दिन 100

परमेश्वर की आशीष के लिए एक चुंबक

बुद्धि भजन संहिता 43:1-5
नए करार लूका 12:35-59
जूना करार व्यवस्था विवरण 11:1-12:32

परिचय

जब हम बच्चे थे, तो मेरी बहन और मैं अपने माता-पिता के साथ एक पिकनिक पर गए थे. हम दोनों एक खाली पड़ी रेलवे ट्रैक के साथ खेल रहे थे. अचानक मेरी माँ चिल्लाई, 'कूदो! उस ट्रैक से हटो!' उसने एक एक्सप्रेस ट्रेन को उस ट्रैक पर आते हुए देखा था. धन्यवाद हो, हमने चिल्लाकर जवाब नहीं दिया, 'हमें मत डराओ, तुम हमें डरा नहीं सकती.' यदि हमने ऐसा किया होता, तो अब मैं इसे लिखने की अवस्था में नहीं होती. हम दोनों ट्रैक से कूद गए.

यह आदेश बच्चों के प्रति माँ के प्रेम की वजह से निकला था. परमेश्वर की आज्ञा आपके प्रति उनके प्रेम की वजह से आती है. इन्हें आपकी भलाई के लिए ही दिया गया है (व्यवस्थाविवरण 10:13). आने वाले न्याय और उसके लिए किस तरह से तैयार रहना है उसके बारे में यीशु की चेतावनी आपके प्रति उनके प्रेम की वजह से मिली है. आज के इन सभी लेखांशों में हम देखेंगे कि उनकी आज्ञा का पालन करना उनकी आशीषों के लिए एक चुंबक है.

बुद्धि

भजन संहिता 43:1-5

43हे परमेस्वर, एक मनुष्य है जो तेरी अनुसरण नहीं करता वह मनुष्य दुष्ट है और झूठ बोलता है।
 हे परमेश्वर, मेरा मुकदमा लड़ और यह निर्णय कर कि कोन सत्य है।
 मुझे उस मनुष्य से बच ले।
2 हे परमेस्वर, तू ही मेरा शरणस्थल है!
 मुझको तूने क्यों बिसरा दिय
 तूने मुझको यह क्यों नहीं दिखाया
 कि मै अपने श्त्रुओं से कैसे बच निकलूँ?
3 हे परमेश्वर, तू अपनी ज्योति और अपने सत्य को मुझ पर प्रकाशित होने दे।
 मुझको तेरी ज्योति और सत्य राह दिखायेंगे।
 वे मुझे तेरे पवित्र पर्वत और अपने घर को ले चलेंगे।
4 मैं तो परमेस्वर की वेदी के पास जाऊँगा।
 परमेश्वर मैं तेरे पास आऊँगा। वह मुझे आनन्दित करता है।
 हे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर,
 मैं वीणा पर तेरी स्तुति करँगा।

5 मैं इतना दु:खी क्यों हुँ?
 मैं क्यों इतना व्यकुल हूँ?
 मुझे परमेश्वर के सहारे की बाट जोहनी चाहिए।
 मुझे अब भी उसकी स्तुती का अवसर मिलेगा।
 वह मुझे बचाएगा।

समीक्षा

परमेश्वर की उपस्थिति

पिछले युग की महान स्त्रीयों और पुरूषों की तरह, इस भजन का लेखक भी आत्मिक तनाव से संघर्ष कर रहा है. वह निराश है (व.5). उसका प्राण अंदर ही अंदर व्याकुल है (व.5). यीशु ने स्वयं पुकारा था, 'अब मेरा हृदय व्याकुल है' और 'मेरा प्राण दु:ख से भर गया है' (यूहन्ना 12:27; मरकुस 14:34).

इस भजन का लेखक विधर्मी जाति से घिरा हुआ है, (43:1अ), छली और कुटिल लोगों से (व.1ब). इन भजन के विषय में कुछ बहुत ही सच्चाई और प्रमाणिकता है. जीवन आसान नहीं है. हम युद्ध, विरोध बल्कि निराशा का भी सामना कर सकते हैं.

सही प्रतिक्रिया होगी परमेश्वर की ओर फिरना. परमेश्वर के मार्गदर्शन और उनकी उपस्थिति के लिए प्रार्थना करें, उनके 'आनंद और प्रसन्नता के लिए' (वव.3-4). अपने लोगों के साथ परमेश्वर की उपस्थिति का मुख्य केंद्र, उस समय मंदिर यरूशलेम में था. जो कि पहाड़ पर बना हुआ था, इस स्थान पर वह निवास करता था (व.3). नये नियम में यीशु मंदिर हैं जहाँ परमेश्वर अपनी परीपूर्णता में निवास करते हैं (यूहन्ना 2:19-21; कुल्लिसियों 1:19) देखें.

पेंताकुस्त के दिन यीशु ने अपनी पवित्र आत्मा एक मार्ग के रूप में भेजी जिसमें अब परमेश्वर अपने 'पवित्र मंदिर' में निवास करते हैं – किसी व्यक्ति और इकत्रित समुदाय दोनों में. 'चर्च' कभी भी उबाऊ नहीं होना चाहिये. यह आनंद, खुशी और स्तुती का स्थान होना चाहिये.

इसके केंद्र में, आज्ञा का पालन ही परमेश्वर की ओर फिरना है, फिर चाहें कैसी भी परिस्थिति हो. हमारे अंधकार में हमें परमेश्वर की उपस्थिति की जरूरत है – और आप भरोसा कर सकते हैं कि यह अंतिम है जो आप पाएंगे.

प्रार्थना

प्रभु, कृपया अपनी रौशनी और अपनी सच्चाई भेजिये; इन्हें आपकी उपस्थिति में हमें ले जाने दीजिये (भजन संहिता 43:3अ).

नए करार

लूका 12:35-59

सदा तैयार रहो

35 “कर्म करने को सदा तैयार रहो। और अपने दीपक जलाए रखो। 36 और उन लोगों के जैसे बनो जो ब्याह के भोज से लौटकर आते अपने स्वामी की प्रतीज्ञा में रहते है ताकि, जब वह आये और द्वार खटखटाये तो वे तत्काल उसके लिए द्वार खोल सकें। 37 वे सेवक धन्य हैं जिन्हें स्वामी आकर जागते और तैयार पाएगा। मैं तुम्हें सच्चाई के साथ कहता हूँ कि वह भी उनकी सेवा के लिये कमर कस लेगा और उन्हे, खाने की चौकी पर भोजन के लिए बिठायेगा। वह आयेगा और उनहे भोजन करायेगा। 38 वह चाहे आधी रात से पहले आए और चाहे आधी रात के बाद यदि उन्हें तैयार पाता है तो वे धन्य हैं।

39 “इस बात के लिए निश्चित रहो कि यदि घर के स्वामी को यह पता होता कि चोर किस घड़ी आ रहा है, तो वह उसे अपने घर में सेंध नहीं लगाने देता। 40 सो तुम भी तैयार रहो क्योंकि मनुष्य का पुत्र ऐसी घड़ी आयेगा जिसे तुम सोच भी नहीं सकते।”

विश्वासपात्र सेवक कौन?

41 तब पतरस ने पूछा, “हे प्रभु, यह दृष्टान्त कथा तू हमारे लिये कह रहा है या सब के लिये?”

42 इस पर यीशु ने कहा, “तो फिर ऐसा विश्वास-पात्र, बुद्धिमान प्रबन्ध-अधिकारी कौन होगा जिसे प्रभु अपने सेवकों के ऊपर उचित समय पर, उन्हें भोजन सामग्री देने के लिये नियुक्त करेगा? 43 वह सेवक धन्य है जिसे उसका स्वामी जब आये तो उसे वैसा ही करते पाये। 44 मैं सच्चाई के साथ तुमसे कहता हूँ कि वह उसे अपनी सभी सम्पत्तियों का अधिकारी नियुक्त करेगा।

45 “किन्तु यदि वह सेवक अपने मन में यह कहे कि मेरा स्वामी तो आने में बहुत देर कर रहा है और वह दूसरे पुरुष और स्त्री सेवकों को मारना पीटना आरम्भ कर दे तथा खाने-पीने और मदमस्त होने लगे 46 तो उस सेवक का स्वामी ऐसे दिन आ जायेगा जिसकी वह सोचता तक नहीं। एक ऐसी घड़ी जिसके प्रति वह अचेत है। फिर वह उसके टुकड़े-टुकड़े कर डालेगा और उसे अविश्वासियों के बीच स्थान देगा।

47 “वह सेवक जो अपने स्वामी की इच्छा जानता है और उसके लिए तत्पर नहीं होता या जैसा उसका स्वामी चाहता है, वैसा ही नहीं करता, उस सेवक पर तीखी मार पड़ेगी। 48 किन्तु वह जिसे अपने स्वामी की इच्छा का ज्ञान नहीं और कोई ऐसा काम कर बैठे जो मार पड़ने योग्य हो तो उस सेवक पर हल्की मार पड़ेगी। क्योंकि प्रत्येक उस व्यक्ति से जिसे बहुत अधिक दिया गया है, अधिक अपेक्षित किया जायेगा। उस व्यक्ति से जिसे लोगों ने अधिक सौंपा है, उससे लोग अधिक ही माँगेंगे।”

यीशु के साथ असहमति

49 “मैं धरती पर एक आग भड़काने आया हूँ। मेरी कितनी इच्छा है कि वह कदाचित् अभी तक भड़क उठती। 50 मेरे पास एक बपतिस्मा है जो मुझे लेना है जब तक यह पूरा नहीं हो जाता, मैं कितना व्याकुल हूँ। 51 तुम क्या सोचते हो मैं इस धरती पर शान्ति स्थापित करने के लिये आया हूँ? नहीं, मैं तुम्हें बताता हूँ, मैं तो विभाजन करने आया हूँ। 52 क्योंकि अब से आगे एक घर के पाँच आदमी एक दूसरे के विरुद्ध बट जायेंगे। तीन दो के विरोध में और दो तीन के विरोध में हो जायेंगे।

53 पिता, पुत्र के विरोध में, और पुत्र, पिता के विरोध में, माँ, बेटी के विरोध में, और बेटी, माँ के विरोध में, सास, बहू के विरोध में, और बहू, सास के विरोध में हो जायेंगी।”

समय की पहचान

54 फिर वह भीड़ से बोला, “जब तुम पश्चिम की ओर से किसी बादल को उठते देखते हो तो तत्काल कह उठते हो, ‘वर्षा आ रही है’ और फिर ऐसा ही होता है। 55 और फिर जब दक्षिणी हवा चलती है, तुम कहते हो, ‘गर्मी पड़ेगी’ और ऐसा ही होता है। 56 अरे कपटियों तुम धरती और आकाश के स्वरूपों की व्याख्या करना तो जानते हो, फिर ऐसा क्योंकि तुम वर्तमान समय की व्याख्या करना नहीं जानते?

अपनी समस्याएँ सुलझाओ

57 “जो उचित है, उसके निर्णायक तुम अपने आप क्यों नहीं बनते? 58 जब तुम अपने विरोधी के साथ अधिकारियों के पास जा रहे हो तो रास्ते में ही उसके साथ समझौता करने का जतन करो। नहीं तो कहीं ऐसा न हो कि वह तुम्हें न्यायाधीश के सामने खींच ले जाये और न्यायाधीश तुम्हें अधिकारी को सौंप दे। और अधिकारी तुम्हें जेल में बन्द कर दे। 59 मैं तुम्हें बताता हूँ, तुम वहाँ से तब तक नहीं छूट पाओगे जब तक अंतिम पाई तक न चुका दो।”

समीक्षा

यीशु का प्रतिफल

जीवन एक अद्भुत उपहार हैं. आपको योग्यता और जिम्मेदारियाँ दी गई हैं (व.48). यह सच में मायने रखता है कि आप इनका उपयोग कैसे करते हैं. अपने जीवन का उपयोग कैसे किया जाए इस बारे में चेतावनी आपके प्रति प्रेम रखने के कारण दी गई है. यीशु आने वाले न्याय और उसके लिए कैसे तैयार रहना है इस बारे में सावधान करते हैं.

यीशु आपको 'सेवा के लिए तैयार रहने' के लिए बुलाते हैं (व.35). यीशु के आज ही वापस आने की अपेक्षा कीजिये. जो तैयार रहते हैं उनके लिए कितना अद्भुत प्रतिफल रखा है: 'धन्य हैं वे दास, जिन्हें स्वामी आकर जागते पाए; (व.37अ), तो वह कमर बान्ध कर उन्हें भोजन करने को बैठाएंगे, और पास आकर उन की सेवा करेंगे' (व.39ब). यीशु का अनुग्रह लगभग अविश्वसनीय है. वह भूमिकाओं को इस तरह पलट देते हैं जिसका इरादा ज्यादातर मनुष्य कभी कर भी नहीं पाएंगे.

उनके वापस आने के लिए तैयार रहें (व.40). विश्वासयोग्य और बुद्धिमान भंडारी की तरह रहिये (व.40). आपको बहुतायत से प्रतिफल मिलेगा. वह आपको अपनी सारी संपत्ति का सरदार ठहराएंगे (व.44).

यह सोचना खतरनाक होगा कि यीशु अभी नहीं आएंगे (व.45), ताकि हम वह सब करते रहें जो हम चाहते हैं और यह कि चीजों को सही करने के लिए बहुत सारा समय बचा है.

यह सच है कि स्वामी आने में बहुत समय लगाता है, जिससे मूर्ख सेवक उनके कार्य को टाल देते हैं और इस तरह से कार्य नहीं करते कि स्वामी आने वाला है (व.45). आज बहुत से लोगों के जीवन पर परमेश्वर का बहुत थोड़ा और अप्रमाणिक प्रभाव दिखाई देता है. यह दृष्टांत हमें याद दिलाने के लिए एक चेतावनी है कि हम जो भी करते हैं उसका एक दिन हमें हिसाब देना पड़ेगा और हमें अभी से बुद्धिमानी से काम करना होगा.

यीशु कहते हैं, यदि आप जानते हैं कि कुछ गलत हो रहा है और फिर भी आप इसे कर रहे हैं, तो यह उससे भी बुरा है जब आप अनजाने में कोई गलत काम करते हैं. लेकिन बाद वाला तब भी गलत है (वव.47-48).

यीशु आपको उनकी आज्ञा का पालन करने के लिए और विश्वासयोग्यता और बुद्धिमानी से उनकी सेवा करने के लिए बुलाते हैं. परमेश्वर ने आपको जो दिया है यदि आप उसका इस्तेमाल बुद्धिमानी से करते हैं, तो वह आपको और ज्यादा जिम्मेदारी देने के द्वारा आशीषित करेंगे. परमेश्वर ने आपको जितना ज्यादा दिया है उतनी ही बड़ी जिम्मेदारी भी आपको दी है ताकि आप इसका अच्छे से उपयोग करें. यीशु कहते हैं, ' इसलिये जिसे बहुत दिया गया है, उस से बहुत मांगा जाएगा, और जिसे बहुत सौंपा गया है, उस से बहुत मांगेंगें' (व.48ब).

यदि आपके पास एक सुखी परिवार, अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य, दोस्त, नौकरी, भोजन, कपड़े, छुट्टियाँ हैं; यदि आप बाइबल पढ़ सकते हैं, और यदि आपको एकसाथ मिलने और प्रार्थना करने की आजादी है इत्यादि, तो आप उन में से हैं जिन्हें बहुत दिया गया है, और आपसे बहुत ज्यादा अपेक्षा भी की जाएगी.

यीशु का खुद का जीवन भी आसान नहीं था. वह कहते हैं, 'मुझे तो एक बपतिस्मा लेना है; और जब तक वह न हो ले तब तक मैं कैसी सकेती में रहूंगा? (व.50). यीशु क्रूस की परछाई में रहे. वह जानते थे कि उन्हें दु:ख उठाना पड़ेगा. जब हम जानते हैं कि हमें अपने जीवन में परेशानी और चुनौती का सामना करना पड़ेगा, तो हम अक्सर विवश किया हुआ महसूस करते हैं जब तक कि यह पूरा न हो जाए (व. 50, आरएसवी). यदि हम अपेक्षाकृत छोटी सी बातों में ऐसा महसूस करते हैं, तो यीशु ने कैसा भयानक महसूस किया होगा जब उन्होंने जगत का सारा पाप अपने ऊपर उठाकर क्रूस की यातना को देखा होगा.

यह एक माध्यम रहा होगा जिसके द्वारा यीशु हम तक परमेश्वर की शांति ला सकते थे. फिर भी यीशु कहते हैं, कि एक स्तर पर हम शांति का अनुभव हमेशा नहीं कर पाएंगे. बल्कि विभाजन होगा: 'क्या तुम समझते हो कि मैं पृथ्वी पर मिलाप कराने आया हूँ? मैं तुम से कहता हूं; नहीं, वरन अलग कराने आया हूँ' (व.51). यह विभाजन उन लोगों के साथ भी हो सकता है जो हमारे सबसे ज्यादा करीब हैं. यह विभाजन उनमें भी हो सकता है जो यीशु के लिए हैं और जो उनके विरोध में हैं.

फिर भी आपको मेल मिलाप करवाने के लिए बुलाया गया है. 'जब तू अपने मुद्दई के साथ हाकिम के पास जा रहा है, तो मार्ग ही में उस से छूटने का यत्न कर ले' (व.58).

प्रार्थना

प्रभु, हमेशा सेवा के लिए तैयार रहने में और आपने मुझे जो कुछ भी दिया है उसका सबसे अच्छा उपयोग करने में मेरी मदद कीजिये.

जूना करार

व्यवस्था विवरण 11:1-12:32

यहोवा का स्मरण रखो

11“इसलिए तुम्हें अपने परमेश्वर यहोवा से प्यार करना चाहिए। तुम्हें वही करना चाहिए जो वह करने के लिए तुमसे कहता है। तुम्हें उसके विधियों, नियमों और आदेशों का सदैव पालन करना चाहिए। 2 उन बड़े चमत्कारों को आज तुम याद करो जिन्हें यहोवा ने तुम्हें शिक्षा देने के लिए दिखाया। वे तुम लोग थे तुम्हारे बच्चे नहीं, जिन्होंने उन घटनाओं को होते देखा और उनके बीच जीवन बिताया। तुमने देखा है कि यहोवा कितना महान है। तुमने देखा है कि वह कितना शक्तिशाली है और तुमने उसके पराक्रमपूर्ण किये गए कार्यों को देखा है। 3 तुम्हारे बच्चों ने नहीं, तुमने उसके चमत्कार देखे हैं। तुमने वह सब देखा जो उसने मिस्र के सम्राट फिरौन और उसके पूरे देश के साथ किया। 4 तुम्हारे बच्चों ने नहीं, तुमने मिस्र की सेना, उनके घोड़ों और रथों के साथ यहोवा ने जो किया, देखा। वे तुम्हारा पीछा कर रहे थे, किन्तु तुमने देखा यहोवा ने उन्हें लालसागर के जल में डुबा दिया। तुमने देखा कि यहोवा ने उन्हें पूरी तरह नष्ट कर दिया। 5 वे तुम थे, तुम्हारे बच्चे नहीं, जिन्होंने यहोवा अपने परमेश्वर को अपने लिए मरुभूमि में सब कुछ तब तक करते देखा जब तक तुम इस स्थान पर आ न गए। 6 तुमने देखा कि यहोवा ने रूबेन के परिवार के एलिआब के पुत्रों दातान और अबीराम के साथ क्या किया। इस्राएल के सभी लोगों ने पृथ्वी को मुँह की तरह खुलते और उन आदमियों को निगलते देखा और पृथ्वी ने उनके परिवार, खेमे, सारे सेवकों और उनके सभी जानवरों को निगल लिया। 7 वे तुम थे तुम्हारे बच्चे नहीं, जिन्होंने यहोवा द्वारा किये गए इन बड़े चम्तकारों को देखा।

8 “इसलिए तुम्हें आज जो आदेश मैं दे रहा हूँ, उन सबका पालन करना चाहिए। तब तुम शक्तिशाली बनोगे और तुम नदी को पार करने योग्य होगे और उस देश को लोगे जिसमें प्रवेश करने के लिए तुम तैयार हो। 9 उस देश में तुम्हारी उम्र लम्बी होगी। यह वही देश है जिसे यहोवा ने तुम्हारे पूर्वजों और उनके वंशजों को देने का वचन दिया था। इस देश में दूध तथा शहद बहता है। 10 जो देश तुम पाओगे वह मिस्र की तरह नहीं है जहाँ से तुम आए। मिस्र में तुम बीज बोते थे और अपने पौधों को सींचने के लिए नहरों से अपने पैरों का उपयोग कर पानी निकालते थे। तुम अपने खेतों को वैसे ही सींचते थे जैसे तुम सब्जियों के बागों की सिंचाई करते थे। 11 लेकिन जो प्रदेश तुम शीघ्र ही पाओगे, वैसा नहीं है। इस्राएल में पर्वत और घाटियाँ हैं। यहाँ की भूमि वर्षा से जल प्राप्त करती है जो आकाश से गिरती है। 12 यहोवा तुम्हारा परमेश्वर उस देश की देख—रेख करता है! यहोवा तुम्हारा परमेश्वर वर्ष के आरम्भ से अन्त तक उसकी गेख—रेख करता है।

13 “तुम्हें जो आदेश मैं आज दे रहा हूँ, उसे तुम्हें सावधानी से सुनना चाहिएः यहोवा से प्रेम और उसकी सेवा पूरे हृदय और आत्मा से करनी चाहिए। यदि तुम वैसा करोगे 14 तो मैं ठीक समय पर तुम्हारी भूमि के लिए वर्षा भेजूँगा। मैं पतझड़ और बसंत के समय की भी वर्षा भेजूँगा। तब तुम अपना अन्न, नया दाखमधु और तेल इकट्ठा करोगे 15 और मैं तुम्हारे खेतों में तुम्हारे मवेशियों के लिए घास उगाऊंगा। तुम्हारे भोजन के लिए बहुत अधिक होगा।”

16 “किन्तु सावधान रहो कि मूर्ख न बनाए जाओ! दूसरे देवताओं की पूजा और सेवा के लिए उनकी ओर न मुड़ो। 17 यदि तुम ऐसा करोगे तो यहोवा तुम पर बहुत क्रोधित होगा। वह आकाश को बन्द कर देगा और वर्षा नहीं होगी। भूमि से फसल नहीं उगेगी और तुम उस अच्छे देश में शीघ्र मर जाओगे जिसे यहोवा तुम्हें दे रहा है।

18 “जिन आदेशों को मैं दे रहा हूँ, याद रखो, उन्हें हृदय और आत्मा में धारण करो। इन आदेशों को लिखो और याद दिलाने वाले चिन्ह के रूप में इन्हें अपने हाथों पर बांधों तथा ललाट पर धारण करो। 19 इन नियमों की शिक्षा अपने बच्चों को दो। इनके बारे में अपने घर में बैठे, सड़क पर टहलते, लेटते और जागते हुए बताया करो। 20 इन आदेशों को अपने घर के द्वार स्तम्भों और फाटकों पर लिखो। 21 तब तुम और तुम्हारे बच्चे उस देश में लम्बे समय तक रहेंगे जिसे यहोवा ने तुम्हारे पूर्वजों को देने का वचन दिया है। तुम तब तक रहोगे जब तक धरती के ऊपर आकाश रहेगा।

22 “सावधान रहो कि तुम उस हर एक आदेश का पालन करते रहो जिसे पालन करने के लिए मैने तुमसे कहा है: अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम करो, उसके बताये सभी मार्गों पर चलो और उसके ऊपर विश्वास रखने वाले बनो। 23 जब, तुम उस देश में जाओगे तब यहोवा उन सभी दूसरे राष्ट्रों को बलपूर्वक बाहर करेगा। तुम उन राष्ट्रों से भूमि लोगे जो तुम से बड़े और शक्तिशाली हैं। 24 वह सारा प्रदेश जिस पर तुम चलोगे, तुम्हारा होगा। तुम्हारा देश दक्षिण में मरुभूमि से लेकर लगातार उत्तर में लबानोन तक होगा। यह पूर्व में फरात नदी से लेकर लगातार भूमध्य सागर तक होगा। 25 कोई व्यक्ति तुम्हारे विरुद्ध खड़ा नहीं होगा। यहोवा तुम्हारा परमेश्वर उन लोगों को तुमसे भयभीत करेगा जहाँ कहीं तुम उस देश में जाओगे। यह वही है जिसके लिए यहोवा ने पहले तुमको वचन दिया था।

इस्राएलियों के लिए चुनावः आशीर्वाद या अभिशाप

26 “आज मैं तुम्हें आशीर्वाद या अभिशाप में से एक को चुनने दे रहा हूँ। 27 तुम आशीर्वाद पाओगे, यदि तुम योहवा अपने परमेश्वर के उन आदेशों पर ध्यान दोगे और उनका पालन करोगे। 28 किन्तु तुम उस समय अभिशाप पाओगे जब तुम यहोवा अपने परमेश्वर के आदेशों के पालन से इन्कार करोगे, अर्थात् जिस मार्ग पर चलने का आदेश मैं आज तुम्हें दे रहा हूँ, उससे मुड़ोगे और उन देवताओं का अनुसरण करोगे जिन्हें तुम जानते नहीं।

29 “जब यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें उस देश में पहुँचा देगा जहाँ तुम रहोगे, तब तुम्हें गरीज्जीम पर्वत की चोटी पर जाना चाहिए और वहाँ से आशीर्वादों को पढ़कर लोगों को सुनाना चाहिए। तुम्हें एबाल पर्वत की चोटी पर भी जाना चाहिए और वहाँ से अभिशापों को लोगों को सुनाना चाहिए। 30 ये पर्वत यरदन नदी की दूसरी ओर कनानी लोगों के प्रदेश में है जो यरदन घाटी में रहते हैं। ये पर्वत गिल्गाल नगर के समीप मोरे के बांज के पेड़ों के निकट पश्चिम की ओर है। 31 तुम यरदन नदी को पार करके जाओगे। तुम उस प्रदेश को लोगे जिसे यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुमको दे रहा है, यह देश तुम्हारा होगा। जब तुम इस देश में रहने लगो तो 32 उन सभी विधियों और नियमों का पालन सावधानी से करो जिन्हें आज मैं तुम्हें दे रहा हूँ।

परमेश्वर की उपासना का स्थान

12“ये विधियाँ और नियम हैं जिनका जीवन भर पालन करने के लिए तुम्हें सावधान रहना चाहिए। तुम्हें इन नियमों का पालन तब तक करना चाहिए जब तक तुम उस देश में रहो जिसे यहोवा तुम्हारे पूर्वजों का परमेश्वर, तुमको दे रहा है। 2 तुम उस प्रदेश को उन राष्ट्रों से लोगे जो अब वहाँ रह रहे हैं। तुम्हें उन सभी जगहों को पूरी तरह नष्ट कर देना चाहिए जहाँ ये राष्ट्र अपने देवताओं की पूजा करते हैं। ये स्थान ऊँचे पहाड़ों, पहाड़ियों और हरे वृक्षों के नीचे हैं। 3 तुम्हें उनकी वेदियों को नष्ट करना चाहिए और उनके विशेष पत्थरों को टुकड़े—टुकड़े कर देना चाहिए। तुन्हें उनके अशेरा स्तम्भों को जलाना चाहिए। उनके देवताओं की मूर्तियों को काट डालना चाहिए और उनके नाम वहाँ से मिटा देना चाहिये।

4 “किन्तु तुम्हें यहोवा अपने परमेश्वर की उपासना उस प्रकार नहीं करनी चाहिए जिस प्रकार वे लोग अपने देवताओं की पूजा करते हैं। 5 यहोवा तुम्हारा परमेश्वर अपने मन्दिर के लिए तुम्हारे परिवार समूह से विशेष स्थान चुनेगा। वह वहाँ अपना नाम प्रतिष्ठिट करेगा। तुम्हें उसकी उपासना करने के लिए उस स्थान पर जाना चाहिए। 6 वहाँ तुम्हें अपनी होमबलि, अपनी बलियाँ, दशमांश, अपनी विशेष भेंट, यहोवा को वचन दी गई कोई भेंट, अपनी स्वेच्छा भेंट और अपने मवेशियों के झुण्ड एवं रेवड़ के पहलौठे बच्चे लाने चाहिए। 7 तुम और तुम्हारे परिवार वहाँ भोजन करेंगे और यहोवा तुम्हारा परमेश्वर वहाँ तुम्हारे साथ होगा। जिन अच्छी चीजों के लिये तुमने काम किया है उसका भोग तुम करोगे, क्योंकि यहोवा तुम्हारे परमेश्वर ने तुमको आशीर्वाद दिया है।

8 “उस समय तुम्हें उसी प्रकार उपासना करते नहीं रहना चाहिए जिस प्रकार हम उपासना करते आ रहे हैं। अभी तक हममें से हर एक जैसा चाहे परमेश्वर की उपासना कर रहा था। 9 क्यों? क्योंकि अभी तक हम उस शान्त देश में नहीं पहुँचे थे जिसे यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें दे रहा है। 10 लेकिन तुम यरदन नदी को पार करोगे और उस देश में रहोगे जिसे यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें दे रहा है। वहाँ यहोवा तुम्हें सभी शत्रुओं से चैन से रहने देगा और तुम सुरक्षित रहोगे। 11 तब यहोवा अपने लिये विशेष स्थान चुनेगा वह वहाँ अपना नाम प्रतिष्ठित करेगा और तुम उन सभी चीजों को वहीं लाओगे जिनके लिए मैं आदेश दे रहा हूँ। वहीं तुम अपनी होमबलि, अपनी बलियाँ, दशमांश, अपनी विशेष भेंट, यहोवा को वचन दी गई भेंट, अपनी स्वेच्छा भेंट और अपने मवेशियों के झुण्ड एवं रेवड़ का पहलौठा बच्चा लाओ। 12 उस स्थान पर तुम अपने सभी लोगों, अपने बच्चों, सभी सेवकों और अपने नगर में रहने वाले सभी लेवीवंशियों के साथ इकट्ठे होओ। (ये लेवीवंशी अपने लिए भूमि का कोई भाग नहीं पाएंगे।) यहोवा अपने परमेश्वर के साथ वहाँ आनन्द मनाओ। 13 सावधानी बरतो कि तुम अपनी होमबलियों को जहाँ देखो वहाँ न चढ़ा दो। 14 तुम्हारे परिवार समूहों में से किसी एक के क्षेत्र में यहोवा अपना विशेष स्थान चुनेगा। वहाँ अपनी होमबलि चढ़ाओ और तुम्हें बताए गए सभी अन्य काम वहीं करो।

15 “जिस किसी जगह तुम रहो तुम नीलगाय या हिरन जैसे अच्छे जानवरों को मारकर खा सकते हो। तुम उतना माँस खा सकते हो जितना तुम चाहो, जितना यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तम्हें दे। कोई भी व्यक्ति इस माँस को खा सकता है, चाहे वह पवित्र हो या अपवित्र। 16 लेकिन तुम्हें खून नहीं खाना चाहिए। तुम्हें खून को पानी की तरह जमीन पर बहा देना चाहिए।

17 “कुछ ऐसी चीजें है जिन्हें तुम्हें उन जगहों पर नहीं खाना चाहिए जहाँ तुम रहते हो। वे चीजें ये हैः परमेश्वर के हिस्से के तुम्हारे अन्न का कोई भाग, उसके हिस्से की नई दाखमधु और तेल का कोई भाग, तुम्हारे मवेशियों के झुण्ड या रेवड़ का पहलौठा बच्चा, परमेश्वर को वचन दी गई कोई भेंट, कोई स्वेच्छा भेंट या कोई भी परमेश्वर की अन्य भेंट। 18 तुम्हें उन भेंटों को केवल उसी स्थान पर खाना चाहिए जहाँ यहोवा तुम्हारा पमेश्वर तुम्हारे साथ हो। अर्थात् यहोवा तुम्हारा परमेश्वर जिस स्थान को चुने। तुम्हें वहीं जाना चाहिए और अपने पुत्रों, पुत्रियों, सभी सेवकों और तुम्हारे नगर में रहने वाले लेवीवंशियों के साथ मिलकर खाना चाहिए। यहोवा अपने परमेश्वर के साथ वहाँ आनन्द मनाओ। जिन चीज़ों के लिए काम किया है उनका आनन्द लो। 19 ध्यान रखो कि इन भोजनों को लेवीवंशियों के साथ बाँटकर खाओ। यह तब तक करो जब तक अपने देश में रहो।

20-21 “यहोवा तुम्हारे परमेश्वर ने यह वचन दिया है कि वह तुम्हारे देश की सीमा को और बढ़ाएगा। जब यहोवा ऐसा करेगा तो तुम उसके चुने हुए विशेष निवास से दूर रह सकते हो। यदि यह अत्यधिक दूर हो और तुम्हें माँस की भूख है तो तुम किसी भी प्रकार के माँस को, जो तुम्हारे पास है खा सकते हो। तुम यहोवा के दिये झुण्ड और रेवड़ में से किसी भी जानवर को मार सकते हो। यह वैसे ही करो जैसा करने का आदेश मैने दिया है। यह माँस, तुम जब चाहो जहाँ भी रहो, खा सकते हौ। 22 तुम इस माँस को वैसे ही खा सकते हो जैसे नीलगाय और हिरन का माँस खाते हो। कोई भी व्यक्ति यह कर सकता है चाहे वे लोग पवित्र हों या अपवित्र हों। 23 किन्तु निश्चय ही खून न खाओ। क्यों? क्योंकि खून में जीवन है और तुम्हें वह माँस नहीं खाना चाहिए जिसमें अभी जीवन हो। 24 खून मत खाओ। तुम्हें खून को पानी की तरह जमीन पर डाल देना चाहिए। 25 तुम्हें वह सब कुछ करना चाहिए जिसे परमेश्वर उचित ठहराता है। इसलिए खून मत खाओ। तब तुम्हारा और तुम्हारे वंशजों का भला होगा।

26 “जिन चीज़ों को तुमने अर्पित किया है और जो तुम्हारी वचन दी गई भेंटें हैं उन्हें उस विशेष स्थान पर ले जाना जिसे यहोवा तुम्हारा परमेश्वर चुनेगा। 27 तुम्हें अपनी होमबलि वहीं चढ़ानी चाहिए। अपनी होमबलि का मांस और रक्त यहोवा अपने परमेश्वर की वेदी पर चढ़ाओ। तब तुम माँस खा सकते हो। 28 जो आदेश मैं दे रहा हूँ उनके पालन में सावधान रहो। जब तुम वह सब कुछ करते हो जो अच्छा है और ठीक है, जो यहोवा तुम्हारे परमेश्वर को प्रसन्न करता है तब हर चीज तुम्हारे लिए तथा तुम्हारे वंशजों के लिए सदा भली रहेगी।

29 “जब तुम दूसरे राष्ट्रों के पास अपनी धरती को लेने जाओगे तो, यहोवा उन्हें हटने के लिए विवश करेगा तथा उन्हें नष्ट करेगा। तुम वहाँ जाओगे और उनसे भूमि लोगे। तुम उनकी भूमि पर रहोगे। 30 किन्तु ऐसा हो जाने के बाद सावधान रहो! वे राष्ट्र जिन देवताओं की पूजा करते हैं उन देवताओं के पास सहायता के लिए मत जाओ! यह सीखने की कोशिश न करो कि वे अपने देवताओं की पूजा कैसे करते हैं? वे जैसे पूजा करते हैं वैसे पूजा करने के बारे में न सोचो। 31 तुम यहोवा अपने परमेश्वर की वैसे उपासना नहीं करोगे जैसे वे अपने देवताओं की करते हैं। क्यों? क्योंकि वे अपनी पूजा में सब तरह की बुरी चीजें करते हैं जिनसे यहोवा घृणा करता है। वे अपने देवताओं की बलि के लिए अपने बच्चों को भी जला देते हैं।

32 “तुम्हें उन सभी कामों को करने के लिए सावधान रहना चाहिए जिनके लिए मैं आदेश देता हूँ। जो मैं तुमसे कह रहा हूँ उसमें न तो कुछ जोड़ो, न ही उसमें से कुछ कम करो।

समीक्षा

परमेश्वर की सामर्थ

यीशु ने सबसे पहले प्रेम और आज्ञा पालन को एक साथ नहीं जोड़ा था. यह मूसा को परमेश्वर द्वारा प्रेमपूर्वक दिया गया था. इसे प्रेम के लिए प्रतिक्रिया कहते हैं: ' इसलिये तू अपने परमेश्वर यहोवा से अत्यन्त प्रेम रखना, और जो कुछ उसने तुझे सौंपा है उसका, अर्थात उसी विधियों, नियमों, और आज्ञाओं का नित्य पालन करना' (11:1).

यह सुनिश्चित कर लें कि परमेश्वर के वचन आपके संपूर्ण व्यक्तित्व में व्याप्त हो जाए. 'इसलिये तुम मेरे ये वचन अपने अपने मन और प्राण में धारण किए रहना, और निशाने के तौर पर अपने हाथों पर बान्धना, ताकि वे तुम्हारी आंखों के मध्य में टीके का काम दें। और तुम घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते-उठते इनकी चर्चा करके अपने लड़के वालो को सिखाया करना' (वव.18-19).

परमेश्वर के वचन को जानें, सीखें और इन्हें अपने जीवन में कार्य में लाएं. खुले दिल से, ईमानदारी से और परमेश्वर के सत्य के प्रकाश में चलने से महान आशीषें मिलती हैं, जब वह इसमें अपने वचन को प्रकट करते हैं.

'यदि तुम मेरी आज्ञाओं को जो आज मैं तुम्हें सुनाता हूँ ध्यान से सुनकर, अपने सम्पूर्ण मन और सारे प्राण के साथ, अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम रखो और उसकी सेवा करते रहो' (व.13, वव, 22, 27 भी देखें). तो वह उन लोगों से अपनी आशीषों का वायदा करते हैं जो विश्वासयोग्यता से उनकी आज्ञा का पालन करते हैं.

आज्ञा का पालन करना बहुत ही भयानक और विनाशकारी है. मैं जानता हूँ कि मैं अपने जीवन में जान बूझकर पाप करता हूँ जो मुझे शर्म की ओर ले जाता है और मेरी शक्ति को नष्ट कर देता है. अंत में, हम परेशानी में पड़ जाते हैं. मूसा ने कहा है, ' इस कारण जितनी आज्ञाएं मैं आज तुम्हें सुनाता हूं उन सभी को माना करना, इसलिये कि तुम सामर्थी हो जाओ' (व.8). आज्ञा मानने से सामर्थी होने की आशीष मिलती है.

अच्छा चुनाव करें. परमेश्वर कहते हैं, 'सुनो, मैं आज के दिन तुम्हारे आगे आशीष और श्राप दोनों रख देता हूँ' (व.26). यदि तुम आज्ञाओं को न मानोगे तो तुम पर श्राप पड़ेगा. यदि तुम उनकी आज्ञाओं को मानोगे, तो यह उनकी आशीषों के लिए एक चुंबक ठहरेगा. बुद्धिमानी इसी में है कि आज आप वही करें जो आपको बाद में संतुष्टी दे.

परमेश्वर की आज्ञा न मानने की इच्छा बारबार होती है क्योंकि हम अपने आसपास के लोगों को ऐसा ही करते हुए देखते हैं. मूसा हमें सावधान करते हैं, 'यह कहकर उनके देवताओं के सम्बन्ध में यह पूछपाछ न करना, कि उन जातियों के लोग अपने देवताओं की उपासना किस रीति से करते थे? मैं भी वैसी ही करूंगा' (12:30). वह आगे कहते हैं, 'जितनी बातों की मैं तुम को आज्ञा देता हूँ उन को चौकस हो कर माना करना; और न तो कुछ उन में बढ़ाना और न उन में से कुछ घटाना' (व.32).

प्रार्थना

प्रभु, मुझे पूरे दिल से और पूरे प्राण से आपसे प्रेम करने में और आपकी सेवा करने में और आपकी आज्ञाओं को मानने में मेरी मदद कीजिये. आज मुझे अपने प्रेम और सामर्थ से; तथा आनंद, खुशियाँ, विश्वासयोग्यता और बुद्धिमानी से भर दीजिये.

पिप्पा भी कहते है

व्यवस्थाविवरण 11:18-20

' तुम मेरे ये वचन अपने अपने मन और प्राण में धारण किए रहना, और चिन्हानी के लिये अपने हाथों पर बान्धना, ताकि वे तुम्हारी आंखों के मध्य में टीके का काम दें। और तुम घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते-उठते इनकी चर्चा करके अपने लड़के वालो को सिखाया करना। और इन्हें अपने अपने घर की चौखट के बाजुओं और अपने फाटकों के ऊपर लिखना.'

जब आप छोटे हैं तभी से वचन सीखें. (जब आप बड़े हो जाएंगे, तो यह ज्यादा मुश्किल होगा!) मैं ठीक से नहीं कह सकती कि मैंने अपने बच्चों को बाइबल सिखाने का काम अच्छी तरह से किया या नहीं. हालाँकि, मैंने फ्रिज पर प्रासंगिक वचन जरूर चिपकाए थे!

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संदर्भ

नोट्स:

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

एक साल में बाइबल

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