परमेश्वर के साथ सब कुछ सम्भव है।
परिचय
"जब जीवन आपको नींबू देता है, तो नींबू पानी बना लो," यह बात नॉर्मन विंसेंट पील ने लिखी थी, जिन्होंने अपनी सबसे प्रसिद्ध किताब द पॉवर ऑफ पॉज़िटिव थिंकिंग वर्ष 1952 में प्रकाशित की थी। यह किताब लगातार 186 हफ्तों तक न्यूयॉर्क टाइम्स की बेस्टसेलर सूची में रही। उनकी कही हुई बहुत-सी बातें सचमुच अच्छी और मददगार थीं। लेकिन, यीशु के वचन केवल पॉज़िटिव थिंकिंग (सकारात्मक सोच) से कहीं आगे जाते हैं।
नॉर्मन विंसेंट पील ने कहा, "एक सकारात्मक मानसिकता का मतलब है यह विश्वास करना कि सब कुछ अच्छा होगा और आप किसी भी तरह की परेशानी या कठिनाई पर विजय पा सकते हैं।" यीशु ने कहा, "परमेश्वर के साथ सब कुछ सम्भव है" (मत्ती 19:26)। यह केवल पॉज़िटिव थिंकिंग से कहीं अधिक है। यह परमेश्वर की शक्ति है, जो असम्भव लगने वाली चीज़ों को सम्भव कर देती है। परमेश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है (लूका 1:37)।
नीतिवचन 3:11-20
11 हे मेरे पुत्र, यहोवा के अनुशासन का तिरस्कार मत कर,
उसकी फटकार का बुरा कभी मत मान।
12 क्यों क्योंकि यहोवा केवल उन्हीं को डाँटता है जिनसे वह प्यार करता है।
वैसे ही जैसे पिता उस पुत्र को डाँटे जो उसको अति प्रिय है।
13 धन्य है वह मनुष्य, जो बुद्धि पाता है।
वह मनुष्य धन्य है जो समझ प्राप्त करें।
14 बुद्धि, मूल्यवान चाँदी से अधिक लाभदायक है,
और वह सोने से उत्तम प्रतिदान देती है!
15 बुद्धि मणि माणिक से अधिक मूल्यवान है।
उसकी तुलना कभी किसी उस वस्तु से नहीं हो सकती है जिसे तू चाह सके!
16 बुद्धि के दाहिने हाथ में सुदीर्घ जीवन है,
उसके बायें हाथ में सम्पत्ति और सम्मान है।
17 उसके मार्ग मनोहर हैं
और उसके सभी पथ शांति के रहते हैं।
18 बुद्धि उनके लिये जीवन वृक्ष है जो इसे अपनाते हैं,
वे सदा धन्य रहेंगे जो दृढ़ता से बुद्धि को थामे रहते हैं!
19 यहोवा ने धरती की नींव बुद्धि से धरी,
उसने समझ से आकाश को स्थिर किया।
20 उसके ही ज्ञान से गहरे सोते फूट पड़े और
बादल ओस कण बरसाते हैं।
समीक्षा
यीशु के माध्यम से सृष्टि की रचना हुई
यह सत्य कि ‘परमेश्वर के साथ सब कुछ सम्भव है’ इस बात से साबित होता है कि परमेश्वर ने पूरी सृष्टि को शून्य से बनाया: "यहोवा ने अपनी बुद्धि से पृथ्वी की नींव डाली, अपनी समझ से आकाश को स्थिर किया; अपनी ज्ञान से गहरे जल विभाजित किए और बादलों से ओस टपकाई" (नीतिवचन 3:19–20)।
नीतिवचन का लेखक बुद्धि को एक व्यक्ति के रूप में देखता है (पद 13–18)। नये नियम की दृष्टि से देखें तो वह व्यक्ति यीशु हैं। प्रेरित पौलुस कहते हैं कि "मसीह ही परमेश्वर की सामर्थ और परमेश्वर की बुद्धि हैं" (1 कुरिन्थियों 1:24)।
जब तक आप यीशु के साथ एक व्यक्तिगत संबंध नहीं पाते, जीवन का असली अर्थ समझ में नहीं आता। पूरी सृष्टि यीशु के माध्यम से बनाई गई (यूहन्ना 1:3)। वह आपसे प्रेम करता है। उसके साथ संबंध में आप परमेश्वर की बुद्धि और सामर्थ को पाते हैं।
जब आप यीशु को पाते हैं, आप हर बुद्धि के स्रोत को पाते हैं। यही आशीर्वाद का मार्ग है (नीतिवचन 3:13a)। यही समझ प्राप्त करने का मार्ग है (पद 13b)। यह सभी भौतिक आशीषों से कहीं अधिक मूल्यवान है (पद 14–15a)। वास्तव में, "जो कुछ तुम चाहो, उसकी तुलना इसमें नहीं हो सकती" (पद 15b)।
यही वह मार्ग है जो दीर्घायु देता है (पद 16, जिसे नये नियम में ‘अनन्त जीवन’ कहा गया है, यूहन्ना 3:16 देखें)। यहाँ आप सच्ची "धन–सम्पत्ति और आदर" पाते हैं (नीतिवचन 3:16)। यही वह मार्ग है जो समझ से परे शांति देता है (पद 17)। यहाँ आप "जीवन का वृक्ष" पाते हैं (पद 18)।
प्रार्थना
हे प्रभु, मैं आज तुझे ढूँढता हूँ। मुझे बुद्धि, शांति और सामर्थ दे ताकि मैं वैसा जीवन जी सकूँ जैसा तू चाहता है कि मैं जीऊँ।
मत्ती 19:16-30
एक महत्वपूर्ण प्रश्न
16 वहीं एक व्यक्ति था। वह यीशु के पास आया और बोला, “गुरु अनन्त जीवन पाने के लिए मुझे क्या अच्छा काम करना चाहिये?”
17 यीशु ने उससे कहा, “अच्छा क्या है, इसके बारे में तू मुझसे क्यों पूछ रहा है? क्योंकि अच्छा तो केवल एक ही है! फिर भी यदि तू अनन्त जीवन में प्रवेश करना चाहता है, तो तू आदेशों का पालन कर।”
18 उसने यीशु से पूछा, “कौन से आदेश?”
तब यीशु बोला, “हत्या मत कर। व्यभिचार मत कर। चोरी मत कर। झूठी गवाही मत दे। 19 ‘अपने पिता और अपनी माता का आदर कर’ और ‘जैसे तू अपने आप को प्यार करता है, ‘वैसे ही अपने पड़ोसी से भी प्यार कर।’ ”
20 युवक ने यीशु से पूछा, “मैंने इन सब बातों का पालन किया है। अब मुझ में किस बात की कमी है?”
21 यीशु ने उससे कहा, “यदि तू संपूर्ण बनना चाहता तो जा और जो कुछ तेरे पास है, उसे बेचकर धन गरीबों में बाँट दे ताकि स्वर्ग में तुझे धन मिल सके। फिर आ और मेरे पीछे हो ले!”
22 किन्तु जब उस नौजवान ने यह सुना तो वह दुःखी होकर चला गया क्योंकि वह बहुत धनवान था।
23 यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, “मैं तुमसे सत्य कहता हूँ कि एक धनवान का स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर पाना कठिन है। 24 हाँ, मैं तुमसे कहता हूँ कि किसी धनवान व्यक्ति के स्वर्ग के राज्य में प्रवेश पाने से एक ऊँट का सूई के नकुए से निकल जाना आसान है।”
25 जब उसके शिष्यों ने यह सुना तो अचरज से भरकर पूछा, “फिर किस का उद्धार हो सकता है?”
26 यीशु ने उन्हें देखते हुए कहा, “मनुष्यों के लिए यह असम्भव है, किन्तु परमेश्वर के लिए सब कुछ सम्भव है।”
27 उत्तर में तब पतरस ने उससे कहा, “देख, हम सब कुछ त्याग कर तेरे पीछे हो लिये हैं। सो हमें क्या मिलेगा?”
28 यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम लोगों से सत्य कहता हूँ कि नये युग में जब मनुष्य का पुत्र अपने प्राप्ती सिंहासन पर विराजेगा तो तुम भी, जो मेरे पीछे हो लिये हो, बाहर सिंहासनों पर बैठकर परमेश्वर के लोगों का न्याय करोगे। 29 और मेरे लिए जिसने भी घर-बार या भाईयों या बहनों या पिता या माता या बच्चों या खेतों को त्याग दिया है, वह सौ गुणा अधिक पायेगा और अनन्त जीवन का भी अधिकारी बनेगा। 30 किन्तु बहुत से जो अब पहले हैं, अन्तिम हो जायेंगे और जो अन्तिम हैं, पहले हो जायेंगे।”
समीक्षा
जो मनुष्य के लिए असम्भव है, वह परमेश्वर के साथ सम्भव है
क्या कभी आपको लगता है कि आप ऐसी परिस्थिति का सामना कर रहे हैं जो बिल्कुल असम्भव है? यह एक ऐसा रिश्ता हो सकता है जो पूरी तरह टूट चुका लगता है, या स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिति या कोई और समस्या हो सकती है जहाँ बदलाव असम्भव लगता है। लेकिन परमेश्वर के साथ हमेशा आशा है, चाहे हालात कितने भी बुरे क्यों न लगें। परमेश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है। उसकी सामर्थ असम्भव को सम्भव कर देती है।
यीशु के ये वचन कि "परमेश्वर के साथ सब कुछ सम्भव है" (पद 26), उस धनी जवान के बारे में हैं जिसे यीशु ने बुलाया: "आ, मेरे पीछे हो ले" (पद 21b)। उसने उससे कहा, "जा, अपनी सम्पत्ति बेचकर गरीबों को दे" (पद 21a)। लेकिन वह युवक सब कुछ छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुआ और उदास होकर चला गया (पद 22)। तब यीशु ने बताया कि धनी लोगों के लिए स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन है (पद 23–24)। फिर भी, "परमेश्वर के साथ सब कुछ सम्भव है" (पद 26)।
यीशु कहते हैं कि मनुष्य के लिए अपने बल से परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना असम्भव है (पद 26)। सांसारिक धन–दौलत कोई मदद नहीं करती, बल्कि अक्सर रुकावट बन जाती है। यीशु कहते हैं, "ऊँट का सुई के छेद से निकल जाना आसान है, बजाय इसके कि कोई धनी व्यक्ति परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करे" (पद 24)।
कुछ लोगों ने कहा है कि यह यरूशलेम के एक फाटक की ओर इशारा है जिसे ‘सुई का छेद’ कहा जाता था। वहाँ से जाने के लिए ऊँट को अपने बोझ उतारने पड़ते थे। अन्य लोग कहते हैं कि यहाँ ‘ऊँट’ शब्द से मिलता–जुलता शब्द ‘रस्सी’ के लिए भी प्रयोग होता था शायद यीशु रस्सी को सुई के छेद में डालने की बात कर रहे थे।
लेकिन ये सारी व्याख्याएँ असली बात से भटका देती हैं। असली सन्देश यह है कि ऊँट का सुई के छेद से निकलना बिल्कुल अकल्पनीय है। पर जो मनुष्य के लिए असम्भव है, वह परमेश्वर के साथ सम्भव है (पद 26)।
जब चेलों ने पूछा, "तो फिर कौन उद्धार पा सकता है?" यीशु ने उत्तर दिया, "यदि तुम अपने बल पर करने की सोचो तो किसी के लिए भी सम्भव नहीं है। लेकिन यदि तुम परमेश्वर पर भरोसा करो तो सब कुछ सम्भव है" (पद 25–26)।
इस संसार में धनी, शक्तिशाली और प्रसिद्ध लोग ‘पहले’ माने जाते हैं। गरीबों को तुच्छ समझा जाता है और वे ‘आखिरी’ गिने जाते हैं। लेकिन स्वर्ग के राज्य में स्थिति उलटी है। यीशु कहते हैं, "बहुत से जो पहले हैं वे आखिरी होंगे, और जो आखिरी हैं वे पहले होंगे" (पद 30)।
यह परमेश्वर का अद्भुत, उलटा राज्य है। यीशु उस धनी जवान को गरीबों को देने के लिए कहते हैं क्योंकि वह चाहता था कि वह युवक अपना भरोसा केवल उन्हीं पर रखे, और क्योंकि परमेश्वर के राज्य में गरीबों को विशेष प्राथमिकता दी जाती है। हमारे लिए भी ऐसा ही होना चाहिए — उन हज़ारों बच्चों को याद रखते हुए जो हर दिन ग़रीबी और भूख से मर जाते हैं, उन उत्पीड़ित लोगों को जो कई देशों में पीड़ित हैं, उन बेघर लोगों को जो हमारी गलियों में हैं, उन लोगों को जिनकी कोई आवाज़ नहीं है और जो सबसे अधिक असुरक्षित हैं।
यीशु ने बहुत कम लोगों से कहा कि वे सब कुछ दे दें, लेकिन इस युवक से उन्होंने यही कहा। हर एक के लिए यीशु का अनुसरण करने में ‘क़ीमत’ होती है। यह क़ीमत हो सकती है उस झंडे को उठाने की जो एक शत्रुतापूर्ण दुनिया में यीशु का है। यह क़ीमत उन चीज़ों को छोड़ने की हो सकती है जो हम जानते हैं कि गलत हैं।
लेकिन चाहे कोई भी क़ीमत क्यों न हो, वह उस क़ीमत से कुछ भी नहीं है जो यीशु ने ‘अनन्त जीवन’ (पद 29) आपके और मेरे लिए सम्भव बनाने में चुकाई। और यह उस क़ीमत से भी कुछ नहीं है जो हमें यीशु का अनुसरण न करने पर चुकानी पड़ेगी। उस धनी जवान ने बहुत कुछ खो दिया।
साथ ही, यह उस आशीर्वाद की तुलना में भी कुछ नहीं है जो हमें मिलता है: "और जिसने भी मेरे नाम के लिए घर, या भाई, या बहन, या पिता, या माता, या पत्नी, या बच्चे, या खेत छोड़े हैं, वह सौ गुना पाएगा और अनन्त जीवन का अधिकारी होगा" (पद 29)। यीशु वादा करते हैं कि जो कुछ भी आप उनके लिए छोड़ते हैं, वह आपको उससे कहीं अधिक देंगे — इस जीवन में भी और अनन्तकाल तक यीशु के साथ।
प्रार्थना
हे प्रभु, मेरी मदद कर कि मैं तेरे राज्य के लिए जो कुछ भी मेरे पास है उसे देने के लिए तैयार रहूँ। धन्यवाद कि सबसे बड़ा और सदा रहने वाला धन यीशु का अनुसरण करने से मिलता है।
अय्यूब 8:1-10:22
8इसके बाद शूह प्रदेश के बिलदद ने उत्तर देते हुए कहा,
2 “तू कब तक ऐसी बातें करता रहेगा
तेरे शब्द तेज आँधी की तरह बह रहे हैं।
3 परमेश्वर सदा निष्पक्ष है।
न्यायपूर्ण बातों को सर्वशक्तिशाली परमेश्वर कभी नहीं बदलता है।
4 अत: यदि तेरी सन्तानों ने परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया है तो, उसने उन्हें दण्डित किया है।
अपने पापों के लिये उन्हें भुगतना पड़ा है।
5 किन्तु अब अय्यूब, परमेश्वर की ओर दृष्टि कर
और सर्वशक्तिमान परमेश्वर से उस की दया पाने के लिये विनती कर।
6 यदि तू पवित्र है, और उत्तम है तो वह शीघ्र आकर तुझे सहारा
और तुझे तेरा परिवार और वस्तुऐं तुझे लौटायेगा।
7 जो कुछ भी तूने खोया वह तुझे छोटी सी बात लगेगी।
क्यों? क्योंकि तेरा भविष्य बड़ा ही सफल होगा।
8 “उन वृद्ध लोगों से पूछ और पता कर कि
उनके पूर्वजों ने क्या सीखा था।
9 क्योंकि ऐसा लगता है जैसे हम तो बस कल ही पैदा हुए हैं,
हम कुछ नहीं जानते।
परछाई की भाँति हमारी आयु पृथ्वी पर बहुत छोटी है।
10 हो सकता है कि वृद्ध लोग तुझे कुछ सिखा सकें।
हो सकता है जो उन्होंने सीखा है वे तुझे सिखा सकें।
11 “बिलदद ने कहा, “क्या सूखी भूमि में भोजपत्र का वृक्ष बढ़ कर लम्बा हो सकता है?
नरकुल बिना जल के बढ़ सकता है?
12 नहीं, यदि पानी सूख जाता है तो वे भी मुरझा जायेंगे।
उन्हें काटे जाने के योग्य काट कर काम में लाने को वे बहुत छोटे रह जायेंगे।
13 वह व्यक्ति जो परमेश्वर को भूल जाता है, नरकुल की भाँति होता है।
वह व्यक्ति जो परमेश्वर को भूल जाता है कभी आशावान नहीं होगा।
14 उस व्यक्ति का विश्वास बहुत दुर्बल होता है।
वह व्यक्ति मकड़ी के जाले के सहारे रहता है।
15 यदि कोई व्यक्ति मकड़ी के जाले को पकड़ता है
किन्तु वह जाला उस को सहारा नहीं देगा।
16 वह व्यक्ति उस पौधे के समान है जिसके पास पानी और सूर्य का प्रकाश बहुतायात से है।
उसकी शाखाऐं बगीचे में हर तरफ फैलती हैं।
17 वह पत्थर के टीले के चारों ओर अपनी जड़े फैलाता है
और चट्टान में उगने के लिये कोई स्थान ढूँढता है।
18 किन्तु जब वह पौधा अपने स्थान से उखाड़ दिया जाता है,
तो कोई नहीं जान पाता कि वह कभी वहाँ था।
19 किन्तु वह पौधा प्रसन्न था, अब दूसरे पौधे वहाँ उगेंगे,
जहाँ कभी वह पौधा था।
20 किन्तु परमेश्वर किसी भी निर्दोष व्यक्ति को नहीं त्यागेगा
और वह बुरे व्यक्ति को सहारा नहीं देगा।
21 परमेश्वर अभी भी तेरे मुख को हँसी से भर देगा
और तेरे ओठों को खुशी से चहकायेगा।
22 और परमेश्वर तेरे शत्रुओं को लज्जित करेगा
और वह तेरे शत्रुओं के घरों को नष्ट कर देगा।”
9फिर अय्यूब ने उत्तर दिया:
2 “हाँ, मैं जानता हूँ कि तू सत्य कहता है
किन्तु मनुष्य परमेश्वर के सामने निर्दोष कैसे हो सकता है?
3 मनुष्य परमेश्वर से तर्क नहीं कर सकता।
परमेश्वर मनुष्य से हजारों प्रश्न पूछ सकता है और कोई उनमें से एक का भी उत्तर नहीं दे सकता है।
4 परमेश्वर का विवेक गहन है, उसकी शक्ति महान है।
ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जो परमेश्वर से झगड़े और हानि न उठाये।
5 जब परमेश्वर क्रोधित होता है, वह पर्वतों को हटा देता है और वे जान तक नहीं पाते।
6 परमेश्वर पृथ्वी को कँपाने के लिये भूकम्प भेजता है।
परमेश्वर पृथ्वी की नींव को हिला देता है।
7 परमेश्वर सूर्य को आज्ञा दे सकता है और उसे उगने से रोक सकता हैं।
वह तारों को बन्द कर सकता है ताकि वे न चमकें।
8 केवल परमेश्वर ने आकाशों की रचना की।
वह सागर की लहरों पर विचरण कर सकता है।
9 “परमेश्वर ने सप्तर्षी, मृगशिरा और कचपचिया तारों को बनाया है।
उसने उन ग्रहों को बनाया जो दक्षिण का आकाश पार करते हैं।
10 परमेश्वर ऐसे अद्भुत कर्म करता है जिन्हें मनुष्य नहीं समझ सकता।
परमेश्वर के महान आश्चर्यकर्मों का कोई अन्त नहीं है।
11 परमेश्वर जब मेरे पास से निकलता है, मैं उसे देख नहीं पाता हूँ।
परमेश्वर जब मेरी बगल से निकल जाता है। मैं उसकी महानता को समझ नहीं पाता।
12 यदि परमेश्वर छीनने लगता है तो
कोई भी उसे रोक नहीं सकता।
कोई भी उससे कह नहीं सकता,
‘तू क्या कर रहा है।’
13 परमेश्वर अपने क्रोध को नहीं रोकेगा।
यहाँ तक कि राहाब दानव (सागर का दैत्य) के सहायक भी परमेश्वर से डरते हैं।
14 अत: परमेश्वर से मैं तर्क नहीं कर सकता।
मैं नहीं जानता कि उससे क्या कहा जाये।
15 मैं यद्यपि निर्दोष हूँ किन्तु मैं परमेश्वर को एक उत्तर नहीं दे सकता।
मैं बस अपने न्यायकर्ता (परमेश्वर)से दया की याचना कर सकता हूँ।
16 यदि मैं उसे पुकारुँ और वह उत्तर दे, तब भी मुझे विश्वास नहीं होगा कि वह सचमुच मेरी सुनता है।
17 परमेश्वर मुझे कुचलने के लिये तूफान भेजेगा
और वह मुझे अकारण ही और अधिक घावों को देगा।
18 परमेश्वर मुझे फिर साँस नहीं लेने देगा।
वह मुझे और अधिक यातना देगा।
19 मैं परमेश्वर को पराजित नहीं कर सकता।
परमेश्वर शक्तिशाली है।
मैं परमेश्वर को न्यायालय में नहीं ले जा सकता और उसे अपने प्रति मैं निष्पक्ष नहीं बना सकता।
परमेश्वर को न्यायालय में आने के लिये कौन विवश कर सकता है
20 मैं निर्दोंष हूँ किन्तु मेरा भयभीत मुख मुझे अपराधी कहेगा।
अत: यद्यपि मैं निरपराधी हूँ किन्तु मेरा मुख मुझे अपराधी घोषित करता है।
21 मैं पाप रहित हूँ किन्तु मुझे अपनी ही परवाह नहीं है।
मैं स्वयं अपने ही जीवन से घृणा करता हूँ।
22 मैं स्वयं से कहता हूँ हर किसी के साथ एक सा ही घटित होता है।
निरपराध लोग भी वैसे ही मरते हैं जैसे अपराधी मरते हैं।
परमेश्वर उन सबके जीवन का अन्त करता है।
23 जब कोई भयंकर बात घटती है और कोई निर्दोष व्यक्ति मारा जाता है तो क्या परमेश्वर उसके दु:ख पर हँसता है?
24 जब धरती दुष्ट जन को दी जाती है तो क्या मुखिया को परमेश्वर अंधा कर देता है?
यदि यह परमेश्वर ने नहीं किया तो फिर किसने किया है?
25 “किसी तेज धावक से तेज मेरे दिन भाग रहे हैं।
मेरे दिन उड़ कर बीत रहे हैं और उनमें कोई प्रसन्नता नहीं है।
26 वेग से मेरे दिन बीत रहे हैं जैसे श्री—पत्र की नाव बही चली जाती है,
मेरे दिन टूट पड़ते है ऐसे जैसे उकाब अपने शिकार पर टूट पड़ता हो!
27 “यदि मैं कहूँ कि मैं अपना दुखड़ा रोऊँगा,
अपना दु:ख भूल जाऊँगा और उदासी छोड़कर हँसने लगूँगा।
28 इससे वास्तव में कोई भी परिवर्तन नहीं होता है।
पीड़ा मुझे अभी भी भयभीत करती है।
29 मुझे तो पहले से ही अपराधी ठहराया जा चुका है,
सो मैं क्यों जतन करता रहूँ मैं तो कहता हूँ, “भूल जाओ इसे।”
30 चाहे मैं अपने आपको हिम से धो लूँ
और यहाँ तक की अपने हाथ साबुन से साफ कर लूँ!
31 फिर भी परमेश्वर मुझे घिनौने गर्त में धकेल देगा
जहाँ मेरे वस्र तक मुझसे घृणा करेंगे।
32 परमेश्वर, मुझ जैसा मनुष्य नहीं है। इसलिए उसको मैं उत्तर नहीं दे सकता।
हम दोनों न्यायालय में एक दूसरे से मिल नहीं सकते।
33 काश! कोई बिचौलिया होता जो दोनों तरफ की बातें सुनता।
काश! कोई ऐसा होता जो हम दोनों का न्याय निष्पक्ष रूप से करता।
34 काश! कोई जो परमेश्वर से उस की दण्ड की छड़ी को ले।
तब परमेश्वर मुझे और अधिक भयभीत नहीं करेगा।
35 तब मैं बिना डरे परमेश्वर से वह सब कह सकूँगा,
जो मैं कहना चाहता हूँ।
10“किन्तु हाय, अब मैं वैसा नहीं कर सकता। मुझ को स्वयं अपने जीवन से घृणा हैं अत:
मैं मुक्त भाव से अपना दुखड़ा रोऊँगा। मेरे मन में कड़वाहट भरी है अत: मैं अबबोलूँगा।
2 मैं परमेश्वर से कहूँगा “मुझ पर दोष मत लगा।
मुझे बता दै, मैंने तेरा क्या बुरा किया मेरे विरुद्ध तेरे पास क्या है?
3 हे परमेश्वर, क्या तू मुझे चोट पहुँचा कर प्रसन्न होता है?
ऐसा लगता है जैसे तुझे अपनी सृष्टि की चिंता नहीं है और शायद तू दुष्टों के कुचक्रों का पक्ष लेता है।
4 हे परमेश्वर, क्या तेरी आँखें मनुष्य समान है
क्या तू वस्तुओं को ऐसे ही देखता है, जैसे मनुष्य की आँखे देखा करती हैं।
5 तेरी आयु हम मनुष्यों जैसे छोटी नहीं है।
तेरे वर्ष कम नहीं हैं जैसे मनुष्य के कम होते हैं।
6 तू मेरी गलतियों को ढूढ़ता है,
और मेरे पापों को खोजता है।
7 तू जानता है कि मैं निरपराध हूँ।
किन्तु मुझे कोई भी तेरी शक्ति से बचा नही सकता।
8 परमेश्वर, तूने मुझ को रचा
और तेरे हाथों ने मेरी देह को सँवारा,
किन्तु अब तू ही मुझ से विमुख हुआ
और मुझे नष्ट कर रहा है।
9 हे परमेश्वर, याद कर कि तूने मुझे मिट्टी से मढ़ा,
किन्तु अब तू ही मुझे फिर से मिट्टी में मिलायेगा।
10 तू दूध के समान मुझ को उडेंलता है,
दूध की तरह तू मुझे उबालता है और तू मुझे दूध से पनीर में बदलता है।
11 तूने मुझे हड्डियों और माँस पेशियों से बुना
और फिर तूने मुझ पर माँस और त्वचा चढ़ा दी।
12 तूने मुझे जीवन का दान दिया और मेरे प्रति दयालु रहा।
तूने मेरा ध्यान रखा और तूने मेरे प्राणों की रखवाली की।
13 किन्तु यह वह है जिसे तूने अपने मन में छिपाये रखा
और मैं जानता हूँ, यह वह है जिसकी तूने अपने मन में गुप्त रूप से योजना बनाई।
हाँ, यह मैं जानता हूँ, यह वह है जो तेरे मन में था।
14 यदि मैंने पाप किया तो तू मुझे देखता था।
सो मेरे बुरे काम का दण्ड तू दे सकता था।
15 जब मैं पाप करता हूँ तो
मैं अपराधी होता हूँ और यह मेरे लिये बहुत ही बुरा होगा।
किन्तु मैं यदि निरपराध भी हूँ
तो भी अपना सिर नहीं उठा पाता
क्योंकि मैं लज्जा और पीड़ा से भरा हुआ हूँ।
16 यदि मुझको कोई सफलता मिल जाये और मैं अभिमानी हो जाऊँ,
तो तू मेरा पीछा वैसे करेगा जैसे सिंह के पीछे कोई शिकारी पड़ता है
और फिर तू मेरे विरुद्ध अपनी शक्ति दिखायेगा।
17 तू मेरे विरुद्ध सदैव किसी न किसी को नया साक्षी बनाता है।
तेरा क्रोध मेरे विरुद्ध और अधिक भड़केगा तथा मेरे विरुद्ध तू नई नई शत्रु सेना लायेगा।
18 सो हे परमेश्वर, तूने मुझको क्यों जन्म दिया? इससे पहले की कोई मुझे देखता
काश! मैं मर गया होता।
19 काश! मैं जीवित न रहता।
काश! माता के गर्भ से सीधे ही कब्र में उतारा जाता।
20 मेरा जीवन लगभग समाप्त हो चुका है
सो मुझे अकेला छोड़ दो।
मेरा थोड़ा सा समय जो बचा है उसे मुझे चैन से जी लेने दो।
21 इससे पहले की मैं वहाँ चला जाऊँ जहाँ से कभी कोई वापस नहीं आता हैं।
जहाँ अंधकार है और मृत्यु का स्थान है।
22 जो थोड़ा समय मेरा बचा है उसे मुझको जी लेने दो, इससे पहले कि मैं वहाँ चला जाऊँ जिस स्थान को कोई नहीं देख पाता अर्थात् अधंकार, विप्लव और गड़बड़ी का स्थान।
उस स्थान में यहाँ तक कि प्रकाश भी अंधकारपूर्ण होता है।”
समीक्षा
आपके जीवन में परमेश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है
कभी–कभी जब हम दूसरों का दुःख देखते हैं, तो हमें जल्दी–जल्दी कोई आसान सा कारण बताने की इच्छा होती है। अय्यूब के मित्र बिल्दद की सलाह में हम सत्य, आधा–सत्य और असत्य का मिला–जुला रूप देखते हैं (अय्यूब 8:1–22)।
जब अय्यूब उत्तर देता है तो कहता है, "निश्चय ही मैं जानता हूँ कि यह सत्य है। परन्तु..." (9:2)। यानी, वह मानता है कि बिल्दद की कुछ बातें सच थीं, लेकिन सब नहीं। वह उसके सतही कारणों को ठुकरा देता है।
अय्यूब के वचन कहीं अधिक सच्चे और गहरे हैं। वे उसके हृदय से निकलते हैं। वह परमेश्वर से पुकार कर कहता है, "मैं तो केवल अपने न्यायी से दया की भीख माँग सकता हूँ" (9:15)। वह चाहता है कि काश, वह कभी जन्मा ही न होता (10:18–19)। वह अपने संघर्षों, अपने संदेहों और यहाँ तक कि अपनी पीड़ा पर क्रोध को भी स्वीकार करता है। वह कहता है, "मुझे अपना जीवन घृणास्पद लगता है; इसलिए मैं अपनी शिकायत खुलकर करूँगा और अपने मन के कड़वेपन में बोलूँगा" (10:1)।
फिर भी, इन सबके बीच वह मानता है कि परमेश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है। अय्यूब कहता है, "परमेश्वर की बुद्धि कितनी गहरी है, उसकी सामर्थ कितनी महान!... वह पहाड़ों को बिना बताए हिला देता है, और उन्हें उलट देता है... हम कभी भी उसके महान कामों को पूरी तरह समझ नहीं सकते; उसके चमत्कार अनगिनत हैं" (9:4–5,10)। "तूने मुझे जीवन दिया और अद्भुत प्रेम दिखाया। तूने मेरी हर साँस पर नज़र रखी और मेरी रक्षा की" (10:12)।
यहाँ हमें ईमानदार संघर्ष और विश्वास का अनोखा मेल दिखाई देता है। अय्यूब यह दिखावा नहीं करता कि सब कुछ ठीक है या कि उसके पास सब उत्तर हैं, फिर भी इन सबके बीच वह परमेश्वर को थामे रहता है।
परमेश्वर ने अय्यूब के जीवन में वह किया जो मनुष्य के प्रयास से असम्भव था। उसने अय्यूब की स्थिति को बहाल किया और "अय्यूब के जीवन के उत्तरार्ध को उसके प्रारम्भ से अधिक आशीष दी" (42:12)।
आज आप चाहे किसी भी संघर्ष का सामना कर रहे हों, चाहे जीवन कितना भी कठिन क्यों न लगे, चाहे परिस्थिति कितनी भी असम्भव क्यों न दिखे, यह याद रखना ज़रूरी है कि परमेश्वर आपसे प्रेम करता है और उस पर भरोसा रखें कि "परमेश्वर के साथ सब कुछ सम्भव है" (मत्ती 19:26)।
प्रार्थना
हे प्रभु, अय्यूब के उदाहरण के लिए धन्यवाद – जीवन की कठिनाइयों में भी उसकी तेरे प्रति विश्वास और भक्ति प्रेरणादायक है। मेरा जीवन तेरे हाथ में है और तेरे अनुसार है। तेरे अद्भुत प्रेम के लिए धन्यवाद। धन्यवाद कि तेरे साथ कुछ भी असम्भव नहीं है।
पिप्पा भी कहते है
मत्ती 19:16–26
दुनिया भर की चर्चों में नया अल्फा, टर्म शुरू होने वाला है। यह सुनकर बहुत रोमांचक लगता है कि सैकड़ों लोग ऑनलाइन और व्यक्तिगत रूप से जुड़ रहे हैं। वे जीवन के अर्थ को समझने के लिए आ रहे हैं।
मत्ती 19:26 में लिखा है, "परमेश्वर के साथ सब कुछ सम्भव है।" मैं इंतजार नहीं कर सकता कि इस टर्म में परमेश्वर इन लोगों के जीवन में क्या करेगा।

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संदर्भ
नोट्स:
नॉर्मन विन्सेंट पेले, द पॉवर ऑफ पोजिटिव थिंकिंग, (प्रेंटिस-हॉल, 1952)
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है। कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है. (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002। जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।
संपादकीय नोट्स
ऑगीन पीटरसन, द मैसेज (नावप्रेस, 2007) पन्ना 632 – 2016 में उपयोग नहीं किया गया।
अयूब उन सभी सुझाव और शिक्षा को अस्वीकार करता है जिसे परमेश्वर ने तैयार किया था, जो हरएक परिस्थिति के लिए धाराप्रवाह स्पष्टीकरण प्रदान करता है, ऐसा ऑगीन पीटसर अपनी किताब ‘इंट्रोडक्शन टू बुक ऑफ जोब’ में लिखते हैं। ‘सकारात्मक सोचने वालों की रूढ़ोक्ति के विरूद्ध अयूब की सबसे खरी चुनौती जारी रहती है’। (ऑगीन पीटरसन, द मैसेज, पन्ना 632)।
