परमेश्वर मुझ से प्रेम करते हैं
परिचय
वेल्श पर्वतीय क्षेत्र में ऊँचाई पर, दो सेवक एक जवान चरवाहे से मिले जिसे सुनाई कम देता था और जो अशिक्षित था। उन्होंने समझाया कि यीशु उसके चरवाहा बनना चाहते हैं, जो कि हमेशा उसका खयाल रखेंगे जैसे कि वह अपनी भेड़ों का रखता है। उन्होंने उसे उसके दाहिनी हाथ की उंगलियों और अंगूठे का उपयोग करके इन शब्दों को याद करना सिखाया, प्रभु मेरा चरवाहा है’ (भजन संहिता 23:1), जो कि उसके अंगूठे से शुरू होता है फिर हर एक उंगली पर एक - एक शब्द। उन्होंने उसे चौथे शब्द ‘मेरे’ पर रूककर यह याद रखना सिखाया कि ‘यह भजन संहिता मेरे लिए है’।
कुछ वर्षों के बाद उनमें से एक सेवक उस गाँव से गुज़र रहा था जहाँ पर वह चरवाहा लड़का रहता था। पिछली सर्दी में भयंकर तूफान आया था और वह लड़का पहाड़ी पर मर गया और बर्फ के नीचे दफन हो गया। गाँव वाला जो यह कहानी बता रहा था, उसने कहा, ‘एक अजीब बात हुई’ जिसे हम नहीं समझ पाए। जब उस लड़के के शरीर का पता चला तो वह अपने दाहिने हाथ की चौथी उंगली पकड़े हुए था’।
यह कहानी हम सभी के लिए परमेश्वर के व्यक्तिगत प्रेम को बयान करती है।
आजकल कई लोग परमेश्वर के बारे में सोचते हैं कि (वे लोग सोचते हैं क्या परमेश्वर सच में हैं) वह कोई महान व्यक्तित्वहीन शक्ति है। मगर, बाइबल के परमेश्वर बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। उनका हमारे साथ संबंध बहुत व्यक्तिगत है। संत पौलुस लिखते हैं, ‘जिस ने मुझ से प्रेम किया, और मेरे लिये अपने आप को दे दिया’ (गलातियों 2:20) वह ‘मेरे परमेश्वर है’ (फिलिप्पीयों 4:19)। परमेश्वर मुझ से प्रेम करते हैं।
भजन संहिता 23:1-6
दाऊद का एक पद।
23यहोवा मेरा गडेरिया है।
जो कुछ भी मुझको अपेक्षित होगा, सदा मेरे पास रहेगा।
2 हरी भरी चरागाहों में मुझे सुख से वह रखता है।
वह मुझको शांत झीलों पर ले जाता है।
3 वह अपने नाम के निमित्त मेरी आत्मा को नयी शक्ति देता है।
वह मुझको अगुवाई करता है कि वह सचमुच उत्तम है।
4 मैं मृत्यु की अंधेरी घाटी से गुजरते भी नहीं डरुँगा,
क्योंकि यहोवा तू मेरे साथ है।
तेरी छड़ी, तेरा दण्ड मुझको सुख देते हैं।
5 हे यहोवा, तूने मेरे शत्रुओं के समक्ष मेरी खाने की मेज सजाई है।
तूने मेरे शीश पर तेल उँडेला है।
मेरा कटोरा भरा है और छलक रहा है।
6 नेकी और करुणा मेरे शेष जीवन तक मेरे साथ रहेंगी।
मैं यहोवा के मन्दिर में बहुत बहुत समय तक बैठा रहूँगा।
समीक्षा
1. मेरा चरवाहा
परमेश्वर एक चरवाहे की तरह हमारा ख्याल रखते हैं। ऐसा समय भी आया जब मैं आत्मिक रूप से खाली हो गया था। मुझे यह सच्चाई अच्छी लगती है कि, ‘वह मेरे जी में जी ले आता है’ (पद - 3अ)। मैंने कई बार ऐसी स्थितियाँ लिखी हैं जहाँ मुझे मार्गदर्शन की ज़रूरत थी, फिर बाद में मैं परमेश्वर को धन्यवाद दे सका, क्योंकि ‘वह अपने नाम के निमित्त मेरी अगुआई करता है’ (पद - 3ब)। आपके जीवन के लिए परमेश्वर का महान उद्देश्य है। उन्हें आपको सही मार्ग पर ले जाने दें। आपको डर से भरा जीवन जीने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि वह आपके संग रहते हैं (पद - 4)।
2. मेरा मेज़बान
यहाँ पर उनकी भूमिका अपनी भेड़ के लिए एक चरवाहे से लेकर अपने मेहमान के लिए एक मेज़बान के रूप में बदल जाती है। अपने जीवन की कठिन परिस्थितियों में परमेश्वर के साथ मिलना - जुलना एक अद्भुत तस्वीर बनाता है: ‘तू मेरे सताने वालों के सामने मेरे लिये मेज़ बिछाता है’ (पद - 5अ)। वह आपके प्राण की भूख को उत्तम पदार्थों से तृप्त करते हैं। उनका आमंत्रण स्वीकार कीजिये और हर दिन उनके साथ समय बिताइये और अपने प्राण को उनकी उपस्थिति से तृप्त कीजिये।
हम में से हर एक को कभी न कभी, ‘मृत्यु की तराई में से होकर गुज़रना पड़ता है’ (पद - 4), खुद की या अपने प्रियजनों की मृत्यु के दौरान। फिर भी हमें डरने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि प्रभु हमारे संग रहते हैं (पद - 4)।
मैंने अक्सर यह भजन उन लोगों के लिए पढ़ा है जो बहुत बीमार थे या मर रहे थे। यह जानकर बहुत तसल्ली मिलती है कि प्रभु हर समय हमारे साथ हैं: ‘निश्चय भलाई और करूणा जीवन भर मेरे साथ - साथ बनी रहेंगी; और मैं यहोवा के धाम में सर्वदा निवास करूंगा’ (पद - 6)।
प्रार्थना
प्रभु जिस तरह से आपने मेरी अगुआई की और मेरी रक्षा की है उसके लिए धन्यवाद। आपका धन्यवाद कि आज आपकी उपस्थिति और प्यार से मेरी आत्मिक भूख और प्यास मिट गई है।
मरकुस 4:30-5:20
राई के दाने का दृष्टान्त
30 फिर उसने कहा, “हम कैसे बतायें कि परमेश्वर का राज्य कैसा है? उसकी व्याख्या करने के लिए हम किस उदाहरण का प्रयोग करें? 31 वह राई के दाने जैसा है जो जब धरती में बोया जाता है तो बीजों में सबसे छोटा होता है। 32 किन्तु जब वह रोप दिया जाता है तो बढ़ कर भूमि के सभी पौधों से बड़ा हो जाता है। उसकी शाखाएँ इतनी बड़ी हो जाती हैं कि हवा में उड़ती चिड़ियाएँ उसकी छाया में घोंसला बना सकती हैं।”
33 ऐसे ही और बहुत से दृष्टान्त देकर वह उन्हें वचन सुनाया करता था। वह उन्हें, जितना वे समझ सकते थे, बताता था। 34 बिना किसी दृष्टान्त का प्रयोग किये वह उनसे कुछ भी नहीं कहता था। किन्तु जब अपने शिष्यों के साथ वह अकेला होता तो सब कुछ का अर्थ बता कर उन्हें समझाता।
बवंडर को शांत करना
35 उस दिन जब शाम हुई, यीशु ने उनसे कहा, “चलो, उस पार चलें।” 36 इसलिये, वे भीड़ को छोड़ कर, जैसे वह था वैसा ही उसे नाव पर साथ ले चले। उसके साथ और भी नावें थीं। 37 एक तेज बवंडर उठा। लहरें नाव पर पछाड़ें मार रही थीं। नाव पानी से भर जाने को थी। 38 किन्तु यीशु नाव के पिछले भाग में तकिया लगाये सो रहा था। उन्होंने उसे जगाया और उससे कहा, “हे गुरु, क्या तुझे ध्यान नहीं है कि हम डूब रहे हैं?”
39 यीशु खड़ा हुआ। उसने हवा को डाँटा और लहरों से कहा, “शान्त हो जाओ। थम जाओ।” तभी बवंडर थम गया और चारों तरफ असीम शांति छा गयी।
40 फिर यीशु ने उनसे कहा, “तुम डरते क्यों हो? क्या तुम्हें अब तक विश्वास नहीं है?”
41 किन्तु वे बहुत डर गये थे। फिर उन्होंने आपस में एक दूसरे से कहा, “आखिर यह है कौन? हवा और पानी भी इसकी आज्ञा मानते हैं!”
दुष्टात्माओं से छुटकारे
5फिर वे झील के उस पार गिरासेनियों के देश पहुँचे। 2 यीशु जब नाव से बाहर आया तो कब्रों में से निकल कर तत्काल एक ऐसा व्यक्ति जिस में दुष्टात्मा का प्रवेश था, उससे मिलने आया। 3 वह कब्रों के बीच रहा करता था। उसे कोई नहीं बाँध सकता था, यहाँ तक कि जंजीरों से भी नहीं। 4 क्योंकि उसे जब जब हथकड़ी और बेड़ियाँ डाली जातीं, वह उन्हें तोड़ देता। ज़ंजीरों के टुकड़े-टुकड़े कर देता और बेड़ियों को चकनाचूर। कोई भी उसे काबू नहीं कर पाता था। 5 कब्रों और पहाड़ियों में रात-दिन लगातार, वह चीखता-पुकारता अपने को पत्थरों से घायल करता रहता था।
6 उसने जब दूर से यीशु को देखा, वह उसके पास दौड़ा आया और उसके सामने प्रणाम करता हुआ गिर पड़ा। 7 और ऊँचे स्वर में पुकारते हुए बोला, “सबसे महान परमेश्वर के पुत्र, हे यीशु! तू मुझसे क्या चाहता है? तुझे परमेश्वर की शपथ, मेरी विनती है तू मुझे यातना मत दे।” 8 क्योंकि यीशु उससे कह रहा था, “ओ दुष्टात्मा, इस मनुष्य में से निकल आ।”
9 तब यीशु ने उससे पूछा, “तेरा नाम क्या है?”
और उसने उसे बताया, “मेरा नाम लीजन अर्थात् सेना है क्योंकि हम बहुत से हैं।” 10 उसने यीशु से बार बार विनती की कि वह उन्हें उस क्षेत्र से न निकाले।
11 वहीं पहाड़ी पर उस समय सुअरों का एक बड़ा सा रेवड़ चर रहा था। 12 दुष्टात्माओं ने उससे विनती की, “हमें उन सुअरों में भेज दो ताकि हम उन में समा जायें।” 13 और उसने उन्हें अनुमति दे दी। फिर दुष्टात्माएँ उस व्यक्ति में से निकल कर सुअरों में समा गयीं, और वह रेवड़, जिसमें कोई दो हजार सुअर थे, ढलवाँ किनारे से नीचे की तरफ लुढ़कते-पुढ़कते दौड़ता हुआ झील में जा गिरा। और फिर वहीं डूब मरा।
14 फिर रेवड़ के रखवालों ने जो भाग खड़े हुए थे, शहर और गाँव में जा कर यह समाचार सुनाया। तब जो कुछ हुआ था, उसे देखने लोग वहाँ आये। 15 वे यीशु के पास पहुँचे और देखा कि वह व्यक्ति जिस पर दुष्टात्माएँ सवार थीं, कपड़े पहने पूरी तरह सचेत वहाँ बैठा है, और यह वही था जिस में दुष्टात्माओं की पूरी सेना समाई थी, वे डर गये। 16 जिन्होंने वह घटना देखी थी, लोगों को उसका ब्योरा देते हुए बताया कि जिसमें दुष्टात्माएँ समाई थीं, उसके साथ और सुअरों के साथ क्या बीती। 17 तब लोग उससे विनती करने लगे कि वह उनके यहाँ से चला जाये।
18 और फिर जब यीशु नाव पर चढ़ रहा था तभी जिस व्यक्ति में दुष्टात्माएँ थीं, यीशु से विनती करने लगा कि वह उसे भी अपने साथ ले ले। 19 किन्तु यीशु ने उसे अपने साथ चलने की अनुमति नहीं दी। और उससे कहा, “अपने ही लोगों के बीच घर चला जा और उन्हें वह सब बता जो प्रभु ने तेरे लिये किया है। और उन्हें यह भी बता कि प्रभु ने दया कैसे की।”
20 फिर वह चला गया और दिकपुलिस के लोगों को बताने लगा कि यीशु ने उसके लिये कितना बड़ा काम किया है। इससे सभी लोग चकित हुए।
समीक्षा
3. मेरा प्रभु
क्या आप अचानक से ऐसी स्थिति में पड़े हैं, जब बिना चेतावनी के, आपके जीवन में तूफान आ गया हो (4:37 ए.एम.पी.)?
गलीली का समुद्र अचानक आने वाले तूफान के लिए बदनाम है। शिष्य जानते थे कि उस तरह की बड़ी लहरें नाव को पलटकर उनकी जान ले सकती हैं।
फिर भी, यीशु सो रहे थे (पद - 38)। कभी - कभी जब तूफान आता है, तो ऐसा लगता है कि परमेश्वर कुछ नहीं कर रहे हैं। ऐसा नहीं लगता कि वह आपकी प्रार्थनाओं का उत्तर दे रहे हैं या आपकी सुन रहे हैं। ऐसे समय में आपके विश्वास की परीक्षा होती है।
अंत में, यीशु तूफान को शांत कर देते हैं। वह तूफान को ऐसे शब्दों से डांटते हैं जिसका उपयोग कोई मूर्ख ही कर सकता है: ‘शान्त रह, थम जा!’ (पद - 39), यह दर्शाते हुए कि वह प्रकृति के परमेश्वर हैं। शिष्यों के लिए लेखांश भय से शुरू होता है और विश्वास पर खत्म होता है। यीशु चाहते हैं कि आप अपने डर पर जय पाएं और जीवन के तूफान में भी उन पर भरोसा बनाए रखें।
अगला, यीशु दर्शाते हैं कि वह उन सभी शक्तियों पर प्रभु हैं जो हमारे जीवन को नाश करने की कोशिश करती हैं। किसी तरह से यह दुष्टात्मा से ग्रसित व्यक्ति (जिसे सेना कहा गया है 5:9) और उसे ज़ंजीर से बांधकर रखा गया है, जिसका एक ही उपाय था कि उसे ताले में रखा जाए। वे लोग इतना ही कर सकते थे। राजनेताओं, राज्य और पुलिस की ताकत सीमित है। यीशु ने किसी पर दोष नहीं लगाया या उनका अपमान नहीं किया। बल्कि उन्हें परिपूर्णता में जीने की अपनी सामर्थ दिखाई। यीशु ने अधिकार से आज्ञा दी और अपनी प्रभुता को और हमें छुड़ाने की और हमें चंगा करने की सामर्थ को दर्शाया।
यीशु की प्रभुता के प्रति लोगों की दो खास प्रतिक्रियाएं हुईं। पहली शत्रुतापूर्ण थी (पद - 17)। उनके वाणिज्यिक हित नष्ट हुए थे। जब हम असली सामर्थ को कार्य करते हुए देखते हैं, तो यह तकलीफदेह हो सकती हैं। दूसरी तरफ, कुछ लोग इच्छुक थे (पद - 20)।
इस कहानी की दिलचस्प बात यह है कि यीशु द्वारा दुष्टात्मा से ग्रसित व्यक्ति ठीक होने और छुटकारा पाने के बाद, उस व्यक्ति ने विनती की कि ‘कि मुझे अपने साथ रहने दे’ (पद - 18) मगर यीशु ने मना कर दिया (पद - 19)।
मैंने सोचा होता कि यीशु का कार्य पूरा होने से यह व्यक्ति लाभांवित हुआ है! फिर भी, यीशु उसे सीधे सुमाचार का प्रचार करने भेज देते हैं। वह कहते हैं। ‘अपने घर जाकर अपने लोगों को बता, कि तुझ पर दया करके प्रभु ने तेरे लिये कैसे बड़े काम किए हैं’ (पद - 19)। और उसने बिल्कुल वैसा ही किया (पद - 20)।
जिसने अभी - अभी विश्वास किया है उस पर ज़रूरत से ज़्यादा भरोसा न करें। कभी - कभी यह अच्छा होता है कि वे सीधे जाकर लोगों को अपने नये विश्वास के बारे में बताएं। अगली बार जब यीशु दिकापुलिस में आए, तो उनका प्रचार सुनने के लिए 4000 लोग इकठ्ठा हुए थे। ऐसा लगता है कि इस मनुष्य की गवाही से बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा।
शायद इसीलिए मरकुस ने राई के दाने के दृष्टांत के तुरंत बाद इस कहानी को लिखा। दुष्टात्मा से ग्रसित व्यक्ति को लगा होगा कि उसके पास देने के लिए बहुत कम है, लेकिन उसके जीवन की गवाही से बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा था। यीशु कहते हैं कि परमेश्वर बहुत छोटे से बीज (राई के बीज) के साथ भी बहुत बड़ा कर सकते हैं। ‘जब बोया गया, तो उगकर सब साग पात से बड़ा हो जाता है’ (पद - 32)।
बात यह नहीं कि आपके पास कितना है, बल्कि आप इसके साथ क्या करते हैं। राई के बीज को सीधे ज़मीन में बोया जाना चाहिये वरना यह नष्ट हो जाएगा। यदि इसे उगाया जाए तो इसका विकास इतना मज़बूत होता है कि यह कंक्रीट में से भी पार हो सकता है। यह पाठ सरल है: उपयोग करो या बरबाद करो। आपके पास जो है उसका उपयोग कीजिये और परमेश्वर इसे कई गुना फलवंत करेंगे।
प्रार्थना
आपका धन्यवाद कि आप समस्त प्रभु हैं। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि मुश्किल घड़ी में मुझे डरने की ज़रूरत नहीं है और मैं आप पर भरोसा कर सकता हूँ।
निर्गमन 25:1-26:37
पवित्र वस्तुओं के लिए भेंट
25यहोवा ने मूसा से कहा, 2 “इस्राएल के लोगों से मेरे लिए भेंट लाने को कहो। हर एक व्यक्ति अपने मन में निश्चय करे कि वह मुझे इन वस्तुओं में से क्या अर्पित करना चाहता है। इन उपहारों को मेरे लिए अर्पित करो। 3 इन वस्तुओं की सूची यह है जिन्हें तुम लोगों से स्वीकार करोगे, सोना, चाँदी, काँसा; 4 नीला, बैंगनी और लाल सूत, सुन्दर रेशमी कपड़ा; बकरियों के बाल, 5 लाल रंग से रंगा भेड़ का चमड़ा, सुइसों के चमड़ें, बबूल की लकड़ी, 6 दीपक में जलाने का तेल, धूप के लिए सुगन्धित द्रव्य, अभिषेक के तेल के लिए भीनी सुगन्ध देने वाले मसाले। 7 गोमेदक रत्न तथा अन्य मूल्यवान रत्न भी जो याजकों के पहनने की एपोद और न्याय की थैली पर जड़े जाएं, अर्पित करो।”
पवित्र तम्बू
8 परमेश्वर ने यह भी कहा, “लोग मेरे लिए एक पवित्र तम्बू बनाएंगे। तब मैं उनके साथ रह सकूँगा। 9 मैं तुम्हें दिखाऊँगा कि पवित्र तम्बू कैसा दिखाई पड़ना चाहिए। मैं तुम्हें दिखाऊँगा कि इसमें सभी चीज़ें कैसी दिखाई देनी चाहिए। जैसा मैंने दिखाया है हर एक चीज़ ठीक वैसे ही बनाओ।
साक्षीपत्र का सन्दूक
10 “बबूल की लकड़ी का उपयोग करके एक विशेष सन्दूक बनाओ। वह सन्दूक निश्चय ही पैतालिस इंच लम्बा, सत्ताईस इंच चौड़ा और सत्ताईस इंच ऊँचा होना चाहिए। 11 सन्दूक को भीतर और बाहर से ढकने के लिए शुद्ध सोने का उपयोग करो। सन्दूक के कोनों को सोने से मढ़ो। 12 सन्दूक को उठाने के लिए सोने के चार कड़ें बनाओ। सोने के कड़ों को चारों कोनों पर लगाओ। दोनों तरफ दो—दो कड़े हों। 13 तब सन्दूक ले चलने के लिए बल्लियाँ बनाओ। ये बल्लियाँ बबूल की लकड़ी की बनी हों और सोने से मढ़ी होनी चाहिए। 14 सन्दूक के बगलों के कोनों पर लगे कड़ों में इन बल्लियों को डाल देना। इन बल्लियों का उपयोग सन्दूक को ले जाने के लिए करो। 15 ये बल्लियाँ सन्दूक के कड़ों में सदा पड़ी रहनी चाहिए। बल्लियों को बाहर न निकालो।”
16 परमेश्वर ने कहा, “मैं तुम्हें साक्षीपत्र दूँगा। इस साक्षीपत्र को इस सन्दूक में रखो। 17 तब एक ढक्कन बनाओ। इसे शुद्ध सोने का बनाओ। इसे पैंतालिस इंच लम्बा और सत्ताईस इंच चौड़ा बनाओ। 18 तब दो करूब बनाओ और उन्हें ढक्कन के दोनों सिरों पर लगाओ। इन करूबों को बनाने के लिए स्वर्ण पत्रों का उपयोग करो। 19 एक करूब को ढक्कन के एक सिरे पर लगाओ तथा दूसरे को दूसरे सिरे पर। करूब और ढक्कन को परस्पर जोड़ कर के एक इकाई के रूप में बनाया जाए। 20 करूब एक दूसरे के आमने—सामने होने चाहिए। करूबों के मुख ढक्कन की ओर देखते हुए होने चाहिए। करूबों के पंख ढक्कन पर फैले हों।
21 “मैंने तुमको साक्षीपत्र का जो प्रमाण दिया है उसे साक्षीपत्र के सन्दूक में रखो और विशेष ढक्कन से सन्दूक को बन्द करो। 22 जब मैं तुमसे मिलूँगा तब मैं करूबों के बीच से, जो साक्षीपत्र के सन्दूक के विशेष ढक्कन पर है, बात करूँगा। मैं अपने सभी आदेश इस्राएल के लोगों को उसी स्थान से दूँगा।”
विशेष रोटी की मेज
23 “बबूल की लकड़ी की एक मेज़ बनाओ। मेज़ छत्तीस इंच लम्बी अट्ठारह इंच चौड़ी और सत्ताईस इंच ऊँची होना चाहिए। 24 मेज़ को शुद्ध सोने से मढ़ो और उसके चारों ओर सोने की झालर लगाओ। 25 तब तीन इंच चौड़ा सोने का चौखरा मेज के ऊपर चारों ओर जड़ दो और उसके चारों ओर सोने की झालर लगाओ। 26 तब सोने के चार कड़े बनाओ और मेज़ के चारों कोनों पर पायों के पास लगाओ। 27 हर एक पाए पर एक कड़ा लगा दो। जो मेज़ के ऊपर की चारों ओर की सजावट के समीप हो। इन कड़ों में मेज़ को ले जाने के लिए बनी बल्लियाँ फँसी होंगी। 28 बल्लियोँ को बनाने के लिए बबूल की लकड़ी का उपयोग करो और उन्हें सोने से मढ़ो। बल्लियाँ मेज़ को ले जाने के लिए हैं। 29 पात्र, तवे, मर्तबान और अर्ध के लिए कटोरे इन सबको शुद्ध सोने का बनाना। 30 विशेष रोटी मेज़ पर मेरे सम्मुख रखो। यह सदैव मेरे सम्मुख वहाँ रहनी चाहिए।”
दीपाधार
31 “तब तुम्हें एक दीपाधार बनाना चाहिए। दीपाधार के हर एक भाग को बनाने के लिए शुद्ध सोने के पत्तर तैयार करो। सुन्दर दिखने के लिए दीप पर फूल बनाओ। ये फूल, इनकी कलियाँ और पंखुडियाँ शुद्ध सोने की बनी होनी चाहिए और वे सभी चीज़ें एक ही में जुड़ी हुई होनी चाहिए।
32 “दीपाधार की छः शाखाएँ होनी चाहिए। तीन शाखाएँ एक ओर और तीन शाखाएँ दूसरी ओर होनी चाहिए। 33 हर शाखा पर बादाम के आकार के तीन प्याले होने चाहिए। हर प्याले के साथ एक कली और एक फूल होना चाहिए। 34 और स्वयं दीपाधार पर बादाम के फूल के आकार के चार और प्याले होने चाहिए। इन प्यालों के साथ भी कली और फूल होने चाहिए। 35 दीपाधार से निकलने वाली छः शाखाएँ दो दो के तीन भागों में बटीं होनी चाहिए। हर एक दो शाखाओं के जोड़े के नीचे एक एक कली बनाओ जो दीपाधार से निकलती हो। 36 ये सभी शाखाएँ और कलियाँ दीपाधार के साथ एक इकाई बननी चाहिए। और हर एक चीज शुद्ध सोने से तैयार की जानी चाहिए। 37 तब सात छोटे दीपक दीपाधार पर रखे जाने के लिए बनाओ। ये दीपक दीपाधार के सामने के स्थान को प्रकाश देंगे। 38 दीपक की बतियाँ बुझाने के पात्र और तश्तरियाँ शुद्ध सोने की बनानी चाहिए। 39 पचहत्तर पौंड शुद्ध सोने का उपयोग दीपाधार और इसके साथ की सभी चीज़ों को बनाने में करें। 40 सावधानी के साथ हर एक चीज़ ठीक—ठीक उसी ढँग से बनायी जाए जैसी मैंने पर्वत पर तुम्हें दिखाई है।”
पवित्र तम्बू
26यहोवा ने मूसा से कहा, “पवित्त्र तम्बू दस कनातों से बनाओ। इन कनातों को अच्छे रेशम तथा नीले, लाल और बैंगनी कपड़ों से बनाओ। किसी कुशल कारीगर को चाहिए कि वह करूबों को पंख सहित कनातों पर काढ़े। 2 हर एक कनात को एक बराबर बनाओ। हर एक कनात चौदह गज़ लम्बी और दो गज चौड़ी होनी चाहिए। 3 सभी कनातों को दो भागों में सीओ। एक भाग में पाँच कनातों को एक साथ सीओ और दूसरे भाग में पाँच को एक साथ। 4 आखिरी कनात के सिरे के नीचे छल्ले बनाओ। इन छल्लों को बनाने के लिए नीला कपड़ा उपयोग में लाओ। कनातों के दोनों भागों में एक ओर नीचे छल्ले होंगे। 5 पहले भाग की आखिरी कनात में पचास छल्ले होंगे और दूसरे भाग की आखिरी कनात में पचास। 6 तब पचास सोने के कड़े छल्लों को एक साथ मिलाने के लिए बनाओ। यह कनातों को इस प्रकार जोड़ेंगे कि पवित्र तम्बू एक ही हो जाएगा।”
7 “तब तुम दूसरा तम्बू बनाओगे जो पवित्र तम्बू को ढकेगा। इस तम्बू को बनाने के लिए बकरियों के बाल से बनी ग्यारह कनातों का उपयोग करो। 8 ये सभी कनातें एक बराबर होनी चाहिए। वे पन्द्रह गज लम्बी और दो गज चौड़ी होनी चाहिए। 9 एक भाग में पाँच कनातों को एक साथ सीओ तब बाकी छः कनातों को दूसरे भाग में एक साथ सीओ। छठी कनात का उपयोग तम्बू के सामने के पर्दे के लिए करो। इसे इस प्रकार लपेटो कि यह द्वार की तरह खुले। 10 एक भाग की आखिरी कनात के सिरे पर पचास छल्ले बनाओ, ऐसा ही दूसरे भाग की आखिरी कनात के लिए करो। 11 तब पचास काँसे के कड़े बनाओ। इन काँसे के कड़ों का उपयोग छल्लों को एक साथ जोड़ने के लिए करो। ये कनातों को एक साथ तम्बू के रूप में जोड़ेंगे। 12 ये कनातें पवित्र तम्बू से अधिक लम्बी होंगी। इस प्रकार अन्त के कनात का आधा हिस्सा तम्बू के पीछे किनारों के नीचे लटका रहेगा।” 13 “वहाँ अट्ठारह इंच कनात तम्बू के बगलों में निचले किनारों से लटकती रहेगी। यह तम्बू को पूरी तरह ढक लेगी। 14 बाहरी आवरण को ढकने के लिए दो अन्य पर्दे बनाओ। एक लाल रंगे मेढ़े के चमड़े से बनाना चाहिए तथा दूसरा पर्दा सुइसों के चमड़े का बना होना चाहिए।
15 “तम्बू के सहारे के लिए बबूल की लकड़ी के तख़्ते बनाओ। 16 तख्ते पन्द्रह फुट लम्बे और सत्ताईस इंच चौड़े होने चाहिए। 17 हर तख़्ता एक जैसा होना चाहिए। हर एक तख़्ते के तले में उन्हें जोड़ने के लिए साथ—साथ दो खूंटियाँ होनी चाहिए। 18 तम्बू के दक्षिणी भाग के लिए बीस तख़्ते बनाओ। 19 ढाँचे के ठीक नीचे चाँदी के दो आधार हर एक तख़्ते के लिए होने चाहिए। इसलिए तुम्हें तख़्तों के लिए चाँदी के चालीस आधार बनाने चाहिए। 20 तम्बू के (उत्तरी भाग) के लिए बीस तख़्ते और बनाओ। 21 इन तख़्तों के लिए भी चाँदी के चालीस आधार बनाओ, अर्थात् एक तख़्ते के लिए दो आधार। 22 तुम्हें तम्बू के (पश्चिमी छोर) के लिए छः और तख्ते बनाने चाहिए। 23 दो तख़्ते पिछले कोनों के लिए बनाओ। 24 कोने के दोनों तख़्ते एक साथ जोड़ देने चाहिए। तले में दोनों तख़्तों की खूँटियाँ चाँदी के एक ही आधार में लगेंगी और ऊपर धातु का एक छल्ला दोनों तख़्तों को एक साथ रखेगा। 25 इस प्रकार सब मिलाकर आठ तख्ते तम्बू के सिरे के लिए होंगे और हर तख़्ते के नीचे दो आधारों के होने से सोलह चाँदी के आधार पश्चिमी छोर के लिए होंगे।”
26 “बबूल की लकड़ी का उपयोग करो और तम्बू के तख़्तों के लिए कुण्डियाँ बनाओ। तम्बू के पहले भाग के लिए पाँच कुण्डियाँ होंगी। 27 और तम्बू के दूसरे भाग के ढाँचे के लिए पाँच कुण्डियाँ होंगी। और तम्बू के (पश्चिमी भाग) के ढाँचे के लिए पाँच कुण्डियाँ होंगी अर्थात् तम्बू के पीछे। 28 पाँचों कुण्डियों के बीच की कुण्डी तख़्तों के मध्य में होनी चाहिए। यह कुण्डी तख़्तों के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुँचनी चाहिए।
29 “तख़्तों को सोने से मढ़ो और तख़्तों की कुण्डियों को फँसाने के लिए कड़े बनवाओ। ये कड़े भी सोने के ही बनने चाहिए। कुण्डियों को भी सोने से मढ़ो। 30 पवित्र तम्बू को तुम उसी ढंग की बनाओ जैसा मैंने तुम्हें पर्वत पर दिखाया था।
पवित्र तम्बू का भीतरी भाग
31 “सन के अच्छे रेशों का उपयोग करो और तम्बू के भीतरी भाग के लिए एक विशेष पर्दा बनाओ। इस पर्दे को नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़े से बनाओ। करूब के प्रतिरूप कपड़े में काढ़ो। 32 बबूल की लकड़ी के चार खम्भे बनाओ। चारों खम्भों पर सोने की बनी खूँटियाँ लगाओ। खम्भों को सोने से मढ़ दो। खम्भों के नीचे चाँदी के चार आधार रखो। तब सोने की खूँटियों में पर्दा लटकाओ। 33 खूँटियों पर पर्दे को लटकाने के बाद, साक्षीपत्र के सन्दूक को पर्दे के पीछे रखो। यह पर्दा पवित्र स्थान को सर्वाधिक पवित्र स्थान से अलग करेगा। 34 सर्वाधिक पवित्र स्थान में साक्षीपत्र के सन्दूक पर ढक्कन रखो।
35 “पवित्र स्थान में पर्दे के दूसरी ओर विशेष मेज़ को रखो। मेज़ तम्बू के उत्तर में होनी चाहिए। तब दीपाधार को तम्बू के दक्षिण में रखो। दीपाधार मेज़ के ठीक सामने होगा।
पवित्र तम्बू का मुख्य द्वार
36 “तब तम्बू के मुख्य द्वार के लिए एक पर्दा बनाओ। इस पर्दे को बनाने के लिए नीले बैंगनी, लाल कपड़े तथा सन के उत्तम रेशों का उपयोग करो और कपड़े में चित्रों की कढ़ाई करो। 37 द्वार के इस पर्दे के लिए सोने के छल्ले बनावाओ। सोने से मढ़े बबूल की लकड़ी के पाँच खम्भे बनाओ और पाँचों खम्भों के लिए काँसे के पाँच आधार बनाओ।”
समीक्षा
4. मेरा मार्गदर्शक
उदारता एक इच्छापूर्ण कार्य है। यदि आप परमेश्वर से प्रेम करते हैं, तो आप उनके नाम की महिमा की खातिर उदारता से देंगे। परमेश्वर के लोग परमेश्वर के कार्य के लिए उन सभी से धन इकठ्ठा कर सकते हैं, ‘जो अपनी इच्छा से देना चाहते हैं’ (25:2ब)। वे लोग अपनी इच्छा से उदारतापूर्वक देते हैं (2ब. ए.एम.पी.)।
तंबू (‘मिलाप का तंबू’) परमेश्वर और उनके लोगों की मुलाकात के लिए एक अस्थायी स्थान था। सैद्धांतिक रूप से, यह तंबू इस धरती पर परमेश्वर के रहने का स्थान था, जो कि अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। यह परमेश्वर के निवास स्थान की श्रृंखला में पहला है – जैसे तंबू, मंदिर, स्वयं यीशु, अविश्वासी का शरीर, कलीसिया।
परमेश्वर ने सूक्ष्मता से मार्गदर्शन करने का वायदा किया है: ‘जो कुछ मैं तुझे दिखाता हूं, अर्थात निवासस्थान और उसके सब सामान का नमूना, उसी के अनुसार तुम लोग उसे बनाना’ (पद - 9)।
5. मेरा उद्धारकर्ता
इब्रानियों के लेखक समझाते हैं कि यहाँ पर पवित्र स्थान का जो वर्णन किया गया है (निर्गमन 25:10 – 26:37) वह ठीक प्रतिरूप और प्रतिबिम्ब है जैसा कि स्वर्ग में है। इसीलिए जब मूसा इसे बनाने जा रहा था उसे चेतावनी दी गई थी: ‘जब मूसा तम्बू बनाने पर था, तो उसे यह चेतावनी मिली, कि देख जो नमूना तुझे पहाड़ पर दिखाया गया था, उसके अनुसार सब कुछ बनाना’ (इब्रानियों 8:5-6)।
पवित्र स्थान और अति पवित्र स्थान बनाने के लिए दिये गए ये सभी निर्देश मसीह के उद्धार के कार्य की तैयारी थी: ‘परन्तु जब मसीह आने वाली अच्छी - अच्छी वस्तुओं का महायाजक होकर आया, तो उस ने और भी बड़े और सिद्ध तम्बू से होकर जो हाथ का बनाया हुआ नहीं, अर्थात इस सृष्टि का नहीं। और बकरों और बछड़ों के लोहू के द्वारा नहीं, पर अपने ही लोहू के द्वारा एक ही बार पवित्र स्थान में प्रवेश किया, और अनन्त छुटकारा प्राप्त किया’ (9:11-12)।
यीशु की प्रायश्चित बलि के द्वारा आप और मैं अति पवित्र स्थान में प्रवेश कर सकते हैं। यीशु मेरे उद्धारकर्ता हैं।
प्रार्थना
प्रभु, मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि, आप मेरे चरवाहा, मेरे रक्षक, मेरे प्रभु, मेरे मार्गदर्शक और मेरे उद्धारकर्ता हैं। आपका धन्यवाद कि आप मुझ से प्रेम करते हैं।
पिप्पा भी कहते है
जीवन का तूफान कहीं और से नहीं आता, अक्सर जब चीज़ें बहुत अच्छी चल रही होती हैं। उस समय अपने विश्वास को दूर करना आसान है। लेकिन शिष्यों ने सही चीज़ की, वे यीशु के पास गए। हालाँकि उनके अल्पविश्वास के कारण यीशु ने उन्हें डांटा। फिर भी स्थिति को फिर से बहाल किया। मुझे यह सच्चाई पसंद आई कि आंधी थम जाने के बाद, बड़ा चैन हो गया (मरकुस 4:39)।
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संदर्भ
नोट्स
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