दिन 16

हृदय से उमड़ना

बुद्धि नीतिवचन 2:1-11
नए करार मत्ती 12:22-45
जूना करार उत्पत्ति 32:1-33:20

परिचय

बहुत वर्षों से मैं बिली ग्राहम से मिलना चाहता था, लेकिन मैंने ऐसा कभी नहीं किया। मैं स्वयं को बहुत सम्मानित महसूस कर रहा था जब मुझे पता चला कि वे ट्विटर पर मेरे फॉलोअर हैं। निःसंदेश मैं भी उन्हें फॉलो करने लगा। वे मेरे विश्वास के शूरवीरों में से एक हैं। वे मेरे जीवन काल के सबसे महान सुसमाचार प्रचारक हैं। मानव इतिहास में उन्होंने औरों से भी ज़्यादा लोगों से यीशु के विषय में बातें की हैं।

मैंने बिली ग्राहम को कई बार सुना है। मैं जब भी उन्हें सुनता हूँ खुद को बहुत प्रोत्साहित महसूस करता हूँ। वे कहते हैं कि बोलने से पहले मैं अपने हृदय को भरना पसंद करता हूँ। वे पाँच बातों के विषय में पर्याप्त सामग्री इकट्ठी करना पसंद करते हैं, जिससे वे बहुतायत से बोल सकें।

यीशु के अनुसार, वास्तव में मन बहुत मायने रखता है। क्योंकि जो कुछ मन में भरा है, वही मुँह से बाहर निकलता है। (मत्ती 12:34) लेकिन आप अपने मन में अच्छी बातें कैसे संग्रह करते हैं?

बुद्धि

नीतिवचन 2:1-11

बुद्धि के नैतिक लाभ

2हे मेरे पुत्र, यदि तू मेरे बोध वचनों को ग्रहण करे
 और मेरे आदेश मन में संचित करे,
2 और तू बुद्धि की बातों पर कान लगाये,
 मन अपना समझदारी में लगाते हुए
3 और यदि तू अर्न्तदृष्टि के हेतु पुकारे,
 और तू समझबूझ के निमित्त चिल्लाये,
4 यदि तू इसे ऐसे ढूँढे जैसे कोई मूल्यवान चाँदी को ढूँढता है,
 और तू इसे ऐसे ढूँढ, जैसे कोई छिपे हुए कोष को ढूँढता है
5 तब तू यहोवा के भय को समझेगा
 और परमेश्वर का ज्ञान पायेगा।
6 क्योंकि यहोवा ही बुद्धि देता है और उसके मुख से ही ज्ञान
 और समझदारी की बातें फूटती है।
7 उसके भंडार में खरी बुद्धि उनके लिये रहती जो खरे हैं,
 और उनके लिये जिनका चाल चलन विवेकपूर्ण रहता है।
 वह जैसे एक ढाल है।
8 न्याय के मार्ग की रखवाली करता है
 और अपने भक्तों की वह राह संवारता है।

9 तभी तू समझेगा की नेक क्या है, न्यायपूर्ण क्या है,
 और पक्षपात रहित क्या है, यानी हर भली राह।
10 बुद्धि तेरे मन में प्रवेश करेगी
 और ज्ञान तेरी आत्मा को भाने लगेगा।
11 तुझको अच्छे—बुरे का बोध बचायेगा,
 समझ बूझ भरी बुद्धि तेरी रखवाली करेगी,

समीक्षा

परमेश्वर के वचनों को हृदय में संग्रहित करें

क्या आप काफी समय से परमेश्वर को अच्छी तरह से जानना चाहते हैं? क्या आप बुद्धिमान, गुणवान होने के साथ - साथ अधिक ज्ञान और समझ पाना चाहते हैं?

मैं आपको प्रोत्साहित करना चाहता हूँ कि आप हर रोज़ परमेश्वर के वचनों को पढ़ने की आदत बनाएं।

नीतिवचन के लेखक ज़ोर देकर कहते हैं, कि ‘तू मेरे वचन ग्रहण कर, और मेरी आज्ञाओं को अपने हृदय में रख छोड़, और बुद्धि की बात ध्यान से सुन, और समझ की बात मन लगा कर सोच; ... क्योंकि बुद्धि तो तेरे हृदय में प्रवेश करेगी’ (पद - 1-2,10)  

  1. आपको क्या करना चाहिए?

आपको खुद के अंदर परमेश्वर के वचनों को भरना चाहिये। आपको वचन को ‘ग्रहण’ करने, (पद - 1) ‘सुनने और लागू करने,’ (पद - 2) ‘बोलने’ (पद - 3) और ‘खोजने’ (पद - 4) की ज़रूरत है। उसकी खोज कुछ इस प्रकार से करें, कि जैसे सोना निकालनेवाला सोने की खोज करता है, जैसे एक साहसी ख़ज़ाने की खोज करता है (पद - 4 एम.एस.जी.)। इसमें समय और समर्पण लगता है। हर रोज़ नियमित रूप से बाइबल पढ़ने के लिए समय निर्धारित कीजिए और अपने कार्यक्रम की सूची में इसे सर्वोच्च प्राथमिकता दीजिए।

  1. यदि आप ऐसा करेंगे, तो परमेश्वर क्या वायदा करते हैं?

आपको ‘परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त होगा‘ (पद - 5)। क्योंकि यह परमेश्वर का स्वभाव है, कि वे बुद्धि और समझ देते हैं (पद - 6) और ‘जय’ (पद - 7) ‘सुरक्षा’ (पद - 8) और ‘विवेक’ भी देते हैं (पद - 11)। उन्होंने यह वायदा किया है कि परमेश्वर आपकी देखभाल करेंगे और बुराई के मार्ग पर चलने से या गलत करने से आपको बचाएंगे (पद - 8,12, एम.एस.जी.)।

प्रार्थना

परमेश्वर, मेरी सहायता कीजिए कि मैं प्रतिदिन आपके साथ समय बिता सँक़ू। और मेरे जीवन के लिए बाइबल की शिक्षाओं को लागू कर सकूँ।

नए करार

मत्ती 12:22-45

यीशु में परमेश्वर की शक्ति है

22 फिर यीशु के पास लोग एक ऐसे अन्धे को लाये जो गूँगा भी था क्योंकि उस पर दुष्ट आत्मा सवार थी। यीशु ने उसे चंगा कर दिया और इसीलिये वह गूँगा अंधा बोलने और देखने लगा। 23 इस पर सभी लोगों को बहुत अचरज हुआ और वे कहने लगे, “क्या यह व्यक्ति दाऊद का पुत्र हो सकता है?”

24 जब फरीसियों ने यह सुना तो वे बोले, “यह दुष्टात्माओं को उनके शासक बैल्जा़बुल के सहारे निकालता है।”

25 यीशु को उनके विचारों का पता चल गया। वह उनसे बोला, “हर वह राज्य जिसमें फूट पड़ जाती है, नष्ट हो जाता है। वैसे ही हर नगर या परिवार जिसमें फूट पड़ जाये टिका नहीं रहेगा। 26 तो यदि शैतान ही अपने आप को बाहर निकाले फिर तो उसमें अपने ही विरुद्ध फूट पड़ गयी है। सो उसका राज्य कैसे बना रहेगा? 27 और फिर यदि यह सच है कि मैं बैल्ज़ाबुल के सहारे दुष्ट आत्माओं को निकालता हूँ तो तुम्हारे अनुयायी किसके सहारे उन्हें बाहर निकालते हैं? सो तुम्हारे अपने अनुयायी ही सिद्ध करेंगे कि तुम अनुचित हो। 28 मैं दुष्टात्माओं को परमेश्वर की आत्मा की शक्ति से निकालता हूँ। इससे यह सिद्ध है कि परमेश्वर का राज्य तुम्हारे निकट ही आ पहुँचा है। 29 फिर कोई किसी बलवान के घर में घुस कर उसका माल कैसे चुरा सकता है, जब तक कि पहले वह उस बलवान को बाँध न दे। तभी वह उसके घर को लूट सकता है। 30 जो मेरा साथ नहीं है, मेरा विरोधी हैं। और जो बिखरी हुई भेड़ों को इकट्ठा करने में मेरी मदद नहीं करता है, वह उन्हें बिखरा रहा है।

31 “इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ कि सभी की हर निन्दा और पाप क्षमा कर दिये जायेंगे किन्तु आत्मा की निन्दा करने वाले को क्षमा नहीं किया जायेगा। 32 कोइ मनुष्य के पुत्र के विरोध में यदि कुछ कहता है, तो उसे क्षमा किया जा सकता है, किन्तु पवित्र आत्मा के विरोध में कोई कुछ कहे तो उसे क्षमा नहीं किया जायेगा न इस युग में और न आने वाले युग में।

व्यक्ति अपने कर्मों से जाना जाता है

33 “तुम लोग जानते हो कि अच्छा फल लेने के लिए तुम्हें अच्छा पेड़ ही लगाना चाहिये। और बुरे पेड़ से बुरा ही फल मिलता है। क्योंकि पेड़ अपने फल से ही जाना जाता है। 34 अरे ओ साँप के बच्चो! जब तुम बुरे हो तो अच्छी बातें कैसे कह सकते हो? व्यक्ति के शब्द, जो उसके मन में भरा है, उसी से निकलते हैं। 35 एक अच्छा व्यक्ति जो अच्छाई उसके मन में इकट्ठी है, उसी में से अच्छी बातें निकालता है। जबकि एक बुरा व्यक्ति जो बुराई उसके मन में है, उसी में से बुरी बातें निकालता है। 36 किन्तु मैं तुम लोगों को बताता हूँ कि न्याय के दिन प्रत्येक व्यक्ति को अपने हर व्यर्थ बोले शब्द का हिसाब देना होगा। 37 तेरी बातों के आधार पर ही तुझे निर्दोष और तेरी बातों के आधार पर ही तुझे दोषी ठहराया जायेगा।”

यीशु से आश्चर्य चिन्ह की माँग

38 फिर कुछ यहूदी धर्म शास्त्रियों और फरीसियों ने उससे कहा, “गुरु, हम तुझे आश्चर्य चिन्ह प्रकट करते देखना चाहते हैं।”

39 उत्तर देते हुए यीशु ने कहा, “इस युग के बुरे और दुराचारी लोग ही आश्चर्य चिन्ह देखना चाहते हैं। भविष्यवक्ता योना के आश्चर्य चिन्ह को छोड़कर, उन्हें और कोई आश्चर्य चिन्ह नहीं दिया जायेगा।” 40 और जैसे योना तीन दिन और तीन रात उस समुद्री जीव के पेट में रहा था, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी तीन दिन और तीन रात धरती के भीतर रहेगा। 41 न्याय के दिन नीनेवा के निवासी आज की इस पीढ़ी के लोगों के साथ खड़े होंगे और उन्हें दोषी ठहरायेंगे। क्योंकि नीनेवा के वासियों ने योना के उपदेश से मन फिराया था। और यहाँ तो कोई योना से भी बड़ा मौजूद है!

42 “न्याय के दिन दक्षिण की रानी इस पीढ़ी के लोगों के साथ खड़ी होगी और उन्हें अपराधी ठहरायेगी, क्योंकि वह धरती के दूसरे छोर से सुलेमान का उपदेश सुनने आयी थी और यहाँ तो कोई सुलेमान से भी बड़ा मौजूद है!

लोगों में शैतान

43 “जब कोई दुष्टात्मा किसी व्यक्ति को छोड़ती है तो वह आराम की खोज में सूखी धरती ढूँढती फिरती है, किन्तु वह उसे मिल नहीं पाती। 44 तब वह कहती है कि जिस घर को मैंने छोड़ा था, मैं फिर वहीं लौट जाऊँगी। सो वह लौटती है और उसे अब तक खाली, साफ सुथरा तथा सजा-सँवरा पाती है। 45 फिर वह लौटती है और अपने साथ सात और दुष्टात्माओं को लाती है जो उससे भी बुरी होती हैं। फिर वे सब आकर वहाँ रहने लगती हैं। और उस व्यक्ति की दशा पहले से भी अधिक भयानक हो जाती है। आज की इस बुरी पीढ़ी के लोगों की दशा भी ऐसी ही होगी।”

समीक्षा

पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होते जांए।

आप जो बोलते हैं, वे शब्द वास्तव में महत्त्व रखते हैं। ज़ॉयस मेयर लिखती हैं, कि ‘ प्रत्येक शब्द जो हम कहते हैं या तो वह निर्माण करने के लिए एक ईंट है या फिर नष्ट करने के लिए एक बुलडोज़र है’। आपके मन में जो कुछ भरा है, वह अभी या फिर बाद में आपकी बातों से प्रकट होगा । आप देखने, पढ़ने और सोचने के बारे में सावधान रहें। अपने मन को अच्छी बातों से भर लें, जिससे आप अच्छा सोचेंगे, बोलेंगे और अच्छा फल लायेंगे (पद - 33)।

यीशु ने कहा है, ‘जो मन में भरा है, वही मुँह पर भी आता है। भला मनुष्य मन के भले भंडार से भली बातें निकालता है और बुरा मनुष्य बुरे भंडार से बुरी बातें ही निकालता है’ (पद - 34-35)।

यीशु की यह ‘शिक्षा’, जो मन में भरा है वही मुँह पर आता है यह पवित्र आत्मा (बुरी आत्मा का विरोध करने वाली आत्मा) के बारे में सिखाती है। आप अपने सोच - विचार के तरीकों से खुद को कभी बदल नहीं सकते। आपको पवित्र आत्मा की ज़रूरत है – जो आपको उसके प्रेम और अच्छे फल से भरता है।

मैं यीशु के वचन (पद - 30-32) को ग्रहण करता हूँ जिसका मतलब यह है, कि अपने जीवनकाल में पवित्र आत्मा का विरोध करना एक ऐसा पाप है जिसे कभी क्षमा नहीं किया जा सकता। अक्सर लोग चिंतित रहते हैं कि उन्होंने ऐसा पाप किया है, जो क्षमा के योग्य नहीं है’। फिर भी यदि आप इस विषय में चिंतित हैं तो इसका अर्थ यह है कि आपने अब तक समर्पण नहीं किया है। यदि आप मन फिराए और परमेश्वर से क्षमा मांगें, तो ऐसा कोई पाप नहीं है जो क्षमा न किया जा सके। मन फिराने से और मसीह की ओर लौट आने से इंकार करना यानि अपने जीवन में पवित्र आत्मा का विरोध करना है, ये ऐसे पाप हैं जिन्हें क्षमा नहीं किया जा सकता।

यीशु एक दृष्टांत का उपयोग करते हैं कि कैसे दुष्टात्मा हमारे जीवन में कार्य करती है, यह चिताने के लिए कि जब दुष्टात्मा हमें फिर से अपनी पुरानी ज़िंदगी में ले जाती है, तो यह ‘एक साफ सुथरे घर में’ बहुत ही भयनाक कार्य करती हैं। यीशु हमें चेतावनी देते हैं कि जब लोग अपने पुराने पाप की ओर लौट जाते हैं तो वे अक्सर पहले से भी ज़्यादा पाप करने लगते हैं (पद - 43) और उनकी बाद की दशा पहले से भी ज़्यादा खराब हो जाती है (पद - 45)।

फरीसी और व्यवस्था के शिक्षक इसका अच्छा उदाहरण हैं (पद - 38)। उन्होने यीशु के कई चमत्कारों को देखा था, परंतु वे यह मानने से इंकार करते थे कि यीशु की सामर्थ पवित्र आत्मा का कार्य है। वे यीशु से कहते हैं ‘हे गुरू, हम तुझ से एक चिन्ह देखना चाहते हैं’ (पद - 38 एम.एस.जी.) इस प्रकार वे यीशु की परीक्षा कर रहे थे।

फिर भी, यीशु के जवाब ने उनकी स्थिति बदल दी। यीशु खुद की तुलना पुराने नियम के भविष्यवक्ता योना से करते हैं; और आगे होने वाली घटनाओं के बारे में - यानि उनकी मृत्यु और तीसरे दिन मुर्दो में से जी उठने के बारे में - बताते हैं (पद - 39-40)। यीशु का फिर से जी उठना ही उनकी पुनरुत्थान की असली पहचान है।

यीशु फरीसियों को पुराने नियम से दो घटनाओं द्वारा पर्याप्त गवाही देते हैं। पहला, नीनवे में योना का प्रचार सुनकर लोगों ने मन फिराया। यीशु योना से बढ़कर हैं। दूसरा, शीबा की रानी ने सुलेमान के ज्ञान को सम्मान दिया। यहाँ यीशु का ज्ञान सुलेमान के ज्ञान से बढ़कर है। उन्हें और हमें कोई और प्रमाण की ज़रूरत नहीं है।

पवित्र आत्मा ही हैं जो हमें शैतानी शक्ति से मुक्ति देते हैं। (पद - 28)। हर रोज़ बुराई का विरोध करने के लिए लड़ें और पवित्र आत्मा से भर जाने के लिए मांगें। आपका मन साफ है इसकी जाँच आपके मुँह से निकलने वाली बातों से होती है। इसलिए ‘जो कुछ मन में भरा है वही मुँह से निकलता है।’

यीशु उनसे कहते हैं कि ‘ तुम्हारा मन साँप के बिल के समान है। तुम स्वयं अशुद्ध मनवाले हो, तो यह कैसे मान सकते हो कि जो तुम कहते हो वह उचित है? यह आपका मन है, कोई शब्दकोष नहीं, जो आपके बातों का अर्थ बताए (पद - 34. एम.एस.जी.)। आप जो कहते हैं वे बातें उचित हैं या नहीं यह निर्धारित करने से पहले आप यह सुनिश्चत कर लें, कि आपका ह्रदय पवित्र आत्मा से भरा हो।

प्रार्थना

प्रभु, मैं आज प्रार्थना करता हूँ, कि आप मुझे एक बार फिर पवित्र आत्मा से भर दीजिए।

जूना करार

उत्पत्ति 32:1-33:20

एसाव के साथ फिर मेल

32याकूब ने भी वह जगह छोड़ी। जब वह यात्रा कर रहा था उसने परमेश्वर के स्वर्गदूत को देखा। 2 जब याकूब ने उन्हें देखा तो कहा, “यह परमेश्वर का पड़ाव है।” इसलिए याकूब ने उस जगह का नाम महनैम रखा।

3 याकूब का भाई एसाव सेईर नामक प्रदेश में रहता था। यह एदोम का पहाड़ी प्रदेश था। याकूब ने एसाव के पास दूत भेजा। 4 याकूब ने दूत से कहा, “मेरे स्वामी एसाव को यह खबर दो: ‘तुम्हारा सेवक याकूब कहता है, मैं इन सारे वर्षों लाबान के साथ रहा हूँ। 5 मेरे पास मवेशी, गधे, रेवड़े और बहुत से नौकर हैं। मैं इन्हें तुम्हारे पास भेजता हूँ और चाहता हूँ कि तुम हमें स्वीकार करो।’”

6 दूत याकूब के पास लौटा और बोला, “हम तुम्हारे भाई एसाव के पास गए। वह तुमसे मिलने आ रहा है। उसके साथ चार सौ सशस्त्र वीर हैं।”

7 उस सन्देश ने याकूब को डरा दिया। उसने अपने सभी साथीयों को दो दलों में बाँट दिया। उसने अपनी सभी रेवड़ों, मवेशियों के झुण्ड और ऊँटों को दो भागों में बाँटा। 8 याकूब ने सोचा, “यदि एसाव आकर एक भाग को नष्ट करता है तो दूसरा भाग सकता है और बच सकता है।”

9 याकूब ने कहा, “हे मेरे पूर्वज इब्राहीम के परमेश्वर। हे मेरे पिता इसहाक के परमेश्वर। तूने मुझे अपने देश में लौटने और अपने परिवार में आने के लिए कहा। तूने कहा कि तू मेरी भलाई करेगा। 10 तू मुझ पर बहुत दयालु रहा है। तूने मेरे लिए बहुत अच्छी चीजें की हैं। पहली बार मैंने यरदन नदी के पास यात्रा की, मेरे पास टहलने की छड़ी के अतिरिक्त कुछ भी न था। किन्तु मेरे पास अब इतनी चीजें हैं कि मैं उनको पूरे दो दलों में बाँट सकूँ। 11 तुझसे प्रार्थना करता हूँ कि कृपा करके मुझे मेरे भाई एसाव से बचा। मैं उससे डरा हुआ हूँ। इसलिए कि वह आएगा और हम सभी को, यहाँ तक कि बच्चों सहित माताओं को भी जान से मार डालेगा। 12 हे यहोवा, तूने मुझसे कहा, ‘मैं तुम्हारी भलाई करूँगा। मैं तुम्हारे परिवार को बढ़ाऊँगा और तुम्हारे वंशजों को समुद्र के बालू के कणों के समान बढ़ा दूँगा। वे इतने अधिक होंगे कि गिने नहीं जा सकेंगे।’”

13 याकूब रात को उस जगह ठहरा। याकूब ने कुछ चीजें एसाव को भेंट देने के लिए तैयार कीं। 14 याकूब ने दो सौ बकरियाँ, बीस बकरे, दो सौ भेड़ें तथा बीस नर भेड़े लिए। 15 याकूब ने तीस ऊँट और उनके बच्चे, चालीस गायें और दस बैल, बीस गदहियाँ और दस गदहे लिए। 16 याकूब ने जानवरों का हर एक झुण्ड नौकरों को दिया। तब याकूब ने नौकरों से कहा, “सब जानवरों के हर झुण्ड को अलग कर लो। मेरे आगे—आगे चलो और हर झुण्ड के बीच कुछ दूरी रखो।” 17 याकूब ने उन्हें आदेश दिया। जानवरों के पहले झुण्ड वाले नौकर से याकूब ने कहा, “मेरा भाई एसाव जब तुम्हारे पास आए और तुमसे पूछे, ‘यह किसके जानवर हैं? तुम कहाँ जा रहे हो? तुम किसके नौकर हो?’ 18 तब तुम उत्तर देना, ‘ये जानवर आपके सेवक याकूब के हैं। याकूब ने इन्हें अपने स्वामी एसाव को भेंट के रूप में भेजे हैं, और याकूब भी हम लोगों के पीछे आ रहा है।’”

19 याकूब ने दूसरे नौकर, तीसरे नौकर, और सभी अन्य नौकरों को यही बात करने का आदेश दिया। उसने कहा, “जब तुम लोग एसाव से मिलो तो यही एक बात कहोगे। 20 तुम लोग कहोगे, ‘यह आपकी भेंट है, और आपका सेवक याकूब भी लोगों के पीछे आ रहा है।’”

याकूब ने सोचा, “यदि मैं भेंट के साथ इन पुरुषों को आगे भेजता हूँ तो यह हो सकता है कि एसाव मुझे क्षमा कर दे और मुझको स्वीकार कर ले।” 21 इसलिए याकूब ने एसाव को भेंट भेजी। किन्तु याकूब उस रात अपने पड़ाव में ही ठहरा।

22 बाद में उसी रात याकूब उठा और उस जगह को छोड़ दिया। याकूब ने अपनी दोनों पत्नियों, अपनी दोनों दासियों और अपने ग्यारह पुत्रों को साथ लिया। घाट पर जाकर याकूब ने यब्बोक नदी को पार किया। 23 याकूब ने अपने परिवार को नदी के उस पार भेजा। तब याकूब ने अपनी सभी चीजें नदी के उस पार भेज दीं।

परमेश्वर से मल्ल युद्ध

24 याकूब नदी को पार करने वाला अन्तिम व्यक्ति था। किन्तु पार करने से पहले जब तक वह अकेला ही था, एक व्यक्ति आया और उससे मल्ल युद्ध करने लगा। उस व्यक्ति ने उससे तब तक मल्ल युद्ध किया जब तक सूरज न निकला। 25 व्यक्ति ने देखा कि वह याकूब को हरा नहीं सकता। इसलिए उसने याकूब के पैर को उसके कूल्हे के जोड़ पर छुआ। उस समय याकूब के कूल्हे का जोड़ अपने स्थान से हट गया।

26 तब उस व्यक्ति ने याकूब से कहा, “मुझे छोड़ दो। सूरज ऊपर चढ़ रहा है।”

किन्तु याकूब ने कहा, “मैं तुमको नहीं छोड़ूँगा। मुझको तुम्हें आशीर्वाद देना होगा।”

27 और उस व्यक्ति ने उससे कहा, “तुम्हारा क्या नाम है?”

और याकूब ने कहा, “मेरा नाम याकूब है।”

28 तब व्यक्ति ने कहा, “तुम्हारा नाम याकूब नहीं रहेगा। अब तुम्हारा नाम इस्राएल होगा। मैं तुम्हें यह नाम इसलिए देता हूँ कि तुमने परमेश्वर के साथ और मनुष्यों के साथ युद्ध किया है और तुम हराए नहीं जा सके हो।”

29 तब याकूब ने उस से पूछा, “कृपया मुझे अपना नाम बताएं।”

किन्तु उस व्यक्ति ने कहा, “तुम मेरा नाम क्यों पूछते हो?” उस समय उस व्यक्ति ने याकूब को आशीर्वाद दिया।

30 इसलिए याकूब ने उस जगह का नाम पनीएल रखा। याकूब ने कहा, “इस जगह मैंने परमेश्वर का प्रत्यक्ष दर्शन किया है। किन्तु मेरे जीवन की रक्षा हो गई।” 31 जैसे ही वह पनीएल से गुजरा, सूरज निकल आया। याकूब अपने पैरों के कारण लंगड़ाकर चल रहा था। 32 इसलिए आज भी इस्राएल के लोग पुट्ठे की माँसपेशी को नहीं खाते क्योंकि इसी माँसपेशी पर याकूब को चोट लगी थी।

याकूब अपनी बीरता दिखाता है

33याकूब ने दृष्टि उठाई और एसाव को आते हुए देखा। एसाव आ रहा था और उसके साथ चार सौ पुरुष थे। याकूब ने अपने परिवार को चार समूहों में बाँटा। लिआ और उसके बच्चे एक समूह में थे, राहेल और यूसुफ एक समूह में थे, दासी और उनके बच्चे दो समूहों में थे। 2 याकूब ने दासियों और उनके बच्चों को आगे रखा। उसके बाद उनके पीछे लिआ और उसके बच्चों को रखा और याकूब ने राहेल और यूसुफ को सबके अन्त में रखा।

3 याकूब स्वयं एसाव की ओर गया। इसलिए वह पहला व्यक्ति था जिसके पास एसाव आया। अपने भाई की ओर बढ़ते समय याकूब ने सात बार ज़मीन पर झुककर प्रणाम किया।

4 तब एसाव ने याकूब को देखा, वह उस से मिलने को दौड़ पड़ा। एसाव ने याकूब को अपनी बाहों में भर लिया और छाती से लगाया। तब एसाव ने उसकी गर्दन को चूमा और दोनों आनन्द में रो पड़े। 5 एसाव ने नज़र उठाई और स्त्रियों तथा बच्चों को देखा। उसने कहा, “तुम्हारे साथ ये कौन लोग हैं?”

याकूब ने उत्तर दिया, “ये वे बच्चे हैं जो परमेश्वर ने मुझे दिए हैं। परमेश्वर मुझ पर दयालु रहा है।”

6 तब दोनों दासियाँ अपने बच्चों के साथ एसाव के पास गयीं। उन्होंने उसको झुककर प्रणाम किया। 7 तब लिआ अपने बच्चों के साथ एसाव के सामने गई और उसने प्रणाम किया और तब राहेल और यूसुफ एसाव के सामने गए और उन्होंने भी प्रणाम किया।

8 एसाव ने कहा, “मैंने जिन सब लोगों को यहाँ आते समय देखा वे कौन थे? और वे सभी जानवर किस लिए थे?”

याकूब ने उत्तर दिया, “वे तुमको मेरी भेंट हैं जिसंसे तुम मुझे स्वीकार कर सको!”

9 किन्तु एसाव ने कहा, “भाई, तुम्हें मुझको कोई भेंट नहीं देनी चाहिए क्योंकि मेरे पास सब कुछ बहुतायत से है।”

10 याकूब ने कहा, “नहीं! मैं तुमसे विनती करता हूँ। यदि तुम सचमुच मुझे स्वीकार करते हो तो कृपया जो भेटें देता हूँ तुम स्वीकार करो। मैं तुमको दुबारा देख कर बहुत प्रसन्न हूँ। यह तो परमेश्वर को देखने जैसा है। मैं यह देखकर बहुत प्रसन्न हूँ कि तुमने मुझे स्वीकार किया है। 11 इसलिए मैं विनती करता हूँ कि जो भेंट मैं देता हूँ उसे भी स्वीकार करो। परमेश्वर मेरे ऊपर बहुत कृपालु रहा है। मेरे पास अपनी आवश्यकता से अधिक है।” इस प्रकार याकूब ने एसाव से भेंट स्वीकार करने को विनती की। इसलिए एसाव ने भेंट स्वीकार की।

12 तब एसाव ने कहा, “अब तुम अपनी यात्रा जारी रख सकते हो। मैं तुम्हारे साथ चलूँगा।”

13 किन्तु याकूब ने उस से कहा, “तुम यह जानते हो कि मेरे बच्चे अभी कमज़ोर हैं और मुझे अपनी रेवड़ों और उनके बच्चों की विशेष देख—रेख करनी चाहिए। यदि मैं उन्हें बहुत दूर एक दिन में चलने के लिए विवश करता हूँ तो सभी पशु मर जाएंगे। 14 इसलिए तुम आगे चलो और मैं धीरे—धीरे तुम्हारे पीछे आऊँगा। मैं पशुओं और अन्य जानवरों की रक्षा के लिए काफी धीरे—धीरे बढ़ूँगा और मैं काफी धीरे—धीरे इसलिए चलूँगा कि मेरे बच्चे बहुत अधिक थक न जाएं। मैं सेईर में तुमसे मिलूँगा।”

15 इसलिए एसाव ने कहा, “तब मैं अपने कुछ साथियों को तुम्हारी सहायता के लिए छोड़ दूँगा।”

किन्तु याकूब ने कहा, “यह तुम्हारी विशेष दया है। किन्तु ऐसा करने की कोई आवश्यकता नहीं है।” 16 इसलिए उस दिन एसाव सेईर की वापसी यात्रा पर चल पढ़ा। 17 किन्तु याकूब सुक्कोत को गया। वहाँ उसने अपने लिए एक घर बनाया और अपने मवेशियों के लिए छोटी पशुशालाएँ बनाईं। इसी कारण इस जगह का नाम सुक्कोत रखा।

18 बाद में याकूब ने अपना जो कुछ था उसे कनान प्रदेश से शकेम नगर को भेज दिया। याकूब ने नगर के समीप मैदान में अपना डेरा डाला। 19 याकूब ने उस भूमि को शकेम के पिता हमोर के परिवार से खरीदा। याकूब ने चाँदी के सौ सिक्के दिए। 20 याकूब ने परमेश्वर की उपासना के लिए वहाँ एक विशेष स्मरण स्तम्भ बनाया। याकूब ने जगह का नाम “एले, इस्राएल का परमेश्वर” रखा।

समीक्षा

प्रार्थना में परमेश्वर से कड़ा संघर्ष करें

क्या आप अपने जीवन में भय या चिंताओं का सामना कर रहे हैं?

याकूब ने बहुत ही चिंताजनक परिस्थितियों का सामना किया था। वह अपने भाई एसाव से पराजित हो गया और उसे यह भय था कि शायद एसाव उसको ढूँढ रहा है। ‘वह बहुत भय और संकट में था’ (पद - 32.7)।

याकूब प्रार्थना करने वाला व्यक्ति था अपने पापों के बावजूद उसने अपने परमेश्वर को जाना था। उसने खुद की अयोग्यता को पहचाना, कि ‘आपने अपने दास पर जितनी भी भलाई और विश्वासयोग्यता दिखाई है मैं उसके बिल्कुल योग्य नहीं हूँ (पद - 10)।

उसने प्रार्थना की, विश्वास किया और परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं को दृढ़तापूर्वक कहा, ‘मेरी विनती सुनकर मुझे मेरे भाई एसाव के हाथ से बचा; आपने कहा है कि ‘मैं निश्च्य ही तेरी भलाई करुँगा और तेरे वंश को समुद्र की बालू के किनकों के समान बहुत करुँगा, जो बहुतायत के कारण गिने नहीं जा सकते; उसकी प्रार्थना का उत्तर उसे मिला जिसकी वह कल्पना भी नहीं कर सकता था।

प्रार्थना हमेशा आसान नहीं होती है। कभी-कभी हमें याकूब की तरह परमेश्वर के साथ संघर्ष करना पड़ता है (3:22-32, कुलुस्सियों 4:12)। यह ताकत और समय के संदर्भ में महँगा भी हो सकता है। यह दृढ़ निश्चय की अपेक्षा करता है। याकूब ने परमेश्वर से कहा ‘जब तक आप मुझे आशीर्वाद नहीं देंगे तब तक मैं आपको जाने नहीं दूँगा (32.26) ; लेकिन उसके बाद हम यह भी देखते हैं कि वह लंगड़ा कर चलता था (पद - 31)।

नये नियम में इसकी सशक्त तुलना प्रेरित पौलुस के शब्द ‘शरीर में काँटे’ से की गई है (2 कुरिन्थियों 12.7), जिसे निकालने के लिए वह परमेश्वर से तीन बार कह चुके हैं। आपकी दुर्बलताएँ और कमज़ोरियाँ परमेश्वर को आपका उपयोग करने से रोक नहीं सकतीं। बल्कि परमेश्वर हमारी सामर्थ से ज़्यादा हमारी दुर्बलताओं का उपयोग करते हैं। परमेश्वर ने पौलुस के शरीर से वह काँटा नहीं निकाला, बल्कि उन्होनें कहा ‘मेरी सामर्थ निर्बलताओं में सिद्ध होती है’ (पद - 8)।

शायद आपको महसूस हो रहा होगा कि ‘आपके शरीर में काँटा लगा है या आप लंगड़ा के चल रहे होंगे’: आप में कुछ अति संवेदनशीलता या अपंगता होगी। जैकी पुलिंगर कहती हैं कि, वह उन पर भरोसा नहीं करती जो लंगड़ाकार नहीं चलते। अक्सर कठिनाई, निराशा और संघर्ष के कारण हमारे मन बदल जाते हैं। परमेश्वर के साथ संघर्ष करने के बाद हम याकूब में परिवर्तन देखते हैं। अपने भाई के प्रति उसका व्यवहार पूरी तरह से बदल जाता है (उत्पत्ति 33)।

प्रार्थना में विजयी होने के बाद सब कुछ अपने स्थान पर है ऐसा लगने लगा था। ‘एसाव याकूब से मिलने के लिए दौड़ा और उसको गले से लगाकर चूमा, फिर वे दोनों रो पड़े। यह पुनर्मिलन और सुलह बहुत ही अद्भुत है (पद - 4)।

एक दूसरे के प्रति उनका व्यवहार पूरी तरह से बदल गया था। एसाव ने कहा ‘हे मेरे भाई मेरे पास तो बहुत है जो तेरा है वह तेरा ही रहे (पद - 9)।

याकूब ने कहा ‘नहीं नहीं; यदि तेरा अनुग्रह मुझ पर हो, तो मेरी भेंट ग्रहण कर क्योंकि मैंने तेरा दर्शन पाकर मानो परमेश्वर का दर्शन पाया है और तू मुझ से प्रसन्न हुआ है। इसलिए यह भेंट जो तुझे भेजी गई है, ग्रहण कर, क्योंकि परमेश्वर ने मुझ पर अनुग्रह किया है, और मेरे पास बहुत है’ (पद - 10-11)।

प्रार्थना

प्रभु, मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आप प्रार्थनाओं का उत्तर देने वाले परमेश्वर हैं। हमारी सहायता कीजिए कि हम भी याकूब की तरह प्रार्थना में संघर्ष कर सकें। प्रभु मैं प्रार्थना करता हूँ कि मसीह में जो हमारे भाई - बहन हैं उनके साथ संबंधो में एक बार फिर से मेल मिलाप हो जाए। मेरे मुँह के शब्द मेरे हृदय की भरपूरी से निकलें।

पिप्पा भी कहते है

उत्पत्ति 32:1-33:20

अपने माता-पिता, ससुर और भाई के साथ याकूब का संबंध उत्तमता से बहुत दूर हो चुका था। फिर भी हम उनके लिए परमेश्वर के प्रेम और प्रावधान को देखते हैं। प्रार्थना में परमेश्वर से संघर्ष करने के बाद हम याकूब की नई विनम्रता देखते हैं। पहली बार हम देखते हैं कि वह लेने के बजाय देना चाहता था।

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संदर्भ

नोट्स:

जॉयस मेयर, लव आउट लाउड (होल्डर एंड स्टोटन, 2011)

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