शत्रुतापूर्ण माहौल में कैसे रहा जाए
परिचय
इल्सामी उग्रवाद और संघर्ष के कारण लाखों मसीही लोगों ने इराक और सीरिया से पलायन किया है। मसीही लोगों को उग्रवादी सताव और सामुहिक फांसी का सामना करना पड़ता है। दाईश ने मसीहत को पहले दर्जे का शत्रु घोषित किया है।
लाखों मसीही जन ऐसे देशों में रहते हैं जहाँ उन्हें अपने विश्वास के कारण सताया जाता है। कई सरकारें चर्च के विकास को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही हैं। बल्कि पारंपरिक इसाई देशों में भी जोशपूर्ण मसीहत के प्रति शत्रुता बढ़ रही है। परमेश्वर के लोगों के लिए शत्रुता कोई नई बात नहीं है। अक्सर लोगों को सफलता, विकास और बड़ी संख्याओं से डराया जाता है।
शायद आप भी अपने विश्वास के कारण अपने कार्य के स्थान में या बल्कि अपने परिवार में शत्रुता का सामना कर रहे होंगे। आज का लेखांश शत्रुपूर्ण वातावरण में जीने की सच्चाई को न केवल प्रदर्शित करता है बल्कि वो यह भी बताता है कि हम कैसे जीवित रह सकते हैं और ऐसी शत्रुता के बीच कैसे उन्नति कर सकते हैं।
भजन संहिता 19:1-6
संगीत निर्देशक को दाऊद का एक पद।
19अम्बर परमेश्वर की महिमा बखानतें हैं,
और आकाश परमेश्वर की उत्तम रचनाओं का प्रदर्शन करते हैं।
2 हर नया दिन उसकी नयी कथा कहता है,
और हर रात परमेश्वर की नयी—नयी शक्तियों को प्रकट करता हैं।
3 न तो कोई बोली है, और न तो कोई भाषा,
जहाँ उसका शब्द नहीं सुनाई पड़ता।
4 उसकी “वाणी” भूमण्डल में व्यापती है
और उसके “शब्द” धरती के छोर तक पहुँचते हैं।
उनमें उसने सूर्य के लिये एक घर सा तैयार किया है।
5 सूर्य प्रफुल्ल हुए दुल्हे सा अपने शयनकक्षा से निकलता है।
सूर्य अपनी राह पर आकाश को पार करने निकल पड़ता है,
जैसे कोई खिलाड़ी अपनी दौड़ पूरी करने को तत्पर हो।
6 अम्बर के एक छोर से सूर्य चल पड़ता है
और उस पार पहुँचने को, वह सारी राह दौड़ता ही रहता है।
ऐसी कोई वस्तु नहीं जो अपने को उसकी गर्मी से छुपा ले। यहोवा के उपदेश भी ऐसे ही होते है।
समीक्षा
परमेश्वर के प्रकाशन का अध्ययन करें
परमेश्वर ने सृष्टि के द्वारा खुद को पूरी दुनिया पर प्रगट किया है। दाऊद कहते हैं कि जब आप सुष्टि की ओर देखते हैं तो यह स्पष्ट हो जाता है कि परमेश्वर हैं: 'आकाश ईश्वर की महिमा का वर्णन कर रहा है; और आकशमण्डल उसकी हस्तकला को प्रगट कर रहा है। दिन से दिन बातें करता है, और रात को रात ज्ञान सिखाती है' (पद - 1-2)।
फ्रांसिस कोलिन, मानव जीन समूह परियोजना के प्रमुख, ने 2000 से भी ज़्यादा वैज्ञानिकों के दल की अगुआई की मानव जीन समूह में तीन बिलियन अक्षरों को निर्धारित करने के लिए एक साथ मिलकर काम किया था – हमारी खुद की डी.एन.ए. निर्देशिका पुस्तक। उन्होंने कहा कि, 'मैं नहीं देख सकता कि खुद प्रकृति ने इसे कैसे बनाया होगा। केवल अलौकिक शक्ति ही ऐसा कर सकती है जो अंतरिक्ष और समय से परे है।'
सृष्टि में परमेश्वर का प्रकटीकरण हर एक के लिए मौजूद है। इससे कोई भी छूटा नहीं है। 'न तो कोई बोली है और न कोई भाषा जहाँ उनका शब्द सुनाई नहीं देता है। उनका स्वर सारी पृथ्वी पर गूंज गया है, और उनके वचन जगत की छोर तक पहुंच गए हैं। उन में उसने सूर्य के लिये एक मण्डप खड़ा किया है।' (पद - 3-4)।
जब हम दुनिया को देखते हैं तो हमें परमेश्वर के पैरों के निशान दिखाई देते हैं – 'उसके अनदेखे गुण, अर्थात उस की सनातन सामर्थ, परमेश्वरत्व जगत की सृष्टि के समय से ही उनके कामों के द्वारा देखने में आते है।' (रोमियों 1:20)। फिर भी परमेश्वर ने खुद को सारे जगत पर प्रगट किया है, इनमें से ज़्यादातर उनके बैरी बने हुए हैं।
परमेश्वर की रचना का अध्ययन करने के लिए समय निकालिये और उन्हें धन्यवाद दीजिये और उन्होंने जो चीज़ें बनाई हैं उनकी सुंदरता का आनंद लीजिये।
प्रार्थना
प्रभु, आपका धन्यवाद कि आप सृष्टि के द्वारा हर दिन और हर रात बातें करते हैं, और ऐसी कोई भी बोली या भाषा नहीं है जहाँ आपकी आवाज़ सुनाई नहीं देती।
मत्ती 26:1-30
यहूदी नेताओं द्वारा यीशु की हत्या का षड़यंत्र
26इन सब बातों के कह चुकने के बाद यीशु अपने शिष्यों से बोला, 2 “तुम लोग जानते हो कि दो दिन बाद फसह पर्व है। और मनुष्य का पुत्र शत्रुओं के हाथों क्रूस पर चढ़ाये जाने के लिए पकड़वाया जाने वाला है।”
3 तब प्रमुख याजक और बुज़ुर्ग यहूदी नेता कैफ़ा नाम के प्रमुख याजक के भवन के आँगन में इकट्ठे हुए। 4 और उन्होंने किसी तरकीब से यीशु को पकड़ने और मार डालने की योजना बनायी। 5 फिर भी वे कह रहे थे, “हमें यह पर्व के दिनों नहीं करना चाहिये नहीं तो हो सकता है लोग कोई दंगा फ़साद करें।”
यीशु पर इत्र का छिड़काव
6 यीशु जब बैतनिय्याह में शमौन कोढ़ी के घर पर था 7 तभी एक स्त्री सफेद चिकने, स्फटिक के पात्र में बहुत कीमती इत्र भर कर लायी और उसे उसके सिर पर उँडेल दिया। उस समय वह पटरे पर झुका बैठा था।
8 जब उसके शिष्यों ने यह देखा तो वे क्रोध में भर कर बोले, “इत्र की ऐसी बर्बादी क्यों की गयी? 9 यह इत्र अच्छे दामों में बेचा जा सकता था और फिर उस धन को दीन दुखियों में बाँटा जा सकता था।”
10 यीशु जान गया कि वे क्या कह रहे हैं। सो उनसे बोल, “तुम इस स्त्री को क्यों तंग कर रहे हो? उसने तो मेरे लिए एक सुन्दर काम किया है 11 क्योंकि दीन दुःखी तो सदा तुम्हारे पास रहेंगे पर मैं तुम्हारे साथ सदा नहीं रहूँगा। 12 उसने मेरे शरीर पर यह सुगंधित इत्र छिड़क कर मेरे गाड़े जाने की तैयारी की है। 13 मैं तुमसे सच कहता हूँ समस्त संसार में जहाँ कहीं भी सुसमाचार का प्रचार-प्रसार किया जायेगा, वहीं इसकी याद में, जो कुछ इसने किया है, उसकी चर्चा होगी।”
यहूदा यीशु से शत्रुता ठानता है
14 तब यहूदा इस्करियोती जो उसके बारह शिष्यों में से एक था, प्रधान याजकों के पास गया और उनसे बोला, 15 “यदि मैं यीशु को तुम्हें पकड़वा दूँ तो तुम लोग मुझे क्या दोगे?” तब उन्होंने यहूदा को चाँदी के तीस सिक्के देने की इच्छा जाहिर की। 16 उसी समय से यहूदा यीशु को धोखे से पकड़वाने की ताक में रहने लगा।
यीशु का अपने शिष्यों के साथ फ़सह भोज
17 बिना ख़मीर की रोटी के उत्सव के पहले दिन यीशु के शिष्यों ने पास आकर पूछा, “तू क्या चाहता है कि हम तेरे खाने के लिये फ़सह भोज की तैयारी कहाँ जाकर करें?”
18 उसने कहा, “गाँव में उस व्यक्ति के पास जाओ और उससे कहो, कि गुरु ने कहा है, ‘मेरी निश्चित घड़ी निकट है, मैं तेरे घर अपने शिष्यों के साथ फ़सह पर्व मनाने वाला हूँ।’” 19 फिर शिष्यों ने वैसा ही किया जैसा यीशु ने बताया था और फ़सह पर्व की तैयारी की।
20 दिन ढले यीशु अपने बारह शिष्यों के साथ पटरे पर झुका बैठा था। 21 तभी उनके भोजन करते वह बोला, “मैं सच कहता हूँ, तुममें से एक मुझे धोखे से पकड़वायेगा।”
22 वे बहुत दुखी हुए और उनमें से प्रत्येक उससे पूछने लगा, “प्रभु, वह मैं तो नहीं हूँ! बता क्या मैं हूँ?”
23 तब यीशु ने उत्तर दिया, “वही जो मेरे साथ एक थाली में खाता है मुझे धोखे से पकड़वायेगा। 24 मनुष्य का पुत्र तो जायेगा ही, जैसा कि उसके बारे में शास्त्र में लिखा है। पर उस व्यक्ति को धिक्कार है जिस व्यक्ति के द्वारा मनुष्य का पुत्र पकड़वाया जा रहा है। उस व्यक्ति के लिये कितना अच्छा होता कि उसका जन्म ही न हुआ होता।”
25 तब उसे धोखे से पकड़वानेवाला यहूदा बोल उठा, “हे रब्बी, वह मैं नहीं हूँ। क्या मैं हूँ?”
यीशु ने उससे कहा, “हाँ, ऐसा ही है जैसा तूने कहा है।”
प्रभु का भोज
26 जब वे खाना खा ही रहे थे, यीशु ने रोटी ली, उसे आशीश दी और फिर तोड़ा। फिर उसे शिष्यों को देते हुए वह बोला, “लो, इसे खाओ, यह मेरी देह है।”
27 फिर उसने प्याला उठाया और धन्यवाद देने के बाद उसे उन्हें देते हुए कहा, “तुम सब इसे थोड़ा थोड़ा पिओ। 28 क्योंकि यह मेरा लहू है जो एक नये वाचा की स्थापना करता है। यह बहुत लोगों के लिये बहाया जा रहा है। ताकि उनके पापों को क्षमा करना सम्भव हो सके। 29 मैं तुमसे कहता हूँ कि मैं उस दिन तक दाखरस को नहीं चखुँगा जब तक अपने परम पिता के राज्य में तुम्हारे साथ नया दाखरस न पी लूँ।”
30 फिर वे फ़सह का भजन गाकर जैतून पर्वत पर चले गये।
समीक्षा
परमेश्वर के समाधान को समझें
क्या कभी आप पर अपने दोस्त द्वारा गलत दोष लगाया गया है या आपको धोखा दिया गया है? क्या कभी लोगों ने आपके विरूद्ध युक्ति की हैं? या क्या कभी आपने व्यक्तिगत रूप से शत्रुता का अनुभव किया है? यीशु ने यह सभी अनुभव किया था।
परमेश्वर ने खुद को इस सृष्टि में प्रगट किया। फिर भी, उनका सर्वश्रेष्ठ प्रगटीकरण उनके पुत्र यीशु मसीह के रूप में हुआ है।
परमेश्वर स्वयं इस शत्रुपूर्ण संसार का हिस्सा बनने के लिए, और इसके बारे में कुछ करने के लिए आए। इस लेखांश में हम परमेश्वर के समाधान की एक झलक देखते हैं, जिसे उन्होंने अपने पुत्र यीशु मसीह के रूप में आने और हमारे लिए प्राण देने के द्वारा पूरा किया है। फिर भी संसार यीशु का शत्रु था।
- युक्ति करना
हमें यीशु और आज की मसीहत के प्रति संसार की शत्रुता देखकर आश्चर्य नहीं होना चाहिये। यीशु जानते थे कि उन्हें, 'पकड़वाया जाएगा और क्रूस पर चढ़ाया जाएगा' (पद - 2)। महायाजक और वृद्ध लोग 'आपस में विचार करने लगे कि यीशु को छल से पकड़कर मार डालें' (पद - 4)।
यीशु बारह शिष्यों से कहते हैं, 'मैं तुम से सच कहता हूँ, कि तुम में से एक मुझे पकड़वाएगा' (पद - 21)।
- दोष लगाना
जब एक स्त्री 'संगमरमर के पात्र में बहुमूल्य इत्र लेकर यीशु के पास आई, और जब वह भोजन करने बैठा था, तो उसके सिर पर उण्डेल दिया' (पद - 7), 'तब यह देखकर, उसके चेले रिसयाए और कहने लगे, इस का क्यों सत्यनाश किया गया?' (पद - 8)।
इस घटना के पीछे कुछ गहरी भावना है। यीशु को हमारे लिये दिया गया। इसकी कीमत हमारी कल्पना से भी परे है और उनकी मृत्यु बिल्कुल करीब थी। कीमती इत्र का पात्र केवल एक बर्तन था फिर भी इसे बेकार कर दिया ऐसा कहकर शिष्य आपस में बात का बतंगड़ बना रहे थे।
ज़्यादातर लोग आपके सामाजिक कार्यों को समझते हैं (उदाहरण के लिए, गरीबी के लिए प्रतिक्रिया के रूप में) लेकिन यीशु के लिए आपकी आराधना और उससे संबंधित चीज़ों को समझना उनके लिए कठिन है। वे इसे व्यर्थ समझते हैं और सोचते हैं कि आपके समय और धन का इससे बेहतर उपयोग हो सकता है (पद - 9), लेकिन यीशु इन चीज़ों को अलग तरह से देखते हैं: 'उस ने मेरे साथ भलाई की है' (पद - 10)। उसने यीशु के लिए असाधारण प्रेम दर्शाया।
- विश्वासघात (धोखा)
लोग धन के लिए क्या नहीं करते! यहूदा इस अवसर की ताक में था कि वह 'चांदी के तीस सिक्कों' के लिए यीशु को कब पकड़वाए (पद - 15)। इसकी कल्पना बेहद मुश्किल है कि यीशु को कितना दु:ख पहुँचा होगा, क्योंकि यहूदा उनके सबसे करीबी 'दोस्तों', उनके आंतरिक चक्र, और चुने गए बारहों चेलों में से एक था। वह जानते थे कि, 'तुम में से एक मुझे पकड़वाएगा' (पद - 21)।
फिर भी यीशु ने अपने असाधारण प्रेम में, उन्हें तिरस्कृत करने के बजाय, उनके लिए अपनी जान दे दी। साथ में भोजन करते समय, वह अपनी मृत्यु का अर्थ समझाने लगे। वह रोटी तोड़ने और दाखरस पीने के द्वारा समझाते हैं कि 'यह वाचा का मेरा वह लहू है, जो बहुतों के लिये पापों की क्षमा के निमित्त बहाया जाता है' (पद - 28)। शत्रुपूर्ण संसार के लिए यीशु का उत्तर था कि बैरी दुनिया उन्हें क्रूस पर चढ़ाएगी ताकि क्षमा और छुटकारा संभव हो सके।
जब भी आप प्रभु भोज में भाग लेते हैं, तब यह आपको यीशु के बैरी संसार की और उसी संसार के लिए यीशु के प्रेम की याद दिलाता है।
प्रार्थना
प्रभु, इस शत्रुपूर्ण वातावरण में जीने का असाधारण उदाहरण बताने के लिए आपका धन्यवाद। आपका धन्यवाद कि आपकी मृत्यु के कारण क्षमा और छुटकारा पाना संभव हुआ है।
निर्गमन 1:1-3:22
मिस्र में याकूब का परिवार
1याकूब (इस्राएल) ने अपने पुत्रों के साथ मिस्र की यात्रा की थी, और हर एक पुत्र के साथ उसका अपना परिवार था। इस्राएल के पुत्रों के नाम हैं: 2 रूबेन, शिमोन, लेवी, यहूदा, 3 इस्साकर, जबूलून, बिन्यामीन, 4 दान, नप्ताली, गाद, आशेर। 5 याकूब के अपने वंश में सत्तर लोग थे। उसके बारह पुत्रों में एक यूसुफ पहले से ही मिस्र में था।
6 बाद में यूसुफ उसके भाई और उसकी पीढ़ी के सभी लोग मर गए। 7 किन्तु इस्राएल के लोगों की बहुत सन्तानें थीं, और उनकी संख्या बढ़ती ही गई। ये लोग शक्तिशाली हो गए और इन्हीं लोगों से मिस्र भर गया था।
इस्राएल के लोगों को कष्ट
8 तब एक नया राजा मिस्र पर शासन करने लगा। यह व्यक्ति यूसुफ को नहीं जानता था। 9 इस राजा ने अपने लोगों से कहा, “इस्राएल के लोगों को देखो, इनकी संख्या अत्याधिक है, और हम लोगों से अधिक शक्तिशाली है। 10 हम लोगों को निश्चय ही इनके विरुद्ध योजना बनानी चाहिए। यदि हम लोग ऐसा नहीं करते तो हो सकता है, कि कोई युद्ध छिड़े और इस्राएल के लोग हमारे शत्रुओं का साथ देने लगें। तब वे हम लोगों को हरा सकते हैं और हम लोगों के हाथों से निकल सकते हैं।”
11 मिस्र के लोग इस्राएल के लोगों का जीवन कठिन बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने इस्राएल के लोगों पर दास—स्वामी नियुक्त किए। उन स्वामियों ने फ़िरौन के लिए पितोम और रामसेस नगरों को बनाने के लिए इस्राएली लोगों को विवश किया। उन्होंने इन नगरों में अन्न तथा अन्य चीज़ें इकट्ठी कीं।
12 मिस्री लोगों ने इस्राएल के लोगों को कठिन से कठिन काम करने को विवश किया। किन्तु जितना अधिक काम करने के लिए इस्राएली लोगों को विवश किया गया उनकी संख्या उतनी ही बढ़ती चली गई और मिस्री लोग इस्राएली लोगों से अधिकाधिक भयभीत होते गए। 13 इसलिए मिस्र के लोगों ने इस्राएली लोगों को और भी अधिक कठिन काम करने को विवश किया।
14 मिस्री लोगों ने इस्राएली लोगों का जीवन दूभर कर दिया। उन्होंने इस्राएली लोगों को ईंट—गारा बनाने का बहुत कड़ा काम करने के लिए विवश किया। उन्होंने उन्हें खेतों में भी बहुत कड़ा काम करने को विवश किया। वे जो कुछ करते थे उन्हें कठिन परिश्रम के साथ करने को विवश किया।
यहोवा की अनुगामी धाइयाँ
15 वहाँ शिप्रा और पूआ नाम की दो धाइयाँ थीं। ये धाइयाँ इस्राएली स्त्रियों के बच्चों का जन्म देने में सहायता करती थीं। मिस्र के राजा ने धाइयों से बातचीत की। 16 राजा ने कहा, “तुम हिब्रू स्त्रियों को बच्चा जनने में सहायता करती रहोगी। यदि लड़की पैदा हो तो उसे जीवित रहने दो किन्तु यदि लड़का पैदा हो तो तुम लोग उसे मार डालो।”
17 किन्तु धाइयों ने परमेश्वर पर विश्वास? किया। इसलिए उन्होंने मिस्र के राजा के आदेश का पालन नहीं किया। उन्होंने सभी लड़कों को जीवित रहने दिया।
18 मिस्र के राजा ने धाइयों को बुलाया और कहा, “तुम लोगों ने ऐसा क्यों किया? तुम लोगों ने पुत्रों (लड़कों) को क्यों जीवित रहने दिया?”
19 धाइयों ने फ़िरौन से कहा, “हिब्रू स्त्रियाँ मिस्री स्त्रियों से अधिक बलवान हैं। उनकी सहायता के लिए हम लोगों के पहुँचने से पहले ही वे बच्चों को जन्म दे देती हैं।” 20-21 परमेश्वर धाइयों पर कृपालु था क्योंकि वे परमेश्वर से डरती थीं।
इसलिए परमेश्वर उनके लिए अच्छा रहा और उन्हें अपने परिवार बनाने दिया और हिब्रू लोग अधिक बच्चे उत्पन्न करते रहे और वे बहुत शक्तिशाली हो गए। 22 इसलिए फ़िरौन ने अपने सभी लोगों को यह आदेश दिया, “जब कभी पुत्र पैदा हो तब तुम अवश्य ही उसे नील नदी में फेंक दो। किन्तु सभी पुत्रियों को जीवित रहने दो।”
बालक मूसा
2लेवी के परिवार का एक व्यक्ति वहाँ था। उसने लेवी के परिवार की ही एक स्त्री से विवाह किया। 2 वह स्त्री गर्भवती हुई और उसने एक पुत्र को जन्म दिया। माँ ने देखा कि बच्चा अत्याधिक सुन्दर है और उसने उसे तीन महीने तक छिपाए रखा। 3 किन्तु तीन महीने बाद माँ डरी कि बच्चा ढूँढ लिया जाएगा। तब वह मार डाला जाएगा, क्योंकि वह लड़का है। इसलिए उसने एक टोकरी बनाई और उस पर तारकोल का लेप इस प्रकार किया कि वह तैर सके। उसने बच्चे को टोकरी में रख दिया। तब उसने टोकरी को नदी के किनारे लम्बी घास में रख दिया। 4 बच्चे की बहन वहाँ रूकी और उसकी रखवाली करती रही। वह देखना चाहती थी कि बच्चे के साथ क्या घटित होगा।
5 उसी समय फ़िरौन की पुत्री नहाने के लिए नदी को गई। उसकी सखियाँ नदी के किनारे टहल रही थीं। उसने ऊँची घास में टोकरी देखी। उसने अपनी दासियों में से एक को जाकर उसे लाने को कहा। 6 राजा की पुत्री ने टोकरी को खोला और लड़के को देखा। बच्चा रो रहा था और उसे उस पर दया आ गई। उसने कहा, यह हिब्रू बच्चों में से एक है।
7 बच्चे की बहन अभी तक छिपी थी। तब वह खड़ी हुई और फ़िरौन की पुत्री से बोली, “क्या आप चाहती हैं कि मैं बच्चे की देखभाल करने में आपकी सहायता के लिए एक हिब्रू स्त्री जाकर ढूँढ लाऊँ?।”
8 फ़िरौन की पुत्री ने कहा, “धन्यवाद हो।”
इसलिए लड़की गई और बच्चे की अपनी माँ को ही ढूँढ लाई।
9 फ़िरौन की पुत्री ने कहा, “इस बच्चे को ले जाओ और मेरे लिए इसे पालो। इस बच्चे को अपना दूध पिलाओ मैं तुम्हें वेतन दूँगी।”
उस स्त्री ने अपने बच्चे को ले लिया और उसका पालन पोषन किया। 10 बच्चा बड़ा हुआ और कुछ समय बाद वह स्त्री उस बच्चे को फ़िरौन की पुत्री के पास लाई। फ़िरौन की पुत्री ने अपने पुत्र के रूप में उस बच्चे को अपना लिया। फ़िरौन की पुत्री ने उसका नाम मूसा रखा। क्योंकि उसने उसे पानी से निकाला था।
मूसा अपने लोगों की सहायता करता है
11 मूसा बड़ा हुआ और युवक हो गया। उसने देखा कि उसके हिब्रू लोग अत्यन्त कठिन काम करने के लिए विवश किए जा रहे हैं। एक दिन मूसा ने एक मिस्री व्यक्ति द्वारा एक हिब्रू व्यक्ति को पिटते देखा। 12 इसलिए मूसा ने चारों ओर नजर घुमाई और देखा कि कोई देख नहीं रहा है। मूसा ने मिस्री को मार डाला और उसे रेत में छिपा दिया।
13 अगले दिन मूसा ने दो हिब्रू व्यक्तियों को परस्पर लड़ते देखा। मूसा ने देखा कि एक व्यक्ति गलती पर था। मूसा ने उस आदमी से कहा, “तुम अपने पड़ोसी को क्यों मार रहे हो?”
14 उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, “क्या किसी ने कहा है कि तुम हमारे शासक और न्यायाधीश बनो? नहीं। मुझे बताओ कि क्या तुम मुझे भी उसी प्रकार मार डालोगे जिस प्रकार तुमने कल मिस्री को मार डाला?”
तब मूसा डरा। मूसा ने मन ही मन सोचा, “अब हर एक व्यक्ति जानता है कि मैंने क्या किया है?”
15 फ़िरौन ने सुना कि मूसा ने मिस्री की हत्या की है। मूसा ने जो कुछ किया फ़िरौन ने उसके बारे में सुना, इसलिए उसने मूसा को मार डालने का निश्चय किया। किन्तु मूसा फिरौन की पकड़ से निकल भागा।
मिद्यान में मूसा
मूसा मिद्यान देश में गया। उस प्रदेश में मूसा एक कुएँ के समीप रूका। 16 द्यान में एक याजक था जिसकी सात पुत्रियाँ थीं। एक दिन उसकी पुत्रियाँ अपने पिता की भेड़ों के लिए पानी लेने उसी कुएँ पर गईं। वे कठौती को पानी से भरने का प्रयत्न कर रही थीं। 17 किन्तु कुछ चरवाहों ने उन लड़कियों को भगा दिया और पानी नहीं लेने दिया। इसलिए मूसा ने लड़कियों की सहायता की और उनके जानवरों को पानी दिया।
18 तब वे अपने पिता रुएल के पास लौट गईं। उनके पिता ने उनसे पूछा, “आज तुम लोग क्यों जल्दी घर चली आईं?”
19 लड़कियों ने उत्तर दिया, “चरवाहों ने हम लोगों को भगाना चाहा। किन्तु एक मिस्री व्यक्ति ने हम लोगों की सहायता की। उसने हम लोगों के लिए पानी निकाला और हम लोगों के जानवरों को दिया।”
20 इसलिए रुएल ने अपनी पुत्रियों से कहा, “यह व्यक्ति कहाँ है? तुम लोगों ने उसे छोड़ा क्यों? उसे यहाँ बुलाओ और हम लोगों के साथ उसे भोजन करने दो।”
21 मूसा उस आदमी के साथ ठहरने से प्रसन्न हुआ और उस आदमी ने अपनी पुत्री सिप्पोरा को मूसा की पत्नी के रूप में उसे दे दिया। 22 सिप्पोरा ने एक पुत्र को जन्म दिया। मूसा ने अपने पुत्र का नाम गेर्शोम रखा। मूसा ने अपने पुत्र को यह नाम इसलिए दिया कि वह उस देश में अजनबी था जो उसका अपना नहीं था।
परमेश्वर ने इस्राएल को सहायता देने का निश्चय किया
23 लम्बा समय बीता और मिस्र का राजा मर गया। इस्राएली लोगों को जब भी कठिन परिश्रम करने के लिए विवश किया जाता था। वे सहायता के लिए पुकारते थे और परमेशवर ने उनकी पुकार सुनी। 24 परमेश्वर ने उनकी प्रार्थनाएँ सुनीं और उस वाचा को याद किया जो उसने इब्राहीम, इसहाक और याकूब के साथ की थी। 25 परमेश्वर ने इस्राएली लोगों के कष्टों को देखा और उसने सोचा कि वह शीघ्र ही उनकी सहायता करेगा।
जलती हुई झाड़ी
3मूसा के ससुर का नाम यित्रो था। यित्रो मिद्यान का याजक था। मूसा यित्रो की भेड़ों का चरवाहा था। एक दिन मूसा भेड़ों को मरुभूमि के पश्चिम की ओर ले गया। मूसा होरेब नाम के उस एक पहाड़ को गया, जो परमेश्वर का पहाड़ था। 2 मूसा ने उस पहाड़ पर यहोवा के दूत को एक जलती हुई झाड़ी में देखा। यह इस प्रकार घटित हुआ।
मूसा ने एक झाड़ी को जलते हुए देखा जो भस्म नहीं हो रही थी। 3 इसलिए मूसा ने कहा कि मैं झाड़ी के निकट जाऊँगा और देखूँगा कि बिना राख हुए कोई झाड़ी कैसे जलती रह सकती है।
4 यहोवा ने देखा कि मूसा झाड़ी को देखने आ रहा है। इसलिए परमेश्वर ने झाड़ी से मूसा को पुकारा। उसने कहा, “मूसा, मूसा।”
और मूसा ने कहा, “हाँ, यहोवा।”
5 तब यहोवा ने कहा, “निकट मत आओ। अपनी जूतियाँ उतार लो। तुम पवित्र भूमि पर खड़े हो। 6 मैं तुम्हारे पूर्वजों का परमेश्वर हूँ। मैं इब्राहीम का परमेश्वर इसहाक का परमेश्वर तथा याकूब का परमेश्वर हूँ।”
मूसा ने अपना मूँह ढक लिया क्योंकि वह परमेश्वर को देखने से डरता था।
7 तब यहोवा ने कहा, “मैंने उन कष्टों को देखा है जिन्हें मिस्र में हमारे लोगों ने सहा है और मैंने उनका रोना भी सुना है जब मिस्री लोग उन्हें चोट पहुँचाते हैं। मैं उनकी पीड़ा के बारे में जानता हूँ। 8 मैं अब जाऊँगा और मिस्रियों से अपने लोगों को बचाऊँगा। मैं उन्हें उस देश से निकालूँगा और उन्हें मैं एक अच्छे देश में ले जाऊँगा जहाँ वे कष्टों से मुक्त हो सकेंगे। जो अनेक अच्छी चीजों से भरा पड़ा है। उस प्रदेश में विभिन्न लोग रहते हैं। कनानी, हित्ती, एमोरी, परिज्जी हिब्बी और यबूसी। 9 मैंने इस्राएल के लोगों की पुकार सुनी है। मैंने देखा है कि मिस्रियों ने किस तरह उनके लिए जीवन को कठिन कर दिया है। 10 इसलिए अब मैं तुमको फ़िरौन के पास भेज रहा हूँ। जाओ! मेरे लोगों अर्थात् इस्राएल के लोगों को मिस्र से बाहर लाओ।”
11 किन्तु मूसा ने परमेश्वर से कहा, “मैं कोई महत्वपूर्ण आदमी नहीं हूँ। मैं ही वह व्यक्ति हूँ जो फ़िरौन के पास जाए और इस्राएल के लोगों को मिस्र के बाहर निकाल कर ले चले?”
12 परमेश्वर ने कहा, “क्योंकि मैं तुम्हारे साथ रहूँगा। मैं तुमको भेज रहा हूँ, यह प्रमाण होगा: लोगों को मिस्र के बाहर निकाल लाने के बाद तुम आओगे और इस पर्वत पर मेरी उपासना करोगे।”
13 तब मूसा ने परमेश्वर से कहा, “किन्तु यदि मैं इस्राएल के लोगों के पास जाऊँगा और उनसे कहूँगा, ‘तुम लोगों के पूर्वजों के परमेश्वर ने मुझे तुम लोगों के पास भेजा है,’ ‘तब लोग पूछेंगे, उसका क्या नाम है?’ मैं उनसे क्या कहूँगा?”
14 तब परमेश्वर ने मूसा से कहा, “उनसे कहो, ‘मैं जो हूँ सो हूँ।’ जब तुम इस्राएल के लोगों के पास जाओ, तो उनसे कहो, ‘मैं हूँ’ जिसने मुझे तुम लोगों के पास भेजा है।” 15 परमेश्वर ने मूसा से यह भी कहा, “लोगों से तुम जो कहोगे वह यह है कि: ‘यहोवा तुम्हारे पूर्वजों का परमेश्वर, इब्राहीम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर और याकूब का परमेश्वर है। मेरा नाम सदा यहोवा रहेगा। इसी रूप में लोग आगे पीढ़ी दर पीढ़ी मुझे जानेंगे।’ लोगों से कहो, ‘यहोवा ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है।’”
16 “यहोवा ने यह भी कहा, ‘जाओ और इस्राएल के बुजुर्गों (नेताओं) को इकट्ठा करो और उनसे कहो, तुम्हारे, पूर्वजों का परमेश्वर यहोवा, मेरे सामने प्रकट हुआ। इब्राहीम, इसहाक और याकूब के परमेश्वर ने मुझसे बातें कीं।’ यहोवा ने कहा है: ‘मैंने तुम लोगों के बारे में सोचा है और उस सबके बारे में भी जो तुम लोगों के साथ मिस्र में घटित हुआ है। 17 मैंने निश्चय किया है कि मिस्र में तुम लोग जो कष्ट सह रहे हो उससे तुम्हें बाहर निकालूँ। मैं तुम लोगों को उस देश में ले चलूँगा जो अनेक लोगों अर्थात् कनानी, हित्ती, एमोरी, परिज्जी, हिब्बी और यबूसी का है। मैं तुम लोगों को ऐसे अच्छे देश को ले जाऊँगा जो बहुत अच्छी चीज़ों से भरा पूरा है।’
18 “बुज़ुर्ग (नेता) तुम्हारी बातें सुनेंगे और तब तुम और बुजुर्ग (नेता) मिस्र के राजा के पास जाओगे। तुम उससे कहोगे ‘हिब्रू लोगों का परमेश्वर यहोवा है। हमारा परमेश्वर हम लोगों के पास आया था। उसने हम लोगों से तीन दिन तक मरूभूमि में यात्रा करने के लिए कहा है। वहाँ हम लोग अपने परमेश्वर यहोवा को निश्चय ही बलियाँ चढ़ायेंगे।’
19 “किन्तु मैं जानता हूँ कि मिस्र का राजा तुम लोगों को जाने नहीं देगा। केवल एक महान शक्ति ही तुम लोगों को जाने देने के लिए उसे विवश करेगी। 20 इसलिए मैं अपनी महान शक्ति का उपयोग मिस्र के विरुद्ध करूँगा। मैं उस देश में चमत्कार होने दूँगा। जब मैं ऐसा करूँगा तो वह तुम लोगों को जाने देगा। 21 और मैं मिस्री लोगों को इस्राएली लोगों के प्रति कृपालु बनाऊँगा। इसलिए जब तुम लोग विदा होंगे तो वे तुम्हें भेंट देंगे।
22 “हर एक हिब्रू स्त्री अपने मिस्री पड़ोसी से तथा अपने घर में रहने वालों से मांगेगी और वे लोग उसे भेंट देंगे। तुम्हारे लोग भेंट में चाँदी, सोना और सुन्दर वस्त्र पाएंगे। जब तुम लोग मिस्र को छोड़ोगे तुम लोग उन भेंटों को अपने बच्चों को पहनाओगे। इस प्रकार तुम लोग मिस्रियों का धन ले आओगे।”
समीक्षा
जानें कि परमेश्वर कौन हैं
मूसा ने परमेश्वर से कहा, 'मै कौन हूँ जो फिरौन के पास जाऊं?' परमेश्वर ने उसे यह बताते हुए उत्तर दिया कि वह कौन हैं। अंत में, हमारे सभी प्रश्नों और समस्याओं का जवाब इसमें नहीं है कि हम कौन हैं, बल्कि इसमें है कि परमेश्वर कौन हैं।
यदि पहली सदी में आपने एक यहूदी को पूछा होता कि अब तक का सबसे महान व्यक्ति कौन है, तो उन्होंने जवाब दिया होता, बेशक: 'मूसा'। वह इतिहास का श्रेष्ठ व्यक्ति था। उसने उन्हें गुलामी से छुड़ाकर उन्हें आज़ादी का जीवन दिया था। उसने उन लोगों को व्यवस्था दी थी। निर्गमन की पुस्तक हमें नये देश का निर्माण प्रस्तुत करती है और हमें उस व्यक्ति से परिचय कराती है जो इसके लिए ज़िम्मेदार था।
एक 'नया राजा' सत्ता में आया था जो 'यूसुफ के बारे में नहीं जानता था' (1:8)। 'नया राजा' इस सच्चाई को नहीं जानता था कि यूसुफ ने मिस्र को बचाया था। लोग परमेश्वर की अच्छी बातों को जल्दी ही भूल जाते हैं जो उन्होंने पिछले दिनों में किये थे। सरकार उनसे ज़बरदस्ती श्रम कराकर उन्हें 'बेरहमी' से सता रही थी (पद - 11-14)। उन्होंने मदद के लिए विनती की और 'परमेश्वर ने उनका कराहना सुना' (2:24)।
पूरे इतिहास में लोग परमेश्वर की संतान पर जय पाने की कोशिश करते रहे – लेकिन वे कभी कामयाब नहीं हो पाए। 'पर ज्यों - ज्यों वे उन को दु:ख देते गए त्यों - त्यों वे बढ़ते और फैलते चले गए;' (1:12)। बल्कि आज भी, जब चर्च को सताया और दबाया जाता है, तो अक्सर यह बढ़ता है और फैल जाता है।
मूसा फिरौन का दत्तक पोता था – एक ताकतवर राजकुमार। धन, यौन क्रिया और ताकत मूसा के पास बहुतायत से हो सकती थी। लेकिन इसके बजाय उसने शत्रुता को सहन करना चुना। उसने परमेश्वर की बुलाहट का पालन किया और खुद को परमेश्वर का जन पहचाने जाने का चुनाव किया – ऐसे लोगों का समूह – एक गुलाम देश यानि इस्राएल - जिन्हें ऐसे लोग अपमान समझते थे जिनका पालन पोषण मूसा की तरह हुआ था।
नये नियम की दृष्टि से, हम मूसा का वह निर्णय देखते हैं जिसमें उसने थोड़ी देर के लिए पाप का आनंद लेने के बजाय परमेश्वर के लोगों के साथ बुरे बर्ताव का शिकार होना पसंद किया। उसने मिस्र के ख़ज़ाने की तुलना में मसीह के लिए अपमानित होना ज़्यादा मूल्यवान समझा , क्योंकि वह आनेवाले प्रतिफल को देख रहा था (इब्रानियों 11:25-26)।
यह निर्णय लेना आसान नहीं था। फिर भी, अंत में उसने परमेश्वर की बुलाहट का पालन किया और संसार से शत्रुता ली।
उसकी आज्ञा पालन का मुख्य आधार यह जानना था कि परमेश्वर कौन हैं। इन वचनों में विभिन्न तरीकों से परमेश्वर ने खुद को मूसा पर प्रगट किया और यह वायदा किया कि, 'मैं तेरे संग रहूँगा' (निर्गमन 3:12)। उनके नाम का प्रकाशन विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि ये नाम एक व्यक्ति के चरित्र या स्वभाव को व्यक्त करते हैं: परमेश्वर खुद को 'मैं जो हूँ सो हूँ' (पद - 14) के रूप में प्रगट करते हैं। केवल एक ही तरीका जिसके द्वारा परमेश्वर खुद का वर्णन पूरी तरह से कर सकते हैं।
यह नाम हमारे परमेश्वर की असाधारण महानता और अनंत स्वभाव का वर्णन करता है। यह नाम (संक्षिप्त रूप में है) जो बाद में ऐसा नाम बन जाता है जिसके द्वारा परमेश्वर बाकी के पुराने नियम में जाना जाते हैं। इब्रानी में यह यहवे है, इसे अँग्रेज़ी में सामान्य रूप से 'प्रभु' कहा जाता है। मूसा के आगामी आज्ञा पालन का आधार इस बात को जानना है कि परमेश्वर कौन हैं।
वास्तव में, परमेश्वर मूसा से कहते हैं कि उस शत्रुता के बारे में चिंता मत करो जिसका सामना तुम करनेवाले हो। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि 'मैं जो हूँ, सो हूँ' उसके साथ है। वह आपके सभी डर, निराशा और चुनौतियों के लिए काफी हैं। जब आप जान लेंगे कि 'मैं जो हूँ, सो हूँ' आपके साथ हैं, तब आप चैन और शांति पा सकते हैं।
प्रार्थना
प्रभु, मूसा के उदाहरण का अनुसरण करने और थोड़ी देर के लिए पाप का मज़ा लेने के बजाय परमेश्वर के लोगों के साथ अपमान सहन करने में मेरी मदद कीजिये। मेरी मदद कीजिये कि यह बैरी संसार जो भी दे सकता है उसे पाने के बजाय मैं मसीह के लिए अपमानित होना असाधारण मूल्य की बात समझूँ।
पिप्पा भी कहते है
मूसा का जीवन इन पाँच बहादुर स्त्रियों का ऋणी था:
शिप्रा और पूआ ने राजा का विरोध किया और सैकड़ों बालकों की जान बचाई।
मूसा की बहन (मरियम) जिसने मूसा की माँ को दाई के रूप में बतलाकर बुद्धिमानी का काम किया।
मूसा की माँ ने अपने तीन बच्चों (मूसा, हारून, और मरियम) में महान विश्वास जगाया।
सबसे आश्चर्यजनक रूप से, फिरौन की बेटी ने मूसा पर कृपा की और उसकी जान बचाई।
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संदर्भ
नोट्स:
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है। कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002। जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।