दिन 101

बुद्धि प्राप्त करने के सात तरीके

बुद्धि नीतिवचन 9:1-12
नए करार लूका 13:1-30
जूना करार व्यवस्था विवरण 13:1-14:29

परिचय

लॉरेंस ऑफ अरेबिया कभी सबसे सफल फिल्मों में से एक रही है. फिल्म का ज्यादातर हिस्सा टी.ई. लॉरेंस के अरेबिया में बिताए हुए समय से लिया गया है. वह ब्रिटिश पुरातत्वविद् शास्त्री, सेना का रणनीतिज्ञ (तीस की उम्र में कर्नल), जो कि विश्व युद्ध 1 के दौरान मध्य अरब में अपनी गतिविधियों के लिए जाना जाता है. लॉरेंस अपने वृत्तांत में बुद्धिमानी के विषय को जाँचता है, जिसे 1926 में लिखा गया था, द सेवेन पिलर्स ऑफ विज़डम.

अनुमानत:, आज के लेखांश में लॉरेंस के मन में यह था कि, ' बुद्धि ने अपना घर बनाया और उसके सातों खंभे गढ़े हुए हैं' (नीतिवचन 9:1). पवित्र शास्त्र में अक्सर सात की संख्या का प्रयोग पूर्ति (समाप्ति) और पराकाष्ठा को दर्शाने के लिए किया गया है. नीतिवचन की पुस्तक में, यीशु की शिक्षा और बाइबल में सामान्य रूप से हम बुद्धि प्राप्त करने के कई तरीकें पाते हैं. इनमें से सात तरीकों को आज के लेखांश में देखा जा सकता है.

बुद्धि

नीतिवचन 9:1-12

सुबुद्धि और दुर्बुद्धि

9सुबुद्धि ने अपना घर बनाया है।
 उसने अपने सात खम्भे गढ़े हैं।
2 उसने अपना भोजन तैयार किया और
 मिश्रित किया अपना दाखमधु
 अपनी खाने की मेज पर सजा ली है।
3 और अपनी दासियों को नगर के सर्वोच्च
 स्थानों से बुलाने को भेजा है।
4 “जो भी भोले भले हैं, यहाँ पर पधारें।
 ”जो विवेकी नहीं, वह उनसे यह कहती है,
5 “आओ, मेरा भोजन करो,
 और मिश्रित किया हुआ मेरा दाखमधु पिओ।
6 तुम अपनी दुर्बद्धि के मार्ग को छोड़ दो,
 तो जीवित रहोगे। तुम समझ—बूझ के मार्ग पर आगे बढ़ो।”

7 जो कोई उपहास करने वाले को,
 सुधारता है, अपमान को बुलाता है,
 और जो किसी नीच को समझाने डांटे वह गाली खाता है।
8 हँसी उड़ानेवाले को तुम कभी मत डाँटो,
 नहीं तो वह तुमसे ही घृणा करने लगेगा।
 किन्तु यदि तुम किसी विवेकी को डाँटो, तो वह तुमसे प्रेम ही करेगा।
9 बुद्धिमान को प्रबोधो, वह अधिक बुद्धिमान होगा,
 किसी धर्मी को सिखाओ, वह अपनी ज्ञान वृद्धि करेगा।

10 यहोवा का आदर करना सुबुद्धि को हासिल करने का पहिला कदम है,
 यहोवा का ज्ञान प्राप्त करना समझबूझ को पाने का पहिला कदम है।
11 क्योंकि मेरे द्वारा ही तेरी आयु बढ़ेगी, तेरे दिन बढ़ेंगे,
 और तेरे जीवन में वर्ष जुड़ते जोयेंगे।
12 यदि तू बुद्धिमान है, सदबुद्धि तुझे प्रतिफल देगी।
 यदि तू उच्छृंखल है, तो अकेला कष्ट पायेगा।

समीक्षा

1. आलोचना में संभलन

जब हमारी आलोचना की जाती है, तब जो हमारा मजाक उड़ा रहे हैं उन्हें जवाब देने का कोई मतलब नहीं है (व.7). यदि हम ऐसा करेंगे तो वे हम से और भी नफरत करेंगे. लेकिन 'बुद्धिमानों' को जवाब देना योग्य है.

आलोचना के लिए हमारी प्रतिक्रिया , 'अपमान करना', 'गाली देना' या 'नफरत करना' नहीं होना चाहिये (वव.7-8). बजाय इसके, बल्कि और भी बुद्धिमान बनने के लिए हमें इससे सीखना चाहिये (व.9). अवश्य ही 'डांट' के प्रति हमारी प्रतिक्रिया और ज्यादा प्रेम होना चाहिये (व.8ब).

यह जरा भी आसान नहीं है – आलोचना के प्रति हमारी स्वाभाविक प्रतिक्रिया अक्सर उनकी घोर निन्दा करना या खुद को सही साबित करना होता है. फिर भी बुद्धिमानी का मार्ग है डांट या आदेश से सीखना, फिर वह चाहें कितने भी कठिन क्यों न हों.

उदाहरण के लिए, इतने सालों में मैंने देखा है कि वे सभी वक्ता जो अपने संदेश या प्रचार की आलोचना नहीं चाहते वे इसमें सुधार लाते हैं. जो रचनात्मक आलोचना का स्वागत करते हैं और इससे घबराते नहीं हैं वे तेजी से सुधार लाते हैं और इससे भी ज्यादा प्रभावशाली बन जाते हैं. परमेश्वर के साथ सही संबंध आपकी बुद्धि को बढ़ाएगा (व.10), और आपको रचनात्मक आलोचना सुनने में और इसके द्वारा आगे बढ़ने में सक्षम करेगा.

प्रार्थना

प्रभु, जब मैं आलोचना करूँ तो मुझे रचनात्मक बनने में बुद्धि दीजिये और जब मेरी आलोचना हो तो इसे ग्रहण करने में मुझे विनीत बनाइये.

नए करार

लूका 13:1-30

मन बदलो

13उस समय वहाँ उपस्थित कुछ लोगों ने यीशु को उन गलीलियों के बारे में बताया जिनका रक्त पिलातुस ने उनकी बलियों के साथ मिला दिया था। 2 सो यीशु ने उन से कहा, “तुम क्या सोचते हो कि ये गलीली दूसरे सभी गलीलियों से बुरे पापी थे क्योंकि उन्हें ये बातें भुगतनी पड़ीं? 3 नहीं, मैं तुम्हें बताता हूँ, यदि तुम मन नहीं, फिराओगे तो तुम सब भी वैसी ही मौत मरोगे जैसी वे मरे थे। 4 या उन अट्ठारह व्यक्तियों के विषय में तुम क्या सोचते हो जिनके ऊपर शीलोह के बुर्ज ने गिर कर उन्हें मार डाला। क्या सोचते हो, वे यरूशलेम में रहने वाले दूसरे सभी व्यक्तियों से अधिक अपराधी थे? 5 नहीं, मैं तुम्हें बताता हूँ कि यदि तुम मन न फिराओगे तो तुम सब भी वैसे ही मरोगे।”

निष्फल पेड़

6 फिर उसने यह दृष्टान्त कथा कही: “किसी व्यक्ति ने अपनी दाख की बारी में अंजीर का एक पेड़ लगाया हुआ था सो वह उस पर फल खोजता आया पर उसे कुछ नहीं मिला। 7 इस पर उसने माली से कहा, ‘अब देख मैं तीन साल से अंजीर के इस पेड़ पर फल ढूँढ़ता आ रहा हूँ किन्तु मुझे एक भी फल नहीं मिला। सो इसे काट डाल। यह धरती को यूँ ही व्यर्थ क्यों करता रहे?’ 8 माली ने उसे उत्तर दिया, ‘हे स्वामी, इसे इस साल तब तक छोड़ दे, जब तक मैं इसके चारों तरफ गढ़ा खोद कर इसमें खाद लगाऊँ। 9 फिर यदि यह अगले साल फल दे तो अच्छा है और यदि नहीं दे तो तू इसे काट सकता है।’”

सब्त के दिन स्त्री को निरोग करना

10 किसी आराधनालय में सब्त के दिन यीशु जब उपदेश दे रहा था 11 तो वहीं एक ऐसी स्त्री थी जिसमें दुष्ट आत्मा समाई हुई थी। जिसने उसे अठारह बरसों से पंगु बनाया हुआ था। वह झुक कर कुबड़ी हो गयी थी और थोड़ी सी भी सीधी नहीं हो सकती थी। 12 यीशु ने उसे जब देखा तो उसे अपने पास बुलाया और कहा, “हे स्त्री, तुझे अपने रोग से छुटकारा मिला!” यह कहते हुए, 13 उसके सिर पर अपने हाथ रख दिये। और वह तुरंत सीधी खड़ी हो गयी। वह परमेश्वर की स्तुति करने लगी।

14 यीशु ने क्योंकि सब्त के दिन उसे निरोग किया था, इसलिये यहूदी आराधनालय का नेता क्रोध में भर कर लोगों से कहा, “काम करने के लिए छः दिन होते हैं सो उन्हीं दिनों में आओ और अपने रोग दूर करवाओ पर सब्त के दिन निरोग होने मत आओ।”

15 प्रभु ने उत्तर देते हुए उससे कहा, “ओ कपटियों! क्या तुममें से हर कोई सब्त के दिन अपने बैल या अपने गधे को बाड़े से निकाल कर पानी पिलाने कहीं नहीं ले जाता? 16 अब यह स्त्री जो इब्राहीम की बेटी है और जिसे शैतान ने अट्ठारह साल से जकड़ रखा था, क्या इसको सब्त के दिन इसके बंधनों से मुक्त नहीं किया जाना चाहिये था?” 17 जब उसने यह कहा तो उसका विरोध करने वाले सभी लोग लज्जा से गढ़ गये। उधर सारी भीड़ उन आश्चर्यपूर्ण कर्मों से जिन्हें उसने किया था, आनन्दित हो रही थी।

स्वर्ग का राज्य कैसा है?

18 सो उसने कहा, “परमेश्वर का राज्य कैसा है और मैं उसकी तुलना किससे करूँ? 19 वह सरसों के बीज जैसा है, जिसे किसी ने लेकर अपने बाग़ में बो दिया। वह बड़ा हुआ और एक पेड़ बन गया। फिर आकाश की चिड़ियाओं ने उसकी शाखाओं पर घोंसले बना लिये।”

20 उसने फिर कहा, “परमेश्वर के राज्य की तुलना मैं किससे करूँ? 21 यह उस ख़मीर के समान है जिसे एक स्त्री ने लेकर तीन भाग आटे में मिलाया और वह समूचा आटा ख़मीर युक्त हो गया।”

सँकरा द्वार

22 यीशु जब नगरों और गाँवों से होता हुआ उपदेश देता यरूशलेम जा रहा था। 23 तभी उससे किसी ने पूछा, “प्रभु, क्या थोड़े से ही व्यक्तियों का उद्धार होगा?”

उसने उससे कहा, 24 “सँकरे द्वार से प्रवेश करने को हर सम्भव प्रयत्न करो, क्योंकि मैं तुम्हें बताता हूँ कि भीतर जाने का प्रयत्न बहुत से करेंगे पर जा नहीं पायेंगे। 25 जब एक बार घर का स्वामी उठ कर द्वार बन्द कर देता है, तो तुम बाहर ही खड़े दरवाजा खटखटाते कहोगे, ‘हे स्वामी, हमारे लिये दरवाज़ा खोल दे!’ किन्तु वह तुम्हें उत्तर देगा, ‘मैं नहीं जानता तुम कहाँ से आये हो?’ 26 तब तुम कहने लागोगे, ‘हमने तेरे साथ खाया, तेरे साथ पिया, तूने हमारी गलियों में हमें शिक्षा दी।’ 27 पर वह तुमसे कहेगा, ‘मैं नहीं जानता तुम कहाँ से आये हो? अरे कुकर्मियों! मेरे पास से भाग जाओ।’

28 “तुम इब्राहीम, इसहाक, याकूब तथा अन्य सभी नबियों को परमेश्वर के राज्य में देखोगे किन्तु तुम्हें बाहर धकेल दिया जायेगा तो वहाँ बस रोना और दाँत पीसना ही होगा। 29 फिर पूर्व और पश्चिम, उत्तर और दक्षिण से लोग परमेश्वर के राज्य में आकर भोजन की चौकी पर अपना स्थान ग्रहण करेंगे। 30 ध्यान रहे कि वहाँ जो अंतिम हैं, पहले हो जायेंगे और जो पहले हैं, वे अंतिम हो जायेंगे।”

समीक्षा

2. तकलीफ की तरफ प्रतिक्रिया करना

इस लेखांश में हम दु:खी लोगों के लिए यीशु की प्रतिक्रिया दो अलग अलग तरीके से देखते हैं. जो लोग कष्ट में थे उनके लिए यीशु की प्रतिक्रिया हमेशा करूणापूर्ण रही है, क्योंकि हम उन्हें एक कुबड़ी स्त्री को चंगा करते हुए देखते हैं (वव.10-16). फिर भी यहाँ पर हम 'दु:ख उठाने' के बारे में उठे प्रश्नों के लिए यीशु की प्रतिक्रिया देखते हैं.

' उस समय कुछ लोग आ पहुंचे, और उससे उन गलीलियों की चर्चा करने लगे, जिन का लोहू पीलातुस ने उन्ही के बलिदानों के साथ मिलाया था' (व.1). कुछ लोग यीशु को यह पूछने के लिए आए कि, 'परमेश्वर दु:ख क्यों आने देते हैं?' 'क्या उनके कष्ट का कारण उनका पाप था?'

यीशु ने जवाब में असाधारण बुद्धिमानी दिखाई. तो दुनिया में ज्यादातर तकलीफें पाप के कारण आती हैं, और हम सब अपराधी हैं. फिर भी यीशु यह स्पष्ट करते हैं कि पाप और दु:ख उठाने के बीच कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है. ' क्या तुम समझते हो, कि ये गलीली, और सब गलीलियों से पापी थे कि उन पर ऐसी विपत्ति पड़ी? ' (वव.1-2). यीशु यह भी स्पष्ट करते हैं कि कोई जरूरी नहीं कि प्राकृतिक आपदा परमेश्वर की ओर से दंड है (वव.1-5).

फिर भी हमारे लिए यह उचित होगा कि हम खुद को जाँच लें, जब हम दु:खी हों, तो हमें उन लोगों का न्याय करने के प्रति सावधान रहना होगा जो कष्ट उठा रहे हैं. यीशु दु:ख उठाने के बारे में तार्किक स्पष्टीकरण देने में दिलचस्पी नहीं रखते थे. इसके बजाय, वह हमारी प्रतिक्रिया में दिलचस्पी रखते थे – 'जब कि तुम मन न फिराओ......' (व.3).

3. रोपना और छांटना

अंजीर के पेड़ (वव.6-9), राई का बीज और खमीर का दृष्टांत (वव.18-20) हमें यह बुद्धि देता है कि परमेश्वर के राज्य में चीजें कैसे बढ़ती हैं. हम चीजों को कब देखते हैं हमें चीजों को कब विकसित करना चाहिये, गतिविधियों को कब बंद करना चाहिये और परियोजनाओं को कब शुरू करना चाहिये.

परमेश्वर धैर्यवान हैं, लोगों को मन फिराने के लिए ज्यादा से ज्यादा समय देते हैं. अंजीर के पेड़ को काटने की इच्छा की प्रतिक्रिया में, वह व्यक्ति इसे एक मौका और देता है: ' सो आगे को फले तो भला, नहीं तो उसे काट डालना' (व.9).

कुंजी है 'फल उत्पन करते हुए देखना' (व. 6). उदाहरण के लिए, जब हम चर्च में अनेक सेविकाई देखते हैं, तो कुछ तो बहुत ही फलदायी होती हैं. बाकी की कम फलदायी होती हैं. जो कम फलदायी होते हैं उन्हें काट डालने की इच्छा होती है. फिर भी, यीशु हमें धैर्यवान बनने के लिए कहते हैं: ' सो अगले वर्ष फले तो भला!' (व.9अ). फिर भी यह सहनशीलता हमेशा बनी नहीं रहती – कभी कभी अफलदायी सेविकाई को काटने का समय आ जाता है, ' तो उसे काट डालना' (व.9ब).

राई के बीज (वव.18-19) और खमीर का दृष्टांत (व.20) हमें इस बात की याद दिलाता है, हालांकि परमेश्वर का राज्य शुरू में छोटा होता है, लेकिन समय बीतने पर यह बहुत विशाल हो जाता है. जब बीज बोया गया तो, यह बढ़कर पेड़ हो गया और आकाश के पक्षियों ने उसकी डालियों पर बसेरा किया (व.19). यह राज्य के बीज बोने के अत्यधिक महत्व को दर्शाता है (जिसमें चर्च स्थापित करना शामिल है). यह ऐसा सुझाव भी देता है कि हमें इस संभावना को पूरा होने का धैर्यपूर्वक इंतजार करना चाहिये.

4. यह जानना कि विरोध कब किया जाए

व्यक्तिगत रूप से, मुझे विरोध करना बहुत कठिन लगता है. यीशु के पास बुद्धि थी कि कब विरोध करना चाहिये. जिन लोगों ने यीशु की निंदा की थी, क्योंकि यीशु ने सबत के दिन उस स्त्री को चंगा किया था जो अठारह सालों से कुबड़ी थी, यीशु ने उनके पाखंड और दोहरे मापदंड को उजागर किया. यीशु ने उन लोगों को कर्मकांड की तुलना में दया के महत्व की याद दिलाई. यदि जानवरों के लिए उनका सिद्धांत यह है तो लोगों की देखभाल करने में उन्हें और कितना ज्यादा अनुसरण करना चाहिये (वव.15-16)!

यीशु का उत्तर शानदार तरीके से ज्ञानपूर्ण था. लोग इससे आनंदित हुए (व.17).

5. यीशु की ओर फिरना

जब किसी ने यीशु से पूछा; हे प्रभु, क्या उद्धार पाने वाले थोड़े हैं? (व.23), तो उन्होंने कहा 'सकेत द्वार से प्रवेश करने का यत्न करो, क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि बहुतेरे प्रवेश करना चाहेंगे, और न कर सकेंगे' (व.24). दूसरे शब्दों में, पहले दूसरों को न देखो, लेकिन पहले तुम परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने का ध्यान रखो. आप किसी दूसरों के बारे में नहीं जान सकते लेकिन आप खुद के बारे में निश्चिंत हो सकते हैं.

इस दृष्टांत में कई लोग स्वयं घर में प्रवेश नहीं कर पाए, जो कि परमेश्वर के राज्य को दर्शाता है. इसके पीछे कारण है – परमेश्वर के साथ उनके संबंध में कमी होना. घर के स्वामी ने, जो यीशु को दर्शाता है, दो बार अपने घर का द्वार बंद किया, 'मैं तुम्हें नहीं जानता, तुम कहां के हो?' (वव.25,27). परमेश्वर के राज्य का हिस्सा होने के कारण यह यीशु को जानने और उनकी ओर फिरने के बारे में है.

ऐसा प्रतीत होता है कि जिनके शामिल होने की अपेक्षा थी उन्हें शामिल नहीं किया गया, बल्कि ऐसा भी प्रतीत होता है कि जितने लोगों की अपेक्षा थी उससे भी ज्यादा लोग अंदर प्रवेश करेंगे: ' पूर्व और पच्छिम; उत्तर और दक्खिन से लोग आकर परमेश्वर के राज्य के भोज में भागी होंगे' (व.29). यीशु की ओर फिरना और उनका अनुसरण करना बुद्धिमानी का काम है, भले ही ऐसा महसूस हो कि हम तो अल्पसंख्यंक हैं.

प्रार्थना

प्रभु, आज मैं जो भी बातचीत करूँ और जो भी निर्णय लूँ उनमें बुद्धि के लिए प्रार्थना करता हूँ. कृपया मुझे अपनी पवित्र आत्मा से भर दीजिये और मुझे यीशु की बुद्धि दीजिये.

जूना करार

व्यवस्था विवरण 13:1-14:29

झूठे नबियों का क्या किया जाए

13“कोई नबी या स्वप्न फल ज्ञाता तुम्हारे पास आ सकता है। वह यह कह सकता है कि वह कोई दैवी चिन्ह या आश्चर्यकर्म दिखाएगा। 2 वह दैवी चिन्ह या आश्चर्यकर्म, जिसके बारे में उसने तुम्हें बताया है, वह सही हो सकता है। तब वह तुमसे कह सकता है कि तुम उन देवताओं का अनुसरण करो (जिन्हें तुम नहीं जानते।) वह तुमसे कह सकता है, ‘आओ हम उन देवताओं की सेवा करें!’ 3 उस व्यक्ति की बातों पर ध्यान मत दो। क्यों? क्योंकि यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हारी परीक्षा ले रहा है। वह यह जानना चाहता है कि तुम पूरे हृदय और आत्मा से उस से प्रेम करते हो अथवा नहीं। 4 तुम्हें यहोवा अपने परमेश्वर का अनुसरण करना चाहिए। तुम्हें उसका सम्मान करना चाहिए। यहोवा के आदेशों का पालन करो और वह करो जो वह कहता है। यहोवा की सेवा करो और उसे कभी न छोड़ो! 5 वह नबी या स्वप्न फल ज्ञाता मार दिया जाना चाहिए। क्यों? क्योंकि वह ही है जो तुमसे यहोवा तुम्हारे परमेश्वर की आज्ञा मानने से रोक रहा है। यहोवा एक ही है जो तुमको मिस्र से बाहर लाया। उसने तुमको वहाँ की दासता के जीवन से स्वतन्त्र किया। वह व्यक्ति यह कोशिश कर रहा है कि तुम यहोवा अपने परमेश्वर के आदेश के अनुसार जीवन मत बिताओ। इसलिए अपने लोगों से बुराई को दूर करने के लिए उस व्यक्ति को अवश्य मार डालना चाहिए।

6 “कोई तुम्हारे निकट का व्यक्ति गुप्त रूप से दूसरे देवताओं की पूजा के लिए तुम्हें सहमत कर सकता है। यह तुम्हारा अपना भाई, पुत्र, पुत्री, तुम्हारी प्रिय पत्नी या तुम्हारा प्रिय दोस्त हो सकता है। वह व्यक्ति कह सकता है, ‘आओ चलें, दूसरे देवताओं की सेवा करें।’ (ये वैसे देवता हैं जिन्हें तुमने और तुम्हारे पूर्वजों ने कभी नहीं जाना। 7 वे उन लोगों के देवता हैं जो तुम्हारे चारों ओर अन्य देशों में रहते हैं, कुछ समीप और कुछ बहुत दूर।) 8 तुम्हें उस व्यक्ति के साथ सहमत नहीं होना चाहिए। उसकी बात मत सुनो। उस पर दया न दिखाओ। उसे छोड़ना नहीं। उसकी रक्षा मत करो। 9-10 तुम्हें उसे मार डालना चाहिए। तुम्हें उसे पत्थरों से मार डालना चाहिए! पत्थर उठाने वालों में तुम्हें पहला होना चाहिए और उसे मारना चाहिए। तब सभी लोगों को उसे मार देने के लिए उस पर पत्थर फेंकना चाहिए। क्यों? क्योंकि उस व्यक्ति ने तुम्हें यहोवा तुम्हारे परमेश्वर से दूर हटाने का प्रयास किया। यहोवा केवल एक है जो तुम्हें मिस्र से लाया, जहाँ तुम दास थे। 11 तब इस्राएल के सभी लोग सुनेंगे और भयभीत होंगे और वे तुम्हारे बीच और अधिक इस प्रकार के बुरे काम नहीं करेंगे।

12 “यहोवा तुम्हारे परमेश्वर ने तुमको रहने के लिए नगर दिये हैं। कभी—कभी तुम नगरों में से किसी के बारे में बुरी खबर सुन सकते हो। तुम सुन सकते हो कि 13 तुम्हारे अपने राष्ट्रों में ही कुछ बुरे लोग अपने नगर के लोगों को बुरी बातों के लिए तैयार कर रहे हैं। वे अपने नगर के लोगों से कह सकते हैं, ‘आओ चलें, दूसरे देवताओं की सेवा करें।’ (ये ऐसे देवता होंगे जिन्हें तुमने पहले नहीं जाना होगा।) 14 यदि तुम ऐसी सूचना सुनो तो तुम्हें जहाँ तक हो सके यह जानने का प्रयत्न करना चाहिए कि यह सत्य है अथवा नहीं। यदि तुम्हें मालूम होता है कि यह सत्य है, यदि प्रमाणित कर सको कि सचमुच ऐसी भयंकर बात हुई, 15 तब तुम्हें उस नगर के लोगों को अवश्य दण्ड देना चाहिए वे सभी जान से मार डाले जाने चाहिए और उनके सभी मवेशियों को भी मार डालो। तुम्हें उस नगर के लोगों को पूरी तरह नष्ट कर देना चाहिए। 16 तब तुम्हें सभी कीमती चिजों को इकट्ठा करना चाहिए और उसे नगर के बीच ले जाना चाहिए और सब चीजों को नगर के साथ जला देना चाहिए। यह तुम्हारे परमेश्वर यहोवा के लिए होमबलि होगी। नगर को सदा के लिए राख का ढेर हो जाना चाहिए यह दुबारा नहीं बनाया जाना चाहिए। 17 उस नगर की हर एक चीज़ परमेश्वर को, नष्ट करने के लिए दी जानी चाहिए। इसलिए तुम्हें कोई चीज अपने लिए नहीं रखनी चाहिए। यदि तुम इस आदेश का पालन करते हो तो यहोवा तुम पर उतना अधिक क्रोधित होने से अपने को रोक लेगा। यहोवा तुम पर दया करेगा और तरस खायेगा। वह तुम्हारे राष्ट्र को वैसा बड़ा बनाएगा जैसा उसने तुम्हारे पूर्वजों को वचन दिया था। 18 यह तब होगा जब तुम यहोवा अपने परमेश्वर की बात सुनोगे अर्थात् यदि तुम उन आदेशों का पालन करोगे जिन्हें मैं तुम्हें आज दे रहा हूँ। तुम्हें वही करना चाहिए जिसे यहोवा तुम्हारा परमेश्वर उचित बताता है।

इस्राएली, यहोवा के विशेष लोग

14“तुम यहोवा अपने परमेश्वर के बच्चे हो। यदी कोई मरे तो तुम्हें अपने को शोक में पड़ा दिखाने के लिए स्वयं को काटना नहीं चाहिए। तुम्हें अपने सिर के अगले भाग के बाल नहीं कटवाने चाहिए। 2 क्यों? क्योंकि तुम अन्य लोगों से भिन्न हो। तुम यहोवा अपने परमेश्वर के विशेष लोग हो। उसने संसार के सभी लोगों में से, तुम्हें अपने विशेष लोगों के रूप मे चुना है।

इस्राएलियों का भोजन, जिसे खाने की अनुमति थी

3 “ऐसी कोई चीज न खाओ, यहोवा जिसे खाना बुरा कहता है। 4 तुम इन जानवरों को खा सकते होः गाय, भेड़, बकरी, 5 हिरन, नीलगाय, मृग, जंगली भेड़, जंगली बकरी, चीतल और पहाड़ी भेड़। 6 तुम ऐसे किसी जानवर को खा सकते हो जिसके खुर दो भागों मे बंटे हों और जो जुगाली करते हों। 7 किन्तु ऊँटों, खरगोशर या चहानी बिज्जू को न खाओ। ये जानवर जुगाली करते हैं किन्तु इनके खुर फटे नहीं होते। इसलिए ये जानवर तुम्हारे लिए शुद्ध भोजन नहीं हैं। 8 तुम्हें सूअर नहीं खाना चाहिए। उनके खुर फटे होते हैं, किन्तु वे जुगाली नहीं करते। इसलिए सूअर तुम्हारे लिए स्वछ भोजन नहीं है। सूअर का कोई माँस न खाओ और न ही मरे हुए सूअर को छुओ।

9 “तुम ऐसी कोई मछली खा सकते हो जिसके डैने और चोइटें हों। 10 किन्तु जल में रहने वाले किसी ऐसे प्राणी को न खाओ जिसके डैने और चोइटें न हों। ये तुम्हारे लिए शुद्ध भोजन नहीं हैं।

11 “तुम किसी शुद्ध पक्षी को खा सकते हो। 12-18 किन्तु इन पक्षियों में से किसी को न खाओ: चील, किसी भी तरह के गिद्ध, बज्जर्द, किसी प्रकार का बाज, कौवे, तीतर, समुद्री बत्तख, किसी प्रकार का उल्लू, पेलिकन, काँरमारँन्त सारस, किसी प्रकार का बगुला, नौवा या चमगादड़।

19 “पंख वाले कीड़े तुम्हारे लिए शुद्ध भोजन नहीं हैं। तुम्हें उनको नहीं खाना चाहिए। 20 किन्तु तुम किसी शुद्ध पक्षी को खा सकते हो।

21 “अपने आप मरे जानवर को न खाओ। तुम मरे जानवर को अपने नगर के विदेशी को दे सकते हो और वह उसे खा सकता है अथवा तुम मरे जानवर के विदेशी के हाथ बेच सकते हो। किन्तु तुम्हें मरे जानवर को स्वयं नहीं खाना चाहिए। क्यों? क्योंकि तुम यहोवा अपने परमेश्वर के हो। तुम उसके विशेष लोग हो।

“बकरी के बच्चे को उसकी माँ के दूध में न पकाओ।

मन्दिर को दिया जानेवाला दशमांश

22 “तुम्हें हर वर्ष अपने खेतों में उगाई गई फसल का दसवाँ भाग निश्चयपूर्वक बचाना चाहिए। 23 तब तुम्हें उस स्थान पर जाना चाहिए जिसे यहोवा अपना विशेष निवास चुनता है। वहाँ यहोवा अपने परमेश्वर के साथ अपनी फसल का दशमांश, अन्न का दसवाँ भाग, तुम्हारा नया दाखमधु, तुम्हारा तेल, झुण्ड और रेवड़ में उत्पन्न पहला बच्चा, खाना चाहिए। तब तुम यहोवा अपने परमेश्वर का सदा सम्मान करना सीखोगे। 24 किन्तु वह स्थान इतना दूर हो सकता है कि तुम वहाँ तक की यात्रा न कर सको। यह सम्भव है कि यहोवा ने फसल का जो वरदान दिया है उसका दसवाँ भाग तुम वहाँ न पहुँचा सको। यदि ऐसा होता है तो यह करोः 25 अपनी फसल का वह भाग बेच दो। तब उस धन को लेकर यहोवा द्वारा चुने गए विशेष स्थान पर जाओ। 26 उस धन का उपयोग जो कुछ तुम चाहो उसके खरीदने में करो—गाय, भेड़, दाखमधु या अन्य स्वादिष्ट पेय या कोई अन्य चीज़ जो तुम चाहते हो। तब तुम्हें और तुम्हारे परिवार को खाना चाहिए और योहवा अपने परमेश्वर के साथ वहाँ उस स्थान पर आनन्द मनाना चाहिए। 27 किन्तु अपने नगर में रहने वाले लेवीवंशियों की उपेक्षा न करो, क्यों कि उनके पास तुम्हारी तरह भूमि का हिस्सा नहीं है।

28 “हर तीन वर्ष के अन्त में अपनी उस साल की फसल का दशमांश एक जगह इकट्ठा करो। इस भोजन को अपने नगर में उस स्थान पर जमा करो जहाँ दूसरे लोग उसका उपयोग कर सकें। 29 यह भोजन लेवीवंशियों के लिए है, क्योंकि उनके पास अपनी कोई भूमि नहीं है। यह भोजन तुम्हारे नगर में उन लोगों के लिये भी है जिन्हें इसकी आवश्यकता है—विदेशी, अनाथ बच्चे और विधवायें। यदि तुम यह करते हो तो यहोवा तुम्हारा परमेश्वर सभी काम तुम जो कुछ करोगे उसके लिए आशीर्वाद देगा।

समीक्षा

6. भविष्यवाणी जाँचना

सच्चे और गलत भविष्यवक्ता के बीच फर्क जानने के लिए हमें बुद्धि की जरूरत है. आजकल 'भविष्यवक्ताओं' में केवल उन्हें ही शामिल नहीं किया जाता जो 'भविष्यवणी के वरदान' का उपयोग करते हैं बल्कि उन्हें भी जो 'प्रभु के नाम में' कहते हैं – जैसे पासवान, प्रचारक, शिक्षक और सुसमाचार का प्रचार करने वाले. इन सभी मामलों में, हमें सही और गलत के बीच फर्क पता करने की जरूरत है.

पुराने नियम के सही भविष्यवक्ता की जाँच इस लेखांश में मिलती है. यदि कोई भविष्यवक्ता चिन्ह और चमत्कार दिखा रहा हो तब भी, यदि वह ऐसा कहे कि ' आओ हम पराए देवताओं के अनुयायी हो कर, उनकी पूजा करें' तो लोगों को चेतावनी दी गई है कि: 'तब तुम उस भविष्यवक्ता के स्वप्न देखने वाले वचन पर कभी कान न धरना' (13:2-3). दूसरे शब्दों में, लोगों ने भविष्यवक्ताओं को उनकी शिक्षाओं द्वारा जाँचना चाहिये – कि वह उन्हें परमेश्वर की ओर ले जा रही हैं या उनसे दूर कर रही हैं. यीशु कहते हैं, ' उन के फलों से तुम उन्हें पहचानो' (मत्ती 7:15-23.

7. परमेश्वर का आदर करें

आप अपने 'प्रभु परमेश्वर' की संतान हैं (व्यवस्थाविवरण 14:1) और परमेश्वर के लोगों को प्रभु के लिए पवित्र बनने के लिए बुलाया गया है (व.2अ). आपको उनकी 'निज संपत्ती' होने के लिए चुना गया है (व.2ब). पुराने नियम में यह सख्त नियम थे कि आप क्या खा सकते हैं और क्या नहीं खा सकते. नये नियम के अंतर्गत, यीशु ने कहा है कि सभी भोजन शुद्ध हैं (मरकुस 7:19).

पुराने नियम की वाचा के अंतर्गत परमेश्वर का आदर करने का एक तरीका है – अपनी भेंट देने के द्वारा. देना एक आशीष है. परमेश्वर आपको आशीष देते हैं क्योंकि आप दूसरों को आशीष देते हैं और ताकि आप दूसरों को आशीष दे सकें (व.29क). परमेश्वर यहाँ खास तौर पर हमारे काम को आशीष देने का वायदा करते हैं (व.29). एक समाज के रूप में परमेश्वर का अपने लोगों के लिए दर्शन है कि वे एक दूसरे को सहारा देते रहें. जैसा कि हमने आज के नीति वचन के पठन में देखा, प्रभु का भय मानना 'बुद्धि का आरंभ है' (नीतिवचन 9:10). और 'यदि तू बुद्धिमान हो, तो बुद्धि का फल तू ही भोगेगा' (व.12).

प्रार्थना

प्रभु, आपको धन्यवाद कि मैं आपकी निज संपत्ति हूँ. मैं जो कुछ भी करूँ उसमें मुझे बुद्धि दीजिये.

पिप्पा भी कहते है

अत्यधिक शैक्षणिक योग्यता न होने पर भी, मैं इन वचनों से आराम पाती हूँ:

' जो कोई भोला हे वह मुड़ कर यहीं आए!....... भोलों का संग छोड़ो, और जीवित रहो, समझ के मार्ग में सीधे चलो.... परमेश्वर का भय मानना बुद्धि का आरम्भ है, ' (नीतिवचन 9:4,6,10).

मैं भोलों का संग छोड़कर, बुद्धिमान बनने का प्रयास कर रही हूँ!

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संदर्भ

नोट्स:

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

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