आदि और अंत
परिचय
एक युवा महिला ने मुझसे ये नीचे दिये गए प्रश्न पूछे: ‘स्वर्ग में कैसा होगा? हमारा स्वर्गीय शरीर कैसा दिखेगा? क्या हम उड़ सकेंगे? क्या हमारा लिंग नहीं होगा? क्या हम इदन के बगीचे को देख पाएंगे? क्या हम परिवार वालों और दोस्तों को पहचान पाएंगे? हमारी दोस्ती किस तरह की होगी? हम क्या करेंगे? क्या वहाँ पर बाइबल अध्ययन और अल्फा होगा? वहाँ की सभा के सदस्य कैसे होंगे?
बाइबल हमारे सभी प्रश्नों का जवाब नहीं देती।
मेरी किताबों की अलमारी में एक किताब है जिसका शीर्षक है, 50 शानदार घटनाएं जो अंत समय को दर्शाती हैं (50 रिमार्केबल इवेंट्स पॉइंटिंग टू द ऐंड। जिसे 1997 में लिखा गया था, ऐसा अनुमान था कि यीशु सन 2000 में वापस आ सकते हैं। यह अंतिम समय के अनुमान लगाने के तरीकों में से एक था जो गलत साबित हुआ। इसलिए टोनी कॅम्पोलो बुद्धिमानी से कहते हैं कि वह ‘योजना समिति’ के बजाय ‘स्वागत करने वाली समिति’ के सदस्य बनना चाहते हैं।
हमें नहीं बताया गया है कि अंत समय कब आएगा, लेकिन हमें कौन और कैसे के बारे में बताया गया है। मुख्य बात है कौन। यीशु कहते हैं, ‘मैं ही...... आदि और अंत हूँ’ (प्रकाशितवाक्य 22:13)। अवश्य ही आदि और अंत बहुत ही अलग नजर आते हैं। फिर भी, आदि और अंत में बहुत सी समानताएं हो सकती हैं।
भजन संहिता 150:1-6
150यहोवा की प्रशंसा करो!
परमेश्वर के मन्दिर में उसका गुणगान करो!
उसकी जो शक्ति स्वर्ग में है, उसके यशगीत गाओ!
2 उन बड़े कामों के लिये परमेश्वर की प्रशंसा करो, जिनको वह करता है!
उसकी गरिमा समूची के लिये उसका गुणगान करो!
3 तुरही फूँकते और नरसिंगे बजाते हुए उसकी स्तुति करो!
उसका गुणगान वीणा और सारंगी बजाते हुए करो!
4 परमेश्वर की स्तुति तम्बूरों और नृत्य से करो!
उसका यश उन पर जो तार से बजाते हैं और बांसुरी बजाते हुए गाओ!
5 तुम परमेश्वर का यश झंकारते झाँझे बजाते हुए गाओ!
उसकी प्रशंसा करो!
6 हे जीवों! यहोवा की स्तुति करो!
यहोवा की प्रशंसा करो!
समीक्षा
आराधना के साथ आदि और अंत
अंतिम समय में परमेश्वर के सेवक, परमेश्वर की आराधना सभा अर्पित करेंगे, वे लोग उनके चेहरे को देखेंगे, उनके माथे परमेश्वर को प्रतिबिंबित करेंगे’ (प्रकाशितवाक्य 22:3, एमएसजी)। परमेश्वर को आमने सामने देखना ही हमारी अनंत आराधना की प्रतिक्रिया होगी।
भजनसंहिता की पुस्तक समाप्ति ‘हाल्लेलुयाह’ से होती है जिसका अर्थ है ‘प्रभु की स्तुती हो’ (भजनसंहिता 150:6ब)। भजनसंहिता की शुरूवात और समाप्ति ‘हाल्लेलुयाह’ (‘प्रभु की स्तुती’, वव 1,6) से होती है। हम सब को आराधना करने के लिए बुलाया गया है: ‘जितने प्राणी हैं सब के सब याह की स्तुति करें!’ (व.6)।
- हर जगह आराधना
ईश्वर के पवित्रस्थान में उसकी स्तुति करो; उसकी सामर्थ्य से भरे हुए आकाशमण्डल में उसी की स्तुति करो! (व. 1ब)।
- हर बात के लिए आराधना
उसके पराक्रम के कामों के कारण उसकी स्तुति करो; उसकी अत्यन्त बड़ाई के अनुसार उसकी स्तुति करो! (व. 2)।
- हर तरह से आराधना
आपके पास जितनी भी चीजें हैं उन सभी से परमेश्वर की आराधना करो, जिसमें वाद्य यंत्र और नृत्य भी शामिल हैं (वव. 3-5, एमएसजी)।
प्रार्थना
प्रभु, आपके महान पराक्रम के लिए और आपकी बड़ाई के कामों के लिए मैं आपकी स्तुती करता हूँ। सारी सृष्टि के सृष्टिकर्ता होने के बावजूद आप मुझ से प्रेम करते हैं इसलिए मैं आपकी स्तुती करता हूँ।
प्रकाशित वाक्य 22:1-21
22इसके पश्चात् उस स्वर्गदूत ने मुझे जीवन देने वाले जल की एक नदी दिखाई। वह नदी स्फटिक की तरह उज्ज्वल थी। वह परमेश्वर और मेमने के सिंहासन से निकलती हुई 2 नगर की गलियों के बीच से होती हुई बह रही थी। नदी के दोनों तटों पर जीवन वृक्ष उगे थे। उन पर हर साल बारह फसलें लगा करतीं थीं। इसके प्रत्येक वृक्ष पर प्रतिमास एक फसल लगती थी तथा इन वृक्षों की पत्तियाँ अनेक जातियों को निरोग करने के लिए थीं।
3 वहाँ किसी प्रकार का कोई अभिशाप नहीं होगा। परमेश्वर और मेमने का सिंहासन वहाँ बना रहेगा। तथा उसके सेवक उसकी उपासना करेंगे 4 तथा उसका नाम उनके माथों पर अंकित रहेगा। 5 वहाँ कभी रात नहीं होगी और न ही उन्हें सूर्य के अथवा दीपक के प्रकाश की कोई आवश्यकता रहेगी। क्योंकि उन पर प्रभु परमेश्वर अपना प्रकाश डालेगा और वे सदा सदा शासन करेंगे।
6 फिर उस स्वर्गदूत ने मुझसे कहा, “ये वचन विश्वास करने योग्य और सत्य हैं। प्रभु ने जो नबियों की आत्माओं का परमेश्वर है, अपने सेवकों को, जो कुछ शीघ्र ही घटने वाला है, उसे जताने के लिए अपना स्वर्गदूत भेजा है। 7 ‘सुनो, मैं शीघ्र ही आ रहा हूँ! धन्य हैं वह जो इस पुस्तक में दिए गए उन वचनों का पालन करते हैं जो भविष्यवाणी हैं।’”
8 मैं यूहन्ना हूँ। मैंने ये बातें सुनी और देखी हैं। जब मैंने ये बातें देखीं सुनीं तो उस स्वर्गदूत के चरणों में गिर कर मैंने उसकी उपासना की जो मुझे ये बातें दिखाया करता था। 9 उसने मुझसे कहा, “सावधान, तू ऐसा मत कर। क्योंकि मैं तो तेरा, तेरे बंधु नबियों का जो इस पुस्तक में लिखे वचनों का पालन करते हैं, एक सह-सेवक हूँ। बस परमेश्वर की ही उपासना कर।”
10 उसने मुझसे फिर कहा, “इस पुस्तक में जो भविष्यवाणियाँ दी गयी हैं, उन्हें छुपा कर मत रख क्योंकि इन बातों के घटित होने का समय निकट ही है। 11 जो बुरा करते चले आ रहे हैं, वे बुरा करते रहें। जो अपवित्र बने हुए हैं, वे अपवित्र ही बने रहें। जो धर्मी हैं, वे धर्मी ही बना रहे। जो पवित्र हैं वे पवित्र बना रहे।”
12 “देखो, मैं शीघ्र ही आ रहा हूँ और अपने साथ तुम्हारे लिए प्रतिफल ला रहा हूँ। जिसने जैसे कर्म किये हैं, मैं उन्हें उसके अनुसार ही दूँगा। 13 मैं ही अल्फा हूँ और मैं ही ओमेगा हूँ। मैं ही पहला हूँ और मैं ही अन्तिम हूँ।” मैं ही आदि और मैं ही अन्त हूँ।
14 “धन्य हैं वह जो अपने वस्त्रों को धो लेते हैं। उन्हें जीवन-वृक्ष के फल खाने का अधिकार होगा। वे द्वार से होकर नगर में प्रवेश करने के अधिकारी होंगे। 15 किन्तु ‘कुत्ते,’ जादू-टोना करने वाले, व्यभिचारी, हत्यारे, मूर्तिपूजक, और प्रत्येक वह जो झूठ पर चलता है और झूठे को प्रेम करता है, बाहर ही पड़े रहेंगे।
16 “स्वयं मुझ यीशु ने तुम लोगों के लिए और कलीसियाओं के लिए, इन बातों की साक्षी देने को अपना स्वर्गदूत भेजा है। मैं दाऊद के परिवार का वंशज हूँ। मैं भोर का दमकता हुआ तारा हूँ।”
17 आत्मा और दुल्हिन कहती है, “आ!” और जो इसे सुनता है, वह भी कहे, “आ!” और जो प्यासा हो वह भी आये और जो चाहे वह भी इस जीवन दायी जल के उपहार को मुक्त भाव से ग्रहण करें।
18 मैं शपथ पूर्वक उन व्यक्तियों के लिए घोषणा कर रहा हूँ जो इस पुस्तक में लिखे भविष्यवाणी के वचनों को सुनते हैं, उनमें से यदि कोई भी उनमें कुछ भी और जोड़ेगा तो इस पुस्तक में लिखे विनाश परमेश्वर उस पर ढायेगा। 19 और यदि नबियों की इस पुस्तक में लिखे वचनों में से कोई कुछ घटायेगा तो परमेश्वर इस पुस्तक में लिखे जीवन-वृक्ष और पवित्र नगरी में से उसका भाग उससे छीन लेगा।
20 यीशु जो इन बातों का साक्षी है, वह कहता है, “हाँ! मैं शीघ्र ही आ रहा हूँ।”
आमीन। हे प्रभु यीशु आ!
21 प्रभु यीशु का अनुग्रह सबके साथ रहे! आमीन।
समीक्षा
यीशु से आदि और अंत
अंत यीशु के बारे में है। यह हमेशा से यीशु के बारे में रहा है। यह हमेशा यीशु के बारे में रहेगा। अब अपना जीवन, अपने विचार, अपनी सेवकाई, सुसमाचार का प्रचार और बाकी की सभी चीजें यीशु पर केन्द्रित करना शुरू कीजिये।
बाइबल का आरंभ यीशु से होता है। जैसा कि हम कल BiOY में देखेंगे, जब हम उत्पत्ति अध्याय 1 देखेंगे, तो सृष्टि की उत्पत्ति यीशु के द्वारा हुई है। ‘आदि में वचन था और वचन परमेश्वर के साथ था और वचन परमेश्वर था...... सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ। (यूहन्ना 1:1,3)।
बाइबल का अंत भी यीशु से होता है: ‘आमीन। हे प्रभु यीशु आ, प्रभु यीशु का अनुग्रह पवित्र लोगों के साथ रहे। आमीन॥’ (प्रकाशितवाक्य 22:20ब-21। वह ‘अल्फा और ओमेगा हैं, पहला और अंतिम, आदि और अंत’ (व. 13)।
इस लेखांश में हम देखते हैं कि अंत समय में दुनिया कैसी होगी। यह भाषा प्रतीकात्मक है, इसलिए यह सटीक उल्लेख नहीं है, लेकिन यह जीवन और आशीष की पूरी तस्वीर है। बाइबल का आरंभ और अंत ‘जीवन के पेड़’ से होता है’ जो कि परमेश्वर के आशीषित जीवन और अपने लोगों के लिए उनकी ‘अच्छी’ योजना का प्रतीक है।
नये स्वर्ग और नई पृथ्वी में, जीवन के जल की नदी होगी’ (व. 1)। यह यहेजकेल 47 में की गई भविष्यवाणी का पूरा होना है, जिसके बारे में यीशु ने यूहन्ना 7:37-39 में (“जीवन के जल की नदी”) के बारे में कहा है। इससे जाति जाति के लोग चंगाई पाएंगे (प्रकाशितवाक्य 22:2)। इसकी कितनी सख्त जरूरत होगी, देशों को और जाति जाति के लोग दोनों को। यह कितना अद्भुत होगा जब ‘संयुक्त राष्ट्र’ एक वास्तविकता हो जाएगा।
‘जीवन का वृक्ष बारह महीने फलता रहेगा’ (व. 2), जैसा आदि में हुआ करता था (जिससे मानव वंचित कर दिया गया था पाप के कारण), यह फिर से सभी के लिए उपलब्ध होगा। अदन के बगीचे का श्राप फिर न होगा (व.3)। कभी-कभी पेड़ (xylos) शब्द का उपयोग क्रूस को दर्शाने के लिए किया गया है (उदा. के लिए प्रेरितों के कार्य 5:30 देखिये)।
अंत में आप परमेश्वर के मुख को देखेंगे। कोई भी व्यक्ति परमेश्वर के मुख को देखकर जीवित नहीं रह सकता (निर्गमन 33:20), लेकिन नये स्वर्ग और नई पृथ्वी में, आप उनके मुख को देखेंगे और उनका नाम आपके माथे पर होगा (प्रकाशितवाक्य 22:4)। ‘और फिर रात न होगी, और उन्हें दीपक और सूर्य के उजियाले का प्रयोजन न होगा, क्योंकि प्रभु परमेश्वर आपको उजियाला देगा’ (व. 5अ), ‘और आप युगानुयुग राज्य करेंगे’ (व. 5ब)।
नये स्वर्ग और नई पृथ्वी में देखने के लिए बहुत कुछ होगा, यीशु ने वायदा किया है कि ‘मैं शीघ्र आने वाला हूँ’ (वव. 7,12,20)।
इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि ‘आत्मा, और दुल्हन (कलीसिया) दोनों कहती हैं, आ!’ और सुनने वाला भी कहें, कि ‘आ; और जो प्यासा हो, वह आए और जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले’ (व. 17)।
यीशु के पास आने के लिए बाइबल एक बहुत बड़ा आमंत्रण है। उनमें आप अपने जीवन का अर्थ और उद्देश्य पाते हैं। इसमें का एक भाग दूसरों को आने का आमंत्रण देना है, ताकि वे जीवन के जल की ताजगी और पूर्णता प्राप्त करें, जिसे यीशु लोगों में उंडेलते हैं जो उनके पास आने वाले हैं।
पवित्र आत्मा और कलीसिया लोगों को बुलाती है उन अद्भुत उपहारों को और पवित्र नगर के आश्चर्यों को प्राप्त करने के लिए जिसे परमेश्वर ने उनके लिए रखा है (जैसा कि वव. 11अ, 15, 19 में है)। वे लोग यीशु के वापस आने के लिए प्रार्थना भी करते हैं – ‘हे प्रभु यीशु आ’ (व. 20)।
प्रार्थना
प्रभु आपको धन्यवाद कि, एक दिन मैं जीवन का जल पीऊँगा जिससे मेरा हृदय तृप्त हो जाएगा। आपको धन्यवाद कि मैं आपका मुख देखूँगा और मैं आपके साथ सदा के लिए राज करूँगा। हे प्रभु यीशु आ!
नहेमायाह 13:1-31
नहेमायाह के अंतिम आदेश
13उस दिन मूसा की पुस्तक का ऊँचे स्वर में पाठ किया गय ताकि सभी लोग उसे सुन लें। मूसा की पुस्तक में उन्हें यह नियम लिखा हुआ मिला: किसी भी अम्मोनी व्यक्ति को और किसी भी मोआबी व्यक्ति को परमेश्वर की सभाओं में सम्मिलित न होने दिया जाये। 2 यह नियम इस लिये लिखा गया था कि वे इस्राएल के लोगों को भोजन या जल नहीं दिया करते थे, तथा वे इस्राएल के लोगों को शाप देने के लिए बालाम को धन दिया करते थे। किन्तु हमारे परमेश्वर ने उस शाप को हमारे लिए वरदान में बदल दिया 3 सो इस्राएल के लोगों ने इस नियम को सुन कर इसका पालन किया और पराये लोगों के वंशजों को इस्राएल से अलग कर दिया।
4-5 किन्तु ऐसा होने से पहले एल्याशीब ने तोबियाह को मंदिर में एक बड़ी सी कोठरी दे दी। एल्याशीब परमेश्वर के मन्दिर के भण्डार घरों का अधिकारी याजक था, तथा एल्याशीब तोबियाह का घनिष्ठ मित्र भी था। पहले उस कोठरी का प्रयोग भेंट में चढ़ाये गये अन्न, सुगन्ध और मन्दिर के बर्तनों तथा अन्य वस्तुओं के रखने के लिये किया जाता था। उस कोठरी में लेवियों, गायकों और द्वारपालों के लिये अन्न के दसवें भाग, नयी दाखमधु और तेल भी रखा करते थे। याजकों को दिये गये उपहार भी उस कोठरी में रखे जाते थे। किन्तु एल्याशीब ने उस कोठरी को तोबियाह को दे दिया था।
6 जिस समय यह सब कुछ हुआ था, उस समय मैं यरूशलेम में नहीं था। मैं बाबेल के राजा के पास वापस गया हुआ था। जब बाबेल के राजा अर्तक्षत्र के शासन का बत्तीसवाँ साल था, तब मैं बाबेल गया था। बाद में मैंने राजा से यरूशलेम वापस लौट जाने की अनुमति माँगी 7 और इस तरह मैं वापस यरूशलेम लौट आया। यरूशलेम में एल्याशीब के इस दुखद करतब के बारे में मैंने सुना कि एल्याशीब ने हमारे परमेशवर के मन्दिर के दालान की एक कोठरी तोबियाह को दे दी है। 8 एलयाशीब ने जो किया था, उससे मैं बहुत क्रोधित था। सो मैंने तोबियाह की वस्तुएँ उस कोठरी से बाहर निकाल फेंकीं। 9 उन कोठरियों को स्वच्छ और पवित्र बनाने के लिये मैंने आदेश दिये और फिर उन कोठरियों में मैंने मंदिर के पात्र तथा अन्य वस्तुएँ भेंट में चढ़ाया हुआ अन्न और सुगन्धित द्रव्य फिर से वापस रखवा दिये।
10 मैंने यह भी सुना कि लोगों ने लेवियों को उनका हिस्सा नहीं दिया है जिससे लेवीवंशी औऱ गायक अपने खेतों में काम करने के लिये वापस चले गये हैं। 11 सो मैंने उन अधिकारियों से कहा कि वे गलत हैं। मैंने उन से पूछा, “तुमने परमेश्वर के मन्दिर की देखभाल क्यों नहीं की?” मैंने सभी लेवीवंशियों को इकट्ठा किया और मन्दिर में उनके स्थानों और उनके कामों पर वापस लौट आने को कहा। 12 इसके बाद यहूदा का हर कोई व्यक्ति उनके दसवें हिस्से का अन्न, नयी दाखमधु और तेल मन्दिर में लाने लगा। उन वस्तुओं को भण्डार गृहों में रख दिया जाता था।
13 मैंने इन पुरुषों को भण्डार गृहों का कोठियारी नियुक्त किया: याजक, शेलेम्याह, विद्वान सदोक तथा पादायाह नाम का एक लेवी। साथ ही मैंने पत्तन्याह के पोते और जक्कूर के पुत्र हानान को उनका सहायक नियुक्त कर दिया। मैं जानता था कि उन व्यक्तियों का विश्वास किया जा सकता था। अपने से सम्बन्धित लोगों को सामान देना, उनका काम था।
14 हे परमेश्वर, मेरे किये कामों के लिये तू मुझे याद रख और अपने परमेश्वर के मन्दिर तथा उसके सेवा कार्यों के लिये विश्वास के साथ मैंने जो कुछ किया है, उस सब कुछ को तू मत भुलाना।
15 उन्हीं दिनों यहूदा में मैंने देखा कि लोग सब्त के दिन भी काम करते हैं। मैंने देखा कि लोग दाखमधु बनाने कि लिए अँगूरों का रस निकाल रहे हैं। मैंने लोगों को अनाज लाते और उसे गधों पर लादते देखा। मैंने लोगों को नगर में अँगूर, अंजीर तथा हर तरह की वस्तुएँ ले कर आते हुए देखा। वे इन सब वस्तुओं को सब्त के दिन यरूशलेम में ला रहे थे। सो इसके लिए मैंने उन्हें चेतावनी दी। मैंने उनसे कह दिया कि उन्हें सब्त के दिन खाने की वस्तुएँ कदापि नहीं बेचनी चाहिए।
16 यरूशलेम में कुछ सीरी नगर के लोग भी रहा करते थे। वे लोग मछली और दूसरी तरह की अन्य वस्तुएँ यरूशलेम में लाया करते और उन्हें सब्त के दिन बेचा करते और यहूदी उन वस्तुओं को खरीदा करते थे। 17 मैंने यहूदा के महत्वपूर्ण लोगों से कहा, कि वे ठीक नहीं कर रहे हैं। उन महत्वपूर्ण लोगों से मैंने कहा, “तुम यह बहुत बुरा काम कर रहे हो। तुम सब्त के दिन को भ्रष्ट कर रहे हो। तुम सब्त के दिन को एक आम दिन जैसा बनाये डाल रहे हो। 18 तुम्हें यह ज्ञान है कि तुम्हारे पूर्वजों ने ऐसे ही काम किये थे। इसलिए हमारे परमेश्वर ने हम पर औऱ हमारे नगर पर विपत्तियाँ भेजी थीं और विनाश ढाया था। अब तुम लोग तो वैसे काम और भी अधिक कर रहे हो, जिससे इस्राएल पर वैसी ही बुरी बातें और अधिक घटेंगी क्योंकि तुम सब्त के दिन को बर्बाद कर रहे हो और इसे ऐसा बनाये डाल रहे हो जैसे यह कोई महत्वपूर्ण दिन ही नहीं है।”
19 सो हर शुक्रवार की शाम को साँझ होने से पहले ही मैंने यह किया कि द्वारपालों को आज्ञा देकर यरूशलेम के द्वार बंद करवा कर उन पर ताले डलवा दिये। मैंने यह आज्ञा भी दे दी कि जब तक सब्त का दिन पूरा न हो जाये द्वार न खोले जायें। कुछ अपने ही लोग मैंने द्वारों पर नियुक्त कर दिये। उन लोगों को यह आदेश दे दिया गया था कि सब्त के दिन यरूशलेम में कोई भी माल असबाब न आने पाये इसे सुनिश्चित कर लें।
20 एक आध बार तो व्यापारियों और सौदागरों को यरूशलेम से बाहर ही रात गुजारनी पड़ी। 21 किन्तु मैंने उन व्यापारियों और सौदागरों को चेतावनी दे दी। मैंने उनसे कहा, “परकोटे की दीवार के आगे न ठहरा करो और यदि तुम फिर ऐसा करोगे तो मैं तुम्हें बन्दी बना लूँगा।” सो उस दिन के बाद से सब्त के दिन अपना सामान बेचने के लिए वे फिर कभी नहीं आये।
22 फिर मैंने लेवीवंशियों को आदेश दिया कि वे स्वयं को पवित्र करें। ऐसा कर चुकने के बाद ही उन्हें द्वारों के पहरे पर जाना था। यह इसलिये किया गया कि सब्त के दिन को एक पवित्र दिन के रुप में रखा गया है, इसे सुनिश्चित कर लिया जाये।
हे परमेश्वर! इन कामों को करने के लिए तू मुझे याद रख। मेरे प्रति दयालु हो और मुझ पर अपना महान प्रेम प्रकट कर!
23 उन्हीं दिनों मैंने यह भी देखा कि कुछ यहूदी पुरुषों ने आशदोद, अम्मोन और मोआब प्रदेशों की स्त्रियों से विवाह किया हुआ है, 24 और उन विवाहों से उत्पन्न हुए आधे बच्चे तो यहूदी भाषा को बोलना तक नहीं जानते हैं। वे बच्चे अश्दौद, अम्मोन और मोआब की बोली बोलते थे। 25 सो मैंने उन लोगों से कहा कि वे गलती पर हैं। उन पर परमेश्वर का कहर बरसा हो। कुछ लोगों पर तो मैं चोट ही कर बैठा और मैंने उनके बाल उखाड़ लिये। परमेश्वर के नाम पर एक प्रतिज्ञा करने के लिए मैंने उन पर दबाव डाला। मैंने उनसे कहा, “उन पराये लोगों के पुत्रों के साथ तुम्हें अपनी पुत्रियों को ब्याह नहीं करना है और उन पराये लोगों की पुत्रियों को भी तुम्हें अपने पुत्रों से ब्याह नहीं करने देना है। उन लोगों की पुत्रियों के साथ तुम्हें ब्याह नहीं करना है। 26 तुम जानते हो कि सुलैमान से इसी प्रकार के विवाहों ने पाप करवाया था। तुम जानते हो कि किसी भी राष्ट्र में सुलैमान जैसा महान कोई राजा नहीं हुआ। सुलैमान को परमेश्वर प्रेम करता था और परमेश्वर ने ही सुलैमान को समूचे इस्राएल का राजा बनाया था। किन्तु इतना होने पर भी विजातीय पत्नियों के कारण सुलैमान तक को पाप करने पड़े 27 और अब क्या, हम तुम्हारी सुनें और वैसा ही भयानक पाप करें और विजाति औरतों के साथ विवाह करके अपने परमेश्वर के प्रति सच्चे नहीं रहें।”
28 योयादा का एक पुत्र होरोन के सम्बल्लत का दामाद था। योयादा महायाजक एल्याशीब का पुत्र था। सो मैंने योयादा के उस पुत्र पर दबाव डाला कि वह मेरे पास से भाग जाये।
29 हे मेरे परमेश्वर! उन्हें याद रख क्योंकि उन्होंने याजकपन को भ्रष्ट किया था। उन्होंने याजकनपन को ऐसा बना दिया था जैसे उसका कोई महत्व ही न हो। तूने याजकों और लेवियों के साथ जो वाचा की थी, उन्होंने उसका पालन नहीं किया। 30 सो मैंने हर किसी बाहरी वस्तु से याजकों और लेवियों को पवित्र एवं स्वच्छ बना दिया है तथा मैंने प्रत्येक पुरुष को उसके अपने कर्तव्य और दायित्व भी सौंपे हैं। 31 मैंने लकड़ी के उपहारों और एक निश्चित समय पर पहले फलों को लाने सम्बन्धी योजनाएँ भी बना दी हैं।
हे मेरे परमेश्वर! इन अच्छे कामों के लिये तू मुझे याद रख।
समीक्षा
प्रेम से आदि और अंत
33\. संपूर्ण बाइबल की तरह नहेम्याह की पुस्तक की शुरूवात और समाप्ति प्रेम से होती है। नहेम्याह प्रार्थना से शुरू करता है कि, ‘हे स्वर्ग के परमेश्वर यहोवा, हे महान और भययोग्य ईश्वर! तू जो अपने प्रेम रखने वाले और आज्ञा मानने वाले के विष्य अपनी वाचा पालता है......’ (व. 1:5)।
34\. जब नहेम्याह की पुस्तक समाप्ति की ओर आती है, वह प्रार्थना करता है कि, ‘हे मेरे परमेश्वर! मेरे हित के लिये यह भी स्मरण रख और अपनी बड़ी करुणा के अनुसार मुझ पर तरस खा’ (13:22)।
35\. इस आखिरी अध्याय में, नहेम्याह के अंतिम शोधना को पढ़ते हैं। एक अच्छा अगुवा होने के नाते वह उन लोगों को चुनने का निर्णय लेता है जो ‘विश्वासयोग्य’ (व.13) और ‘भरोसा करने लायक’ (एमपी) हैं – ‘जो लोग ईमानदारी और कठिन परिश्रम’ के लिए जाने जाते थे (एमएसजी)। जॉयस मेयर लिखती हैं, ‘क्या आप जानते हैं कि परमेश्वर हमारी विश्वासयोग्यता की परीक्षा कैसे लेते हैं? वह कुछ समय के लिए हमें एक काम देते हैं कि हम वह काम करना चाहते हैं या नहीं, कुछ ऐसा काम जिसमे कोई मजा या रोमांच नहीं होता, कुछ ऐसा काम जिसमें हमें थोड़े समय के लिए किसी के अधिकार के अधीन रहना पड़ता है और वह हमारे दिल में कहेंगे, “बस विश्वासयोग्य बने रहो।”
“विश्वासयोग्यता यह नहीं है जिसे हम दिन प्रति दिन दिखाएं; इसे दिन प्रति दिन अच्छे व्यवहार और शानदार भावना के साथ प्रदर्शित करना होगा। परमेश्वर इस तरह की विश्वासयोग्यता का प्रतिफल देते हैं। लूका 16:12 हमें बताता है कि यदि हम दूसरों की चीजों के प्रति विश्वासयोग्य बने रहें तो परमेश्वर हमें खुद की चीजें देंगे। यदि विश्वासयोग्यता के क्षेत्र में आपकी परीक्षा ली जा रही है, तो विश्वासयोग्य और भरोसा किये जा सकने वाले व्यक्ति के रूप में स्थिर बने रहें। आपने जो किया उसके लिए आपको खुशी होगी।’
नहेम्याह ने बहुत कुछ हासिल किया लेकिन वह लोगों के हृदय को नहीं बदल सका। उन्होंने वायदा किया था कि वे पूरे दिल से प्रभु को समर्पित रहेंगे, लेकिन वे ऐसा करने में असफल रहे (नहेम्याह 10:30 की तुलना 10:23 से; 10:31 की तुलना 10:16 से; 10:39 की तुलना 13:11 से कीजिये)। मनुष्य के पाप करने की समस्या अब भी बनी हुई थी।
नहेम्याह उन्हें चेतावनी देता है (13:15,21)। वह उन्हें डांटता है (वव. 17,25)। वह चाहता था कि वे शुद्ध रहें (वव. 22,30), लेकिन यह व्यर्थ है। नहेम्याह का निराश होना हमें यीशु की ओर इशारा करता है, केवल यीशु ही मनुष्य के हृदय की समस्या से और हमारे पाप से निपट सकते हैं।
बारबार, नहेम्याह प्रार्थना करता है कि, ‘मुझे स्मरण रख’ (वव. 14,22,31)। वह कृपा पाने के लिए स्मरण दिलाना चाहता है क्योंकि उसने विश्वासपूर्वक परमेश्वर की सेवा की थी। लेकिन वह तुरंत परमेश्वर की दया और प्रेम पर विश्वास करने लगता है: ‘हे मेरे परमेश्वर! मेरे हित के लिये यह भी स्मरण रख और अपनी बड़ी करुणा के अनुसार मुझ पर तरस खा’ (व. 22)।
हमारी तरह नहेम्याह को भी परमेश्वर के प्रेम और दया की जरूरत थी, जिसे हमारी खातिर यीशु की मृत्यु के द्वारा असाधारण रूप से दर्शाया गया। जैसाकि पौलुस ने रोमियों के लिए लिखा था, ‘परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रकट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा’ (रोमियों 5:8)।
प्रार्थना
प्रभु, आपको धन्यवाद कि हम नये स्वर्ग में सदा के लिए आपके महान प्रेम का आनंद लेंगे। आपको धन्यवाद कि यीशु के मारे जाने और फिर से जी उठने के द्वारा मैं इस वक्त आपके प्रेम हूँ जिसे पवित्र आत्मा के द्वारा मेरे हृदय में उंडेला गया है। प्रभु यीशु, सदा के लिए आपके नाम को स्तुती देता हूँ!
पिप्पा भी कहते है
भजनसंहिता 150:1-6
यह भजन बारह बार ‘स्तुती’ कहता है। परमेश्वर ने हमारे लिए जो कुछ भी किया है उसके लिए उनकी स्तुती करते हुए इस वर्ष की समाप्ति करना अच्छा है।
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संदर्भ
जॉयस मेयर, द एवरीडे लाइफ बाइबल, (फेथवर्ड्स, 2013) प. 750
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।