दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न
परिचय
लंदन विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के बुद्धिमान प्राध्यापक, सी.ई.एम. जोड, एक मसीही नहीं थे। एक रेडियो कार्यक्रम में उनसे पूछा गया कि, ‘यदि आप अतीत में से किसी व्यक्ति से मिलें और उनसे सिर्फ एक ही प्रश्न पूछें, तो आप किससे मिलना चाहेंगे और क्या पूछना चाहेंगे?’
प्राध्यापक जोड ने बिना संकोच किये उत्तर दिया: ‘मैं यीशु से मिलकर दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न पूछना चाहूँगा कि – क्या आप मरने के बाद फिर से जीवित हुए थे या नहीं हुए थे? ’
फिर प्राध्यापक जोड के जीवन में ऐसा दिन आया जब वह सबूतों का आंकलन कर रहे थे, तो उनकी मुलाकात स्वयं यीशु से हुई और उन्होंने ‘रिकवरी ऑफ बिलीफ’ नामक एक किताब लिखी। यदि यीशु मसीह मरने के बाद फिर से जी उठे हैं, तो यह सब कुछ बदल देता है।
जब नये नियम के लेखक परमेश्वर के प्रेम के बारे में लिखते हैं तो वे क्रूस की ओर संकेत करते हैं। जब वे परमेश्वर की सामर्थ के बारे में लिखते हैं तो वे पुनरूत्थान की ओर संकेत करते हैं। परमेश्वर की ‘अतुलनीय महान सामर्थ’ मसीह में डाल दी गई थी जब उन्होंने यीशु को मरे हुओं में से जीवित किया था’ (इफीसियों 1:19=20)। जी उठे यीशु अपने शिष्यों से कहते हैं, ‘स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार मुझे दिया गया है’ (मत्ती 28:18)।
पुनरूत्थान का अर्थ है, यीशु हमारे साथ अब भी मौजूद हैं। यीशु आगे कहते हैं ‘मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूँ’ (पद - 20)।
उनके पुनरूत्थान का परिणाम केवल उनकी सामर्थ और उनकी उपस्थिति ही नहीं है बल्कि उनकी व्यवस्था भी है।
भजन संहिता 21:8-13
8 हे परमेश्वर! तू दिखा देगा अपने सभी शत्रुओं को कि तू सुदृढ़ शक्तिवान है।
जो तुझ से घृणा करते हैं तेरी शक्ति उन्हें पराजित करेगी।
9 हे यहोवा, जब तू राजा के साथ होता है
तो वह उस भभकते भाड़ सा बन जाता है,
जो सब कुछ भस्म करता है।
उसकी क्रोधाग्नि अपने सभी बैरियों को भस्म कर देती है।
10 परमेश्वर के बैरियों के वंश नष्ट हो जायेंगे,
धरती के ऊपर से वह सब मिटेंगे।
11 ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि यहोवा, तेरे विरुद्ध उन लोगों ने षड़यन्त्र रचा था?
उन्होंने बुरा करने को योजनाएँ रची थी, किन्तु वे उसमें सफल नहीं हुए।
12 किन्तु यहोवा तूने ऐसे लोगों को अपने अधीन किया, तूने उन्हें एक साथ रस्से से बाँध दिया, और रस्सियों का फँदा उनके गलों में डाला।
तूने उन्हें उनके मुँह के बल दासों सा गिराया।
13 यहोवा के और उसकी शक्ति के गुण गाओ
आओ हम गायें और उसके गीतों को बजायें जो उसकी गरिमा से जुड़े हुए हैं।
समीक्षा
उनकी सामर्थ**
नये नियम के अनुसार यीशु ही हैं जो ‘परमेश्वर की सामर्थ हैं’ (1कुरिंथियों 1:24)।
दाऊद ‘तेरी सामर्थ’ और ‘तेरी शक्ति’ यानि परमेश्वर की स्तुति करता है (भजन संहिता 21:13, एएमपी)। वह परमेश्वर के ‘हाथ’ में अपने विश्वास के बारे में कहता है (पद - 8अ) और वह भी खासकर के ‘दाहिने हाथ’ के बारे में (पद - 8ब)। बाइबल में, हाथ, खासकर दाहिने हाथ का उपयोग सामर्थ और अधिकार के प्रतीक के रूप में किया गया है (उदाहरण के लिए हमारे पुराने नियम आज के पठन, निर्गमन 15:6,12 देखें)। दाऊद न्याय के विषय में परमेश्वर के शक्तिशाली हाथ के बारे में कहता है।
नये नियम में, पुनरूत्थानित यीशु का बार - बार उल्लेख ‘परमेश्वर के दाहिने हाथ पर’ किया गया है (उदाहरण के लिए प्रेरितों के कार्य 2:33अ)। जब हम हानि और बुरी युक्तियों को पूरा होता हुआ देखते हैं, तो हमें यह याद रखना चाहिये कि उनकी ताकत अस्थायी है क्योंकि यीशु संपूर्ण अधिकार और सामर्थ के साथ परमेश्वर के दाहिने हाथ पर बैठे हैं। ऐसा समय आएगा जब परमेश्वर हस्तक्षेप करेंगे। यीशु जी उठे हैं और जीवित और मरे हुओं का न्याय करने के लिए फिर से आने वाले हैं।
प्रार्थना
प्रभु, आपकी महान सामर्थ और अधिकार के लिए आपका धन्यवाद। ‘हे प्रभु अपनी सामर्थ में महान हो! और हम गा - गाकर तेरे पराक्रम का भजन सुनाएंगे’ (पद - 13)।
मत्ती 28:1-20
यीशु का फिर से जी उठना
28सब्त के बाद जब रविवार की सुबह पौ फट रही थी, मरियम मगदलीनी और दूसरी स्त्री मरियम कब्र की जाँच करने आईं।
2 क्योंकि स्वर्ग से प्रभु का एक स्वर्गदूत वहाँ उतरा था, इसलिए उस समय एक बहुत बड़ा भूचाल आया। स्वर्गदूत ने वहाँ आकर पत्थर को लुढ़का दिया और उस पर बैठ गया। 3 उसका रूप आकाश की बिजली की तरह चमचमा रहा था और उसके वस्त्र बर्फ़ के जैसे उजले थे। 4 वे सिपाही जो कब्र का पहरा दे रहे थे, डर के मारे काँपने लगे और ऐसे हो गये जैसे मर गये हों।
5 तब स्वर्गदूत उन स्त्रियों से कहा, “डरो मत, मैं जानता हूँ कि तुम यीशु को खोज रही हो जिसे क्रूस पर चढ़ा दिया गया था। 6 वह यहाँ नहीं है। जैसा कि उसने कहा था, वह मौत के बाद फिर जिला दिया गया है। आओ, उस स्थान को देखो, जहाँ वह लेटा था। 7 और फिर तुरंत जाओ और उसके शिष्यों से कहो, ‘वह मरे हुओं में से जिला दिया गया है और अब वह तुमसे पहले गलील को जा रहा है तुम उसे वहीं देखोगे’ जो मैंने तुमसे कहा है, उसे याद रखो।”
8 उन स्त्रियों ने तुरंत ही कब्र को छोड़ दिया। वे भय और आनन्द से भर उठी थीं। फिर यीशु के शिष्यों को यह बताने के लिये वे दौड़ पड़ीं। 9 अचानक यीशु उनसे मिला और बोला, “अरे तुम!” वे उसके पास आयीं, उन्होंने उसके चरण पकड़ लिये और उसकी उपासना की। 10 तब यीशु ने उनसे कहा, “डरो मत, मेरे बंधुओं के पास जाओ, और उनसे कहो कि वे गलील के लिए रवाना हो जायें, वहीं वे मुझे देखेंगे।”
पहरेदारों द्वारा यहूदी नेताओं को घटना की सूचना
11 अभी वे स्त्रियाँ अपने रास्ते में ही थीं कि कुछ सिपाही जो पहरेदारों में थे, नगर में गए और जो कुछ घटा था, उस सब की सूचना प्रमुख याजकों को जा सुनाई। 12 सो उन्होंने बुज़ुर्ग यहूदी नेताओं से मिल कर एक योजना बनायी। उन्होंने सिपाहियों को बहुत सा धन देकर 13 कहा कि वे लोगों से कहें कि यीशु के शिष्य रात को आये और जब हम सो रहे थे उसकी लाश को चुरा ले गये। 14 यदि तुम्हारी यह बात राज्यपाल तक पहुँचती है तो हम उसे समझा लेंगे और तुम पर कोई आँच नहीं आने देंगे। 15 पहरेदारों ने धन लेकर वैसा ही किया, जैसा उन्हें बताया गया था। और यह बात यहूदियों में आज तक इसी रूप में फैली हुई है।
यीशु की अपने शिष्यों से बातचीत
16 फिर ग्यारह शिष्य गलील में उस पहाड़ी पर पहुँचे जहाँ जाने को उनसे यीशु ने कहा था। 17 जब उन्होंने यीशु को देखा तो उसकी उपासना की। यद्यपि कुछ के मन में संदेह था। 18 फिर यीशु ने उनके पास जाकर कहा, “स्वर्ग और पृथ्वी पर सभी अधिकार मुझे सौंपे गये हैं। 19 सो, जाओ और सभी देशों के लोगों को मेरा अनुयायी बनाओ। तुम्हें यह काम परम पिता के नाम में, पुत्र के नाम में और पवित्र आत्मा के नाम में, उन्हें बपतिस्मा देकर पूरा करना है। 20 वे सभी आदेश जो मैंने तुम्हें दिये हैं, उन्हें उन पर चलना सिखाओ। और याद रखो इस सृष्टि के अंत तक मैं सदा तुम्हारे साथ रहूँगा।”
समीक्षा
उनकी उपस्थिति
मैंने पाया है कि पुनरूत्थानित यीशु की उपस्थिति को महसूस करने से बढ़कर जीवन में और कुछ नहीं है।
जी उठने वाले यीशु अपने अनुयायियों को आज्ञा देते हैं, ‘तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ ’ (पद - 19अ)। व्यक्तिगत रूप से और मसीही समाज के रूप में यह हमारी बुलाहट है। हमारे चर्च का मिशन कथन है: ‘देशों में सुसमाचार का प्रचार करने के लिए अपनी भूमिका निभाना, चर्च को फिर से मज़बूती देना और समाज को बदलना।’ इसे यीशु की इन आज्ञाओं से लिया गया है।
आज्ञा के साथ एक वाचा भी आती है: ‘मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूँ’ (पद - 20ब)। पुनरूत्थान सिर्फ ऐतिहासिक सच या धार्मिक विचार नहीं है; यह जीवन को बदल देने वाली सच्चाई है। परमेश्वर वायदा करते हैं जब आप उनकी आज्ञाओं को पूरा करने के लिए बाहर जाएंगे, तो पुनरूत्थानित यीशु की उपस्थिति आपके साथ जाएगी।
जब स्त्रियाँ कब्र को खाली देखती है तो स्वर्गदूत उससे कहते हैं, ‘वह यहाँ नहीं हैं, परन्तु अपने वचन के अनुसार जी उठे हैं…. तुम उसका दर्शन पाओगे’ (पद - 6-7)।
वे आनंद से भर गईं और शिष्यों को बताने के लिए दौड़ पड़ीं। जब उन्होंने ऐसा किया तो, ‘यीशु उन्हें मिला’ (पद - 9)। उन्होंने जी उठे यीशु की उपस्थिति महसूस की (पद - 8-10), ‘उन्होंने उसके पाँव पकड़कर उस को दंडवत किया और उसे प्रणाम किया’ (पद - 9ब, 17अ)।
खाली कब्र को बयान न करने का दूसरों का प्रयास बहुत जल्दी शुरू हो गया (पद - 13) और सभी सबूतों के बावजूद, किसी ने भी विश्वास नहीं किया (पद - 17ब)। यह बताया गया ‘कि रात को जब हम सो रहे थे, तो उसके चेले आकर उसे चुरा ले गए’ (पद - 13)। कुछ लोग अब भी इस स्पष्टीकरण को निर्विवाद मान रहे हैं। लेकिन यह सबूत के साथ सही नहीं बैठता।
शिष्य घबरा गए थे और निराश हो गए थे। सिर्फ यीशु का मृतकों में से जी उठना ही उन्हें बदल सकता था।
उन्होंने अपेक्षा नहीं की थी कि यीशु मृतकों में से जी उठेंगे। और मृत शरीर चुराने का उनका कोई इरादा नहीं था।
कब्र पर सख्त पहरा था।
केवल उन्होंने ही यीशु को नहीं देखा, बल्कि यीशु के जी उठने के बाद अन्य कई लोगों ने उन्हें देखा और चालीस दिनों तक उनसे बातचीत की (प्रेरितों के कार्य 1:3, 1 कुरिंथियों 15:6)।
यदि शिष्यों ने उनकी देह चुराई होती, तो उनका पूरा जीवन झूठ पर आधारित होता। मेरे दोस्त इआन वाकर, एक कैम्ब्रिज विज्ञानी हैं, जो मसीही बने क्योंकि उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि उनके शिष्य जानबूझ कर सताए जाने और मारे जाने के लिए तैयार होते उस कारण के लिए जो बिल्कुल सही नहीं था।
यह वास्तव में सच है। यीशु जी उठे। मरना और गाड़े जाना अंत नहीं है। मसीह में आप भी मृतकों में से जी उठेंगे।
पहली बार एक स्त्री को यह संदेश देने का काम सौंपा गया था। खासकर यह ध्यान देने योग्य है कि उस समय न्यायालय में महिलाओं को एक गवाह के रूप में नहीं माना जाता था। बाइबल में महिलाओं द्वारा अगुआई करने के अनेक उदाहरण हैं (हमारे आज के पुराने नियम के पद्यांश में मरियम एक और उदाहरण है)।
मत्ती के सुसमाचार का आरंभ यह कहकर हुआ है कि यीशु ‘परमेश्वर हमारे साथ’ हैं (मत्ती 1:23)। इस सुसमाचार के आखिरी वचन में यीशु इस बात की पुष्टि करते हैं कि उनके शिष्यों के साथ उनकी उपस्थिति सदा तक बनी रहेगी। जो यीशु पर विश्वास करते हैं और जो उनकी आज्ञाओं को मानते हैं, उनके लिए वह वायदा करते हैं, ‘देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूँ’ (28:20ब)।
प्रार्थना
प्रभु, आपका धन्यवाद कि आपने मुझे सारे देशों में शिष्य बनाने के लिए भेजा है और आप वायदा करते हैं कि जब मैं ऐसा करूँगा, तो यीशु की उपस्थिति मेरे साथ बनी रहेगी।
निर्गमन 15:1-16:36
मूसा का गीत
15तब मूसा और इस्राएल के लोग यहोवा के लिए यह गीत गाने लगे:
“मैं यहोवा के लिए गाऊँगा क्योंकि
उसने महान काम किये हैं।
उसने घोड़ों और सवारों को समुद्र में फेंका है।
2 यहोवा ही मेरी शक्ति है।
वह हमें बचाता है
और मैं गाता हूँ गीत उसकी प्रशंसा के।
मेरा परमेश्वर यहोवा है
और मैं उसकी स्तुति करता हूँ।
मेरे पूर्वजों का परमेश्वर यहोवा है
और मैं उसका आदर करता हूँ।
3 यहोवा महान योद्धा है।
उसका नाम यहोवा है।
4 उसने फ़िरौन के रथ
और सैनिकों को समुद्र में फेंक दिया।
फ़िरौन के उत्तम अधिकारी
लाल सागर में डूब गए।
5 गहरे पानी ने उन्हें ढका।
वे चट्टानों की तरह गहरे पानी में डूबे।
6 “तेरी दायीं भुजा अद्भुत शक्तिशाली है।
यहोवा, तेरी दायीं भुजा ने शत्रु को चकनाचूर कर दिया।
7 तूने अपनी महामहिमा में नष्ट किया
उन्हें जो व्यक्ति तेरे विरुद्ध खड़े हुए।
तेरे क्रोध ने उन्हें उस प्रकार नष्ट किया
जैसे आग तिनके को जलाती है।
8 तूने जिस तेज आँधी को चलाया,
उसने जल को ऊँचा उठाया।
वह तेज़ बहता जल ठोस दीवार बना।
समुद्र ठोस बन गया अपने गहरे से गहरे भाग तक।
9 “शत्रु ने कहा,
‘मैं उनका पीछा करूँगा और उनको पकड़ूँगा।
मैं उनका सारा धन लूँगा।
मैं अपनी तलवार चलाऊँगा और उनसे हर चीज़ लूँगा।
मैं अपने हाथों का उपयोग करूँगा और अपने लिए सब कुछ लूँगा।’
10 किन्तु तू उन पर टूट पड़ा
और उन्हें समुद्र से ढक दिया तूने
वे सीसे की तरह डूबे गहरे समुद्र में।
11 “क्या कोई देवता यहोवा के समान है? नहीं!
तेरे समान कोई देवता नहीं,
तू है अद्भुत अपनी पवित्रता में!
तुझमें है विस्मयजनक शक्ति
तू अद्भुत चमत्कार करता है!
12 तू अपना दाँया हाथ उठा कर
संसार को नष्ट कर सकता था!
13 परन्तु तू कृपा कर उन लोगों को ले चला
जिन्हें तूने बचाया है।
तू अपनी शक्ति से इन लोगों को अपने पवित्र
और सुहावने देश को ले जाता है।
14 “अन्य राष्ट्र इस कथा को सुनेंगे
और वे भयभीत होंगे।
पलिश्ती लोग भय से काँपेंगे।
15 तब एदोम के मुखिया भय से काँपेंगे
मोआब के शक्तिशाली नेता भय से काँपेंगे,
कनान के व्यक्ति अपना साहस खो देंगे।
16 वे लोग आतंक और भय से आक्रान्त होंगे जब
वे तेरी शक्ति देखेंगे।
वे चट्टान के समान शान्त रहेंगे जब तक
तुम्हारे लोग गुज़रेंगे जब तक तेरे द्वारा लाए गए लोग गुज़रेंगे।
17 यहोवा अपने लोगों को स्वयं ले जाएगा
अपने पर्वत पर उस स्थान तक जिसे तूने अपने सिंहासन के लिए बनाया है।
हे स्वामी, तू अपना मन्दिर अपने हाथों बनायेगा।
18 “यहोवा सदा सर्वदा शासन करता रहेगा।”
19 हाँ, ये सचमुच हुआ! फ़िरौन के घोड़े, सवार और रथ समुद्र में चले गए और यहोवा ने उन्हें समुद्र के पानी से ढक दिया। किन्तु इस्राएल के लोग सूखी ज़मीन पर चलकर समुद्र के पार चले गए।
20 तब हारून की बहन नबिया मरियम ने एक डफली ली। मरियम और स्त्रियों ने नाचना, गाना आरम्भ किया। मरियम की टेक थी,
21 “यहोवा के लिए गाओ क्योंकि
उसने महान काम किए हैं।
फेंका उसने घोड़े को और उसके सवार को
सागर के बीच में।”
इस्राएल मरुभूमि में पहुँचे
22 मूसा इस्राएल के लोगों को लाल सागर से दूर ले जाता रहा, लोग शूर मरुभूमि में पहुँचे। वे तीन दिन तक मरुभूमि में यात्रा करते रहे। लोग तनिक भी पानी न पा सके। 23 तीन दिन के बाद लोगों ने मारा की यात्रा की। मारा में पानी था, किन्तु पानी इतना कड़वा था कि लोग पी नहीं सकते थे। (यही कारण था कि इस स्थान का नाम मारा पड़ा।)
24 लोगों ने मूसा से शिकायत शुरु की। लोगों ने कहा, “अब हम लोग क्या पीएं?”
25 मूसा ने यहोवा को पुकारा। इसलिए यहोवा ने उसे एक पेड़ दिखाया। मूसा ने पेड़ को पानी में डाला। जब उसने ऐसा किया, पानी अच्छा पीने योग्य हो गया। उस स्थान पर यहोवा ने लोगों की परीक्षा ली और उन्हें एक नियम दिया।
यहोवा ने लोगों के विश्वास की जाँच की। 26 यहोवा ने कहा, “तुम लोगों को अपने परमेश्वर यहोवा का आदेश अवश्य मानना चाहिए। तुम लोगों को वह करना चाहिए जिसे वह ठीक कहता है। यदि तुम लोग यहोवा के आदेशों और नियमों का पालन करोगे तो तुम लोग मिस्रियों की तरह बीमार नहीं होगे। मैं तुम्हारा यहोवा तुम लोगों को कोई ऐसी बीमारी नहीं दूँगा जैसी मैंने मिस्रियों को दी। मैं यहोवा हूँ। मैं ही वह हूँ जो तुम्हें स्वस्थ बनाता है।”
27 तब लोगों ने एलीम तक की यात्रा की। एलीम में पानी के बारह सोते थे। और वहाँ सत्तर खजूर के पेड़ थे। इसलिए लोगों ने वहाँ पानी के निकट डेरा डाला।
16तब लोगों ने एलीम से यात्रा की और सीनै मरुभूमि में पहुँचे। यह स्थान एलीम और सीनै के बीच था। वे इस स्थान पर दूसरे महीने के पन्द्रहवें दिन मिस्र छोड़ने के बाद पहुँचे। 2 तब इस्राएल के लोगों ने फिर शिकायत करनी शुरु की। उन्होंने मूसा और हारुन से मरुभूमि में शिकायत की। 3 लोगों ने मूसा और हारुन से कहा, “यह हमारे लिए अच्छा होता कि यहोवा ने हम लोगों को मिस्र में मार डाला होता। मिस्र में हम लोगों के पास खाने को बहुत था। हम लोगों के पास वह सारा भोजन था जिसकी हमें आवश्यकता थी। किन्तु अब तुम हमें मरुभूमि में ले आये हो। हम सभी यहाँ भूख से मर जाएंगे।”
4 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “मैं आकाश से भोजन गिराऊँगा। वह भोजन तुम लोगों के खाने के लिए होगा। हर एक दिन लोग बाहर जायें और उस दिन खाने की जरूरत के लिए भोजन इकट्ठा करें। मैं यह इसलिए करूँगा कि मैं देखूँ कि क्या लोग वही करेंगे जो मैं करने को कहूँगा। 5 हर एक दिन लोग प्रत्येक दिन के लिए पर्याप्त भोजन इकट्ठा करें। किन्तु शुक्रवार को जब भोजन तैयार करने लगें तो देखें कि वे दो दिन के लिए पर्याप्त भोजन रखते हैं।”
6 इसलिए मूसा और हारून ने इस्राएल के लोगों से कहा, “आज की रात तुम लोग यहोवा की शक्ति देखोगे। तुम लोग जानोगे कि एक मात्र वह ही ऐसा है जिसने तुम लोगों को मिस्र देश से बचा कर बाहर निकाला। 7 कल सवेरे तुम लोग यहोवा की महिमा देखोगे। तुम लोगों ने यहोवा से शिकायत की। उसने तुम लोगों की सुनी। तुम लोग हम लोगों से शिकायत पर शिकायत कर रहे हो। संभव है कि हम लोग अब कुछ आराम कर सकें।”
8 और मूसा ने कहा, “तुम लोगों ने शिकायत की और यहोवा ने तुम लोगों की शिकायतें सुन ली है। इसलिए रात को यहोवा तुम लोगों को माँस देगा और हर सवेरे तुम लोग वह सारा भोजन पाओगे, जिसकी तुम को ज़रुरत है। तुम लोग मुझसे और हारून से शिकायत करते रहे हो। याद रखो तुम लोग मेरे और हारून के विरुद्ध शिकायत नहीं कर रहे हो। तुम लोग यहोवा के विरुद्ध शिकायत कर रहे हो।”
9 तब मूसा ने हारून से कहा, “इस्राएल के लोगों को सम्बोधित करो। उनसे कहो, ‘यहोवा के सामने इकट्ठे हों क्योंकि उसने तुम्हारी शिकायतें सुनी हैं।’”
10 हारून ने इस्राएल के सभी लोगों को सम्बोधित किया। वे सभी एक स्थान पर इकट्ठे थे। जब हारून बातें कर रहा था तभी लोग मुड़े और उन्होंने मरूभूमि की ओर देखा और उन्होंने यहोवा की महिमा को बादल में प्रकट होते देखा।
11 यहोवा ने मूसा से कहा, 12 “मैंने इस्राएल के लोगों की शिकायत सुनी है। इसलिए उनसे मेरी बातें कहो। मैं कहता हूँ, ‘आज साँझ को तुम माँस खाओगे और कल सवेरे तुम लोग भरपेट रोटियाँ खाओगे, तब तुम लोग जानोगे कि तुम लोग अपने परमेश्वर यहोवा पर विश्वास कर सकते हो।’”
13 उस रात बटेरें (पक्षियाँ) डेरे के चारों ओर आईं। लोगों ने इन बटेरों को माँस के लिए पकड़ा। सवेरे डेरे के पास ओस पड़ी होती थी। 14 सूरज के निकलने पर ओस पिघल जाती थी किन्तु ओस के पिघलने पर पाले की तह की तरह ज़मीन पर कुछ रह जाता था। 15 इस्राएल के लोगों ने इसे देखा और परस्पर कहा, “वह क्या है?” उन्होंने यह प्रश्न इसलिए पूछा कि वे नहीं जानते थे कि वह क्या चीज है। इसलिए मूसा ने उनसे कहा, “यह भोजन है जिसे यहोवा तुम्हें खाने को दे रहा है। 16 यहोवा कहता है, ‘हर व्यक्ति उतना इकट्ठा करे जितना उसे आवश्यक है। तुम लोगों में से हर एक लगभग दो क्वार्ट अपने परिवार के हर व्यक्ति के लिए इकट्ठा करे।’”
17 इसलिए इस्राएल के लोगों ने ऐसा ही किया। हर व्यक्ति ने इस भोजन को इकट्ठा किया। कुछ व्यक्तियों ने अन्य लोगों से अधिक इकट्ठा किया। 18 उन लोगों ने अपने परिवार के हर एक व्यक्ति को भोजन दिया। जब भोजन नापा गया तो हर एक व्यक्ति के लिए सदा पर्याप्त रहा, किन्तु कभी भी आवश्यकता से अधिक नहीं हुआ। हर व्यक्ति ने ठीक अपने लिए तथा अपने परिवार के खाने के लिए पर्याप्त इकट्ठा किया।
19 मूसा ने उनसे कहा, “अगले दिन खाने के लिए वह भोजन मत बचाओ।” 20 किन्तु लोगों ने मूसा की बात न मानी। कुछ लोगों ने अपना भोजन बचाया जिससे वे उसे अगले दिन खा सकें। किन्तु जो भोजन बचाया गया था उसमें कीड़े पड़ गए और वह दुर्गन्ध देने लगा। मूसा उन लोगों पर क्रोधित हुआ जिन्होंने यह किया था।
21 हर सवेरे लोग भोजन इकट्ठा करते थे। हर एक व्यक्ति उतना इकट्ठा करता था जितना वह खा सके। किन्तु जब धूप तेज होती थी भोजन गल जाता था और वह समाप्त हो जाता था।
22 शुक्रवार को लोगों ने दुगना भोजन इकट्ठा किया। उन्होंने चार र्क्वाट हर व्यक्ति के लिए इकट्ठा किया। इसलिए लोगों के सभी मुखिया आए और उन्होंने यह बात मूसा से कही।
23 मूसा ने उनसे कहा, “यह वैसा ही है जैसा यहोवा ने बताया था। क्यों? क्योंकि कल यहोवा के आराम का पवित्र दिन सब्त है। तुम लोग आज के लिए जितना भोजन तुम्हें चाहिए पका सकते हो। किन्तु शेष भोजन कल सवेरे के लिए बचाना।”
24 इसलिए लोगों ने अगले दिन के लिए बाकी भोजन बचाया और कोई भोजन खराब नहीं हुआ और इनमें कहीं कोई कीड़े नहीं पड़े।
25 शनिवार को मूसा ने लोगों से कहा, “आज यहोवा को समर्पित आराम का पवित्र दिन सब्त है। इसलिए तुम लोगों में से कल कोई भी खेत में बाहर नहीं होगा। कल का इकट्ठा भोजन खाओ। 26 तुम लोगों को छः दिन भोजन इकट्ठा करना चाहिए। किन्तु सातवाँ दिन आराम का दिन है इसलिए जमीन पर कोई विशेष भोजन नहीं होगा।”
27 शनिवार को कुछ लोग थोड़ा भोजन एकत्र करने गए, किन्तु वे वहाँ ज़रा सा भी भोजन नहीं पा सके। 28 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “तुम्हारे लोग मेरे आदेश का पालन करने और उपदेशों पर चलने से कब तक मना करेंगे? 29 देखो यहोवा ने शनिवार को तुम्हारे आराम का दिन बनाया है। इसलिए शुक्रवार को यहोवा दो दिन के लिए पर्याप्त भोजन तुम्हें देगा। इसलिए सब्त को हर एक को बैठना और आराम करना चाहिए। वहीं ठहरे रहो जहाँ हो।” 30 इसलिए लोगों ने सब्त को आराम किया।
31 इस्राएली लोगों ने इस विशेष भोजन को “मन्ना” कहना आरम्भ किया। मन्ना छोटे सफ़ेद धनिया के बीजों के समान था और इसका स्वाद शहद के साथ बने पापड़ की तरह था। 32 तब मूसा ने कहा, “यहोवा ने आदेश दिया कि, ‘इस भोजन का आठ प्याले भर अपने वंशजों के लिए बचाना। तब वे उस भोजन को देख सकेंगे जिसे मैंने तुम लोगों को मरुभूमि में तब दिया था जब मैंने तुम लोगों को मिस्र से निकाला था।’”
33 इसलिए मूसा ने हारून से कहा, “एक घड़ा लो और इसे आठ प्याले मन्ना से भरो और इस मन्ना को यहोवा के सामने रखने के लिए और अपने वंशजों के लिए बचाओ।” 34 (इसलिए हारून ने वैसा ही किया जैसा यहोवा ने मूसा को आदेश दिया था। हारून ने आगे चलकर मन्ना के घड़े को साक्षीपत्र के सन्दूक के सामने रखा।) 35 लोगों ने चालीस वर्ष तक मन्ना खाया। वे मन्ना तब तक खाते रहे जब तक उस प्रदेश में नहीं आ गए जहाँ उन्हें बसना था। वे उसे तब तक खाते रहे जब तक वे कनान के निकट नहीं आ गए। 36 (वे मन्ना के लिए जिस तोल का उपयोग करते थे, वह ओमेर था। एक ओमेर लगभग आठ प्यालों के बराबर था।)
समीक्षा
उनका प्रावधान
क्या आप अपने भविष्य – अपने स्वास्थ्य, अपनी नौकरी, अपने परिवार या अपने धन को लेकर चिंतित हैं? आज ही निर्णय लें कि आप चिंता नहीं करेंगे। जॉयस मेयर लिखती हैं: ‘जब हम भविष्य की चिंता करते हैं, तो हम आज का दिन बरबाद कर देते हैं, परमेश्वर पर भरोसा कीजिये और एक बार में एक ही दिन जीना सीखिये।’
इस पद्यांश में हम देखते हैं कि परमेश्वर देने का वायदा करते हैं, लेकिन एक बार में केवल एक ही दिन के लिए। यीशु ने हमें प्रार्थना करने के लिए सिखाया है कि, ‘हमारी दिन भर की रोटी आज हमें दे’ (मत्ती 6:11)। परमेश्वर पर भरोसा कीजिये कि आपको जब भी ज़रूरत होगी वह आपके लिए उपलब्ध कराएंगे।
अध्याय 15 में मूसा और मरियम का गीत परमेश्वर पर भरोसा बनाए रखने का एक बढ़िया उदाहरण है जिसे आराधना में व्यक्त किया गया है। उन्होंने परमेश्वर के गुणों की प्रशंसा की है (निर्गमन 15:1-5), फिर वे परमेश्वर की स्तुति करते हैं जो उन्होंने पिछले दिनों में किया था – उद्धार, छुटकारा और प्रावधान (पद - 6-12), और अंत में वे उनकी स्तुति करते हैं, उसके लिए जो वह भविष्य में करने वाले हैं – मार्गदर्शन, उद्धार, सुरक्षा और प्रावधान (पद - 13-18)।
परमेश्वर उनकी भौतिक ज़रूरतों को पूरा करने का वायदा करते हैं। वह ‘स्वर्ग से रोटी’ बरसाने का वायदा करते हैं (16:4अ) जिसे ‘मन्ना’ कहा जाता है (पद - 31)। वह हर दिन उनकी सारी ज़रूरतों को ‘रोज की रोटी’ के रूप में पूरा करते है (पद - 18क, 21अ)। लेकिन उनसे कहा गया था कि उन्हें कल के लिए कुछ भी बचाकर नहीं रखना है: ‘कोई इस में से कुछ बिहान तक न रख छोड़े’ (पद - 19)।
यह ऐसा है जिसे हमने चर्च समुदाय के रूप में बरसों तक अनुभव किया है। परमेश्वर हमारी भौतिक ज़रूरतों को पूरा करते हैं, लेकिन वह हमें ज़रूरत से ज़्यादा नहीं देते। हम भविष्य के लिए अपने संसाधनों को बचाकर नहीं रखते, बजाय इसके हम परमेश्वर पर लगातार भरोसा करते हैं कि वह हमें महीने दर महीने और साल दर साल आपूर्ति देते रहेंगे।
यह हमेशा इच्छा बनी रहती है कि हम भविष्य के लिए कुछ न कुछ बचाकर रखें - बजाय इसके कि हम परमेश्वर पर भरोसा रखें कि जब भी हमें ज़रूरत होगी वह हमें अवश्य देंगे। यह हमारी आत्मिक ज़रूरतों के लिए भी लागू होता है – हम अतीत की आशीषों पर भरोसा नहीं कर सकते।
इस पद्यांश में ऐसा कहा गया है कि परमेश्वर के लोग अतीत में की गई परमेश्वर की भलाई और प्रावधानों को कितनी जल्दी भूल जाते हैं और वर्तमान में अपनी परेशानियों को लेकर कुड़कुड़ाने लगते हैं। अक्सर हम ऐसा ही करते हैं – परमेश्वर की आशीषों को भुलाकर कुड़कुड़ाते रहना। यह पद्यांश हमें अच्छे समय में और बुरे समय में परमेश्वर पर भरोसा करने की याद दिलाता है।
यीशु खुद हमसे कहते हैं कि वह परमेश्वर का संपूर्ण प्रावधान हैं। वह कहते हैं, ‘जीवन की रोटी मैं हूँ। तुम्हारे बाप दादों ने जंगल में मन्ना खाया और मर गए। यह वह रोटी है जो स्वर्ग से उतरती है ताकि मनुष्य उस में से खाए और न मरे। जीवन की रोटी जो स्वर्ग से उतरी है मैं हूँ। यदि कोई इस रोटी में से खाए, तो सर्वदा जीवित रहेगा और जो रोटी मैं जगत के जीवन के लिये दूंगा, वह मेरा मांस है’ (युहन्ना 6:48-51)।
यह यीशु का पुनरूत्थान है जो इस व्यवस्थापन को अनंत उत्तमता प्रदान करता है। क्योंकि यीशु जी उठे हैं, जो इस रोटी को खाएगा, वह सर्वदा जीवित रहेगा।
प्रार्थना
प्रभु आपका धन्यवाद, कि आपने वायदा किया है कि ‘आप अपने उस धन के अनुसार जो महिमा सहित मसीह यीशु में है हमारी हर एक घटी को पूरी करेगा’ (फिलिप्पीयों 4:19)। जब मैं धन्यवाद सहित पीछे देखता हूँ, तब मैं आशा के साथ भविष्य में देखता हूँ और यह भरोसा करता हूँ कि आप अपने उस के धन के अनुसार जो महिमा सहित यीशु में है मेरी ज़रूरतों को पूरा करते रहेंगे।
पिप्पा भी कहते है
मत्ती 28:1-8
उस संस्कृति में जहाँ स्त्री को दूसरे दर्जे का नागरिक माना जाता था, यीशु ने सबसे पहले दो स्त्रियों को दर्शन दिया। उन्होंने दो साधारण स्त्रियों को चुना और इतिहास का सबसे महत्त्वपूर्ण समाचार सौंपा।
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संदर्भ
नोट्स
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