परमेश्वर की आवाज़ कैसे सुनें
परिचय
मान लीजिए मैं डॉक्टर के पास जाकर कहता हूँ, ‘डॉक्टर साहब, मुझे बहुत सारी परेशानियाँ हैं: मेरा घुटना मुड़ गया है… आँखों में खुजली हो रही है… उंगली सूज गई है… पीठ में दर्द है…’। फिर अपनी सारी शिकायतें गिनाने के बाद मैं घड़ी देखता हूँ और कहता हूँ, ‘अरे, समय तो निकल रहा है, मुझे जाना होगा।’
तो डॉक्टर कह सकता है, ‘ज़रा रुकिए, क्या आप यह नहीं जानना चाहेंगे कि मैं क्या कहने वाला हूँ?’ अगर हम केवल परमेश्वर से बातें करें और कभी यह समय ही न निकालें कि उनकी बात भी सुनें, तो हम भी वही गलती करते हैं। हम बस बोलते ही रहते हैं, लेकिन उनकी आवाज़ नहीं सुनते। जबकि परमेश्वर के साथ हमारा संबंध दो-तरफ़ा बातचीत के लिए है। जब मैं प्रार्थना करता हूँ, तो मुझे यह मददगार लगता है कि जो विचार मेरे मन में आते हैं—जो शायद परमेश्वर के आत्मा से हों—उन्हें लिख लूँ।
आज के मीडिया से भरे ज़माने में हमारे पास कई आवाज़ें आती रहती हैं—टीवी, रेडियो, इंटरनेट, ट्विटर, फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम, ईमेल और मैसेज से। फिर परिवार, दोस्तों और साथियों की आवाज़ें भी होती हैं। और कभी-कभी शैतान की आवाज़ भी होती है, जो हमें परमेश्वर के वचन पर शक करने और यह सोचने को उकसाती है कि परमेश्वर हमारे भले की नहीं सोचते। तो ज़िन्दगी की शोर-शराबे और ध्यान भटकाने वाली चीज़ों के बीच, आप परमेश्वर की आवाज़ कैसे सुनते हैं?
नीतिवचन 3:1-10
उत्तम जीवन से संपन्नता
3हे मेरे पुत्र, मेरी शिक्षा मत भूल,
बल्कि तू मेरे आदेश अपने हृदय में बसा ले।
2 क्योंकि इनसे तेरी आयु वर्षों वर्ष बढ़ेगी
और ये तुझको समपन्न कर देगें।
3 प्रेम, विश्वसनीयता कभी तुझको छोड़ न जाये,
तू इनका हार अपने गले में डाल,
इन्हें अपने मन के पटल पर लिख ले।
4 फिर तू परमेश्वर और मनुज की दृष्टि में
उनकी कृपा और यश पायेगा।
5 अपने पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रख!
तू अपनी समझ पर भरोसा मत रख।
6 उसको तू अपने सब कामों में याद रख।
वही तेरी सब राहों को सीधी करेगा।
7 अपनी ही आँखों में तू बुद्धिमान मत बन,
यहोवा से डरता रह और पाप से दूर रह।
8 इससे तेरा शरीर पूर्ण स्वस्थ रहेगा और
तेरी अस्थियाँ पुष्ट हो जायेंगी।
9 अपनी सम्पत्ति से,
और अपनी उपज के पहले फलों से यहोवा का मान कर।
10 तेरे भण्डार ऊपर तक भर जायेंगे,
और तेरे मधुपात्र नये दाखमधु से उफनते रहेंगे।
समीक्षा
शास्त्रों में परमेश्वर की आवाज़ सुनें
परमेश्वर हमसे सबसे अधिक जिस तरह बोलते हैं, वह है — जो उन्होंने पहले ही शास्त्रों (बाइबल) में कहा है — उनकी ‘शिक्षा’ और ‘आदेश’ (पद 1)। जब आप बाइबल पढ़ें, तो प्रार्थना करें कि परमेश्वर आपसे बात करें और आप उनकी आवाज़ सुन सकें। ‘अपनी समझ पर ही निर्भर मत रहो। हर काम में परमेश्वर की आवाज़ सुनो, जहाँ भी जाओ, जो भी करो, वही तुम्हें सही राह दिखाएँगे।’ (पद 5–6,)
बाइबल के पद याद करना ऐसा ही है जैसे परमेश्वर के वचन को अपने ‘हृदय की पटिया’ पर लिख लेना (पद 3)। पिप्पा और मैंने अपनी शादी के शुरुआती दिनों में ये पद सीखे थे और जीवनभर उन पर चलने की कोशिश की है।
- ‘प्रेम और निष्ठा’ से मार्गदर्शन लो
हमारे हर फ़ैसले में यही हमारे मार्गदर्शक सिद्धांत होने चाहिए। ‘प्रेम और निष्ठा’ (पद 3,) हमारे दिल की गहराई में बस जाने चाहिए। निष्ठा का मतलब है दूसरों के बारे में वैसे ही बोलना जैसे वे सामने खड़े हों। जो लोग हमारे सामने होते हैं, उनके साथ विश्वास वहीं बनता है जब हम उन लोगों के लिए निष्ठावान होते हैं जो सामने नहीं हैं। अगर आप ऐसे जीवन जिएँगे तो परमेश्वर वादा करते हैं कि आपको ‘परमेश्वर की और मनुष्यों की दृष्टि में आदर’ मिलेगा (पद 4,)।
- परमेश्वर की ओर भागो! बुराई से दूर भागो!
हमें अपनी बुद्धि पर घमंड करने के बजाय परमेश्वर पर भरोसा करना है। परमेश्वर का भय (यानी उनका आदर और सम्मान) हमें यह सिखाता है — ‘परमेश्वर की ओर भागो! बुराई से दूर भागो!’ (पद 7,)। परमेश्वर वादा करते हैं कि ‘इससे तुम्हारे शरीर को सेहत और तुम्हारी हड्डियों को बल मिलेगा’ (पद 8)। दूसरे शब्दों में, आत्मिक और शारीरिक जीवन के बीच गहरा संबंध है।
- उदार दाता बनो
आप अपने पैसों के साथ क्या करते हैं, यह बहुत महत्वपूर्ण है। परमेश्वर को ‘पहला और सबसे अच्छा हिस्सा’ दो (पद 9,) — यानी अपनी आमदनी का पहला भाग, न कि बचा हुआ आख़िरी। मुझे यह सिद्धांत अद्भुत लगता है कि अगर आप देने में सही रहते हैं, तो परमेश्वर का यह वादा सच्चा अनुभव होता है कि वे आपकी हर ज़रूरत पूरी करेंगे: ‘तुम्हारे खलिहान अनाज से भर जाएंगे और तुम्हारे बर्तन नए दाखरस से लबालब भरेंगे’ (पद 10)।
प्रार्थना
प्रभु, मेरी मदद कर कि मैं केवल तेरे वचन पढ़ ही न लूँ, बल्कि उन्हें सीखूँ, उन पर चलूँ और तेरे नाम को आदर और महिमा दूँ।
मत्ती 16:21-17:13
यीशु द्वारा अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी
21 उस समय यीशु अपने शिष्यों को बताने लगा कि, उसे यरूशलेम जाना चाहिये। जहाँ उसे यहूदी धर्मशास्त्रियों, बुज़ुर्ग यहूदी नेताओं और प्रमुख याजकों द्वारा यातनाएँ पहुँचा कर मरवा दिया जायेगा। फिर तीसरे दिन वह मरे हुओं में से जी उठेगा।
22 तब पतरस उसे एक तरफ ले गया और उसकी आलोचना करता हुआ उससे बोला, “हे प्रभु! परमेश्वर तुझ पर दया करे। तेरे साथ ऐसा कभी न हो!”
23 फिर यीशु उसकी तरफ मुड़ा और बोला, “पतरस, मेरे रास्ते से हट जा। अरे शैतान! तू मेरे लिए एक अड़चन है। क्योंकि तू परमेश्वर की तरह नहीं लोगों की तरह सोचता है।”
24 फिर यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहता है, तो वह अपने आपको भुलाकर, अपना क्रूस स्वयं उठाये और मेरे पीछे हो ले। 25 जो कोई अपना जीवन बचाना चाहता है, उसे वह खोना होगा। किन्तु जो कोई मेरे लिये अपना जीवन खोयेगा, वही उसे बचाएगा। 26 यदि कोई अपना जीवन देकर सारा संसार भी पा जाये तो उसे क्या लाभ? अपने जीवन को फिर से पाने के लिए कोई भला क्या दे सकता है? 27 मनुष्य का पुत्र दूतों सहित अपने परमपिता की महिमा के साथ आने वाला है। जो हर किसी को उसके कर्मों का फल देगा। 28 मैं तुम से सत्य कहता हूँ यहाँ कुछ ऐसे हैं जो तब तक नहीं मरेंगे जब तक वे मनुष्य के पुत्र को उसके राज्य में आते न देख लें।”
तीन शिष्यों को मूसा और एलिय्याह के साथ यीशु का दर्शन
17छः दिन बाद यीशु, पतरस, याकूब और उसके भाई यूहन्ना को साथ लेकर एकान्त में ऊँचे पहाड़ पर गया। 2 वहाँ उनके सामने उसका रूप बदल गया। उसका मुख सूरज के समान दमक उठा और उसके वस्त्र ऐसे चमचमाने लगे जैसे प्रकाश। 3 फिर अचानक मूसा और एलिय्याह उनके सामने प्रकट हुए और यीशु से बात करने लगे।
4 यह देखकर पतरस यीशु से बोला, “प्रभु, अच्छा है कि हम यहाँ हैं। यदि तू चाहे तो मैं यहाँ तीन मंडप बना दूँ-एक तेरे लिए, एक मूसा के लिए और एक एलिय्याह के लिए।”
5 पतरस अभी बात कर ही रहा था कि एक चमकते हुए बादल ने आकर उन्हें ढक लिया और बादल से आकाशवाणी हुई, “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं बहुत प्रसन्न हूँ। इसकी सुनो!”
6 जब शिष्यों ने यह सुना तो वे इतने सहम गये कि धरती पर औंधे मुँह गिर पड़े। 7 तब यीशु उनके पास गया और उन्हें छूते हुए बोला, “डरो मत, खड़े होवो।” 8 जब उन्होंने अपनी आँखें उठाई तो वहाँ बस यीशु को ही पाया।
9 जब वे पहाड़ से उतर रहे थे तो यीशु ने उन्हें आदेश दिया, “जो कुछ तुमने देखा है, तब तक किसी को मत बताना जब तक मनुष्य के पुत्र को मरे हुओं में से फिर जिला न दिया जाये।”
10 फिर उसके शिष्यों ने उससे पूछा, “यहूदी धर्मशास्त्री फिर क्यों कहते हैं, एलिय्याह का पहले आना निश्चित है?”
11 उत्तर देते हुए उसने उनसे कहा, “एलिय्याह आ रहा है, वह हर वस्तु को व्यवस्थित कर देगा। 12 किन्तु मैं तुमसे कहता हूँ कि एलिय्याह तो अब तक आ चुका है। पर लोगों ने उसे पहचाना नहीं। और उसके साथ जैसा चाहा वैसा किया। उनके द्वारा मनुष्य के पुत्र को भी वैसे ही सताया जाने वाला है।” 13 तब उसके शिष्य समझे कि उसने उनसे बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना के बारे में कहा था।
समीक्षा
यीशु के वचनों के द्वारा परमेश्वर की आवाज़ सुनें
यीशु के वचन ही परमेश्वर के वचन हैं। परमेश्वर ने कहा, ‘उसकी सुनो’ (17:5)। जब आप यीशु के वचन पढ़ते हैं और उन्हें दिल से मानते हैं, तो आप वास्तव में परमेश्वर की आवाज़ सुन रहे होते हैं।
यीशु ने अपने चेलों को चेतावनी दी कि उन पर आक्रमण होगा। आलोचना से बचना कभी संभव नहीं होगा (16:21)। इस खंड में यीशु दो बार अपने चेलों को अपने दुःख, क्रूस और पुनरुत्थान के बारे में बताते हैं (16:21; 17:9–12)।
लेकिन यीशु की बात सुनने के बजाय, पतरस उनसे बहस करता है (16:22)। यीशु का पतरस को डाँटना बहुत गहरा और महत्वपूर्ण है। हमारे हर बड़े फ़ैसले में हमें यह सोचना चाहिए कि क्या हम परमेश्वर की इच्छा को ध्यान में रख रहे हैं या सिर्फ़ इंसानी विचारों को (पद 23)। यीशु जो पतरस से कह रहे हैं, वही उनके मिशन का केंद्र है और यह हर एक उसके चेलों के लिए भी बड़ा मायने रखता है (पद 24–28)।
यीशु ने कहा कि हमें आराम और सुरक्षा वाली ज़िंदगी नहीं ढूँढनी चाहिए। उन्होंने अपने चेलों से कहा: ‘जो कोई मेरे साथ आना चाहता है, उसे मुझे नेतृत्व करने देना होगा। गाड़ी की सीट पर तुम नहीं, मैं हूँ। दुःख से भागो मत, उसे अपनाओ। मेरे पीछे चलो और मैं तुम्हें राह दिखाऊँगा। सिर्फ़ खुद की मदद करना कोई मदद नहीं है। खुद का बलिदान देना ही असली राह है — मेरी राह — जिसमें तुम अपनी सच्ची पहचान पाओगे। अगर तुम पूरी दुनिया जीत भी लो लेकिन अपना आपा खो दो, तो क्या फ़ायदा? अपनी आत्मा के बदले तुम क्या ले सकते हो?’ (पद 24–26,)।
यीशु का अनुसरण करने का मतलब है — खुद का इंकार करना, अपना क्रूस उठाना और उनके पीछे चलना (पद 24)। यही असली जीवन पाने का रास्ता है।
धन-दौलत अपने आप में बेकार है। जीवन का उद्देश्य संपत्ति और चीज़ों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। दुनिया का सारा पैसा, सारी सफलता, सारी शोहरत और सारी ताक़त बेकार है, अगर आप अपनी आत्मा खो दें (पद 26) और जीवन के असली मक़सद से चूक जाएँ।
लेकिन अगर आप यीशु का अनुसरण करते हैं और अपना जीवन उनके हवाले कर देते हैं, तो आप जीवन का असली उद्देश्य पा लेते हैं। यीशु के वचन असाधारण रूप से शक्तिशाली हैं। इससे पहले कभी इतना ज़रूरी नहीं था कि हम ‘उसकी सुनें’ जितना अब है!
यीशु पतरस, याकूब और यूहन्ना को एक ऊँचे पहाड़ पर ले गए। उनकी सूरत उनके सामने बदल गई। ‘उनके चेहरे से सूर्य जैसा प्रकाश निकला, उनके कपड़े उजाले से चमक उठे। तभी उन्होंने देखा कि मूसा और एलिय्याह भी वहाँ यीशु के साथ गहरी बातचीत कर रहे हैं’ (17:1–3,)। फिर उन्होंने परमेश्वर की आवाज़ सुनी: ‘यह मेरा पुत्र है, मेरा प्रिय, जिस पर मैं प्रसन्न हूँ। उसकी सुनो।’ (पद 5,)।
जैसे मूसा और एलिय्याह यीशु से बातें कर रहे थे, वैसे ही आप भी यीशु से बातें करते हुए जीवन जी सकते हैं। आपका अनुभव शायद चेलों जैसा दृश्य या श्रव्य न हो, लेकिन आप भी अपने जीवन में यीशु की उपस्थिति को जान सकते हैं। उनके वचनों को पढ़कर और उन पर मनन करके आप पवित्र आत्मा के द्वारा यीशु के साथ बातचीत का अनुभव कर सकते हैं।
आप, एक अर्थ में, उनके चेहरे को देख सकते हैं जो ‘सूर्य की तरह चमक रहा था’ (पद 2)। आप गिरकर उनकी आराधना कर सकते हैं (पद 6)। यह महसूस कर सकते हैं कि यीशु आपको छू रहे हैं और कह रहे हैं, ‘डरो मत’ (पद 7)। और ऐसे समय भी आ सकते हैं जब आप ऊपर देखेंगे और ‘यीशु के सिवा किसी को नहीं देखेंगे’ (पद 8)।
प्रार्थना
प्रभु, धन्यवाद कि जब मैं तेरे लिए अपना जीवन खो देता हूँ, तब मैं वास्तव में उसे पा लेता हूँ। मेरी मदद कर कि मैं तेरी आवाज़ सुनूँ और हर दिन तेरा अनुसरण करूँ।
उत्पत्ति 47:13-48:22
यूसुफ फ़िरौन के लिए भूमि खरीदता है
13 भूखमरी का समय और भी अधिक बुरा हो गया। देश में कहीं भी भोजन न रहा। इस बुरे समय के कारण मिस्र और कनान बहुत गरीब हो गए। 14 देश में लोग अधिक से अधिक अन्न खरीदने लगे। यूसुफ ने धन बचाया और उसे फ़िरौन के महल में लाया। 15 कुछ समय बाद मिस्र और कनान में लोगों के पास पैसा नहीं रहा। उन्होंने अपना सारा धन अन्न खरीदने में खर्च कर दिया। इसलिए लोग यूसुफ के पास गए और बोले, “कृपा कर हमें भोजन दें। हम लोगों का धन समाप्त हो गया। यदि हम लोग नहीं खाएँगे तो आपके देखते—देखते हम मर जायेंगे।”
16 लेकिन यूसुफ ने उत्तर दिया, “अपने पशु मुझे दो और मैं तुम लोगों को भोजन दूँगा।” 17 इसलिए लोग अपने पशु, घोड़े और अन्य सभी जानवरों को भोजन खरीदने के लिए उपयोग में लाने लगे और उस वर्ष यूसुफ ने उनके जानवरों को लिया तथा भोजन दिया।
18 किन्तु दूसरे वर्ष लोगों के पास जानवर नहीं रह गए और भोजन खरीदने के लिए कुछ भी न रहा। इसलिए लोग यूसुफ के पास गए और बोले, “आप जानते हैं कि हम लोगों के पास धन नहीं बचा है और हमारे सभी जानवर आपके हो गये हैं। इसलिए हम लोगों के पास कुछ नहीं बचा है। वह बचा है केवल, जो आप देखते हैं, हमारा शरीर और हमारी भूमि। 19 आपके देखते हुए ही हम निश्चय ही मर जाएँगे। किन्तु यदि आप हमें भोजन देते हैं तो हम फ़िरौन को अपनी भूमि देंगे और उसके दास हो जाएँगे। हमें बीज दो जिन्हें हम बो सकें। तब हम लोग जीवित रहेंगे और मरेंगे नहीं और भूमि हम लोगों के लिए फिर अन्न उगाएगी।”
20 इसलिए यूसुफ ने मिस्र की सारी भूमि फ़िरौन के लिए खरीद ली। मिस्र के सभी लोगों ने अपने खेतों को यूसुफ के हाथ बेच दिया। उन्होंने यह इसलिए किया क्योंकि वे बहुत भूखे थे। 21 और सभी लोग फ़िरौन के दास हो गए। मिस्र में सर्वत्र लोग फ़िरौन के दास थे। 22 एक मात्र वही भूमि यूसुफ ने नहीं खरीदी जो याजकों के अधिकार में थी। याजकों को भूमि बेचने की आवश्कता नहीं थी। क्योंकि फ़िरौन उनके काम के लिए उन्हें वेतन देता था। इसलिए उन्होंने इस धन को खाने के लिए भोजन खरीदने में खर्च किया।
23 यूसुफ ने लोगों से कहा, “अब मैंने तुम लोगों को और तुम्हारी भूमि को फ़िरौन के लिए खरीद लिया है। इसलिए मैं तुमको बीज दूँगा और तुम लोग अपने खेतों में पौधे लगा सकते हो। 24 फसल काटने के समय तुम लोग फसल का पाँचवाँ हिस्सा फ़िरौन को अवश्य देना। तुम लोग अपने लिए पाँच में से चार हिस्से रख सकते हो। तुम लोग उस बीज को जिसे भोजन और बोने के लिए रखोगे उसे दूसरे वर्ष उपयोग में ला सकोगे। अब तुम अपने परिवारों और बच्चों को खिला सकते हो।”
25 लोगों ने कहा, “आपने हम लोगों का जीवन बचा लिया है। हम लोग आपके और फ़िरौन के दास होने में प्रसन्न हैं।”
26 इसलिए यूसुफ ने उस समय देश में एक नियम बनाया और वह नियम अब तक चला आ रहा है। नियम के अनुसार भूमि से हर एक उपज का पाँचवाँ हिस्सा फ़िरौन का है। फ़िरौन सारी भूमि का स्वामी है। केवल वही भूमि उसकी नहीं है जो याजकों की है।
“मुझे मिस्र में मत दफनाना”
27 इस्राएल (याकूब) मिस्र में रहा। वह गोशेन प्रदेश में रहा। उसका परिवार बढ़ा और बहुत हो गया। उन्होंने मिस्र में उस भूमि को पाया और अच्छा जीवन बिताया।
28 याकूब मिस्र में सत्रह वर्ष रहा। इस प्रकार याकूब एक सौ सैंतालीस वर्ष का हो गया। 29 वह समय आ गया जब इस्राएल (याकूब) समझ गया कि वह जल्दी ही मरेगा, इसलिए उसने अपने पुत्र यूसुफ को अपने पास बुलाया। उसने कहा, “यदि तुम मुझसे प्रेम करते हो तो तुम अपने हाथ मेरी जांघ के नीचे रख कर मुझे वचन दो। वचन दो कि तुम, जो मैं कहूँगा करोगे और तुम मेरे प्रति सच्चे रहोगे। जब मैं मरूँ तो मुझे मिस्र में मत दफनाना। 30 उसी जगह मुझे दफनाना जिस जगह मेरे पूर्वज दफनाए गए हैं। मुझे मिस्र से बाहर ले जाना और मेरे परिवार के कब्रिस्तान में दफनाना।”
यूसुफ ने उत्तर दिया, “मैं वचन देता हूँ कि वही करूँगा जो आप कहते हैं।”
31 तब याकूब ने कहा, “मुझसे एक प्रतिज्ञा करो” और यूसुफ ने उससे प्रतिज्ञा की कि वह इसे पूरा करेगा। तब इस्राएल (याकूब) ने अपना सिर पलंग पर पीछे को रखा।
मनश्शे और एप्रैम को आशीर्वाद
48कुछ समय बाद यूसुफ को पता लगा कि उसका पिता बहुत बीमार है। इसलिए यूसुफ ने अपने दोनों पुत्रों मनश्शे और एप्रैम को साथ लिया और अपने पिता के पास गया। 2 जब यूसुफ पहुँचा तो किसी ने इस्राएल से कहा, “तुम्हारा पुत्र यूसुफ तुम्हें देखने आया है।” इस्राएल बहुत कमज़ोर था, किन्तु उसने बहुत प्रयत्न किया और पलंग पर बैठ गया।
3 तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, “कनान देश में लूज के स्थान पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मुझे स्वयं दर्शन दिया। परमेश्वर ने वहाँ मुझे आशीर्वाद दिया। 4 परमेश्वर ने मुझसे कहा, ‘मैं तुम्हारा एक बड़ा परिवार बनाऊँगा। मैं तुमको बहुत से बच्चे दूँगा और तुम एक महान राष्ट्र बनोगे। तुम्हारे लोगों का अधिकार इस देश पर सदा बना रहेगा।’ 5 और अब तुम्हारे दो पुत्र हैं। मेरे आने से पहले मिस्र देश में यहाँ ये पैदा हुए थे। तुम्हारे दोनों पुत्र एप्रैम और मनश्शे मेरे अपने पुत्रों की तरह होंगे। 6 किन्तु यदि तुम्हारे अन्य पुत्र होंगे तो वे तुम्हारे बच्चे होंगे। किन्तु वे भी एप्रैम और मनश्शे का जो कुछ होगा, उसमें हिस्सेदार होंगे। 7 पद्दनराम से यात्रा करते समय राहेल मर गई। इस बात ने मुझे बहुत दुःखी किया। वह कनान देश में मरी। हम लोग अभी एप्राता की ओर यात्रा कर रहे थे। मैंने उसे एप्राता की ओर जाने वाली सड़क पर दफनाया।” (एप्राता बैतलेहेम है।)
8 तब इस्राएल ने यूसुफ के पुत्रों को देखा। इस्राएल ने पूछा, “ये लड़के कौन हैं?”
9 यूसुफ ने अपने पिता से कहा, “ये मेरे पुत्र हैं। ये वे लड़के हैं जिन्हें परमेश्वर ने मुझे दिया है।”
इस्राएल ने कहा, “अपने पुत्रों को मेरे पास लाओ। मैं उन्हें आशीर्वाद दूँगा।”
10 इस्राएल बूढ़ा था और उसकी आँखें ठीक नहीं थीं। इसलिए यूसुफ अपने पुत्रों को अपने पिता के निकट ले गया। इस्राएल ने बच्चों को चूमा और गले लगाया। 11 तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, “मैंने कभी नहीं सोचा कि मैं तुम्हारा मुँह फिर देखूँगा, किन्तु देखो। परमेश्वर ने तुम्हें और तुम्हारे बच्चों को भी मुझे देखने दिया।”
12 तब यूसुफ ने बच्चों को इस्राएल की गोद से लिया और वे उसके पिता के सामने प्रणाम करने को झुके। 13 यूसुफ ने एप्रैम को अपनी दायीं ओर किया और मनश्शे को अपनी बायीं ओर (इस प्रकार एप्रैम इस्राएल की बायीं ओर था और मनश्शे इस्राएल की दायीं ओर था)। 14 किन्तु इस्राएल ने अपने हाथों की दिशा बदलकर अपने दायें हाथ को छोटे लड़के एप्रैम के सिर पर रखा और तब बायें हाथ को इस्राएल ने बड़े लड़के मनश्शे के सिर पर रखा। यद्यपि मनश्शे का जन्म पहले हुआ था
15 और इस्राएल ने यूसुफ को आशीर्वाद दिया और कहा,
“मेरे पूर्वज इब्राहीम और इसहाक ने हमारे परमेश्वर की उपासना की
और वही परमेश्वर मेरे पूरे जीवन का पथ—प्रदर्शक रहा है।
16 वही दूत रहा जिसने मुझे सभी कष्टों से बचाया
और मेरी प्रार्थना है कि इन लड़कों को वह आशीर्वाद दे।
अब ये बच्चे मेरा नाम पाएँगे। वे हमारे पूर्वज इब्राहीम
और इसहाक का नाम पाएँगे।
मैं प्रार्थना करता हूँ कि वे इस धरती पर बड़े परिवार
और राष्ट्र बनेंगे।”
17 यूसुफ ने देखा कि उसके पिता ने एप्रैम के सिर पर दायाँ हाथ रखा है। वह यूसुफ को प्रसन्न न कर सका। यूसुफ ने अपने पिता के हाथ को पकड़ा। वह उसे एप्रैम के सिर से हटा कर मनश्शे के सिर पर रखना चाहता था। 18 यूसुफ ने अपने पिता से कहा, “आपने अपना दायाँ हाथ गलत लड़के पर रखा है। मनश्शे का जन्म पहले है।”
19 किन्तु उसके पिता ने तर्क दिया और कहा, “पुत्र, मैं जानता हूँ। मनश्शे का जन्म पहले है और वह महान होगा। वह बहुत से लोगों का पिता भी होगा। किन्तु छोटा भाई बड़े भाई से बड़ा होगा और छोटे भाई का परिवार उससे बहुत बड़ा होगा।”
20 इस प्रकार इस्राएल ने उस दिन उन्हें आशीर्वाद दिया। उसने कहा,
“इस्राएल के लोग तुम्हारे नाम का प्रयोग आशीर्वाद देने के लिए करेंगे,
तुम्हारे कारण कृपा प्राप्त करेंगे।
लोग प्रार्थना करेंगे, ‘परमेश्वर तुम्हें
एप्रैम और मनश्शे के समान बनाये।’”
इस प्रकार इस्राएल ने एप्रैम को मनश्शे से बड़ा बनाया।
21 तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, “देखो मेरी मृत्यु का समय निकट आ गया है। किन्तु परमेश्वर तुम्हारे साथ अब भी रहेगा। वह तुम्हें तुम्हारे पूर्वजों के देश तक लौटा ले जायेगा। 22 मैंने तुमको ऐसा कुछ दिया है जो तुम्हारे भाईयों को नहीं दिया है। मैं तुमको वह पहाड़ देता हूँ जिसे मैंने एमोरी लोगों से जीता था। उस पहाड़ के लिए मैंने अपनी तलवार और अपने धनुष से युद्ध किया था और मेरी जीत हुई थी।”
समीक्षा
अपने जीवनभर परमेश्वर की आवाज़ सुनें
जब याकूब अपने जीवन के अंत के करीब पहुँचे और पीछे मुड़कर परमेश्वर की सारी आशीषों को देखा (सारी कठिनाइयों और परेशानियों के बावजूद), तो वह ‘अपने लाठी पर टेक लगाकर आराधना करने लगे’ (47:31)। उन्होंने माना कि परमेश्वर ने उन्हें उनके पूरे जीवनभर मार्गदर्शन दिया है। यह उस व्यक्ति की सुंदर तस्वीर है जिसने परमेश्वर के साथ घनिष्ठ संबंध में जीवन बिताया हो — उसकी आवाज़ और उसकी बुद्धि को सुनते हुए। उन्हें याद था कि परमेश्वर ने उनसे बातें कीं और उनके जीवन के लिए दर्शन दिया (48:3–4)। वे कह पाए, ‘परमेश्वर… मेरा चरवाहा रहा है पूरे जीवनभर’ (पद 15)।
याकूब ने यह भी स्वीकार किया कि परमेश्वर ने उनके पुत्र यूसुफ का असाधारण रूप से मार्गदर्शन किया। क्योंकि यूसुफ ने परमेश्वर की आवाज़ सुनना सीखा था, वह फ़िरौन के सपनों का अर्थ बता सका। उसके कारण न केवल परमेश्वर की प्रजा के जीवन बचे, बल्कि पूरे मिस्र के लोग भी बच गए (47:25)। जीवन के अंत में याकूब ने यूसुफ के बेटों को आशीष दी और आने वाले दिनों के लिए परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं और आशीषों पर विश्वास जताया।
इब्रानियों के लेखक ने जब याकूब के विश्वासमय जीवन पर टिप्पणी की, तो उन्होंने इसी घटना पर ध्यान दिया: ‘विश्वास से याकूब ने, जब वह मर रहा था, यूसुफ के प्रत्येक पुत्र को आशीर्वाद दिया और अपने लाठी के सिरे पर टेक लगाकर परमेश्वर की आराधना की’ (इब्रानियों 11:21)। जीवन के अंत में भी याकूब का विश्वास कमजोर नहीं हुआ। उन्होंने अपने जीवन को विश्वास के शानदार अंत के साथ समाप्त किया।
आप भी अपने जीवनभर आराधना में विश्वासयोग्य बने रहें और परमेश्वर की आवाज़ सुनते रहें। भरोसा रखें कि परमेश्वर अगली पीढ़ी का भी मार्गदर्शन और नेतृत्व करेगा — ताकि वे भी चरवाहे की आवाज़ सुनें (यूहन्ना 10:3–4 देखें)।
प्रार्थना
प्रभु, धन्यवाद कि तूने वादा किया है कि तू मेरा मार्गदर्शन करेगा और मुझसे बातें करेगा। मेरी मदद कर कि मैं हर दिन और अपने जीवनभर तेरी आवाज़ सुनता रहूँ।
पिप्पा भी कहते है
नीतिवचन 3:5 में लिखा है: ‘अपने संपूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखो… अपनी सारी चालों में उसी को स्मरण करो।’ ‘संपूर्ण मन… सारी चालें’ — इसका मतलब है परमेश्वर के प्रति पूरे मन से और पूरी तरह समर्पित रहना। क्या आपके जीवन में इस समय कुछ ऐसी बातें हैं — सफलताएँ, चिंताएँ, डर — जिन्हें आपको फिर से परमेश्वर को सौंपने की ज़रूरत है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे सब बातें ‘पूरी तरह’ परमेश्वर को समर्पित रहें?

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संदर्भ
नोट्स:
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है। कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है. (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।
