कैसे सही रास्ते पर बने रहें
परिचय
पिपा और मुझे टहलने जाना बहुत पसंद है। कुछ समय पहले हम साउथ डाउन्स में काफ़ी लंबी सैर पर गए थे। हम दोनों की दिशा पहचानने की क्षमता ज़्यादा अच्छी नहीं है और हम नक्शा लाना भी भूल गए थे। किसी तरह हम रास्ते से भटक गए और अंत में एक किसान के खेत में पहुँच गए।
साल के सबसे छोटे दिनों में से एक दिन था और धीरे-धीरे अंधेरा छाने लगा। हमें लगा कि जहाँ हमने अपनी कार खड़ी की थी वहाँ वापस पहुँचने का एकमात्र तरीका यह था कि हमें उस खेत को पार करना होगा जिसमें गायों का बड़ा झुंड था। जैसे ही हम उनके पास पहुँचे, कुछ गायें हमारे चारों ओर बहुत “दोस्ताना” अंदाज़ में खड़ी हो गईं और हमारा रास्ता रोक लिया, जबकि कुछ डर के मारे इधर-उधर भागने लगीं और पूरे खेत में दौड़ मचाने लगीं।
हमें डर था कि कहीं ये घबराई हुई गायें हमें रौंद न दें, इसलिए हमने जल्दी से एक बहुत खड़ी और फिसलन भरी ढलान पर चढ़कर वहाँ से निकलने का फ़ैसला किया। पिपा तो पहले ही जितना चलना चाहती थी उससे ज़्यादा चल चुकी थी, अंधेरा घिर रहा था और हमें कोई रास्ता भी दिखाई नहीं दे रहा था। हालात अच्छे नहीं लग रहे थे।
शुक्र है, हमें एक पगडंडी मिल गई जो हमें वापस ले आई। हमें बहुत राहत मिली। हमने तय किया कि अगली बार सैर पर जाते समय ज़रूर नक्शा साथ ले जाएँगे और रास्ते पर ही बने रहेंगे। रास्ते पर बने रहने से इंसान को चैन मिलता है, आपस में बातें करना आसान होता है और हमारे रिश्ते के लिए भी यह बेहतर है।
बाइबल में अक्सर “परमेश्वर के रास्तों” की तस्वीर दी जाती है—ऐसे रास्ते जो जीवन की ओर ले जाते हैं।
भजन संहिता 17:1-5
दाऊद का प्रार्थना गीत।
17हे यहोवा, मेरी प्रार्थना न्याय के निमित्त सुन।
मैं तुझे ऊँचे स्वर से पुकार रहा हूँ।
मैं अपनी बात ईमानदारी से कह रहा हूँ।
सो कृपा करके मेरी प्रार्थना सुन।
2 यहोवा तू ही मेरा उचित न्याय करेगा।
तू ही सत्य को देख सकता है।
3 मेरा मन परखने को तूने उसके बीच
गहरा झाँक लिया है।
तू मेरे संग रात भर रहा, तूने मुझे जाँचा, और तुझे मुझ में कोई खोट न मिला।
मैंने कोई बुरी योजना नहीं रची थी।
4 तेरे आदेशों को पालने में मैंने कठिन यत्न किया
जितना कि कोई मनुष्य कर सकता है।
5 मैं तेरी राहों पर चलता रहा हूँ।
मेरे पाँव तेरे जीवन की रीति से नहीं डिगे।
समीक्षा
परमेश्वर के रास्तों पर बने रहने का निश्चय करें
दाऊद कहता है, ‘मेरे पाँव तेरे मार्गों पर दृढ़ता से टिके रहे हैं [उसके निशानों पर जो मुझसे पहले चला है]’ (पद 5a,)। इब्रानी भाषा में “मार्ग” का अर्थ सचमुच ‘पहियों के निशान’ होता है। दाऊद पूरी तरह से ठान चुका था कि वह परमेश्वर के रास्तों पर ही बना रहेगा। परमेश्वर के रास्तों पर बने रहने के लिए तुम्हें इन तीन बातों पर ध्यान रखना ज़रूरी है:
- अपना हृदय (तुम क्या सोचते हो)
‘चाहे तू मेरा हृदय जाँच ले, चाहे तू मुझे रात को परखे और आज़माए—तू पाएगा कि मैंने कोई बुराई की योजना नहीं बनाई है।’ (पद 3a)
- अपने वचन (तुम क्या बोलते हो)
‘मैंने यह ठाना है कि मेरी ज़ुबान से पाप न निकले।’ (पद 3c)
- अपने पाँव (तुम कहाँ जाते हो)
‘मेरे पाँव फिसले नहीं।’ (पद 5b)
प्रार्थना
हे प्रभु, मुझे तेरे मार्गों पर बने रहने में सहायता कर। मेरे पाँव फिसलें नहीं। दिन और रात मेरे विचारों की रक्षा करने में मेरी मदद कर। जो कुछ मैं कहूँ या करूँ, उसमें तुझसे पाप न हो, इसकी मुझे सहायता दे।
मत्ती 19:1-15
तलाक
19ये बातें कहने के बाद वह गलील से लौट कर यहूदिया के क्षेत्र में यर्दन नदी के पार चला गया। 2 एक बड़ी भीड़ वहाँ उसके पीछे हो ली, जिसे उसने चंगा किया।
3 उसे परखने के जतन में कुछ फ़रीसी उसके पास पहुँचे और बोले, “क्या यह उचित है कि कोई अपनी पत्नी को किसी भी कारण से तलाक दे सकता है?”
4 उत्तर देते हुए यीशु ने कहा, “क्या तुमने शास्त्र में नहीं पढ़ा कि जगत को रचने वाले ने प्रारम्भ में, ‘उन्हें एक स्त्री और एक पुरुष के रूप में रचा था?’ 5 और कहा था ‘इसी कारण अपने माता-पिता को छोड़ कर पुरुष अपनी पत्नी के साथ दो होते हुए भी एक शरीर होकर रहेगा।’ 6 सो वे दो नहीं रहते बल्कि एक रूप हो जाते हैं। इसलिए जिसे परमेश्वर ने जोड़ा है उसे किसी भी मनुष्य को अलग नहीं करना चाहिये।”
7 वे बोले, “फिर मूसा ने यह क्यों निर्धारित किया है कि कोई पुरुष अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है। शर्त यह है कि वह उसे तलाक नामा लिख कर दे।”
8 यीशु ने उनसे कहा, “मूसा ने यह विधान तुम लोगों के मन की जड़ता के कारण दिया था। किन्तु प्रारम्भ में ऐसी रीति नहीं थी। 9 तो मैं तुमसे कहता हूँ कि जो व्यभिचार को छोड़कर अपनी पत्नी को किसी और कारण से त्यागता है और किसी दूसरी स्त्री की ब्याहता है तो वह व्यभिचार करता है।”
10 इस पर उसके शिष्यों ने उससे कहा, “यदि एक स्त्री और एक पुरुष के बीच ऐसी स्थिति है तो किसी को ब्याह ही नहीं करना चाहिये।”
11 फिर यीशु ने उनसे कहा, “हर कोई तो इस उपदेश को ग्रहण नहीं कर सकता। इसे बस वे ही ग्रहण कर सकते हैं जिनको इसकी क्षमता प्रदान की गयी है। 12 कुछ ऐसे हैं जो अपनी माँ के गर्भ से ही नपुंसक पैदा हुए हैं। और कुछ ऐसे हैं जो लोगों द्वारा नपुंसक बना दिये गये हैं। और अंत में कुछ ऐसे हैं जिन्होंने स्वर्ग के राज्य के कारण विवाह नहीं करने का निश्चय किया है। जो इस उपदेश को ले सकता है ले।”
यीशु की आशीष: बच्चों को
13 फिर लोग कुछ बालकों को यीशु के पास लाये कि वह उनके सिर पर हाथ रख कर उन्हें आशीर्वाद दे और उनके लिए प्रार्थना करे। किन्तु उसके शिष्यों ने उन्हें डाँटा। 14 इस पर यीशु ने कहा, “बच्चों को रहने दो, उन्हें मत रोको, मेरे पास आने दो क्योंकि स्वर्ग का राज्य ऐसों का ही है।” 15 फिर उसने बच्चों के सिर पर अपना हाथ रखा और वहाँ से चल दिया।
समीक्षा
अपने रिश्तों में परमेश्वर के रास्तों पर बने रहें
यीशु की शिक्षा रिश्तों पर बहुत महत्वपूर्ण है—आपकी अपनी ज़िंदगी और पूरे समाज के लिए। इस खंड में यीशु परिवारिक जीवन के लिए परमेश्वर के रास्ते बताते हैं।
- विवाह का महत्व
फरीसी यीशु से तलाक के बारे में पूछते हैं, लेकिन यीशु उसका उत्तर विवाह के बारे में देकर देते हैं। वह सृष्टि के वर्णन पर लौटते हैं। यीशु उत्पत्ति 2:24 का उल्लेख करते हैं: ‘इस कारण मनुष्य अपने पिता और माता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा, और वे दोनों एक तन होंगे’ (मत्ती 19:5)। यह पद विवाह के लिए एक आधारभूत पद है—पुराने नियम में भी, पौलुस (इफिसियों 5:31) के द्वारा भी, और स्वयं यीशु के द्वारा भी।
विवाह का अर्थ है सार्वजनिक रूप से एक जीवनभर की प्रतिज्ञा करना, जिसमें साथी को माता-पिता से भी ऊपर प्राथमिकता दी जाती है। इसमें ‘जुड़ जाना’ शामिल है—जिसका इब्रानी अर्थ सचमुच है ‘चिपक जाना’। यह केवल शारीरिक या जैविक नहीं, बल्कि भावनात्मक, मानसिक, सामाजिक और आत्मिक एकता है। यही है मसीही दृष्टिकोण में “एक तन” का अर्थ। बाइबल में विवाह की शिक्षा सबसे उत्साहजनक और सकारात्मक है। यह सबसे रोमांटिक दृष्टिकोण भी है और परमेश्वर की उत्तम योजना को हमारे सामने रखती है।
- तलाक की अनुमति
फरीसी यीशु से बार-बार तलाक के बारे में पूछते हैं। वे मूसा की आज्ञा का उल्लेख करते हैं (मत्ती 19:7)। यीशु उत्तर देते हैं कि मूसा ने इसे इसलिए अनुमति दी ‘क्योंकि तुम्हारे हृदय कठोर थे’ (पद 8)। यीशु उन पुरुषों का सामना करते हैं जो कानून के प्रावधान का उपयोग करके अपनी पत्नियों को छोड़ देते थे (पद 9)।
मूसा द्वारा तलाक की अनुमति हमें परमेश्वर की कृपा और करुणा की याद दिलाती है, जब हम उसकी आदर्श योजना से कमतर पड़ते हैं। लेकिन यीशु स्पष्ट रूप से कहते हैं कि तलाक कभी आदर्श नहीं है।
जिन लोगों ने टूटे विवाह का दर्द अनुभव किया है, वे अय्यूब के दुखभरे वर्णन से खुद को जोड़ सकते हैं। इसलिए हमें विवाहों की रक्षा करनी चाहिए—अपने और दूसरों के। और हमें तलाकशुदा लोगों को दोषी ठहराने के बजाय उन्हें सांत्वना देनी चाहिए।
- अविवाहित रहने का बुलावा
यीशु तीन प्रकार की अविवाहित अवस्था के बारे में बताते हैं: कुछ लोग जन्म से ऐसे होते हैं (पद 12a) – वे विवाह के बारे में सोचते ही नहीं। कुछ लोग अनचाहे अविवाहित रहते हैं (पद 12b) – जिन्हें कोई प्रस्ताव नहीं मिलता या स्वीकार नहीं किया जाता। कुछ लोग स्वेच्छा से अविवाहित रहते हैं (पद 12c) – जो परमेश्वर के राज्य के कारण विवाह न करने का निश्चय करते हैं। अविवाहित जीवन अस्थायी भी हो सकता है और स्थायी भी, लेकिन नए नियम में इसे कभी “दूसरे दर्जे” का जीवन नहीं माना गया। विवाह और अविवाहित जीवन—दोनों ही परमेश्वर की बुलाहट हैं। दोनों के अपने फायदे और चुनौतियाँ हैं।
- बच्चों की प्राथमिकता
यीशु की शिक्षा ने उनके समय के लोगों के बच्चों के प्रति दृष्टिकोण को चुनौती दी। प्राचीन समाजों में बच्चों को अक्सर समाज के किनारे रखा जाता था—जैसे कि पुरानी अंग्रेज़ी कहावत थी:
“देखो पर सुनो मत”। परमेश्वर के रास्ते इससे अलग हैं। यीशु ने छोटे बच्चों पर हाथ रखकर उनके लिए प्रार्थना की (पद 13a)। जब चेलों ने सोचा कि यीशु को बच्चों से परेशान नहीं होना चाहिए, तो यीशु ने कहा: ‘बच्चों को मेरे पास आने दो और उन्हें मत रोको, क्योंकि स्वर्ग का राज्य ऐसे ही लोगों का है।’ (पद 14)। यीशु ने दिखाया कि बच्चों को हमारे जीवन में बहुत ऊँची प्राथमिकता मिलनी चाहिए।
माता-पिता के रूप में बच्चों को प्राथमिकता देना ज़रूरी है—उन्हें बोझ या रुकावट न समझें। कलीसिया के रूप में भी हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे बच्चों और युवाओं को संसाधनों और सुविधाओं में प्राथमिकता मिले, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उतना ही उनका है जितना हमारा। वे केवल कलीसिया का भविष्य नहीं हैं—वे अभी कलीसिया हैं।
प्रार्थना
हे प्रभु, हमारी व्यक्तिगत ज़िंदगी में और समाज के रूप में भी, हमें तेरे परिवारिक जीवन के मार्गों से भटकने न दे। मैं प्रार्थना करता हूँ कि जो लोग परिवारिक जीवन को मज़बूत बनाने के लिए काम कर रहे हैं, उन सब पर तू अपनी आशीष दे।
अय्यूब 4:1-7:21
एलीपज का कथन
4फिर तेमान के एलीपज ने उत्तर दिया:
2 “यदि कोई व्यक्ति तुझसे कुछ कहना चाहे तो
क्या उससे तू बेचैन होगा? मुझे कहना ही होगा!
3 हे अय्यूब, तूने बहुत से लोगों को शिक्षा दी
और दुर्बल हाथों को तूने शक्ति दी।
4 जो लोग लड़खड़ा रहे थे तेरे शब्दों ने उन्हें ढाढ़स बंधाया था।
तूने निर्बल पैरों को अपने प्रोत्साहन से सबल किया।
5 किन्तु अब तुझ पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा है
और तेरा साहस टूट गया है।
विपदा की मार तुझ पर पड़ी
और तू व्याकुल हो उठा।
6 तू परमेश्वर की उपासना करता है,
सो उस पर भरोसा रख।
तू एक भला व्यक्ति है
सो इसी को तू अपनी आशा बना ले।
7 अय्यूब, इस बात को ध्यान में रख कि कोई भी सज्जन कभी नहीं नष्ट किये गये।
निर्दोष कभी भी नष्ट नहीं किया गया है।
8 मैंने ऐसे लोगों को देखा है जो कष्टों को बढ़ाते हैं और जो जीवन को कठिन करते हैं।
किन्तु वे सदा ही दण्ड भोगते हैं।
9 परमेश्वर का दण्ड उन लोगों को मार डालता है
और उसका क्रोध उन्हें नष्ट करता है।
10 दुर्जन सिंह की तरह गुरर्ते और दहाड़ते हैं,
किन्तु परमेश्वर उन दुर्जनों को चुप कराता है।
परमेश्वर उनके दाँत तोड़ देता है।
11 बुरे लोग उन सिंहों के समान होते हैं जिन के पास शिकार के लिये कुछ भी नहीं होता।
वे मर जाते हैं और उनके बच्चे इधर—उधर बिखर जाते है, और वे मिट जाते हैं।
12 “मेरे पास एक सन्देश चुपचाप पहुँचाया गया,
और मेरे कानों में उसकी भनक पड़ी।
13 जिस तरह रात का बुरा स्वप्न नींद उड़ा देता हैं,
ठीक उसी प्रकार मेरे साथ में हुआ है।
14 मैं भयभीत हुआ और काँपने लगा।
मेरी सब हड्डियाँ हिल गई।
15 मेरे सामने से एक आत्मा जैसी गुजरी
जिससे मेरे शरीर में रोंगटे खड़े हो गये।
16 वह आत्मा चुपचाप ठहर गया
किन्तु मैं नहीं जान सका कि वह क्या था।
मेरी आँखों के सामने एक आकृति खड़ी थी,
और वहाँ सन्नाटा सा छाया था।
फिर मैंने एक बहुत ही शान्त ध्वनि सुनी।
17 “मनुष्य परमेश्वर से अधिक उचित नहीं हो सकता।
अपने रचयिता से मनुष्य अधिक पवित्र नहीं हो सकता।
18 परमेश्वर अपने स्वर्गीय सेवकों तक पर भरोसा नहीं कर सकता।
परमेश्वर को अपने दूतों तक में दोष मिल जातें हैं।
19 सो मनुष्य तो और भी अधिक गया गुजरा है।
मनुष्य तो कच्चे मिट्टी के घरौंदों में रहते हैं।
इन मिट्टी के घरौंदों की नींव धूल में रखी गई हैं।
इन लोगों को उससे भी अधिक आसानी से मसल कर मार दिया जाता है,
जिस तरह भुनगों को मसल कर मारा जाता है।
20 लोग भोर से सांझ के बीच में मर जाते हैं किन्तु उन पर ध्यान तक कोई नहीं देता है।
वे मर जाते हैं और सदा के लिये चले जाते हैं।
21 उनके तम्बूओं की रस्सियाँ उखाड़ दी जाती हैं,
और ये लोग विवेक के बिना मर जाते हैं।”
5“अय्यूब, यदि तू चाहे तो पुकार कर देख ले किन्तु तुझे कोई भी उत्तर नहीं देगा।
तू किसी भी स्वर्गदूत की ओर मुड़ नहीं सकता है।
2 मूर्ख का क्रोध उसी को नष्ट कर देगा।
मूर्ख की तीव्र भावनायें उसी को नष्ट कर डालेंगी।
3 मैंने एक मूर्ख को देखा जो सोचता था कि वह सुरक्षित है।
किन्तु वह एकाएक मर गया।
4 ऐसे मूर्ख व्यक्ति की सन्तानों की कोई भी सहायता न कर सका।
न्यायालय में उनको बचाने वाला कोई न था।
5 उसकी फसल को भूखे लोग खा गये, यहाँ तक कि वे भूखे लोग काँटों की झाड़ियों के बीच उगे अन्न कण को भी उठा ले गये।
जो कुछ भी उसके पास था उसे लालची लोग उठा ले गये।
6 बुरा समय मिट्टी से नहीं निकलता है,
न ही विपदा मैदानों में उगती है।
7 मनुष्य का जन्म दु:ख भोगने के लिये हुआ है।
यह उतना ही सत्य है जितना सत्य है कि आग से चिंगारी ऊपर उठती है।
8 किन्तु अय्यूब, यदि तुम्हारी जगह मैं होता
तो मैं परमेश्वर के पास जाकर अपना दुखड़ा कह डालता।
9 लोग उन अद्भुत भरी बातों को जिन्हें परमेश्वर करता है, नहीं समझते हैं।
ऐसे उन अद्भुत कर्मो का जिसे परमेश्वर करता है, कोई अन्त नहीं है।
10 परमेश्वर धरती पर वर्षा को भेजता है,
और वही खेतों में पानी पहुँचाया करता है।
11 परमेश्वर विनम्र लोगों को ऊपर उठाता है,
और दु:खी जन को अति प्रसन्न बनाता है।
12 परमेश्वर चालाक व दुष्ट लोगों के कुचक्र को रोक देता है।
इसलिये उनको सफलता नहीं मिला करती।
13 परमेश्वर चतुर को उसी की चतुराई भरी योजना में पकड़ता है।
इसलिए उनके चतुराई भरी योजनाएं सफल नहीं होती।
14 वे चालाक लोग दिन के प्रकाश में भी ठोकरें खाते फिरते हैं।
यहाँ तक कि दोपहर में भी वे रास्ते का अनुभव रात के जैसे करते हैं।
15 परमेश्वर दीन व्यक्ति को मृत्यु से बचाता है
और उन्हें शक्तिशाली चतुर लोगों की शक्ति से बचाता है।
16 इसलिए दीन व्यक्ति को भरोसा है।
परमेश्वर बुरे लोगों को नष्ट करेगा जो खरे नहीं हैं।
17 “वह मनुष्य भाग्यवान है, जिसका परमेश्वर सुधार करता है
इसलिए जब सर्वशक्तिशाली परमेश्वर तुम्हें दण्ड दे रहा तो तुम अपना दु:खड़ा मत रोओ।
18 परमेश्वर उन घावों पर पट्टी बान्धता है जिन्हें उसने दिया है।
वह चोट पहुँचाता है किन्तु उसके ही हाथ चंगा भी करते हैं।
19 वह तुझे छ: विपत्तियों से बचायेगा।
हाँ! सातों विपत्तियों में तुझे कोई हानि न होगी।
20 अकाल के समय परमेश्वर
तुझे मृत्यु से बचायेगा
और परमेश्वर युद्ध में
तेरी मृत्यु से रक्षा करेगा।
21 जब लोग अपने कठोर शब्दों से तेरे लिये बुरी बात बोलेंगे,
तब परमेश्वर तेरी रक्षा करेगा।
विनाश के समय
तुझे डरने की आवश्यकता नहीं होगी।
22 विनाश और भुखमरी पर तू हँसेगा
और तू जंगली जानवरों से कभी भयभीत न होगा।
23 तेरी वाचा परमेश्वर के साथ है यहाँ तक कि मैदानों की चट्टाने भी तेरा वाचा में भाग लेती है।
जंगली पशु भी तेरे साथ शान्ति रखते हैं।
24 तू शान्ति से रहेगा
क्योंकि तेरा तम्बू सुरक्षित है।
तू अपनी सम्पत्ति को सम्भालेगा
और उसमें से कुछ भी खोया हुआ नहीं पायेगा।
25 तेरी बहुत सन्तानें होंगी और वे इतनी होंगी
जितनी घास की पत्तियाँ पृथ्वी पर हैं।
26 तू उस पके गेहूँ जैसा होगा जो कटनी के समय तक पकता रहता है।
हाँ, तू पूरी वृद्ध आयु तक जीवित रहेगा।
27 “अय्यूब, हमने ये बातें पढ़ी हैं और हम जानते हैं कि ये सच्ची है।
अत: अय्यूब सुन और तू इन्हें स्वयं अपने आप जान।”
अय्यूब ने एलीपज को उत्तर देता है
6फिर अय्यूब ने उत्तर देते हुए कहा,
2 “यदि मेरी पीड़ा को तौला जा सके
और सभी वेदनाओं को तराजू में रख दिया जाये, तभी तुम मेरी व्यथा को समझ सकोगे।
3 मेरी व्यथा समुद्र की समूची रेत से भी अधिक भारी होंगी।
इसलिये मेरे शब्द मूर्खतापूर्ण लगते हैं।
4 सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बाण मुझ में बिधे हैं और
मेरा प्राण उन बाणों के विष को पिया करता है।
परमेश्वर के वे भयानक शस्त्र मेरे विरुद्ध एक साथ रखी हुई हैं।
5 तेरे शब्द कहने के लिये आसान हैं जब कुछ भी बुरा नहीं घटित हुआ है।
यहाँ तक कि बनैला गधा भी नहीं रेंकता यदि उसके पास घास खाने को रहे
और कोई भी गाय तब तक नहीं रम्भाती जब तक उस के पास चरने के लिये चारा है।
6 भोजन बिना नमक के बेस्वाद होता है
और अण्डे की सफेदी में स्वाद नहीं आता है।
7 इस भोजन को छूने से मैं इन्कार करता हूँ।
इस प्रकार का भोजन मुझे तंग कर डालता है।
मेरे लिये तुम्हारे शब्द ठीक उसी प्रकार के हैं।
8 “काश! मुझे वह मिल पाता जो मैंने माँगा है।
काश! परमेश्वर मुझे दे देता जिसकी मुझे कामना है।
9 काश! परमेश्वर मुझे कुचल डालता
और मुझे आगे बढ़ कर मार डालता।
10 यदि वह मुझे मारता है तो एक बात का चैन मुझे रहेगा,
अपनी अनन्त पीड़ा में भी मुझे एक बात की प्रसन्नता रहेगा कि मैंने कभी भी अपने पवित्र के आदेशों पर चलने से इन्कार नहीं किया।
11 “मेरी शक्ति क्षीण हो चुकी है अत: जीते रहने की आशा मुझे नहीं है।
मुझ को पता नहीं कि अंत में मेरे साथ क्या होगा इसलिये धीरज धरने का मेरे पास कोई कारण नहीं है।
12 मैं चट्टान की भाँति सुदृढ़ नहीं हूँ।
न ही मेरा शरीर काँसे से रचा गया है।
13 अब तो मुझमें इतनी भी शक्ति नहीं कि मैं स्वयं को बचा लूँ।
क्यों? क्योंकि मुझ से सफलता छीन ली गई है।
14 “क्योंकि वह जो अपने मित्रों के प्रति निष्ठा दिखाने से इन्कार करता है।
वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर का भी अपमान करता है।
15 किन्तु मेरे बन्धुओं, तुम विश्वासयोग्य नहीं रहे।
मैं तुम पर निर्भर नहीं रह सकता हूँ।
तुम ऐसी जलधाराओं के सामान हो जो कभी बहती है और कभी नहीं बहती है।
तुम ऐसी जलधाराओं के समान हो जो उफनती रहती है।
16 जब वे बर्फ से और पिघलते हुए हिम सा रूँध जाती है।
17 और जब मौसम गर्म और सूखा होता है
तब पानी बहना बन्द हो जाता है,
और जलधाराऐं सूख जाती हैं।
18 व्यापारियों के दल मरुभूमि में अपनी राहों से भटक जाते हैं
और वे लुप्त हो जाते हैं।
19 तेमा के व्यापारी दल जल को खोजते रहे
और शबा के यात्री आशा के साथ देखते रहे।
20 वे आश्वत थे कि उन्हें जल मिलेगा
किन्तु उन्हें निराशा मिली।
21 अब तुम उन जलधाराओं के समान हो।
तुम मेरी यातनाओं को देखते हो और भयभीत हो।
22 क्या मैंने तुमसे सहायता माँगी? नहीं।
किन्तु तुमने मुझे अपनी सम्मति स्वतंत्रता पूर्वक दी।
23 क्या मैंने तुमसे कहा कि शत्रुओं से मुझे बचा लो
और क्रूर व्यक्तियों से मेरी रक्षा करो।
24 “अत: अब मुझे शिक्षा दो और मैं शान्त हो जाऊँगा।
मुझे दिखा दो कि मैंने क्या बुरा किया है।
25 सच्चे शब्द सशक्त होते हैं
किन्तु तुम्हारे तर्क कुछ भी नहीं सिद्ध करते।
26 क्या तुम मेरी आलोचना करने की योजनाऐं बनाते हो?
क्या तुम इससे भी अधिक निराशापूर्ण शब्द बोलोगे ?
27 यहाँ तक कि तुम जुऐ में उन बच्चों की वस्तुओं को छीनना चाहते हो,
जिनके पिता नहीं हैं।
तुम तो अपने निज मित्र को भी बेच डालोगे।
28 किन्तु अब मेरे मुख को पढ़ो।
मैं तुमसे झूठ नहीं बोलूँगा।
29 अत:, अपने मन को अब परिवर्तित करो।
अन्यायी मत बनो, फिर से जरा सोचो कि मैंने कोई बुरा काम नहीं किया है।
30 मैं झूठ नहीं कह रहा हूँ। मुझको भले
और बुरे लोगों की पहचान है।”
7अय्यूब ने कहा,
“मनुष्य को धरती पर कठिन संघर्ष करना पड़ता है।
उसका जीवन भाड़े के श्रमिक के जीवन जैसा होता है।
2 मनुष्य उस भाड़े के श्रमिक जैसा है जो तपते हुए दिन में मेहनत करने के बाद शीतल छाया चाहता है
और मजदूरी मिलने के दिन की बाट जोहता रहता है।
3 महीने दर महीने बेचैनी के गुजर गये हैं
और पीड़ा भरी रात दर रात मुझे दे दी गई है।
4 जब मैं लेटता हूँ, मैं सोचा करता हूँ कि
अभी और कितनी देर है मेरे उठने का?
यह रात घसीटती चली जा रही है।
मैं छटपटाता और करवट बदलता हूँ, जब तक सूरज नहीं निकल आता।
5 मेरा शरीर कीड़ों और धूल से ढका हुआ है।
मेरी त्वचा चिटक गई है और इसमें रिसते हुए फोड़े भर गये हैं।
6 “मेरे दिन जुलाहे की फिरकी से भी अधिक तीव्र गति से बीत रहें हैं।
मेरे जीवन का अन्त बिना किसी आशा के हो रहा है।
7 हे परमेश्वर, याद रख, मेरा जीवन एक फूँक मात्र है।
अब मेरी आँखें कुछ भी अच्छा नहीं देखेंगी।
8 अभी तू मुझको देख रहा है किन्तु फिर तू मुझको नहीं देख पायेगा।
तू मुझको ढूँढेगा किन्तु तब तक मैं जा चुका होऊँगा।
9 एक बादल छुप जाता है और लुप्त हो जाता है।
इसी प्रकार एक व्यक्ति जो मर जाता है और कब्र में गाड़ दिया जाता है, वह फिर वापस नहीं आता है।
10 वह अपने पुराने घर को वापस कभी भी नहीं लौटेगा।
उसका घर उसको फिर कभी भी नहीं जानेगा।
11 “अत: मैं चुप नहीं रहूँगा। मैं सब कह डालूँगा।
मेरी आत्मा दु:खित है और मेरा मन कटुता से भरा है,
अत: मैं अपना दुखड़ा रोऊँगा।
12 हे परमेश्वर, तू मेरी रखवाली क्यों करता है?
क्या मैं समुद्र हूँ, अथवा समुद्र का कोई दैत्य?
13 जब मुझ को लगता है कि मेरी खाट मुझे शान्ति देगी
और मेरा पलंग मुझे विश्राम व चैन देगा।
14 हे परमेश्वर, तभी तू मुझे स्वप्न में डराता है,
और तू दर्शन से मुझे घबरा देता है।
15 इसलिए जीवित रहने से अच्छा
मुझे मर जाना ज्यादा पसन्द है।
16 मैं अपने जीवन से घृणा करता हूँ।
मेरी आशा टूट चुकी है।
मैं सदैव जीवित रहना नहीं चाहता।
मुझे अकेला छोड़ दे। मेरा जीवन व्यर्थ है।
17 हे परमेश्वर, मनुष्य तेरे लिये क्यों इतना महत्वपूर्ण है?
क्यों तुझे उसका आदर करना चाहिये? क्यों मनुष्य पर तुझे इतना ध्यान देना चाहिये?
18 हर प्रात: क्यों तू मनुष्य के पास आता है
और हर क्षण तू क्यों उसे परखा करता है?
19 हे परमेश्वर, तू मुझसे कभी भी दृष्टि नहीं फेरता है
और मुझे एक क्षण के लिये भी अकेला नहीं छोड़ता है।
20 हे परमेश्वर, तू लोगों पर दृष्टि रखता है।
यदि मैंने पाप किया, तब मैं क्या कर सकता हूँ
तूने मुझको क्यों निशाना बनाया है?
क्या मैं तेरे लिये कोई समस्या बना हूँ?
21 क्यों तू मेरी गलतियों को क्षमा नहीं करता और मेरे पापों को
क्यों तू माफ नहीं करता है?
मैं शीघ्र ही मर जाऊँगा और कब्र में चला जाऊँगा।
जब तू मुझे ढूँढेगा किन्तु तब तक मैं जा चुका होऊँगा।”
समीक्षा
दूसरों को परमेश्वर के मार्गों पर बने रहने में मदद करें
मैं अपने मित्रों के लिए बहुत आभारी हूँ जिन्होंने मुझे सही रास्ते पर बने रहने में मदद की है। परन्तु कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हमारे मित्र हमें गलत समझ सकते हैं या गलती कर सकते हैं। इस खंड में हम अय्यूब और एलीफ़ज़ का अंतर देखते हैं—अय्यूब ने दूसरों को परमेश्वर के मार्गों पर बने रहने में मदद की (अय्यूब 4:3–4), लेकिन एलीफ़ज़ अय्यूब के लिए ‘कोई मददगार’ नहीं था (6:21)।
कभी लोग पूछते हैं, “क्या बाइबल का हर शब्द सत्य है?” मेरा उत्तर होता है, “हाँ, लेकिन इसे हर किताब की तरह उसके संदर्भ में समझना ज़रूरी है।”
व्याख्या के नियमों में से एक यह है कि हमें बातों को उनके संदर्भ के अनुसार ही समझना चाहिए। उदाहरण के लिए, अंत में प्रभु एलीफ़ज़ से यह कहते हैं: “मैं तुझ पर और तेरे दो मित्रों पर क्रोधित हूँ, क्योंकि तू ने मेरे विषय में वैसा सत्य नहीं कहा जैसा मेरे दास अय्यूब ने कहा है।” (अय्यूब 42:7) इसलिए हम देखते हैं कि एलीफ़ज़ की कही हर बात सत्य नहीं थी। अय्यूब के मित्र दुख के प्रश्न का बहुत ही सतही और सरल उत्तर देते हैं। उनका विश्लेषण अक्सर भोला, धार्मिकता का दिखावा करने वाला और अव्यावहारिक था।
इसके विपरीत अय्यूब वास्तविक और ईमानदार था। वह अपने दर्द, नींद न आने वाली रातों, शोक और दुख से जूझ रहा था। उसका कष्ट उसके अपने पाप का परिणाम नहीं था, जैसा कि एलीफ़ज़ और उसके मित्र कहते हैं। अय्यूब सही ही पूछता है: “मुझे दिखा, मैंने कहाँ भूल की है?” (6:24)
परमेश्वर का आत्मा हमें हमेशा हमारे विशेष पापों के लिए दोषी ठहराता है, लेकिन अय्यूब के मित्र केवल यह कहते रहे: “तूने कुछ न कुछ गलत किया होगा तभी तो तू ऐसा दुख झेल रहा है।” लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि हर दुख हमारे अपने पाप के कारण ही हो। यदि ऐसा है तो परमेश्वर हमें विशेष रूप से बताएगा।
एलीफ़ज़ और उसके मित्रों की सलाह सच और झूठ का मिश्रण थी। इसलिए उनकी बातों को उसी तरह समझना ज़रूरी है। फिर भी, एक बात जो एलीफ़ज़ ने कही और शायद सच थी, वह यह है कि अय्यूब सचमुच एक ऐसा व्यक्ति था जिसने दूसरों को परमेश्वर के मार्गों पर बने रहने में मदद की: “सोच कि तूने कितनों को शिक्षा दी है, तूने निर्बलों के हाथों को बल दिया है। तेरे वचनों ने ठोकर खाने वालों को थामा है, और तूने काँपते घुटनों को मज़बूत किया है।” (4:3–4)
इसलिए तुम्हारा कार्य केवल खुद सही रास्ते पर बने रहना नहीं है, बल्कि अय्यूब की तरह अपने कार्यों और वचनों के द्वारा दूसरों को भी परमेश्वर के मार्गों पर बने रहने में मदद करना है।
प्रार्थना
हे प्रभु, मैं अपने सभी मित्रों के लिए धन्यवाद करता हूँ जो मुझे सही रास्ते पर बने रहने में मदद करते हैं। मुझे यह क्षमता दे कि मैं दुख झेल रहे लोगों को सच्ची सांत्वना दे सकूँ, ठोकर खाने वालों का समर्थन कर सकूँ और काँपते घुटनों वाले लोगों को मज़बूत कर सकूँ। हमें सभी को मदद करने की शक्ति दे ताकि हम एक-दूसरे को तेरे मार्गों पर बने रहने में सहायता कर सकें।
पिप्पा भी कहते है
भजन 17:1–5
भजनकार यह कहते हुए मुझे बहुत प्रभावित करता है: “… मेरा मुँह अपराध नहीं किया” (17:3c)। इसका अर्थ है अपने हर शब्द के प्रति सावधान रहना। जब हम ‘आराम की स्थिति’ में हों या ‘अलविदा’ हों, तब भी हमारे कहे हुए शब्दों का महत्व होता है।

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संदर्भ
नोट्स:
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है। कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।
