जीवन के उतार - चढ़ाव
परिचय
जब मैं एक मसीही के रूप में अपने पिछले चालीस सालों को देखता हूँ, तो आत्मिक ऊँचाइयों का समय कई बार आया था – पवित्र आत्मा के अनुभव, परमेश्वर का प्रेम, यीशु के साथ पहली बार मुलाकात करते हुए लोगों को देखने का आनंद, प्रार्थना के अद्भुत उत्तर और परमेश्वर के राज्य को बढ़ते हुए देखना. दूसरी तरफ, आत्मिक उतार के समय भी आए थे – बेजान अनुभव, वियोग, निराशा, असफलता, अभिलाषाएं, विरोध, स्वास्थ्य संबंधी मामले और थकान. आज के लेखांश में हम देखते हैं कि आत्मिक उतार और चढ़ाव के बीच गहरा संबंध है.
भजन संहिता 22:1-11
प्रभात की हरिणी नामक राग पर संगीत निर्देशक के लिये दाऊद का एक भजन।
22हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर!
तूने मुझे क्यों त्याग दिया है? मुझे बचाने के लिये तू क्यों बहुत दूर है?
मेरी सहायता की पुकार को सुनने के लिये तू बहुत दूर है।
2 हे मेरे परमेश्वर, मैंने तुझे दिन में पुकारा
किन्तु तूने उत्तर नहीं दिया,
और मैं रात भर तुझे पुकाराता रहा।
3 हे परमेश्वर, तू पवित्र है।
तू राजा के जैसे विराजमान है। इस्राएल की स्तुतियाँ तेरा सिंहासन हैं।
4 हमारे पूर्वजों ने तुझ पर विश्वस किया।
हाँ! हे परमेश्वर, वे तेरे भरोसे थे! और तूने उनको बचाया।
5 हे परमेश्वर, हमारे पूर्वजों ने तुझे सहायता को पुकारा और वे अपने शत्रुओं से बच निकले।
उन्होंने तुझ पर विश्वास किया और वे निराश नहीं हुए।
6 तो क्या मैं सचमुच ही कोई कीड़ा हूँ,
जो लोग मुझसे लज्जित हुआ करते हैं और मुझसे घृणा करते हैं
7 जो भी मुझे देखता है मेरी हँसी उड़ाता है,
वे अपना सिर हिलाते और अपने होठ बिचकाते हैं।
8 वे मुझसे कहते हैं कि, “अपनी रक्षा के लिये तू यहोवा को पुकार ही सकता है।
वह तुझ को बचा लोगा।
यदि तू उसको इतना भाता है तो निश्चय ही वह तुझ को बचा लोगा।”
9 हे परमेश्वर, सच तो यह है कि केवल तू ही है जिसके भरोसा मैं हूँ। तूने मुझे उस दिन से ही सम्भाला है, जब से मेरा जन्म हुआ।
तूने मुझे आश्वस्त किया और चैन दिया, जब मैं अभी अपनी माता का दूध पीता था।
10 ठीक उसी दिन से जब से मैं जन्मा हूँ, तू मेरा परमेश्वर रहा है।
जैसे ही मैं अपनी माता की कोख से बाहर आया था, मुझे तेरी देखभाल में रख दिया गया था।
11 सो हे, परमेश्वर! मुझको मत बिसरा,
संकट निकट है, और कोई भी व्यक्ति मेरी सहायता को नहीं है।
समीक्षा
विश्वास कीजिये कि अंत में कष्ट विजय में बदल जाएगा
यह भजन क्रूस पर यीशु की पुकार की पृष्ठभूमि तैयार करता है, ‘हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?’ (पद - 1अ)। यह कोई संयोग नहीं था कि यीशु ने इस भजन को दोहराया (मत्ती 27:46)।
भजन 22 क्रूस और पुनरूत्थान के लिए एक पूर्वकथित पृष्ठभूमि तैयार करता है, जिसे हम यीशु में पूरा होता हुआ देखते हैं। ‘मनुष्यों में उनकी नामधराई हुई और लोगों ने उनका अपमान किया’ (पद - 6)। उनका ठठ्ठा किया (पद - 7) और सिर हिलाते हुए उनका मज़ाक उड़ाया (पद - 7ब)। ‘उसने प्रभु पर भरोसा किया है और वही उसको छुड़ाएगा’ (पद - 8अ)।
यह यीशु के दु:ख उठाने का वर्णन सटीकता से करता है (मत्ती 27:31-46 देखें) और फिर भी इसका अंत विजय में हुआ।
इस भजन का संदेश हमारे दु:ख के समय में भी परमेश्वर पर भरोसा रखने का महत्त्व है (भजन संहिता 22:4-5,9)। यीशु अपने जीवन के गहरे दु:ख के समय में – क्रूसित होने और परमेश्वर द्वारा त्यागे जाने के समय में – परमेश्वर पर भरोसा बनाए रखते हैं कि वहीं उनको छुड़ाएंगे। क्रूस पर दिखाई देने वाली पराजय अनंतकाल की महानतम विजय बनी।
यदि आप दु:खी हैं, तो याद रखें कि सताया जाना अंतिम शब्द नहीं है। यीशु में, पुनरूत्थान और परमेश्वर की विजय ही अंतिम शब्द है। उन पर विश्वास बनाए रखें।
प्रार्थना
प्रभु, उस समय के लिए धन्यवाद जब मैंने आपको पुकारा और आपने मुझे बचा लिया; मैंने आप पर भरोसा किया और आपने मुझे निराश नहीं किया। संकट के समय में आप पर विश्वास बनाए रखने में मेरी मदद कीजिये।
मरकुस 1:1-28
यीशु के आने की तैयारी
1यह परमेश्वर के पुत्र यीशु मसीह के शुभ संदेश का प्रारम्भ है। 2 भविष्यवक्ता यशायाह की पुस्तक में लिखा है कि:
“सुन! मैं अपने दूत को तुझसे पहले भेज रहा हूँ।
वह तेरे लिये मार्ग तैयार करेगा।”
3 “जंगल में किसी पुकारने वाले का शब्द सुनाई दे रहा है:
‘प्रभु के लिये मार्ग तैयार करो।
और उसके लिये राहें सीधी बनाओ।’”
4 यूहन्ना लोगों को जंगल में बपतिस्मा देते आया था। उसने लोगों से पापों की क्षमा के लिए मन फिराव का बपतिस्मा लेने को कहा। 5 फिर समूचे यहूदिया देश के और यरूशलेम के लोग उसके पास गये और उस ने यर्दन नदी में उन्हें बपतिस्मा दिया। क्योंकि उन्होंने अपने पाप मान लिये थे।
6 यूहन्ना ऊँट के बालों के बने वस्त्र पहनता था और कमर पर चमड़े की पेटी बाँधे रहता था। वह टिड्डियाँ और जंगली शहद खाया करता था।
7 वह इस बात का प्रचार करता था: “मेरे बाद मुझसे अधिक शक्तिशाली एक व्यक्ति आ रहा है। मैं इस योग्य भी नहीं हूँ कि झुक कर उसके जूतों के बन्ध तक खोल सकूँ। 8 मैं तुम्हें जल से बपतिस्मा देता हूँ किन्तु वह पवित्र आत्मा से तुम्हें बपतिस्मा देगा।”
यीशु का बपतिस्मा और उसकी परीक्षा
9 उन दिनों ऐसा हुआ कि यीशु नासरत से गलील आया और यर्दन नदी में उसने यूहन्ना से बपतिस्मा लिया। 10 जैसे ही वह जल से बाहर आया उसने आकाश को खुले हुए देखा। और देखा कि एक कबूतर के रूप में आत्मा उस पर उतर रहा है। 11 फिर आकाशवाणी हुई: “तू मेरा पुत्र है, जिसे मैं प्यार करता हूँ। मैं तुझ से बहुत प्रसन्न हूँ।”
यीशु की परीक्षा
12 फिर आत्मा ने उसे तत्काल बियाबान जंगल में भेज दिया। 13 जहाँ चालीस दिन तक शैतान उसकी परीक्षा लेता रहा। वह जंगली जानवरों के साथ रहा और स्वर्गदूतों ने उसकी सेवा करते रहे।
यीशु के कार्य का आरम्भ
14 यूहन्ना को बंदीगृह में डाले जाने के बाद यीशु गलील आया। और परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार का प्रचार करने लगा। 15 उसने कहा, “समय पूरा हो चुका है। परमेश्वर का राज्य आ रहा है। मन फिराओ और सुसमाचार में विश्वास करो।”
यीशु द्वारा कुछ शिष्यों का चयन
16 जब यीशु गलील झील के किनारे से हो कर जा रहा था उसने शमौन और शमौन के भाई अन्द्रियास को देखा। क्योंकि वे मछुआरा थे इसलिए झील में जाल डाल रहे थे। 17 यीशु ने उनसे कहा, “मेरे पीछे आओ, और मैं तुम्हें मनुष्यों के मछुआरा बनाऊँगा।” 18 उन्होंने तुरंत अपने जाल छोड़ दिये और उसके पीछे चल पड़े।
19 फिर थोड़ा आगे बड़ कर यीशु ने जब्दी के बेटे याकूब और उसके भाई यूहन्ना को देखा। वे अपनी नाव में जालों की मरम्मत कर रहे थे। 20 उसने उन्हें तुरंत बुलाया। सो वे अपने पिता जब्दी को मज़दूरों के साथ नाव में छोड़ कर उसके पीछे चल पड़े।
दुष्टात्मा के चंगुल से छुटकारा
21 और कफरनहूम पहुँचे। फिर अगले सब्त के दिन यीशु आराधनालय में गया और लोगों को उपदेश देने लगा। 22 उसके उपदेशों पर लोग चकित हुए। क्योंकि वह उन्हें किसी शास्त्र ज्ञाता की तरह नहीं बल्कि एक अधिकारी की तरह उपदेश दे रहा था। 23 उनकी यहूदी आराधनालय में संयोग से एक ऐसा व्यक्ति भी था जिसमें कोई दुष्टात्मा समायी थी। वह चिल्ला कर बोला, 24 “नासरत के यीशु! तुझे हम से क्या चाहिये? क्या तू हमारा नाश करने आया है? मैं जानता हूँ तू कौन है, तू परमेश्वर का पवित्र जन है।”
25 इस पर यीशु ने झिड़कते हुए उससे कहा, “चुप रह! और इसमें से बाहर निकल!” 26 दुष्टात्मा ने उस व्यक्ति को झिंझोड़ा और वह ज़ोर से चिल्लाती हुई उसमें से निकल गयी।
27 हर व्यक्ति चकित हो उठा। इतना चकित, कि सब आपस में एक दूसरे से पूछने लगे, “यह क्या है? अधिकार के साथ दिया गया एक नया उपदेश! यह दुष्टात्माओं को भी आज्ञा देता है और वे उसे मानती हैं।” 28 इस तरह गलील और उसके आसपास हर कहीं यीशु का नाम जल्दी ही फैल गया।
समीक्षा
संघर्षों और आशीषों के द्वारा, अधिकार में बढ़ते जाएं
हाल ही में मैंने और पिपा ने बिली ग्राहम का वीडियो देखा जब वह सन् 1963 में लॉस एन्जेलेस में प्रचार कर रहे थे। यह फिल्म श्वेत और धवल रंग में है। वे बाइबल के अधिकृत संस्करण में से प्रचार कर रहे थे। लेकिन पचास साल के बाद भी उस संदेश में सामर्थ था। जिस अधिकार से वे प्रचार कर रहे थे उसने मुझे सबसे ज़्यादा आकर्षित किया। इस तरह का अधिकार यीशु के सर्वोच्च अधिकार को दर्शाता है।
इस लेखांश में हम देखते हैं कि परमेश्वर ने यीशु को आत्मिक संघर्षों और आशीषों में उतार - चढ़ाव के द्वारा तैयार किया।
मरकुस सबसे छोटा सुसमाचार है। यह यीशु के तीन सप्ताह के कार्यों को, अपने बीस मिनटों में कवर करता है। यह सबसे जीवित सुसमाचार है; यह एक घटना से दूसरी घटना तक श्वासहीन रोमांच के वातावरण में दौड़ता है। यह यीशु मसीह के सुसमाचार की अतिशीघ्र घोषणा है।
मरकुस का पसंदीदा शब्द ‘तुरंत’ है। यीशु दबाव में आने वाले जीवन के बारे में सब कुछ जानते थे। उन्होंने आत्मिक उतार-चढ़ाव का अनुभव किया था: उनके बपतिस्मा के समय यीशु ने महान आत्मिक ऊँचाई का अनुभव किया। उन्होंने एक दर्शन देखा: ‘जब वह पानी से निकलकर ऊपर आया, तो तुरन्त उस ने आकाश को खुलते (पद - 10अ) और आत्मा को कबूतर की नाई अपने ऊपर उतरते देखा’ (पद - 10ब)। उन्होंने परमेश्वर की आवाज़ सुनी: ‘यह आकाशवाणी हुई’ (पद - 11अ)। उन्होंने पुत्र होने का आश्वासन प्राप्त किया: ‘तू मेरा पुत्र है’ (पद - 11ब)। उन्होंने अपने लिए , परमेश्वर के गहरे प्रेम को जाना: ‘तुझ से मैं प्यार करता हूँ’ (पद - 11क)। उन्होंने परमेश्वर की प्रसन्नता का आनंद उठाया: ‘तुझ से मैं प्रसन्न हूँ’ (पद - 11ड)।
उसके बाद वह सीधे आत्मिक उतार में चले गए। ' और जंगल में चालीस दिन तक शैतान ने उनकी परीक्षा की ' (पद - 12)।
आत्मिक आक्रमण के बाद मिलने वाले महान आत्मिक अनुभवों से अचंभित न हों। हम अक्सर लोगों को इस बारे में सावधान करने की कोशिश करते हैं। उदाहरण के लिए, अल्फा सप्ताहांत में, यदि आप अपने लिए परमेश्वर के गहरे प्यार का आश्वासन प्राप्त करते हुए और यह जानते हुए कि आप परमेश्वर के पुत्र हैं, पवित्र आत्मा से भर जाते हैं, तो इसके बाद संदेहों और परीक्षाओं के रूप में आने वाले इन आक्रमणों से अचंभित मत होइये।
जब मैं अपने जीवन में ,पीछे देखता हूँ, हालाँकि उस समय ये परीक्षाएं बहुत दु:खदायी नजर आती थीं, फिर भी अब मैं जान गया हूँ कि आने वाले दिनों के लिए ये कितनी महत्त्वपूर्ण थीं।
यह सब परमेश्वर की व्यवस्था का हिस्सा हैं – यह ‘पवित्र आत्मा’ ही थे जो यीशु को जंगल में ले गए थे (पद - 12) ताकि शैतान से उनकी परीक्षा हो (पद - 13)। किसी तरीके से, ‘जंगल’ और डरावनी परीक्षाएं यह आश्वासन देते हैं कि यह वास्तव में सच हैं। पवित्र आत्मा का अनुभव सच्चा है लेकिन उसी समय ,आत्मिक युद्ध और परीक्षाएं गहन हो सकती हैं।
यीशु परीक्षा के इस दौर से असाधारण अधिकार के साथ उभर कर आए:
- सुसमाचार प्रचार करने का अधिकार
यीशु ने सुसमाचार का प्रचार किया और लोगों को अपने पीछे चलने के लिए कहा। हमारी सबसे पहली प्राथमिकता यीशु के साथ संबंध बनाना है।
- अगुआई का अधिकार
जब यीशु चाहते थे कि कोई अपना काम-धंधा छोड़कर सीधे राज्य के लिए कार्य करें, तो उन्होंने उनके पास जाकर उनसे कहा (पद - 17,20)। सबसे पहले शिष्य का जीवन मछली पकड़ने वाले मछुआरे से, मनुष्यों को पकड़ने वाले मछुआरे में पूरी तरह से बदल गया।
- शिक्षा देने का अधिकार
लोग यीशु की शिक्षा देखकर चकित हो गए, ‘क्योंकि वह उन्हें शास्त्रियों की नाईं नहीं, परन्तु अधिकारी की नाई उपदेश देता था’ (पद - 22)। ‘इस पर सब लोग आश्चर्य करते हुए आपस में वाद-विवाद करने लगे कि यह क्या बात है? यह तो अधिकार के साथ कोई नया उपदेश है!’ (पद - 27)।
- चंगाई करने का अधिकार
यीशु दुष्टात्मा से ग्रसित व्यक्ति को चंगा करते हैं। उन्हें दुष्टात्माओं पर अधिकार प्राप्त था, ‘यीशु ने उसे डांटकर कहा, चुप रह; और उस में से निकल जा’ (पद - 25)। लोग यीशु के सिर्फ उपदेश पर चकित नहीं हुए, बल्कि यह देखकर भी चकित हुए कि ‘वह अधिकार के साथ अशुद्ध आत्माओं को भी आज्ञा देता है, और वे उस की आज्ञा मानती हैं’ (पद - 27)।
चाहें आप किसी भी स्थिति से गुज़र रहे हों, विश्वास कीजिये कि परमेश्वर आपको तैयार कर रहे हैं और जिस के लिए वह आपको बुला रहे हैं, उसे करने के लिए वह आपको अधिकार में बढ़ा रहे हैं।
उनसे कहिये कि वह आपको एक बार फिर से पवित्र आत्मा से भर दें। निश्चिंत हो जाइये कि, मसीह में, आप भी परमेश्वर की संतान हैं। वह आपसे प्यार करते हैं। जान लीजिये कि परमेश्वर आपको प्रसन्नता से देख रहे हैं। सुनिये, वह आपसे कह रहे हैं” ‘यह मेरा प्रिय पुत्र है, इससे मैं प्रसन्न हूँ’ (पद - 11)
प्रार्थना
प्रभु, मुझे एक बार फिर अपनी पवित्र आत्मा से भर दीजिये…. मुझे अधिकार में, अपने शब्दों में और कार्यों में बढ़ने में मदद कीजिये।
निर्गमन 17:1-18:27
चट्टान से पानी निकलना
17इस्राएल के सभी लोगों ने सीन की मरुभूमि से एक साथ यात्रा की। वे यहोवा जैसा आदेश देता रहा, एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा करते रहे। लोगों ने रपीदीम की यात्रा की और वहाँ उन्होंने डेरा डाला। वहाँ लोगों के पीने के लिए पानी न था। 2 इसलिए वे मूसा के विरुद्ध हो गए और उससे बहस करने लगे। लोगों ने कहा, “हमें पीने के लिए पानी दो।”
किन्तु मूसा ने उनसे कहा, “तुम लोग मेरे विरुद्ध क्यों हो रहे हो? तुम लोग यहोवा की परीक्षा क्यों ले रहे हो? क्या तुम लोग समझते हो कि यहोवा हमारे साथ नहीं है?”
3 किन्तु लोग बहुत प्यासे थे। इसलिए उन्होंने मूसा से शिकायत जारी रखी। लोगों ने कहा, “हम लोगों को तुम मिस्र से बाहर क्यों लाए? क्या तुम इसलिए लाए कि पानी के बिना हमको, हमारे बच्चों को और हमारी गाय, बकरियों को प्यासा मार डालो?”
4 इसलिए मूसा ने यहोवा को पुकारा, “मैं इन लोगों के साथ क्या करूँ? ये मुझे मार डालने को तैयार हैं।”
5 यहोवा ने मूसा से कहा, “इस्राएल के लोगों के पास जाओ और उनके कुछ बुजुर्गों (नेताओं) को अपने साथ लो। अपनी लाठी अपने साथ ले जाओ। यह वही लाठी है जिसे तुमने तब उपयोग में लिया था जब नील नदी पर इससे चोट की थी। 6 होरेब (सीनै) पहाड़ पर मैं तुम्हारे सामने एक चट्टान पर खड़ा होऊँगा। लाठी को चट्टान पर मारो और इससे पानी बाहर आ जाएगा। तब लोग पी सकते हैं।”
मूसा ने वही बातें कीं और इस्राएल के बुजुर्गों (नेताओं) ने इसे देखा। 7 मूसा ने इस स्थान का नाम मरीबा और मस्सा रखा। क्योंकि यह वह स्थान था जहाँ इस्राएल के लोग उसके विरुद्ध हुए और उन्होंने यहोवा की परीक्षा ली थी। लोग यह जानना चाहते थे कि यहोवा उनके साथ है या नहीं।
अमालेकी लोगों के साथ युद्ध
8 अमालेकी लोग रपीदीम आए और इस्राएल के लोगों के विरुद्ध लड़े। 9 इसलिए मूसा ने यहोशू से कहा, “कुछ लोगों को चुनों और अगले दिन अमालेकियों से जाकर लड़ो। मैं पर्वत की चोटी पर खड़ा होकर तुम्हें देखूँगा। मैं परमेश्वर द्वारा दी गई छड़ी को पकड़े रहूँगा।”
10 यहोशू ने मूसा की आज्ञा मानी और अगले दिन अमालेकियों से लड़ने गया। उसी समय मूसा, हारून और हूर पहाड़ी की चोटी पर गए। 11 जब कभी मूसा अपने हाथ को हवा में उठाता तो इस्राएल के लोग युद्ध जीत लेते। किन्तु जब मूसा अपने हाथ को नीचे करता तो इस्राएल के लोग युद्ध में हारने लगते।
12 कुछ समय बाद मूसा की बाहें थक गईं। मूसा के साथ के लोग ऐसा उपाय करना चाहते थे, जिससे मूसा की बाहें हवा में रह सकें। इसलिए उन्होंने एक बड़ी चट्टान मूसा के नीचे बैठने के लिए रखी तथा हारून और हूर ने मूसा की बाहों को हवा में पकड़े रखा। हारून मूसा की एक ओर था तथा हूर दूसरी ओर। वे उसके हाथों को वैसे ही ऊपर तब तक पकड़े रहे जब तक सूरज नहीं डूबा। 13 इसलिए यहोशू और उसके सैनिकों ने अमालेकियों को इस युद्ध में हरा दिया।
14 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “इस युद्ध के बारे में लिखो। इस युद्ध की घटनाओं को एक पुस्तक में लिखो जिससे लोग याद करेंगे कि यहाँ क्या हुआ था और यहोशू से कहो कि मैं अमालेकी लोगों को धरती से पूर्णरूप से नष्ट कर दूँगा।”
15 तब मूसा ने एक वेदी बनायी। मूसा ने वेदी का नाम “यहोवा निस्सी” रखा। 16 मूसा ने कहा, “मैंने यहोवा के सिंहासन की ओर अपने हाथ फैलाए। इसलिए यहोवा अमालेकी लोगों से लड़ा जैसा उसने सदा किया है।”
मूसा को उसके ससुर की सलाह
18मूसा का ससुर यित्रो मिद्यान में याजक था। परमेश्वर ने मूसा और इस्राएल के लोगों की अनेक प्रकार से जो सहायता की उसके बारे में यित्रो ने सुना। यित्रो ने इस्राएल के लोगों को यहोवा द्वारा मिस्र से बाहर ले जाए जाने के बारे में सुना। 2 इसलिए यित्रो मूसा के पास गया जब वह परमेश्वर के पर्वत के पास डेरा डाले था। वह मूसा की पत्नी सिप्पोरा को अपने साथ लाया। (सिप्पोरा मूसा के साथ नहीं थी क्योंकि मूसा ने उसे उसके घर भेज दिया था।) 3 यित्रो मूसा के दोनो पुत्रों को भी साथ लाया। पहले पुत्र का नाम गेर्शोम रखा क्योंकि जब वह पैदा हुआ, मूसा ने कहा, “मैं विदेश में अजनबी हूँ।” 4 दूसरे पुत्र का नाम एलीएजेर रखा क्योंकि जब वह उत्पन्न हुआ तो मूसा ने कहा, “मेरे पिता के परमेश्वर ने मेरी सहायता की और मिस्र के राजा की तलवार से मुझे बचाया है।” 5 इसलिए यित्रो मूसा के पास तब गया जब वह परमेश्वर के पर्वत (सीनै पर्वत) के निकट मरुभूमि में डेरा डाले था। मूसा की पत्नी और उसके दो पुत्र यित्रो के साथ थे।
6 यित्रो ने मूसा को एक सन्देश भेजा। यित्रो ने कहा, “मैं तुम्हारा ससुर यित्रो हूँ और मैं तुम्हारी पत्नी और उसके दोनों पुत्रों को तुम्हारे पास ला रहा हूँ।”
7 इसलिए मूसा अपने ससुर से मिलने गया। मूसा उसके सामने झुका और उसे चूमा। दोनों लोगों ने एक दूसरे का कुशल क्षेम पूछा। तब वे मूसा के डेरे में और अधिक बातें करने गए। 8 मूसा ने अपने ससुर यित्रो को हर एक बात बताई जो यहोवा ने इस्राएल के लोगों के लिए की थी। मूसा ने वे चीज़ें भी बताईं जो यहोवा ने फ़िरौन और मिस्र के लोगों के लिए की थीं। मूसा ने रास्ते की सभी समस्याओं के बारे में बताया और मूसा ने अपने ससुर को बताया कि किस तरह यहोवा ने इस्राएली लोगों को बचाया, जब—जब वे कष्ट में थे।
9 यित्रो उस समय बहुत प्रसन्न हुआ जब उसने यहोवा द्वारा इस्राएल के लिए की गई सभी अच्छी बातों को सुना। यित्रो इसलिए प्रसन्न था कि यहोवा ने इस्राएल के लोगों को मिस्रियों से स्वतन्त्र कर दिया था। 10 यित्रो ने कहा,
“यहोवा की स्तुति करो!
उसने तुम्हें मिस्र के लोगों से स्वतन्त्र कराया।
यहोवा ने तुम्हें फ़िरौन से बचाया है।
11 अब मैं जानता हूँ कि यहोवा सभी देवताओं से महान है,
उन्होंने सोचा कि सबकुछ उनके काबू में है लेकिन देखो, परमेश्वर ने क्या किया!”
12 तब यित्रो ने परमेश्वर के सम्मान में बलि तथा भेंटे दीं। तब हारून तथा इस्राएल के सभी बुजुर्ग (नेता) मूसा के ससुर यित्रो के साथ भोजन करने आए। यह उन्होंने परमेश्वर की उपासना की विशेष विधि के रूप में किया।
13 अगले दिन मूसा लोगों का न्याय करने वाला था। वहाँ लोगों की संख्या बहुत अधिक थी। इस कारण लोगों को मूसा के सामने सारे दिन खड़ा रहना पड़ा।
14 यित्रो ने मूसा को न्याय करते देखा। उसने पूछा, “तुम ही यह क्यों कर रहे हो? एक मात्र न्यायाधीश तुम्हीं क्यों हो? और लोग केवल तुम्हारे पास ही सारे दिन क्यों आते हैं?”
15 तब मूसा ने अपने ससुर से कहा, “लोग मेरे पास आते हैं और अपनी समस्याओं के बारे में मुझ से परमेश्वर का निर्णय पूछते हैं। 16 यदि उन लोगों का कोई विवाद होता है तो वे मेरे पास आते हैं। मैं निर्णय करता हूँ कि कौन ठीक है। इस प्रकार मैं परमेश्वर के नियमों और उपदेशों की शिक्षा लोगों को देता हूँ।”
17 किन्तु मूसा के ससुर ने उससे कहा, “जिस प्रकार तुम यह कर रहे हो, ठीक नहीं है। 18 तुम्हारे अकेले के लिए यह काम अत्याधिक है। इससे तुम थक जाते हो और इससे लोग भी थक जाते हैं। तुम यह काम स्वयं अकेले नहीं कर सकते। 19 मैं तुम्हें कुछ सुझाव दूँगा। मैं तुम्हें बताऊँगा कि तुम्हें क्या करना चाहिए। मेरी प्रार्थना है कि परमेश्वर तुम्हारा साथ देगा। जो तुम्हें करना चाहिए वह यह है। तुम्हें परमेश्वर के सामने लोगों का प्रतिनिधित्व करते रहना चाहिए, और तुम्हें उनके इन विवादों और समस्याओं को परमेश्वर के सामने रखना चाहिए। 20 तुम्हें परमेश्वर के नियमों और उपदेशों की शिक्षा लोगों को देनी चाहिए। लोगों को चेतावनी दो कि वे नियम न तोड़ें। लोगों को जीने की ठीक राह बताओ। उन्हें बताओ कि वे क्या करें। 21 किन्तु तुम्हें लोगों में से अच्छे लोगों को चुनना चाहिए।
“तुम्हें अपने विश्वासपात्र आदमियों का चुनाव करना चाहिए अर्थात् उन आदमियों का जो परमेश्वर का सम्मान करते हों। उन आदमियों को चुनो जो धन के लिए अपना निर्णय न बदलें। इन आदमियों को लोगों का प्रशासक बनाओ। हज़ार, सौ, पचास और दस लोगों पर भी प्रशासक होने चाहिए। 22 इन्हीं प्रशासकों को लोगों का न्याय करने दो। यदि कोई बहुत ही गंभीर मामला हो तो वे प्रशासक निर्णय के लिए तुम्हारे पास आ सकते हैं। किन्तु अन्य मामलों का निर्णय वे स्वयं ही कर सकते हैं। इस प्रकार यह तुम्हारे लिए अधिक सरल होगा। इसके अतिरिक्त, ये तुम्हारे काम में हाथ बटा सकेंगे। 23 यदि तुम यहोवा की इच्छानुसार ऐसा करते हो तब तुम अपना कार्य करते रहने योग्य हो सकोगे। और इसके साथ ही साथ सभी लोग अपनी समस्याओं के हल हो जाने से शान्तिपूर्वक घर जा सकेंगे।”
24 इसलिए मूसा ने वैसा ही किया जैसा यित्रो ने कहा था। 25 मूसा ने इस्राएल के लोगों में से योग्य पुरुषों को चुना। मूसा ने उन्हें लोगों का अगुआ बनाया। वहाँ हज़ार, सौ, पचास और दस लोगों के ऊपर प्रशासक थे। 26 ये प्रशासक लोगों के न्यायाधीश थे। लोग अपनी समस्याएँ इन प्रशासको के पास सदा ला सकते थे। और मूसा को केवल गंभीर मामले ही निपटाने पड़ते थे।
27 कुछ समय बाद मूसा ने अपने ससुर यित्रो से विदा ली और यित्रो अपने घर लौट गया।
समीक्षा
उतार को ऊँचाइयों में बदलने के लिए प्रार्थना करें और कार्य करें
मूसा बहुत ही आत्मिक उतार में चले गए थे। ‘लोग मूसा से वाद-विवाद करने लगे’ (17:2); वे ‘कुड़कुड़ाने लगे’ (पद - 3); ‘वे सब पत्थरवाह करने को तैयार हो गए’ (पद - 4); ‘ अमालेकी आकर इस्रालियों से लड़ने लगे’ (पद - 8)। फिर भी परमेश्वर ने उतार को ऊँचाइयों में बदल दिया। कैसे?
1. एक दूसरे को सहारा दें और प्रोत्साहन दें
पहले, मूसा ने प्रभु की दोहाई दी, और कहा, इन लोगों से मैं क्या करूं? तब प्रभु ने मूसा से कहा, (पद - 4-5)। दूसरा, उसने यहोशू और लोगों के लिए मध्यस्थी की: ‘और जब तक मूसा अपना हाथ उठाए रहता था तब तक तो इस्राएल प्रबल होता था; परन्तु जब जब वह उसे नीचे करता तब - तब अमालेकी प्रबल होता था' (पद - 11)।
'जब मूसा के हाथ भर गए, और हारून और हूर एक - एक अलंग में उसके हाथों को सम्भाले रहें; और यहोशू ने अनुचरों समेत अमालेकियों को तलवार के बल से हरा दिया' “क्योंकि ये हाथ प्रभु के सिंहासन की तरफ उठे थे”’ (पद - 12-13,16)।
यह लेखांश हमें मध्यस्थी की प्रार्थना की सामर्थ और आवश्यकता की याद दिलाता है। यह हमें प्रेमपूर्ण समर्थन और प्रोत्साहन के महत्त्व की याद भी दिलाता है जिसे हम एक दूसरे को थकान के समय दे सकते हैं।
2. नियुक्त करना सीखें
मूसा के ससुर, यित्रो, ने मूसा को कुछ उत्तम सुझाव दिये (18:19)। उसने बताया कि यदि वह इस काम को किसी और को नहीं सौंपेगा, तो वह थक जाएगा: ‘यह काम तेरे लिये बहुत भारी है; तू इसे अकेला नहीं कर सकता’ (पद - 18ब)। मूसा अपने ससुर की सुनने के लिए काफी नम्र और बुद्धिमान था।
सबकुछ खुद ही करना ‘अच्छा नहीं’ है (पद - 17)। यह अगुआई करने का बुरा तरीका है और इससे थकान हो जाती है: ‘ इस से तू क्या, वरन ये लोग भी जो तेरे संग हैं निश्चय हार जाएंगे’ (पद - 18)। इससे दूसरे लोगों के वरदान, समय और क्षमता का उपयोग ठीक तरह से नहीं हो पाता। इससे लोगों के साथ-साथ आप भी हतोत्साहित हो जाएंगे
फिर भी, सिर्फ नियुक्त करने से , समस्या का हल नहीं होगा। हमें सही अगुए की ज़रूरत है। यदि आप गलत लोगों को नियुक्त करेंगे, तो आप किसी भी तरह से समस्या का समाधान नहीं कर पाएंगे। यदि आप सही अगुए को चुनेंगे तो आप उनपर भरोसा कर सकते हैं, उन्हें भेज सकते हैं और उन्हें सशक्त कर सकते हैं।
मूसा ने यित्रो का सुझाव माना। अगुओं को चुनने और उन्हें नियुक्त करने के लिए उसने तीन शर्तें रखीं। पहली शर्त, उसने सक्षम लोगों को चुना (पद - 21अ)। जब हम लोगों को नियुक्त करते हैं तो हमें उन पर भरोसा होना ज़रूरी है। दूसरी शर्त, उसने अगुओं को उनकी आत्मिकता के आधार पर चुना – जो परमेश्वर का भय मानते थे (पद - 21ब)। तीसरी शर्त, उनका चरित्र था। हमें ‘कर्तव्यनिष्ठ’ लोग चाहिये (पद - 21क)। जो – ईमानदार, बुद्धिमान, और विश्वासयोग्य हो।
मूसा ने अगुओं को उनकी क्षमताओं को ध्यान में रखते हुए विभिन्न तरह से ज़िम्मेदारियाँ सौंपी (उन को हज़ार - हज़ार, सौ - सौ, पचास - पचास, और दस - दस मनुष्यों पर प्रधान नियुक्त किया, 21क)। उसने कुछ संख्या में निर्णय लेने वालों को भी नियुक्त किया, लेकिन सभी को नहीं। उन्हें साधारण निर्णय लेने की अनुमति दी, लेकिन सभी नहीं (पद - 26)। परिणाम यह हुआ कि मूसा तनाव में भी ठहर सका और लोग कुशल से घर पहुँच गए (पद - 23)।
प्रार्थना
प्रभु, मेरी मदद कीजिये कि मैं अपने जीवन में आपके साथ संबंध बनाने को पहली प्राथमिकता दे सकूँ और सक्षम लोगों को ढूँढ सकूँ, जो परमेश्वर का भय मानते हैं और जो विश्वासयोग्य हैं, ताकि मैं उन्हें सशक्त करके भेज सकूँ जिससे मैं ‘तनाव में स्थिर रह सकूँ और लोग संतुष्ट होकर घर जा सकें’ (पद - 23)।
पिप्पा भी कहते है
निर्गमन 18:9,17-19
यित्रो बहुत अच्छा ससुर था। वह मूसा की सफलता को देखकर आनंदित था और जब उसने मूसा को परेशानी में देखा तो उसे सुझाव दिया।

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संदर्भ
नोट्स
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