दिन 11

‘सफलता’ क्या है?

बुद्धि भजन संहिता 8:1-9
नए करार मत्ती 9:14-38
जूना करार उत्पत्ति 24:1-67

परिचय

हाउ टू बी ए ह्यूज सक्सेस (एक बड़ी सफलता कैसे बनें), यह विभिन्न तरह के प्रसिद्ध ‘सफल’ लोगों से प्राप्त कथनों और सुझावों की एक छोटी सी किताब है। इसके कवर का पिछला हिस्सा पूछता है, ‘क्या आप प्रसिद्धि, भाग्य या महानता के साथ टकराव की राह पर हैं ? हमारे समाज में अक्सर ‘सफलता’ का पीछा इसी तरह से किया जाता है।

शायद इसके नकारात्मक अर्थ की वजह से, कभी - कभी चर्च में हम ‘सफलता’ शब्द से थोड़ा चौकन्ने हो जाते हैं। हालांकि, बाइबल में ‘सफलता’ शब्द बुरा नहीं है। यह हमारे आज के पुराने नियम के पद्यांश में (उत्पत्ति 24:12,21,40,42,56) लगभग पाँच बार आया है – और हर बार बहुत ही सकारात्मक रूप में।

सफलता प्रभु की ओर से आशीष है (पद - 31, 50)। सफलता एक अच्छी बात है। फिर भी यीशु की सेवकाई और बाइबल का संदेश सफलता को फिर से परिभाषित करता है।

बुद्धि

भजन संहिता 8:1-9

गित्तीथ की संगत पर संगीत निर्देशक के लिये दाऊद का एक पद।

8हे यहोवा, मेरे स्वामी, तेरा नाम सारी धरती पर अति अद्भुत है।
 तेरा नाम स्वर्ग में हर कहीं तुझे प्रशंसा देता है।

2 बालकों और छोटे शिशुओं के मुख से, तेरे प्रशंसा के गीत उच्चरित होते हैं।
 तू अपने शत्रुओं को चुप करवाने के लिये ऐसा करता है।

3 हे यहोवा, जब मेरी दृष्टि गगन पर पड़ती है, जिसको तूने अपने हाथों से रचा है
 और जब मैं चाँद तारों को देखता हूँ जो तेरी रचना है, तो मैं अचरज से भर उठता हूँ।
4 लोग तेरे लिये क्यों इतने महत्वपूर्ण हो गये?
 तू उनको याद भी किस लिये करता है?
 मनुष्य का पुत्र तेरे लिये क्यों महत्वपूर्ण है?
 क्यों तू उन पर ध्यान तक देता है?

5 किन्तु तेरे लिये मनुष्य महत्वपूर्ण है!
 तूने मनुष्य को ईश्वर का प्रतिरुप बनाया है,
 और उनके सिर पर महिमा और सम्मान का मुकुट रखा है।
6 तूने अपनी सृष्टि का जो कुछ भी
 तूने रचा लोगों को उसका अधिकारी बनाया।
7 मनुष्य भेड़ों पर, पशु धन पर और जंगल के सभी हिसक जन्तुओं पर शासन करता है।
8 वह आकाश में पक्षियों पर
 और सागर में तैरते जलचरों पर शासन करता है।
9 हे यहोवा, हमारे स्वामी,
 सारी धरती पर तेरा नाम अति अद्भुत है।

समीक्षा

परमेश्वर की सृष्टि की सफलता के लिए उनकी की स्तुति करें

हमारी आकाश गंगा में हमारे सूर्य की तरह शायद सौ अरब तारे हैं। हमारी आकाशगंगा एक सौ आकाश गंगाओं में से एक है। जब हम सृष्टि की विशालता पर विचार करते हैं, तो मनुष्य को छोटा और महत्त्वहीन महसूस करना आसान होता है।

दाऊद इस भजन की शुरूवात और अंत परमेश्वर की रचना की सफलता के लिए उनकी आराधना करते हुए करता है (पद - 1-2अ, 9)।

जब रात में आकाश को ताकता है (शायद उन रातों को याद करते हुए जब वह एक चरवाहा लड़का था), दाऊद कहते हैं, ‘जब मैं आकाश को, जो तेरे हाथों का कार्य है, और चंद्रमा और तरागण को जो तू ने नियुक्त किए हैं, देखता हूं; तो फिर मनुष्य क्या है कि तू उसका स्मरण रखे, और आदमी क्या है कि तू उसकी सुधि ले? ’ (पद - 3-4, एम.एस.जी.)।

दाऊद उस सच्चाई की तारीफ करता है कि मनुष्य परमेश्वर की श्रेष्ठ रचना है – एक श्रेष्ठ कृति – जिसे उनके स्वरूप में बनाया गया है। परमेश्वर आपसे सिर्फ प्रेम नहीं करते और आपका ख्याल ही नहीं रखते, बल्कि उन्होंने आपको असाधारण अधिकार भी दिया है: ‘तू ने उसको परमेश्वर से थोड़ा ही कम बनाया है, और महिमा और प्रताप का मुकुट उसके सिर पर रखा है। तू ने उसे अपने हाथों के कार्यों पर प्रभुता दी है; तू ने उसके पांव तले सब कुछ कर दिया है।’ (पद - 5-6)।

परमेश्वर ने जो भी बनाया है उसका अधिकारी हमें बनाया है। यह जानने के बाद, मसीही लोगों को सुरक्षा, संरक्षण और परमेश्वर की अद्भुत रचना की देखभाल करने के लिए सबसे आगे रहना चाहिये।

अवश्य ही हम पतित, पापी मनुष्य हैं और हमने सृष्टि पर प्रभुता करने की परमेश्वर की मूल योजना बिगाड़ दी है। फिर भी, नये नियम में, हम इन वचनों को भी देखते हैं जो सीधे यीशु पर लागू होते हैं (इब्रानियों 2:8)। मसीह में सृष्टि फिर से नई हो गई है (इफीसियों 1:19-23; 2:5-6) और एक दिन यह पूरी होगी और हम सब कुछ उनके चरणों में देखेंगे (1 कुरिंथियों 15:24-26)।

प्रार्थना

प्रभु, जब मैं आपकी रचना की विशालता, सुंदरता और सफलता को देखता हूँ, तो मैं आपकी स्तुति और आराधना करने लगता हूँ: ‘हे हमारे प्रभु, तेरा नाम सारी पृथ्वी पर क्या ही प्रतापमय है।’ (भजन संहिता 8:9)।

नए करार

मत्ती 9:14-38

यीशु दूसरे यहूदी धर्म-नेताओं से भिन्न है

14 फिर बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना के शिष्य यीशु के पास गये और उससे पूछा, “हम और फ़रीसी बार-बार उपवास क्यों करते हैं और तेरे अनुयायी क्यों नहीं करते?”

15 फिर यीशु ने उन्हें बताया, “क्या दूल्हे के साथी, जब तक दूल्हा उनके साथ है, शोक मना सकते हैं? किन्तु वे दिन आयेंगे जब दूल्हा उन से छीन लिया जायेगा। फिर उस समय वे दुःखी होंगे और उपवास करेंगे।

16 “बिना सिकुड़े नये कपड़े का पैबंद पुरानी पोशाक पर कोई नहीं लगाता क्योंकि यह पैबंद पोशाक को और अधिक फाड़ देगा और कपड़े की खींच और बढ़ जायेगी। 17 नया दाखरस पुरानी मशकों में नहीं भरा जाता नहीं तो मशकें फट जाती हैं और दाखरस बहकर बिखर जाता है। और मशकें भी नष्ट हो जाती हैं। इसलिये लोग नया दाखरस, नयी मशकों में भरते हैं जिससे दाखरस और मशक दोनों ही सुरक्षित रहते हैं।”

मृत लड़की को जीवन दान और रोगी स्त्री को चंगा करना

18 यीशु उन लोगों को जब ये बातें बता ही रहा था, तभी यहूदी आराधनालय का एक मुखिया उसके पास आया और उसके सामने झुक कर विनती करते हुए बोला, “अभी-अभी मेरी बेटी मर गयी है। तू चल कर यदि उस पर अपना हाथ रख दे तो वह फिर से जी उठेगी।”

19 इस पर यीशु खड़ा हो कर अपने शिष्यों समेत उसके साथ चल दिया।

20 वहीं एक ऐसी स्त्री थी जिसे बारह साल से बहुत अधिक रक्त बह रहा था। वह पीछे से यीशु के निकट आयी और उसके वस्त्र की कन्नी छू ली। 21 वह मन में सोच रही थी, “यदि मैं तनिक भी इसका वस्त्र छू पाऊँ, तो ठीक हो जाऊँगी।”

22 मुड़कर उसे देखते हुए यीशु ने कहा, “बेटी, हिम्मत रख। तेरे विश्वास ने तुझे अच्छा कर दिया है।” और वह स्त्री तुरंत उसी क्षण ठीक हो गयी।

23 उधर यीशु जब यहूदी धर्म-सभा के मुखिया के घर पहुँचा तो उसने देखा कि शोक धुन बजाते हुए बाँसुरी वादक और वहाँ इकट्ठे हुए लोग लड़की को मृत्यु पर शोक कर रहे हैं। 24 तब यीशु ने लोगों से कहा, “यहाँ से बाहर जाओ। लड़की मरी नहीं है, वह तो सो रही है।” इस पर लोग उसकी हँसी उड़ाने लगे। 25 फिर जब भीड़ के लोगों को बाहर भेज दिया गया तो यीशु ने लड़की के कमरे में जा कर उसका हाथ पकड़ा और वह उठ बैठी। 26 इसका समाचार उस सारे क्षेत्र में फैल गया।

यीशु द्वारा बहुतों का उपचार

27 यीशु जब वहाँ से जाने लगा तो दो अन्धे व्यक्ति उसके पीछे हो लिये। वे पुकार रहे थे, “हे दाऊद के पुत्र, हम पर दया कर।”

28 यीशु जब घर के भीतर पहुँचा तो वे अन्धे उसके पास आये। तब यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम्हें विश्वास है कि मैं, तुम्हें फिर से आँखें दे सकता हूँ?” उन्होंने उत्तर दिया, “हाँ प्रभु!”

29 इस पर यीशु ने उन की आँखों को छूते हुए कहा, “तुम्हारे लिए वैसा ही हो जैसा तुम्हारा विश्वास है।” 30 और अंधों को दृष्टि मिल गयी। फिर यीशु ने उन्हें चेतावनी देते हुए कहा, “इसके विषय में किसी को पता नहीं चलना चाहिये।” 31 किन्तु उन्होंने वहाँ से जाकर इस समाचार को उस क्षेत्र में चारों ओर फैला दिया।

32 जब वे दोनों वहाँ से जा रहे थे तो कुछ लोग यीशु के पास एक गूँगे को लेकर आये। गूँगे में दुष्ट आत्मा समाई हुई थी और इसीलिए वह कुछ बोल नहीं पाता था। 33 जब दुष्ट आत्मा को निकाल दिया गया तो वह गूँगा, जो पहले कुछ भी नहीं बोल सकता था, बोलने लगा। तब भीड़ के लोगों ने अचरज से भर कर कहा, “इस्राएल में ऐसी बात पहले कभी नहीं देखी गयी।”

34 किन्तु फ़रीसी कह रहे थे, “वह दुष्टात्माओं को शैतान की सहायता से बाहर निकालता है।”

यीशु को लोगों पर खेद

35 यीशु यहूदी आराधनालयों में उपदेश देता, परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार का प्रचार करता, लोगों के रोगों और हर प्रकार के संतापों को दूर करता उस सारे क्षेत्र में गाँव-गाँव और नगर-नगर घूमता रहा था। 36 यीशु जब किसी भीड़ को देखता तो उसके प्रति करुणा से भर जाता था क्योंकि वे लोग वैसे ही सताये हुए और असहाय थे, जैसे वे भेड़ें होती हैं जिनका कोई चरवाहा नहीं होता। 37 तब यीशु ने अपने अनुयायियों से कहा, “तैयार खेत तो बहुत हैं किन्तु मज़दूर कम हैं। 38 इसलिए फसल के प्रभु से प्रार्थना करो कि, वह अपनी फसल को काटने के लिये मज़दूर भेजे।”

समीक्षा

यीशु पर निर्धारित की गई सफलता का अनुसरण करें

यीशु सफलता को पुन:परिभाषित करते हैं। यदि हम जानना चाहते हैं कि सच्ची सफलता क्या है, तो हमें यीशु के आदर्शों को देखना होगा – उनका दर्शन, जीवन और शिक्षा। यह ऐसी सफलता है जो अब तक हर जगह मानी नहीं गई है।

यीशु की प्रशंसा और निंदा दोनों की गई थी। सफलता का मतलब प्रसिद्धि नहीं है। कुछ ने उनकी प्रशंसा की: ‘इस्राएल में ऐसा कभी नहीं देखा गया। ’ (पद - 33)। अन्य लोगों ने उनसे नफरत की : फरीसियों ने कहा, ‘यह तो दुष्टात्माओं के सरदार की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता है।’ (पद - 34)।

यीशु के अनुयायी होने के नाते, शायद आपकी भी प्रशंसा और निंदा दोनों होगी, विलियम विलबरफोर्स ने कहा था कि वह इंग्लैंड में सबसे ज्यादा प्रशंसनीय और सबसे ज्यादा निंदनीय व्यक्ति था।

अपने सुसमाचार में, मत्ती यीशु की सेविकाई की सफलता का वर्णन करता है (पद - 5-9)। वह संक्षिप्त में कहता है, ‘यीशु सब नगरों और गांवों में फिरता रहा और उन की सभाओं में उपदेश करता, और राज्य का सुसमाचार प्रचार करता, और हर प्रकार की बीमारी और दुर्बलता को दूर करता रहा। ’ (9:35)।

परमेश्वर के राज्य की सच्चाई लाते हुए और उसके आस - पास के लोगों के जीवन में उनकी उपस्थिति को लाते हुए, यीशु ने शब्दों में और कार्यों से परमेश्वर का राज्य दिखाया। यीशु की सफल जीवन - शैली ऐसी दिखती है और आपको और हमें इसका अनुसरण करने के लिए ही बुलाया गया है।

सफल जीवन शैली पाने के लिए आपको, बारह शिष्यों की तरह, अपना जीवन यीशु के लिए तैयार करना है और उनके दर्शन को बांटना है:

  1. ज़रूरत अत्यंत महत्वपूर्ण है
  • यीशु ने देखा कि ‘वे उन भेड़ों की नाईं जिनका कोई रखवाला न हो, व्याकुल और भटके हुए से थे।’ (पद -36)। आज हम लाखों लोगों को देखते हैं जो यीशु को नहीं जानते और आत्मिक रूप से भटके हुए हैं। इसके अलावा, हम लाखों लोगों को देखते हैं जो भूखे, बेघर, और लाइलाज बीमारी से त्रस्त हैं बल्कि उन्हें मूलभूत शिक्षा भी नहीं मिली है।
  1. प्रेम करना उद्देश्य है
  • यीशु को तरस आया (पद - 36)। ग्रीक भाषा में प्रेम के लिए यह सबसे शक्तिशाली शब्द है (जो कि ग्रीक शब्द ‘गट्स - दु:खी’ से निकला है)। इसे सिर्फ यीशु पर प्रयोग किया गया। इसका अनुवाद इस तरह से भी किया जा सकता है, (‘वह अत्यंत दु:खी हुए’) – उनका दिल टूट गया।

यीशु को महत्त्व या सफलता की और सांसारिक वर्गों की कोई परवाह नहीं थी। यहाँ हम उन्हें दो अलग वर्ग के लोगों की मदद करते हुए देखते हैं – एक महत्वपूर्ण ‘शासक’ (पद - 18) और एक स्त्री जिसे रक्त स्राव की बीमारी ने अशुद्ध बना दिया था और समाज से अलग कर दिया था (पद - 20)। फिर भी यीशु ने उन दोनों पर अपनी करूणा दिखायी।

  1. ट्रिगर प्रार्थना है
  • यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, ‘ परमेश्वर से बिनती करो कि वह अपने खेत काटने के लिये मज़दूर भेज दे ’ (पद - 38)। और ज़्यादा लोगों के लिए प्रार्थना करो जो यीशु का अनुसरण करें और फसल को काटें।
  1. योग्यता विशाल है
  • यीशु ने कहा, ‘खेत तो बहुत हैं ’ (पद - 37)। यीशु ने दिखाया कि सफलता कैसी दिखती है – राज्य की घोषणा और इसका प्रदर्शन करते हुए यह इतिहास की नई शुरुवात है। और अब वह आपको अपने आदर्श का अनुसरण करने के लिए बुला रहे हैं – उनके मिशन को बांटने के लिए, और इसकी पहुँच को विस्तारित करने के लिए।

प्रार्थना

प्रभु, हमारी दुनिया में बहुत ज़्यादा ज़रूरत है फिर भी ऐसा लगता है कि मज़दूर कम हैं। मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप और ज्यादा मज़दूरों को खड़ा करें और उन्हें खेत में भेजें और दुनिया को बदल दें।

जूना करार

उत्पत्ति 24:1-67

इसहाक के लिए पत्नी

24इब्राहीम बहुत बुढ़ापे तक जीवित रहा। यहोवा ने इब्राहीम को आशीर्वाद दिया और उसके हर काम में उसे सफलता प्रदान की। 2 इब्राहीम का एक बहुत पुराना नौकर था जो इब्राहीम का जो कुछ था उसका प्रबन्धक था। इब्राहीम ने उस नौकर को बुलाया और कहा, “अपने हाथ मेरी जांघों के नीचे रखो। 3 अब मैं चाहता हूँ कि तुम मुझे एक वचन दो। धरती और आकाश के परमेश्वर यहोवा के सामने तुम वचन दो कि तुम कनान की किसी लड़की से मेरे पुत्र का विवाह नहीं होने दोगे। हम लोग उनके बीच रहते हैं, किन्तु एक कनानी लड़की से उसे विवाह न करने दो। 4 तुम मेरे देश और मेरे अपने लोगों में लौटकर जाओ। वहाँ मेरे पुत्र इसहाक के लिए एक दुल्हन खोजो। तब उसे यहाँ उसके पास लाओ।”

5 नौकर ने उससे कहा, “यह हो सकता है कि वह दुल्हन मेरे साथ इस देश में लौटना न चाहे। तब, क्या मैं तुम्हारे पुत्र को तुम्हारी जन्मभूमि को ले जाऊँ?”

6 इब्राहीम ने उससे कहा, “नहीं, तुम हमारे पुत्र को उस देश में न ले जाओ। 7 यहोवा, स्वर्ग का परमेश्वर मुझे मेरी जन्मभूमि से यहाँ लाया। वह देश मेरे पिता और मेरे परिवार का घर था। किन्तु यहोवा ने यह वचन दिया कि वह नया प्रदेश मेरे परिवार वालों का होगा। यहोवा अपना एक दूत तुम्हारे सामने भेजे जिससे तुम मेरे पुत्र के लिए दुल्हन चुन सको। 8 किन्तु यदि लड़की तुम्हारे साथ आना मना करे तो तुम अपने वचन से छुटकारा पा जाओगे। किन्तु तुम मेरे पुत्र को उस देश में वापस मत ले जाना।”

9 इस प्रकार नौकर ने अपने मालिक की जांघों के नीचे अपना हाथ रखकर वचन दिया।

खोज आरम्भ होती है

10 नौकर ने इब्राहीम के दस ऊँट लिए और उस जगह से वह चला गया। नौकर कई प्रकार की सुन्दर भेंटें अपने साथ ले गया। वह नाहोर के नगर मेसोपोटामिया को गया। 11 वह नगर के बाहर के कुएँ पर ग्या। यह बात शाम को हुई जब स्त्रियाँ पानी भरने के लिए बाहर आती हैं। नौकर ने वहीं ऊँटों को घुटनों के बल बिठाया।

12 नौकर ने कहा, “हे यहोवा, तू मेरे स्वामी इब्राहीम का परमेश्वर है। आज तू उसके पुत्र के लिए मुझे एक दुल्हन प्राप्त करा। कृप्या मेरे स्वामी इब्राहीम पर यह दया कर। 13 मैं यहाँ इस जल के कुएँ के पास खड़ा हूँ और पानी भरने के लिए नगर से लड़कियाँ आ रहीं हैं। 14 मैं एक विशेष चिन्ह की प्रतीक्षा कर रहा हूँ जिससे मैं जान सकूँ कि इसहाक के लिए कौन सी लड़की ठीक है। यह विशेष चिन्ह है: मैं लड़की से कहूँगा ‘कृपा कर आप घड़े को नीचे रखें जिससे मैं पानी पी सकूँ।’ मैं तब समझूँगा कि यह ठीक लड़की है जब वह कहेगी, ‘पीओ, और मैं तुम्हारे ऊँटों के लिए भी पानी दूँगी।’ यदि ऐसा होगा तो तू प्रमाणित कर देगा कि इसहाक के लिए यह लड़की ठीक है। मैं समझूँगा कि तूने मेरे स्वामी पर कृपा की है।”

एक दुल्हन मिली

15 तब नौकर की प्रार्थना पूरी होने के पहले ही रिबका नाम की एक लड़की कुएँ पर आई। रिबका बतूएल की पुत्री थी। (बतूएल इब्राहीम के भाई नाहोर और मिल्का का पुत्र था।) रिबका अपने कंधे पर पानी का घड़ा लेकर कुएँ पर आई थी। 16 लड़की बहुत सुन्दर थी। वह कुँवारी थी। वह किसी पुरुष के साथ कभी नहीं सोई थी। वह अपना घड़ा भरने के लिए कुएँ पर आई। 17 तब नौकर उसके पास तक दौड़ कर गया और बोला, “कृप्या करके अपने घड़े से पीने के लिए थोड़ा जल दें।”

18 रिबका ने जल्दी कंधे से घड़े को नीचे उतारा और उसे पानी पिलाया। रिबका ने कहा, “महोदय, यह पिएँ।” 19 ज्यों ही उसने पीने के लिए कुछ पानी देना खत्म किया, रिबका ने कहा, “मैं आपके ऊँटों को भी पानी दे सकती हूँ।” 20 इसलिए रिबका ने झट से घड़े का सारा पानी ऊँटों के लिए बनी नाद में उंड़ेल दिया। तब वह और पानी लाने के लिए कुएँ को दौड़ गई और उसने सभी ऊँटों को पानी पिलाया।

21 नौकर ने उसे चुप—चाप ध्यान से देखा। वह तय करना चाहता था कि यहोवा ने शायद बात मान ली है और उसकी यात्रा को सफल बना दिया है। 22 जब ऊँटों ने पानी पी लिया तब उसने रिबका को चौथाई औंस तौल कर एक सोने की अँगूठी दी। उसने उसे दो बाजूबन्द भी दिए जो तौल में हर एक पाँच औंस थे। 23 नौकर ने पूछा, “तुम्हारा पिता कौन है? क्या तुम्हारे पिता के घर में इतनी जगह है कि हम सब के रहने तथा सोने का प्रबन्ध हो सके?”

24 रिबका ने उत्तर दिया, “मेरे पिता बतूएल हैं जो मिल्का और नाहोर के पुत्र हैं।” 25 तब उसने कहा, “और हाँ हम लोगों के पास तुम्हारे ऊँटों के लिए चारा है और तुम्हारे लिए सोने की जगह है।”

26 नौकर ने सिर झुकाया और यहोवा की उपासना की। 27 नौकर ने कहा, “मेरे मालिक इब्राहीम के परमेश्वर यहोवा की कृपा है। यहोवा हमारे मालिक पर दयालु है। यहोवा ने मुझे अपने मालिक के पुत्र के लिए सही दुल्हन दी है।”

28 तब रिबका दौड़ी और जो कुछ हुआ था अपने परिवार को बताया। 29-30 रिबका का एक भाई था। उसका नाम लाबान था। रिबका ने उसे वे बातें बताईं जो उससे उस व्यक्ति ने की थीं। लाबान उसकी बातें सुन रहा था। जब लाबान ने अँगूठी और बहन की बाहों पर बाजूबन्द देखा तो वह दौड़कर कुएँ पर पहुँचा और वहाँ वह व्यक्ति कुएँ के पास, ऊँटों के बगल में खड़ा था। 31 लाबान ने कहा, “महोदय, आप पधारें आपका स्वागत है। आपको यहाँ बाहर खड़ा नहीं रहना है। मैंने आपके ऊँटों के लिए एक जगह बना दी है और आपके सोने के लिए एक कमरा ठीक कर दिया है।”

32 इसलिए इब्राहीम का नौकर घर में गया। लाबान ने ऊँटों और उस की मदद की और ऊँटों को खाने के लिए चारा दिया। तब लाबान ने पानी दिया जिससे वह व्यक्ति तथा उसके साथ आए हुए दूसरे नौकर अपने पैर धो सकें। 33 तब लाबान ने उसे खाने के लिए भोजन दिया। लेकिन नौकर ने भोजन करना मना किया। उसने कहा, “मैं तब तक भोजन नहीं करूँगा जब तक मैं यह न बता दूँ कि मैं यहाँ किस लिए आया हूँ।”

इसलिए लाबान ने कहा, “तब हम लोगों को बताओ।”

रिबका इसहाक की पत्नी बनी

34 नौकर ने कहा, “मैं इब्राहीम का नौकर हूँ। 35 यहोवा ने हमारे मालिक पर हर एक विषय में कृपा की है। मेरे मालिक महान व्यक्ति हो गए हैं। यहोवा ने इब्राहीम को कई भेड़ों के रेवड़े तथा मबवेशियों के झुण्ड दिए हैं। इब्राहीम के पास बहुत सोना, चाँदी और नौकर हैं। इब्राहीम के पास बहुत से ऊँट और गधे हैं। 36 सारा, मेरे मालिक की पत्नी थी। जब वह बहुत बूढ़ी हो गई थी उसने एक पुत्र को जन्म दिया और हमारे मालिक ने अपना सब कुछ उस पुत्र को दे दिया है। 37 मेरे स्वामी ने मुझे एक वचन देने के लिए विवश किया। मेरे मालिक ने मुझसे कहा, ‘तुम मेरे पुत्र को कनान की लड़की से किसी भी तरह विवाह नहीं करने दोगे। हम लोग उनके बीच रहते हैं, किन्तु मैं नहीं चाहता कि वह किसी कनानी लड़की से विवाह करे। 38 इसलिए तुम्हें वचन देना होगा कि तुम मेरे पिता के देश को जाओगे। मेरे परिवार में जाओ और मेरे पुत्र के लिए एक दुल्हन चुनो।’ 39 मैंने अपने मालिक से कहा, ‘यह हो सकता है कि वह दुल्हन मेरे साथ इस देश को न आए।’ 40 लेकिन मेरे मालिक ने कहा, ‘मैं यहोवा की सेवा करता हूँ और यहोवा तुम्हारे साथ अपना दूत भेजेगा और तुम्हारी मद्द करेगा। तुम्हें वहाँ मेरे अपने लोगों में मेरे पुत्र के लिए एक दुल्हन मिलेगी। 41 किन्तु यदि तुम मेरे पिता के देश को जाते हो और वे लोग मेरे पुत्र के लिए एक दुल्हन देने से मना करते हैं तो तुम्हें इस वचन से छुटकारा मिल जाएगा।’

42 “आज मैं इस कुएँ पर आया और मैंने कहा, ‘हे यहोवा मेरे मालिक के परमेश्वर कृपा करके मेरी यात्रा सफल बना। 43 मैं यहाँ कुएँ के पास ठहरूँगा और पानी भरने के लिए आने वाली किसी युवती की प्रतीक्षा करूँगा। तब मैं कहूँगा, “कृपा करके आप अपने घड़े से पीने के लिए पानी दें।” 44 उपयुक्त लड़की ही विशेष रूप से उत्तर देगी। वह कहेगी, “यह पानी पीओ और मैं तुम्हारे ऊँटों के लिए भी पानी लाती हूँ।” इस तरह मैं जानूँगा कि यह वही स्त्री है जिसे यहोवा ने मेरे मालिक के पुत्र के लिए चुना है।’”

45 “मेरी प्रार्थना पूरी होने के पहले ही रिबका कुएँ पर पानी भरने आई। पानी का घड़ा उसने अपने कंधे पर ले रखा था। वह कुएँ तक गई और उसने पानी भरा। मैंने इससे कहा, “कृपा करके मुझे पानी दें। 46 उसने तुरन्त कंधे से घड़े को झुकाया और मेरे लिए पानी डाला और कहा, ‘यह पीएँ और मैं आपके ऊँटों के लिए भी पानी लाऊँगी।’ इसलिए मैंने पानी पीया और अपने ऊँटों को भी पानी पिलाया। 47 तब मैंने इससे पूछा, ‘तुम्हारे पिता कौन हैं?’ इसने उत्तर दिया, ‘मेरा पिता बतूएल है। मेरे पिता के माता—पिता मिल्का और नाहोर हैं।’ तब मैंने इसे अँगूठी और बाहों के लिए बाजूबन्द दिए। 48 उस समय मैंने अपना सिर झुकाया और यहोवा को धन्य कहा। मैंने अपने मालिक इब्राहीम के परमेश्वर यहोवा को कृपालु कहा। मैंने उसे धन्य कहा क्योंकि उसने सीधे मेरे मालिक के भाई की पोती तक मुझे पहुँचाया। 49 अब बताओ कि तुम क्या करोगे? क्या तुम मेरे मालिक पर दयालु और श्रद्धालु बनोगे और अपनी पुत्री उसे दोगे? या तुम अपनी पुत्री देना मना करोगे? मुझे बताओ, जिससे मैं यह समझ सकूँ कि मुझे क्या करना है।”

50 तब लाबान और बतूएल ने उत्तर दिया, “हम लोग यह देखते हैं कि यह यहोवा की ओर से है। इसे हम टाल नहीं सकते। 51 रिबका तुम्हारी है। उसे लो और जाओ। अपने मालिक के पुत्र से इसे विवाह करने दो। यही है जिसे यहोवा चाहता है।”

52 इब्राहीम के नौकर ने यह सुना और वह यहोवा के सामने भूमि पर झुका। 53 तब उसने रिबका को वे भेंटे दी जो वह साथ लाया था। उसने रिबका को सोने और चाँदी के गहने और बहुत से सुन्दर कपड़े दिए। उसने, उसके भाई और उसकी माँ को कीमती भेंटें दीं। 54 नौकर और उसके साथ के व्यक्ति वहाँ ठहरे तथा खाया और पीया। वे वहाँ रात भर ठहरे। वे दूसरे दिन सवेरे उठे और बोले “अब हम अपने मालिक के पास जाएँगे।”

55 रिबका की माँ और भाई ने कहा, “रिबका को हम लोगों के पास कुछ दिन और ठहरने दो। उसे दस दिन तक हमारे साथ ठहरने दो। इसके बाद वह जा सकती है।”

56 लेकिन नौकर ने उनसे कहा, “मुझसे प्रतीक्षा न करवाएं। यहोवा ने मेरी यात्रा सफल की है। अब मुझे अपने मालिक के पास लौट जाने दें।”

57 रिबका के भाई और माँ ने कहा, “हम लोग रिबका को बुलाएंगे और उस से पूछेंगे कि वह क्या चाहती है?” 58 उन्होंने रिबका को बुलाया और उससे कहा, “क्या तुम इस व्यक्ति के साथ अभी जाना चाहती हो?”

रिबका ने कहा, “हाँ, मैं जाऊँगी।”

59 इसलिए उन्होंने रिबका को इब्राहीम के नौकर और उसके साथियों के साथ जाने दिया। रिबका की धाय भी उनके साथ गई। 60 जब वह जाने लगी तब वे रिबका से बोले,

“हमारी बहन, तुम लाखों लोगों की
जननी बनो
और तुम्हारे वंशज अपने शत्रुओं को हराएं
और उनके नगरों को ले लें।”

61 तब रिबका और धाय ऊँट पर चढ़ी और नौकर तथा उसके साथियों के पीछे चलने लगी। इस तरह नौकर ने रिबका को साथ लिया और घर को लौटने की यात्रा शुरू की।

62 इस समय इसहाक ने लहैरोई को छोड़ दिया था और नेगेव में रहने लगा था। 63 एक शाम इसहाक मैदान में विचरण करने गया। इसहाक ने नज़र उठाई और बहुत दूर से ऊँटों को आते देखा।

64 रिबका ने नज़र डाली और इसहाक को देखा। तब वह ऊँट से कूद पड़ी। 65 उसने नौकर से पूछा, “हम लोगों से मिलने के लिए खेतों में टहलने वाला वह युवक कौन है?”

नौकर ने कहा, “यह मेरे मालिक का पुत्र है।” इसलिए रिबका ने अपने मुँह को पर्दे में छिपा लिया।

66 नौकर ने इसहाक को वे सभी बातें बताईं जो हो चुकी थीं। 67 तब इसहाक लड़की को अपनी माँ के तम्बू में ले आया। उसी दिन इसहाक ने रिबका से विवाह कर लिया। वह उससे बहुत प्रेम करता था। अतः उसे उसकी माँ की मृत्यु के पश्चात् भी सांत्वना मिली।

समीक्षा

मार्गदर्शन में सफलता के लिए प्रार्थना करें

अब्राहम का सेवक सफलता के लिए प्रार्थना करने के लिए घबराया नहीं था। उसने प्रार्थना की जिसका हम सब अनुकरण कर सकते हैं: ‘यहोवा, आज मेरे कार्य को सिद्ध कर, ’ (पद - 12)। यह स्वार्थीपन की प्रार्थना नहीं थी। यह ऐसी प्रार्थना थी कि परमेश्वर किसी और को आशीष दें, ‘और मेरे स्वामी अब्राहम पर करूणा करें। ’ (पद - 12)। उसने परमेश्वर से मार्गदर्शन पाने के लिए प्रार्थना की।

यह परमेश्वर के मार्गदर्शन की सबसे शानदार कहानियों में से एक है। अल्फा पर, हम ‘द फाइव सीस्’ (पाँच सी) के तहत पाँच तरीकों के बारे में बताते हैं जिसमें परमेश्वर हमारा मार्गदर्शन करते हैं। इस पद्यांश में हम एक उदाहरण देख सकते हैं जिसमे ये सब एक साथ काम करते हैं और खासकर पाँचवा, ‘पारिस्थितिक संकेत’।

  1. आदेशात्मक वचन

स्पष्ट रूप से, अब्राहम के पास वचन नहीं थे जो हमारे पास हैं – लेकिन उसके पास परमेश्वर के निर्देश थे जो बाद में पवित्र शास्त्र का हिस्सा बनें। परमेश्वर ने अपने लोगों को आदेश दिया था कि वे अपने बीच केवल अन्य विश्वासियों से ही शादी करें। अब्राहम ने अपने सेवक से कहा कि वह अपने बेटे के लिए पत्नी, कनानियों से न ले, बल्कि अपने ही लोगों में से लें (पद - 3-4)।

  1. अप्रतिरोध्य आत्मा

जब हम प्रार्थना करते हैं तो पवित्र आत्मा हमारी अगुआई करते हैं। हालाँकि इस पद्यांश में पवित्र आत्मा शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है, लेकिन यह स्पष्ट है कि सभी भाग लेनेवाले इस स्थिति में हैं कि वे परमेश्वर द्वारा मार्गदर्शित किये जाएं, उनकी सुनना और पवित्र आत्मा द्वारा अगुआई किया जाना। अब्राहम के सेवक ने अपने दिल से प्रार्थना की (पद - 12, 45)। ‘उसकी प्रार्थना समाप्त होने से पहले’ उसके सामने रिबका दिखाई दी (पद - 15), और जब रिबका दिखाई दी, तो इसहाक खेत में था जहाँ वह ध्यान करने के लिए निकला था (पद - 63)।

  1. सामान्य बोध

रिबका को चुनना एक सही समझ थी। वह स्पष्ट रूप से इसहाक के लिए उपयुक्त थी। ऐसा था कि वह ‘बहुत ही सुन्दर’ थी (पद - 16)। और वह ‘कुँवारी’ भी थी; और ‘उसने किसी पुरूष का मुंह न देखा था’ (पद -16)। सबसे महत्त्वपूर्ण, वह बहुत ही दयालु, कृपालु और अच्छी थी। पानी पिलाने के निवेदन के लिए उसकी तुरंत प्रतिक्रिया केवल उसे ही पिलाना नहीं था, बल्कि यह कहना भी था कि, ‘मैं तेरे ऊंटों के लिये भी तब तक पानी भर लाऊंगी, जब तक वे पी न चुकें। ’ (पद - 19)।

  1. संतों का परामर्श

परमेश्वर का एक तरीका जिसमें वह मार्गदर्शन करते हैं, वह है दैवीय सलाह (यहाँ ‘संत’ का उपयोग नये नियम के अर्थ में परमेश्वर के सभी लोगों का उल्लेख करने के लिए किया गया है)। हालाँकि इसहाक और रिबका की शादी आधुनिक पश्चिमी विवाह से बहुत ही अलग थी उसमें समझौते के बहुत बड़े तत्व शामिल थे, पर उसमें पसंद का तत्व भी शामिल था। “क्या तू इस मनुष्य के संग जाएगी? ” उसने कहा, “हां मैं जाऊंगी। ” (पद - 57)। इसहाक ने उससे शादी करने का फैसला किया और ‘उससे प्रेम किया’ (पद - 67)। वे लोग संतों की सलाह का अनुसरण कर रहे थे इस भावना से कि उनके आस पास के लोग, खासकर उनके माता - पिता इसे मान्य करें। ‘यह परमेश्वर से है’ (पद -50)।

  1. पारिस्थितिक संकेत

यह बाइबल में सबसे स्पष्ट मामला है जिसमें परमेश्वर पारिस्थितिक संकेतों द्वारा मार्गदर्शन करते हैं। सेवक ने चिन्ह पूछा और उसे बिल्कुल वही बताया गया जो उसने पूछा था (पद - 12-26)। फिर भी, जैसा कि हमने देखा, यह संकेत आकस्मिक नहीं था। यह रिबका के स्वभाव की परीक्षा थी, जिसे उसने पूरा किया।

परमेश्वर द्वारा मार्गदर्शित होने के परिणामस्वरूप, उनकी मुलाकात महान रूप से सफल ही नहीं हुई, बल्कि इससे ज़्यादा, उनका विवाह भी सफल रहा।

प्रार्थना

प्रभु, मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप हमारे समाज में और चर्च में सफलपूर्ण मार्गदर्शन के उदाहरण को अद्भुत रीति से बढ़ाएंगे। ज़्यादा से ज़्यादा पति - पत्नी के उदाहरण सामने आएं जो यह कह सकें कि, ‘यह परमेश्वर की ओर से है’ (पद - 50)।

पिप्पा भी कहते है

उत्पत्ति 24

मुझे यह कहानी हमेशा से पसंद है। यह बहुत ही रूमानी है। इसहाक बहुत सारी चीज़ों का वारिस था, लेकिन शायद वह अकेला भी था। उसके सौतेले भाई को दूर भेज दिया गया था। उसकी माँ मर गई थी। परमेश्वर इस बहादुर स्त्री को इसहाक को देते हैं। वह अपने परिवार को छोड़ कर किसी ऐसे व्यक्ति से शादी करती है जो उसके घर से मीलों दूर रहता था जिससे वह कभी मिली नहीं थी। परमेश्वर उनका मार्गदर्शन करने के लिए एक सुनिश्चित प्रार्थना का उत्तर देते हैं। और इसहाक ने उससे प्रेम किया।

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संदर्भ

नोट्स:

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है। कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है. (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002। जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

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