चीज़ों को सही करने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करें
परिचय
मुझे और पिपा को साथ में क्रॉसवर्ड्स करने में मज़ा आता है। जब हम किसी संकेत शब्द पर अटक जाते हैं तो हम हार नहीं मानते, बल्कि हम अगले संकेत शब्द पर बढ़ते हैं। जब भी हमें उत्तर मिलता है तो यह हमें और भी संकेत शब्द को हल करने में मदद करता है। अंत में, कभी - कभी हम लगभग सारी पहेली हल कर देते हैं (हालाँकि ऐसा कभी - कभी होता है)।
एक तरह से, बाइबल के कुछ मुश्किल भाग पढ़ना, क्रॉसवर्ड पहेली को हल करने जैसा होता है। पेचीदा भाग में फंसे रहने के बजाय, आप उन पद्यांशों का उपयोग कर सकते हैं जिन्हें आप समझ चुके हैं ताकि आप कुछ और मुश्किल पद्यांशों को हल कर सकें।
अक्सर मुझे बाइबल में कुछ मुश्किल पद्यांशों को समझने में कठिनाई आई है, लेकिन मुझे कुछ चीजों को समझना मुश्किल भी लगता है कि दुनिया में ऐसा क्यों होता है। यह मुझे अन्यायपूर्ण नज़र आता है। इसके लिए कोई आसान जवाब नहीं है।
मुझे कल के पद्यांश से दूसरा बढ़िया अलंकारिक प्रश्न अच्छा लगा। ‘क्या सारी पृथ्वी का न्यायी, न्याय न करे? ’ (उत्पत्ति 18:25)।
आप इस बात के लिए आश्वस्त हो सकते हैं कि अंतिम दिन में, जब सब कुछ प्रकट हो जाएगा, आप परमेश्वर का सिद्ध न्याय देखेंगे – तब हर कोई कहेगा, ‘यह बिल्कुल सही है’। चीज़ों को सही करने के लिए परमेश्वर के पास असीमित समय है। आज का हर एक पद्यांश हमें इस सच्चाई के बारे में बताता है कि, अंत में, परमेश्वर चीज़ों को सही करेंगे।
भजन संहिता 7:1-9
दाऊद का एक भाव गीत: जिसे उसने यहोवा के लिये गाया। यह भाव गीत बिन्यामीन परिवार समूह के कीश के पुत्र शाऊल के विषय मे है।
7हे मेरे यहोवा परमेश्वर, मुझे तुझ पर भरोसा है।
उन व्यक्तियों से तू मेरी रक्षा कर, जो मेरे पीछे पड़े हैं। मुझको तू बचा ले।
2 यदि तू मुझे नहीं बचाता तो मेरी दशा उस निरीह पशु की सी होगी, जिसे किसी सिंह ने पकड़ लिया है।
वह मुझे घसीट कर दूर ले जायेगा, कोई भी व्यक्ति मुझे नहीं बचा पायेगा।
3 हे मेरे यहोवा परमेश्वर, कोई पाप करने का मैं दोषी नहीं हूँ।
मैंने तो कोई भी पाप नहीं किया।
4 मैंने अपने मित्रों के साथ बुरा नहीं किया
और अपने मित्र के शत्रुओं की भी मैंने सहायता नहीं किया।
5 किन्तु एक शत्रु मेरे पीछे पड़ा हुआ है।
वह मेरी हत्या करना चाहता है।
वह शत्रु चाहता है कि मेरे जीवन को धरती पर रौंद डाले और मेरी आत्मा को धूल में मिला दे।
6 यहोवा उठ, तू अपना क्रोध प्रकट कर।
मेरा शत्रु क्रोधित है, सो खड़ा हो जा और उसके विरुद्ध युद्ध कर।
खड़ा हो जा और निष्यक्षता की माँग कर।
7 हे यहोवा, लोगों का न्याय कर।
अपने चारों ओर राष्ट्रों को एकत्र कर और लोगों का न्याय कर।
8 हे यहोवा, न्याय कर मेरा,
और सिद्ध कर कि मैं न्याय संगत हूँ।
ये प्रमाणित कर दे कि मैं निर्दोष हूँ।
9 दुर्जन को दण्ड दे
और सज्जन की सहायता कर।
हे परमेश्वर, तू उत्तम है।
तू अन्तर्यामी है। तू तो लोगों के ह्रदय में झाँक सकता है।
समीक्षा
विश्वास कीजिये कि सच्चा न्याय होगा
कुछ लोग सोचते होंगे कि परमेश्वर पर भरोसा करने से, जो न्याय करते हैं, दुनिया में हिंसा होगी। वास्तव में ठीक इसका विपरीत होगा। जब लोग परमेश्वर के सच्चे न्याय पर भरोसा करना बंद कर देंगे, तो वे इसे अपने हाथों में लेने के लिए लालायित होंगे और अपने शत्रुओं से बदला लेने का प्रयास करेंगे।
दाऊद को भरोसा था कि न्याय होगा – यह कि परमेश्वर न्याय करेंगे और वह भी सच्चाई से न्याय करेंगे। ‘मुझ पर दोष लगाने वाले न्यायालय में भर गए हैं; यह न्याय का समय है। सिंहासन पर अपना स्थान ग्रहण कर, अपनी भूमि की चुँगी के लिए पहुँच, मेरे विरूद्ध लगाए गए गलत दोषों को फेंक दे। मैं तैयार हूँ, अपने फैसले पर स्थिर रह’ (पद - 7-8, एम.एस.जी.)। दूसरे शब्दों में, दाऊद को भरोसा था कि परमेश्वर उसके शत्रुओं से निपटेंगे।
यदि आपको विश्वास है कि परमेश्वर सच्चा न्याय करेंगे, तब आप इसे उनके हाथों में सौंप सकते हैं और वह करें जो यीशु ने कहा है: अपने शत्रुओं से प्रेम करें ’ (मत्ती 5:43-48; लूका 6:27-36 देखें)।
वास्तव में मिरोस्लॅव वॉल्फ ने इस तरह से लिखा है, ‘अहिंसा के समय दैवीय प्रतिशोध में विश्वास करने की जरूरत है, यदि लोग इस सच्चाई पर विश्वास करने लगें कि परमेश्वर खराई से न्याय करते हैं और हम उन पर भरोसा कर सकते हैं कि वह अंत में चीज़ों को सही कर देंगे, तो आज दुनिया भर की ज़्यादातर समस्याएं हल हो जाएँगी।
प्रार्थना
प्रभु,मैं आप में शरण लेता हूँ (भजन संहिता 7:1)। आपका धन्यवाद कि जब मैं आपके सिद्ध न्याय पर भरोसा करूँगा तो मुझे बदला लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी, बल्कि मैं अपने शत्रुओं से प्यार करूँगा और उन लोगों के लिए प्रार्थना करूँगा जो मुझे सताते हैं (मत्ती 5:44)।
मत्ती 7:24-8:22
एक बुद्धिमान और एक मूर्ख
24 “इसलिये जो कोई भी मेरे इन शब्दों को सुनता है और इन पर चलता है उसकी तुलना उस बुद्धिमान मनुष्य से होगी जिसने अपना मकान चट्टान पर बनाया, 25 वर्षा हुई, बाढ़ आयी, आँधियाँ चलीं और यह सब उस मकान से टकराये पर वह गिरा नहीं। क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर रखी गयी थी।
26 “किन्तु वह जो मेरे शब्दों को सुनता है पर उन पर आचरण नहीं करता, उस मूर्ख मनुष्य के समान है जिसने अपना घर रेत पर बनाया। 27 वर्षा हुई, बाढ़ आयी, आँधियाँ चलीं और उस मकान से टकराईं, जिससे वह मकान पूरी तरह ढह गया।”
28 परिणाम यह हुआ कि जब यीशु ने ये बातें कह कर पूरी कीं, तो उसके उपदेशों पर लोगों की भीड़ को बड़ा अचरज हुआ। 29 क्योंकि वह उन्हें यहूदी धर्म नेताओं के समान नहीं बल्कि एक अधिकारी के समान शिक्षा दे रहा था।
यीशु का कोढ़ी को ठीक करना
8यीशु जब पहाड़ से नीचे उतरा तो बहुत बड़ा जन समूह उसके पीछे हो लिया। 2 वहीं एक कोढ़ी भी था। वह यीशु के पास आया और उसके सामने झुक कर बोला, “प्रभु, यदि तू चाहे तो मुझे ठीक कर सकता है।”
3 इस पर यीशु ने अपना हाथ बढ़ा कर कोढ़ी को छुआ और कहा, “निश्चय ही मैं चाहता हूँ ठीक हो जा!” और तत्काल कोढ़ी का कोढ़ जाता रहा। 4 फिर यीशु ने उससे कहा, “देख इस बारे में किसी से कुछ मत कहना। पर याजक के पास जा कर उसे अपने आप को दिखा। फिर मूसा के आदेश के अनुसार भेंट चढ़ा ताकि लोगों को तेरे ठीक होने की साक्षी मिले।”
उससे सहायता के लिये विनती
5 फिर यीशु जब कफरनहूम पहुँचा, एक रोमी सेनानायक उसके पास आया और उससे सहायता के लिये विनती करता हुआ बोला, 6 “प्रभु, मेरा एक दास घर में बीमार पड़ा है। उसे लकवा मार दिया है। उसे बहुत पीड़ा हो रही है।”
7 तब यीशु ने सेना नायक से कहा, “मैं आकर उसे अच्छा करूँगा।”
8 सेना नायक ने उत्तर दिया, “प्रभु मैं इस योग्य नहीं हूँ कि तू मेरे घर में आये। इसलिये केवल आज्ञा दे दे, बस मेरा दास ठीक हो जायेगा। 9 यह मैं जानता हूँ क्योंकि मैं भी एक ऐसा व्यक्ति हूँ जो किसी बड़े अधिकारी के नीचे काम करता हूँ और मेरे नीचे भी दूसरे सिपाही हैं। जब मैं एक सिपाही से कहता हूँ ‘जा’ तो वह चला जाता है और दूसरे से कहता हूँ ‘आ’ तो वह आ जाता है। मैं अपने दास से कहता हूँ कि ‘यह कर’ तो वह उसे करता है।”
10 जब यीशु ने यह सुना तो चकित होते हुए उसने जो लोग उसके पीछे आ रहे थे, उनसे कहा, “मैं तुमसे सत्य कहता हूँ मैंने इतना गहरा विश्वास इस्राएल में भी किसी में नहीं पाया। 11 मैं तुम्हें यह और बताता हूँ कि, बहुत से पूर्व और पश्चिम से आयेंगे और वे भोज में इब्राहीम, इसहाक और याकूब के साथ स्वर्ग के राज्य में अपना-अपना स्थान ग्रहण करेंगे। 12 किन्तु राज्य की मूलभूत प्रजा बाहर अंधेरे में धकेल दी जायेगी जहाँ वे लोग चीख-पुकार करते हुए दाँत पीसते रहेंगे।”
13 तब यीशु ने उस सेनानायक से कहा, “जा वैसा ही तेरे लिए हो, जैसा तेरा विश्वास है।” और तत्काल उस सेनानायक का दास अच्छा हो गया।
यीशु का बहुतों को ठीक करना
14 यीशु जब पतरस के घर पहुँचा उसने पतरस की सास को बुखार से पीड़ित बिस्तर में लेटे देखा। 15 सो यीशु ने उसे अपने हाथ से छुआ और उसका बुखार उतर गया। फिर वह उठी और यीशु की सेवा करने लगी।
16 जब साँझ हुई, तो लोग उसके पास बहुत से ऐसे लोगों को लेकर आये जिनमें दुष्टात्माएँ थीं। अपनी एक ही आज्ञा से उसने दुष्टात्माओं को निकाल दिया। इस तरह उसने सभी रोगियों को चंगा कर दिया। 17 यह इसलिये हुआ ताकि परमेश्वर ने भविष्यवक्ता यशायाह द्वारा जो कुछ कहा था, पूरा हो:
“उसने हमारे रोगों को ले लिया और हमारे संतापों को ओढ़ लिया।”
यीशु का अनुयायी बनने की चाह
18 यीशु ने जब अपने चारों ओर भीड़ देखी तो उसने अपने अनुयायियों को आज्ञा दी कि वे झील के परले किनारे चले जायें। 19 तब एक यहूदी धर्मशास्त्री उसके पास आया और बोला, “गुरु, जहाँ कहीं तू जायेगा, मैं तेरे पीछे चलूँगा।”
20 इस पर यीशु ने उससे कहा, “लोमड़ियों की खोह और आकाश के पक्षियों के घोंसले होते हैं किन्तु मनुष्य के पुत्र के पास सिर टिकाने को भी कोई स्थान नहीं है।”
21 और उसके एक शिष्य ने उससे कहा, “प्रभु, पहले मुझे जाकर अपने पिता को गाड़ने की अनुमति दे।”
22 किन्तु यीशु ने उससे कहा, “मेरे पीछे चला आ और मरे हुवों को अपने मुर्दे आप गाड़ने दे।”
समीक्षा
यीशु पर विश्वास कीजिये, जिन्हें परमेश्वर ने सभी न्याय सौंपे हैं
यीशु घरों को बनाने के बारे में सब कुछ जानते थे। वह मिस्त्री का काम करते थे और उन्होंने सुतार के रूप में काम किया था। जिस उदाहरण का उन्होंने प्रयोग किया है वह वास्तविक और व्यवहारिक है: दो व्यक्ति जिन्होंने घर बनाने का निर्णय लिया (7:24-26)। इसमे कोई शक नहीं कि उनका इरादा इसमें रहने का और इसका आनंद मनाने का था, शायद अपने परिवार वालों के साथ। दोनों ऐसा घर बना रहे थे जो लंबे समय तक टिके। हमारा जीवन उन घरों के समान हैं, परंतु उनका महत्त्व अनंत काल के लिए है।
किसी भी घर की महत्त्वपूर्ण विशेषता उसकी नींव होती है। ये घर दिखने में थोड़े अलग होंगे। लेकिन ‘एक घर की नींव चट्टान पर बनी हुई थी’ (पद - 25)। उसी तरह से, दो जीवन एक जैसे दिख सकते हैं, लेकिन उनकी नींव में फर्क तब प्रमाणित होगा जब अचानक से जीवन में तूफान आएगा।
आप इस दुनिया में चुनौतियों का सामना करते हैं। ये कई तरह से आती हैं: गलतफहमियाँ, निराशा, अपूर्ण इच्छाएं, शंका, परीक्षा, लालसा, दु:ख और शैतानी आक्रमण। सफलता भी एक परीक्षा हो सकती है। और कभी - कभी दबाव, तकलीफ, बीमारी, वियोग, दु:ख, सदमा, त्रासदी, सताव और असफलता भी।
अंत में हम सभी को मृत्यु और परमेश्वर के न्याय का सामना करना पड़ेगा। यहेजकेल में परमेश्वर के न्याय को संदर्भित करने के लिए ‘बरसात …. तूफान …. आँधी’ की छवि बताई गई है,लेकिन पुराने नियम में न्याय की भाषा सीमित नहीं है। यहाँ और कई जगहों पर, यीशु हमें आने वाले न्याय की चेतावनी देते हैं, जैसा कि नये नियम के अन्य लेखकों ने दिया है।
‘जब मेंह बरसा और बाढ़ आई, और आन्धियां चलीं, और उस घर पर टक्करें लगीं,’ (मत्ती 7:25,27), परन्तु वह नहीं गिरा, क्योंकि उस की नींव चट्टान पर डाली गई थी। (पद - 25), लेकिन जो बालू पर बनाया गया था,‘वह गिरकर सत्यानाश हो गया’ (पद - 27)। परीक्षा इस जीवन में हो सकती है या न्याय के दिन में आ सकती है। यीशु के अनुसार इसे निश्चित ही आना है।
फिर भी, आपको भय में जीना है। यह आसान नहीं है, लेकिन इसकी निश्चितता का एक उपाय है, जब आपके घर की नींव की जाँच की जाए, तो यह मज़बूत रहे। यह जानना संभव है कि आपका जीवन सुरक्षित है या नहीं।
यीशु हमें बताते हैं कि मुख्य फर्क यह है कि बुद्धिमान मनुष्य यीशु के वचनों को सिर्फ सुनता ही नहीं, बल्कि इसे मानता भी है (पद - 24)। दूसरी तरफ, मूर्ख मनुष्य, हालाँकि वह यीशु के वचनों को सुनता है लेकिन उस पर चलता नहीं है।
ज्ञान को कार्य में लाना ज़रूरी है – हमारा सिद्धांत, हमारे जीवन को प्रभावित करना चाहिये वरना हम अपने घर बालू पर बना रहे हैं।
यीशु के वचन, सबसे पहले, उन पर विश्वास करने की बुलाहट है (यूहन्ना 6:28-29)। हमारा उद्धार यीशु में विश्वास करने और आज्ञा पालन से जीने में है।
आप यीशु के न्याय पर पूरी तरह से भरोसा कर सकते हैं, क्योंकि परमेश्वर ने स्वयं उन्हें अधिकार दिया है। यीशु सूबेदार के विश्वास को देखकर चकित हो गए। उन्होंने कहा,‘मैं तुम से सच कहता हूं, कि मैं ने इस्राएल में भी ऐसा विश्वास नहीं पाया। ’ (मत्ती 8:10)।
उसका यह विश्वास साबित हुआ क्योंकि सूबेदार ने विश्वास किया कि यीशु के कहने ही से उसके सेवक को चँगाई मिल सकती है (पद - 8)। उसके विश्वास का मूल आधार काफी गहरा था। सूबेदार जान गया, जैसा कि सेना में होता है,किसी व्यक्ति को अधिकार तब मिलता है जब वह किसी के अधिकार के नीचे होता है – इसलिए यीशु का अधिकार अपने पिता के अधीन रहने से आता है। सूबेदार ने देखा कि जब यीशु बोले, तो परमेश्वर बोले।
इसके अलावा, यह सिद्ध न्याय किसी मनुष्य की तकलीफ से अलग नहीं है। हम जानते हैं, यीशु ने अन्याय का अनुभव, कारावास, यंत्रणा और सूली पर चढ़ कर अनुभव किया। लेकिन इस पद्यांश में हम देखते हैं कि उन्होंने बीमारी का भी अनुभव किया (हमारी ओर से, पद - 17) और बल्कि बेघर होने का भी (पद - 20)। ऐसी बहुत कम तकलीफें होंगी जिसका अनुभव यीशु ने नहीं किया।
प्रार्थना
पिता, आपका धन्यवाद कि मेरी कमज़ोरियों में केवल यीशु ही मुझे सांत्वना देते हैं, लेकिन उन्होंने मेरे पापों का दंड भी खुद पर ले लिया ताकि मुझे डरना न पड़े।
उत्पत्ति 19:1-20:18
लूत के अतिथि
19उनमें से दो स्वर्गदूत साँझ को सदोम नगर में आए। लूत नगर के द्वार पर बैठा था और उसने स्वर्गदूतों को देखा। लूत ने सोचा कि वे लोग नगर के बीच से यात्रा कर रहे हैं। लूत उठा और स्वर्गदूतों के पास गया तथा जमीन तक सामने झुका। 2 लूत ने कहा, “आप सब महोदय, कृप्या मेरे घर चलें और मैं आप लोगों की सेवा करूँगा। वहाँ आप लोग अपने पैर धो सकते हैं और रात को ठहर सकते हैं। तब कल आप लोग अपनी यात्रा आरम्भ कर सकते हैं।”
स्वर्गदूतों ने उत्तर दिया, “नहीं, हम लोग रात को मैदान में ठहरेंगे।”
3 किन्तु लूत अपने घर चलने के लिए बार—बार कहता रहा। इस तरह स्वर्गदूत लूत के घर जाने के लिए तैयार हो गए। जब वे घर पहुँचे तो लूत उनके पीने के लिए कुछ लाया। लूत ने उनके लिए रोटियाँ बनाईं। लूत का पकाया भोजन स्वर्गदूतों ने खाया।
4 उस शाम सोने के समय के पहले ही नगर के सभी भागों से लोग लूत के घर आए। सदोम के पुरुषों ने लूत का घर घेर लिया और बोले। 5 उन्होंने कहा, “आज रात को जो लोग तुम्हारे पास आए, वे दोनों पुरुष कहाँ हैं? उन पुरुषों को बाहर हमें दे दो। हम उनके साथ कुकर्म करना चाहते हैं।”
6 लूत बाहर निकला और अपने पीछे से उसने दरवाज़ा बन्द कर लिया। 7 लूत ने पुरुषों से कहा, “नहीं मेरे भाइयो मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप यह बुरा काम न करें। 8 देखों मेरी दो पुत्रियाँ हैं, वे इसके पहले किसी पुरुष के साथ नहीं सोयी हैं। मैं अपनी पुत्रियों को तुम लोगों को दे देता हूँ। तुम लोग उनके साथ जो चाहो कर सकते हो। लेकिन इन व्यक्तियों के साथ कुछ न करो। ये लोग हमारे घर आए हैं और मैं इनकी रक्षा जरूर करूँगा।”
9 घर के चारों ओर के लोगों ने उत्तर दिया, “रास्ते से हट जाओ।” तब पुरुषों ने अपने मन में सोचा, “यह व्यक्ति लूत हमारे नगर में अतिथि के रूप में आया। अब यह सिखाना चाहता है कि हम लोग क्या करें।” तब लोगों ने लूत से कहा, “हम लोग उनसे भी अधिक तुम्हारा बुरा करेंगे।” इसलिए उन व्यक्तियों ने लूत को घेर कर उसके निकट आना शुरू किया। वे दरवाज़े को तोड़कर खोलना चाहते थे।
10 किन्तु लूत के साथ ठहरे व्यक्तियों ने दरवाज़ा खोला और लूत को घर के भीतर खींच लिया। तब उन्होंने दरवाज़ा बन्द कर लिया। 11 दोनों व्यक्तियों ने दरवाज़े के बाहर के पुरुषों को अन्धा कर दिया। इस तरह घर में घुसने की कोशिश करने वाले जवान व बूढ़े सब अन्धे हो गए और दरवाज़ा न पा सके।
सदोम से बच निकलना
12 दोनों व्यक्तियों ने लूत से कहा, “क्या इस नगर में ऐसा व्यक्ति है जो तुम्हारे परिवार का है? क्या तुम्हारे दामाद, तुम्हारी पुत्रियाँ या अन्य कोई तुम्हारे परिवार का व्यक्ति है? यदि कोई दूसरा इस नगर में तुम्हारे परिवार का है तो तुम अभी नगर छोड़ने के लिए कह दो। 13 हम लोग इस नगर को नष्ट करेंगे। यहोवा ने उन सभी बुराइयों को सुन लिया है जो इस नगर में है। इसलिए यहोवा ने हम लोगों को इसे नष्ट करने के लिए भेजा हैं।”
14 इसलिए लूत बाहर गया और अपनी अन्य पुत्रियों से विवाह करने वाले दामादों से बातें कीं। लूत ने कहा, “शीघ्रता करो और इस नगर को छोड़ दो।” यहोवा इसे तुरन्त नष्ट करेगा। लेकिन उन लोगों ने समझा कि लूत मज़ाक कर रहा है।
15 दूसरी सुबह को भोर के समय ही स्वर्गदूत लूत से जल्दी करने की कोशिश की। उन्होंने कहा, “देखो इस नगर को दण्ड मिलेगा। इसलिए तुम अपनी पत्नी और तुम्हारे साथ जो दो पुत्रियाँ जो अभी तक हैं, उन्हें लेकर इस जगह को छोड़ दो। तब तुम नगर के साथ नष्ट नहीं होगे।”
16 लेकिन लूत दुविधा में रहा और नगर छोड़ने की जल्दी उसने नहीं की। इसलिए दोनों स्वर्गदूतों ने लूत, उसकी पत्नी और उसकी दोनों पुत्रियों के हाथ पकड़ लिए। उन दोनों ने लूत और उसके परिवार को नगर के बाहर सुरक्षित स्थान में पहुँचाया। लूत और उसके परिवार पर यहोवा की कृपा थी। 17 इसलिए दोनों ने लूत और उसके परिवार को नगर के बाहर पहुँचा दिया। जब वे बाहर हो गए तो उनमें से एक ने कहा, “अपना जीवन बचाने के लिए अब भागो। नगर को मुड़कर भी मत देखो। इस घाटी में किसी जगह न रूको। तब तक भागते रहो जब तक पहाड़ों में न जा पहुँचो। अगर तुम ऐसा नहीं करते, तो तुम नगर के साथ नष्ट हो जाओगे।”
18 तब लूत ने दोनों से कहा, “महोदयों, कृपा करके इतनी दूर दौड़ने के लिए विवश न करें। 19 आप लोगों ने मुझ सेवक पर इतनी अधिक कृपा की है। आप लोगों ने मुझे बचाने की कृपा की है। लेकिन मैं पहाड़ी तक दौड़ नहीं सकता। अगर मैं आवश्यकता से अधिक धीरे दौड़ा तो कुछ बुरा होगा और मैं मारा जाऊँगा। 20 लेकिन देखें यहाँ पास में एक बहुत छोटा नगर है। हमें उस नगर तक दौड़ने दें। तब हमारा जीवन बच जाएगा।”
21 स्वर्गदूत ने लूत से कहा, “ठीक है, मैं तुम्हें ऐसा भी करने दूँगा। मैं उस नगर को नष्ट नहीं करूँगा जिसमें तुम जा रहे हो। 22 लेकिन वहाँ तक तेज दौड़ो। मैं तब तक सदोम को नष्ट नहीं करूँगा जब तक तुम उस नगर में सुरक्षित नहीं पहुँच जाते।” (इस नगर का नाम सोअर है, क्योंकि यह छोटा है।)
सदोम और अमोरा नष्ट किए गए
23 जब लूत सोअर में घुस रहा था, सबेरे का सूरज चमकने लगा 24 और यहोवा ने सदोम और अमोरा को नष्ट करना आरम्भ किया। यहोवा ने आग तथा जलते हुए गन्धक को आकाश से नीचें बरसाया। 25 इस तरह यहोवा ने उन नगरों को जला दिया और पूरी घाटी के सभी जीवित मनुष्यों तथा सभी पेड़ पौधों को भी नष्ट कर दिया।
26 जब वे भाग रहे थे, तो लूत की पत्नी ने मुड़कर नगर को देखा। जब उसने मुड़कर देखा तब वह एक नमक की ढेर हो गई। 27 उसी दिन बहुत सबेरे इब्राहीम उठा और उस जगह पर गया जहाँ वह यहोवा के सामने खड़ा होता था। 28 इब्राहीम ने सदोम और अमोरा नगरों की ओर नज़र डाली। इब्राहीम ने उस घाटी की पूरी भूमि की ओर देखा। इब्राहीम ने उस प्रदेश से उठते हुए घने धुँए को देखा। बड़ी भयंकर आग से उठते धुँए के समान वह दिखाई पड़ा।
29 घाटी के नगरों को परमेश्वर ने नष्ट कर दिया। जब परमेश्वर ने यह किया तब इब्राहीम ने जो कुछ माँगा था उसे उसने याद रखा। परमेश्वर ने लूत का जीवन बचाया लेकिन परमेश्वर ने उस नगर को नष्ट कर दिया जिसमें लूत रहता था।
लूत और उसकी पुत्रियाँ
30 लूत सोअर में लगातार रहने से डरा। इसलिए वह और उसकी दोनों पुत्रियाँ पहाड़ों में गये और वहीं रहने लगे। वे वहाँ एक गुफा में रहते थे। 31 एक दिन बड़ी पुत्री ने छोटी से कहा, “पृथ्वी पर चारों ओर पुरुष और स्त्रियाँ विवाह करते हैं। लेकिन यहाँ आस पास कोई पुरुष नहीं है जिससे हम विवाह करें। हम लोगों के पिता बूढ़े हैं। 32 इसलिए हम लोग अपने पिता का उपयोग बच्चों को जन्म देने के लिए करें जिससे हम लोगों का वंश चल सके। हम लोग अपने पिता के पास चलेंगे और दाखरस पिलायेंगे तथा उसे मदहोश कर देंगे। तब हम उसके साथ सो सकते हैं।”
33 उस रात दोनों पुत्रियाँ अपने पिता के पास गईं और उसे उन्होंने दाखरस पिलाकर मदहोश कर दिया। तब बड़ी पुत्री पिता के बिस्तर में गई और उसके साथ सोई। लूत अधिक मदहोश था इसलिए यह न जान सका कि वह उसके साथ सोया।
34 दूसरे दिन बड़ी पुत्री ने छोटी से कहा, “पिछली रात मैं अपने पिता के साथ सोई। आओ इस रात फिर हम उसे दाखरस पिलाकर मदहोश कर दें। तब तुम उसके बिस्तर में जा सकती हो और उसके साथ सो सकती हो। इस तरह हम लोगों को अपने पिता का उपयोग बच्चों को जन्म देकर अपने वंश को चलाने के लिए करना चाहिए।” 35 इसलिए उन दोनों पुत्रियों ने अपने पिता को दाखरस पिलाकर मदहोश कर दिया। तब छोटी पुत्री उसके बिस्तर में गई और उसके पास सोई। लूत इस बार भी न जान सका कि उसकी पुत्री उसके साथ सोई।
36 इस तरह लूत की दोनों पुत्रियाँ गर्भवती हुईं। उनका पिता ही उनके बच्चों का पिता था। 37 बड़ी पुत्री ने एक पुत्र को जन्म दिया। उसने लड़के का नाम मोआब रखा। मोआब उन सभी मोआबी लोगों का पिता है, जो अब तक रह रहे हैं। 38 छोटी पुत्री ने भी एक पुत्र जना। इसने अपने पुत्र का नाम बेनम्मी रखा। बेनम्मी अभी उन सबी अम्मोनी लोगों का पिता है जो अब तक रह रहे हैं।
इब्राहीम गरार जाता है
20इब्राहीम ने उस जगह को छोड़ दिया और नेगेव की यात्रा की। इब्राहीम कादेश और शूर के बीच गरार में बस गया। 2 गरार में इब्राहीम ने लोगों से कहा कि सारा मेरी बहन है। गरार के राजा अबीमेलेक ने यह बात सुनी। अबीमेलेक सारा को चाहता था इसलिए उसने कुछ नौकर उसे लाने के लिए भेजे। 3 लेकिन एक रात परमेश्वर ने अबीमेलेक से स्वप्न में बात की। परमेश्वर ने कहा, “देखो, तुम मर जाओगे। जिस स्त्री को तुमने लिया है उसका विवाह हो चुका है।”
4 लेकिन अबीमेलेक अभी सारा के साथ नहीं सोया था। इसलिए अबीमेलेक ने कहा, “हे यहोवा, मैं दोषी नहीं हूँ। क्या तू निर्दोष व्यक्ति को मारेगा। 5 इब्राहीम ने मुझसे खुद कहा, ‘यह स्त्री मेरी बहन है’ और स्त्री ने भी कहा, ‘यह पुरुष मेरा भाई है।’ मैं निर्दोष हूँ। मैं नहीं जानता था कि मैं क्या कर रहा हूँ?”
6 तब परमेश्वर ने अबीमेलेक से स्वप्न में कहा, “हाँ, मैं जानता हूँ कि तुम निर्दोष हो और मैं यह भी जानता हूँ कि तुम यह नहीं जानते थे कि तुम क्या कर रहे थे? मैंने तुमको बचाया। मैंने तुम्हें अपने विरुद्ध पाप नहीं करने दिया। यह मैं ही था जिसने तुम्हें उसके साथ सोने नहीं दिया। 7 इसलिए इब्राहीम को उसकी पत्नी लौटा दो। इब्राहीम एक नबी है। वह तुम्हारे लिए प्रार्थना करेगा और तुम जीवित रहोगे किन्तु यदि तुम सारा को नहीं लौटाओगे तो मैं शाप देता हूँ कि तुम मर जाओगे। तुम्हारा सारा परिवार तुम्हारे साथ मर जाएगा।”
8 इसलिए दूसरे दिन बहुत सबेरे अबीमेलेक ने अपने सभी नौकरों को बुलाया। अबीमेलेक ने सपने में हुईं सारी बातें उनको बताईं। नौकर बहुत डर गए। 9 तब अबीमेलेक ने इब्राहीम को बुलाया और उससे कहा, “तुमने हम लोगों के साथ ऐसा क्यों किया? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था? तुम ने यह झूठ क्यों बोला कि वह तुम्हारी बहन है। तुमने हमारे राज्य पर बहुत बड़ी विपत्ति ला दी है। यह बात तुम्हें मेरे साथ नहीं करनी चाहिए थी। 10 तुम किस बात से डर रहे थे? तुमने ये बातें मेरे साथ क्यों कीं?”
11 तब इब्राहीम ने कहा, “मैं डरता था। क्योंकि मैंने सोचा कि यहाँ कोई भी परमेश्वर का आदर नहीं करता। मैंने सोचा कि सारा को पाने के लिए कोई मुझे मार डालेगा। 12 वह मेरी पत्नी है, किन्तु वह मेरी बहन भी है। वह मेरे पिता की पुत्री तो है परन्तु मेरी माँ की पुत्री नहीं है। 13 परमेश्वर ने मुझे पिता के घर से दूर पहुँचाया है। परमेश्वर ने कई अलग—अलग प्रदेशों में मुझे भटकाया। जब ऐसा हुआ तो मैंने सारा से कहा, ‘मेरे लिए कुछ करो, लोगों से कहो कि तुम मेरी बहन हो।’”
14 तब अबीमेलेक ने जाना कि क्या हो चुका है। इसलिए अबीमेलेक ने इब्राहीम को सारा लौटा दी। अबीमेलेक ने इब्राहीम को कुछ भेड़ें, मवेशी तथा दास भी दिए। 15 अबीमेलेक ने कहा, “तुम चारों और देख लो। यह मेरा देश है। तुम जिस जगह चाहो, रह सकते हो।”
16 अबीमेलेक ने सारा से कहा, “देखो, मैंने तुम्हारे भाई को एक हजार चाँदी के टुकड़े दिए हैं। मैंने यह इसलिए किया कि जो कुछ हुआ उससे मैं दुःखी हूँ। मैं चाहता हूँ कि हर एक व्यक्ति यह देखे कि मैंने अच्छे काम किए हैं।”
17-18 परमेश्वर ने अबीमेलेक के परिवार की सभी स्त्रियों को बच्चा जनने के अयोग्य बनाया। परमेश्वर ने वह इसलिए किया कि उसने इब्राहीम की पत्नी सारा को रख लिया था। लेकिन इब्राहीम ने परमेश्वर से प्रार्थना की और परमेश्वर ने अबीमेलेक, उसकी पत्नियों और दास—कन्याओं को स्वस्थ कर दिया।
समीक्षा
विश्वास करें कि सारी धरती का न्यायी सबकुछ सही कर देगा
कल हमने देखा कि अब्राहम ने सदोम और गमोरा के लिए याचना की। हम नहीं जानते कि उनके पाप क्या थे, लेकिन ‘प्रभु ने कहा,“सदोम और अमोरा की चिल्लाहट बढ़ गई है, और उनका पाप बहुत भारी हो गया है; ” (18:20)।
आज के पद्यांश से ऐसा प्रतीत होता है कि उनके पाप में सामूहिक बलात्कार की भयानक प्रथा शामिल थी (19:3,5)। हम यहेजकेल 16 में पढ़ते हैं कि उनके पाप में घमंड, पेट भर के भोजन करना, बेपरवाह होना शामिल था; उन्होंने गरीबों और ज़रूरत मंदों की कभी मदद नहीं की’ (यहेजकेल 16:49)।
परमेश्वर कहते हैं कि यदि सदोम और गमोरा में दस धर्मी जन भी होते तो उनकी खातिर मैं इसका नाश न करूँगा: ‘मैं दस के कारण भी उसका नाश न करूंगा। ’ (उत्पत्ति 18:32)। उन्होंने केवल धर्मी जन को चले जाने का हर एक अवसर दिया। ‘जब लूत हिचकिचाया, तब स्वर्गदूत ने उसका और उसकी पत्नी का और उसकी बेटियों का हाथ पकड़ा और उन्हें सुरक्षित रीति से शहर के बाहर ले गया, क्योंकि प्रभु की दया उन पर थी’ (19:16)।
लूत की पत्नी पर न्याय काफी गंभीर लगता है (पद - 26)। इसके पीछे चाहें जो भी कारण हो (और मुझे विश्वास नहीं है कि मुझे उत्तर पता है) परंतु यह निश्चित ही एक उदाहरण स्थापित करता है। यीशु ने कहा, 'लूत की पत्नी को याद करो!'(लूका 17:32)। हमें पीछे मुड़कर नहीं देखना है। यदि हमने पापमय जीवन छोड़ दिया है, तो हमें फिर से इसमें नहीं जाना है। उन्हें कहा गया था, 'अपने जीवन की खातिर भागो! (उत्पत्ति 19:17)। उसी तरह से,हमें भी बुरी इच्छाओं को त्यागने के लिए कहा गया है (2 तीमुथियुस 2:22)।
बल्कि अब्राहम भी पाप के बिना नहीं था। निश्चित ही, उसने वही पाप बार - बार दोहराया – सारा को अपनी पत्नी के रूप में भेजना और उसे लगभग व्यभिचार करने को उकसाना। बाइबल का सन्देश यह है कि परमेश्वर केवल पापियों को बचाते ही नहीं हैं, बल्कि वे पापियों का उपयोग भी करते हैं। उन्होंने अब्राहम को आशीष दी और उसकी प्रार्थना का उत्तर दिया (उत्पत्ति 20:7)। हमारे पाप के बावजूद परमेश्वर हमारा उपयोग करते हैं क्योंकि वह दयालु हैं और परमेश्वर ने, यीशु में, खुद पर सज़ा ली है।
प्रार्थना
प्रभु, न्याय के दिन के लिए मसीह का क्रूस मुझ में जो बदलाव लाता है उसके लिए आपका धन्यवाद। आपका धन्यवाद, क्योंकि मैं विश्वास कर सकता हूँ कि, अंत में,सारी पृथ्वी का न्यायी सब कुछ सही कर देगा।
पिप्पा भी कहते है
मत्ती 8:6
“प्रभु,” उसने कहा,“मेरा सेवक घर में झोले का मारा बहुत दुखी पड़ा है। ”
सूबेदार ने केवल अपने परिवार और दोस्तों की चिंता की, बल्कि उसके लिए भी जिसने उसके लिए कार्य किया था। हालाँकि सूबेदार एक बाहरी व्यक्ति था और उसके ‘धार्मिक समुदाय’ का हिस्सा नहीं था, वह अपने सेवक के लिए यीशु के पास गया। विश्वास हर तरह की अनपेक्षित जगहों में पाया जा सकता है।
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संदर्भ
संदर्भ:
मिरोस्लॅव वोल्फ, एक्स्क्लूजन एंड एम्ब्रेस, (एबिंग्डन प्रेस, 1994) पन्ने 303-304
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
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