत्र को खेलते हुए देखा। (बीते समय में मिस्री दासी हाजिरा ने एक पुत्र को जन्म दिया था। इब्राहीम उस पुत्र का भी पिता था।) 10 इसलिए सारा ने इब्राहीम से कहा, “उस दासी स्त्री तथा उसके पुत्र को यहाँ से भेज दो। जब हम लोग मरेंगे हम लोगों की सभी चीज़ें इसहाक को मिलेंगी। मैं नहीं चाहती कि उसका पुत्र इसहाक के साथ उन चीज़ों में हिस्सा ले।”

11 इन सभी बातों ने इब्राहीम को बहुत दुःखी कर दिया। वह अपने पुत्र इश्माएल के लिए दुःखी था। 12 किन्तु परमेश्वर ने इब्राहीम से कहा, “उस लड़के के बारे में दुःखी मत होओ। उस दासी स्त्री के बारे में भी दुःखी मत होओ। जो सारा चाहती है तुम वही करो। तुम्हारा वंश इसहाक के वंश से चलेगा। 13 लेकिन मैं तुम्हारी दासी के पुत्र को भी अशीर्वाद दूँगा। वह तुम्हारा पुत्र है इसलिए मैं उसके परिवार को भी एक बड़ा राष्ट्र बनाऊँगा।”

14 दूसरे दिन बहुत सवेरे इब्राहीम ने कुछ भोजन और पानी लिया। इब्राहीम ने यह चीज़ें हाजिरा को दें दी। हाजिरा ने वे चीज़ें लीं और बच्चे के साथ वहाँ से चली गई। हाजिरा ने वह स्थान छोड़ा और वह बेर्शेबा की मरुभूमि में भटकने लगी।

15 कुछ समय बाद हाजिरा का सारा पानी स्माप्त हो गया। पीने के लिए कुछ भी पानी न बचा। इसलिए हाजिरा ने अपने बच्चे को एक झाड़ी के नीचे रखा। 16 हाजिरा वहाँ से कुछ दूर गई। तब वह रुकी और बैठ गई। हाजिरा ने सोचा कि उसका पुत्र मर जाएगा क्योंकि वहाँ पानी नहीं था। वह उसे मरता हुआ देखना नहीं चाहती थी। वह वहाँ बैठ गई और रोने लगी।

17 परमेश्वर ने बच्चे का रोना सुना। स्वर्ग से एक दूत हाजिरा के पास आया। उसने पूछा, “हाजिरा, तुम्हें क्या कठिनाई है। परमेश्वर ने वहाँ बच्चे का रोना सुन लिया। 18 जाओ, और बच्चे को संभालो। उसका हाथ पकड़ लो और उसे साथ ले चलो। मैं उसे बहुत से लोगों का पिता बनाऊँगा।”

19 परमेश्वर ने हाजिरा की आँखे इस प्रकार खोलीं कि वह एक पानी का कुआँ देख सकी। इसलिए कुएँ पर हाजिरा गई और उसके थैले को पानी से भर लिया। तब उसने बच्चे को पीने के लिए पानी दिया।

20 बच्चा जब तक बड़ा न हुआ तब तक परमेश्वर उसके साथ रहा। इश्माएल मरुभूमि में रहा और एक शिकारी बन गया। उसने बहुत अच्छा तीर चलाना सीख लिया। 21 उसकी माँ मिस्र से उसके लिए दुल्हन लाई। वे पारान मरुभूमि में रहने लगे।

इब्राहीम की अबीमेलेक से सन्धि

22 तब अबीमेलेक और पीकोल ने इब्राहीम से बातें कीं। पीकोल अबीमेलेक की सेना का सेनापति था। उन्होंने इब्राहीम से कहा, “तुम जो कुछ करते हो, परमेश्वर तुम्हारा साथ देता है। 23 इसलिए तुम परमेश्वर के सामने वचन दो। यह वचन दो कि तुम मेरे और मेरे बच्चों के लिए भले रहोगे। तुम यह वचन दो कि तुम मेरे प्रति और जहाँ रहे हो उस देश के प्रति दयालु रहोगे। तुम यह भी वचन दो कि मैं तुम्हारे प्रति जितना दयालु रहा उतना तुम मुझ पर भी दयालु रहोगे।”

24 इब्राहीम ने कहा, “मैं वचन देता हूँ कि तुमसे मैं वैसा ही व्यवहार करूँगा जैसा तुमने मेरे साथ व्यवहार किया है।” 25 तब इब्राहीम ने अबीमेलेक से शिकायत की। इब्राहीम ने इसलिए शिकायत की कि अबीमेलेक के नौकरों ने पानी के एक कुएँ पर कब्ज़ा कर लिया था।

26 अबीमेलेक ने कहा, “इसके बारे में मैंने यह पहली बार सुना है! मुझे नहीं पता है, कि यह किसने किया है, और तुमने भी इसकी चर्चा मुझसे इससे पहले कभी नहीं की।”

27 इसलिए इब्राहीम और अबीमेलेक ने एक सन्धि की। 28 इब्राहीम ने सन्धि के प्रमाण के रूप में अबीमेलेक को कुछ भेड़ें और मवेशी दिए। इब्राहीम सात मादा मेमने भी अबीमेलेक के सामने लाया।

29 अबीमेलेक ने इब्राहीम से पूछा, “तुम ये सात मादा मेमने अलग क्यों दे रहे हो?”

30 इब्राहीम ने कहा, “जब तुम इन सात मेमनों को मुझसे लोगे तो यह सबूत रहेगा कि यह कुआँ मैंने खोदा है।”

31 इसलिए इसके बाद वह कुआँ बेर्शेबा कहलाया। उन्होंने कुएँ को यह नाम दिया क्योंकि यह वह जगह थी जहाँ उन्होंने एक दूसरे को वचन दिया था।

32 इस प्रकार इब्राहीम और अबीमेलेक ने बेर्शेबा में सन्धि की। तब अबीमेलेक और सेनापति दोनों पलिश्तियों के प्रदेश में लौट गए।

33 इब्राहीम ने बेर्शेबा में एक विशेष पेड़ लगाया। उस जगह इब्राहीम ने यहोवा परमेश्वर से प्रार्थना की 34 और इब्राहीम पलिश्तियों के देश में बहुत समय तक रहा।

इब्राहीम, अपने पुत्र को मार डालो!

22इन बातों के बाद परमेश्वर ने इब्राहीम के विश्वास की परीक्षा लेना तय किया। परमेश्वर ने उससे कहा, “इब्राहीम!”

और इब्राहीम ने कहा, “हाँ।”

2 परमेश्वर ने कहा, “अपना पुत्र लो, अपना एकलौता पुत्र, इसहाक जिससे तुम प्रेम करते हो मोरिय्याह पर जाओ, तुम उस पहाड़ पर जाना जिसे मैं तुम्हें दिखाऊँगा। वहाँ तुम अपने पुत्र को मारोगे और उसको होमबलि स्वरूप मुझे अर्पण करोगे।”

3 सवेरे इब्राहीम उठा और उसने गधे को तैयार किया। इब्राहीम ने इसहाक और दो नौकरों को साथ लिया। इब्राहीम ने बलि के लिए लकड़ियाँ काटकर तैयार कीं। तब वे उस जगह गए जहाँ जाने के लिए परमेश्वर ने कहा। 4 उनकी तीन दिन की यात्रा के बाद इब्राहीम ने ऊपर देखा और दूर उस जगह को देखा जहाँ वे जा रहे थे। 5 तब इब्राहीम ने अपने नौकरों से कहा, “यहाँ गधे के साथ ठहरो। मैं अपने पुत्र को उस जगह ले जाऊँगा और उपासना करूँगा। तब हम बाद में लौट आएंगे।”

6 इब्राहीम ने बलि के लिए लकड़ियाँ लीं और इन्हें पुत्र के कन्धों पर रखा। इब्राहीम ने एक विशेष छुरी और आग ली। तब इब्राहीम और उसका पुत्र दोनों उपासना के लिए उस जगह एक साथ गए।

7 इसहाक ने अपने पिता इब्राहीम से कहा, “पिताजी!”

इब्राहीम ने उत्तर दिया, “हाँ, पुत्र।”

इसहाक ने कहा, “मैं लकड़ी और आग तो देखता हूँ, किन्तु वह मेमना कहाँ है जिसे हम बलि के रूप में जलाएंगे?”

8 इब्राहीम ने उत्तर दिया, “पुत्र परमेश्वर बलि के लिए मेमना स्वयं जुटा रहा है।”

इस तरह इब्राहीम और उसका पुत्र उस जगह साथ—साथ गए। 9 वे उस जगह पर पहुँचे जहाँ परमेश्वर ने पहुँचने को कहा था। वहाँ इब्राहीम ने एक बलि की वेदी बनाई। इब्राहीम ने वेदी पर लकड़ियाँ रखीं। तब इब्राहीम ने अपने पुत्र को बाँधा। इब्राहीम ने इसहाक को वेदी की लकड़ियों पर रखा। 10 तब इब्राहीम ने अपनी छुरी निकाली और अपने पुत्र को मारने की तैयारी की।

11 तब यहोवा के दूत ने इब्राहीम को रोक दिया। दूत ने स्वर्ग से पुकारा और कहा, “इब्राहीम, इब्राहीम।”

इब्राहीम ने उत्तर दिया, “हाँ।”

12 दूत ने कहा, “तुम अपने पुत्र को मत मारो अथवा उसे किसी प्रकार की चोट न पहुँचाओ। मैंने अब देख लिया कि तुम परमेश्वर का आदर करते हो और उसकी आज्ञा मानते हो। मैं देखता हूँ कि तुम अपने एक लौते पुत्र को मेरे लिए मारने के लिए तैयार हो।”

13 इब्राहीम ने ऊपर दृष्टि की और एक मेढ़े को देखा। मेढ़े के सींग एक झाड़ी में फँस गए थे। इसलिए इब्राहीम वहाँ गया, उसे पकड़ा और उसे मार डाला। इब्राहीम ने मेढ़े को अपने पुत्र के स्थान पर बलि चढ़ाया। इब्राहीम का पुत्र बच गया। 14 इसलिए इब्राहीम ने उस जगह का नाम “यहोवा यिरे” रखा। आज भी लोग कहते हैं, “इस पहाड़ पर यहोवा को देखा जा सकता है।”

15 यहोवा के दूत ने स्वर्ग से इब्राहीम को दूसरी बार पुकारा। 16 दूत ने कहा, “तुम मेरे लिए अपने पुत्र को मारने के लिए तैयार थे। यह तुम्हारा एकलौता पुत्र था। तुमने मेरे लिए ऐसा किया है इसलिए मैं, यहोवा तुमको वचन देता हूँ कि, 17 मैं तुम्हें निश्चय ही आशीर्वाद दूँगा। मैं तुम्हें उतने वंशज दूँगा जितने आकाश में तारे हैं। ये इतने अधिक लोग होंगे जितने समुद्र के तट पर बालू के कण और तुम्हारे लोग अपने सभी शत्रुओं को हराएंगे। 18 संसार के सभी राष्ट्र तुम्हारे परिवार के द्वारा आशीर्वाद पाएंगे। मैं यह इसलिए करूँगा क्योंकि तुमने मेरी आज्ञा का पालन किया।”

19 तब इब्राहीम अपने नौकरों के पास लौटा। उन्होंने बेर्शेबा तक वापसी यात्रा की और इब्राहीम वहीं रहने लगा।

20 इसके बाद, इब्राहीम को यह खबर मिली। खबर यह थी, “तुम्हारे भाई नाहोर और उसकी पत्नी मिल्का के अब बच्चे हैं। 21 पहला पुत्र ऊस है। दूसरा पुत्र बूज है। तीसरा पुत्र अराम का पिता कमूएल है। 22 इसके अतिरिक्त केसेद, हजो, पिल्दाश, यिदलाप और बतूएल है।” 23 बतूएल, रिबका का पिता था। मिल्का इन आठ पुत्रों की माँ थी और नाहोर पिता था। नाहोर इब्राहीम का भाई था। 24 नाहोर के दूसरे चार लड़के उसकी एक रखैल रुमा से थे। ये पुत्र तेबह, गहम, तहश, माका थे।

सारा मरती है

23सारा एक सौ सत्ताईस वर्ष तक जीवित रही। 2 वह कनान प्रदेश के किर्यतर्बा (हेब्रोन) नगर में मरी। इब्राहीम बहुत दुःखी हुआ और उसके लिए वहाँ रोया। 3 तब इब्राहीम ने अपनी मरी पत्नी को छोड़ा और हित्ती लोगों से बात करने गया। उसने कहा, 4 “मैं इस प्रदेश में नहीं रहता। मैं यहाँ केवल एक यात्री हूँ। इसलिए मेरे पास अपनी पत्नी को दफनाने के लिए कोई जगह नहीं है। मैं कुछ भूमि चाहता हूँ जिसमें अपनी पत्नी को दफना सकूँ।”

5 हित्ती लोगों ने इब्राहीम को उत्तर दिया, 6 “महोदय, आप हम लोगों के बीच परमेश्वर के प्रमुख व्यक्तियों में से एक हैं। आप अपने मरे को दफनाने के लिए सबसे अच्छी जगह, जो हम लोगों के पास है, ले सकते हैं। आप हम लोगों की कोई भी दफनाने की जगह, जो आप चाहते हैं, ले सकते हैं। हम लोगों मे से कोई भी आपको पत्नी को दफनाने से नहीं रोकेगा।”

7 इब्राहीम उठा और लोगों की तरफ सिर झुकाया। 8 इब्राहीम ने उनसे कहा, “यदि आप लोग सचमुच मेरी मरी हुई पत्नी को दफनाने में मेरी मद्द करना चाहते हैं तो सोहर के पुत्र एप्रोन से मेरे लिए बात करें। 9 मैं मकपेला की गुफा को खरीदना पसन्द करूँगा। एप्रोन इसका मालिक है। यह उसके खेत के सिरे पर है। मैं इसके मूल्य के अनुसार उसे पूरी कीमत दूँगा। मैं चाहता हूँ कि आप लोग इस बात के गवाह रहें कि मैं इस भूमि को कब्रिस्तान के रूप में खरीद रहा हूँ।”

10 एप्रोन वहीं लोगों के बीच बैठा था। एप्रोन ने इब्राहीम को उत्तर दिया, 11 “नहीं, महोदय। मैं आपको भूमि दूँगा। मैं आपको वह गुफा दूँगा। मैं यह आपको इसलिए दूँगा कि आप इसमें अपनी पत्नी को दफना सकें।”

12 तब इब्राहीम ने हित्ती लोगों के सामने अपना सिर झुकाया। 13 इब्राहीम ने सभी लोगों के सामने एप्रोन से कहा, “किन्तु मैं तो खेत की पूरी कीमत देना चाहता हूँ। मेरा धन स्वीकार करें। मैं अपने मरे हुए को इसमें दफनाऊँगा।”

14 एप्रोन ने इब्राहीम को उत्तर दिया, 15 “महोदय, मेरी बात सुनें। चार सौ चाँदी के शेकेल हमारे और आपके लिए क्या अर्थ रखते हैं? भूमि लें और अपनी मरी पत्नी को दफनाएं।”

16 इब्राहीम ने समझा कि एप्रोन उसे भूमि की कीमत बता रहा है, इसलिए हित्ती लोगों को गवाह मानकर, इब्राहीम ने चाँदी के चार सौ शेकेल एप्रोन के लिए तौले। इब्राहीम ने पैसा उस व्यापारी को दे दिया जो इस भूमि के बेचने का धन्धा कर रहा था।

17-18 इस प्रकार एप्रोन के खेत के मालिक बदल गए। वह खेत मम्रे के पूर्व मकपेला में था। नगर के सभी लोगों ने एप्रोन और इब्राहीम के बीच हुई वाचा को देखा। 19 इसके बाद इब्राहीम ने अपनी पत्नी सारा को मम्रे कनान प्रदेश में (हेब्रोन) के निकट उस खेत की गुफा में दफनाया। 20 इब्राहीम ने खेत और उसकी गुफा को हित्ती लोगों से खरीदा। यह उसकी सम्पत्ति हो गई, और उसने इसका प्रयोग कब्रिस्तान के रूप में किया।

समीक्षा

परमेश्वर को उनके प्रावधान के लिए धन्यवाद दें

निश्चित ही अब्राहम ने अपने जीवन में तूफान का सामना किया। आज का पद्यांश संघर्ष से भरा है, लेकिन यह तूफान के बीच शांति के अद्भुत पल से शुरू होता है। ‘परमेश्वर ने सारा की सुधि लेकर उसके साथ अपने वचन के अनुसार किया। ’ (21:1)। हमारे जैसा उन्हें भी लंबे समय तक इंतज़ार करना पड़ा, लेकिन अंत में परमेश्वर की वाचा पूरी हुई। इंतज़ार के दौरान परमेश्वर पर भरोसा बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है।

‘सो सारा ने अब्राहम से गर्भवती हो कर उसके बुढ़ापे में - उसी नियुक्त समय पर जो परमेश्वर ने उसके लिए ठहराया था - एक पुत्र को जन्म दिया । ’ (पद - 2)। यह बड़े आनंद का पल था। सारा ने कहा, ‘परमेश्वर ने मुझे प्रफुल्लित कर दिया है; इसलिये सब सुनने वाले भी मेरे साथ प्रफुल्लित होंगे।’ (पद - 6)।

लेकिन जल्दी ही अब्राहम ने अपने परिवार में तूफान का सामना किया। इश्माइल ने इसहाक की हंसी उड़ाई (पद - 9) और इसके कारण उसके परिवार में विभाजन हुआ (पद - 10)। दु:खद रूप से हाज़िरा और इश्माइल चले गए (पद - 14)। यह विभाजन अब्राहम के पहले पाप का परिणाम था जो उसने, अपने विश्वास में कमी के कारण कि सारा एक पुत्र जनेगी, अपनी दासी हाज़िरा के साथ किया था।

कभी-कभी जीवन की सबसे मुश्किल स्थिति हमारी ही बनाई हुई होती है  लेकिन फिर भी, परमेश्वर अब्राहम के साथ थे (पद - 12-13), और उन्होंने देखा और हाज़िरा और इश्माइल को आशीष दी (पद - 17-18)। यह एक और आश्चर्यजनक कहानी है जिसे समझना मुश्किल है, लेकिन इसके द्वारा हम पापमय स्थिति में भी परमेश्वर की दया कृपा को देख सकते हैं।

अब्राहम के जीवन में सबसे बड़ा तूफान आनेवाला था: ‘परमेश्वर ने, उसकी परीक्षा की’ (22:1)।

परमेश्वर कभी - कभी हमें परीक्षा में डालते हैं। व्यक्तिगत रूप से, मुझे नहीं लगता कि परमेश्वर ने कभी सोचा होगा कि अब्राहम को अपने पुत्र इसहाक की बलि चढ़ानी होगी। परमेश्वर हमेशा बच्चों की बलि से घृणा करते हैं। लेकिन वह अब्राहम की प्राथमिकताओं को स्थिर करना चाहते थे।

नया नियम हमें याद दिलाता है कि इसहाक के बारे में अब्राहम से की गई वाचा के बाद ही यह परीक्षा हुई (इब्रानियों 11:17-19), और इसलिए अब्राहम के विश्वास और प्राथमिकता दोनों की परीक्षा हुई।

यह उसके विश्वास की परीक्षा थी, क्योंकि यह उसे विश्वास करने की चुनौती देता है कि परमेश्वर इसहाक के बारे में अपनी वाचा पूरी कर सकते हैं, जबकि अब्राहम उसे बलि चढ़ाने के लिए तैयार था। अब्राहम को विश्वास करना पड़ा कि चाहें जो हो जाए, उसे इसहाक की पुनर्प्राप्ति होगी (पद -19)।

फिर भी यह अब्राहम की प्राथमिकताओं की परीक्षा थी। परमेश्वर के साथ आपका संबंध जीवन की सबसे पहली प्राथमिकता के लिए बना हुआ है – बाकी के सभी प्रेम से ऊपर, परमेश्वर ने आपके जीवन के लिए दर्शन दिया है, और आपके सबसे करीबी मानव संबंधों से भी ऊपर। इसकी चाहें जो भी कीमत हो, अब्राहम परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने के लिए तैयार था। उसकी सबसे बड़ी ताकत यह थी कि उसने किसी भी चीज़ या किसी भी व्यक्ति से ज़्यादा परमेश्वर से प्रेम किया था।

धन्यवाद पूर्वक, परमेश्वर ने उस बलि को उपलब्ध कराया जो कि ज़रूरी था (‘परमेश्वर होमबलि की भेड़ का उपाय आप ही करेगा’, उत्पत्ति 22:8)  यह पहले से प्रकट होता है कि परमेश्वर आपके लिए एक महान बलि तैयार करने वाले हैं। जब आप अब्राहम के बारे में सोचें कि उसे कैसा लगा होगा जब उसे अपने एकलौते पुत्र की बलि देनी थी, तब आप उस कीमत की कल्पना कर सकते हैं जिसे परमेश्वर को आपके लिए और मेरे लिए अपने एकलौते पुत्र के रूप में देनी थी (यूहन्ना 3:16)।

यीशु ‘परमेश्वर का मेम्ना है, जो जगत के पाप उठा ले जाता है’ (यूहन्ना 1:29)। जब परमेश्वर आपकी सबसे बड़ी ज़रूरत को पूरा करने के लिए सर्वश्रेष्ठ बलि देते हैं, क्या वह आपकी सारी ज़रूरतों को पूरा नहीं करेंगे? यहाँ पर अब्राहम परमेश्वर को ‘यहोवा – यिरेह’ या ‘प्रभु ज़रूरतों को पूरी करता है’ कहता है (उत्पत्ति 22:14)। वह मान लेता है कि परमेश्वर का प्रावधान उनकी विशेषता का एक हिस्सा है।

परमेश्वर महान पूर्तिकर्ता है। अक्सर, मैंने इसे अपने जीवन में और अपने समाज में सही पाया है। परमेश्वर अपने वायदे के पक्के हैं। जैसा कि प्रेरित पौलुस लिखते हैं, ‘मेरा परमेश्वर भी अपने उस धन के अनुसार जो महिमा सहित मसीह यीशु में है तुम्हारी हर एक घटी को पूरी करेगा।’ (फिलिप्पियों 4:19)।

हमारा काम है परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना (‘पहले उसकी और उसके राज्य की खोज करना’ मत्ती 6:33अ) फिर वह वादा करते हैं कि जब हम ऐसा करेंगे, तो वह हमारी सारी ज़रूरतों को पूरा करेंगे (‘तो ये सब वस्तुएं भी तुम्हें मिल जाएंगी। ’, (पद - 33ब)।

परमेश्वर की आशीष और प्रावधान अविश्वसनीय रूप से महान हैं (उत्पत्ति 22:16-18)। इसमे यह भी शामिल है: ‘और तेरे वंश \[यीशु\] में धरती की सारी जातियाँ आशीष पाएंगी’ (पद - 18, ए.एम.पी.)।

प्रार्थना

प्रभु, आपका धन्यवाद कि आप एक ढाल हैं, एक उद्धारकर्ता और एक पूर्तिकर्ता। मेरी मदद कीजिये कि मैं अपना विश्वास आप में बनाए रखूँ और कभी न डरूँ। अपने जीवन में आपको सबसे पहले प्राथमिकता देने में मेरी मदद कीजिये।

पिप्पा भी कहते है

मत्ती 8:223-9-13

आज का नये नियम का पद्यांश हमें यीशु पर भरोसा करने के महत्त्व को याद दिलाता है चाहें चीज़ें बढ़िया नहीं दिख रही हों तब भी। सबसे कठिन परिस्थिति को भी हल करने में वह सामर्थी हैं (8:26,32; 9:5-6) 

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संदर्भ

नोट्स:

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है। कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

संपादकीय नोट:

ओसवाल्ड चैम्बर्स लिखते हैं, ‘बड़ी लहरें जो सामान्य तैराक को डरा देती हैं, वे एक सर्फर में अत्यधिक रोमांच पैदा करती हैं जिसका उन पर संपूर्ण नियंत्रण है’। ‘आइये हम इसे अपनी परिस्थितियों पर लागू करें। जिन चीजों को हम रोकते हैं जिनके विरूद्ध लड़ते हैं – कष्ट, तकलीफ और सताव – ये वही चीजें हैं जो हमारे अंदर अत्यधिक आनंद पैदा करती हैं’।

(ओसवाल्ड चैम्बर्स, स्माई अटमोस्ट फॉर हिज हाइएस्ट, 7 मार्च के लिए प्रवेश).

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