दिन 25

परमेश्वर का इरादा भलाई करना था

बुद्धि भजन संहिता 15:1-5
नए करार मत्ती 17:14-18:9
जूना करार उत्पत्ति 49:1-50:26

परिचय

सन् 1947 में न्यू यॉर्क में ग्लेन चॅम्बर्स नामक युवा का स्वप्न था कि वह इक्वेडोर में जीवन भर परमेश्वर के लिए काम करेगा। प्रस्थान के दिन वह हवाई अड्डे से अपनी माँ के लिए एक नोट भेजना चाहता था, लेकिन उसके पास कार्ड खरीदने के लिए समय नहीं था। उसका ध्यान टर्मिनल के फर्श पर एक काग़ज़ पर गया और उसने उसे उठा लिया। इस पर ‘क्यों?’ के साथ एक विज्ञापन छपा था। जल्दी में उसने ‘क्यों?’ के चारों तरफ अपना नोट लिखा और इसे पोस्ट बॉक्स में डाल दिया। उस रात उसका हवाई जहाज़ कोलंबिया में 14,000 फुट ऊँची अल टॅब्लाज़ो से टकरा गया। उसकी मृत्यु के बाद जब उसकी माँ को उसका नोट मिला तो उस पन्ने पर से …’ क्यों?’ इस प्रश्न ने उसकी माँ को भड़का दिया।

परमेश्वर ने ऐसे कष्ट को क्यों आने दिया? हम लगातार कष्टों का सामना करते हैं। यह हमें नाराज़ करता है और घबरा देता है। यह मसीही विश्वास के लिए एकमात्र चुनौती है। कष्टों की मात्रा और इसका वितरण अनियमित और अनुचित है।

सदियों से दार्शनिक और धर्मशास्त्री इस नाहक दु:ख के रहस्य से संघर्ष कर रहे हैं पर अब तक कोई भी सामान्य और संपूर्ण समाधान नहीं ढूँढ पाए। आज के और कल के पद्यांश इसके उत्तर का हिस्सा ही नहीं हैं, बल्कि इनमें से हर एक हमें कुछ अंतर्दृष्टि देते हैं।

आज के पद्यांशों में हम देखते हैं कि हालाँकि तकलीफें कभी भी अपने आप में अच्छी नहीं होतीं, फिर भी परमेश्वर अनेक तरीकों से इनका उपयोग भलाई के लिए करते हैं। परमेश्वर आप से प्रेम करते हैं। आपकी तकलीफों को परमेश्वर की तकलीफ भी कहा जाता है। आपके साथ - साथ वह भी कष्ट उठाते हैं, फिर भी वह आपके जीवन से तकलीफों को नहीं हटाते; कभी - कभी वह बुरी चीज़ों का उपयोग करते हैं जो उनके अच्छे उद्देश्यों के लिए होती हैं।

बुद्धि

भजन संहिता 15:1-5

दाऊद का एक पद।

15हे यहोवा, तेरे पवित्र तम्बू में कौन रह सकता है?
  तेरे पवित्र पर्वत पर कौन रह सकता है?

2 केवल वह व्यक्ति जो खरा जीवन जीता है, और जो उत्तम कर्मों को करता है,
 और जो ह्रदय से सत्य बोलता है। वही तेरे पर्वत पर रह सकता है।
3 ऐसा व्यक्ति औरों के विषय में कभी बुरा नहीं बोलता है।
 ऐसा व्यक्ति अपने पड़ोसियों का बुरा नहीं करता।
 वह अपने घराने की निन्दा नहीं करता है।
4 वह उन लोगों का आदर नहीं करता जो परमेश्वर से घृणा रखते हैं।
 और वह उन सभी का सम्मान करता है, जो यहोवा के सेवक हैं।
 ऐसा मनुष्य यदि कोई वचन देता है
 तो वह उस वचन को पूरा भी करता है, जो उसने दिया था।
5 वह मनुष्य यदि किसी को धन उधार देता है
 तो वह उस पर ब्याज नहीं लेता,
 और वह मनुष्य किसी निरपराध जन को हानि पहुँचाने के लिये
 घूस नहीं लेता।

यदि कोई मनुष्य उस खरे जन सा जीवन जीता है
 तो वह मनुष्य परमेश्वर के निकट सदा सर्वदा रहेगा।

समीक्षा

आपको बदलने के लिए परमेश्वर तकलीफों का उपयोग करते हैं

क्या किसी परिस्थिति के कारण आपके जीवन में कभी ऐसा समय आया है जब आप पूरी तरह से डगमगा गए थे? ऐसा समय जब आप अपनी सहनशीलता खो चुके थे और हार मानने लगे थे?

आज का भजन हमें याद दिलाता है कि आपको कभी भी ‘डगमगाना नहीं है’ (पद - 5)। दाऊद ने इस तरह के जीवन का उल्लेख किया है जिसमें परमेश्वर का इरादा आपकी अगुआई करना था। उनका मार्गदर्शन ऐसी बाते हैं जिन्हें आप परेशानी के समय में पकड़े रह सकते हैं:

  1. जो सही हैं वही करें
  • खराई से चलें और जो सही है वही करें (पद - 2अ)।
  1. सच बोलें
  • ‘……अपने हृदय से सच बोलें’ (पद - 2ब)।
  1. गपशप न करें
  • ‘अपनी जीभ से निन्दा न करें ’ (पद - 3)।
  1. अपने पड़ोसी को दु:ख न पहुँचाएं
  • ‘अपने पड़ोसी का बुरा न करें’ (पद - 3)।
  1. अपने वायदे को पूरा करें
  • ‘शपथ खाकर न बदलें, चाहें हानि उठानी पड़े तब भी’ (पद - 4ब)। इसका मतलब है आपने जो वायदा किया है उसे पूरा करें चाहें यह आपको अच्छा लगे या न लगे (खासकर यह हमारी पीढ़ी के लिए एक चुनौती है, जब एक साधारण शब्द किसी भी समय एक सुव्यवस्था को रद्द कर सकता है)।
  1. साहसी बनें
  • यदि आपने अपना धन ब्याज पर दिया है तो ज़रूरत से ज़्यादा ब्याज मत लीजिये (पद - 5अ)।
  1. ईमानदार रहें
  • कभी घूस मत लीजिये (पद - 5ब)।

इस विवरण के साथ जैसे - जैसे हमारा चरित्र ढलता जाता है, वैसे - वैसे हमें अस्थिर करने के लिए परिस्थितियों और तकलीफों का प्रभाव कम होता जाता है। जैसा कि भजन लिखने वाले कहते हैं कि, ‘जो कोई ऐसी चाल चलता है वह कभी न डगमगाएगा’ (पद - 5क) और वह प्रभु के पवित्र स्थान पर बसने पाएगा’ (पद - 1अ)।

जैसे - जैसे समय गुज़रता है हमारा चरित्र बदलने लगता है, और चरित्र के बदलने से हमें सुरक्षित आशा और परमेश्वर के प्रेम का अनुभव और ज्ञान होने लगता है (रोमियों 5:3-5)। परेशानी और असुरक्षा के दौर में आशा और प्रेम आपको स्थिर करने वाली सबसे महान शक्ति है।

प्रार्थना

प्रभु, आपका धन्यवाद कि जैसा मैं हूँ वैसा ही आपने मुझे अपनाया है, लेकिन आप नहीं चाहते कि मैं वैसा ही रहूँ। पवित्र जीवन बिताने के लिए मेरी मदद कीजिये। परीक्षाओं और तकलीफों को अपने चरित्र को बदलने के लिए एक आवश्यक अवस्था के रूप में देखने में मेरी मदद कीजिये।

नए करार

मत्ती 17:14-18:9

रोगी लड़के का अच्छा किया जाना

14 जब यीशु भीड़ में वापस आया तो एक व्यक्ति उसके पास आया और उसे दंडवत प्रणाम करके बोला, 15 “हे प्रभु, मेरे बेटे पर दया कर। उसे मिर्गी आती है। वह बहुत तड़पता है। वह आग में या पानी में अक्सर गिरता पड़ता रहता है। 16 मैं उसे तेरे शिष्यों के पास लाया, पर वे उसे अच्छा नहीं कर पाये।”

17 उत्तर में यीशु ने कहा, “अरे भटके हुए अविश्वासी लोगों, मैं कितने समय तुम्हारे साथ और रहूँगा? कितने समय मैं यूँ ही तुम्हारे साथ रहूँगा? उसे यहाँ मेरे पास लाओ।” 18 फिर यीशु ने दुष्टात्मा को आदेश दिया और वह उसमें से बाहर निकल आयी। और वह लड़का तत्काल अच्छा हो गया।

19 फिर उसके शिष्यों ने अकेले में यीशु के पास जाकर पूछा, “हम इस दुष्टात्मा को बाहर क्यों नहीं निकाल पाये?”

20 यीशु ने उन्हें बताया, “क्योंकि तुममें विश्वास की कमी है। मैं तुमसे सत्य कहता हूँ, यदि तुममें राई के बीज जितना भी विश्वास हो तो तुम इस पहाड़ से कह सकते हो ‘यहाँ से हट कर वहाँ चला जा’ और वह चला जायेगा। तुम्हारे लिये असम्भव कुछ भी नहीं होगा।” 21

यीशु का अपनी मृत्यु के बारे में बताना

22 जब यीशु के शिष्य आए और उसके साथ गलील में मिले तो यीशु ने उनसे कहा, “मनुष्य का पुत्र, मनुष्यों के द्वारा ही पकड़वाया जाने वाला है, 23 जो उसे मार डालेंगे। किन्तु तीसरे दिन वह फिर जी उठेगा!” इस पर यीशु के शिष्य बहुत व्याकुल हुए।

कर का भुगतान

24 जब यीशु और उसके शिष्य कफ़रनहूम में आये तो मन्दिर का दो दरम कर वसूल करने वाले पतरस के पास आये और बोले, “क्या तेरा गुरु मन्दिर का कर नहीं देता?”

25 पतरस ने उत्तर दिया, “हाँ, वह देता है।”

और घर में चला आया। पतरस से बोलने के पहले ही यीशु बोल पड़ा, उसने कहा, “शमौन, तेरा क्या विचार है? धरती के राजा किससे चुंगी और कर लेते हैं? स्वयं अपने बच्चों से या दूसरों के बच्चों से?”

26 पतरस ने उत्तर दिया, “दूसरे के बच्चों से।”

तब यीशु ने उससे कहा, “यानी उसके बच्चों को छूट रहती है। 27 पर हम उन लोगों को नाराज़ न करें इसलिये झील पर जा और अपना काँटा फेंक और फिर जो पहली मछली पकड़ में आये उसका मुँह खोलना तुझे चार दरम का सिक्का मिलेगा। उसे लेकर मेरे और अपने लिए उन्हें दे देना।”

सबसे बड़ा कौन

18तब यीशु के शिष्यों ने उसके पास आकर पूछा, “स्वर्ग के राज्य में सबसे बड़ा कौन हैं?”

2 तब यीशु ने एक बच्चे को अपने पास बुलाया और उसे उनके सामने खड़ा करके कहा, 3 “मैं तुमसे सत्य कहता हूँ जब तक कि तुम लोग बदलोगे नहीं और बच्चों के समान नहीं बन जाओगे, स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकोगे। 4 इसलिये अपने आपको जो कोई इस बच्चे के समान नम्र बनाता है, वही स्वर्ग के राज्य में सबसे बड़ा है।

5 “और जो कोई ऐसे बालक जैसे व्यक्ति को मेरे नाम में स्वीकार करता है वह मुझे स्वीकार करता है।

पापों के परिणाम के बारे में यीशु की चेतावनी

6 “किन्तु जो मुझमें विश्वास करने वाले मेरे किसी ऐसे नम्र अनुयायी के रास्ते की बाधा बनता है, अच्छा हो कि उसके गले में एक चक्की का पाट लटका कर उसे समुद्र की गहराई में डुबो दिया जाये। 7 बाधाओं के कारण मुझे संसार के लोगों के लिए खेद है, पर बाधाएँ तो आयेंगी ही किन्तु खेद तो मुझे उस पर है जिसके द्वारा बाधाएँ आती हैं।

8 “इसलिए यदि तेरा हाथ या तेरा पैर तेरे लिए बाधा बने तो उसे काट फेंक, क्योंकि स्वर्ग में बिना हाथ या बिना पैर के अनन्त जीवन में प्रवेश करना तेरे लिए अधिक अच्छा है; बजाये इसके कि दोनों हाथों और दोनों पैरों समेत तुझे नरक की कभी न बुझने वाली आग में डाल दिया जाये। 9 यदि तेरी आँख तेरे लिये बाधा बने तो उसे बाहर निकाल कर फेंक दे, क्योंकि स्वर्ग में काना होकर अनन्त जीवन में प्रवेश करना तेरे लिये अधिक अच्छा है; बजाये इसके कि दोनों आँखों समेत तुझे नरक की आग में डाल दिया जाए।

समीक्षा

आपको बचाने के लिए परमेश्वर ने कष्टों का उपयोग किया

यीशु कष्टों को दूर करने के लिए आए (17:22-23) और अंत में उन्होंने बलिदान होने और पुनरूत्थान के द्वारा सारे कष्टों को दूर कर दिया।

सृष्टि के केन्द्र में क्रूस पर यीशु को कष्ट उठाना है: “मनुष्य का पुत्र मनुष्यों के हाथ में पकड़वाया जाएगा। और वे उसे मार डालेंगे, और वह तीसरे दिन जी उठेगा। इस पर वे बहुत उदास हुए” (पद - 22-23)। वे समझ नहीं पाए कि मनुष्य का इरादा बुरा था, लेकिन परमेश्वर का इरादा भलाई करना था – अनेकों का जीवन बचाना था। आप कह सकते हैं कि, ‘यीशु युद्ध में जीतने के लिए लड़ाई में पराजित हुए’।

शैतान का इरादा बुराई करना था, लेकिन परमेश्वर का इरादा भलाई करना था। वह अब तक सबसे बुरा काम करने में कामयाब हो गया था (यानि परमेश्वर के पुत्र को जान से मारने में) और परमेश्वर ने इसका उपयोग सबसे महान भलाई के लिए किया (मानव जाति के उद्धार के लिए)।

लड़के को लकवे से चंगा करना (पद - 18) ऐसे समय का पुर्वाभास है जब कोई भी बीमार या दु:खी न होगा। यीशु की मृत्यु और पुनरूत्थान का मतलब है, ‘किसी को भी नरक की आग में डालने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी’ (18:9)।

आप कैसे प्रतिक्रिया करेंगे?

  1. विश्वास कीजिये
  • दुनिया में बहुत कष्ट हैं। इस पद्यांश में हम बच्चे की बीमारी और उसके कारण माता - पिता का भयंकर दु:ख देखते हैं (17:15 एम.एस.जी.)। इस मामले में शिष्यों द्वारा उसे ठीक न कर पाना विश्वास में कमी की वजह से हुआ था (हालाँकि ऐसा हमेशा नहीं होता – कुछ लोगों ने चंगाई के लिए बेहद विश्वास से प्रार्थना की लेकिन कोई परिणाम नहीं आया)। यीशु कहते हैं कि यदि आपका विश्वास बहुत छोटा हो तब भी आप पहाड़ को हिला सकते हैं। ‘और कोई बात आपके लिये अनहोनी न होगी’ (पद - 20)।
  1. अनावश्यक अपराध का कारण न बनें
  • यीशु समझाते हैं, हालाँकि उन्हें मंदिर (परमेश्वर के भवन) के लिए कोई चुंगी भरने की ज़रूरत नहीं थी, क्योंकि वह स्वयं परमेश्वर थे, फिर भी उन्होंने खुद के लिए और पतरस के लिए चमत्कारी रूप से चुंगी अदा की, वह अनावश्यक रूप से अपराध का कारण नहीं बनें।
  1. खुद को नम्र बनाएं
  • ‘जो कोई अपने आप को इस बालक के समान छोटा करेगा, वह स्वर्ग के राज्य में बड़ा होगा’ (18:4)।
  1. मौलिक बनें
  • यीशु हमें अपने जीवन से पाप को काट डालने के लिए निष्ठुर बनने के लिए कहते हैं (पद - 7-9)।

प्रार्थना

प्रभु, आपका धन्यवाद कि सृष्टि का केन्द्र वह घटना है जहाँ आपने बुराई को भलाई में बदल दिया। मैं अपना विश्वास आप पर रखता हूँ। मैं आप पर निर्भर हूँ।

जूना करार

उत्पत्ति 49:1-50:26

याकूब अपने पुत्रों को आशीर्वाद देता है

49तब याकूब ने अपने सभी पुत्रो को अपने पास बुलाया। उसने कहा, “मेरे सभी पुत्रो, यहाँ मेरे पास आओ। मैं तुम्हें बताऊँगा कि भविष्य में क्या होगा।

2 “याकूब के पुत्रो, एक साथ आओ और सुनो,
 अपने पिता इस्राएल की सुनो।

रूबेन

3 “रूबेन, तुम मेरे प्रथम पुत्र हो।
 तुम मेरे पहले पुत्र और मेरी शक्ति का पहला सबूत हो।
 तुम मेरे सभी पुत्रों से
 अधिक गर्वीले और बलवान हो।
4 किन्तु तुम बाढ़ की तंरगों की तरह प्रचण्ड हो।
 तुम मेरे सभी पुत्रों से अधिक महत्व के नहीं हो सकोगे।
 तुम उस स्त्री के साथ सोए जो तुम्हारे पिता की थी।
 तुमने अपने पिता के बिछौने को सम्मान नहीं दिया।”

शिमोन और लेवी

5 “शिमोन और लेवी भाई हैं।
 उन्हें अपनी तलवारों से लड़ना प्रिय है।
6 उन्होंने गुप्त रूप से बुरी योजनाएँ बनाईं।
 मेरी आत्मा उनकी योजना का कोई अंश नहीं चाहती।
 मैं उनकी गुप्त बैठकों को स्वीकार नहीं करूँगा।
 उन्होंने आदमियों की हत्या की जब वे क्रोध में थे और उन्होंने केवल विनोद के लिए जानवरों को चोट पहुँचाई।
7 उनका क्रोध एक अभिशाप है।
 ये अत्याधिक कठोर और अपने पागलपन में क्रोधित हैं।
 याकूब के देश में इनके परिवारों की अपनी भूमि नहीं होगी।
 वे पूरे इस्राएल में फैलेंगे।”

यहूदा

8 “यहूदा, तुम्हारे भाई तुम्हारी प्रशंसा करेंगे।
 तुम अपने शत्रुओं को हराओगे।
 तुम्हारे भाई तुम्हारे सामने झुकेंगे।
9 यहूदा उस शेर की तरह है जिसने किसी जानवर को मारा हो।
 हे मेरे पुत्र, तुम अपने शिकार पर खड़े शेर के समान हो
 जो आराम करने के लिए लेटता है,
 और कोई इतना बहादुर नहीं कि उसे छेड़ दे।
10 यहूदा के परिवार के व्यक्ति राजा होंगे।
 उसके परिवार का राज—चिन्ह उसके परिवार से
 वास्तविक शासक के आने से पहले समाप्त नहीं होगा।
 तब अनेकों लोग उसका आदेश मानेंगे और सेवा करेंगे।
11 वह अपने गधे को अँगूर की बेल से बाँधता है।
 वह अपने गधे के बच्चों को सबसे अच्छी अँगूर की बेलों में बाँधता है।
 वह अपने वस्त्रों को धोने के लिए सबसे अच्छी दाखमधु का उपयोग करता है।
12 उसकी आँखे दाखमधु पीने से लाल रहती है।
 उसके दाँत दूध पीने से उजले है।”

जबूलून

13 “जबूलून समुद्र के निकट रहेगा।
 इसका समुद्री तट जहाजों के लिए सुरक्षित होगा।
 इसका प्रदेश सीदोन तक फैला होगा।”

इस्साकर

14 “इस्साकर उस गधे के समान है जिसने अत्याधिक कठोर काम किया है।
 वह भारी बोझ ढोने के कारण पस्त पड़ा है।
15 वह देखेगा कि उसके आराम की जगह अच्छी है।
 तथा यह कि उसकी भूमि सुहाबनी है।
 तब वह भारी बोझे ढोने को तैयार होगा।
 वह दास के रूप में काम करना स्वीकार करेगा।”

दान

16 “दान अपने लोगों का न्याय वैसे ही करेगा
 जैसे इस्राएल के अन्य परिवार करते हैं।
17 दान सड़क के किनारे के
 साँप के समान है।
 वह रास्ते के पास लेटे हुए
 उस भयंकर साँप की तरह है,
 जो घोड़े के पैर को डसता है,
 और सवार घोड़े से गिर जाता है।

18 “यहोवा, मैं उद्धार की प्रतीक्षा कर रहा हूँ।”

गाद

19 “डाकुओं का एक गिरोह गाद पर आक्रमण करेगा।
 किन्तु गाद उन्हें मार भगाएगा।”

आशेर

20 “आशेर की भूमि बहुत अच्छी उपज देगी।
 उसे वही भोजन मिलेगा जो राजाओं के लिए उपयुक्त होगा।”

नप्ताली

21 “नप्ताली स्वतन्त्र दौड़ने वाले हिरण की तरह है
 और उसकी बोली उनके सुन्दर बच्चों की तरह है।”

यूसुफ

22 “यूसुफ बहुत सफल है।
 यूसुफ फलों से लदी अंगूर की बेल के समान है।
 वह सोते के समीप उगी अँगूर की बेल की तरह है,
 बाड़े के सहारे उगी अँगूर की बेल की तरह है।
23 बहुत से लोग उसके विरुद्ध हुए
 और उससे लड़े।
 धर्नुधारी लोग उसे पसन्द नहीं करते।
24 किन्तु उसने अपने शक्तिशाली धनुष और कुशल भुजाओं से युद्ध जीता।
 वह याकूब के शक्तिशाली परमेश्वर चरवाहे, इस्राएल की चट्टान से शक्ति पाता है।
25 और अपने पिता के परमेश्वर से शक्ति पाता है।

 “परमेश्वर तुम को आशीर्वाद दे। सर्वशक्तिमान परमेश्वर तुम को आशीर्वाद दे।
 वह तुम्हें ऊपर आकाश से आशीर्वाद दे और नीचे गहरे समुद्र से आशीर्वाद दे।
 वह तुम्हें स्तनों और गर्भ का आशीर्वाद दे।”
26 मेरे माता—पिता को बहुत सी अच्छी चीजें होती रही
 और तुम्हारे पिता से मुझको और अधिक आशीर्वाद मिला।
 तुम्हारे भाईयों ने तुमको बेचना चाहा।
 किन्तु अब तुम्हें एक ऊँचे पर्वत के समान,
 मेरे सारे आशीर्वाद का ढेर मिलेगा।

बिन्यामीन

27 “बिन्यामीन एक ऐसे भूखे भेड़िये के समान है
 जो सबेरे मारता है और उसे खाता है।
 शाम को यह बचे खुचे से काम चलाता है।”

28 ये इस्राएल के बारह परिवार हैं और वही जीज़ें हैं जिन्हें उनके पिता ने उनसे कहा था। उसने हर एक पुत्र को वह आशीर्वाद दिया जो उसके लिए ठीक था। 29 तब इस्राएल ने उनको एक आदेश दिया। उसने कहा, “जब मैं मरूँ तो मैं अपने लोगों के बीच रहना चाहता हूँ। मैं अपने पूर्वजों के साथ हित्ती एप्रोन के खेतों की गुफा में दफनाया जाना चाहता हूँ। 30 वह गुफा मम्रे के निकट मकपेला के खेत में है। वह कनान देश में है। इब्राहीम ने उस खेत को एप्रोम से इसलिए खरीदा था जिससे उसके पास एक कब्रिस्तान हो सके। 31 इब्राहीम और उसकी पत्नी सारा उसी गुफा में दफनाए गए हैं। इसहाक और उसकी पत्नी रिबका उसी गुफा में दफनाए गए। मैंने अपनी पत्नी लिआ को उसी गुफा में दफनाया।” 32 वह गुफा उस खेत में है जिसे हित्ती लोगों से खरीदा गया था। 33 अपने पुत्रों से बातें समाप्त करने के बाद याकूब लेट गया, पैरों को अपने बिछौने पर रखा और मर गया।

याकूब का अन्तिम संस्कार

50जब इस्राएल मरा, यूसुफ बहुत दुःखी हुआ। वह पिता के गले लिपट गया, उस पर रोया और उसे चूमा। 2 यूसुफ ने अपने सेवकों को आदेश दिया कि वे उसके पिता के शरीर को तैयार करें (ये सेवक वैद्य थे।) वैद्यों ने याकूब के शरीर को दफनाने के लिए तैयार किया। उन्होंने मिस्री लोगों के विशेष तरीके से शरीर को तैयार किया। 3 जब मिस्री लोगों ने विशेष तरह से शव तैयार किया तब उसने दफनाने के पहले चालीस दिन तक प्रतिज्ञा की। उसके बाद मिस्रियों ने याकूब के लिए शोक का विशेष समय रखा। यह समय सत्तर दिन का था।

4 सत्तर दिन बाद शोक का समय समाप्त हुआ। इसलिए यूसुफ ने फ़िरौन के अधिकारियों से कहा, “कृपया फ़िरौन से यह कहो, 5 ‘जब मेरे पिता मर रहे थे तब मैंने उनसे एक प्रतिज्ञा की थी। मैंने प्रतिज्ञा की थी कि मैं उन्हें कनान देश की गुफा में दफनाऊँगा। यह वह गुफा है जिसे उन्होंने अपने लिए बनाई है। इसलिए कृपा करके मुझे जाने दें और वहाँ पिता को दफनाने दें। तब मैं आपके पास वापस यहाँ लौट आऊँगा।’”

6 फ़िरौन ने कहा, “अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो। जाओ और अपने पिता को दफनाओ।”

7 इसलिए यूसुफ अपने पिता को दफनाने गया। फ़िरौन के सभी अधिकारी यूसुफ के साथ गए। फ़िरौन के बड़े लोग (नेता) और मिस्र के बड़े लोग यूसुफ के साथ गए। 8 यूसुफ और उसके भाईयों के परिवार के सभी व्यक्ति उसके साथ गए और उसके पिता के परिवार के सभी लोग भी यूसुफ के साथ गए। केवल बच्चे और जानवर गोशेन प्रदेश में रह गए। 9 यूसुफ के साथ जाने के लिए लोग रथों और घोड़ो पर सवार हुए। यह बहुत बढ़ा जनसमूह था।

10 ये गोरन आताद को गए। जो यरदन नदी के पूर्व में था। इस स्थान पर इन्होंने इस्राएल का अन्तिम संस्कार किया। वे अन्तिम संस्कार सात दिन तक होता रहा। 11 कनान के निवासियों ने गोरन आताद में अन्तिम संस्कार को देखा। उन्होंने कहा, “वे मिस्री सचमुच बहुत शोक भरा संस्कार कर रहे है।” इसलिए उस जगह का नाम अब आबेल मिस्रैम हैं।

12 इस प्रकार याकूब के पुत्रों ने वही किया जो उनके पिता ने आदेश दिया था। 13 वे उसके शव को कनान ले गए और मकपेला की गुफा में उसे दफनाया। यह गुफा मम्रे के निकट उस खेत में थी जिसे इब्राहीम ने हित्ती एप्रोन से खरीदा था। 14 यूसुफ ने जब अपने पिता को दफना दिया तो वह और उसके साथ समूह का हर एक व्यक्ति मिस्र को लौट गया।

भाई यूसुफ से डरे

15 याकूब के मरने के बाद यूसुफ के भाई चितिंत हुए। वे डर रहे थे कि उन्होंने जो कुछ पहले किया था उसके लिए यूसुफ अब भी उनसे क्रोध में पागल होगा। उन्होंने कहा, “क्या जो कुछ हम ने किया उसके लिए यूसुफ अब भी हम से घृणा करता है?” 16 इसलिए भाईयों ने वह सन्देश यूसुफ को भेजा: “तुम्हारे पिता ने मरने के पहले हम लोगों को आदेश दिया था। 17 उसने कहा, ‘युसुफ से कहना कि मैं निवेदन करता हूँ कि कृपा कर वह उस अपराध को क्षमा कर दे जो उन्होंने उसके साथ किया।’ इसलिए अब हम तुमसे प्रार्थना करते हैं कि उस अपराध को क्षमा कर दो जो हम ने किया। हम लोग केवल तुम्हारे पिता के परमेश्वर के सेवक हैं।”

यूसुफ के भाईयों ने जो कुछ कहा उससे उसे बड़ा दुःख हुआ और वह रो पड़ा। 18 यूसुफ के भाई उसके सामने गए और उसके सामने झुककर प्रणाम किया। उन्होंने कहा, “हम लोग तुम्हारे सेवक होंगे।”

19 तब यूसुफ ने उनसे कहा, “डरो नहीं मैं परमेश्वर नहीं हूँ। 20 तुम लोगों ने मेरे साथ जो कुछ बुरा करने की योजना बनाई थी। किन्तु परमेश्वर सचमुच अच्छी योजना बना रहा था। परमेश्वर की योजना बहुत से लोगों का जीवन बचाने के लिए मेरा उपयोग करने की थी और आज भी उसकी यही योजना है। 21 इसलिए डरो नहीं। मैं तुम लोगों और तुम्हारे बच्चों की देखभाल करूँगा।” इस प्रकार यूसुफ ने उन्हें सान्त्वना दी और उनसे कोमलता से बातें कीं।

22 यूसुफ अपने पिता के परिवार के साथ मिस्र में रहता रहा। यूसुफ एक सौ दस वर्ष का होकर मरा। 23 यूसुफ के जीवन काल में एप्रैम के पुत्र और पौत्र हुए और उसके पुत्र मनश्शे का एक पुत्र माकीर नाम का हुआ। यूसुफ माकीर के बच्चों को देखने के लिए जीवित रहा।

यूसुफ की मृत्यु

24 जब यूसुफ मरने को हुआ, उसने अपने भाईयों से कहा, “मेरे मरने का समय आ गया। किन्तु मैं जानता हूँ कि परमेश्वर तुम लोगों की रक्षा करेगा। वह इस देश से तुम लोगों को बाहर ले जाएगा। परमेश्वर तुम लोगों को उस देश में ले जाएगा जिसे उसने इब्राहीम, इसहाक और याकूब को देने का वचन दिया था।”

25 तब यूसुफ ने अपने लोगों से एक प्रतिज्ञा करने को कहा। यूसुफ ने कहा, “मुझ से प्रतिज्ञा करो कि तब मेरी अस्थियों अपने साथ ले जाओगे जब परमेश्वर तुम लोगों को नए देश में ले जाएगा।”

26 यूसुफ मिस्र में मरा, जब वह एक सौ दस वर्ष का था। वैद्यों ने उसके शव को दफनाने के लिए तैयार किया और मिस्र में उसके शव को एक डिब्बे में रखा।

समीक्षा

परमेश्वर कष्टों का उपयोग अपने अच्छे उद्देश्यों के लिए करते हैं

चाहें लोग – या शैतान – आपके विरूद्ध कितना भी बुरा करना चाहे, परमेश्वर इसका उपयोग खुद के भले उद्देश्यों के लिए करने में सक्षम हैं: आपकी भलाई और दूसरों के फायदे के लिए जो कि आपके जीवन और आपकी सेविकाई के द्वारा आशीषित होंगे।

जब याकूब अपने जीवन के अंतिम समय में आया, तो उसने अपने बेटों को आशीष दी। उसने यहूदा को विजय, समृद्धि और अगुआई के लिए आशीष दी। यहूदा इस्राएल की दक्षिणी जाति का सबसे ताकतवर व्यक्ति बना और सारा राष्ट्र दाऊद के हाथों में सौंपा गया।

यहाँ हम यीशु का पूर्वाभास देखते हैं: ‘तब तक न तो यहूदा से राजदण्ड छूटेगा, न उसके वंश से व्यवस्था देने वाला अलग होगा;’ (49:10)। बाद में हम पढ़ेंगे कि, ‘याकूब में से एक तारा उदय होगा, और इस्त्राएल में से एक राज दण्ड उठेगा; ’ (गिनतियों 24:17)। याकूब सिंह की छवियों का उपयोग करता है (उत्पत्ति 49:9)। यीशु का वर्णन इस तरह से किया गया है : ‘ देख यहूदा के गोत्र का वह सिंह, जो दाऊद का मूल है’ (प्रकाशितवाक्य 5:5)।

आगे याकूब, यूसुफ को आशीष देते हैं ‘तू फलवन्त लता की एक शाखा है’ (उत्पत्ति 49:22)। उसे परेशानियों और हमलों का सामना करना पड़ा: ‘धनुर्धारियों ने उसको खेदित किया, और उस पर तीर मारे, और उसके पीछे पड़े हैं’ (पद - 23)। लेकिन परमेश्वर इन सबका उपयोग भलाई के लिए करते हैं। यूसुफ सफल था क्योंकि परमेश्वर का हाथ उस पर था और बुराई को भलाई में बदल दिया था (50:20)।

जब याकूब की मृत्यु हो गई, तो यूसुफ के भाई चिंतित हुए कि उन्होंने उसके साथ जो गलत काम किये थे उन सभी गलत बातों का बदला यूसुफ उनसे लेगा (पद - 15)। लेकिन यूसुफ ने उनसे कहा, ‘डरो मत, क्या मैं परमेश्वर की जगह पर हूँ? यद्पि तुम लोगों ने मेरे लिये बुराई का विचार किया था; परन्तु परमेश्वर ने उसी बात में भलाई का विचार किया, जिस से वह ऐसा करे, जैसा आज के दिन प्रगट है, कि बहुत से लोगों के प्राण बचे हैं। सो अब मत डरो: मैं तुम्हारा और तुम्हारे बाल-बच्चों का पालन पोषण करता रहूंगा।” इस प्रकार उसने उन को समझा बुझाकर शान्ति दी (पद - 19-21)।

आर.टी. केन्डाल लिखते हैं, ‘यूसुफ के लिए, तुरंत सहायता पहुँचाई जा सकती थी; लेकिन इससे परमेश्वर के राज्य को कोई फायदा नहीं होता। जब किसी तरह से हमारे साथ बुरा व्यवहार किया जाता है, तो हमें जान लेना चाहिये कि हमारी तकलीफों का परमेश्वर के राज्य पर प्रचंड और व्यापक प्रभाव पड़ेगा। लगातार कष्ट के पीछे कोई कारण नज़र नहीं आता। यदि आप अपमान या गलत व्यवहार को गरिमा के साथ अपनाए तो कौन जानता है कि परमेश्वर आपके जीवन के साथ क्या करेंगे? ’

आपके साथ जो भी होता है – अच्छा या बुरा - उसमें परमेश्वर का हाथ देखें। यह समझ लें कि बुराई में से भलाई लाने के लिए यह सब परमेश्वर की योजना का हिस्सा है (जैसा कि उन्होंने क्रूस पर यीशु की मृत्यु के द्वारा किया था)।

नये नियम में परमेश्वर का वायदा है कि वह सारी चीज़ों का उपयोग भलाई को ही उत्पन्न करने के लिए करेंगे। जब आप लालसा, परीक्षा, संघर्ष और परेशानी का सामना करें, तो नया नियम आपको आश्वासन देता है कि ‘जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं, और उनके उद्देश्यों के अनुसार बुलाए गए हैं, उनके लिए सारी चीज़ें मिलकर भलाई को ही उत्पन्न करती है ’ (रोमियों 8:28)।

प्रार्थना

प्रभु, जिन्होंने मुझे नुकसान पहुँचाया है उन्हें पूरी तरह से क्षमा करने में मेरी मदद कीजिये। मेरे साथ जो भी होता है – चाहें भलाई या बुराई - उन सभी चीज़ों में आपका हाथ देखने में मेरी मदद कीजिये। आपको धन्यवाद कि जो आपसे प्रेम करते हैं उनके लिए सारी बातें मिलकर भलाई को ही उत्पन्न करती हैं।

पिप्पा भी कहते है

मत्ती 17:20

‘….. राई के दाने के समान विश्वास’।

यह ज़्यादा प्रभावी नहीं लगता। यह संभव होना चाहिये। मेरी प्रार्थना की सूची में अब भी कुछ बड़े पहाड़ हैं जिन्हें लगता नहीं कि वे हिलेंगे। लेकिन बड़ी चीज़ों के लिए भी प्रार्थना करते रहना ही एक प्रोत्साहन है।

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संदर्भ

नोट्स:

आर.टी. केन्डाल, परमेश्वर का इरादा भलाई करना था, (पेटरनोस्टर प्रेस, 2003) पन्ना 62

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