जीवन का मार्गदर्शन कैसे करें
परिचय
हमारी पिछली कार के दोनों तरफ़ कई खरोंचें थीं। मुझे शक है (हालाँकि मेरी याददाश्त इस बारे में बड़ी ही धुंधली है) कि इनमें से ज़्यादातर के लिए मैं ही ज़िम्मेदार था। ये खरोंचें इसलिए आईं क्योंकि हमारे चर्च के परिसर के एक तरफ़ का प्रवेश द्वार बहुत संकरा था, और वहाँ से गाड़ी मोड़ना काफी मुश्किल था।
बुद्धि को ‘सही दिशा में मोड़ने की कला’ भी कहा गया है। जैसे आप गाड़ी मोड़ते हैं, वैसे ही ज़िंदगी में भी आपको कई तंग और मुश्किल हालात से गुज़रना होगा, जहाँ बिना ख़ुद को या दूसरों को नुकसान पहुँचाए आगे बढ़ने के लिए बड़ी समझदारी और सूझ-बूझ की ज़रूरत होती है।
नीतिवचन 2:12-22
12 बुद्धि तुझे कुटिलों की राह से बचाएगी
जो बुरी बात बोलते हैं।
13 अंधेरी गलियों में आगे बढ़ जाने को वे सरल—
सीधी राहों को तजते रहते हैं।
14 वे बुरे काम करने में सदा आनन्द मनाते हैं,
वे पापपूर्ण कर्मों में सदा मग्न रहते हैं।
15 उन लोगों पर विश्वास नहीं कर सकते।
वे झूठे हैं और छल करने वाले हैं।
किन्तु तेरी बुद्धि और समझ तुझे इन बातों से बचायेगी।
16 यह बुद्धि तुझको वेश्या और
उसकी फुसलाती हुई मधुर वाणी से बतायेगी।
17 जिसने अपने यौवन का साथी त्याग दिया
जिससे वाचा कि उपेक्षा परमेश्वर के समक्ष किया था।
18 क्योंकि उसका निवास मृत्यु के गर्त में गिराता है
और उसकी राहें नरक में ले जाती हैं।
19 जो भी निकट जाता है कभी नहीं लौट पाता
और उसे जीवन की राहें कभी नहीं मिलती!
20 अत: तू तो भले लोगों के मार्ग पर चलेगा
और तू सदा नेक राह पर बना रहेगा।
21 क्योंकि खरे लोग ही धरती पर बसे रहेंगे
और जो विवेकपूर्ण हैं वे ही टिक पायेंगे।
22 किन्तु जो दुष्ट है वे
तो उस देश से काट दिये जायेगें।
समीक्षा
गलत मोड़ों से बचें
बेवफ़ाई (पद 16–18) एक गलत मोड़ का उदाहरण है। बुद्धि आपको ‘गलत मोड़ लेने या गलत दिशा-निर्देशों का पालन करने’ से बचाएगी (पद 12)। यह आपको रास्ते से भटकने से रोकेगी। यह आपको ‘ऐसे रास्तों पर चलने से रोकेगी जो कहीं नहीं पहुँचते, और आपको चक्करदार मोड़ों और बंद गलियों की भूलभुलैया में भटकने से बचाएगी’ (पद 15)। बुराई देखने में आकर्षक लग सकती है, लेकिन वह टेढ़ी-मेढ़ी होती है और अंधकार की ओर ले जाती है।
विवाह एक ‘वाचा… जो परमेश्वर के सामने की जाती है’ (पद 17) है। ‘वाचा’ एक महत्वपूर्ण शब्द है जो इस्राएल के साथ परमेश्वर के संबंध का वर्णन करता है – पुरानी वाचा; और हमारे साथ उसका संबंध नई वाचा के तहत। वाचा एक बंधनकारी समझौता है जिसे तोड़ा नहीं जाना चाहिए।
व्यभिचारी संबंध में शामिल होना दोनों पक्षों के लिए गलत है। इस मामले में, यह स्त्री है जिसने ‘अपने युवावस्था के साथी को छोड़ दिया’ और इस प्रकार ‘उस वाचा को अनदेखा कर दिया जो उसने परमेश्वर के सामने की थी’ (पद 17)। जो पुरुष उसके साथ व्यभिचार करता है, वह उस प्रलोभन में पड़ गया है जो उसे सही मार्ग से भटकाकर ऐसे मार्ग पर ले जाता है जो अंततः ‘मौत की ओर जाता है’ (पद 18)।
बुद्धि आपको सही रास्तों पर चलाती रहेगी (पद 16a)। यह आपके ‘कदमों को आजमाए और परखे हुए रास्तों पर रखेगी’ (पद 20)। यह आपको उन लोगों के साथ चलाती रहेगी जो ‘सीधे चलते हैं’ (पद 21)।
प्रार्थना
हे प्रभु, मुझे बुद्धि दे। मेरी मदद कर कि मैं अपनी ज़िंदगी को सीधे रास्तों पर चला सकूँ, जो जीवन की ओर ले जाते हैं।
मत्ती 14:1-21
हेरोदेस का यीशु के बारे में सुनना
14उस समय गलील के शासक हेरोदेस ने जब यीशु के बारे में सुना 2 तो उसने अपने सेवकों से कहा, “यह बपतिस्मा देने वाला यूहन्ना है जो मरे हुओं में से जी उठा है। और इसीलिये ये शक्तियाँ उसमें काम कर रही हैं। जिनसे यह इन चमत्कारों को करता है।”
यूहन्ना की हत्या
3 यह वही हेरोदेस था जिसने यूहन्ना को बंदी बना, जंजीरों में बाँध, जेल में डाल दिया था। यह उसने हिरोदियास के कहने पर किया था, जो पहले उसके भाई फिलिप्पुस की पत्नी थी। 4 यूहन्ना प्रायः उससे कहा करता था कि “तुझे इसके साथ नहीं रहना चाहिये।” 5 सो हेरोदेस उसे मार डालना चाहता था, पर वह लोगों से डरता था क्योंकि लोग यूहन्ना को नबी मानते थे।
6 पर जब हेरोदेस का जन्म दिन आया तो हिरोदियास की बेटी ने हेरोदेस और उसके मेहमानों के सामने नाच कर हेरोदेस को इतना प्रसन्न किया 7 कि उसने शपथ लेकर, वह जो कुछ चाहे, उसे देने का वचन दिया। 8 अपनी माँ के सिखावे में आकर उसने कहा, “मुझे थाली में रख कर बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना का सिर दें।”
9 यद्यपि राजा बहुत दुःखी था किन्तु अपनी शपथ और अपने मेहमानों के कारण उसने उसकी माँग पूरी करने का आदेश दे दिया। 10 उसने जेल में यूहन्ना का सिर काटने के लिये आदमी भेजे। 11 सो यूहन्ना का सिर थाली में रख कर लाया गया और उसे लड़की को दे दिया गया। वह उसे अपनी माँ के पास ले गयी। 12 तब यूहन्ना के अनुयायी आये और उन्होंने उसके धड़ को लेकर दफना दिया। और फिर उन्होंने आकर यीशु को बताया।
यीशु का पाँच हजा़र से अधिक को खाना खिलाना
13 जब यीशु ने इसकी चर्चा सुनी तो वह वहाँ से नाव में किसी एकान्त स्थान पर अकेला चला गया। किन्तु जब भीड़ को इसका पता चला तो वे अपने नगरों से पैदल ही उसके पीछे हो लिये। 14 यीशु जब नाव से बाहर निकल कर किनारे पर आया तो उसने एक बड़ी भीड़ देखी। उसे उन पर दया आयी और उसने उनके बीमारों को अच्छा किया।
15 जब शाम हुई तो उसके शिष्यों ने उसके पास आकर कहा, “यह सुनसान जगह है और बहुत देर भी हो चुकी है, सो भीड़ को विदा कर, ताकि वे गाँव में जाकर अपने लिये खाना मोल ले लें।”
16 किन्तु यीशु ने उनसे कहा, “इन्हें कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है। तुम इन्हें कुछ खाने को दो।”
17 उन्होंने उससे कहा, “हमारे पास पाँच रोटियों और दो मछलियों को छोड़ कर और कुछ नहीं है।”
18 यीशु ने कहा, “उन्हें मेरे पास ले आओ।” 19 उसने भीड़ के लोगों से कहा कि वे घास पर बैठ जायें। फिर उसने वे पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ लेकर स्वर्ग की ओर देखा और भोजन के लिये परमेश्वर का धन्यवाद किया। फिर रोटी के टुकड़े तोड़े और उन्हें अपने शिष्यों को दे दिया। शिष्यों ने वे टुकड़े लोगों में बाँट दिये। 20 सभी ने छक कर खाया। इसके बाद बचे हुए टुकड़ों से उसके शिष्यों ने बारह टोकरियाँ भरीं। 21 स्त्रियों और बच्चों को छोड़ कर वहाँ खाने वाले कोई पाँच हज़ार पुरुष थे।
समीक्षा
अच्छा रास्ता चुनें
ज़िंदगी के कठिन समय आपको गलत दिशा में ले जा सकते हैं। लेकिन अगर आप सही रास्ते पर टिके रहें, तो यह आपको और अधिक करुणा और बुद्धि की ओर ले जाएगा।
नीतिवचन की पुस्तक हमें बुद्धि के मार्ग और बुराई के मार्ग के बीच चुनाव करने को कहती है। यहाँ हम देखते हैं कि ये दोनों रास्ते असल ज़िंदगी में कैसे दिखते हैं यीशु और हेरोद के जीवन में।
- बुराई का रास्ता
हेरोद तेत्रार्क, हेरोद अन्तिपास (21 ई.पू. – 39 ई.) था। यही वह व्यक्ति था जिसने पीलातुस द्वारा यीशु को उसके पास भेजे जाने पर, यीशु को उसके सामने ठुकरा दिया था ठीक यीशु की मृत्यु से पहले (लूका 23:8–12 देखें)।
हेरोद ने वही किया था जिसके विरुद्ध नीतिवचन के लेखक ने चेतावनी दी थी। उसने अपने भाई की पत्नी, हेरोदियास, के साथ व्यभिचार किया था। जब उसके गलत कामों के बारे में उससे सामना हुआ, तो उसने अपने अपराधबोध के कारण यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले को ‘बाँधकर… जेल में डाल दिया’ (मत्ती 14:3)।
हेरोद का जीवन लगता था कि सिर्फ़ अपने सुख के इर्द-गिर्द घूम रहा है: उसने एक पत्नी को छोड़ दिया और दूसरी को हासिल कर लिया। उसका ध्यान अपने व्यक्तिगत सुख पर था, न कि उन दुखों पर जो उसके कामों से दूसरों — खासकर उसके अपने भाई फ़िलिप को हुए होंगे। सावधान रहें, जब आपका अपना सुख दूसरों की ज़रूरतों से ज़्यादा अहमियत रखने लगे।
अस्वीकृति का डर भी हमें मुसीबत में डाल सकता है। हेरोद ‘लोगों से डरता था’ (पद 5) कि अगर वह यूहन्ना को मरवा देगा तो लोग क्या कहेंगे। फिर भी, वह अपने भोज में मौजूद मेहमानों की नाराज़गी से भी डरता था, और इसलिए उसने हेरोदियास की बेटी का अनुरोध मान लिया कि यूहन्ना का सिर लाकर दे (पद 8–10)। ध्यान रखें कि दूसरों की राय आपके लिए सही और गलत से अधिक महत्व न रखने लगे।
क्योंकि यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने निडर होकर सच कहा था, हेरोद उसे मारना चाहता था (पद 4)। वास्तव में, बुराई इस परिवार में जैसे घर कर गई थी: हेरोद की भतीजी, हेरोदियास की बेटी, अपनी माँ के साथ मिलकर यूहन्ना को सिर कटवाने की योजना बनाती है (पद 6–10)। वे बुराई में इतने कठोर हो गए थे कि जब यूहन्ना का सिर थाल में लाकर दिया गया, तो उन्हें ज़रा भी घिन नहीं आई (पद 11)।
2.भलाई का रास्ता
यीशु अपने चचेरे भाई की मृत्यु की खबर से स्पष्ट रूप से बहुत दुखी हुए (पद 12)। बुरी खबर पर उनकी प्रतिक्रिया थी — ‘वह अकेले किसी सुनसान जगह चले गए’ (पद 13)। उन्हें परमेश्वर के साथ अकेले रहने की ज़रूरत थी।
फिर भी, जब उनकी योजनाओं में रुकावट आई, तो यीशु चिड़चिड़े नहीं हुए (जैसा कि हममें से कई बार मैं हो जाता हूँ)। योजनाएँ बनाना अच्छा है; लेकिन परमेश्वर को आपकी योजनाओं को बदलने की अनुमति देना और भी अच्छा है। अपनी करुणा (पद 14) के कारण, यीशु के पास इतनी बुद्धि थी कि न सिर्फ़ हालात के साथ चलें, बल्कि सक्रिय रूप से प्रतिक्रिया भी दें उन्होंने ‘उनके बीमारों को चंगा किया’ (पद 14)। इसके बाद भी, उन्होंने भीड़ से दूर जाने का मौका नहीं लिया। इसके बजाय, उन्होंने उन्हें खिलाया या यूँ कहें कि उन्होंने अपने चेलों को सिखाया कि कैसे उन्हें चमत्कारिक रूप से खिलाना है (पद 16, 19–20)। उन्होंने उन्हें काम में लगाया।
हम यीशु की असाधारण बुद्धि देखते हैं, कि कैसे उन्होंने इस पूरे दिन को संभाला। यह दिन बहुत बुरी तरह शुरू हुआ था, लेकिन यीशु ने बहुत से बीमारों को चंगा किया और ‘पाँच हज़ार पुरुषों के अलावा, स्त्रियों और बच्चों’ को चमत्कारिक रूप से खिलाया (पद 21)। यह दिन इतिहास में हमेशा के लिए याद रखा जाएगा और इसने लाखों ज़िंदगियों को प्रभावित किया है।
प्रार्थना
हे प्रभु, मेरी ज़िंदगी के कठिन समय मुझे सही रास्तों से भटकाएँ नहीं, बल्कि मुझे और अधिक करुणा और बुद्धि की ओर ले जाएँ।
उत्पत्ति 40:1-41:40
यूसुफ दो सपनों की व्याख्या करता है
40बाद में फ़िरौन के दो नौकरों ने फ़िरौन का कुछ नुकसान किया। इन नौकरों में से एक रोटी पकाने वाला तथा दूसरा फिरौन को दाखमधु देने वाले नौकर पर क्रोधित हुआ। 2-3 इसलिए फ़िरौन ने उसी कारागार में उन्हें भेजा जिसमें यूसुफ था। फ़िरौन के अंगरक्षकों का नायक पोतीपर उस कारागार का अधिकारी था। 4 नायक ने दोनों कैदियों को यूसुफ की देखरेख में रखा। दोनों कुछ समय तक कारागार में रहे। 5 एक रात दोनों कैदियों ने एक सपना देखा। (दोनों कैदी मिस्र के राजा के राजा के रोटी पकानेवाले तथा दाखमधु देने वाले नौकर थे।) हर एक कैदी के अपने—अपने सपने थे और हर एक सपने का अपना अलग अलग अर्थ था। 6 यूसुफ अगली सुबह उनके पास गया। यूसुफ ने देखा कि दोनों व्यक्ति परेशान थे। 7 यूसुफ ने पूछा, “आज तुम लोग इतने परेशान क्यों दिखाई पड़ते हो?”
8 दोनों व्यक्तियों ने उत्तर दिया, “पिछली रात हम लोगों ने सपना देखा, किन्तु हम लोग नहीं समझते कि सपने का क्या अर्थ है? कोई व्यक्ति ऐसा नहीं है जो सपनों की व्याख्या करे या हम लोगों को स्पष्ट बताए।”
यूसुफ ने उनसे कहा, “केवल परमेश्वर ही ऐसा है जो सपने को समझता और उसकी व्याख्या करता है। इसलिए मैं निवेदन करता हूँ कि अपने सपने मुझे बताओ।”
दाखमधु देने वाले नौकर का सपना
9 इसलिए दाखमधु देने वाले नौकर ने यूसुफ को अपना सपना बताया। नौकर ने कहा, “मैंने सपने में अँगूर की बेल देखी। 10 उस अंगूर की बेल की तीन शाखाएँ थीं। मैंने शाखाओं में फूल आते और उन्हें अँगूर बनते देखा। 11 मैं फ़िरौन का प्याला लिए था। इसलिए मैंने अंगूरों को लिया और प्याले में रस निचोड़ा। तब मैंने प्याला फ़िरौन को दिया।”
12 तब यूसुफ ने कहा, “मैं तुमको सपने की व्याख्या समझाऊँगा। तीन शाखाओं का अर्थ तीन दिन है। 13 तीन दिन बीतने के पहले फ़िरौन तुमको क्षमा करेगा और तुम्हें तुम्हारे काम पर लौटने देगा। तुम फ़िरौन के लिए वही काम करोगे जो पहले करते थे। 14 किन्तु जब तुम स्वतन्त्र हो जाओगे तो मुझे याद रखना। मेरी सहायता करना। फ़िरौन से मेरे बारे में कहना जिससे मैं इस कारागार से बाहर हो सकूँ। 15 मुझे अपने घर से लाया गया था जो मेरे अपने लोगों हिब्रूओं का देश है। मैंने कोई अपराध नहीं किया है। इसलिए मुझे कारागार में नहीं होना चाहिए।”
रोटी बनाने वाले का सपना
16 रोटी बनाने वाले ने देखा कि दूसरे नौकर का सपना अच्छा था। इसलिए रोटी बनाने वाले ने यूसुफ से कहा, “मैंने भी सपना देखा। मैंने देखा कि मेरे सिर पर तीन रोटियों की टोकरियाँ हैं। 17 सबसे ऊपर की टोकरी में हर प्रकार के पके भोजन थे। यह भोजन राजा के लिए था। किन्तु इस भोजन को चिड़ियाँ खा रही थीं।”
18 यूसुफ ने उत्त्तर दिया, “मैं तुम्हें बताऊँगा कि सपने का क्या अर्थ है? तीन टोकरियों का अर्थ तीन दिन है। 19 तीन दिन बीतने के पहले राजा तुमको इस जेल से बाहर निकालेगा। तब राजा तुम्हारा सिर काट डालेगा। वह तुम्हारे शरीर को एक खम्भे पर लटकाएगा और चिड़ियाँ तुम्हारे शरीर को खाएँगी।”
यूसुफ को भुला दिया गया
20 तीन दिन बाद फ़िरौन का जन्म दिन था। फ़िरौन ने अपने सभी नौकरों को दावत दी। दावत के समय फ़िरौन ने दाखमधु देने वाले तथा रोटी पकाने वाले नौकरों को कारागार से बाहर आने दिया। 21 फ़िरौन ने दाखमधु देने वाले नौकर को स्वतन्त्र कर दिया। फ़िरौन ने उसे नौकरी पर लौटा लिया और दाखमधु देने वाले नौकर ने फ़िरौन के हाथ में एक दाखमधु का प्याला दिया। 22 लेकिन फ़िरौन ने रोटी बनाने वाले को मार डाला। सभी बातें जैसे यूसुफ ने होनी बताई थीं वैसे ही हुईं। 23 किन्तु दाखमधु देने वाले नौकर को यूसुफ की सहायता करना याद नहीं रहा। उसने यूसुफ के बारे में फ़िरौन से कुछ नहीं कहा। दाखमधु देने वाला नौकर यूसुफ के बारे में भूल गया।
फिरौन के सपने
41दो वर्ष बाद फ़िरौन ने सपना देखा। फिरौन ने सपने में देखा कि वह नील नदी के किनारे खड़ा है। 2 तब फ़िरौन ने सपने में नदी से सात गायों को बाहर आते देखा। गायें मोटी और सुन्दर थीं। गायें वहाँ खड़ी थीं और घास चर रही थीं। 3 तब सात अन्य गायें नदी से बाहर आईं, और नदी के किनारे मोटी गायों के पास खड़ी हो गईं। किन्तु ये गायें दुबली और भद्दी थीं। 4 ये सातों दुबली गायें, सुन्दर मोटी सात गायों को खा गईं। तब फ़िरौन जाग उठा।
5 फ़िरौन फिर सोया और दूसरी बार सपना देखा। उसने सपने में अनाज की सात बालें एक अनाज के पीछे उगी हुई देखीं। अनाज की बालें मोटी और अच्छी थीं। 6 तब उसने उसी अनाज के पीछे सात अन्न बालें उगी देखीं। अनाज की ये बालें पतली और गर्म हवा से नष्ट हो गई थीं। 7 तब सात पतली बालों ने सात मोटी और अच्छी वालों को खा लिया। फ़िरौन फिर जाग उठा और उसने समझा कि यह केवल सपना ही है। 8 अगली सुबह फ़िरौन इन सपनों के बारे में परेशान था। इसलिए उसने मिस्र के सभी जादूगरों को और सभी गुणी लोगों को बुलाया। फ़िरौन ने उनको सपना बताया। किन्तु उन लोगों में से कोई भी सपने को स्पष्ट या उसकी व्याख्या न कर सका।
नौकर फ़िरौन को यूसुफ के बारे में बताता है
9 तब दाखमधु देने वाले नौकर को यूसुफ याद आ गया। नौकर ने फ़िरौन से कहा, “मेरे साथ जो कुछ घटा वह मुझे याद आ रहा है। 10 आप मुझ पर और एक दूसरे नौकर पर क्रोधित थे और आपने हम दोनों को कारागार में डाल दिया था। 11 कारागार में एक ही रात हम दोनों ने सपने देखे। हर सपना अलग अर्थ रखता था। 12 एक हिब्रू युवक हम लोगों के साथ कारागार में था। वह अंगरक्षको के नायक का नौकर था। हम लोगों ने अपने सपने उसको बताए और उसने सपने की व्याख्या हम लोगों को समझाई। उसने हर सपने का अर्थ हम लोगों को बताया। 13 जो अर्थ उसने बताए वे ठीक निकले। उसने बताया कि मैं स्वतन्त्र होऊँगा और अपनी पुरानी नौकरी फिर पाऊँगा और यही हुआ। उसने कहा कि रोटी पकाने वाला मरेगा और वही हुआ।”
यूसुफ सपनें की व्याख्या करने के लिए बुलाया गया
14 इसलिए फ़िरौन ने यूसुफ को कारागार से बुलाया। रक्षक जल्दी से यूसुफ को कारागार से बाहर लाए। यूसुफ ने बाल कटाए और साफ कपड़े पहने। तब वह गया और फ़िरौन के सामने खड़ा हुआ। 15 तब फ़िरौन ने यूसुफ से कहा, “मैंने एक सपना देखा है। किन्तु कोई ऐसा नहीं है जो सपने की व्याख्या मुझको समझा सके। मैंने सुना है कि जब कोई सपने के बारे में तुमसे कहता है तब तुम सपनों की व्याख्या और उन्हें स्पष्ट कर सकते हो।”
16 यूसुफ ने उत्तर दिया, “मेरी अपनी बुद्धि नहीं है कि मैं सपनों को समझ सकूँ केवल परमेश्वर ही है जो ऐसी शक्ति रखता है और फ़िरौन के लिए परमेश्वर ही यह करेगा।”
17 तब फ़िरौन ने कहा, “अपने सपने में, मैं नील नदी के किनारे खड़ा था। 18 मैंने सात गायों को नदी से बाहर आते देखा और घास चरते देखा। ये गायें मोटी और सुन्दर थीं। 19 तब मैंने अन्य सात गायों को नदी से बाहर आते देखा। वे गायें पतली और भद्दी थीं। मैंने मिस्र देश में जितनी गायें देखी हैं उनमें वे सब से अधिक बुरी थीं। 20 और इन भद्दी और पतली गायों ने पहली सुन्दर सात गायों को खा डाला। 21 लेकिन सात गायों को खाने के बाद तक भी वे पतली और भद्दी ही रहीं। तुम उनको देखो तो नहीं जान सकते कि उन्होंने अन्य सात गायों को खाया है। वे उतनी ही भद्दी और पतली दिखाई पड़ती थीं जितनी आरम्भ में थीं। तब मैं जाग गया।
22 “तब मैंने अपने दूसरे सपने में अनाज की सात बालें एक ही अनाज के पीछे उगी देखीं। वे अनाज की बालें भरी हुई, अच्छी और सुन्दर थीं। 23 तब उनके बाद सात अन्य बालें उगीं। किन्तु ये बालें पतली, भद्दी और गर्म हवा से नष्ट थीं। 24 तब पतली बालों ने सात अच्छी बालों को खा डाला।
“मैंने इस सपने को अपने लोगों को बताया जो जादूगर और गुणी हैं। किन्तु किसी ने सपने की व्याख्या मुझको नहीं समझाई। इसका अर्थ क्या है?”
यूसुफ सपने का अर्थ बताता है
25 तब यूसुफ ने फ़िरौन से कहा, “ये दोनों सपने एक ही अर्थ रखते हैं। परमेश्वर तुम्हें बता रहा है जो जल्दी ही होगा। 26 सात अच्छी गायें और सात अच्छी अनाज की बालें सात वर्ष हैं, दोनों सपने एक ही हैं। 27 सात दुबली और भद्दी गायें तथा सात बुरी अनाज की बालें देश में भूखमरी के सात वर्ष हैं। ये सात वर्ष, अच्छे सात वर्षो के बाद आयेंगे। 28 परमेश्वर ने आपको यह दिखा दिया है कि जल्दी ही क्या होने वाला है। यह वैसा ही होगा जैसा मैंने कहा है। 29 आपके सात वर्ष पूरे मिस्र में अच्छी पैदावार और भोजन बहुतायत के होंगे। 30 लेकिन इन सात वर्षों के बाद पूरे देश में भूखमरी के सात वर्ष आएंगे। जो सारा भोजन मिस्र में पैदा हुवा है उसे लोग भूल दाएंगे। यह अकाल देश को नष्ट कर देगा। 31 भरपूर भोजनस्मरण रखना लोग भूल जाएंगे कि क्या होता है?
32 “हे फ़िरौन, आपने एक ही बात के बारे में दो सपने देखे थे। यह इस बात को दिखाने के लिए हुआ कि परमेश्वर निश्चय ही ऐसा होने देगा और यह बताया है कि परमेश्वर इसे जल्दी ही होने देगा। 33 इसलिए हे फ़िरौन आप एक ऐसा व्यक्ति चुनें जो बहुत चुस्त और बुद्धिमान हो। आप उसे मिस्र देश का प्रशासक बनाएँ। 34 तब आप दूसरे व्यक्तियों को जनता से भोजन इकट्ठा करने के लिए चुनें। हर व्यक्ति सात अच्छे वर्षों में जितना भोजन उत्पन्न करे, उसका पाँचवाँ हिस्सा दे। 35 इन लोगों को आदेश दें कि जो अच्छे वर्ष आ रहे हैं उनमें सारा भोजन इकट्ठा करें। व्यक्तियों से कह दें कि उन्हें नगरों में भोजन जमा करने का अधिकार है। तब वे भोजन की रक्षा उस समय तक करेंगे जब उनकी आवश्यकता होगी। 36 वह भोजन मिस्र देश में आने वाले भूखमरी के सात वर्षों में सहायता करेगा। तब मिस्र में सात वर्षों में लोग भोजन के अभाव में मरेंगे नहीं।”
37 फ़िरौन को यह अच्छा विचार मालूम हुआ। इससे सभी अधिकारी सहमत थे। 38 फ़िरौन ने अपने अधिकारियों से पूछा, “क्या तुम लोगों में से कोई इस काम को करने के लिए यूसुफ से अच्छा व्यक्ति ढूँढ सकता है? परमेश्वर की आत्मा ने इस व्यक्ति को सचमुच बुद्धिमान बना दिया है।”
39 फ़िरौन ने यूसुफ से कहा, “परमेश्वर ने ये सभी चीज़ें तुम को दिखाई हैं। इसलिए तुम ही सर्वाधिक बुद्धिमान हो। 40 इसलिए मैं तुमको देश का प्रशासक बनाऊँगा। जनता तुम्हारे आदेशों का पालन करेगी। मैं अकेला इस देश में तुम से बड़ा प्रशासक रहूँगा।”
समीक्षा
जीवन की चुनौतियों से पार पाना
क्या कभी आपको ठुकराया गया है, आपके साथ अन्याय हुआ है, किसी दोस्त ने आपको निराश किया है, या आप किसी और परेशान करने वाली स्थिति में फँस गए हैं?
स्मिथ विगल्सवर्थ ने कहा था, ‘महान विश्वास, बड़े संघर्षों का नतीजा है। महान गवाही, बड़े परीक्षणों का फल है। बड़ी जीतें केवल बड़े संघर्षों से आती हैं।’ हम इसे यूसुफ के जीवन में साफ़ देखते हैं।
तीस साल की उम्र में (उत्पत्ति 41:46) यूसुफ को पूरे मिस्र देश का प्रभारी बना दिया गया। फ़िरौन एक बुद्धिमान और अनुभवी व्यक्ति की तलाश में था और उसने मान लिया कि यूसुफ जितना योग्य कोई नहीं है (पद 33, 39)।
लेकिन इससे पहले, यूसुफ ने बहुत कठिन समय देखा था। यह सब उसके प्रशिक्षण का हिस्सा था। उसे उसके भाइयों ने ठुकरा दिया था, उसके साथ अन्याय हुआ था और उसे जेल में डाल दिया गया था। फिर भी, उसका कष्ट यहीं खत्म नहीं हुआ।
परमेश्वर ने उसे जेल में उसके साथी कैदियों पियाला भरने वाले और रोटी पकाने वाले के सपनों का अर्थ बताया। उसने बिलकुल साफ़ और सटीक व्याख्या दी। रोटी पकाने वाले को मार डाला गया, लेकिन मुख्य पियाला भरने वाला रिहा होकर अपने पद पर बहाल हो गया। यूसुफ ने उससे बस इतना कहा था कि जब वह रिहा हो, तो फ़िरौन के सामने उसका ज़िक्र करे और उसे जेल से निकलवाए (40:14)।
लेकिन मुख्य पियाला भरने वाला यूसुफ को पूरी तरह भूल गया (पद 23)। यह यूसुफ के लिए बहुत कठिन और हतोत्साहित करने वाला समय रहा होगा। जब दोस्त आपको निराश करते हैं, तो यह कभी आसान नहीं होता। यूसुफ के मामले में, इसका मतलब था कि उसे दो और साल कालकोठरी में रहना पड़ा (41:1)।
जेल, यूसुफ जैसे प्रतिभाशाली व्यक्ति के लिए बेहद निराशाजनक जगह रही होगी। वह अपनी ज़िंदगी के चरम दौर — बीसवें दशक — में था। उसे नहीं पता था कि वह कभी रिहा होगा या नहीं। मैं तो इतना धैर्यवान नहीं हूँ — शायद मैं तो हताशा से पागल हो जाता।
लेकिन असल में, परमेश्वर यूसुफ को किसी महान कार्य के लिए तैयार कर रहे थे। उस समय शायद उसे ऐसा महसूस नहीं हुआ होगा। जेल में कैदियों को खाना खिलाते-खिलाते परमेश्वर ने उसे महल से राष्ट्रों को भोजन कराने के लिए तैयार किया।
आख़िरकार, जब फ़िरौन ने ऐसे सपने देखे जिनका अर्थ वह समझ नहीं सका, तो मुख्य पियाला भरने वाले ने कहा, ‘आज मुझे अपनी भूल याद आई’ (पद 9)। यूसुफ को बुलाकर फ़िरौन के सपनों का अर्थ बताने को कहा गया।
यूसुफ ने कहा, ‘मैं नहीं कर सकता… परमेश्वर फ़िरौन को उसकी मनचाही बात बताएंगे’ (पद 16)। हम देखते हैं कि यूसुफ की बुद्धि कितनी बढ़ चुकी थी। उसकी युवावस्था का आत्मविश्वास और अकड़ अब परमेश्वर पर निर्भरता में बदल गया था। वह यहाँ एक अद्भुत मिश्रण के साथ काम करता है — नम्रता और आत्मविश्वास, जो अक्सर साथ नहीं चलते। यही नम्रता और आत्मविश्वास हमें चाहिए जब हम जीवन की चुनौतियों का सामना करते हैं: ‘मैं नहीं कर सकता… परमेश्वर कर सकते हैं और करेंगे।’
यूसुफ ने फ़िरौन के सपनों का अर्थ बताया (पद 25–32) और उसे यह भी बताया कि उसे क्या करना चाहिए (पद 33–36)। यहाँ तक कि फ़िरौन ने भी यूसुफ में बढ़ी हुई महान बुद्धि को पहचाना। उसने अपने अधिकारियों से पूछा, ‘क्या हम इस व्यक्ति जैसा कोई पा सकते हैं, जिसमें परमेश्वर का आत्मा हो?’ (पद 38)। क्योंकि उसने देखा कि यूसुफ जैसा ‘सूझ-बूझ वाला’ और ‘बुद्धिमान’ कोई नहीं है, फ़िरौन ने उसे अपने पूरे साम्राज्य का प्रभारी बना दिया (पद 39–40)।
आपके सभी दुखों, कठिनाइयों और परीक्षाओं के बीच, परमेश्वर आपको भी तैयार कर रहे हैं। यूसुफ बुद्धि में बढ़ चुका था। नतीजतन, उसने एक ऐसी योजना बनाई जिससे लोग बड़े आर्थिक संकट और अशांति के समय से पार निकल सके। आज वैश्विक महामारी और दुनिया भर में चल रहे युद्धों के कारण हममें से बहुत से लोग अलग-अलग तरह की मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। परमेश्वर की मदद और बुद्धि हमेशा परिस्थिति को नहीं बदलती, लेकिन यह आपको उन संघर्षों से सही तरह से पार पाने में मदद करेगी जिनका आप सामना कर रहे हैं।
प्रार्थना
हे प्रभु, मेरी ज़िंदगी के कठिन समयों का उपयोग करने के लिए मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ। मेरी मदद कर कि मैं बुद्धि में बढ़ूँ, तुझ पर भरोसा रखूँ और जीवन की चुनौतियों से सही तरह से पार पा सकूँ।
पिप्पा भी कहते है
उत्पत्ति 40 में हम देखते हैं कि यूसुफ कितना प्रभावशाली है। बचपन में वह थोड़ा घमंडी था — और इसका कारण था कि उसके पिता ने उसे बहुत लाड़-प्यार से बिगाड़ा — लेकिन इसके अलावा यूसुफ ने कोई बड़ी गलती नहीं की। हाँ, शायद रोटी पकाने वाले के साथ उसे थोड़ी और समझदारी से पेश आना चाहिए था!
लेकिन दूसरों द्वारा किए गए सारे गलत व्यवहार के बावजूद, उसमें न तो कड़वाहट थी और न ही परमेश्वर पर ज़रा भी संदेह। वह फ़िरौन का सम्मान करता है, लेकिन यह साफ़ कर देता है कि सपनों का अर्थ बताने वाला यूसुफ नहीं, बल्कि परमेश्वर है। उसके बचपन का डींग मारने वाला स्वभाव चला गया है और सारी महिमा परमेश्वर को दी जाती है। वह तो अपनी रिहाई के लिए कोई सौदा करने की कोशिश भी नहीं करता। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि फ़िरौन उस पर प्रभावित हुआ। अब यूसुफ उसके सामने खड़ा है — नम्र, आत्मविश्वासी और परमेश्वर द्वारा इस्तेमाल किए जाने के लिए तैयार।

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संदर्भ
निक्की और पिप्पा गम्बल के साथ बाइबल (जिसे पहले Bible in One Year के नाम से जाना जाता था) © Alpha International 2009। सर्वाधिकार सुरक्षित।
दैनिक बाइबल पाठों का संकलन © Hodder & Stoughton Limited 1988। इसे Bible in One Year के रूप में Hodder & Stoughton Limited द्वारा प्रकाशित किया गया है।
जब तक अन्यथा उल्लेख न किया गया हो, पवित्रशास्त्र के उद्धरण पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनेशनल वर्शन (एंग्लिसाइज़्ड) से लिए गए हैं, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 Biblica, जिसे पहले International Bible Society के नाम से जाना जाता था। इसे Hodder & Stoughton Publishers, जो कि Hachette UK कंपनी है, की अनुमति से प्रयोग किया गया है। सर्वाधिकार सुरक्षित। ‘NIV’ Biblica का पंजीकृत ट्रेडमार्क है। UK ट्रेडमार्क संख्या 1448790।
(AMP) से चिह्नित पवित्रशास्त्र के उद्धरण Amplified® Bible से लिए गए हैं, कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 The Lockman Foundation द्वारा। अनुमति से प्रयुक्त। (www.Lockman.org)
MSG से चिह्नित पवित्रशास्त्र के उद्धरण The Message से लिए गए हैं, कॉपीराइट © 1993, 2002, 2018 Eugene H. Peterson द्वारा। NavPress की अनुमति से प्रयुक्त। सर्वाधिकार सुरक्षित। Tyndale House Publishers द्वारा प्रतिनिधित्व किया गया है।
