आपका प्रेम पत्र
परिचय
धन्यवादपूर्वक, हमारे संबंध बनने के बाद ऐसा बहुत कम हुआ होगा कि मैं अपनी पत्नी पिपा से अलग रहा हूँ। मगर, हमारी शादी होने से पहले, तीन सप्ताह का समय था जब मैं उससे दूर रहा। उन दिनों में, ईमेल या मोबाइल के बिना, हमारी बातचीत का एकमात्र माध्यम पत्र था।
मैंने हर दिन लिखा। उसने हर दिन लिखा। मुझे अब भी गहन जोश और आनंद याद है, जब मैंने लिफाफे पर उसकी लिखावट देखी तो मैं जान गया कि इसके अंदर पिपा का पत्र है।
मैं जल्दी से पत्र लेकर एकांत जगह पर इसे पढ़ने के लिए चला जाता था! वास्तव में पत्र इतना कीमती नहीं था, लेकिन यह पत्र उसके द्वारा लिखा गया था जिससे मैं प्रेम करता हूँ, इसलिए यह मेरे लिए कीमती था।
बाइबल आपके लिए परमेश्वर की ओर से एक प्रेम पत्र है।
बाइबल को इतना दिलचस्प इसकी पुस्तकें नहीं बनातीं, बल्कि इसके द्वारा हम उस व्यक्ति से मुलाकात करते हैं जिनसे हम प्रेम करते हैं। पूरी बाइबल यीशु के बारे में है। नया नियम निश्चित ही यीशु के बारे में है। फिर भी, यीशु ने पवित्र शास्त्र के बारे में कहा है: ‘ यह वही है, जो मेरी गवाही देता है’ (यूहन्ना 5:39) (यानि, पुराना नियम) जो पूरी तरह से उनके जीवन में था।
भजन संहिता 22:22-31
22 हे यहोवा, मैं अपने भाईयों में तेरा प्रचार करुँगा।
मैं तेरी प्रशंसा तेरे भक्तों की सभा बीच करुँगा।
23 ओ यहोवा के उपासकों, यहोवा की प्रशंसा करो।
इस्राएल के वंशजों यहोवा का आदर करो।
ओ इस्राएल के सभी लोगों, यहोवा का भय मानों और आदर करो।
24 क्योंकि यहोवा ऐसे मनुष्यों की सहायता करता है जो विपति में होते हैं।
यहोवा उन से घृणा नहीं करता है।
यदि लोग सहायता के लिये यहोवा को पुकारे
तो वह स्वयं को उनसे न छिपायेगा।
25 हे यहोवा, मेरा स्तुति गान महासभा के बीच तुझसे ही आता है।
उन सबके सामने जो तेरी उपासना करते हैं। मैं उन बातों को पूरा करुँगा जिनको करने की मैंने प्रतिज्ञा की है।
26 दीन जन भोजन पायेंगे और सन्तुष्ट होंगे।
तुम लोग जो उसे खोजते हुए आते हो उसकी स्तुति करो।
मन तुम्हारे सदा सदा को आनन्द से भर जायें।
27 काश सभी दूर देशों के लोग यहोवा को याद करें
और उसकी ओर लौट आयें।
काश विदेशों के सब लोग यहोवा की आराधना करें।
28 क्योंकि यहोवा राजा है।
वह प्रत्येक राष्ट्र पर शासन करता है।
29 लोग असहाय घास के तिनकों की भाँति धरती पर बिछे हुए हैं।
हम सभी अपना भोजन खायेंगे और हम सभी कब्रों में लेट जायेंगे।
हम स्वयं को मरने से नहीं रोक सकते हैं। हम सभी भूमि में गाड़ दिये जायेंगे।
हममें से हर किसी को यहोवा के सामने दण्डवत करना चाहिए।
30 और भविष्य में हमारे वंशज यहोवा की सेवा करेंगे।
लोग सदा सर्वदा उस के बारे में बखानेंगे।
31 वे लोग आयेंगे और परमेश्वर की भलाई का प्रचार करेंगे
जिनका अभी जन्म ही नहीं हुआ।
समीक्षा
यीशु के विजय का प्रचार करें
यह भजन, जो कि आशाहीनता और दु:ख उठाने से शुरू होता है (पद - 1) यह भविष्यसूचक ढंग से यीशु की मृत्यु का वर्णन करता है, और इसकी समाप्ति विजय के हर्षोल्लास से होती है: ‘यह पूरा हुआ’ (पद - 31)। ‘परमेश्वर ने दु:खी को तुच्छ नहीं जाना और न उससे घृणा की, और न उससे अपना मुख छिपाता है; पर जब उसने उसकी दोहाई दी, तब उसकी सुन ली’ (पद - 24)।
यह विजय पूरी दुनिया के लोगों को प्रभु की ओर फिरने में मदद करेगी (पद - 27)। जाति - जाति के सब कुल के लोग उसके सामने दंडवत करेंगे (पद - 27ब)। इस विजय का प्रचार किया जाएगा: ‘वह आएंगे और उसके धर्म के कामों को एक वंश पर जो उत्पन्न होगा यह कहकर प्रगट करेंगे कि उसने ऐसे - ऐसे अद्भुत काम किए \[यह पूरा हुआ\]’ (पद - 31, यूहन्ना 19:30)।
यीशु का पुनरूत्थान केवल जय ही नहीं लाता, बल्कि यह पारिवारिक घनिष्ठता भी लाता है। भजन संहिता 22:22 में शब्द ‘मेरे लोग’ का अनुवाद घनिष्ठता है, जो कि नज़दीकी सहयोगिता को दर्शाता है, और सामान्य रूप से इसे ‘भाई’ या ‘रिश्तेदार’ कहकर बुलाता है। नये नियम में, लेखक इब्रानियों को इसका वर्णन विशेष रूप से यीशु के साथ हमारे संबंध के रूप में करता है (इब्रानियों 2:11-12)। यीशु हमें उनके लोग बताते हैं, जैसे कि वह हमारे बीच में हैं और हमें भाई और बहन या उनके परिवार के सदस्य के रूप में देखते हैं।
प्रार्थना
प्रभु, आपका धन्यवाद कि आपने मदद के लिए मेरी पुकार सुनी (पद - 24)। आज फिर से मैं मदद के लिए आपको पुकारता हूँ….
मरकुस 3:31-4:29
यीशु के अनुयायी ही उसका सच्चा परिवार
31 तभी उसकी माँ और भाई वहाँ आये और बाहर खड़े हो कर उसे भीतर से बुलवाया। 32 यीशु के चारों ओर भीड़ बैठी थी। उन्होंने उससे कहा, “देख तेरी माता, तेरे भाई और तेरी बहनें तुझे बाहर बुला रहे हैं।”
33 यीशु नें उन्हें उत्तर दिया, “मेरी माँ और मेरे भाई कौन हैं?” 34 उसे घेर कर चारों ओर बैठे लोगों पर उसने दृष्टि डाली और कहा, “ये है मेरी माँ और मेरे भाई! 35 जो कोई परमेश्वर की इच्छा पर चलता है, वही मेरा भाई, बहन और माँ है।”
बीज बोने का दृष्टान्त
4उसने झील के किनारे उपदेश देना फिर शुरू कर दिया। वहाँ उसके चारों ओर बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गयी। इसलिये वह झील में खड़ी एक नाव पर जा बैठा। और सभी लोग झील के किनारे धरती पर खड़े थे। 2 उसने दृष्टान्त देकर उन्हें बहुत सी बातें सिखाईं। अपने उपदेश में उसने कहा,
3 “सुनो! एक बार एक किसान बीज वोने के लिए निकला। 4 तब ऐसा हुआ कि जब उसने बीज बोये तो कुछ मार्ग के किनारे गिरे। पक्षी आये और उन्हें चुग गये। 5 दूसरे कुछ बीज पथरीली धरती पर गिरे जहाँ बहुत मिट्टी नहीं थी। वे गहरी मिट्टी न होने का कारण जल्दी ही उग आये। 6 और जब सूरज उगा तो वे झुलस गये और जड़ न पकड़ पाने के कारण मुरझा गये। 7 कुछ और बीज काँटों में जा गिरे। काँटे बड़े हुए और उन्होंने उन्हें दबा लिया जिससे उनमें दाने नहीं पड़े। 8 कुछ बीज अच्छी धरती पर गिरे। वे उगे, उनकी बढ़वार हुई और उन्होंने अनाज पैदा किया। तीस गुणी, साठ गुणी और यहाँ तक कि सौ गुणी अधिक फसल उतरी।”
9 फिर उसने कहा, “जिसके पास सुनने को कान है, वह सुने!”
यीशु का कथन: वह दृष्टान्तों का प्रयोग क्यों करता है
10 फिर जब वह अकेला था तो उसके बारह शिष्यों समेत जो लोग उसके आसपास थे, उन्होंने उससे दृष्टान्तों के बारे में पूछा।
11 यीशु ने उन्हें बताया, “तुम्हें तो परमेश्वर के राज्य का भेद दे दिया गया है किन्तु उनके लिये जो बाहर के हैं, सब बातें दृष्टान्तों में होती हैं:
12 ‘ताकि वे देखें और देखते ही रहें, पर उन्हें कुछ सूझे नहीं,
सुनें और सुनते ही रहें पर कुछ समझें नहीं।
ऐसा न हो जाए कि वे फिरें और क्षमा किए जाएँ।’”
बीज बोने के दृष्टान्त की व्याख्या
13 उसने उनसे कहा, “यदि तुम इस दृष्टान्त को नहीं समझते तो किसी भी और दृष्टान्त को कैसे समझोगे? 14 किसान जो बोता है, वह वचन है। 15 कुछ लोग किनारे का वह मार्ग हैं जहाँ वचन बोया जाता है। जब वे वचन को सुनते हैं तो तत्काल शैतान आता है और जो वचन रूपी बीज उनमें बोया गया है, उसे उठा ले जाता है।
16 “और कुछ लोग ऐसे हैं जैसे पथरीली धरती में बोया बीज। जब वे वचन को सुनते हैं तो उसे तुरन्त आनन्द के साथ अपना लेते हैं। 17 किन्तु उसके भीतर कोई जड़ नहीं होती, इसलिए वे कुछ ही समय ठहर पाते हैं और बाद में जब वचन के कारण उन पर विपत्ति आती है और उन्हें यातनाएँ दी जाती हैं, तो वे तत्काल अपना विश्वास खो बैठते हैं।
18 “और दूसरे लोग ऐसे हैं जैसे काँटों में बोये गये बीज। ये वे हैं जो वचन को सुनते हैं। 19 किन्तु इस जीवन की चिंताएँ, धन दौलत का लालच और दूसरी वस्तुओं को पाने की इच्छा उनमें आती है और वचन को दबा लेती है। जिससे उस पर फल नहीं लग पाता।
20 “और कुछ लोग उस बीज के समान हैं जो अच्छी धरती पर बोया गया है। ये वे हैं जो वचन को सुनते हैं और ग्रहण करते हैं। इन पर फल लगता है कहीं तीस गुणा, कहीं साठ गुणा तो कहीं सौ गुणे से भी अधिक।”
जो तुम्हारे पास है, उसका उपयोग करो
21 फिर उसने उनसे कहा, “क्या किसी दिये को कभी इसलिए लाया जाता है कि उसे किसी बर्तन के या बिस्तर के नीचे रख दिया जाये? क्या इसे दीवट के ऊपर रखने के लिये नहीं लाया जाता? 22 क्योंकि कुछ भी ऐसा गुप्त नहीं है जो प्रकट नहीं होगा और कोई रहस्य ऐसा नहीं है जो प्रकाश में नहीं आयेगा। 23 यदि किसी के पास कान हैं तो वह सुने!” 24 फिर उसने उनसे कहा, “जो कुछ तुम सुनते हो उस पर ध्यानपूर्वक विचार करो, जिस नाप से तुम दूसरों को नापते हो, उसी नाप से तुम भी नापे जाओगे। बल्कि तुम्हारे लिये उसमें कुछ और भी जोड़ दिया जायेगा। 25 जिसके पास है उसे और भी दिया जायेगा और जिस किसी के पास नहीं है, उसके पास जो कुछ है, वह भी ले लिया जायेगा।”
बीज का दृष्टान्त
26 फिर उसने कहा, “परमेश्वर का राज्य ऐसा है जैसे कोई व्यक्ति खेत में बीज फैलाये। 27 रात को सोये और दिन को जागे और फिर बीज में अंकुर निकलें, वे बढ़े और पता नहीं चले कि यह सब कैसे हो रहा है। 28 धरती अपने आप अनाज उपजाती है। पहले अंकुर फिर बालें और फिर बालों में भरपूर अनाज। 29 जब अनाज पक जाता है तो वह तुरन्त उसे हंसिये से काटता है क्योंकि फसल काटने का समय आ जाता है।”
समीक्षा
यीशु के वचनों को अंगीकार कीजिये
यीशु आपको अपने परिवार के करीबी सदस्य के रूप में देखते हैं। वह चाहते हैं कि आपका उनके साथ एकदम घनिष्ठ संबंध हो – एक भाई या बहन या एक माँ के जैसा (3:31-35)।
इस लेखांश में हम देखते हैं कि यह संबंध परमेश्वर के वचन के द्वारा बढ़ता है, वचन के सुनने और इसे व्यवहार में लाने के द्वारा: ‘जो कोई परमेश्वर की इच्छा पर चले, वही मेरा भाई, और बहन और माता है’ (पद - 35)।
यीशु अपने खुद के वचन की सामर्थ के बारे में कहते हैं, जो कि परमेश्वर के वचन हैं। उनकी ज़्यादातर शिक्षा कहानी (दृष्टांत) के रूप में मिलती है। कहानी का सभी लोग आनंद लेते हैं। एक ‘दृष्टांत’ का अर्थ कहानी के अंदर छिपा होता है। काल्पनिक प्रचार के दौरान लोग सो जाते हैं, लेकिन अच्छी कहानी के लिए जगे रहते हैं। कहानी में इतनी ताकत होती है कि यह हमारी मोरचाबंदी करने से पहले हमें जिता दे।
बीज बोने वाले का दृष्टांत जीवन बदल देने वाली वचन की सामर्थ को दर्शाता है। यदि आप ‘वचन को सुनें तो इसे तुरंत ग्रहण कर लें’ (4:20, एम.एस.जी.), तब आप अच्छी भूमि में बोए गए बीज के समान होंगे, जो वचन को सुनता है और इसे ग्रहण करता है और फसल उगती है – कुछ तीस गुना, कुछ साठ गुना, कुछ सौ गुना’ (पद - 20)। आप अपनी कल्पना से भी ज़्यादा फसल लाएंगे’ (पद - 20, एम.एस.जी.)।
हम अल्फा पर बार - बार यीशु के वचन की असाधारण सामर्थ को देखते हैं जो जीवनों को पूरी तरह से बदल देता है और उन्हें फलदायी बनाता है। केवल उन लोगों का ही जीवन प्रभावित नहीं होता जो इसे सुनते हैं, बल्कि दूसरों का जीवन भी प्रभावित होता है जो यीशु का वचन सुनने के लिए अपने दोस्तों को लाते हैं।
यदि यीशु के वचन में कोई प्रभाव नहीं होता, तो इसमें गलती सुनने वाले की है। एक समय में, मेरी ज़िंदगी इतनी उलझी हुई थी कि उनके वचन जड़ नहीं पकड़ पाते थे (पद - 4-6)। दूसरी तरफ, मेरे जीवन में परेशानियाँ या विरोध (‘संकट या सताव’, पद - 17) मुझे यीशु के साथ घनिष्ठ संबंध से दूर ले जाते थे। और कभी - कभी ऐसा भी होता था कि ‘संसार की चिन्ता, और धन का धोखा, और वस्तुओं का लोभ उन में समाकर वचन को दबा देता था। और वह निष्फल रह जाता था’ (पद - 19)।
यीशु वचन सुनने के महत्त्व पर बार - बार ज़ोर देते हैं: ‘चौकस रहो, कि क्या सुनते हो? जिस नाप से तुम नापते हो उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा, और तुम को अधिक दिया जाएगा’ (पद - 24)।
आप परमेश्वर के वचन का अध्ययन करने और इसे लागू करने में जितना समय देंगे, उतना ही ज़्यादा लाभदायक अनुभव आप पाएंगे। इसे ज़्यादा प्राथमिकता दीजिये। यीशु के वचन को ग्रहण करने में समय दीजिये और आपको पछताना नहीं पड़ेगा।
बीजे बोने का दृष्टांत यह दर्शाता है कि जब आपके जीवन में यीशु का वचन बो दिया जाता है, तो आप फल लाने की उम्मीद कर सकते हैं। आप बाद में फसल काटेंगे। लेकिन आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि यदि आप बीज बोते रहेंगे, तो आप ज़्यादा फसल काटेंगे, बल्कि आपने जितना बोया है उससे भी ज़्यादा। बड़ी फसल आएगी (पद - 29)।
प्रार्थना
प्रभु, मेरी मदद कीजिये कि मैं आपके वचन को केवल सुनूँ ही नहीं बल्कि दूसरों को भी बताऊँ और मेरे जीवन में और दूसरों के जीवन में परमेश्वर के वचन की जीवन बदल देने वाली आसाधारण सामर्थ को देखूँ।
निर्गमन 23:1-24:18
23“लोगों के विरुद्ध झूठ मत बोलो। यदि तुम न्यायालय में गवाह हो तो बुरे व्यक्ति की सहायता के लिए झूठ मत बोलो।
2 “उस भीड़ का अनुसरण मत करो, जो गलत कर रही हो। जो जनसमूह बुरा कर रहा हो उसका अनुसरण करते हुए न्यायालय में उसका समर्थन मत करो।
3 “न्यायालय में किसी गरीब का इसलिए पक्ष मत लो कि वह गरीब है। तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। यदि वह सही है तब ही उसका समर्थन करो।
4 “यदि तुम्हें कोई खोया हुआ बैल या गधा मिले तो तुम्हें उसे उसके मालिक को लौटा देना चाहिए। चाहे वह तुम्हारा शत्रु ही क्यों न हो।
5 “यदि तुम देखो कि कोई जानवर इसलिए नहीं चल पा रहा है कि उसे अत्याधिक बोझ ढोना पड़ रहा है तो तुम्हें उसे रोकना चाहिए और उस जानवर की सहायता करनी चाहिए। तुम्हें उस जानवर की सहायता तब भी करनी चाहिए जब वह जानवर तुम्हारे शत्रुओं में से भी किसी का हो।
6 “तुम्हें, लोगों को गरीबों के प्रति अन्यायी नहीं होने देना चाहिए। उनके साथ भी अन्य लोगों के समान ही न्याय होना चाहिए।
7 “तुम किसी को किसी बात के लिए अपराधी कहते समय बहुत सावधान रहो। किसी व्यक्ति पर झूठे दोष न लगाओ। किसी निर्दोष व्यक्ति को उस अपराध के दण्ड के द्वारा मत मरने दो जो उसने नहीं किया। कोई व्यक्ति जो निर्दोष की हत्या करे, दुष्ट है। और मैं उस दुष्ट व्यक्ति को क्षमा (माफ़) नहीं करूँगा।
8 “यदि कोई व्यक्ति गलत होने पर अपने से सहमत होने के लिए रिश्वत देने का प्रयत्न करे तो उसे मत लो। ऐसी रिश्वत न्यायाधीशों को अन्धा कर देगी जिससे वे सत्य को नहीं देख सकेंगे। रिश्वत अच्छे लोगों को झूठ बोलना सिखाएगी।
9 “तुम किसी विदेशी के साथ कभी बुरा बरताव न करो। याद रखो जब तुम मिस्र देश में रहते थे तब तुम विदेशी थे।”
विशेष पर्व
10 “छः वर्ष तक बीज बोओ, अपनी फ़सलों को काटो और खेत को तैयार करो। 11 किन्तु सातवें वर्ष अपनी भूमि का उपयोग न करो। सातवाँ वर्ष भूमि के विश्राम का विशेष समय होगा। अपने खेतों में कुछ भी न बोओ। यदि कोई फ़सल वहाँ उगती है तो उसे गरीब लोगों को ले लेने दो। जो भी खाने की चीज़ें बच जाएं उन्हें जंगली जानवरों को खा लेने दो। यही बात तुम्हें अपने अंगूर और जैतून के बागों के सम्बन्ध में भी करनी चाहिए।
12 “छः दिन तक काम करो। तब सातवें दिन विश्राम करो। इससे तुम्हारे दासों और तुम्हारे दूसरे मजदूरों को भी विश्राम का समय मिलेगा। और तुम्हारे बैल और गधे भी आराम कर सकेंगे।”
13 “संकल्प करो कि तुम इन नियमों का पालन करोगे। मिथ्या देवताओं की पूजा मत करो। तुम्हें उनका नाम भी नहीं लेना चाहिए।
14 “प्रति वर्ष तुम्हारे तीन विशेष पवित्र पर्व होंगे। इन दिनों तुम लोग मेरी उपासना के लिए मेरी विशेष जगह पर आओगे। 15 पहला पवित्र पर्व अख़मीरी रोटी का पर्व होगा। यह वैसा ही होगा, जैसा मैंने आदेश दिया है। इस दिन तुम लोग ऐसी रोटी खाओगे जिसमें खमीर न हो। यह सात दिन तक चलेगा। तुम लोग यह आबीब के महीने में करोगे। क्योंकि यही वह समय है जब तुम लोग मिस्र से आए थे। इन दिनों कोई भी व्यक्ति मेरे सामने खाली हाथ नहीं आएगा।
16 “दूसरा पवित्र पर्व कटनी का पर्व होगा। यह पवित्र पर्व ग्रीष्म के आरम्भ में, तब होगा जब तुम अपने खेतों में उगायी गई फसल को काटोगे।
“तीसरा पवित्र पर्व बटोरने का पर्व होगा। यह पतझड़ में होगा। यह उस समय होगा जब तुम अपनी सारी फसलें खेतों से इकट्ठा करते हो।
17 “इस प्रकार प्रति वर्ष तीन बार सभी पुरुष यहोवा परमेश्वर के सामने उपस्थित होंगे।
18 “जब तुम किसी जानवर को मारो और इसका ख़ून बलि के रूप में भेंट चढ़ाओ तब ऐसी रोटी भेंट नहीं करो जिसमें खमीर हो। और जब तुम इस बलि के माँस को खाओ तब तुम्हें एक ही दिन में वह सारा माँस खा लेना चाहिए। अगले दिन के लिए कुछ भी माँस न बचाओ।
19 “फसल काटने के समय जब तुम अपनी फ़सलें इकट्ठी करो तब अपनी काटी हुई फ़सल की पहली उपज अपने यहोवा परमेश्वर के भवन में लाओ।
“तुम्हें छोटी बकरी के उस माँस को नहीं खाना चाहिए जो उस बकरी की माँ के दूध में पका हो।”
परमेश्वर इस्राएलियों को उनकी भूमि लेने में सहायता करेगा
20 परमेश्वर ने कहा, “मैं तुम्हारे सामने एक दूत भेज रहा हूँ। यह दूत तुम्हें उस स्थान तक ले जाएगा जिसे मैंने तुम्हारे लिए तैयार किया है। यह दूत तुम्हारी रक्षा करेगा। 21 दूत की आज्ञा मानो और उसका अनुसरण करो। उसके विरुद्ध विद्रोह न करो। वह दूत उन अपराधों को क्षमा नहीं करेगा जो तुम उसके प्रति करोगे। उसमें मेरी शक्ति निहित है। 22 वह जो कुछ कहे उसे मानो। तुम्हें हर एक वह कार्य करना चाहिए जो मैं तुम्हें कहता हूँ। यदि तुम यह करोगे तो मैं तुम्हारे साथ रहूँगा। मैं तुम्हारे सभी शत्रुओं के विरुद्ध होऊँगा और मैं उस हर व्यक्ति का शत्रु होऊँगा जो तुम्हारे विरुद्ध होगा।”
23 परमेश्वर ने कहा, “मेरा दूत तुम्हें इस देश से होकर ले जाएगा। वह तुम्हें कई भिन्न लोगों—एमोरी, हित्ती, परिज्जी, कनानी, हिब्बी और यबूसी के विरुद्ध कर देगा। किन्तु मैं उन सभी लोगों को नष्ट कर दूँगा।
24 “उनके देवताओं को मत पूजो। उन देवताओं को झूककर कभी प्रणाम मत करो। तुम उस ढंग से कभी न रहो जिस ढंग से वे रहते हैं। तुम्हें उनकी मूर्तियों को निश्चय ही नष्ट कर देना चाहिए और तुम्हें उनके प्रस्तर पिण्ड़ों को तोड़ देना चाहिए जो उन्हें उनके देवताओं को याद दिलाने में सहायता करती हैं। 25 तुम्हें अपने परमेश्वर यहोवा की सेवा करनी चाहिए। यदि तुम यह करोगे तो मैं तुम्हें भरपूर रोटी और पानी का वरदान दूँगा। मैं तुम्हारी सारी बीमारियो को दूर कर दूँगा। 26 तुम्हारी सभी स्त्रियाँ बच्चों को जन्म देने लायक होंगी। जन्म के समय उनका कोई बच्चा नहीं मरेगा और मैं तुम लोगों को भरपूर लम्बा जीवन प्रदान करूँगा।
27 “जब तुम अपने शत्रुओं से लड़ोगे, मैं अपनी प्रबल शक्ति तुमसे भी पहले वहाँ भेज दूँगा। मैं तुम्हारे सभी शत्रुओं के हराने में तुम्हारी सहायता करूँगा। वे लोग जो तुम्हारे विरुद्ध होंगे वे युद्ध में घबरा कर भाग जाएंगे। 28 मैं तुम्हारे आगे—आगे बर्रे भेजूँगा वह तुम्हारे शत्रुओं को भागने के लिए विवश करेंगे। हिब्बी, कनानी और हित्ती लोग तुम्हारा प्रदेश छोड़ कर भाग जाएंगे। 29 किन्तु मैं उन लोगों को तुम्हारे प्रदेश से बाहर जाने को शीघ्रतापूर्वक विवश नहीं करूँगा। मैं यह केवल एक वर्ष में नहीं करुँगा। यदि मैं लोगों को अति शीघ्रता से बाहर जाने को विवश करूँ तो प्रदेश ही निर्जन हो जाए। तब सभी प्रकार के जंगली जानवर बढ़ेंगे और वे तुम्हारे लिए बहुत कष्टकर होंगे। 30 मैं उन्हें धीरे और उस समय तक बाहर खदेड़ता रहूँगा जब तक तुम उस धरती पर फैल न जाओ और उस पर अधिकार न कर लो।
31 “मैं तुम लोगों को लाल सागर से लेकर फरात तक का सारा प्रदेश दूँगा। पश्चिमी सीमा पलिश्ती सागर (भूमध्य सागर) होगा और पूर्वी सीमा अरब मरुभूमि होगी। मैं ऐसा करूँगा कि वहाँ के रहने वालों को तुम हराओ। और तुम इन सभी लोगों को वहाँ से भाग जाने के लिए विवश करोगे।
32 “तुम उनके देवताओं या उन लोगों में से किसी के साथ कोई समझौता नहीं करोगे। 33 उन्हें अपने देश में मत रहने दो। यदि तुम उन्हें रहने दोगे तो तुम उनके जाल में फँस जाओगे। वे तुमसे मेरे विरुद्ध पाप करवाएंगे और तुम उनके देवताओं की सेवा आरम्भ कर दोगे।”
परमेश्वर का इस्राएल से वाचा
24परमेश्वर ने मूसा से कहा, “तुम हारून, नादाब, अबीहू और इस्राएल के सत्तर बुजुर्ग (नेता) पर्वत पर आओ और कुछ दूर से मेरी उपासना करो। 2 तब मूसा अकेले यहोवा के समीप आएगा। अन्य लोग यहोवा के समीप न आएँ, और शेष व्यक्ति पर्वत तक भी न आएँ।”
3 इस प्रकार मूसा ने यहोवा के सभी नियमों और आदेशों को लोगों को बताया। तब सभी लोगों ने कहा, “यहोवा ने जिन सभी आदेशों को दिया उनका हम पालन करेंगे।”
4 इसलिए मूसा ने यहोवा के सभी आदेशों को चर्म पत्र पर लिखा। अगली सुबह मूसा उठा और पर्वत की तलहटी के समीप उसने एक वेदी बनाई और उसने बारह शिलाएँ इस्राएल के बारह कबीलों के लिए स्थापित कीं। 5 तब मूसा ने इस्राएल के युवकों को बलि चढ़ाने के लिए बुलाया। इन व्यक्तियों ने यहोवा को होमबलि और मेलबलि के रूप में बैल की बलि चढ़ाई।
6 मूसा ने इन जानवरों के खून को इकट्ठा किया। मूसा ने आधा खून प्याले में रखा और उसने दूसरा आधा खून वेदी पर छिड़का।
7 मूसा ने चर्म पत्र पर लिखे विशेष साक्षीपत्र को पढ़ा। मूसा ने साक्षीपत्र को इसलिए पढ़ा कि सभी लोग उसे सुन सकें और लोगों ने कहा, “हम लोगों ने उन नियमों को जिन्हें यहोवा ने हमें दिया, सुन लिया है और हम सब लोग उनके पालन करने का वचन देते हैं।”
8 तब मूसा ने खून को लिया और उसे लोगों पर छिड़का। उसने कहा, “यह खून बताता है कि यहोवा ने तुम्हारे साथ विशेष साक्षीपत्र स्थापित किया। ये नियम जो यहोवा ने दिए है वे साक्षीपत्र को स्पष्ट करते हैं।”
9 तब मूसा, हारून, नादाब, अबीहू और इस्राएल के सत्तर बुजुर्ग (नेता) ऊपर पर्वत पर चढ़े। 10 पर्वत पर इन लोगों ने इस्राएल के परमेश्वर को देखा। परमेश्वर किसी ऐसे आधार पर खड़ा था। जो नीलमणि सा दिखता था ऐसा निर्मल जैसा आकाश। 11 इस्राएल के सभी नेताओं ने परमेश्वर को देखा, किन्तु परमेश्वर ने उन्हें नष्ट नहीं किया। तब उन्होंने एक साथ खाया और पिया।
मूसा को पत्थर की पट्टियाँ मिली
12 यहोवा ने मूसा से कहा, “मेरे पास पर्वत पर आओ। मैंने अपने उपदेशों और आदेशों को दो समतल पत्थरों पर लिखा है। ये उपदेश लोगों के लिए हैं। मैं इन समतल पत्थरों को तुम्हें दूँगा।”
13 इसलिए मूसा और उसका सहायक यहोशू परमेश्वर के पर्वत तक गए। 14 मूसा ने चुने हुए बुजुर्गो से कहा, “हम लोगों की यहीं प्रतीक्षा करो, हम तुम्हारे पास लौटेंगे। जब तक मैं अनुपस्थित रहूँ, हारून और हूर आप लोगों के अधिकारी होंगे। यदि किसी को कोई समस्या हो तो वह उनके पास जाए।”
मूसा का परमेश्वर से मिलना
15 तब मूसा पर्वत पर चढ़ा और बादल ने पर्वत को ढक लिया। 16 यहोवा की दिव्यज्योति सीनै पर्वत पर उतरी। बादल ने छः दिन तक पर्वत को ढके रखा। सातवें दिन यहोवा, बादल में से मूसा से बोला। 17 इस्राएल के लोग यहोवा की दिव्यज्योति को देख सकते थे। वह पर्वत की चोटी पर दीप्त प्रकाश की तरह थी।
18 तब मूसा बादलों में और ऊपर पर्वत पर चढ़ा। मूसा पर्वत पर चालीस दिन और चालीस रात रहा।
समीक्षा
यीशु की वाचा के सेवक बनिये
परमेश्वर का उनके लोगों के साथ संबंध सीनै पर्वत पर वाचा के द्वारा निर्धारित किया गया था (परमेश्वर और लोगों के बीच हुई सहमति के द्वारा)। वाचा के संबंध में, परमेश्वर ने खुद को अपने लोगों को सौंप दिया था और उन लोगों को परमेश्वर को समर्पित करने के द्वारा प्रतिक्रिया करने के लिए कहा था। प्रभु ने उन्हें ऐसा जीवन बिताने के लिए कहा जो वाचा के इस संबंध में उनसे करीब हो।
खासकर हम देखते हैं कि न्याय और गरीबी के मामले परमेश्वर की सूची में कितने ऊपर थे (23:1-12)। आजकल दुनिया में कितना अन्याय हो रहा है। दुनिया के कई हिस्सों में गरीबों को न्याय मिलना लगभग असंभव हो गया है। छोटे या किसी प्रतिकार के बिना लोगों को अक्सर जेलखाने में डाल दिया जाता है। कुछ कानूनी व्यवस्था घूस लेकर दबा दी जाती हैं। यदि वे सिर्फ इन वचनों पर दृढ़ रहते कि: ‘तेरे लोगों में से जो दरिद्र हों उसके मुकद्दमे में न्याय न बिगाड़ना….. घूस न ले’ (पद - 6,8)।
लोगों और संस्कृति का विरूद्ध करना, सच में कठिन है। लेकिन यह कहकर बचा नहीं जा सकता, ‘हमारी यही संस्कृति है – हर कोई ऐसा ही करता है – इसलिए कोई विकल्प ही नहीं बचा।’ परमेश्वर कहते हैं, ‘बुराई करने के लिये न तो बहुतों के पीछे हो लेना; और न उनके पीछे फिर के मुकदमें में न्याय बिगाड़ने के लिए साक्षी देना’ (पद - 2)।
पुराने समय में दावत करने के द्वारा वाचाओं को बारबार दृढ़ या स्थिर किया जाता था (‘तब उन्होंने खाया पिया’ 24:11)। वाचा पर लहू बहाकर मुहर लगाई जाती थी। तब मूसा ने लोहू को ले कर लोगों पर छिड़क दिया, और उन से कहा, ‘देखो, यह उस वाचा का लोहू है’ (पद - 8)। पुराने नियम में परमेश्वर ने खुद को लोगों के सुपुर्द किया था और उनसे आशा की थी कि वे उनके नियम का पालन करेंगे जो कि पटियाओं पर लिखी गई थीं (पद - 12)।
भविष्यवक्ताओं ने पहले ही बता दिया था कि एक दिन नई वाचा पटियाओं पर नहीं बल्कि हमारे हृदय पर लिखी जाएंगी (उदाहरण के लिए, यिर्मयाह 31:31-34)। यीशु अपने शिष्यों को समझाते हैं कि यह वाचा उनके लहू के द्वारा कैसे संभव बनाई जाएगी (मरकुस 14:24)। आप जब भी पवित्र भोज में भाग लेते हैं और वचनों को सुनते हैं, तब आप इस नई वाचा का उत्सव मनाते हैं: ‘यह कटोरा मेरे लोहू में नई वाचा है’ (लूका 22:20, 1 कुरिंथिंयों 11:25)।
इब्रानियों की पुस्तक काफी विस्तार में वर्णन करती है कि यीशु किस तरह से ‘नई वाचा के मध्यस्थी हैं’ (इब्रानियों 9:15)। इस वाचा के अंतर्गत आपके सभी पाप क्षमा हो जाते हैं (पद - 15) और आपका संबंध अनंतकाल तक यीशु के साथ हो जाता है (13:20)।
यीशु के द्वारा आप नई वाचा के सेवक हैं (2कुरिंथियों 3:6)। पुराना नियम ‘महिमा के साथ आया’ (पद - 7)। और परमेश्वर का तेज सीनै पर्वत पर आकर ठहर गया।।। इस्रालियों को यह तेज प्रचंड आग सा देख पड़ता था। संत पौलुस लिखते हैं, ‘तो आत्मा की वाचा और भी तेजोमय क्यों न होगी? ….. परन्तु जब हम सब के उघाड़े चेहरे से प्रभु का प्रताप इस प्रकार प्रगट होता है, जिस प्रकार दर्पण में, तो प्रभु के द्वारा जो आत्मा है, हम उसी तेजस्वी रूप में अंश - अंश कर के बदलते जाते हैं’ (2कुरिंथियों 3:8,18)।
प्रार्थना
प्रभु आपका धन्यवाद कि, जब मैं पवित्र शास्त्र पढ़ता हूँ तो मेरी मुलाकात यीशु से होती है। प्रभु, मेरी हर दिन मदद कीजिये, जब मैं आपके शब्दों को सुनूँ और आपसे मिलूँ, तो मैं अपने प्यार के संबंध में बढ़ने और आपके तेज को प्रगट करने के लिए आपके तेजस्वी रूप में सदा बढ़ने वाली महिमा में बदलता जाऊँ।
पिप्पा भी कहते है
मरकुस 3:31-35
पहली नज़र में मुझे यह लेखांश कठिन। ऐसा लगा जैसे यीशु अपने असली परिवार को त्याग रहे हैं। लेकिन वास्तव में वह कह रहे थे कि जो कोई भी उन पर विश्वास करता है वह उनका परिवार है। उनकी माँ और परिवारवालों ने उनपर विश्वास किया था और अंत तक उनका अनुसरण किया था।

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संदर्भ
नोट्स
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जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है। कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
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