दिन 48

अपने अंतःकरण को तेज़ करें

बुद्धि नीतिवचन 5:1-14
नए करार मरकुस 2:18-3:30
जूना करार निर्गमन 21:1-22:31

परिचय

आज के लेखांश में यीशु प्रश्न पूछते हैं, ‘क्या उचित है…. भला करना या बुरा करना….?’

मैं एक नास्तिक हुआ करता था। मेरा मानना था कि हमारे शरीर, हमारा मन और परिस्थितियाँ जिसमें हम जन्में हैं ये सभी हमारे कार्य को निर्धारित करते हैं। तर्क संगत तरीके से, मुझे ऐसा लगता था कि कोई ईश्वर नहीं है और नैतिकता के लिए कोई आधार नहीं है। इसलिए इस तर्क को मानते हुए, कुछ भी ‘अच्छा’ या ‘बुरा’ नहीं है।

फिर भी, गहराई में, मैं जानता था कि ‘अच्छे’ और ‘बुरे’ के रूप में ऐसी कोई चीज़ है। हाँलाकि मैं परमेश्वर पर विश्वास नहीं करता था, फिर भी मैं उन शब्दों का इस्तेमाल करता था। फिर भी जब तक मेरी यीशु से मुलाकात नहीं हुई थी, मैं जान गया था कि एक परमेश्वर हैं जिन्होंने एक नैतिक सृष्टि की रचना की है। पवित्र शास्त्र में और खासकर व्यक्तिगत रूप से यीशु मसीह में, अच्छे और बुरे की प्रकृति प्रकट होती है।

परमेश्वर ने हमें अंत:करण दिया है ताकि हम जान लें कि कुछ चीज़ें ‘अच्छी’ हैं और बाकी की ‘बुरी’ हैं। लेकिन हमारा अंत:करण धूमिल हो सकता है और उन्हें सत्य की वस्तुनिष्ठ द्वारा तेज़ किया जा सकता है।

बुद्धि

नीतिवचन 5:1-14

पराई स्त्री से बचे रह

5हे मेरे पुत्र, तू मेरी बुद्धिमता की बातों पर ध्यान दे।
 मेरे अर्न्तदृष्टि के वचन को लगन से सुन।
2 जिससे तेरा भले बुरे का बोध बना रहे
 और तेरे होठों पर ज्ञान संरक्षित रहे।
3 क्योंकि व्यभिचारिणी के होंठ मधु टपकाते हैं
 और उसकी वाणी तेल सी फिसलन भरी है।
4 किन्तु परिणाम में यह ज़हर सी कढ़वी और
 दुधारी तलवार सी तेज धार है!
5 उसके पैर मृत्यु के गर्त की तरफ बढ़ते हैं और
 वे सीधे कब्र तक ले जाते हैं!
6 वह कभी भी जीवन के मार्ग की नहीं सोचती!
 उसकी रोहें खोटी हैं! किन्तु, हाय, उसे ज्ञात नहीं!

7 अब मेरे पुत्रों, तुम मेरी बात सुनों।
 जो कुछ भी मैं कहता हूँ, उससे मुँह मत मोड़ो।
8 तुम ऐसी राह चलो, जो उससे सुदूर हो।
 उसके घर—द्वार के पास तक मत जाना।
9 नहीं तो तुम अपनी उत्तम शक्ति को दूसरों के हाथों में दे बैठोगे और
 अपने जीवन वर्षकिसी ऐसे को जो क्रूर है।
10 ऐसा न हो, तुम्हारे धन पर अजनबी मौज करें।
 तुम्हारा परिश्रम औरों का घर भरे।
11 जब तेरा माँस और काया चूक जायेंगे
 तब तुम अपने जीवन के आखिरी छोर पर रोते बिलखते यूँ ही रह जाओगे।
12 और तुम कहोगे, “हाय! अनुशासन से मैंने क्यों बैर किया
 क्यों मेरा मन सुधार की उपेक्षा करता रहा
13 मैंने अपने शिक्षकों की बात नहीं मानी
 अथवा मैंने अपने प्रशिक्षकों पर ध्यान नहीं दिया।
14 मैं सारी मण्डली के सामने,
 महानाश के किनारे पर आ गया हूँ।”

समीक्षा

बुराई से बचे रहें, जो अच्छाई के रूप में छिपा होता है

हर एक पाप में एक तरह का भ्रम छिपा होता है। अक्सर भलाई के रूप में बुराई छिपी रहती है। इसमें एक ऊपरी आकर्षण होता है – ‘क्योंकि पराई स्त्री के होठों से मधु टपकता है, और उसकी बातें तेल से भी अधिक चिकनी होती हैं’ (पद - 3)। ‘परन्तु इसका परिणाम नागदौना सा कडुवा और दोधारी तलवार सा पैना होता है’ (पद - 4) ‘इसके पांव मृत्यु की ओर बढ़ते हैं (पद - 5अ) और उसके पग अधोलोक तक पहुँचते हैं’ (पद - 5ब)।

ये वचन कामुक लालसा के आकर्षण और खतरे दोनों को बयान करते हैं। हम कामुकीकरण के बढ़ते हुए समाज में रहते हैं जिसमे हमारे चारों ओर इंटरनेट पर अश्लील चीज़ें और कामुक तस्वीरें पहले से ही मौजूद हैं और एक ऐसी सभ्यता जो हमें कामुकता को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित करने का प्रयास करती है।

हमारी लैंगिकता परमेश्वर द्वारा दी गई एक आशीष है (उत्पत्ति 2:24 देखें), लेकिन जब हम गलत तरीके से इसकी इच्छा करते हैं तो यह विनाशकारी और नुकसान पहुँचाने वाली हो सकती है। ये वचन हमें लैंगिक पाप के आकर्षण के प्रति सावधान ही नहीं करते हैं, बल्कि इसके द्वारा बहक जाने के प्रति चेतावनी भी देते हैं।

‘तू अपने जीवन के अंतिम समय में पछतावे से भरा होना नहीं चाहता’ (नीतिवचन 5:11, एम.एस.जी.)। जॉयस मेयर लिखती हैं, ‘बुद्धि हमारी दोस्त है, यह हमें मदद करती है कि हम पछतावे या अफसोस में न जीएं। मुझे लगता है दुनिया में सबसे दु:खद बात यह होगी जब मैं बुढ़ापे में अपने जीवन के अतीत में झांकूँ और जो मैंने किया या जो मैंने नहीं किया उस पर पछताऊँ। बुद्धि हमें अभी निर्णय लेने में मदद करती है ताकि हम बाद में खुश रहें।’

खुद को उस मार्ग से दूर रखिये जिस पर आगे जाकर आपको पछताना ना पड़े। ‘ऐसी स्त्री से दूर ही रह, और उसकी डेवढ़ी के पास भी न जाना’ (पद - 8)। यदि हम इस सुझाव को अनदेखा करें, तो हम अपने जीवन को बरबाद कर सकते हैं और अपने जीवन के अंत में हम बहुत पछता सकते हैं। प्रलोभन से खतरा मोल मत लीजिये; प्रलोभन से दूर रहिये।

प्रार्थना

प्रभु, मुझे अपने जीवन में बुद्धिपूर्ण सावधानी लेने में मदद कीजिये ताकि मैं उन सभी से दूर रहूँ जो मुझे पाप में ले जाती हैं, ‘हमें परीक्षा में न डाल, बल्कि हमें बुराई से बचा’ (मत्ती 6:13)।

नए करार

मरकुस 2:18-3:30

यीशु अन्य धर्मगुरुओं से भिन्न है

18 यूहन्ना के शिष्य और फरीसियों के शिष्य उपवास किया करते थे। कुछ लोग यीशु के पास आये और उससे पूछने लगे, “यूहन्ना और फरीसियों के चेले उपवास क्यों रखते हैं? और तेरे शिष्य उपवास क्यों नहीं रखते?”

19 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “निश्चय ही बराती जब तक दूल्हे के साथ हैं, उनसे उपवास रखने की उम्मीद नहीं की जाती। जब तक दूल्हा उनके साथ है, वे उपवास नहीं रखते। 20 किन्तु वे दिन आयेंगे जब दूल्हा उनसे अलग कर दिया जायेगा और तब, उस समय, वे उपवास करेंगे।

21 “कोई भी किसी पुराने वस्त्र में अनसिकुड़े कोरे कपड़े का पैबन्द नहीं लगाता। और यदि लगाता है तो कोरे कपड़े का पैबन्द पुराने कपड़े को भी ले बैठता है और फटा कपड़ा पहले से भी अधिक फट जाएगा। 22 और इसी तरह पुरानी मशक में कोई भी नयी दाखरस नहीं भरता। और यदि कोई ऐसा करे तो नयी दाखरस पुरानी मशक को फाड़ देगी और मशक के साथ साथ दाखरस भी बर्बाद हो जायेगी। इसीलिये नयी दाखरस नयी मशकों में ही भरी जाती है।”

यहूदियों द्वारा यीशु और उसके शिष्यों की आलोचना

23 ऐसा हुआ कि सब्त के दिन यीशु खेतों से होता हुआ जा रहा था। जाते जाते उसके शिष्य खेतों से अनाज की बालें तोड़ने लगे। 24 इस पर फ़रीसी यीशु से कहने लगे, “देख सब्त के दिन वे ऐसा क्यों कर रहे हैं जो उचित नहीं है?”

25 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुमने कभी दाऊद के विषय में नहीं पढ़ा कि उसने क्या किया था जब वह और उसके साथी संकट में थे और उन्हें भूख लगी थी? 26 क्या तुमने नहीं पढ़ा कि, जब अबियातार महायाजक था तब वह परमेश्वर के मन्दिर में कैसे गया और परमेश्वर को भेंट में चढ़ाई रोटियाँ उसने कैसे खाईं (जिनका खाना महायाजक को छोड़ कर किसी को भी उचित नहीं है) कुछ रोटियाँ उसने उनको भी दी थीं जो उसके साथ थे?”

27 यीशु ने उनसे कहा, “सब्त मनुष्य के लिये बनाया गया है, न कि मनुष्य सब्त के लिये। 28 इसलिये मनुष्य का पुत्र सब्त का भी प्रभु है।”

सूखे हाथ वाले को चंगा करना

3एक बार फिर यीशु यहूदी आराधनालय में गया। वहाँ एक व्यक्ति था जिसका एक हाथ सूख चुका था। 2 कुछ लोग घात लगाये थे कि वह उसे ठीक करता है कि नहीं, ताकि उन्हें उस पर दोष लगाने का कोई कारण मिल जाये। 3 यीशु ने सूखे हाथ वाले व्यक्ति से कहा, “लोगों के सामने खड़ा हो जा।”

4 और लोगों से पूछा, “सब्त के दिन किसी का भला करना उचित है या किसी को हानि पहुँचाना? किसी का जीवन बचाना ठीक है या किसी को मारना?” किन्तु वे सब चुप रहे।

5 फिर यीशु ने क्रोध में भर कर चारों ओर देखा और उनके मन की कठोरता से वह बहुत दुखी हुआ। फिर उसने उस मनुष्य से कहा, “अपना हाथ आगे बढ़ा।” उसने हाथ बढ़ाया, उसका हाथ पहले जैसा ठीक हो गया। 6 तब फ़रीसी वहाँ से चले गये और हेरोदियों के साथ मिल कर यीशु के विरुद्ध षड़यन्त्र रचने लगे कि वे उसकी हत्या कैसे कर सकते हैं।

बहुतों का यीशु के पीछे हो लेना

7 यीशु अपने शिष्यों के साथ झील गलील पर चला गया। उसके पीछे एक बहुत बड़ी भीड़ भी हो ली जिसमें गलील, 8 यहूदिया, यरूशलेम, इदूमिया और यर्दन नदी के पार के तथा सूर और सैदा के लोग भी थे। लोगों की यह भीड़ उन कामों के बारे में सुनकर उसके पास आयी थी जिन्हें वह करता था।

9 भीड़ के कारण उसने अपने शिष्यों से कहा कि वे उसके लिये एक छोटी नाव तैयार रखें ताकि भीड़ उसे दबा न ले। 10 यीशु ने बहुत से लोगों को चंगा किया था इसलिये बहुत से वे लोग जो रोगी थे, उसे छूने के लिये भीड़ में ढकेलते रास्ता बनाते उमड़े चले आ रहे थे। 11 जब कभी दुष्टात्माएँ यीशु को देखतीं वे उसके सामने नीचे गिर पड़तीं और चिल्ला कर कहतीं “तू परमेश्वर का पुत्र है!” 12 किन्तु वह उन्हें चेतावनी देता कि वे सावधान रहें और इसका प्रचार न करें।

यीशु द्वारा अपने बारह प्रेरितों का चयन

13 फिर यीशु एक पहाड़ पर चला गया और उसने जिनको वह चाहता था, अपने पास बुलाया। वे उसके पास आये। 14 जिनमें से उसने बारह को चुना और उन्हें प्रेरित की पदवी दी। उसने उन्हें चुना ताकि वे उसके साथ रहें और वह उन्हें उपदेश प्रचार के लिये भेजे। 15 और वे दुष्टात्माओं को खदेड़ बाहर निकालने का अधिकार रखें। 16 इस प्रकार उसने बारह पुरुषों की नियुक्ति की। ये थे: शमौन (जिसे उसने पतरस नाम दिया), 17 जब्दी का पुत्र याकूब और याकूब का भाई यूहन्ना (जिनका नाम उसने बूअनर्गिस रखा, जिसका अर्थ है “गर्जन का पुत्र”), 18 अंद्रियास, फिलिप्पुस, बरतुलमै, मत्ती, थोमा, हलफई का पुत्र याकूब, तद्दी और शमौन जिलौती या कनानी 19 तथा यहूदा इस्करियोती (जिसने आगे चल कर यीशु को धोखे से पकड़वाया था)।

यहूदियों का कथन: यीशु में शैतान का वास है

20 तब वे सब घर चले गये। जहाँ एक बार फिर इतनी बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गयी कि यीशु और उसके शिष्य खाना तक नहीं खा सके। 21 जब उसके परिवार के लोगों ने यह सुना तो वे उसे लेने चल दिये क्योंकि लोग कह रहे थे कि उसका चित्त ठिकाने नहीं है।

22 यरूशलेम से आये धर्मशास्त्री कहते थे, “उसमें बालजेबुल यानी शैतान समाया है। वह दुष्टात्माओं के सरदार की शक्ति के कारण ही दुष्टात्माओं को बाहर निकालता है।”

23 यीशु ने उन्हें अपने पास बुलाया और दृष्टान्तों का प्रयोग करते हुए उनसे कहने लगा, “शैतान, शैतान को कैसे निकाल सकता है? 24 यदि किसी राज्य में अपने ही विरुद्ध फूट पड़ जाये तो वह राज्य स्थिर नहीं रह सकेगा। 25 और यदि किसी घर में अपने ही भीतर फूट पड़ जाये तो वह घर बच नहीं पायेगा। 26 इसलिए यदि शैतान स्वयं अपना विरोध करता है और फूट डालता है तो वह बना नहीं रह सकेगा और उसका अंत हो जायेगा।

27 “किसी शक्तिशाली के मकान में घुसकर उसके माल-असवाब को लूट कर निश्चय ही कोई तब तक नहीं ले जा सकता जब तक सबसे पहले वह उस शक्तिशाली व्यक्ति को बाँध न दे। ऐसा करके ही वह उसके घर को लूट सकता है।

28 “मैं तुमसे सत्य कहता हूँ, लोगों को हर बात की क्षमा मिल सकती है, उनके पाप और जो निन्दा बुरा भला कहना उन्होंने किये हैं, वे भी क्षमा किये जा सकते हैं। 29 किन्तु पवित्र आत्मा को जो कोई भी अपमानित करेगा, उसे क्षमा कभी नहीं मिलेगी। वह अनन्त पाप का भागी है।”

30 यीशु ने यह इसलिये कहा था कि कुछ लोग कह रहे थे इसमें कोई दुष्ट आत्मा समाई है।

समीक्षा

यीशु के बारे में निर्णय लें: अच्छे या बुरे?

यीशु कौन हैं? हम सबको यीशु के बारे में अपने मन को तैयार करना है: क्या वह बुरे थे? क्या वह पागल थे? या वह परमेश्वर थे? यह कोई नया सवाल नहीं है। यीशु के समय में भी लोग इन तीन विकल्पों में से किसी एक को नहीं चुन पाते थे।

यीशु एक महान धार्मिक गुरू नहीं थे। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि वह उससे भी बढ़कर हैं। यीशु ने खुद के बारे में विस्मयकारी दावा किया था। बल्कि अपेक्षाकृत मरकुस के सुसमाचार के छोटे से भाग में भी हम ऐसे अनेक दावे देखते हैं।

सी.एस. लेविस ने बताया कि, ‘एक पुरूष जो एक साधारण मनुष्य था और यीशु की तरह उन बातों को कहता कि वह एक नैतिक शास्त्री नहीं है। तो या तो वह \[पागल\] था या फिर वह ‘नरक का शैतान’ था। आपको अपना चुनाव करना ज़रूरी है,’ लेकिन सी.एस. लेविस आगे लिखते हैं, ‘उनके महान शास्त्री होने के बारे में हम कोई कृपापूर्ण बकवास बातें न करें। उन्होंने इसे हमारे लिए खुला नहीं छोड़ा है। उनका ऐसा कोई इरादा नहीं था।’ सच में केवल तीन विकल्प में हैं: या तो वह दुष्ट थे या पागल थे या फिर उनका दावा सही था।

1. क्या वह दुष्ट थे?

व्यवस्था के शास्त्रियों ने कहा कि, ‘उस में शैतान है, और यह भी, कि वह दुष्टात्माओं के सरदार की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता है’ (3:22)। वे कह रहे थे, ‘कि उस में अशुद्ध आत्मा है’ (पद - 30ब)।

2. क्या वह पागल थे?

लोग यीशु के बारे में कहते थे, ‘कि उसका चित्त ठिकाने नहीं है’ (पद - 21ब)।

3. क्या वह परमेश्वर हैं?

यीशु ने ज़ोर देकर कहा कि वह दूल्हा हैं (2:18-19 देखें)। वह खुद का वर्णन ‘सब्त के दिन के स्वामी के रूप में’ करते हैं (पद - 28), बल्कि दुष्टात्माओं ने भी चिल्लाकर कहा ‘तू परमेश्वर का पुत्र है’ (3:11), यीशु ने इसका इंकार नहीं किया, बल्कि ‘उसने उन्हें बहुत चिताया, कि मुझे प्रगट न करना’ (पद - 12)।

यीशु के बारे में हमारे निर्णय का बहुत बड़ा परिणाम होगा कि वह दुष्ट हैं, पागल हैं या परमेश्वर हैं।

उनके साथ तीन वर्ष बिताने के बाद, उनके शिष्य इस निर्णय पर पहुँचे कि वह सच में परमेश्वर के असाधारण पुत्र थे - वचन देहधारी हुआ, एक ऐसा मनुष्य जिसकी पहचान, परमेश्वर थे (2:21-22)। यीशु ने उन्हें बुलाया, वह हमें भी बुला रहे हैं, पहले ‘उनके साथ रहने के लिए’ और फिर दुनिया में उनका संदेश ले जाने के लिए (3:14-15)।

जो उनका वर्णन दुष्ट के रूप में करते हैं उनसे यीशु कहते हैं, ‘जो कोई पवित्रात्मा के विरूद्ध निन्दा करे, वह कभी भी क्षमा न किया जाएगा’ (पद - 29)। इस वचन ने काफी लोगों को दु:खी कर दिया। लेकिन जिस किसी ने भी इस बारे में चिंता की उसने कभी पाप नहीं किया। जो पश्चाताप करेगा वह क्षमा पाएगा। सच्चाई यह है कि वे अशांत थे (यानि वे पश्चाताप करने के लिए तैयार थे) जो इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने पाप नहीं किया था।

यहाँ पर जो संदर्भित किया जा रहा है वह सिर्फ वाक्य का उच्चारण नहीं करना है, बल्कि मन में निश्चय करना है। यीशु ने ऐसा नहीं कहा कि उन्होंने पाप किया है। ये शास्त्री परमेश्वर के लोगों से विधिवत मान्यता प्राप्त धार्मिक गुरू थे। वे लोग हर दिन परमेश्वर के संपर्क में रहते थे।

यह एक प्रवत्ति है जो अच्छे को बुरे के रूप में, और बुरे को अच्छे के रूप में समझती है। ऐसे व्यक्ति इस कदर डूब जाते हैं कि वे ना तो पश्चाताप कर पाते हैं और ना ही क्षमा प्राप्त करते हैं। इस श्रेणी में ‘यहूदा इस्करियोती भी है जिसने उन्हें धोखा दिया था’ (पद - 19)।

नये नियम हमें आश्वासन देता है कि जो पश्चाताप नहीं करेगा और यीशु की ओर नहीं मुड़ेगा, उसे क्षमा नहीं किया जाएगा।

प्रार्थना

यीशु आज मैं आपको दूल्हे के रूप में और मेरे प्रभु और परमेश्वर के पुत्र के रूप में, आपकी आराधना करता हूँ।

जूना करार

निर्गमन 21:1-22:31

अन्य नियम एवं आदेश

21तब परमेश्वर ने मूसा से कहा, “ये वे अन्य नियम हैं, जिन्हें तुम लोगों को बताओगे,

2 “यदि तुम एक हिब्रू दास खरीदते हो तो उसे तुम्हारी सेवा केवल छः वर्ष करनी होगी। छः वर्ष बाद वह स्वतन्त्र हो जाएगा। उसे कुछ भी नहीं देना पड़ेगा। 3 तुम्हारा दास होने के पहले यदि उसका विवाह नहीं हुआ है तो वह पत्नी के बिना ही स्वतन्त्र होकर चला जाएगा। किन्तु यदि दास होने के समय वह व्यक्ति विवाहित होगा तो स्वतन्त्र होने के समय वह अपनी पत्नी को अपने साथ ले जाएगा। 4 यदि दास विवाहित नहीं होगा तो उसका स्वामी उसे पत्नी दे सकेगा। यदि वह पत्नी, पुत्र या पुत्रियों को जन्म देगी तो वह स्त्री तथा बच्चे उस दास के स्वामी के होंगे। अपने सेवाकाल के पूरा होने पर केवल वह दास ही स्वतन्त्र किया जाएगा”

5 “किन्तु यह हो सकता है कि दास यह निश्चय करे कि वह अपने स्वामी के साथ रहना चाहता है। तब उसे कहना पड़ेगा, ‘मैं अपने स्वामी से प्रेम करता हूँ। मैं अपनी पत्नी और अपने बच्चों से प्रेम करता हूँ। मैं स्वतन्त्र नहीं होऊँगा मैं यहीं रहूँगा।’ 6 यदि ऐसा हो तो दास का स्वामी उसे परमेश्वर के सामने लाएगा। दास का स्वामी उसे किसी दरवाज़े तक या उसकी चौखट तक ले जाएगा और दास का स्वामी एक तेज़ औज़ार से दास के कान में एक छेद करेगा। तब दास उस स्वामी की सेवा जीवन भर करेगा।

7 “कोई भी व्यक्ति अपनी पुत्री को दासी के रूप में बेचने का निश्चय कर सकता है। यदि ऐसा हो तो उसे स्वतन्त्र करने के लिए वे ही नियम नहीं हैं जो पुरुष दासों को स्वतन्त्र करने के लिए हैं। 8 यदि स्वामी उस स्त्री से सन्तुष्ट नहीं है तो वह उसके पिता को उसे वापस बेच सकता है। किन्तु यदि दासी का स्वामी उस स्त्री से विवाह करने का वचन दे तो वह दूसरे व्यक्ति को उसे बेचने का अधिकार खो देता है। 9 यदि दासी का स्वामी उस दासी से अपने पुत्र का विवाह करने का वचन दे तो उससे दासी जैसा व्यवहार नहीं किया जाएगा। उसके साथ पुत्री जैसा व्यवहार करना होगा”

10 “यदि दासी का स्वामी किसी दूसरी स्त्री से भी विवाह करे तो उसे चाहिए कि वह पहली पत्नी को कम भोजन या वस्त्र न दे और उसे चाहिए कि उन चीजों को लगातार वह उसे देता रहे जिन्हें पाने का उसे अधिकार विवाह से मिला है। 11 उस व्यक्ति को ये तीन चीजें उसके लिए करनी चाहिए। यदि वह इन्हें नहीं करता तो स्त्री स्वतन्त्र की जाएगी और इसके लिए उसे कुछ देना भी नहीं पड़ेगा। उसे उस व्यक्ति को कोई धन नहीं देना होगा”

12 “यदि कोई व्यक्ति किसी को चोट पहुँचाए और उसे मार डाले तो उस व्यक्ति को भी मार दिया जाय। 13 किन्तु यदि ऐसा संयोग होता है कि कोई बिना पूर्व योजना के किसी व्यक्ति को मार दे, तो ऐसा परमेश्वर की इच्छा से ही हुआ होगा। मैं कुछ विशेष स्थानों को चुनूँगा जहाँ लोग सुरक्षा के लिए दौड़कर जा सकते हैं। इस प्रकार वह व्यक्ति दौड़कर इनमें से किसी भी स्थान पर जा सकता है। 14 किन्तु कोई व्यक्ति यदि किसी व्यक्ति के प्रति क्रोध या घृणा रखने के कारण उसे मारने की योजना बनाए तो हत्यारे को दण्ड अवश्य मिलना चाहिए। उसे मेरी वेदी से दूर ले जाओ और उसे मार डालो”

15 “कोई व्यक्ति जो अपने माता—पिता को चोट पहुँचाये वह अवश्य ही मार दिया जाये।

16 “यदि कोई व्यक्ति किसी को दास के रूप में बेचने या अपना दास बनाने के लिए चुराए तो उसे अवश्य मार दिया जाए।

17 “कोई व्यक्ति, जो अपने माता—पिता को शाप दे तो उसे अवश्य मार दिया जाए।

18 “दो व्यक्ति बहस कर सकते हैं और एक दूसरे को पत्थर या मुक्के से मार सकते हैं। उस व्यक्ति को तुम्हें कैसे दण्ड देना चाहिए? यदि चोट खाया हुआ व्यक्ति मर न जाए तो चोट पहुँचाने वाला व्यक्ति मारा न जाए। 19 किन्तु यदि चोट खाए व्यक्ति को कुछ समय तक चारपाई पकड़नी पड़े तो चोट पहुँचाने वाले व्यक्ति को उसे हर्जाना देना चाहिए। चोट पहुँचाने वाला व्यक्ति उसके समय की हानि को धन से पूरा करे। वह व्यक्ति तब तक उसे हर्जाना दे जब तक वह पूरी तरह ठीक न हो जाए”

20 “कभी कभी लोग अपने दास और दासियों को पीटते हैं। यदि पिटाई के बाद दास मर जाए तो हत्यारे को अवश्य दण्ड दिया जाए। 21 किन्तु दास यदि मरता नहीं और कुछ दिनों बाद वह स्वस्थ हो जाता है तो उस व्यक्ति को दण्ड नहीं दिया जाएगा। क्यों? क्योंकि दास के स्वामी ने दास के लिए धन दिया और दास उसका है।

22 “दो व्यक्ति आपस में लड़ सकते हैं और किसी गर्भवती स्त्री को चोट पहुँचा सकते हैं। यदि वह स्त्री अपने बच्चे को समय से पहले जन्म देती है, और माँ बुरी तरह घायल नहीं है तो चोट पहुँचानेवाला व्यक्ति उसे अवश्य धन दे। उस स्त्री का पति यह निश्चित करेगा कि वह व्यक्ति कितना धन दे। न्यायाधीश उस व्यक्ति को यह निश्चय करने में सहायता करेंगे कि वह धन कितना होगा। 23 किन्तु यदि स्त्री बुरी तरह घायल हो तो वह व्यक्ति जिसने उसे चोट पहुँचाई है अवश्य दण्डित किया जाए। यदि एक व्यक्ति मार दिया जाता है तो हत्यारा अवश्य मार दिया जाए। तुम एक जीवन के बदले दूसरा जीवन लो। 24 तुम आँख के बदले आँख, दाँत के बदले दाँत, हाथ के बदले हाथ, पैर के बदले पैर लो। 25 जले के बदले जलाओ, खरोंच के बदले खरोंच करो और घाव के बदले घाव।

26 “यदि कोई व्यक्ति किसी दास की आँख को चोट पहुँचाए और दास उस आँख से अन्धा हो जाए तो वह दास स्वतन्त्र हो जाने दिया जाएगा। उसकी आँख उसकी स्वतन्त्रता का मूल्य है। यह नियम दास या दासी दोनों के लिए समान है। 27 यदि दास का स्वामी दास के मुँह पर मारे और दास का कोई दाँत टूट जाए तो दास को स्वतन्त्र कर दिया जाएगा। दास का दाँत उसकी स्वतन्त्रता का मूल्य है। यह दास और दासी दोनों के लिए समान है।

28 “यदि किसी व्यक्ति का कोई बैल किसी स्त्री को या पुरुष को मार देता है तो तुम पत्थरों का उपयोग करो और बैल को मार डालो। तुम्हें उस बैल को खाना नहीं चाहिए। किन्तु बैल का स्वामी अपराधी नहीं है। 29 किन्तु यदि बैल ने पहले लोगों को चोट पहुँचाई हो और स्वामी को चेतावनी दी गई हो तो वह स्वामी अपराधी है। क्यों? क्योंकि इसने बैल को बाँधा या बन्द नहीं रखा। यदि बैल स्वतन्त्र छोड़ा गया हो और किसी को वह मारे तो स्वामी अपराधी है। तुम पत्थरों से बैल और उसके स्वामी को भी मार दो। 30 किन्तु मृतक का परिवार यदि चाहे तो बदले में धन लेकर बैल के मालिक को छोड़ सकता है। किन्तु वह उतना धन दे जितना न्यायाधीश निश्चित करे।

31 “यही नियम उस समय भी लागू होगा जब बैल किसी व्यक्ति के पुत्र या पुत्री को मारता है। 32 किन्तु बैल यदि दास को मार दे तो बैल का स्वामी दास के स्वामी को एक नये दास का मूल्य चाँदी के तीस सिक्के दे और बैल भी पत्थरों से मार डाला जाए। यह नियम दास और दासी के लिए समान होगा।

33 “कोई व्यक्ति कोई गका या कुँआ खोदे और उसे ढके नहीं और यदि किसी व्यक्ति का जानवर आए और उसमें गिर जाए तो गके का स्वामी दोषी है। 34 गके का स्वामी जानवर के लिए धन देगा। किन्तु जानवर के लिए धन देने के बाद उसे उस मरे जानवर को लेने दिया जाएगा।

35 “यदि किसी का बैल किसी दूसरे व्यक्ति के बैल को मार डाले तो वे दोनों उस जीवित बैल को बेच दें। दोनों व्यक्ति बेचने से प्राप्त आधा—आधा धन और मरे बैल का आधा—आधा भाग ले लें। 36 किन्तु यदि उस व्यक्ति के बैल ने पहले भी किसी दूसरे जानवर को चोट पहुँचाई हो तो उस बैल का स्वामी अपने बैल के लिए उत्तरदायी है। यदि उसका बैल दूसरे बैल को मार डालता है तो यह अपराधी है क्योंकि उसने बैल को स्वतन्त्र छोड़ा। वह व्यक्ति बैल के बदले बैल अवश्य दे। वह मारे गए बैल के बदले अपना बैल दे।

22“जो व्यक्ति किसी बैल या भेड़ को चुराता है उसे तुम कैसा दण्ड दोगे? यदि वह व्यक्ति जानवर को मार डाले या बेच दे तो वह उसे लौटा तो नहीं सकता। इसलिए वह एक चुराए बैल के बदले पाँच बैल दे। या वह एक चुराई गई भेड़ के बदले चार भेड़ें दे। वह चोरी के लिए कुछ धन भी दे। 2-4 किन्तु यदि उसके पास अपना कुछ भी नहीं है तो चोरी के लिए उसे दास के रूप में बेचा जाएगा। किन्तु यदि उसके पास चोरी का जानवर पाया जाए तो वह व्यक्ति जानवर के स्वामी को हर एक चुराए गए जानवर के बदले दो जानवर देगा। इस बात का कोई अन्तर नहीं पड़ेगा कि जानवर बैल, गधा या भेड़ें हो।

“यदि कोई चोर रात को घर में सेंध लगाने का प्रयत्न करते समय मारा जाए तो उसे मारने का अपराधी कोई नहीं होगा। किन्तु यदि यह दिन में हो तो उसका हत्यारा व्यक्ति अपराध का दोषी होगा। चोर को निश्चय ही क्षतिपूर्ति करनी होगी।

5 “यदि कोई व्यक्ति अपने खेत या अँगूर के बाग में आग लगाए और वह उस आग को फैलने दे और वह उसके पड़ोसी के खेत या अँगूर के बाग को जला दे तो वह अपने पड़ोसी की हानि की पूर्ति में देने के लिए अपनी सबसे अच्छी फसल का उपयोग करेगा। y

6 “कोई व्यक्ति अपने खेत की झाड़ियों को जलाने के लिए आग लगाए। किन्तु यदि आग बढ़े और उसके पड़ोसी की फसल या पड़ोसी के खेत में उगे अन्न को जला दे तो आग लगाने वाला व्यक्ति जली हुई चीज़ों के बदले भुगतान करेगा।

7 “कोई व्यक्ति अपने पड़ोसी से उसके घर में कुछ धन या कुछ अन्य चीज़ें रखने को कहे और यदि वह धन या वे चीज़ें पड़ोसी के घर से चोरी चली जाए तो तुम क्या करोगे? तुम्हें चोर का पता लगाने का प्रयत्न करना चाहिए। यदि तुमने चोर को पकड़ लिया तो वह चीज़ों के मूल्य का दुगुना देगा। 8 किन्तु यदि तुम चोर का पता न लगा सके तब परमेश्वर निर्णय करेगा कि पड़ोसी अपराधी है या नहीं। घर का स्वामी परमेश्वर के सामने जाए और परमेश्वर ही निर्णय करेगा कि उसने चुराया है या नहीं।

9 “यदि दो व्यक्ति किसी खोए बैल, गधा, भेड़, वस्त्र, यदि किसी अन्य खोई हुई चीज़ के बारे में सहमत न हों तो तुम क्या करोगे? एक व्यक्ति कहता है, ‘यह मेरी है।’ और दूसरा कहता है, ‘नहीं, यह मेरी है।’ दोनों व्यक्ति परमेश्वर के सामने जाएँ। परमेश्वर निर्णय करेगा कि अपराधी कौन है। जिस व्यक्ति को परमेश्वर अपराधी पाएगा वह उस चीज़ के मूल्य से दुगुना भुगतान करे।

10 “कोई अपने पड़ोसी से कुछ समय के लिए अपने जानवर की देखभाल के लिए कहे। वह जानवर बैल, भेड़, गधा या कोई अन्य पशु हो और यदि वह जानवर मर जाए, उसे चोट आ जाए या कोई उसे तब हाँक ले जाए जब कोई न देख रहा हो तो तुम क्या करोगे? 11 वह पड़ोसी स्पष्ट करे कि उसने जानवर को नहीं चुराया है। यदि यह सत्य हो तब पड़ोसी यहोवा की शपथ उठाए कि उसने वह नहीं चुराया है। जानवर का मालिक इस शपथ को अवश्य स्वीकार करे। पड़ोसी को जानवर के लिए मालिक को भुगतान नहीं करना होगा। 12 किन्तु यदि पड़ोसी ने जानवर को चुराया हो तो वह मालिक को जानवर के लिए भुगतान अवश्य करे। 13 यदि जंगली जानवरों ने जानवर को मारा हो तो प्रमाण के लिए उसके शरीर को पड़ोसी लाए। पड़ोसी मारे गए जानवर के लिए मालिक को भुगतान नहीं करेगा।

14 “यदि कोई व्यक्ति अपने पड़ोसी से किसी जानवर को उधार ले तो उसके लिए वह व्यक्ति ही उत्तरदायी है। यदि उस जानवर को चोट पहुँचे या वह मर जाए तो पड़ोसी मालिक को उस जानवर के लिए भुगतान करे। पड़ोसी इसलिए उत्तरदायी है क्योंकि उसका मालिक स्वयं वहाँ नहीं था। 15 किन्तु यदि मालिक जानवर के साथ वहाँ हो तब पड़ोसी को भुगतान नहीं करना होगा। या यदि पड़ोसी काम लेने के लिए धन का भुगतान कर रहा हो तो जानवर के मरने या चोट खाने पर उसे कुछ भी नहीं देना होगा। जानवर के उपयोग के लिए दिया गया भुगतान ही पर्याप्त होगा।

16 “यदि कोई पुरुष किसी अविवाहित कुँवारी कन्या से यौन सम्बन्ध करे तो वह उससे निश्चय ही विवाह करे। और वह उस लड़की के पिता को पूरा दहेज दे। 17 यदि पिता अपनी पुत्री को उसे विवाह के लिए देने से इन्कार करता है तो भी उस व्यक्ति को धन देना पड़ेगा। वह उसे दहेज का पूरा धन दे।

18 “तुम किसी स्त्री को जादू टोना मत करने देना। यदि वह ऐसा करे तो तुम उसे जीवित मत रहने देना।

19 “तुम किसी व्यक्ति को किसी जानवर के साथ यौन सम्बन्ध न रखने देना। यदि ऐसा हो तो वह व्यक्ति अवश्य मार डाला जाए।

20 “यदि कोई किसी मिथ्या देवता को बलि चढ़ाए तो उस व्यक्ति को अवश्य नष्ट कर दिया जाए। केवल परमेश्वर यहोवा ही ऐसा है जिसे तुमको बलि चढ़ानी चाहिए।

21 “याद रखो इससे पहले तुम लोग मिस्र देश में विदेशी थे। अतः तुम लोग उस व्यक्ति को न ठगो, न ही चोट पहुँचाओ जो तुम्हारे देश में विदेशी हो।

22 “निश्चय ही तुम लोग ऐसी स्त्रियों का कभी बुरा नहीं करोगे जिनके पति मर चुके हों या उन बच्चों का जिनके माता—पिता न हों। 23 यदि तुम लोग उन विधवाओं या अनाथ बच्चों का कुछ बुरा करोगे तो वे मेरे आगे रोएंगे और मैं उनके कष्टों को सुनूँगा 24 और मुझे बहुत क्रोध आएगा। मैं तुम्हें तलवार से मार डालूँगा। तब तुम्हारी पत्नियाँ विधवा हो जाएंगी और तुम्हारे बच्चे अनाथ हो जाएंगे।

25 “यदि मेरे लोगों में से कोई गरीब हो और तुम उसे कर्ज़ दो तो उस धन के लिए तुम्हें ब्याज़ नहीं लेना चाहिए। और जल्दी चुकाने के लिए भी तुम उसे मजबूर नहीं करोगे। 26 कोई व्यक्ति उधार लिए हुए धन के भुगतान के लिए अपना लबादा गिरवी रख सकता है। किन्तु तुम सूरज डूबने के पहले उसका वह वस्त्र अवश्य लौटा देना। 27 यदि वह व्यक्ति अपना लबादा नहीं पाता तो उसके पास शरीर ढकने को कुछ भी नहीं रहेगा। जब वह सोएगा तो उसे सर्दी लगेगी। यदि वह मुझे रोकर पुकारेगा तो मैं उसकी सुनूँगा। मैं उसकी बात सुनूँगा क्योंकि मैं कृपालु हूँ।

28 “तुम्हें परमेश्वर या अपने लोगों के मुखियाओ को शाप नहीं देना चाहिए।

29 “फ़सल कटने के समय तुम्हें अपना प्रथम अन्न और प्रथम फल का रस मुझे देना चाहिए। इसे टालो मत।

“मुझे अपने पहलौठे पुत्रों को दो। 30 अपनी पहलौठी गायों तथा भेड़ों को भी मुझे देना। पहलौठे को उसकी माँ के साथ सात दिन रहने देना। उसके बाद आठवें दिन उसे मुझको देना।

31 “तुम लोग मेरे विशेष लोग हो। इसलिए ऐसे किसी जानवर का माँस मत खाना जिसे किसी जंगली जानवर ने मारा हो। उस मरे जानवर को कुत्तों को खाने दो।”

समीक्षा

अच्छाई को बढ़ाएं और बुराई को रोकें

परमेश्वर के लोगों ने अपने समाज के लिए नियम तैयार किये थे। इनमें से कुछ नियम हमें बहुत अजीब और कठोर लग सकते हैं। फिर भी, यदि हम उनकी तुलना प्राचीन लोगों के नियमों से करें तो ये असाधारण रूप से मानवीय हैं और कुछ सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं।

ये नियम बुराई को सीमित करने के लिए बनाए गए थे। उदाहरण के लिए आत्मरक्षा का अधिकार, लेकिन आत्मरक्षा में अत्यधिक बल का इस्तेमाल नहीं करना चाहिये (22:2-3)। हिंसा को बढ़ावा देने के विरूद्ध भी मनाई है और इसके लिए बराबर का दंड का भी प्रावधान है – ‘जीवन के बदले जीवन, आँख के बदले आँख…..’ इत्यादि (21:23-25)।

यह नियम स्पष्ट रूप से न्यायधीशों के लिए बनाए गए थे ना कि निजी व्यक्तियों के लिए (व्यवस्थाविवरण 19:18-21 देखें)। यह न्यायधीशों के लिए दंडाज्ञा का मार्गदर्शन था। ऐसा ज़रा भी इरादा नहीं था कि लोग व्यक्तिगत रूप से इस तरह से बदला लें। वास्तव में, निश्चित रूप से मुख्य अपराधिक मामलों के अलावा इसे कभी नहीं माना गया। नियम में ज़्यादा से ज़्यादा दंड देने का ध्यान रखा गया था। सामान्य रूप से जुर्माने को आर्थिक दंड और क्षतिपूर्ति से बदल दिया गया था।

पुराने समय के पाठकों के लिए दासों के अधिकारों पर ज़ोर देना परिवर्तनवादी रहा होगा। स्वामियों को ज़्यादा से ज़्यादा छ: सालों के बाद अपने दासों को मुक्त करना पड़ता था (निर्गमन 21:2), और दासों के साथ बुरा व्यवहार करने के विरूद्ध सख्त नियंत्रण था (पद - 20, 26-27)। महिला दासियों का विशेष रूप से ध्यान रखा गया था, जो पुराने समय की दुनिया में ज़्यादा असुरक्षित होती थीं। उनके साथ पुरूष दासों जैसा व्यवहार नहीं किया जा सकता था (पद - 7), लेकिन या तो उन से शादी कर ली जाए या फिर उन्हें छुड़ा लिया जाए (पद - 8-11)।

उसी समय पर, प्राचीन इस्राएल के नियम के द्वारा अच्छाई को बढ़ावा देने का प्रयास किया गया। परमेश्वर ने कहा, ‘तुम मेरे लिये पवित्र मनुष्य बनना’ (पद - 22:31अ)। तो वहाँ ‘विदेशियों’ की सुरक्षा के लिए भी नियम थे (पद - 21), हम देखेंगे कि वहाँ गरीबों को उचित न्याय मिलने के लिए भी नियम बने थे (23:6)। हर एक व्यक्ति को सिखाया गया था कि ‘पलटा न लेना, और न अपने जाति भाइयों से बैर रखना, परन्तु एक दूसरे से अपने समान प्रेम रखना’ (लैव्यवस्था 19:18)।

उन नियमों ने ऐसे समुदाय को बनाने में मदद की जिसका आधार आपसी निर्भरता और भाईचारा था। हर एक अद्भुत नियमों ने लोगों को एक दूसरे का होने में और एक दूसरे की देखभाल करने में मदद की। यह पाठ हम सभी को सीखना चाहिये, खासकर 21वीं सदी के स्वतंत्र और अलग पर्यावरण में। हम कानून और नियमों को इसलिए नहीं मानते क्योंकि इन्हें मानना ज़रूरी है, बल्कि इसलिए कि ये किसी के साथ अच्छा व्यवहार करने में हमारी मदद करते हैं क्योंकि वे परमेश्वर के स्वरूप में बनाये गए हैं।

प्रार्थना

प्रभु, मेरी मदद कीजिये कि मैं अपने जीवन में बुराई न करूँ बल्कि भलाई ही करूँ। मेरी मदद कीजिये कि मैं जिन लोगों के संपर्क में हूँ उनसे अच्छा व्यवहार करूँ क्योंकि उन्हें परमेश्वर के स्वरूप में – प्रेम, निष्ठा और आदर से बनाया गया है।

पिप्पा भी कहते है

यीशु सब्त के दिन चंगा करते हैं (मरकुस 3:4-5) यह दर्शाता है कि उन्होंने पुराने नियम का अर्थ कितने शानदार तरीके से निकाला। इसके साथ - साथ निर्गमन 21 और 22 भी पढ़ें।

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संदर्भ

नोट्स:

सी.एस. लेविस, मीअर क्रिश्चियनिटी, (हार्पर कोलिन्स, 2001), पन्ना 50

जॉयस मेयर, एवरीडे लाइफ बाइबल, (फेथवर्ड्स, 2013), पन्ना 965

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

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