परमेश्वर उन चीज़ों को बढ़ाते हैं जो हम उन्हें देते हैं
परिचय
एक छह वर्षीय लड़की है जिसका नाम हेटी में वेट्ट है, जो यू.एस.ए. में फिलेडेल्फिया में ग्रेस बॅपटिस्ट चर्च के पास रहती थी। संडे स्कूल बहुत ही भरा हुआ था। सेवक, रसेल एच. कॉनवेल ने उसे बताया कि एक दिन उनके पास इतनी बड़ी ईमारत होगी कि वे सभी को अंदर ले पायेंगे। उसने कहा, 'मैं आशा करती हूँ कि ऐसा ही हो। यह बहुत ही भरा हुआ है मुझे अकेले अंदर जाने में डर लगता है।’ उन्होंने उत्तर दिया, 'जब हमें पैसा मिल जाएगा तब हम एक बड़ी ईमारत बनवायेंगे ताकि सभी बच्चे अंदर आ पाएं।’
दो साल बाद, 1886 में, हेटी में की मृत्यु हो गई। दफन करने के बाद हेटी की माँ ने सेवक को एक छोटा सा बैग दिया, जो उन्हें अपनी बेटी के तकिये के नीचे मिला था जिसमें 57 सिक्के थे जिसे उसने जमा किए थे। साथ ही उसकी लिखावट में एक परची मिलीः 'ईमारत को बड़ा बनाने में सहायता करने के लिए ताकि और ज़्यादा बच्चे संडे स्कूल में आ सकें ।'
सेवक ने पूरे पैसे को पेनी मे बदल दिया और हर एक को बेचने के लिए निकाला। उन्हें $250 मिले – और 54 सेंट वापस मिल गए। $250 पेनी में बदल दिये गए और नये संगठित 'वेट माईट सोसायटी’ के द्वारा बेच दिया गया। इस तरह से उसके 67 सेंट निरंतर बढ़ते गए।
छब्बीस साल बाद '57 सेंट का इतिहास’ नामक बातचीत के दौरान, सेवक ने उसके 57 सेंट दान के परिणाम को समझायाः एक चर्च जिसमें 5600 से अधिक सदस्य हैं, एक अस्पताल जहाँ पर हज़ारों लोगों का इलाज होता है, 80000 युवा लोग यूनिवर्सिटी में जाते हैं, 2000 लोग सुसमाचार का प्रचार करने जाते हैं - यह सब हो पाया, 'क्योंकि हेटी मे वेट ने 57 सेंट का निवेश किया था।’
बढ़त का विषय पूरी बाइबल में लिखा हुआ है। जो जोड़ने के द्वारा नहीं पाया जा सकता, उसे परमेश्वर बढ़ाने के द्वारा करते हैं। हम जो बोतें हैं वही काटते हैं, केवल उससे कई गुना हो जाता है। जो कुछ हम परमेश्वर को देते हैं, वह उसे बढ़ा देते हैं।
भजन संहिता 25:16-22
16 हे यहोवा, मैं पीड़ित और अकेला हूँ।
मेरी ओर मुड़ और मुझ पर दया दिखा।
17 मेरी विपतियों से मुझको मुक्त कर।
मेरी समस्या सुलझाने की सहायता कर।
18 हे योहवा, मुझे परख और मेरी विपत्तियों पर दृष्टि डाल।
मुझको जो पाप मैंने किए हैं, उन सभी के लिए क्षमा कर।
19 जो भी मेरे शत्रु हैं, सभी को देख ले।
मेरे शत्रु मुझसे बैर रखते हैं, और मुझ को दु:ख पहुँचाना चाहते हैं।
20 हे परमेश्वर, मेरी रक्षा कर और मुझको बचा ले।
मैं तेरा भरोसा रखता हूँ। सो मुझे निराश मत कर।
21 हे परमेश्वर, तू सचमुच उत्तम है।
मुझको तेरा भरोसा है, सो मेरी रक्षा कर।
22 हे परमेश्वर, इस्राएल के जनों की उनके सभी शत्रुओं से रक्षा कर।
समीक्षा
आशीषें...और परेशानियों का बढ़ना
यीशु ने अपने अनुयायियों से आशीषों की बढ़त का वादा किया है। लेकिन उन्होंने उन्हें चेतावनी भी दी कि आशीषों के साथ परेशानी भी आएगी। उन्होंने कहा कि जो कोई उनके पीछे हो लिया है वह अपने जीवन में सौ गुना पायेगा – सतावों के साथ (मरकुस 10:30)।
इस भजन में दाऊद बताते है कि कैसे 'मेरे हृदय की परेशानियाँ बढ़ गई है...देखो कैसे मेरे शत्रुओं की संख्या बढ़ गई है’ (भजन संहिता 25:17,19)। वह अकेलेपन, 'क्लेश’, 'पीड़ा’, और 'संकट’ के बारे में बताते हैं।
जहाँ कहीं परमेश्वर आशीष देते हैं, वहाँ परेशानियां और सताव भी बढ़ते हैं। किसी भी प्रकार के लीडरशीप में विरोध जुड़ा हुआ होगा। आपका उत्तरदायित्व जितना बड़ा होगा, उतनी ही अधिक आपकी परेशानियाँ बढ़ेंगी और आपके आलोचक भी बढ़ेंगे।
दाऊद परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उन्हें सुरक्षित रखने और बचाने में वे उनकी सहायता करें (पद - 20)। जब प्रहार हो, तब हमेशा विश्वसनीयता, ईमानदारी और विश्वास के साथ काम करने की कोशिश कीजिए (पद - 21)। लोग क्या कहते हैं या सोचते हैं इसके बावजूद सही चीज़ों को कीजिए।
प्रार्थना
परमेश्वर, जैसे ही मैं विरोध का सामना करता हूँ, मेरी सहायता कीजिए कि मैं सही चीज़ों को करुं, इसकी कीमत या परिणाम चाहें जो भी हो।
मरकुस 7:31-8:13
बहरा गूँगा सुनने-बोलने लगा
31 फिर वह सूर के इलाके से वापस आ गया और दिकपुलिस यानी दस-नगर के रास्ते सिदोन होता हुआ झील गलील पहुँचा। 32 वहाँ कुछ लोग यीशु के पास एक व्यक्ति को लाये जो बहरा था और ठीक से बोल भी नहीं पाता था। लोगों ने यीशु से प्रार्थना की कि वह उस पर अपना हाथ रख दे।
33 यीशु उसे भीड़ से दूर एक तरफ़ ले गया। यीशु ने अपनी उँगलियाँ उसके कानों में डालीं और फिर उसने थूका और उस व्यक्ति की जीभ छुई। 34 फिर स्वर्ग की ओर ऊपर देख कर गहरी साँस भरते हुए उससे कहा, “इप्फतह।” (अर्थात् “खुल जा!”) 35 और उसके कान खुल गए, और उसकी जीभ की गांठ भी खुल गई, और वह साफ साफ बोलने लगा।
36 फिर यीशु ने उन्हें आज्ञा दी कि वे किसी को कुछ न बतायें। पर उसने लोगों को जितना रोकना चाहा, उन्होंने उसे उतना ही अधिक फैलाया। 37 लोग आश्चर्यचकित होकर कहने लगे, “यीशु जो करता है, भला करता है। यहाँ तक कि वह बहरों को सुनने की शक्ति और गूँगों को बोली देता है।”
चार हज़ार को भोजन
8उन्हीं दिनों एक दूसरे अवसर पर एक बड़ी भीड़ इकट्ठी हुई। उनके पास खाने को कुछ नहीं था। यीशु ने अपने शिष्यों को पास बुलाया और उनसे कहा, 2 “मुझे इन लोगों पर तरस आ रहा है क्योंकि इन लोगों को मेरे साथ तीन दिन हो चुके हैं और उनके पास खाने को कुछ नहीं है। 3 और यदि मैं इन्हें भूखा ही घर भेज देता हूँ तो वे मार्ग में ही ढेर हो जायेंगे। कुछ तो बहुत दूर से आये हैं।”
4 उसके शिष्यों ने उत्तर दिया, “इस जंगल में इन्हें खिलाने के लिये किसी को पर्याप्त भोजन कहाँ से मिल सकता है?”
5 फिर यीशु ने उनसे पूछा, “तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?”
उन्होंने उत्तर दिया, “सात।”
6 फिर उसने भीड़ को धरती पर नीचे बैठ जाने की आज्ञा दी। और उसने वे सात रोटियाँ लीं, धन्यवाद किया और उन्हें तोड़ कर बाँटने के लिये अपने शिष्यों को दिया। और फिर उन्होंने भीड़ के लोगों में बाँट दिया। 7 उनके पास कुछ छोटी मछलियाँ भी थीं, उसने धन्यवाद करके उन्हें भी बाँट देने को कहा।
8 लोगों ने भर पेट भोजन किया और फिर उन्होंने बचे हुए टुकड़ों को इकट्ठा करके सात टोकरियाँ भरीं। 9 वहाँ कोई चार हज़ार पुरुष रहे होंगे। फिर यीशु ने उन्हें विदा किया। 10 और वह तत्काल अपने शिष्यों के साथ नाव में बैठ कर दलमनूता प्रदेश को चला गया।
फरीसियों की चाहत: यीशु कुछ अनुचित करे
11 फिर फ़रीसी आये और उससे प्रश्न करने लगे, उन्होंने उससे कोई स्वर्गीय आश्चर्य चिन्ह प्रकट करने को कहा। उन्होंने यह उसकी परीक्षा लेने के लिये कहा था। 12 तब अपने मन में गहरी आह भरते हुए यीशु ने कहा, “इस पीढ़ी के लोग कोई आश्चर्य चिन्ह क्यों चाहते हैं? इन्हें कोई चिन्ह नहीं दिया जायेगा।” 13 फिर वह उन्हें छोड़ कर वापस नाव में आ गया और झील के परले पार चला गया।
समीक्षा
स्रोतों में बढ़त
इस लेखांश में हम परमेश्वर के प्रावधानों में असाधारण बढ़त को देखते हैं। सात रोटियों और थोड़ी सी मछली से यीशु ने 5000 लोगों को खिलाया और चेलों ने बचे हुए टुकड़ों से सात भरी हुई टोकरियाँ इकठ्ठा कीं।
दिलचस्प तरीके से, हालाँकि यीशु सिर्फ चमत्कार नहीं करते, वे पहले चेलों को इसमें शामिल करते हैं। वे उन्हें बुलाते हैं यह बताने के लिए कि वे क्या करना चाहते हैं (8:1-3)। वे उन्हें समाधान के बारे में सोचने देते हैं (पद - 4), शायद से यह आशा करते हुए कि वे 5000 लोगों को भोजन खिलाने की बात स्मरण करेंगे (6:30-44)।
तब वे उनकी सहायता लेते हैं, उनके पास जो भोजन है उसे माँगने के द्वारा (8:5)। यही समय है जब यीशु एक चमत्कार करते हैं, उस भोजन को बढ़ाने के द्वारा जो चेलो ने उन्हें दिया है। यहाँ तक कि तब भी वे चेलों को भोजन बाँटने के लिए कहते हैं (पद - 6)। यीशु को हमें उनकी योजना और काम में शामिल करवाने में अच्छा लगता है।
चेलें का काम उसकी तुलना में छोटा दिखाई देता है जो कि यीशु कर सकते हैं। बहुत छोटी रकम से परमेश्वर बहुत कुछ कर सकते हैं। जो कुछ आप परमेश्वर को देते हैं, वह उसे बढ़ा देते हैं।
आज के लेखांश की शुरुवात यीशु के दूसरे चमत्कार से होती है। उन्होंने एक व्यक्ति को चंगा किया, 'जो कि बहरा था और बोल नहीं सकता था’ (7:32)। उन्होंने उसके लिए प्रार्थना की, 'एक गहरी साँस के साथ’ (पद - 34)। शायद यह वही प्रार्थना है जिसे पौलुस 'शब्दों में बयान की जा सकने वाली आहें’ कहते हैं (रोमियों 8:26)। यह हमारे द्वारा प्रार्थना में पवित्र आत्मा के संघर्ष को दर्शाता है। यीशु ने (उस व्यक्ति से) कहा, 'एफफथा!’ (जिसका अर्थ है, 'खुल जाओ’) (मरकुस 7:34)।
इसमें कोई संदेह नहीं कि विरोध में बढ़त होगी इस बात को जानते हुए यीशु ने उन लोगों को आज्ञा दी कि किसी से न कहें (पद - 36)। किंतु, 'जितना अधिक उन्होंने ऐसा किया उतना ही अधिक वे इसके विषय में बात करते रहे’ (पद - 36)।
बढ़त के चमत्कार के बाद, यीशु ने भीड़ को वापस भेज दिया, ताकि वह अपने चेलों के एक छोटे से समूह पर ध्यान केंद्रित कर सकें (8:9-10)। भीड़ की ज़रूरतें बहुत सारी थी – विश्व में बेदारी की और चंगाई की। फिर भी, यीशु ने लीडर्स के एक छोटे से समूह के साथ समय बिताने को प्राथमिकता दी।
बढ़त के चमत्कार, और अन्य चमत्कारों के बावजूद, सभी लोगों ने विश्वास नहीं किया। फरीसी आकर यीशु से प्रश्न पूछने लगे। उसे जाँचने के लिए उन्होंने उसे स्वर्ग से एक चिह्न दिखाने के लिए कहा (पद - 11)। वे लोग उनके अधिकार का बाहरी सबूत चाहते थे।
वे आत्मिक रूप से अंधे थे और उस चिह्न को पहचान नहीं पा रहे थे जो परमेश्वर ने उन्हें दिया था (शायद आपने सोचा होगा कि 5000 लोगों को थोड़ी सी रोटियों और मछली से भोजन खिलाना निश्चित ही 'चिह्न’) है। वे स्वयं का चिह्न चुनना चाहते थे – जिसे करने से यीशु ने इंकार कर दिया था। आज भी यह सच है कि विश्वास हमेशा चमत्कार से नहीं आता – लोग हमेशा चमत्कारों को अस्वीकार करते हैं, यह सोचते हुए कि वहाँ पर कुछ दूसरा स्पष्टिकरण होना चाहिए
प्रार्थना
परमेश्वर, आपका धन्यवाद क्योंकि आप बहुत ही थोड़ी रकम से बहुत कुछ कर सकते हैं और जो कुछ हम आपको देते हैं, उसे आप बढ़ा देते हैं। परमेश्वर, आज मैं अपना जीवन, अपना समय, और जो कुछ मेरे पास है, आपको देता हूँ।
निर्गमन 35:1-36:38
सब्त के नियम
35मूसा ने इस्राएल के सभी लोगों को एक साथ इकट्ठा किया। मूसा ने उनसे कहा, “मैं वे बातें बताऊँगा जो यहोवा ने तुम लोगों को करने के लिए कही हैं:
2 “काम करने के छ: दिन हैं। किन्तु सातवाँ दिन तुम लोगों का विश्राम का विशेष दिन होगा। उस विशेष दिन को विश्राम करके तुम लोग यहोवा को श्रद्धा अर्पित करोगे। यदि कोई सातवें दिन काम करेगा तो उसे अवश्य मार दिया जाएगा। 3 सब्त के दिन तुम्हें किसी स्थान पर आग तक नहीं जलानी चाहिए, जहाँ कहीं तुम रहते हो।”
पवित्र तम्बू के लिए चीज़ें
4 मूसा ने इस्राएल के सभी लोगों से कहा, “यही है जो यहोवा ने आदेश दिया है। 5 यहोवा के लिए विशेष भेंट इकट्ठी करो। तुम्हें अपने मन में निश्चय करना चाहिए कि तुम क्या भेंट करोगे। और तब तुम वह भेंट यहोवा के पास लाओ। सोना, चाँदी और काँसा; 6 नीला बैंगनी और लाल कपड़ा, सन का उत्तम रेशा; बकरी के बाल; 7 भेड़ की लाल रंगी खाल, सुइसों का चमड़ा; बबूल की लकड़ी; 8 दीपकों के लिए जैतून का तेल; अभिषेक के तेल के लिए मसाले, सुगन्धित धूप के लिए मसाले, 9 गोमेदक नग तथा अन्य रत्न भेंट में लाओ। ये नग और रत्न एपोद और सीनाबन्द पर लगाए जाएंगे।
10 “तुम सभी कुशल कारीगरों को चाहिए कि यहोवा ने जिन चीज़ों का आदेश दिया है उन्हें बनाएं। ये वे चीज़ें हैं जिनके लिए यहोवा ने आदेश दिया है: 11 पवित्र तम्बू, इसका बाहरी तम्बू, और इसका आच्छादन, छल्ले, तख्ते, पट्टियाँ, स्तम्भ और आधार; 12 पवित्र सन्दूक, और इसकी बल्लियाँ तथा सन्दूक का ढक्कन, और सन्दूक रखे जाने की जगह को ढकने के लिए पर्दे; 13 मेज और इसकी बल्लियाँ, मेज पर रहने वाली सभी चीज़ें, और मेज पर रखी जाने वाली विशेष रोटी; 14 प्रकाश के लिये उपयोग में आने वाला दीपाधार, और वे सभी चीज़ें जो दीपाधार के साथ होती हैं अर्थात् दीपक, और प्रकाश के लिए तेल; 15 धूप जलाने के लिए वेदी और इसकी बल्लियाँ अभिषेक का तेल और सुगन्धित धूप, मिलापवाले तम्बू के प्रवेश द्वार को ढकने वाली कनात; 16 होमबलियों के लिए वेदी और इसकी काँसे की जाली, बल्लियाँ और वेदी पर उपयोग में आने वाली सभी चीज़ें, काँसे की चिलमची और इसका आधार; 17 आँगन के चारों ओर की कनातें, और उनके खंभे और आधार, और आँगन के प्रवेशद्वार को ढकने वाली कनात; 18 आँगन और तम्बू के सहारे के लिए उपयोग में आने वाली खूँटियाँ, और खूँटियों से बँधने वाली रस्सियाँ; 19 और विशेष बुने वस्त्र जिन्हें याजक पवित्र स्थानों में पहनेंगे। ये विशेष वस्त्र याजक हारून और उसके पुत्रों के पहनने के लिए हैं वे इन वस्त्रों को तब पहनेंगे जब वे याजक के रूप में सेवा—कार्य करेंगे।”
लोगों की महान भेंट
20 तब इस्राएल के सभी लोग मूसा के पास से चले गए। 21 सभी लोग जो भेंट चढ़ाना चाहते थे आए और यहोवा के लिए भेंट लाए। ये भेंटे मिलापवाले तम्बू को बनाने, तम्बू की सभी चीज़ों, और विशेष वस्त्र बनाने के काम में लाई गईं। 22 सभी स्त्री और पुरुष, जो चढ़ाना चाहते थे, हर प्रकार के अपने सोने के गहने लाए। वे चिमटी कान की बालियाँ, अगूंठियाँ, अन्य गहने लेकर आए। उन्होंने अपने सभी सोने के गहने यहोवा को अर्पित किए। यह यहोवा को विशेष भेंट थी।
23 हर व्यक्ति जिसके पास सन के उत्तम रेशे, नीला, बैंगनी और लाल कपड़ा था वह इन्हें यहोवा के पास लाया। वह व्यक्ति जिसके पास बकरी के बाल, लाल रंग से रंगी भेड़ की खाल, सुइसों की खाल थी उसे वह यहोवा के पास लाया। 24 हर एक व्यक्ति जो चाँदी, काँसा, चढ़ाना चाहता था यहोवा को भेंट के रूप में उसे लाया। हर एक व्यक्ति जिसके पास बबूल की लकड़ी थी, आया और उसे यहोवा को अर्पित किया। 25 हर एक कुशल स्त्री ने सन के उत्तम रेशे और नीला, बैंगनी तथा लाल कपड़ा बनाया। 26 उन सभी स्त्रियों ने जो कुशल थीं और हाथ बँटाना चाहती थीं उन्होंने बकरी के बालों से कपड़ा बनाया।
27 अगुवा लोग गोमेदक नग तथा अन्य रत्न ले आए। ये नग और रत्न याजक के एपोद तथा सीनाबन्द में लगाए गए। 28 लोग मसाले और जैतून का तेल भी लाए। ये चीज़ें सुगन्धित धूप, अभिषेक का तेल और दीपकों के तेल के लिए उपयोग में आईं।
29 इस्राएल के वे सभी लोग जिनके मन में प्रेरणा हुई यहोवा के लिए भेंट लाए। ये भेटें मुक्त भाव से दी गई थीं, लोगों ने इन्हें दिया क्योंकि वे देना चाहते थे। ये भेंट उन सभी चीज़ों के बनाने के लिए उपयोग में आई जिन्हें यहोवा ने मूसा और लोगों को बनाने का आदेश दिया था।
बसलेल और ओहोलीआब
30 तब मूसा ने इस्राएल के लोगों से कहा, “देखो! यहोवा ने बसलेल को चुना है जो ऊरी का पुत्र और यहूदा के परिवार समूह का है। (ऊरी हूर का पुत्र था।) 31 यहोवा ने बसलेल को परमेश्वर की शक्ति से भर दिया अर्थात् बसलेल को हर प्रकार का काम करने की विशेष निपुणता और जानकारी दी। 32 वह सोने, चाँदी और काँसे की चीज़ों का आलेखन करके उन्हें बना सकता है। 33 वह नग और रत्न को काट और जड़ सकता है। बसलेल लकड़ी का काम कर सकता है और सभी प्रकार की चीज़ें बना सकता है। 34 यहोवा ने बसलेल और ओहोलीआब को अन्य लोगों के सिखाने की विशेष निपुणता दे रखी है। (ओहोलीआब दान के परिवार समूह से अहीसामाक का पुत्र था।) 35 यहोवा ने इन दोनों व्यक्तियों को सभी प्रकार का काम करने की विशेष निपुणता दे रखी है। वे बढ़ई और ठठेरे का काम करने की निपुणता रखते हैं, वे नीले, बैंगनी, और लाल कपड़े और सन के उत्तम रेशों में चित्रों को काढ़ कर उन्हें सी सकते हैं और वे ऊन से भी चीजों को बुन सकते हैं।”
36“इसलिए, बसलेल, ओहोलीआब और सभी निपुण व्यक्ति उन कामों को करेंगे जिनका आदेश यहोवा ने दिया है। यहोवा ने इन व्यक्तियों को उन सभी निपुण काम करने की बुद्धि और समझ दे रखी है जिनकी आवश्यकता इस पवित्र स्थान को बनाने के लिए है।”
2 तब मूसा ने बसलेल, ओहोलीआब और सभी अन्य निपुण लोगों को बुलाया जिन्हें यहोवा ने विशेष निपुणता दी थी और ये लोग आए क्योंकि ये काम में सहायता करना चाहते थे। 3 मूसा ने इस्राएल के इन लोगों को उन सभी चीज़ों को दे दिया जिन्हें इस्राएल के लोग भेंट के रूप में लाए थे। और उन्होंने उन चीज़ों का उपयोग पवित्र स्थान बनाने में किया। लोग प्रत्येक सुबह भेंट लाते रहे। 4 अन्त में प्रत्येक निपुण कारीगर ने उस काम को छोड़ दिया जिसे वे पवित्र स्थान पर कर रहे थे और वे मूसा से बातें करने गए। 5 उन्होंने कहा, “लोग बहुत कुछ लाए हैं। हम लोगों के पास उससे अधिक है जितना तम्बू को पूरा करने के लिए यहोवा ने कहा है।”
6 तब मूसा ने पूरे डेरे में यह खबर भेजी: “कोई पुरुष या स्त्री अब कोई अन्य भेंट तम्बू के लिए नहीं चढ़ाएगा।” इस प्रकार लोग और अधिक न देने के लिए विवश किए गए। 7 लोगों ने पर्याप्त से अधिक चीज़ें पवित्र स्थान को बनाने के लिए दीं।
पवित्र तम्बू
8 तब निपुण कारीगरों ने पवित्र तम्बू बनाना आरम्भ किया। उन्होंने नीले, बैंगनी और लाल कपड़े और सन के उत्तम रेशों की दस कनातें बनाईं। और उन्होंने करूब के पंख सहित चित्रों को कपड़े पर काढ़ दिया। 9 हर एक कनात बराबर नाप की थी। यह चौदह गज़ लम्बी तथा, दो गज़ चौड़ी थी। 10 पाँच कनातें एक साथ आपस में जोड़ी गई जिससे वे एक ही बन गईं। दूसरी को बनाने के लिए अन्य पाँच कनातें आपस में जोड़ी गईं। 11 पाँच से बनी पहली कनात को अन्तिम कनात के सिरे के साथ लुप्पी बनाने के लिए उन्होंने नीले कपड़े का उपयोग किया। उन्होंने वही काम दूसरी पाँच से बनी अन्य कनातों के साथ भी किया। 12 एक में पचास छेद थे और दूसरी में भी पचास छेद थे। छेद एक दूसरे के आमने—सामने थे। 13 तब उन्होंने पचास सोने के छल्ले बनाए। उन्होंने इन छल्लों का उपयोग दोनों कनातों को जोड़ने के लिए किया। इस प्रकार पूरा तम्बू एक ही कपड़े में जुड़कर एक हो गया।
14 तब कारीगरों ने बकरी के बालों का उपयोग तम्बू को ढकने वाली ग्यारह कनातों को बनाने के लिए किया। 15 सभी ग्यारह कनातें एक ही माप की थीं। वे पन्द्रह गज लम्बी और दो गज चौड़ी थीं। 16 कारीगरों ने पाँच कनातों को एक में सीया, और तब छ: को एक दूसरे में एक साथ सीया। 17 उन्होंने पहले समूह की अन्तिम कनात के सिरे में पचास लुप्पियाँ बनाई। और दूसरे समूह की अन्तिम कनात के सिरे में पचास। 18 कारीगरों ने दोनों को एक में मिलाने के लिए पचास काँसे के छल्ले बनाए। 19 तब उन्होंने तम्बू के दो और आच्छादन बनाए। एक आच्छादन लाल रंगे हुए मेढ़े की खाल से बनाया गया। दूसरा आच्छादन सुइसों के चमड़ें का बनाया गया।
20 तब बसलेल ने बबूल की लकड़ी के तख़्ते बनाए। 21 हर एक तख्ता पन्द्रह फीट लम्बा और सत्ताइस इंच चौड़ा बनाया। 22 हर एक तख्ते के तले में अगल—बगल दो चूलें थीं। इनका उपयोग तख्तों को जोड़ने के लिए किया जाता था। पवित्र तम्बू के लिए हर एक तख़्ता इसी प्रकार का था। 23 बसलेल ने तम्बू के दक्षिण भाग के लिए बीस तख्ते बनाए। 24 तब उसने चालीस चाँदी के आधार बनाए जो बीस तख़्तों के नीचे लगे। हर एक तख़्ते के दो आधार थे अर्थात् हर तख़्ते की हर “चूल” के लिए एक। 25 उसने बीस तख़्ते तम्बू की दूसरी ओर (उत्तर) की तरफ़ के भी बनाए। 26 उसने हर एक तख़्ते के नीचे दो लगने वाले चाँदी के चालीस आधार बनाए। 27 उसने तम्बू के पिछले भाग (पश्चिमी ओर) के लिए छः तख़्ते बनाए। 28 उसने तम्बू के पिछले भाग के कोनों के लिये दो तख़्ते बनाए। 29 ये तख़्ते तले में एक दूसरे से जोड़े गए थे, और ऐसे छल्लों में लगे थे जो उन्हें जोड़ते थे। उसने प्रत्येक सिरे के लिये ऐसा किया। 30 इस प्रकार वहाँ आठ तख़्ते थे, और हर एक तख़्ते के लिए दो आधार के हिसाब से सोलह चाँदी के आधार थे।
31 तब उसने तम्बू के पहली बाजू के लिये पाँच, 32 और तम्बू के दूसरी बाजू के लिये पाँच तथा तम्बू के पिछली (पश्चिमी) ओर के लिये पाँच कीकर की कड़ियाँ बनाई। 33 उसमें बीच की कड़ियाँ ऐसी बनाईं जो तख्तों में से एक दूसरे से होकर एक दूसरे तक जाती थीं। 34 उसने इन तख़्तों को सोने से मढ़ा। उसने कड़ियों को भी सोने से मढ़ा और उसने कड़ियों को पकड़े रखने के लिये सोने के छल्ले बनाए।
35 तब उसने सर्वाधिक पवित्र स्थान के द्वार के लिये पर्दे बनाए। उसने सन के उत्तम रेशों और नीले लाल तथा बैगनी कपड़े का उपयोग किया। उसने सन के उत्तम रेशों में करूबों का चित्र काढ़ा। 36 उसने बबूल की लकड़ी के चार खम्भे बनाए और उन्हें सोने से मढ़ा। तब उसने खम्भों के लिये सोने के छल्ले बनाए और उसने खम्भों के लिये चार चाँदी के आधार बनाए। 37 तब उसने तम्बू के द्वार के लिये पर्दा बनाया। उसने नीले, बैंगनी और लाल कपड़े तथा सन के उत्तम रेशों का उपयोग किया। उसने कपड़े में चित्र काढ़े। 38 तब उसने इस पर्दे के लिये पाँच खम्भे और उनके लिये छल्ले बनाए। उसने खम्भों के सिरों और पर्दे की छड़ों को सोने से मढ़ा, और उसने काँसे के पाँच आधार खम्भों के लिए बनाए।
समीक्षा
श्रमिकों में बढ़त
सालों से मैंने ध्यान दिया है कि जब छोटी सी मंडली का हर एक सदस्य प्रार्थना में, सेवा में और देने में जुड़ जाता है तब चकित कर देने वाली उपलब्धियों का प्राप्त होना संभव है।
मंदिर की ईमारत को बनाने में परमेश्वर के लोगों ने एक बहुत बड़े लक्ष्य का सामना किया। श्रमिकों की बढ़ी हुई संख्या के शामिल होने से वे इसे पूरा कर पाए। मूसा ने 'पूरी मंडली को इकट्ठा किया’ (35:1 एम.एस.जी.)। आज हर चर्च में इसकी आवश्यकता हैः
- सभी प्रार्थना करें
कल के लेखांश में हमने देखा कि सभी लोग प्रार्थना में और आराधना में कैसे ज़ुड़ गए, 'वे सभी खड़े होकर आराधना करने लगे’ (33:10)। सब्त केवल विश्राम का दिन नहीं था, यह परमेश्वर के लिए विश्राम का 'पवित्र दिन’ था (35:2)। यह ऐसा दिन था जब लोग प्रार्थना और आराधना में और अधिक समय बिता सकते थे। सभी लोगों ने प्रार्थना की।
- सभी का दान देना
उन्होंने 'परमेश्वर को भेंट दी’ (पद - 5अ.)। हर कोई देने के लिए उत्साहित थाः 'जो कोई इच्छुक है वह परमेश्वर के लिए सोने, चाँदी और पीतल के भेंट लाता था’ (पद - 5ब.)
लक्ष्य केवल एक उदार दानी के द्वारा पूरा नहीं हुआ। 'और जितनों को उत्साह हुआ, और जितनों के मन में ऐसी इच्छा उत्पन्न हुई थी, वे मिलाप वाले तम्बू के काम करने और उसकी सारी सेवकाई और पवित्र वस्त्रों के बनाने के लिये यहोवा के लिए भेंट ले आने लगे... क्या स्त्री, क्या पुरूष, जितनों के मन में ऐसी इच्छा उत्पन्न हुई जितने मनुष्य यहोवा के लिये सोने की भेंट के देने वाले थे वे सब उन को ले आए।’ (पद - 21-22)। हेटी मे वेट की तरह, हर कोई अपने 57 सिक्के लेकर आए।
यदि आपका समुदाय चाहता है कि वह सब पूरा करें जो परमेश्वर आपसे करने के लिए कह रहें हैं, तो हर एक व्यक्ति को भेंट देनी होगी – दबाव में नहीं लेकिन इच्छापूर्वक (2कुरिंथियो 8 और 9)। जैसे ही सभी लोग देने लगे, उनके पास ‘ज़रूरत से ज़्यादा आने लगा था’ (निर्गमन 36:5)। लोगों को आज्ञा देनी पड़ी कि भेंट लाना बंद कर दें! सभी कामों को करने के लिए वहाँ पर बहुत सी सामग्री बहुतायत से थी। पर्याप्त और पर्याप्त से अधिक (पद - 6-7 एम.एस.जी.)।
- सभी को सेवा करनी चाहिए
हर कोई सेवा में जुड़ गया। इस लेखांश में शब्द 'हर कोई’ और 'सभी’ बहुत बार दिखाई देते हैं। यह पूरी तरह से स्वैच्छिक थाः 'आपमें जो कोई हुनरमंद है आप सभी को आना है और वह सब करना है जो परमेश्वर ने आज्ञा दी है’ (35:10)। उदाहरण के लिए, 'जिस किसी के पास बबूल की लकड़ी थी...उसे ले आए’ (पद - 24); 'हर हुनरमंद महिला ने अपने हाथों से सूत काते’ (पद - 25)।
कलाकार बसलेल और ओहोलीआब ने मुख्य भूमिका निभाई। डिज़ाइन बनाने और दूसरों को भी ऐसा करना सिखाने के लिए वे आत्मा से भरे हुए थे। काम करने के लिए एक साथ उन्होंने अपने हुनर और योग्यता का इस्तेमाल किया। 'सब बुद्धिमान जिनको यहोवा ने ऐसी बुद्धि और समझ दी हो कि वे यहोवा की सारी आज्ञाओं के अनुसार पवित्रस्थान की सेवा के लिये सब प्रकार का काम करना जानें, वे सब यह काम करें’ (36:1)।
यह सब पूरी तरह से स्वैच्छिक था। परमेश्वर के लोग 'परमेश्वर के लिए उत्साहित हो चुके थे’ (35:21,26, ए.एम.पी.)। 'जितनों को उत्साह हुआ और जितनों के मन में ऐसी इच्छा उत्पन्न हुई थी’ उनके द्वारा काम पूरा हुआ (पद - 21 एम.एस.जी.)। यदि हमें वह पूरा करना है जो परमेश्वर हमें एक समुदाय के रूप में करने के लिए कह रहे हैं, तो हमें ऐसे बहुत से इच्छुक और उत्साहित लोगों की आवश्यकता है।
उत्साह संक्रमक है। जैसा कि जॉयस मेयर लिखती हैं, 'यदि आप ऐसे व्यक्ति से जुड़ेंगे जिसके पास दर्शन है, तो जल्द ही आपके पास एक दर्शन होगा। यदि आप जीवनहीन लोगों के आस - पास रहेंगे जो कुछ नहीं करना चाहेंगे, बल्कि शिकायत करना, खाट पर बैठना, डोनट खाना, और धारावाहिक देखना चाहेंगे, तो जल्द ही आप भी वही कर रहे होंगे।’
प्रार्थना करने, सेवा करने और देने के लिए एक – दूसरे को उत्साहित कीजिए। आप आश्चर्य करेंगे कि परमेश्वर 57 सिक्कों को कैसे बढ़ा सकते हैं और उससे कहीं अधिक कर सकते है जितना कि आप कभी माँग सकते हैं या कल्पना कर सकते हैं।
प्रार्थना
परमेश्वर, आपका धन्यवाद उस संभव उपलब्धि के लिए जो हर एक के द्वारा प्रार्थना, सेवा और देने में शामिल होने से मिलती है। आपका धन्यवाद क्योंकि आप हमारे माँगने और कल्पना करने से कही ज़्यादा हमें देते है।
पिप्पा भी कहते है
कभी – कभी, सुबह जब मैं जल्दी में होती हूँ, तब मुझे तय करना होता है कि मैं नाश्ता करुँ या अपनी बाईबल पढ़ूं। सामान्यत मैं नाश्ता करना चुनती हूँ। इसलिए आज मुझे नये नियम के लेखांश, मरकुस 8:2 से चुनौती मिली है। लोग बिना कुछ खाए – पीए यीशु के साथ तीन दिन तक थे। निश्चित ही यीशु के साथ रहना उनकी प्राथमिकता थी।'’
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संदर्भ
नोट्स:
'हिस्ट्री ऑफ फिफ्टी सेवेन सेंट', रसेल एच. कॉनवेल के द्वारा सभा से हेती मे वेट दृष्टांत, रविवार सुबह, दिसंबर1, 1912.
जॉयस मेयर, डेली बाईबल, (फेथ वर्ड 2013), पन्ना.147
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