दिन 104

परमेश्वर कैसे हैं?

बुद्धि भजन संहिता 45:1-9
नए करार लूका 15:1-32
जूना करार व्यवस्था विवरण 19:1-20:20

परिचय

छ: साल की एक बच्ची एक दिन एक तस्वीर बना रही थी. शिक्षक ने उससे पूछा, 'तुम क्या बना रही हो?'. उस छोटी लड़की ने कहा, 'मैं परमेश्वर की तस्वीर बना रही हूँ.' शिक्षक को आश्चर्य हुआ और उसने पूछा, 'लेकिन कौन जानता है कि वह कैसे दिखते हैं!' छोटी लड़की ने तस्वीर बनाते हुए जवाब दिया, 'ये एक मिनट में पता चल जाएगा.'

एक साल में बाइबल का अध्ययन करने का एक फायदा यह है कि हमें परमेश्वर के स्वभाव और चरित्र की तस्वीर लगभग मिल जाती है और हमें काफी समझ मिल जाती है कि परमेश्वर कैसे हैं.

बुद्धि

भजन संहिता 45:1-9

संगीत निर्देशक के लिए शोकन्नीभ की संगत पर कोरह परिवार का एक कलात्मक प्रेम प्रगीत।

45सुन्दर शब्द मेरे मन में भर जाते हैं,
 जब मैं राजा के लिये बातें लिखता हूँ।
 मेरे जीभ पर शष्द ऐसे आने लगते हैं
 जैसे वे किसी कुशल लेखक की लेखनी से निकल रहे हैं।

2 तू किसी भी और से सुन्दर है!
 तू अति उत्तम वक्ता है।
 सो तुझे परमेश्वर आशीष देगा!
3 तू तलवा धारण कर।
 तू महिमित वस्त्र धारण कर।
4 तू अद्भुत दिखता है! जा, धर्म ओर न्याय का युद्ध जीत।
 अद्भुत कर्म करने के लिये शक्तिपूर्ण दाहिनी भुजा का प्रयोग कर।
5 तेरे तीर तत्पर हैं। तू बहुतेरों को पराजित करेगा।
 तू अपने शत्रुओं पर शासन करेगा।
6 हे परमेश्वर, तेरा सिंहासन अमर है!
 तेरा धर्म राजदण्ड है।
7 तू नेकी से प्यार और बैर से द्वेष करता है।
 सो परमेश्वर तेरे परमेश्वर ने तेरे साथियों के ऊपर
 तुझे राजा चुना है।
8 तेरे वस्त्र महक रहे है जैसे गंध रास, अगर और तेज पात से मधुर गंध आ रही।
 हाथी दाँत जड़ित राज महलों से तुझे आनन्दित करने को मधुर संगीत की झँकारे बिखरती हैं।
9 तेरी माहिलायें राजाओं की कन्याएँ है।
 तेरी महारानी ओपीर के सोने से बने मुकुट पहने तेरे दाहिनी ओर विराजती हैं।

समीक्षा

राजा यीशु

इब्रानियों की पुस्तक के लेखक इस भजन को यीशु के बारे में भविष्यवाणी के रूप में देखते हैं. वह लिखते हैं, 'लेकिन पुत्र के बारे में वह कहते हैं, "तेरा सिंहासन, हे परमेश्वर सदा सर्वदा बना रहेगा...."' (इब्रानियों 1:8-9 देखें, इस भजन के वचन 6-7 का उद्धरण).

यह सबसे स्पष्ट रुप है जहाँ नये नियम में यीशु को परमेश्वर आराधना के सच्चे विषय - के रूप में संबोधित करते हैं. यीशु अपेक्षित 'अभिषेकित राजा' की परिपूर्णता हैं, जो मसीहा के नाम से जाना जाता है. यीशु इन भविष्यवाणियों को पूरा करते हैं.

यीशु ने कहा है, 'जिस ने मुझे देखा है उस ने पिता को देखा है: तू क्यों कहता है कि पिता को हमें दिखा' (यूहन्ना 14:9). दूसरे शब्दों में, यदि आप जानना चाहते हैं कि परमेश्वर कैसे दिखते हैं, तो यीशु को देखिये.

'वह अनुग्रह से भरे हुए हैं' (भजन संहिता 45:2). इन वचनों में हम संपूर्ण त्रिएक्य की झलक देखते हैं ('परमेश्वर, तेरे परमेश्वर, भजन संहिता 45:7), पुत्र यीशु ('हे परमेश्वर, तेरा सिंहासन, व.6अ) और पवित्र आत्मा ('हर्ष का तेल', व.7ब, यशायाह 61:1,3 भी देखें).

प्रार्थना

राजा यीशु, ' सत्यता, नम्रता और धर्म के निमित्त अपने ऐश्वर्य और प्रताप पर सफलता से सवार हो; तेरा दहिना हाथ तुझे भयानक काम सिखलाए! ' (भजन संहिता 45:4अ).

नए करार

लूका 15:1-32

खोए हुए को पाने के आनन्द की दृष्टान्त-कथाएँ

15अब जब कर वसूलने वाले और पापी सभी उसे सुनने उसके पास आने लगे थे। 2 तो फ़रीसी और यहूदी धर्मशास्त्री बड़बड़ाते हुए कहने लगे, “यह व्यक्ति तो पापियों का स्वागत करता है और उनके साथ खाता है।”

3 इस पर यीशु ने उन्हें यह दृष्टान्त कथा सुनाई: 4 “मानों तुममें से किसी के पास सौ भेड़ें हैं और उनमें से कोई एक खो जाये तो क्या वह निन्यानबे भेड़ों को खुले में छोड़ कर खोई हुई भेड़ का पीछा तब तक नहीं करेगा, जब तक कि वह उसे पा न ले। 5 फिर जब उसे भेड़ मिल जाती है तो वह उसे प्रसन्नता के साथ अपने कन्धों पर उठा लेता है। 6 और जब घर लौटता है तो अपने मित्रों और पड़ोसियों को पास बुलाकर उनसे कहता है, ‘मेरे साथ आनन्द मनाओ क्योंकि मुझे मेरी खोयी हुई भेड़ मिल गयी है।’ 7 मैं तुमसे कहता हूँ, इसी प्रकार किसी एक मन फिराने वाले पापी के लिये, उन निन्यानबे धर्मी पुरुषों से, जिन्हें मन फिराने की आवश्यकता नहीं है, स्वर्ग में कहीं अधिक आनन्द मनाया जाएगा।

8 “या सोचो कोई औरत है जिसके पास दस चाँदी के सिक्के हैं और उसका एक सिक्का खो जाता है तो क्या वह दीपक जला कर घर को तब तक नहीं बुहारती रहेगी और सावधानी से नहीं खोजती रहेगी जब तक कि वह उसे मिल न जाये? 9 और जब वह उसे पा लेती है तो अपने मित्रों और पड़ोसियों को पास बुला कर कहती है, ‘मेरे साथ आनन्द मनाओ क्योंकि मेरा सिक्का जो खो गया था, मिल गया है।’ 10 मैं तुमसे कहता हूँ कि इसी प्रकार एक मन फिराने वाले पापी के लिये भी परमेश्वर के दूतों की उपस्थिति में वहाँ आनन्द मनाया जायेगा।”

भटके पुत्र को पाने की दृष्टान्त-कथा

11 फिर यीशु ने कहा: “एक व्यक्ति के दो बेटे थे। 12 सो छोटे ने अपने पिता से कहा, ‘जो सम्पत्ति मेरे बाँटे में आती है, उसे मुझे दे दे।’ तो पिता ने उन दोनों को अपना धन बाँट दिया।

13 “अभी कोई अधिक समय नहीं बीता था, कि छोटे बेटे ने अपनी समूची सम्पत्ति समेंटी और किसी दूर देश को चल पड़ा। और वहाँ जँगलियों सा उद्दण्ड जीवन जीते हुए उसने अपना सारा धन बर्बाद कर डाला। 14 जब उसका सारा धन समाप्त हो चुका था तभी उस देश में सभी ओर व्यापक भयानक अकाल पड़ा। सो वह अभाव में रहने लगा। 15 इसलिये वह उस देश के किसी व्यक्ति के यहाँ जाकर मज़दूरी करने लगा उसने उसे अपने खेतों में सुअर चराने भेज दिया। 16 वहाँ उसने सोचा कि उसे वे फलियाँ ही पेट भरने को मिल जायें जिन्हें सुअर खाते थे। पर किसी ने उसे एक फली तक नहीं दी।

17 “फिर जब उसके होश ठिकाने आये तो वह बोला, ‘मेरे पिता के पास कितने ही ऐसे मज़दूर हैं जिनके पास खाने के बाद भी बचा रहता है, और मैं यहाँ भूखों मर रहा हूँ। 18 सो मैं यहाँ से उठकर अपने पिता के पास जाऊँगा और उससे कहूँगा: पिताजी, मैंने स्वर्ग के परमेश्वर और तेरे विरुद्ध पाप किया है। 19 अब आगे मैं तेरा बेटा कहलाने योग्य नहीं रहा हूँ। मुझे अपना एक मज़दूर समझकर रख ले।’ 20 सो वह उठकर अपने पिता के पास चल दिया।

छोटे पुत्र का लौटना

“अभी वह पर्याप्त दूरी पर ही था कि उसके पिता ने उसे देख लिया और उसके पिता को उस पर बहुत दया आयी। सो दौड़ कर उसने उसे अपनी बाहों में समेट लिया और चूमा। 21 पुत्र ने पिता से कहा, ‘पिताजी, मैंने तुम्हारी दृष्टि में और स्वर्ग के विरुद्ध पाप किया है, मैं अब और अधिक तुम्हारा पुत्र कहलाने योग्य नहीं हूँ।’

22 “किन्तु पिता ने अपने सेवकों से कहा, ‘जल्दी से उत्तम वस्त्र निकाल लाओ और उन्हें इसे पहनाओ। इसके हाथ में अँगूठी और पैरों में चप्पल पहनाओ। 23 कोई मोटा ताजा बछड़ा लाकर मारो और आऔ उसे खाकर हम आनन्द मनायें। 24 क्योंकि मेरा यह बेटा जो मर गया था अब जैसे फिर जीवित हो गया है। यह खो गया था, पर अब यह मिल गया है।’ सो वे आनन्द मनाने लगे।

बड़े बेटे की शिकायत

25 “अब उसका बड़ा बेटा जो खेत में था, जब आया और घर के पास पहुँचा तो उसने गाने नाचने के स्वर सुने। 26 उसने अपने एक सेवक को बुलाकर पूछा, ‘यह सब क्या हो रहा है?’ 27 सेवक ने उससे कहा, ‘तेरा भाई आ गया है और तेरे पिता ने उसे सुरक्षित और स्वस्थ पाकर एक मोटा सा बछड़ा कटवाया है!’

28 “बड़ा भाई आग बबूला हो उठा, वह भीतर जाना तक नहीं चाहता था। सो उसके पिता ने बाहर आकर उसे समझाया बुझाया। 29 पर उसने पिता को उत्तर दिया, ‘देख मैं बरसों से तेरी सेवा करता आ रहा हूँ। मैंने तेरी किसी भी आज्ञा का विरोध नहीं किया, पर तूने मुझे तो कभी एक बकरी तक नहीं दी कि मैं अपने मित्रों के साथ कोई आनन्द मना सकता। 30 पर जब तेरा यह बेटा आया जिसने वेश्याओं में तेरा धन उड़ा दिया, उसके लिये तूने मोटा ताजा बछड़ा मरवाया।’

31 “पिता ने उससे कहा, ‘मेरे पुत्र, तू सदा ही मेरे पास है और जो कुछ मेरे पास है, सब तेरा है। 32 किन्तु हमें प्रसन्न होना चाहिए और उत्सव मनाना चाहिये क्योंकि तेरा यह भाई, जो मर गया था, अब फिर जीवित हो गया है। यह खो गया था, जो फिर अब मिल गया है।’”

समीक्षा

प्रेमी पिता

परमेश्वर आपसे भाव प्रवणता से, पूरे दिल से और बिना किसी शर्त के प्रेम करते हैं. मगर चाहें आपके जीवन में कितनी भी गड़बड़ी क्यो न हुई हो, कितना भी पछतावा क्यों न हो, परमेश्वर की ओर फिरने में अब भी देरी नहीं हुई है. वह आपको स्वीकार करेंगे और आपको गले लगाएंगे जैसे प्रेमी पिता अपने खोए हुए पुत्र को गले लगाता है.

यीशु ने धार्मिक गुरूओं को अचंभित किया और उनका विरोध किया: 'फरीसी और शास्त्री कुड़कुड़ा कर कहने लगे, कि यह तो पापियों से मिलता है और उन के साथ खाता भी है। तब उस ने उन से यह दृष्टान्त कहा' (वव.2-3).

फिर यीशु तीन दृष्टांत बताते हैं जो यह बताता है कि परमेश्वर खोए हुओं का बेसब्री से ख्याल करते हैं. यदि आपका कुछ कीमती सामान खो गया है, और आपके व्यग्रतापूर्वक ढूँढने के बाद यह आपको मिल जाता है, तो आप उस आनंद को हमेशा याद रखेंगे जब वह खोई हुई चीज आपको मिली थी. यीशु कहते हैं कि स्वर्ग के आनंद की तुलना में यह आनंद कुछ भी नहीं है.

खोई हुई भेंड का दृष्टांत यह बताता है कि 'इसी रीति से एक मन फिराने वाले पापी के विषय में भी स्वर्ग में इतना ही आनन्द होगा' (व.7). खोए हुए सिक्के का दृष्टांत बताता है कि, 'इसी रीति से एक मन फिराने वाले पापी के विषय में परमेश्वर के स्वर्गदूतों के सामने आनन्द होता है' (व.10).

फिर शायद छोटी कहानियों में से सबसे बड़ी कहानी में यीशु आश्चर्यचकित करने वाला एक और प्रकाशन देते हैं कि परमेश्वर एक प्रेमी पिता के समान हैं.

छोटा पुत्र पिता की संपत्ति में से अपना भाग मांगता है जबकि वह पिता अब भी जीवित हैं और स्वस्थ हैं. मध्य अरब की परंपरा के अनुसार यह ऐसा कहने के बराबर है कि, 'पिता, मैं तुम्हारे मरने की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा हूँ!' एक मध्य अरब का एक पारंपरिक पिता उसे अपने घर से निकाल देता है. यह एक चौंका देने वाला निवेदन था, जिसके बारे में यह अपेक्षा की जाती है कि पिता इससे इंकार कर देगा.

लेकिन असाधारण प्रेम के कारण, पिता इस परंपरा को तोड़ देता है और अपने बेटे को अपनी संपत्ति बेच देने की आजादी देता है (इससे पूरे समाज में इस परिवार की बदनामी होगी). बेटा इसे 'धन में बदल देता है' (व.13). फिर वह अलग होकर जल्दी से शहर छोड़ देता है.

आज कई सारे लोगों ने, जिसमें मैं भी शामिल हूँ, अपने पिता से दूर रहकर वही अनुभव किया है जैसा कि छोटे बेटे ने किया था. वह अपना जीवन व्यर्थ गंवा रहा था (' उसने कुकर्म में अपनी संपत्ति उड़ा दी' व.13). वह गुलाम बन गया था ('खुद नौकरी करने लगा था', व.15). उसने अंदर से खोखलापन महसूस किया (' वह चाहता था, कि उन फलियों से जिन्हें सूअर खाते थे अपना पेट भरे', व.16). वह अपनी दुनिया में अकेला महसूस करने लगा (' उसे कोई कुछ नहीं देता था', व.16).

परमेश्वर की ओर फिरना कोई मूर्खतापूर्ण कार्य नहीं है. यह बिल्कुल विपरीत है – ' वह अपने होश में आया' (व.17). बेटे को एहसास हुआ कि उसे मदद की जरूरत है. उसने अपने घमंड का घूंट पीकर अपने पिता के पास वापस जाने का निर्णय लिया (व.18). वह जान गया कि उसे घर जाना ही पड़ेगा. वह अपने पाप कबूल करने के लिए तैयार था. वह अपने पिता से यह कहने के लिए तैयार था कि, ' पिता जी मैं ने स्वर्ग के विरोध में और तेरी दृष्टि में पाप किया है।मैं अब इस योग्य नहीं रहा कि तेरा पुत्र कहलाऊं, मुझे अपने एक मजदूर की नाईं रख ले' (वव.18-19).

हमें विश्वास का कदम बढ़ाने की जरूरत है: 'तब वह उठकर, अपने पिता के पास चला' (व.20). वह नहीं जानता था कि क्या होगा. यीशु के समय में, एक यहूदी लड़का जो अपने परिवार की विरासत गंवा देता है उसे उसके गांववालों द्वारा दंड दिया जाता था और उन्हें जिद्दी बेटे से कुछ लेना देना नहीं होता था.

परमेश्वर का प्रेम असाधारण है, और यह आपकी कल्पना से परे है. हमें अपमान मिलने के बजाय हमें क्षमा और प्यार मिलता है. जब कि वह बेटा अभी दूर ही था, कि उसके पिता ने उसे देखकर तरस खाया, और दौड़कर उसे गले लगाया, और बहुत चूमा। (वव.20). यहाँ इस शब्द का तात्पर्य यह है कि उसने उसे बारबार चूमा. परमेश्वर हमें इसी तरह ग्रहण करते हैं.

जैसे ही उसके बेटे ने पश्चाताप का भाषण शुरू किया, उसके पिता ने उसे बीच में ही टोक दिया. 'पिता ने अपने दासों से कहा; जल्दी से अच्छे से अच्छा वस्त्र निकालकर उसे पहिनाओ, (व.22). और उसके हाथ में अंगूठी, और पांवों में जूतियां पहिनाओ (व.22). और पला हुआ बछड़ा लाकर मारो ताकि हम खांए और आनन्द मनायें।
24 क्योंकि मेरा यह पुत्र मर गया था, फिर जी गया है : खो गया था, अब मिल गया है: और वे आनन्द करने लगे' (वव.23-24).

यहाँ हमें एक छवि मिलती है कि परमेश्वर कैसे हैं और वह हमसे कितना प्यार करते हैं. फिर से, हम स्वर्ग राज्य की तस्वीर एक उत्सव मनाने के रूप में देखते हैं. यह लोगों की सोच के विपरीत है. वे परमेश्वर के साथ संगीत और नृत्य में तथा दावत में और आनंद मनाने में शामिल नहीं होते.

परमेश्वर जेठे पुत्र से भी प्यार करते हैं, ' वह क्रोध से भर गया' (व.28) और अपने भाई को मिली क्षमा और स्वीकृति पर ईर्ष्या करने लगा. आप कल्पना कर सकते हैं पिता उसे अपने गले लगाकर कहते हैं, 'पुत्र, तू सर्वदा मेरे साथ है; और जो कुछ मेरा है वह सब तेरा ही है।
32 परन्तु अब आनन्द करना और मगन होना चाहिए क्योंकि यह तेरा भाई मर गया था अब फिर से जी गया है; खो गया था, अब मिल गया है' (वव.31-32).

यह कहानी (धार्मिक गुरूओं को सुनाई गई) जिसका अंत अनिश्चित है – कि जेठा पुत्र अपने पिता के प्यार की प्रतिक्रिया किस प्रकार करेगा?

प्रार्थना

पिता, आपको धन्यवाद कि आप मुझ से बेहद प्रेम करते हैं और जब मैं गड़बड़ी करता हूँ तब भी मुझे तिरस्कृत नहीं करते. जिस क्षण मैं पश्चाताप करता हूँ और आपके पास वापस आता हूँ, आप मुझे यह कहकर स्वीकार कर लेते हैं, 'आओ हम खांए और आनन्द मनायें' (व.23).

जूना करार

व्यवस्था विवरण 19:1-20:20

सुरक्षा के लिए तीन नगर

19“यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुमको वह देश दे रहा है जो दूसरे राष्ट्रों का है। यहोवा उन राष्ट्रों को नष्ट करेगा। तुम वहाँ रहोगे जहाँ वे लोग रहते हैं। तुम उनके नगर और घरों को लोगे। जब ऐसा हो, 2-3 तब तुम्हें भूमि को तीन भागों में बाँटना चाहिए। तब तुम्हें हर एक भाग में सभी लोगों के समीप पड़ने वाला नगर उस क्षेत्र में चुनना चाहिए और तुम्हें उन नगरों तक सड़कें बनानी चाहिए तब कोई भी व्यक्ति जो किसी दूसरे व्यक्ति को मारता है वहाँ भागकर जा सकता है।

4 “जो व्यक्ति किसी को मारता है और सुरक्षा के लिए इन तीन नगरों में से कहीं भागकर पहुँचता है उस व्यक्ति के लिए नियम यह हैः यह व्यक्ति वही हो जो संयोगवश किसी व्यक्ति को मार डाले। यह वही व्यक्ति हो जो मारे गए व्यक्ति से घृणा न करता हो। 5 एक उदाहरण हैः कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति के साथ जंगल में लकड़ी काटने जाता है। उस में से एक व्यक्ति लकड़ी काटने के लिए कुल्हाड़ी को एक पेड़ पर चलाता है, किन्तु कुल्हाड़ी दस्ते से निकल जाती है। कुल्हाड़ी दूसरे व्यक्ति को लग जाती है और उसे मार डालती है। वह व्यक्ति, जिसने कुल्हाड़ी चलाई, उन नगरों में भाग सकता है और अपने को सुरक्षित कर सकता है। 6 किन्तु यदि नगर बहुत दूर होगा तो वह काफी तेज भाग नहीं सकेगा। मारे गए व्यक्ति का कोई सम्बन्धी उसका पीछा कर सकता है और नगर में उसके पहुँचने से पहले ही उसे पकड़ सकता है। सम्बन्धी बहुत क्रोधित हो सकता है और उस व्यक्ति की हत्या कर सकता है। किन्तु उस व्यक्ति को प्राण—दण्ड उचित नहीं है। वह उस व्यक्ति से घृणा नहीं करता था जो उसके हाथों मारा गया। 7 इसलिए मैं आदेश देता हूँ कि तीन विशेष नगरों को चुनो। यह नगर सबके लिए बन्द रहेंगे।

8 “यहोवा तुम्हारे परमेश्वर ने तुम्हारे पूर्वजों को यह वचन दिया कि मैं तुम लोगों की सीमा का विस्तार करूँगा। वह तुम लोगों को सारा देश देगा जिसे देने का वचन उसने तुम्हारे पूर्वजों को दिया। 9 वह यह करेगा, यदि तुम उन आदेशों का पालन पूरी तरह करोगे, जिन्हें मैं तुम्हें आज दे रहा हूँ अर्थात् यदि तुम यहोवा अपने परमेश्वर से प्रेम करोगे और उसके मार्ग पर चलते रहोगे। तब यदि यहोवा तुम्हारे देश को बड़ा बनाता है तो तुम्हें तीन अन्य नगर सुरक्षा के लिए चुनने चाहिए। वे प्रथम तीन नगरों के साथ जोड़े जाने चाहिए। 10 तब निर्दोष लोग उस देश में नहीं मारे जाएंगे जिसे यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें अपना बनाने के लिये दे रहा है और तुम किसी भी मृत्यु के लिये अपराधी नहीं होगे।

11 “किन्तु एक व्यक्ति किसी व्यक्ति से घृणा कर सकता है। वह व्यक्ति उस व्यक्ति को मारने के लिए प्रतीक्षा में छिपा रह सकता है जिसे वह घृणा करता है। वह उस व्यक्ति को मार सकता है और सुरक्षा के लिए चुने इन नगरों में भागकर पहुँच सकता है। 12 यदि ऐसा होता है तो उस व्यक्ति के नगर के बुजुर्ग किसी को उसे पकड़ने और सुरक्षा के नगर से बाहर लाने के लिए भेज सकते हैं। नगर के मुखिया तथा वरिष्ठ व्यक्ति उसे उस सम्बन्धी को देंगे जिसका कर्तव्य उसको दण्ड देना है। हत्यारा अवश्य मारा जाना चाहिए। 13 उसके लिए तुम्हें दुःखी नहीं होना चाहिए। तुम्हें निर्दोष लोगों को मारने के अपराध से इस्राएल को स्वच्छ रखना चाहिए। तब सब कुछ तुम्हारे लिए अच्छा रहेगा।

सीमा चिन्ह

14 “तुम्हें अपने पड़ोसी के सीमा—चिन्हों को नहीं हटाना चाहिए। बीते समय में लोग यह सीमा—चिन्ह उस भूमि पर बनाते थे जिसे यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें रहने के लिए देगा और जो तुम्हारी होगी।

गवाह

15 “यदि किसी व्यक्ति पर नियम के खिलाफ कुछ करने का मुकदमा हो तो एक गवाह इसे प्रमाण करने के लिए काफी नहीं होगा कि वह दोषी है। उसने निश्चय ही बुरा किया है इसे प्रमाणित करने के लिए दो या तीन गवाह होने चाहिए।

16 “कोई गवाह किसी व्यक्ति को झूठ बोलकर और यह कहकर कि उसने अपराध किया है उसे हानि पहुँचाने की कोशिश कर सकता है। 17 यदि ऐसा होता है तो आपस में वाद करने वाले व्यक्तियों को यहोवा के आवास पर जाना चाहिए और उनके मुकदमे का निर्णय याजकों एवं उस समय के मुख्य न्यायाधीशों द्वारा होना चाहिए। 18 न्यायाधीशों को सावधानी के साथ प्रश्न पूछने चाहिए। वे पता लगा सकते हैं कि गवाह ने दूसरे व्यक्ति के खिलाफ झूठ बोला है। यदि गवाह ने झूठ बोला है तो, 19 तुम्हें उसे दण्ड देना चाहिए। तुम्हें उसे वही हानि पहुँचानी चाहिए जो वह दूसरे व्यक्ति को पहुँचाना चाहता था। इस प्रकार तुम अपने बीच से कोई भी बुरी बात निकाल बाहर कर सकते हो। 20 दूसरे सभी लोग इसे सुनेंगे और भयभीत होंगे और कोई भी फिर वैसी बुरी बात नहीं करेगा।

21 “तुम उस पर दया—दृष्टि न करना जिसे बुराई के लिए तुम दण्ड देते हो। जीवन के लिये जीवन, आँख के लिये आँख, दाँत के लिये दाँत, हाथ के लिये हाथ और पैर के लिये पैर लिया जाना चाहिए।

युद्ध के लिये नियम

20“जब तुम अपने शत्रुओं के विरुद्ध युद्ध में जाओ, और अपनी सेना से अधिक घोड़े, रथ, व्यक्तियों को देखो, तो तुम्हें भयभीत नहीं होना चाहिए। क्यों? क्योंकि यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हारे साथ है और वही एक है जो तुम्हें मिस्र से बाहर निकाल लाया।

2 “जब तुम युद्ध के निकट पहुँचो, तब याजक को सैनिकों के पास जाना चाहिए और उनसे बात करनी चाहिए। 3 याजक कहेगा, ‘इस्राएल के लोगो, मेरी बात सुनो! आज तुम लोग अपने शत्रुओं के विरुद्ध युद्ध में जा रहे हो। अपना साहस न छोड़ो! परेशान न हो या घबराहट में न पड़ो! शत्रु से डरो नहीं! 4 क्यों? क्योंकि यहोवा तुम्हारा परमेश्वर शत्रुओं के विरुद्ध लड़ने के लिये तुम्हारे साथ जा रहा है। यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हारी रक्षा करेगा!’

5 “वे लेवीवंशी अधिकारी सैनिकों से यह कहेंगे, ‘क्या यहाँ कोई ऐसा व्यक्ति है जिसने अपना नया घर बना लिया है, किन्तु अब तक उसे अर्पित नहीं किया है? उस व्यक्ति को अपने घर लौट जाना चाहिए। वह युद्ध में मारा जा सकता है और तब दूसरा व्यक्ति उसके घर को अर्पित करेगा। 6 क्या कोई व्यक्ति यहाँ ऐसा है जिसने अंगूर के बाग लगाये हैं, किन्तु अभी तक उससे कोई अंगूर नहीं लिया है? उस व्यक्ति को घर लौट जाना चाहिए। यदि वह व्यक्ति युद्ध में मारा जाता है तो दूसरा व्यक्ति उसके बाग के फल का भोग करेगा। 7 क्या यहाँ कोई ऐसा व्यक्ति है जिसके विवाह की बात पक्की हो चुकी है। उस व्यक्ति को घर लौट जाना चाहिए। यदि वह युद्ध में मारा जाता है तो दूसरा व्यक्ति उस स्त्री से विवाह करेगा जिसके साथ उसके विवाह की बात पक्की हो चुकी है।’

8 “वे लेवीवंशी अधिकारी, लोगों से यह भी कहेंगे, ‘क्या यहाँ कोई ऐसा व्यक्ति है जो साहस खो चुका है और भयभीत है। उसे घर लौट जाना चाहिए। तब वह दूसरे सैनिकों को भी साहस खोने में सहायक नहीं होगा।’ 9 जब अधिकारी सैनिकों से बात करना समाप्त कर ले तब वे सैनिकों को युद्ध में ले जाने वाले नायकों को चुनें।

10 “जब तुम नगर पर आक्रमण करने जाओ तो वहाँ के लोगों के सामने शान्ति का प्रस्ताव रखो। 11 यदि वे तुम्हारा प्रस्ताव स्वीकार करते हैं और अपने फाटक खोल देते हैं तब उस नगर में रहने वाले सभी लोग तुम्हारे दास हो जाएँगे और तुम्हारा काम करने के लिए विवश किये जाएँगे। 12 किन्तु यदि नगर शान्ति प्रस्ताव स्वीकार करने से इन्कार करता और तुमसे लड़ता है तो तुम्हें नगर को घेर लेना चाहिए 13 और जब यहोवा तुम्हारा परमेश्वर नगर पर तुम्हारा अधिकार कराता है तब तुम्हें सभी पुरुषों को मार डालना चाहिए। 14 तुम अपने लिए स्त्रियाँ, बच्चे, पशु तथा नगर की हर एक चीज ले सकते हो। तुम इन सभी चीजों का उपयोग कर सकते हो। यहोवा तुम्हारे परमेश्वर ने ये चीज़ें तुमको दी हैं। 15 जो नगर तुम्हारे प्रदेश में नहीं हैं और बहुत दूर हैं, उन सभी के साथ तुम ऐसा व्यवहार करोगे।

16 “किन्तु जब तुम वह नगर उस प्रदेश में लेते हो जिसे योहवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें दे रहा है तब तुम्हें हर एक को मार डालना चाहिए। 17 तुम्हें हित्ती, एमोरी, कनानी, परिज्जी, हिब्बी और यबूसी सभी लोगों को पूरी तरह नष्ट कर देना चाहिए। यहोवा तुम्हारे परमेश्वर ने, यह करने का तुम्हें आदेश दिया है। 18 क्यों? क्योंकि तब वे तुम्हें यहोवा तुम्हारे परमेश्वर के विरुद्ध पाप करने की शिक्षा नहीं दे सकते। वे उन भयंकर बातों में से किसी की शिक्षा तुमको नहीं दे सकते जो वे अपने देवाताओं की पूजा के समय करते हैं।

19 “जब तुम किसी नगर के विरुद्ध युद्ध कर रहे होगे तो तुम लम्बे समय तक उसका घेरा डाले रह सकते हो। तुम्हें नगर के चारों ओर के फलदार पेड़ों को नहीं काटना चाहिए। तुम्हें इनसे फल खाना चाहिए किन्तु काटकर गिराना नहीं चाहिए। ये पेड़ शत्रु नहीं हैं अत: उनके विरुद्ध युद्ध मत छेड़ो! 20 किन्तु उन पेड़ों को काट सकते हो जिन्हें तुम जानते हो कि ये फलदार नहीं हैं। तुम इनका उपयोग उस नगर के विरुद्ध घेराबन्दी में कर सकते हो, जब तक कि उसका पतन न हो जाए।

समीक्षा

पवित्र न्याय

मसीही के रूप में यह महत्वपूर्ण है कि पुराने नियम को यीशु की दृष्टि से पढ़ा जाए. आज हम अपने समाज में पुराने नियम के कानून को लागू नहीं कर सकते. ना हि हम 'पवित्र युद्ध' (20:21-20) की अवधारणा को अपनाकर इसे 'ईसाईयों के धर्मयुद्ध' में बदल सकते हैं.

पूरे बाइबल में हम देखते हैं कि परमेश्वर पवित्र हैं और न्यायी परमेश्वर हैं. प्राचीन इस्राएल की कुछ कानूनी व्यवस्था खास उसी समय के लिए थी. बाकी की व्यवस्था सामान्य रूप से लागू है.

नर बलि के मुकाबले किसी की हत्या करना ज्यादा गंभीर अपराध माना जाता है (19:1-13). किसी को अपराध का दंड देने के पहले अच्छे सबूत का होना जरूरी है (व.15). झूठी गवाही देना बहुत ही गंभीर अपराध है (व.16-18). प्रतिफल देना जरूरी है और यह अनुपातिक होना चाहिये (व.21 – इसे कभी भी पूरी तरह से अपनाया नहीं गया, मृत्यु दंड के मामले के अलावा). न्यायपूर्ण प्रतिफल लागू करने का दूसरा उद्देश्य निवारण है (व.20).

लेकिन हम पर प्राचीन इस्राएल के सभी नियम लागू नहीं हैं. यीशु मसीह में नये तरीके स्थापित किये गए. धर्मी प्रतिनिधित्व, मनुष्य के पुत्र, द्वारा प्रवेश करने से पूरे समाज पर बना परमेश्वर का क्रोध टूट गया.

अपराध के दंड का अध्ययन करने के लिए हम इस्राएल को एक आदर्श के रूप में स्वीकार नहीं कर सकते. जैसा कि प्राध्यापक ओलिवर ओ'डोनोवॅन लिखते हैं, 'इसलिए नहीं कि यह असभ्य होगा, बल्कि इसलिए कि ऐसा करना गैरमसीही होगा. एक मजबूत मायने में 'इस्राएल' जिसमें उन्हें धरती पर परमेश्वर का अद्वितीय निवास स्थान माना जाता है, इसे यीशु द्वारा मिटा दिया गया है.'

उदाहरण के लिए जब यीशु ने इस लेखांश का उद्धरण किया था, तब उन्होंने कहा, ' तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था, कि आंख के बदले आंख, और दांत के बदले दांत \[व्यवस्थाविवरण 19:21\]. परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि बुरे का सामना न करना; परन्तु जो कोई तेरे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे, उस की ओर दूसरा भी फेर देना' (मत्ती 5:38-39).

प्रार्थना

प्रभु, आपको धन्यवाद कि आप प्रेम, न्याय और सत्य के परमेश्वर हैं. आपको धन्यवाद कि जब मैं आपके वचन का अध्ययन करता हूँ और आपकी उपस्थिति में समय बिताता हूँ तो आप खुद को प्रकट करते हैं.

पिप्पा भी कहते है

लूका 15:1-32

यीशु चीजों को गंवाने के बारे में तीन दृष्टांत बताते हैं; मैं इनका समर्थन करती हूँ. ऐसा लगता है हम हर रोज चीजों को खोते हैं, सामान्य रूप से निकी की चाबियाँ और चश्मे. मुझे अपनी दादी की अंगूठी मिल गई, जिसके बारे में मैंने सोचा था कि यह खो गई है. तब मुझे दृष्टांत में उस स्त्री के समान महसूस हुआ.

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संदर्भ

नोट्स:

ओलिवर ओ'डोनोवॅन, मेजर फॉर मेजर: जस्टिस इन पनिशमेंट एंड द सेंटेंस ऑफ डेथ, ग्रूव बुकलेट ऑन एथिक्स नं 19 (ब्रॅमकोट नॉट्स: ग्रूव बुक्स, 1977) प. 8

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