दिन 24

परमेश्वर की आवाज़ कैसे सुनें

बुद्धि नीतिवचन 3:1-10
नए करार मत्ती 16:21-17:13
जूना करार उत्पत्ति 47:13-48:22

परिचय

कल्पना कीजिये कि आप एक डॉक्टर के पास जाकर कहते हैं, "डॉक्टर, मुझे बहुत परेशानी है: मेरी एड़ी मुड़ गई है…. मेरी आँखें जल रही हैं…. मेरी ऊँगली सूज गई है…. मेरी कोहनी सूज गई है…. मेरी पीठ में दर्द है….’। तब अपनी सारी शिकायतें सुनाने के बाद आप अपनी घड़ी को देखकर कहते हैं, ‘हाय, मेरा समय तो खत्म हो रहा है। अब मुझे जाना होगा।’’ डॉक्टर कहना चाहता होगा, ‘एक सैकेंड रूको, क्या तुम सुनना चाहोगे कि मुझे क्या कहना है?’

यदि हम परमेश्वर से कहें और उनकी कभी न सुनें, तो हम भी वही गलती कर रहे हैं। हम सब कह देते हैं, पर हम सच में उनकी सुनते नहीं हैं। लेकिन परमेश्वर के साथ हमारा संबंध दो - तरफा बातचीत के लिए बना है। जब मैं प्रार्थना करता हूँ, तो मुझे उन विचारों को लिखने में मदद मिलती है, जो परमेश्वर की आत्मा से मेरे मन में आते हैं।

मीडिया से भरे युग में, बहुत सी आवाज़ें हमारे पास आती हैं जैसे टीवी, रेडियो, इंटरनेट, ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम, ईमेल और टेक्स्ट संदेश। हमारे पास परिवार, दोस्त और सहयोगियों की आवाज़ें भी आती हैं। और कभी-कभी शौतान की आवाज़ भी आती है जो हमें परमेश्वर के शब्दों पर अविश्वास करने और संदेह करने के लिए कहता है जिसे परमेश्वर ने हमारे दिल में डाला है।

हर तरह की आवाज़ों और जीवन की व्याकुलताओं के बीच परमेश्वर की आवाज़ कैसे सुनी जाए?

बुद्धि

नीतिवचन 3:1-10

उत्तम जीवन से संपन्नता

3हे मेरे पुत्र, मेरी शिक्षा मत भूल,
 बल्कि तू मेरे आदेश अपने हृदय में बसा ले।
2 क्योंकि इनसे तेरी आयु वर्षों वर्ष बढ़ेगी
 और ये तुझको समपन्न कर देगें।

3 प्रेम, विश्वसनीयता कभी तुझको छोड़ न जाये,
 तू इनका हार अपने गले में डाल,
 इन्हें अपने मन के पटल पर लिख ले।
4 फिर तू परमेश्वर और मनुज की दृष्टि में
 उनकी कृपा और यश पायेगा।

5 अपने पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रख!
 तू अपनी समझ पर भरोसा मत रख।
6 उसको तू अपने सब कामों में याद रख।
 वही तेरी सब राहों को सीधी करेगा।

7 अपनी ही आँखों में तू बुद्धिमान मत बन,
 यहोवा से डरता रह और पाप से दूर रह।
8 इससे तेरा शरीर पूर्ण स्वस्थ रहेगा और
 तेरी अस्थियाँ पुष्ट हो जायेंगी।

9 अपनी सम्पत्ति से,
 और अपनी उपज के पहले फलों से यहोवा का मान कर।
10 तेरे भण्डार ऊपर तक भर जायेंगे,
 और तेरे मधुपात्र नये दाखमधु से उफनते रहेंगे।

समीक्षा

वचनों में परमेश्वर की आवाज़ सुनें

मुख्य तरीका जिससे परमेश्वर हम से बात करते हैं उसे उन्होंने पवित्र शास्त्र में पहले ही कह दिया है - उनकी ‘शिक्षा’ और उनकी ‘आज्ञाएं’ (पद - 1)। जब आप बाइबल पढ़ते हैं, तो प्रार्थना कीजिये कि परमेश्वर आपसे बात करें और आप उनकी आवाज़ को सुन पाएं।

‘खुद से अनुमान लगाने की कोशिश मत कीजिये। आप जो भी करें, और जहाँ भी जाएं उसमें परमेश्वर की आवाज़ सुनिये। वही हैं जो आपको सही पटरी पर रखेंगे (पद - 5-6, एम.एस.जी.)।

परमेश्वर के वचनों को याद करना एक तरीका है जिससे आप अपने ‘हृदय की तख्ती पर’ प्रभु के वचन लिख सकते हैं (पद - 3)। मैंने और पिपा ने इन वचनों को अपनी सुहागरात में सीखा और उनके द्वारा जीने की कोशिश की।

  1. ‘प्रेम और ईमानदारी’ द्वारा मार्गदर्शित रहें
  • हम जो भी निर्णय लें, यह हमारा मार्गदर्शन करने वाला सिद्धांत होना चाहिये। ‘प्रेम और ईमानदारी’ (पद - 3, एम.एस.जी.) हमारे दिल की गहराई में बसी रहनी चाहिये। ईमानदारी मतलब उदाहरण के लिए, दूसरों के बारे में बात करना जैसे कि वे उपस्थित हैं। हम उनमें भरोसा रखते हैं जो हमारी ईमानदारी में उपस्थित होते हैं जबकि वे उपस्थित नहीं रहते। यदि आप इस तरह जीएं, तो परमेश्वर आपको अच्छा सम्मान देने का वायदा करते हैं, ‘परमेश्वर की दृष्टि में और लोगों की दृष्टि में’ (पद - 4, एम.एस.जी.)।
  1. परमेश्वर की ओर जाएं! बुराई से दूर रहें!
  • अभिमानी बनने और खुद को बुद्धिमान समझने के बजाय हमें परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिये। परमेश्वर का भय मानने से, उनके लिए आदरपूर्ण भावना रखने से, यह हमें परमेश्वर के पास जाने में मदद करता है! और बुराई से दूर रहने में भी मदद करता है! (पद - 7, एम.एस.जी.)। परमेश्वर वायदा करते हैं कि यह तुम्हारे शरीर को स्वास्थ्य और हड्डियों को पोषण देगा’ (पद - 8)। दूसरे शब्दों में, आत्मिकता और भौतिकता के बीच गहरा संबंध है।
  1. उदारता से देने वाले बनें
  • यह सच में मायने रखता है कि आप अपने धन का क्या करते हैं। परमेश्वर को दीजिये, ‘प्रथम और उत्तम’ (पद - 9, एम.एस.जी.) (यानि अपनी कमाई का पहला हिस्सा ना कि आखिरी)। मैंने पाया है कि यह एक असाधारण सिद्धांत है; कि यदि आप अपने देने में सही हैं, तो आप इस सच्चाई को साकार होता हुआ पाएंगे कि परमेश्वर आपकी सारी ज़रूरतों को पूरा करते हैं। ‘ इस प्रकार तेरे खत्ते भरे और पूरे रहेंगे, और तेरे रसकुंडों से नया दाखमधु उमड़ता रहेगा’ (पद - 10)।

प्रार्थना

प्रभु, मेरी मदद कीजिये कि मैं आपके वचनों को केवल पढ़ने वाला न बनूँ, बल्कि उन्हें सीखूँ और उनके द्वारा जीऊँ और आपके नाम की महिमा करुं।

नए करार

मत्ती 16:21-17:13

यीशु द्वारा अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी

21 उस समय यीशु अपने शिष्यों को बताने लगा कि, उसे यरूशलेम जाना चाहिये। जहाँ उसे यहूदी धर्मशास्त्रियों, बुज़ुर्ग यहूदी नेताओं और प्रमुख याजकों द्वारा यातनाएँ पहुँचा कर मरवा दिया जायेगा। फिर तीसरे दिन वह मरे हुओं में से जी उठेगा।

22 तब पतरस उसे एक तरफ ले गया और उसकी आलोचना करता हुआ उससे बोला, “हे प्रभु! परमेश्वर तुझ पर दया करे। तेरे साथ ऐसा कभी न हो!”

23 फिर यीशु उसकी तरफ मुड़ा और बोला, “पतरस, मेरे रास्ते से हट जा। अरे शैतान! तू मेरे लिए एक अड़चन है। क्योंकि तू परमेश्वर की तरह नहीं लोगों की तरह सोचता है।”

24 फिर यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहता है, तो वह अपने आपको भुलाकर, अपना क्रूस स्वयं उठाये और मेरे पीछे हो ले। 25 जो कोई अपना जीवन बचाना चाहता है, उसे वह खोना होगा। किन्तु जो कोई मेरे लिये अपना जीवन खोयेगा, वही उसे बचाएगा। 26 यदि कोई अपना जीवन देकर सारा संसार भी पा जाये तो उसे क्या लाभ? अपने जीवन को फिर से पाने के लिए कोई भला क्या दे सकता है? 27 मनुष्य का पुत्र दूतों सहित अपने परमपिता की महिमा के साथ आने वाला है। जो हर किसी को उसके कर्मों का फल देगा। 28 मैं तुम से सत्य कहता हूँ यहाँ कुछ ऐसे हैं जो तब तक नहीं मरेंगे जब तक वे मनुष्य के पुत्र को उसके राज्य में आते न देख लें।”

तीन शिष्यों को मूसा और एलिय्याह के साथ यीशु का दर्शन

17छः दिन बाद यीशु, पतरस, याकूब और उसके भाई यूहन्ना को साथ लेकर एकान्त में ऊँचे पहाड़ पर गया। 2 वहाँ उनके सामने उसका रूप बदल गया। उसका मुख सूरज के समान दमक उठा और उसके वस्त्र ऐसे चमचमाने लगे जैसे प्रकाश। 3 फिर अचानक मूसा और एलिय्याह उनके सामने प्रकट हुए और यीशु से बात करने लगे।

4 यह देखकर पतरस यीशु से बोला, “प्रभु, अच्छा है कि हम यहाँ हैं। यदि तू चाहे तो मैं यहाँ तीन मंडप बना दूँ-एक तेरे लिए, एक मूसा के लिए और एक एलिय्याह के लिए।”

5 पतरस अभी बात कर ही रहा था कि एक चमकते हुए बादल ने आकर उन्हें ढक लिया और बादल से आकाशवाणी हुई, “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं बहुत प्रसन्न हूँ। इसकी सुनो!”

6 जब शिष्यों ने यह सुना तो वे इतने सहम गये कि धरती पर औंधे मुँह गिर पड़े। 7 तब यीशु उनके पास गया और उन्हें छूते हुए बोला, “डरो मत, खड़े होवो।” 8 जब उन्होंने अपनी आँखें उठाई तो वहाँ बस यीशु को ही पाया।

9 जब वे पहाड़ से उतर रहे थे तो यीशु ने उन्हें आदेश दिया, “जो कुछ तुमने देखा है, तब तक किसी को मत बताना जब तक मनुष्य के पुत्र को मरे हुओं में से फिर जिला न दिया जाये।”

10 फिर उसके शिष्यों ने उससे पूछा, “यहूदी धर्मशास्त्री फिर क्यों कहते हैं, एलिय्याह का पहले आना निश्चित है?”

11 उत्तर देते हुए उसने उनसे कहा, “एलिय्याह आ रहा है, वह हर वस्तु को व्यवस्थित कर देगा। 12 किन्तु मैं तुमसे कहता हूँ कि एलिय्याह तो अब तक आ चुका है। पर लोगों ने उसे पहचाना नहीं। और उसके साथ जैसा चाहा वैसा किया। उनके द्वारा मनुष्य के पुत्र को भी वैसे ही सताया जाने वाला है।” 13 तब उसके शिष्य समझे कि उसने उनसे बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना के बारे में कहा था।

समीक्षा

यीशु के शब्दों द्वारा परमेश्वर की आवाज़ सुनें

यीशु के शब्द परमेश्वर के वचन हैं। परमेश्वर कहते हैं, ‘उनकी सुनों’ (17:5)। जब आप यीशु के शब्दों को पढ़ें और उन्हें अपने दिल में ले जाएं, तो आप परमेश्वर को सुनेंगे।

यीशु अपने शिष्यों को चेतावनी देते हैं कि हमले की अपेक्षा करें। हम कभी अपमान से नहीं बच सकते (16:21)। इस पद्यांश में दो बार यीशु ने अपने शिष्यों को उन कष्टों के बारे में बताया जिसका अनुभव वह करने वाले थे – उन्हें क्रूस और पुनरूत्थान के बारे में समझाते हुए (16:21,17:9-12)।

फिर भी यीशु की सुनने के बजाय, पतरस ने उनसे बहस की (16:22)। यीशु ने पतरस को डांटा जो कि गंभीर रूप से महत्वपूर्ण हैं। हम जब भी मुख्य निर्णय लें, तब हमें खुद से पूछना चाहिये कि हम मन में परमेश्वर की बातों पर मन लगाते हैं या मनुष्य की बातों पर मन लगाते हैं (पद - 23)।

हमें आराम और सुरक्षा का जीवन पाने का प्रयास नहीं करना चाहिये। यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि, ‘यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप का इन्कार करे और अपना क्रूस उठाए, और मेरे पीछे हो ले। क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे, वह उसे खोएगा; और जो कोई मेरे लिये अपना प्राण खोए, वह उसे पाएगा। जो मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे, और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? या मनुष्य अपने प्राण के बदले में क्या देगा?’ (पद - 24-26)।

यीशु के पीछे चलना यानि अपने आप से इंकार करना है, यानि अपना क्रूस उठाकर उनके पीछे चलना है (पद - 24)। जीवन में परिपूर्णता का यही तरीका है।

धन, एक तरह से बिल्कुल बेकार है। आपके धन का असली प्रमाण यह है कि यदि आप अपना सारा धन गंवा दें तब भी आपकी प्रतिष्ठा कितनी बनी रहती है। धन या संपत्ति के मुकाबले जीवन में आपका उद्देश्य ज़्यादा महत्त्व रखता है। यदि आप अपना प्राण गंवा दें, और आपका जीवन नाश हो जाए तो इस दुनिया में सारा धन, इस दुनिया में सारी सफलता, इस दुनिया में सारी प्रतिष्ठा, और इस दुनिया में सारी ताकत का कोई मोल नहीं है (पद - 26)।

दूसरी तरफ, यदि आप यीशु के पीछे चलें और अपना जीवन उन्हें समर्पित करें, तो आप अपने जीवन का उद्देश्य पा सकेंगे। यीशु के शब्द बहुत ही शक्तिशाली हैं। ऐसा समय कभी नहीं आया जब ‘उनकी आवाज़ सुनने’ से ज़्यादा कुछ और महत्त्वपूर्ण रहा हो।

‘यीशु ने पतरस और याकूब और उसके भाई यूहन्ना को साथ लिया, और उन्हें एकान्त में किसी ऊंचे पहाड़ पर ले गए। और उनके सामने उनका रूपान्तर हुआ और उनका मुंह सूर्य की नाई चमका और उनका वस्त्र ज्योति की नाई उजला हो गया। और देखो, मूसा और एलिय्याह उनके साथ बातें करते हुए उन्हें दिखाई दिए। ’

जैसे मूसा और एलियाह यीशु के साथ बात कर रहे थे, उसी तरह से आप भी ‘यीशु के साथ बात करते हुए’ जीवन बिता सकते हैं। आप भी अपने जीवन में यीशु की उपस्थिति जान सकते हैं। उनके वचनों को पढ़ने और उन पर मनन करने के द्वारा, आप पवित्र आत्मा के द्वारा यीशु के साथ बात - चीत करने का अनुभव पा सकते हैं।

एक तरह से आप, उनके चेहरे को देख सकते हैं, जो कि ‘सूर्य की नाई’ चमक रहा है (पद - 2)। आप नीचे गिरकर उनकी आराधना कर सकते हैं (पद - 6)। आप महसूस कर सकते हैं कि यीशु आपको सच में छू रहे हैं और कह रहे हैं, ‘डरो मत’ (पद - 7)। और ऐसा समय भी आएगा जब आप अपनी आँखें उठाकर देखें और यीशु को छोड़ और किसी को न देखें (पद - 8)।

प्रार्थना

प्रभु, आपका धन्यवाद कि आप मेरे साथ बात करते हैं और आपने मुझे अपने पीछे चलने के लिए बुलाया है। आपका धन्यवाद कि जब आपकी खातिर मैं अपना जीवन देता हूँ, तो मैं इसे पाता हूँ। मुझे आपकी आवाज़ सुनने में मदद कीजिये।

जूना करार

उत्पत्ति 47:13-48:22

यूसुफ फ़िरौन के लिए भूमि खरीदता है

13 भूखमरी का समय और भी अधिक बुरा हो गया। देश में कहीं भी भोजन न रहा। इस बुरे समय के कारण मिस्र और कनान बहुत गरीब हो गए। 14 देश में लोग अधिक से अधिक अन्न खरीदने लगे। यूसुफ ने धन बचाया और उसे फ़िरौन के महल में लाया। 15 कुछ समय बाद मिस्र और कनान में लोगों के पास पैसा नहीं रहा। उन्होंने अपना सारा धन अन्न खरीदने में खर्च कर दिया। इसलिए लोग यूसुफ के पास गए और बोले, “कृपा कर हमें भोजन दें। हम लोगों का धन समाप्त हो गया। यदि हम लोग नहीं खाएँगे तो आपके देखते—देखते हम मर जायेंगे।”

16 लेकिन यूसुफ ने उत्तर दिया, “अपने पशु मुझे दो और मैं तुम लोगों को भोजन दूँगा।” 17 इसलिए लोग अपने पशु, घोड़े और अन्य सभी जानवरों को भोजन खरीदने के लिए उपयोग में लाने लगे और उस वर्ष यूसुफ ने उनके जानवरों को लिया तथा भोजन दिया।

18 किन्तु दूसरे वर्ष लोगों के पास जानवर नहीं रह गए और भोजन खरीदने के लिए कुछ भी न रहा। इसलिए लोग यूसुफ के पास गए और बोले, “आप जानते हैं कि हम लोगों के पास धन नहीं बचा है और हमारे सभी जानवर आपके हो गये हैं। इसलिए हम लोगों के पास कुछ नहीं बचा है। वह बचा है केवल, जो आप देखते हैं, हमारा शरीर और हमारी भूमि। 19 आपके देखते हुए ही हम निश्चय ही मर जाएँगे। किन्तु यदि आप हमें भोजन देते हैं तो हम फ़िरौन को अपनी भूमि देंगे और उसके दास हो जाएँगे। हमें बीज दो जिन्हें हम बो सकें। तब हम लोग जीवित रहेंगे और मरेंगे नहीं और भूमि हम लोगों के लिए फिर अन्न उगाएगी।”

20 इसलिए यूसुफ ने मिस्र की सारी भूमि फ़िरौन के लिए खरीद ली। मिस्र के सभी लोगों ने अपने खेतों को यूसुफ के हाथ बेच दिया। उन्होंने यह इसलिए किया क्योंकि वे बहुत भूखे थे। 21 और सभी लोग फ़िरौन के दास हो गए। मिस्र में सर्वत्र लोग फ़िरौन के दास थे। 22 एक मात्र वही भूमि यूसुफ ने नहीं खरीदी जो याजकों के अधिकार में थी। याजकों को भूमि बेचने की आवश्कता नहीं थी। क्योंकि फ़िरौन उनके काम के लिए उन्हें वेतन देता था। इसलिए उन्होंने इस धन को खाने के लिए भोजन खरीदने में खर्च किया।

23 यूसुफ ने लोगों से कहा, “अब मैंने तुम लोगों को और तुम्हारी भूमि को फ़िरौन के लिए खरीद लिया है। इसलिए मैं तुमको बीज दूँगा और तुम लोग अपने खेतों में पौधे लगा सकते हो। 24 फसल काटने के समय तुम लोग फसल का पाँचवाँ हिस्सा फ़िरौन को अवश्य देना। तुम लोग अपने लिए पाँच में से चार हिस्से रख सकते हो। तुम लोग उस बीज को जिसे भोजन और बोने के लिए रखोगे उसे दूसरे वर्ष उपयोग में ला सकोगे। अब तुम अपने परिवारों और बच्चों को खिला सकते हो।”

25 लोगों ने कहा, “आपने हम लोगों का जीवन बचा लिया है। हम लोग आपके और फ़िरौन के दास होने में प्रसन्न हैं।”

26 इसलिए यूसुफ ने उस समय देश में एक नियम बनाया और वह नियम अब तक चला आ रहा है। नियम के अनुसार भूमि से हर एक उपज का पाँचवाँ हिस्सा फ़िरौन का है। फ़िरौन सारी भूमि का स्वामी है। केवल वही भूमि उसकी नहीं है जो याजकों की है।

“मुझे मिस्र में मत दफनाना”

27 इस्राएल (याकूब) मिस्र में रहा। वह गोशेन प्रदेश में रहा। उसका परिवार बढ़ा और बहुत हो गया। उन्होंने मिस्र में उस भूमि को पाया और अच्छा जीवन बिताया।

28 याकूब मिस्र में सत्रह वर्ष रहा। इस प्रकार याकूब एक सौ सैंतालीस वर्ष का हो गया। 29 वह समय आ गया जब इस्राएल (याकूब) समझ गया कि वह जल्दी ही मरेगा, इसलिए उसने अपने पुत्र यूसुफ को अपने पास बुलाया। उसने कहा, “यदि तुम मुझसे प्रेम करते हो तो तुम अपने हाथ मेरी जांघ के नीचे रख कर मुझे वचन दो। वचन दो कि तुम, जो मैं कहूँगा करोगे और तुम मेरे प्रति सच्चे रहोगे। जब मैं मरूँ तो मुझे मिस्र में मत दफनाना। 30 उसी जगह मुझे दफनाना जिस जगह मेरे पूर्वज दफनाए गए हैं। मुझे मिस्र से बाहर ले जाना और मेरे परिवार के कब्रिस्तान में दफनाना।”

यूसुफ ने उत्तर दिया, “मैं वचन देता हूँ कि वही करूँगा जो आप कहते हैं।”

31 तब याकूब ने कहा, “मुझसे एक प्रतिज्ञा करो” और यूसुफ ने उससे प्रतिज्ञा की कि वह इसे पूरा करेगा। तब इस्राएल (याकूब) ने अपना सिर पलंग पर पीछे को रखा।

मनश्शे और एप्रैम को आशीर्वाद

48कुछ समय बाद यूसुफ को पता लगा कि उसका पिता बहुत बीमार है। इसलिए यूसुफ ने अपने दोनों पुत्रों मनश्शे और एप्रैम को साथ लिया और अपने पिता के पास गया। 2 जब यूसुफ पहुँचा तो किसी ने इस्राएल से कहा, “तुम्हारा पुत्र यूसुफ तुम्हें देखने आया है।” इस्राएल बहुत कमज़ोर था, किन्तु उसने बहुत प्रयत्न किया और पलंग पर बैठ गया।

3 तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, “कनान देश में लूज के स्थान पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मुझे स्वयं दर्शन दिया। परमेश्वर ने वहाँ मुझे आशीर्वाद दिया। 4 परमेश्वर ने मुझसे कहा, ‘मैं तुम्हारा एक बड़ा परिवार बनाऊँगा। मैं तुमको बहुत से बच्चे दूँगा और तुम एक महान राष्ट्र बनोगे। तुम्हारे लोगों का अधिकार इस देश पर सदा बना रहेगा।’ 5 और अब तुम्हारे दो पुत्र हैं। मेरे आने से पहले मिस्र देश में यहाँ ये पैदा हुए थे। तुम्हारे दोनों पुत्र एप्रैम और मनश्शे मेरे अपने पुत्रों की तरह होंगे। 6 किन्तु यदि तुम्हारे अन्य पुत्र होंगे तो वे तुम्हारे बच्चे होंगे। किन्तु वे भी एप्रैम और मनश्शे का जो कुछ होगा, उसमें हिस्सेदार होंगे। 7 पद्दनराम से यात्रा करते समय राहेल मर गई। इस बात ने मुझे बहुत दुःखी किया। वह कनान देश में मरी। हम लोग अभी एप्राता की ओर यात्रा कर रहे थे। मैंने उसे एप्राता की ओर जाने वाली सड़क पर दफनाया।” (एप्राता बैतलेहेम है।)

8 तब इस्राएल ने यूसुफ के पुत्रों को देखा। इस्राएल ने पूछा, “ये लड़के कौन हैं?”

9 यूसुफ ने अपने पिता से कहा, “ये मेरे पुत्र हैं। ये वे लड़के हैं जिन्हें परमेश्वर ने मुझे दिया है।”

इस्राएल ने कहा, “अपने पुत्रों को मेरे पास लाओ। मैं उन्हें आशीर्वाद दूँगा।”

10 इस्राएल बूढ़ा था और उसकी आँखें ठीक नहीं थीं। इसलिए यूसुफ अपने पुत्रों को अपने पिता के निकट ले गया। इस्राएल ने बच्चों को चूमा और गले लगाया। 11 तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, “मैंने कभी नहीं सोचा कि मैं तुम्हारा मुँह फिर देखूँगा, किन्तु देखो। परमेश्वर ने तुम्हें और तुम्हारे बच्चों को भी मुझे देखने दिया।”

12 तब यूसुफ ने बच्चों को इस्राएल की गोद से लिया और वे उसके पिता के सामने प्रणाम करने को झुके। 13 यूसुफ ने एप्रैम को अपनी दायीं ओर किया और मनश्शे को अपनी बायीं ओर (इस प्रकार एप्रैम इस्राएल की बायीं ओर था और मनश्शे इस्राएल की दायीं ओर था)। 14 किन्तु इस्राएल ने अपने हाथों की दिशा बदलकर अपने दायें हाथ को छोटे लड़के एप्रैम के सिर पर रखा और तब बायें हाथ को इस्राएल ने बड़े लड़के मनश्शे के सिर पर रखा। यद्यपि मनश्शे का जन्म पहले हुआ था

 15 और इस्राएल ने यूसुफ को आशीर्वाद दिया और कहा,  “मेरे पूर्वज इब्राहीम और इसहाक ने हमारे परमेश्वर की उपासना की
 और वही परमेश्वर मेरे पूरे जीवन का पथ—प्रदर्शक रहा है।
 16 वही दूत रहा जिसने मुझे सभी कष्टों से बचाया
 और मेरी प्रार्थना है कि इन लड़कों को वह आशीर्वाद दे।
 अब ये बच्चे मेरा नाम पाएँगे। वे हमारे पूर्वज इब्राहीम
 और इसहाक का नाम पाएँगे।
 मैं प्रार्थना करता हूँ कि वे इस धरती पर बड़े परिवार
 और राष्ट्र बनेंगे।”

17 यूसुफ ने देखा कि उसके पिता ने एप्रैम के सिर पर दायाँ हाथ रखा है। वह यूसुफ को प्रसन्न न कर सका। यूसुफ ने अपने पिता के हाथ को पकड़ा। वह उसे एप्रैम के सिर से हटा कर मनश्शे के सिर पर रखना चाहता था। 18 यूसुफ ने अपने पिता से कहा, “आपने अपना दायाँ हाथ गलत लड़के पर रखा है। मनश्शे का जन्म पहले है।”

19 किन्तु उसके पिता ने तर्क दिया और कहा, “पुत्र, मैं जानता हूँ। मनश्शे का जन्म पहले है और वह महान होगा। वह बहुत से लोगों का पिता भी होगा। किन्तु छोटा भाई बड़े भाई से बड़ा होगा और छोटे भाई का परिवार उससे बहुत बड़ा होगा।”

20 इस प्रकार इस्राएल ने उस दिन उन्हें आशीर्वाद दिया। उसने कहा,

“इस्राएल के लोग तुम्हारे नाम का प्रयोग आशीर्वाद देने के लिए करेंगे,
तुम्हारे कारण कृपा प्राप्त करेंगे।
लोग प्रार्थना करेंगे, ‘परमेश्वर तुम्हें
एप्रैम और मनश्शे के समान बनाये।’”

इस प्रकार इस्राएल ने एप्रैम को मनश्शे से बड़ा बनाया।

21 तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, “देखो मेरी मृत्यु का समय निकट आ गया है। किन्तु परमेश्वर तुम्हारे साथ अब भी रहेगा। वह तुम्हें तुम्हारे पूर्वजों के देश तक लौटा ले जायेगा। 22 मैंने तुमको ऐसा कुछ दिया है जो तुम्हारे भाईयों को नहीं दिया है। मैं तुमको वह पहाड़ देता हूँ जिसे मैंने एमोरी लोगों से जीता था। उस पहाड़ के लिए मैंने अपनी तलवार और अपने धनुष से युद्ध किया था और मेरी जीत हुई थी।”

समीक्षा

जीवन भर परमेश्वर की आवाज़ सुनते रहें

जब याकूब अपने जीवन के अंत में आया और तब उसने प्रभु की सारी आशीषों को याद किया (सारी परीक्षाओं और परेशानियों के बावजूद), ‘तब इस्राएल ने खाट के सिरहाने की ओर सिर झुकाकर प्रार्थना की ’ (47:31)। वह जान गया कि परमेश्वर ने सारा जीवन उसका मार्गदर्शन किया है। यह उस व्यक्ति की याद ताज़ा करने वाली छवि थी जिसने परमेश्वर के साथ करीबी संबंध बनाते हुए, उनकी और उनकी बुद्धि की सुनते हुए जीवन बिताया है। उसे याद आया कि परमेश्वर ने उसके साथ कैसे बात की और उसे अपने जीवन के लिए एक दर्शन दिया (48:3-4)। वह कह सकता था, ‘वही परमेश्वर मेरे जन्म से ले कर आज के दिन तक मेरा चरवाहा बना है’ (पद - 15)।

याकूब यह भी जान गया कि परमेश्वर ने उसके पुत्र यूसुफ की अगुआई असाधारण तरीके से की है। क्योंकि यूसुफ ने परमेश्वर को सुनना सीख लिया था, वह फिरौन के स्वप्न का अर्थ बता सका और इसके परिणाम स्वरूप उसने महान आशीष देखी। उसने न केवल परमेश्वर के लोगों की जान बचाई, बल्कि उसने सभी मिस्रियों की जान भी बचाई (47:25)। जब याकूब के जीवन का अंत करीब आया तो उसने भविष्य के लिए परमेश्वर के वायदों और आशीषों पर यकीन करते हुए यूसुफ के बच्चों को आशीष दी।

जब इब्रानियों की पुस्तक के लेखक ने याकूब के विश्वास भरे जीवन पर टिप्पणी की, तो उसने इस घटना को याद किया: ‘ विश्वास ही से याकूब ने मरते समय यूसुफ के दोनों पुत्रों में से एक को आशीष दी, और अपनी लाठी के सिरे पर सहारा लेकर दण्डवत किया ’ (इब्रानियों 11:21)। जब वह अपने जीवन के अंतिम समय में आया तो, परमेश्वर पर याकूब का भरोसा डगमगाया नहीं। अंत में उसका विश्वास और भी बढ़ गया।

आराधना में विश्वास योग्य बने रहिये और पूरा जीवन परमेश्वर की सुनिये। परमेश्वर पर विश्वास कीजिये कि वह आने वाले समय में आपका मार्गदर्शन करेंगे और आपकी अगुआई करेंगे, और यह कि वे लोग भी चरवाहा की आवाज़ को सुनेंगे (यूहन्ना 10:3-4 देखें)।

प्रार्थना

प्रभु, आपका धन्यवाद कि पूरे पवित्र शास्त्र में मैंने आपकी आवाज़ को सुनने के महत्त्व को देखा। आपको धन्यवाद कि आपने मुझसे मेरी अगुआई करने और मुझसे बात करने का वायदा किया है। जीवन भर प्रतिदिन आपकी आवाज़ सुनने में मेरी मदद कीजिये।

पिप्पा भी कहते है

‘सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना….. उसी को स्मरण करके सब काम करना, ’ (नीतिवचन 3:5-6)। संपूर्ण दिल से, ‘सब कामों में संपूर्ण मन से’ – परमेश्वर को संपूर्ण समर्पण करना। मुझे यह सुनिश्चित करने के लिए कुछ मामलों को जाँचने की ज़रूरत है, कि वे ‘पूरी तरह से’ परमेश्वर को समर्पित रहें।

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संदर्भ

नोट्स:

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है। कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है. (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

एक साल में बाइबल

  • एक साल में बाइबल

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