यीशु की तरह नेतृत्व कैसे करें
परिचय
कुछ ही लोगों ने कॅन ब्लॅनचॉर्ड से बढ़कर लोगों और कंपनियों के दैनिक प्रबंध पर प्रभाव डाला है। वर्ष 1982 में, उन्होंने लिखा ‘द वन मिनट मैनेजर’ जिसकी कॉपी की बिक्री 130 लाख से भी ज़्यादा हो गई थी। यह पुस्तक बहुत ही कम समय में सफल हुई, यहाँ तक कि उन्हें इसकी सफलता का श्रेय लेने में कठिनाइयाँ होने लगीं। उन्होंने परमेश्वर के बारे में सोचना आरंभ किया। उन्होंने बाइबल पढ़ना आरंभ किया। वे सीधे सुसमाचार की ओर गए। वे जानना चाहते थे कि यीशु ने क्या किया था।
वे बहुत प्रभावित हुए कि यीशु ने कैसे बारह साधारण और अविश्वसनीय लोगों को बदलकर, प्रथम पीढ़ी के गतिविधियों का अगुआ बना दिया था, जो 2,000 साल बाद भी संसार के इतिहास को प्रभावित कर रहे हैं। वे इस बात को जान गए थे कि उन्होंने प्रभावी अगुआई के बारे में जो कुछ कहा था, उसे यीशु ने सम्पूर्ण सिद्धता से इस प्रकार कर दिखाया है, जो केन के बयान या वर्णन करने की क्षमता से कहीं ज़्यादा है।
यीशु आत्मिक अगुए से बढ़कर हैं। वह व्यवहारिक और प्रभावशाली नेतृत्व का आदर्श सभी संस्था, सभी लोगों, सभी परिस्थितियों के लिए बताते हैं। परिणाम स्वरूप, कॅन ब्लॅनचॉर्ड ने ‘लीड लाइक जीसस’ (‘यीशु की तरह नेतृत्व करें’) सेवकाई की स्थापना की, जिससे लोगों को प्रेरित और सक्षम बनाया जाए — बिल्कुल वैसा ही करने के लिए — जैसा यीशु ने नेतृत्व किया था।
यीशु अब तक के सबसे महान अगुए रहे हैं। इस पद्यांश में हम दाऊद और अय्यूब जैसे दो महान लोगों के साथ यीशु के नेतृत्व के गुणों को देखेंगे बाइबल के ।
भजन संहिता 18:1-6
यहोवा के दास दाऊद का एक पद: संगीत निर्देशक के लिये। दाऊद ने यह पद उस अवसर पर गाया था जब यहोवा ने शाऊल तथा अन्य शत्रुओं से उसकी रक्षा की थी।
18उसने कहा, “यहोवा मेरी शक्ति है,
मैं तुझ पर अपनी करुणा दिखाऊँगा!
2 यहोवा मेरी चट्टान, मेरा गढ़, मेरा शरणस्थल है।”
मेरा परमेश्वर मेरी चट्टान है। मैं तेरी शरण मे आया हूँ।
उसकी शक्ति मुझको बचाती है।
यहोवा ऊँचे पहाड़ों पर मेरा शरणस्थल है।
3 यहोवा को जो स्तुति के योग्य है,
मैं पुकारुँगा और मैं अपने शत्रुओं से बचाया जाऊँगा।
4 मेरे शत्रुओं ने मुझे मारने का यत्न किया। मैं चारों ओर मृत्यु की रस्सियों से घिरा हूँ!
मुझ को अधर्म की बाढ़ ने भयभीत कर दिया।
5 मेरे चारों ओर पाताल की रस्सियाँ थी।
और मुझ पर मृत्यु के फँदे थे।
6 मैं घिरा हुआ था और यहोवा को सहायता के लिये पुकारा।
मैंने अपने परमेश्वर को पुकारा।
परमेश्वर पवित्र निज मन्दिर में विराजा।
उसने मेरी पुकार सुनी और सहायता की।
समीक्षा
अगुए की आराधना
इस्राएल के इतिहास में दाऊद महान अगुवों में से एक थे। उन्होंने अब तक के बहुत सुंदर आराधना के गीतों को लिखा है। हज़ारों वर्षों के बाद भी परमेश्वर के लोग आराधना में दाऊद के भजन संहिता का उपयोग लगातार करते हैं।
इस भजन संहिता में हम देखेते हैं कि दाऊद की आराधना और प्रार्थना उसका मूल सिद्धांत है जिस पर उसकी अगुआई स्थापित है। कठिनाई और विरोध के बीच में वह कहते हैं, ‘मैंने अपने परमेश्वर को पुकारा, मैंने अद्भुत परमेश्वर की दोहाई दी’ (पद - 6)। इसका परिणाम परिस्थितियों में अद्भुत परिवर्तन है जो सफलता की ओर बढ़ने लगी जिसने अपने गीतों द्वारा धन्यवाद प्रकट करने के लिए दाऊद का नेतृत्व किया।
चाहें कठिनाइयाँ हों या सफलता, प्रार्थना और आराधना की नींव पर अपने जीवन का निर्माण करने के लिए दाऊद के उदाहरण का अनुसरण करें।
परमेश्वर के प्रति प्रेम ही, आराधना का आरंभ है: मैं आप से उत्साह पूर्वक और भक्तिपूर्वक प्रेम करता हूँ, हे प्रभु, तू मेरा बल है (पद - 1 एम.एस.जी.)। दाऊद परमेश्वर के लिए अपना प्रेम, स्तुति और धन्यवाद प्रकट करते हैं। उन्होंने शत्रुओं का (पद - 3ब), मृत्यु का और विनाश का (पद - 4-5) और दु:ख का सामना किया था। जब वे पीछे मुड़कर देखते हैं, तब वे पाते हैं कि (पद - 6अ) परमेश्वर ने उनकी दोहाई को सुनी है और उन्हें उनके शत्रुओं से बचाया है (पद - 3-6)।
एक वर्ष में बाइबल की मार्जिन में मैंने पिछले कुछ वर्षों में ‘सहायता के लिए’ विनती की सूची तैयार की है (पद - 6अ)। । जिस तरह से परमेश्वर मेरी विनती सुनते हैं उसे देखना अद्भुत है। इसी तरह से बहुत सी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया गया है (हालांकि अभी तक पूर्ण रूप से नहीं मिला है)। परमेश्वर का धन्यवाद करना न भूलने में, लिखित प्रमाण मेरी सहायता करता है।
प्रार्थना
हे प्रभु, मेरा बल, मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि जब कभी सहायता के लिए मैंने आपको पुकारा है, आपने मेरी आवाज़ सुनी है। आनेवाली चुनौतियों के लिए, फिर से मैं सहायता पाने के लिए मैं आपको पुकारूँगा।
मत्ती 21:1-17
यीशु का यरूशलेम में भव्य प्रवेश
21यीशु और उसके अनुयायी जब यरूशलेम के पास जैतून पर्वत के निकट बैतफगे पहुँचे तो यीशु ने अपने दो शिष्यों को 2 यह आदेश देकर भेजा कि अपने ठीक सामने के गाँव में जाओ और वहाँ जाते ही तुम्हें एक गधी बँधी मिलेगी। उसके साथ उसका बच्चा भी होगा। उन्हें बाँध कर मेरे पास ले आओ। 3 यदि कोई तुमसे कुछ कहे तो उससे कहना, ‘प्रभु को इनकी आवश्यकता है। वह जल्दी ही इन्हें लौटा देगा।’”
4 ऐसा इसलिये हुआ कि भविष्यवक्ता का यह वचन पूरा हो:
5 “सिओन की नगरी से कहो,
‘देख तेरा राजा तेरे पास आ रहा है।
वह विनयपूर्ण है, वह गधी पर सवार है,
हाँ गधी के बच्चे पर जो एक श्रमिक पशु का बच्चा है।’”
6 सो उसके शिष्य चले गये और वैसा ही किया जैसा उन्हें यीशु ने बताया था। 7 वे गधी और उसके बछेरे को ले आये। और उन पर अपने वस्त्र डाल दिये क्योंकि यीशु को बैठना था। 8 भीड़ में बहुत से लोगों ने अपने वस्त्र राह में बिछा दिये और दूसरे लोग पेड़ों से टहनियाँ काट लाये और उन्हें मार्ग में बिछा दिया। 9 जो लोग उनके आगे चल रहे थे और जो लोग उनके पीछे चल रहे थे सब पुकार कर कह रहे थे:
“होशन्ना! धन्य है दाऊद का वह पुत्र!
‘जो आ रहा है प्रभु के नाम पर धन्य है।’
प्रभु जो स्वर्ग में विराजा।”
10 सो जब उसने यरूशलेम में प्रवेश किया तो समूचे नगर में हलचल मच गयी। लोग पूछने लगे, “यह कौन है?”
11 लोग ही जवाब दे रहे थे, “यह गलील के नासरत का नबी यीशु है।”
यीशु मन्दिर में
12 फिर यीशु मन्दिर के अहाते में आया और उसने मन्दिर के अहाते में जो लोग खरीद-बिकरी कर रहे थे, उन सब को बाहर खदेड़ दिया। उसने पैसों की लेन-देन करने वालों की चौकियों को उलट दिया और कबूतर बेचने वालों के तख्त पलट दिये। 13 वह उनसे बोला, “शास्त्र कहते हैं, ‘मेरा घर प्रार्थना-गृह कहलायेगा। किन्तु तुम इसे डाकुओं का अड्डा बना रहे हो।’”
14 मन्दिर में कुछ अंधे, लँगड़े लूले उसके पास आये। जिन्हें उसने चंगा कर दिया। 15 तब प्रमुख याजकों और यहूदी धर्मशास्त्रियों ने उन अद्भुत कामों को देखा जो उसने किये थे और मन्दिर में बच्चों को ऊँचे स्वर में कहते सुना: “होशन्ना! दाऊद का वह पुत्र धन्य है।”
16 तो वे बहुत क्रोधित हुए। और उससे पूछा, “तू सुनता है वे क्या कह रहे हैं?”
यीशु ने उनसे कहा, “हाँ, सुनता हूँ। क्या धर्मशास्त्र में तुम लोगों ने नहीं पढ़ा,
‘तूने बालकों और दूध पीते बच्चों तक से स्तुति करवाई है।’”
17 फिर उन्हें वहीं छोड़ कर वह यरूशलेम नगर से बाहर बैतनिय्याह को चला गया। जहाँ उसने रात बिताई।
समीक्षा
अगुए की विशेषता
इसका क्या मतलब है, व्यवहार में, ‘यीशु की तरह नेतृत्व करना’?
- आप जो हैं उस अवस्था से बढ़कर नेतृत्व करें
अधिकार और संपत्ति के संदर्भ में आप क्या करते हैं या आपके पास क्या है, इससे कहीं ज़्यादा महत्त्वपूर्ण यह है कि आप कौन हैं। कुछ क्षेत्रों में यीशु के अधिकार ऊँचे पद के कारण नहीं आते। यह व्यक्ति कौन था, यह उससे आता है। उनके पास स्वाभाविक अधिकार हैं। उनके पास संपूर्ण आत्मविश्वास था जिसकी उन्हें यह कहने में आवश्यकता थी, ‘प्रभु को इसकी आवश्यकता है’ (पद - 3) यहाँ पर किसी भय या प्रतिज्ञा की आवश्यकता नहीं थी।
- दयालु और नम्र बनें
‘तेरा राजा तेरे पास आता है, नम्र...’ (पद - 5)। यह एक अगुए का गुण नहीं है जिसकी संसार उम्मीद करता है। फिर भी यह यीशु के मन के नेतृत्व में सही हैं। दयालु के लिए ग्रीक शब्द ‘नम्र’ यानि ‘ध्यान रखनेवाला’ है। यह क्रोधी या लोभी के बिल्कुल विपरीत है।
- अभिमान और दिखावे से बचे रहें
यीशु ने गधे के ऊपर सवार होकर यरुशलेम में प्रवेश किया। यीशु में और इतिहास के अन्य अगुवों - जैसे संसारिक धार्मिक गुरूओं - में काफी फर्क है, जिन्होंने धूम - धाम के साथ यात्रा की और समारोह में दिखावा किया। यीशु की यात्रा का माध्यम उनकी नम्रता को दर्शाता है। यह घमंड और अभिमान के बिल्कुल विपरीत है, ‘जो मानव नेतृत्व में बहुत आसानी से प्रवेश कर जाता है।
- सामना करने के लिए साहसी बने रहें
कभी - कभी लोग यह सोचते हैं कि कोमलता और नम्रता का मतलब हर परिस्थितियों को जाने देना है, लेकिन यीशु को सामना करने में कोई भय नहीं था। वे ‘मंदिर के स्थान में गए और जो लेन - देन कर रहे थे, उन्हें बाहर निकालकर सर्राफों के पीढ़े उलट दिए’ (पद - 12)। नेतृत्वता का एक कठिन लक्षण है सही क्षण को जानकर सामना करना।
संघर्ष और सामना करना ये नेतृत्व के दो अच्छे भाग हैं। सामना करने में असफल होना अपने आप में ही एक निर्णय का परिणाम है। सामना करना कभी भी आसान नहीं होता, लेकिन समझदारी से लागू किया जाए, तो यह साहसी नेतृत्व का एक महत्त्वपूर्ण भाग है।
- संसारिक नहीं, आत्मिक सामर्थ को खोजें
यीशु की सामर्थ संसार के बहुत से अगुवों से अलग थी। अंधे और लंगड़े मंदिर में उसके पास आए और उसने उन्हें चंगा किया’ (पद - 14)। आत्मिक सामर्थ सांसारिक सामर्थ से बहुत ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है। इसका निर्माण नहीं किया जा सकता है। यीशु का परमेश्वर के साथ जैसा संबंध है, अगर उसी प्रकार का संबंध आपका हो तब ही यह सामर्थ आती है।
- प्रार्थना को आपकी पहली प्राथमिकता बनाएं।
यीशु जब सर्राफों का सामना कर रहे थे, तब हम देखते हैं कि वे प्रार्थना को लेकर बहुत भावुक थे (पद - 13)। पूरे सुसमाचार में, हम पढ़ते हैं कि यीशु परमेश्वर के साथ अकेले मिलने के लिए निकल जाते हैं (पद - 17)। यह उनके बल का स्रोत था। दाऊद की तरह, प्रार्थना ही यीशु के नेतृत्व का केंद्र था।
प्रार्थना
प्रभु, मेरी सहायता कीजिए कि मैं यीशु की तरह अधिकार, कोमलता, नम्रता, साहस और सामर्थ के साथ नेतृत्व कर सकूँ। मैं प्रार्थना करता हूँ कि यीशु की तरह मेरा बल भी आपके साथ मेरे व्यक्तिगत संबंध के द्वारा आए।
अय्यूब 19:1-21:34
अय्यूब का उत्तर
19तब अय्यूब ने उत्तर देते हुए कहा:
2 “कब तक तुम मुझे सताते रहोगे
और शब्दों से मुझको तोड़ते रहोगे?
3 अब देखों, तुमने दसियों बार मुझे अपमानित किया है।
मुझ पर वार करते तुम्हें शर्म नहीं आती है।
4 यदि मैंने पाप किया तो यह मेरी समस्या है।
यह तुम्हें हानि नहीं पहुँचाता।
5 तुम बस यह चाहते हो कि तुम मुझसे उत्तम दिखो।
तुम कहते हो कि मेरे कष्ट मुझ को दोषी प्रमाणित करते हैं।
6 किन्तु वह तो परमेश्वर है जिसने मेरे साथ बुरा किया है
और जिसने मेरे चारों तरफ अपना फंदा फैलाया है।
7 मैं पुकारा करता हूँ, ‘मेरे संग बुरा किया है।’
लेकिन मुझे कोई उत्तर नहीं मिलता हूँ।
चाहे मैं न्याय की पुकार पुकारा करुँ मेरी कोई नहीं सुनता है।
8 मेरा मार्ग परमेश्वर ने रोका है, इसलिये उसको मैं पार नहीं कर सकता।
उसने अंधकार में मेरा मार्ग छुपा दिया है।
9 मेरा सम्मान परमेश्वर ने छीना है।
उसने मेरे सिर से मुकुट छीन लिया है।
10 जब तक मेरा प्राण नहीं निकल जाता, परमेश्वर मुझ को करवट दर करवट पटकियाँ देता है।
वह मेरी आशा को ऐसे उखाड़ता है
जैसे कोई जड़ से वृक्ष को उखाड़ दे।
11 मेरे विरुद्ध परमेश्वर का क्रोध भड़क रहा है।
वह मुझे अपना शत्रु कहता है।
12 परमेश्वर अपनी सेना मुझ पर प्रहार करने को भेजता है।
वे मेरे चारों और बुर्जियाँ बनाते हैं।
मेरे तम्बू के चारों ओर वे आक्रमण करने के लिये छावनी बनाते हैं।
13 “मेरे बन्धुओं को परमेश्वर ने बैरी बनाया।
अपने मित्रों के लिये मैं पराया हो गया।
14 मेरे सम्बन्धियों ने मुझको त्याग दिया।
मेरे मित्रों ने मुझको भुला दिया।
15 मेरे घर के अतिथि और मेरी दासियाँ
मुझे ऐसे दिखते हैं मानों अन्जाना या परदेशी हूँ।
16 मैं अपने दास को बुलाता हूँ पर वह मेरी नहीं सुनता है।
यहाँ तक कि यदि मैं सहायता माँगू तो मेरा दास मुझको उत्तर नहीं देता।
17 मेरी ही पत्नी मेरे श्वास की गंध से घृणा करती है।
मेरे अपनी ही भाई मुझ से घृणा करते हैं।
18 छोटे बच्चे तक मेरी हँसी उड़ाते है।
जब मैं उनके पास जाता हूँ तो वे मेरे विरुद्ध बातें करते हैं।
19 मेरे अपने मित्र मुझ से घृणा करते हैं।
यहाँ तक कि ऐसे लोग जो मेरे प्रिय हैं, मेरे विरोधी बन गये हैं।
20 “मैं इतना दुर्बल हूँ कि मेरी खाल मेरी हड्डियों पर लटक गई।
अब मुझ में कुछ भी प्राण नहीं बचा है।
21 “हे मेरे मित्रों मुझ पर दया करो, दया करो मुझ पर
क्योंकि परमेश्वर का हाथ मुझ को छू गया है।
22 क्यों मुझे तुम भी सताते हो जैसे मुझको परमेश्वर ने सताया है?
क्यों मुझ को तुम दु:ख देते और कभी तृप्त नहीं होते हो?
23 “मेरी यह कामना है, कि जो मैं कहता हूँ उसे कोई याद रखे और किसी पुस्तक में लिखे।
मेरी यह कामना है, कि काश! मेरे शब्द किसी गोल पत्रक पर लिखी जाती।
24 मेरी यह कामना है काश! मैं जिन बातों को कहता उन्हें किसी लोहे की टाँकी से सीसे पर लिखा जाता,
अथवा उनको चट्टान पर खोद दिया जाता, ताकि वे सदा के लिये अमर हो जाती।
25 मुझको यह पता है कि कोई एक ऐसा है, जो मुझको बचाता है।
मैं जानता हूँ अंत में वह धरती पर खड़ा होगा और मुझे बचायेगा।
26 यहाँ तक कि मेरी चमड़ी नष्ट हो जाये, किन्तु काश,
मैं अपने जीते जी परमेश्वर को देख सकूँ।
27 अपने लिये मैं परमेश्वर को स्वयं देखना चाहता हूँ।
मैं चाहता हूँ कि स्वयं उसको अपनी आँखों से देखूँ न कि किसी दूसरे की आँखों से।
मेरा मन मुझ में ही उतावला हो रहा है।
28 “सम्भव है तुम कहो, “हम अय्यूब को तंग करेंगे।
उस पर दोष मढ़ने का हम को कोई कारण मिल जायेगा।”
29 किन्तु तुम्हें स्वयं तलवार से डरना चाहिये क्योंकि पापी के विरुद्ध परमेश्वर का क्रोध दण्ड लायेगा।
तुम्हें दण्ड देने को परमेश्वर तलवार काम में लायेगा
तभी तुम समझोगे कि वहाँ न्याय का एक समय है।”
20इस पर नामात प्रदेश के सोपर ने उत्तर दिया:
2 “अय्यूब, तेरे विचार विकल है, सो मैं तुझे निश्चय ही उत्तर दूँगा।
मुझे निश्चय ही जल्दी करनी चाहिये तुझको बताने को कि मैं क्या सोच रहा हूँ।
3 तेरे सुधान भरे उत्तर हमारा अपमान करते हैं।
किन्तु मैं विवेकी हूँ और जानता हूँ कि तुझे कैसे उत्तर दिया जाना चाहिये।
4-5 “इसे तू तब से जानता है जब बहुत पहले आदम को धरती पर भेजा गया था, दुष्ट जन का आनन्द बहुत दिनों नहीं टिकता हैं।
ऐसा व्यक्ति जिसे परमेश्वर की चिन्ता नहीं है
वह थोड़े समय के लिये आनन्दित होता है।
6 चाहे दुष्ट व्यक्ति का अभिमान नभ छू जाये,
और उसका सिर बादलों को छू जाये,
7 किन्तु वह सदा के लिये नष्ट हो जायेगा जैसे स्वयं उसका देहमल नष्ट होगा।
वे लोग जो उसको जानते हैं कहेंगे, ‘वह कहाँ है’
8 वह ऐसे विलुप्त होगा जैसे स्वप्न शीघ्र ही कहीं उड़ जाता है। फिर कभी कोई उसको देख नहीं सकेगा,
वह नष्ट हो जायेगा, उसे रात के स्वप्न की तरह हाँक दिया जायेगा।
9 वे व्यक्ति जिन्होंने उसे देखा था फिर कभी नहीं देखेंगे।
उसका परिवार फिर कभी उसको नहीं देख पायेगा।
10 जो कुछ भी उसने (दुष्ट) गरीबों से लिया था उसकी संताने चुकायेंगी।
उनको अपने ही हाथों से अपना धन लौटाना होगा।
11 जब वह जवान था, उसकी काया मजबूत थी,
किन्तु वह शीघ्र ही मिट्टी हो जायेगी।
12 “दुष्ट के मुख को दुष्टता बड़ी मीठी लगती है,
वह उसको अपनी जीभ के नीचे छुपा लेगा।
13 बुरा व्यक्ति उस बुराई को थामे हुये रहेगा,
उसका दूर हो जाना उसको कभी नहीं भायेगा,
सो वह उसे अपने मुँह में ही थामे रहेगा।
14 किन्तु उसके पेट में उसका भोजन जहर बन जायेगा,
वह उसके भीतर ऐसे बन जायेगा जैसे किसी नाग के विष सा कड़वा जहर।
15 दुष्ट सम्पत्तियों को निगल जाता है किन्तु वह उन्हें बाहर ही उगलेगा।
परमेश्वर दुष्ट के पेट से उनको उगलवायेगा।
16 दुष्ट जन साँपों के विष को चूस लेगा
किन्तु साँपों के विषैले दाँत उसे मार डालेंगे।
17 फिर दुष्ट जन देखने का आनन्द नहीं लेंगे
ऐसी उन नदियों का जो शहद और मलाई लिये बहा करती हैं।
18 दुष्ट को उसका लाभ वापस करने को दबाया जायेगा।
उसको उन वस्तुओं का आनन्द नहीं लेने दिया जायेगा जिनके लिये उसने परिश्रम किया है।
19 क्योंकि उस दुष्ट जन ने दीन जन से उचित व्यवहार नहीं किया।
उसने उनकी परवाह नहीं की और उसने उनकी वस्तुऐं छीन ली थी,
जो घर किसी और ने बनाये थे उसने वे हथियाये थे।
20 “दुष्ट जन कभी भी तृप्त नहीं होता है,
उसका धन उसको नहीं बचा सकता है।
21 जब वह खाता है तो कुछ नहीं छोड़ता है,
सो उसकी सफलता बनी नहीं रहेगी।
22 जब दुष्ट जन के पास भरपूर होगा
तभी दु:खों का पहाड़ उस पर टूटेगा।
23 दुष्ट जन वह सब कुछ खा चुकेगा जिसे वह खाना चाहता है।
परमेश्वर अपना धधकता क्रोध उस पर डालेगा।
उस दुष्ट व्यक्ति पर परमेश्वर दण्ड बरसायेगा।
24 सम्भव है कि वह दुष्ट लोहे की तलवार से बच निकले,
किन्तु कहीं से काँसे का बाण उसको मार गिरायेगा।
25 वह काँसे का बाण उसके शरीर के आर पार होगा और उसकी पीठ भेद कर निकल जायेगा।
उस बाण की चमचमाती हुई नोंक उसके जिगर को भेद जायेगी
और वह भय से आतंकित हो जायेगा।
26 उसके सब खजाने नष्ट हो जायेंगे,
एक ऐसी आग जिसे किसी ने नहीं जलाया उसको नष्ट करेगी,
वह आग उनको जो उसके घर में बचे हैं नष्ट कर डालेगी।
27 स्वर्ग प्रमाणित करेगा कि वह दुष्ट अपराधी है,
यह गवाही धरती उसके विरुद्ध देगी।
28 जो कुछ भी उसके घर में है,
वह परमेश्वर के क्रोध की बाढ़ में बह जायेगा।
29 यह वही है जिसे परमेश्वर दुष्टों के साथ करने की योजना रचता है।
यह वही है जैसा परमेश्वर उन्हें देने की योजना रचता है।”
अय्यूब का उत्तर
21इस पर अय्यूब ने उत्तर देते हुए कहा:
2 “तू कान दे उस पर जो मैं कहता हूँ,
तेरे सुनने को तू चैन बनने दे जो तू मुझे देता है।
3 जब मैं बोलता हूँ तो तू धीरज रख,
फिर जब मैं बोल चुकूँ तब तू मेरी हँसी उड़ा सकता है।
4 “मेरी शिकायत लोगों के विरुद्ध नहीं है,
मैं क्यों सहनशील हूँ इसका एक कारण नहीं है।
5 तू मुझ को देख और तू स्तंभित हो जा,
अपना हाथ अपने मुख पर रख और मुझे देख और स्तब्ध हो।
6 जब मैं सोचता हूँ उन सब को जो कुछ मेरे साथ घटा तो
मुझको डर लगता है और मेरी देह थर थर काँपती है।
7 क्यों बुरे लोगों की उम्र लम्बी होती है?
क्यों वे वृद्ध और सफल होते हैं?
8 बुरे लोग अपनी संतानों को अपने साथ बढ़ते हुए देखते हैं।
बुरे लोग अपनी नाती—पोतों को देखने को जीवित रहा करते हैं।
9 उनके घर सुरक्षित रहते हैं और वे नहीं डरते हैं।
परमेश्वर दुष्टों को सजा देने के लिये अपना दण्ड काम में नहीं लाता है।
10 उनके सांड कभी भी बिना जोड़ा बांधे नहीं रहे,
उनकी गायों के बछेरें होते हैं और उनके गर्भ कभी नहीं गिरते हैं।
11 बुरे लोग बच्चों को बाहर खेलने भेजते हैं मेमनों के जैसे,
उनके बच्चें नाचते हैं चारों ओर।
12 वीणा और बाँसुरी के स्वर पर वे गाते और नाचते हैं।
13 बुरे लोग अपने जीवन भर सफलता का आनन्द लेते हैं।
फिर बिना दु:ख भोगे वे मर जाते हैं और अपनी कब्रों के बीच चले जाते हैं।
14 किन्तु बुरे लोग परमेश्वर से कहा करते है, ‘हमें अकेला छोड़ दे।
और इसकी हमें परवाह नहीं कि
तू हमसे कैसा जीवन जीना चाहता है।’
15 “दुष्ट लोग कहा करते हैं, ‘सर्वशक्तिमान परमेश्वर कौन है?
हमको उसकी सेवा की जरूरत नहीं है।
उसकी प्रार्थना करने का कोई लाभ नहीं।’
16 “दुष्ट जन सोचते है कि उनको अपने ही कारण सफलताऐं मिलती हैं,
किन्तु मैं उनको विचारों को नहीं अपना सकता हूँ।
17 किन्तु क्या प्राय: ऐसा होता है कि दुष्ट जन का प्रकाश बुझ जाया करता है?
कितनी बार दुष्टों को दु:ख घेरा करते हैं?
क्या परमेश्वर उनसे कुपित हुआ करता है, और उन्हें दण्ड देता है?
18 क्या परमेश्वर दुष्ट लोगों को ऐसे उड़ाता है जैसे हवा तिनके को उड़ाती है
और तेज हवायें अन्न का भूसा उड़ा देती हैं?
19 किन्तु तू कहता है: ‘परमेश्वर एक बच्चे को उसके पिता के पापों का दण्ड देता है।’
नहीं, परमेश्वर को चाहिये कि बुरे जन को दण्डित करें। तब वह बुरा व्यक्ति जानेगा कि उसे उसके निज पापों के लिये दण्ड मिल रहा है।
20 तू पापी को उसके अपने दण्ड को दिखा दे,
तब वह सर्वशक्तिशाली परमेश्वर के कोप का अनुभव करेगा।
21 जब बुरे व्यक्ति की आयु के महीने समाप्त हो जाते हैं और वह मर जाता है;
वह उस परिवार की परवाह नहीं करता जिसे वह पीछे छोड़ जाता है।
22 “कोई व्यक्ति परमेश्वर को ज्ञान नहीं दे सकता,
वह ऊँचे पदों के जनों का भी न्याय करता है।
23 एक पूरे और सफल जीवन के जीने के बाद एक व्यक्ति मरता है,
उसने एक सुरक्षित और सुखी जीवन जिया है।
24 उसकी काया को भरपूर भोजन मिला था
अब तक उस की हड्डियाँ स्वस्थ थीं।
25 किन्तु कोई एक और व्यक्ति कठिन जीवन के बाद दु:ख भरे मन से मरता है,
उसने जीवन का कभी कोई रस नहीं चखा।
26 ये दोनो व्यक्ति एक साथ माटी में गड़े सोते हैं,
कीड़े दोनों को एक जैसे ढक लेंगे।
27 “किन्तु मैं जानता हूँ कि तू क्या सोच रहा है,
और मुझको पता है कि तेरे पास मेरा बुरा करने को कुचक्र है।
28 मेरे लिये तू यह कहा करता है कि ‘अब कहाँ है उस महाव्यक्ति का घर?
कहाँ है वह घर जिसमें वह दुष्ट रहता था?’
29 “किन्तु तूने कभी बटोहियों से नहीं पूछा
और उनकी कहानियों को नहीं माना।
30 कि उस दिन जब परमेश्वर कुपित हो कर दण्ड देता है
दुष्ट जन सदा बच जाता है।
31 ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जो उसके मुख पर ही उसके कर्मों की बुराई करे,
उसके बुरे कर्मों का दण्ड कोई व्यक्ति उसे नहीं देता।
32 जब कोई दुष्ट व्यक्ति कब्र में ले जाया जाता है,
तो उसके कब्र के पास एक पहरेदार खड़ा रहता है।
33 उस दुष्ट जन के लिये उस घाटी की मिट्टी मधुर होगी,
उसकी शव—यात्रा में हजारों लोग होंगे।
34 “सो अपने कोरे शब्दों से तू मुझे चैन नहीं दे सकता,
तेरे उत्तर केवल झूठे हैं।”
समीक्षा
अगुए का दृष्टिकोण
अय्यूब के मित्र लगातार उसके विषय में ‘व्यर्थ बातें’ और झूठी बातें करते थे (21:34 एम.एस.जी.)। वे अय्यूब को ‘खाली’ और ‘व्यर्थ’ शब्दों से सांत्वना देने का प्रयत्न कर रहे थे (पद - 34, एम.एस.जी.)।
दूसरी ओर हम देखते हैं कि, अय्यूब अपनी पीड़ा से वास्तविक संघर्ष कर रहे थे जैसे कि विरोधी ने अपने मित्रों का विश्लेषण किया, अय्यूब देखते हैं कि संसार बहुत जटिल है। इस जीवन में बहुत अन्याय है। वह रोते हैं, ‘क्यों दुष्ट जीवित रहते हैं, बड़े होते हैं और सामर्थ में बढ़ते हैं? वे अपने वर्ष समृद्धि में बिताते हैं और शांति से कब्र में उतर् जाते हैं (पद - 7,13)।
कुछ लोग हैं जो परमेश्वर को पूरी तरह से अस्वीकार करते हैं, तब आश्चर्यचकित ना हों। वे उस से कहते हैं: ‘हम से दूर हो! तेरी गति जानने की हम को इच्छा नहीं रहती। सर्वशक्तिमान कौन है कि हम उसकी सेवा करें? हमें उससे विनती करने के द्वारा क्या लाभ होगा? (पद - 14-15) फिर भी वे समृद्धि और शांति का जीवन जीते दिखाई देते हैं।
बाइबल यह कभी नहीं कहती है कि दुष्ट अपने जीवन में न्याय पाएंगे। ऐसा होता भी है, लेकिन दूसरी ओर वे उससे दूर जाते हुए प्रतीत होते हैं। यदि ‘दुष्ट’ अपने वर्ष समृद्धि में बिताए तौभी आप आश्चर्यचकित ना हों। यदि आप निर्दोष को संघर्ष करते हुए देखें तो आश्चर्यचकित ना हों। ऐसा प्रतीत होता है कि परमेश्वर दोनों के ही जीवन में अनुमति देते हैं। (ये ऐसा कहने के लिए नहीं है कि हम अन्याय या निर्दोष के संघर्ष पर संतुष्ट रहें, लेकिन हमें दोनों की ही सामर्थ का विरोध करना है)।
फिर भी, यह जीवन का अंत नहीं है। चीज़ों को सही करने के लिए परमेश्वर के पास सारा अनंतकाल है। अय्यूब — पुराने नियम में सबसे अनोखे तरीके से — हमारे भविष्य की आशा की झलक देखते हैं:
‘मुझे तो निश्चय है कि मेरा छुड़ानेवाला जीवित है, और वह अंत में पृथ्वी पर खड़ा होगा।
और मेरे माँस के नाश हो जाने के बाद भी; मैं अपने शरीर में परमेश्वर को देखूँगा। (19:25-26)
अय्यूब की अंतर्दृष्टि नये नियम के पुनरुत्थान और अनंत जीवन का पूर्वाभास है। एक दैवीय अगुए के पास अनंत दृष्टिकोण होता है, जो मसीही अगुआई को पूरी तरह से अलग दिशा देती है।
कल्पना कीजिए कि, कोई बहुत महत्त्वपूर्ण व्यक्ति आपके घर मुलाकात करने आता है। आप शायद तैयार होने के लिए कई चीज़ों को करते हैं। आप स्वयं तैयार होंगे। आप सुनिश्चित करेंगे कि घर के बाकी लोग भी तैयार रहें और आप सुनिश्चित करेंगे कि घर भी तैयार रहे, साफ - सुथरा और व्यवस्थित रहे।
एक मसीही अगुए के पास अनंत दृष्टिकोण और आशा होती है, कि ‘अंत में वह (मेरा छुड़ानेवाला) पृथ्वी पर खड़ा होगा’ (पद - 25)। अपने आपको तैयार करने में, दूसरों को तैयार करने (सुसमाचार प्रचारक, शिष्यता, पासवान संबंधी ज़िम्मेदारी) और घर तैयार करने (कलीसिया को अधिक मजबूत बनाना, और समाज का परिवर्तन) में ध्यान केंद्रित कीजिए। यह चिंता केवल कलीसिया के अगुवों तक सीमित नहीं है। मसीही अगुए के पास कार्य और समाज के क्षेत्र में ये तीन मूलभूत आयाम होने चाहिएं – जैसे उनके विचारों, उनके निर्णयों और कार्यों में।
इसके अलावा, यह दृष्टिकोण आपकी योजनाओं और उद्देश्य के लिए आपके व्यवहार को परिवर्तित करना चाहिए। जब परिस्थितियाँ लोगों के, संस्थाओं के या व्यवस्थाओं के अन्याय के कारण आपकी आशाओं के अनुसार कार्य नहीं करतीं, तब भी आप इस सच्चाई पर भरोसा कर सकते हैं कि, एक दिन पूर्ण न्याय प्रबल होगा।
प्रार्थना
प्रभु, मैं धन्यवाद करता हूँ कि एक दिन मैं ‘स्वयं परमेश्वर को अपनी आँखों से देखूँगा। ऑह! मैं उस दिन के लिए बहुत तरसता हूँ!’ (पद - 27 एम.एस.जी.)। मुझे इस अनंत दृष्टिकोण के द्वारा हर दिन जीने के लिए सहायता कीजिए। मेरी सहायता कीजिए कि मैं यीशु की तरह और ज़्यादा बनूँ और यीशु की तरह नेतृत्व करूँ।
पिप्पा भी कहते है
मेरे पिता के अंतिम संस्कार के दिन हैन्डेल्स मसाया ने यह गीत गाया था, ‘आई नो दैट माई रिडिमर लीविथे’ (‘मैं जानता हूँ कि मेरा उद्धरकर्ता जीवित है’)। यह बहुत ही सुंदर है और यह विश्वास की महान घोषणा है। इससे बड़ी तसल्ली मिली। हैन्डेल द्वारा अय्यूब को पढ़ना और ऐसे असाधारण गीत को लिखना एक अद्भुत बात है। कई बार अय्यूब को पढ़ने के बावजूद, मुझे हमेशा लगता था कि यह यशायाह से लिया गया है। मुझे लगता है कि मैंने अवश्य ही इसके अनेक कथनों को नहीं पढ़ा होगा। मैं खुश हूँ कि हॅन्डेल ने ऐसा नहीं किया।
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संदर्भ
नोट्स:
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