परमेश्वर से कैसे सुनें
परिचय
जब मैं उसे सड़क से नीचे आते हुए देखता था तब मैं सड़क पार कर लेता था ताकि उसे नज़रअंदाज़कर सकूँ। यूनिवर्सिटी के पहले सप्ताह में मैं उससे नाश्ते के टेबल पर मिला था। उसका चेहरा चमकदार और मुस्कुराहट से भरा था। मैं इस तरह के एक या दो और लोंगो से भी मिला था जिनका चेहरा भी इसी तरह से दिखाई देता था। इसने मुझे संदेहास्पद बना दिया!
कुछ महीनों बाद, मेरी मुलाकात यीशु से हुई और मैंने पाया कि इन लोगों के चेहरे चमक रहे थे क्योंकि वे यीशु के साथ समय बिता रहे थे, परमेश्वर को सुनते हुए। मूसा की तरह, जब वह परमेश्वर की बातें सुनकर पहाड़ से नीचे उतरे थे, उसी तरह से उनके चेहरे चमकदार थे।
यीशु ने कहा कि 'मनुष्य केवल रोटी से जीवित नही रहता परंतु हर उस वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है’ (मत्ती 4:4)। जैसे हमें भौतिक भोजन की आवश्यकता होती है ठीक वैसे ही हमें आत्मिक भोजन की आवश्यकता भी होती है। आत्मिक भोजन परमेश्वर के वचनों को सुनने से मिलता है।
भजन संहिता 25:8-15
8 यहोवा सचमुच उत्तम है,
वह पापियों को जीवन का नेक राह सिखाता है।
9 वह दीनजनों को अपनी राहों की शिक्षा देता है।
बिना पक्षपात के वह उनको मार्ग दर्शाता है।
10 यहोवा की राहें उन लोगों के लिए क्षमापूर्ण और सत्य है,
जो उसके वाचा और प्रतिज्ञाओं का अनुसरण करते हैं।
11 हे यहोवा, मैंने बहुतेरे पाप किये हैं,
किन्तु तूने अपनी दया प्रकट करने को, मेरे हर पाप को क्षमा कर दिया।
12 यदि कोई व्यक्ति यहोवा का अनुसरण करना चाहे,
तो उसे परमेश्वर जीवन का उत्तम राह दिखाएगा।
13 वह व्यक्ति उत्तम वस्तुओं का सुख भोगेगा,
और उस व्यक्ति की सन्ताने उस धरती की जिसे परमेश्वर ने वचन दिया था स्थायी रहेंगे।
14 यहोवा अपने भक्तों पर अपने भेद खोलता है।
वह अपने निज भक्तों को अपने वाचा की शिक्षा देता है।
15 मेरी आँखें सहायता पाने को यहोवा पर सदा टिकी रहती हैं।
मुझे मेरी विपति से वह सदा छुड़ाता है।
समीक्षा
परमेश्वर के मार्गदर्शन को सुनें
जब हम अपने ही कामों की सूची पर ज़ोर देने की कोशिश करते हैं या वह करने के लिए संघर्ष करते हैं जो कि हम करना चाहते हैं, तब आत्मिक असुविधा का बोध होता है। जॉयस मेयर इस असुविधा को बताने के लिए पैरों में ठीक से ना आने वाले जूतों के उदाहरण का इस्तेमाल करती हैं।
जब हम आराधना और आज्ञाकारिता का जीवन जी रहे होते हैं और परमेश्वर के वायदे के पीछे जा रहे होते हैं कि हम 'आराम से रहेंगे’ (पद - 13, ए.एम.पी.) इसका यह अर्थ नही हैं कि जीवन सरल होगा। लेकिन जब हम अपने जीवनों के लिए परमेश्वर की योजना में चलना शुरु कर देते हैं, तब यह उन जूतों को ढूंढने की तरह है जो पैरें में ठीक से आते हैं।
इस भजन में बार – बार हमें याद दिलाया गया है कि परमेश्वर हमारा मार्गदर्शन कैसे करते हैं। वह 'निर्देश देते हैं’ (पद - 8,12), वह 'मार्गदर्शन करते हैं’ (पद - 9अ.) वह 'सीखाते हैं’ (पद - 9ब.), वह अपने लोगों पर 'भरोसा’ करते हैं (पद - 14)
1. वह लोगों को मार्गदर्शित करते हैं
अद्भुत रूप से, दाऊद समझाते हैं कि परमेश्वर की भलाई उनकी अगुवाई करती हैं कि वे यहाँ तक कि पापी लोगों को सिखाने की इच्छा रखें; 'इसलिए वह पापीयों को अपना मार्ग दिखाता है’ (पद - 8)। यद्यपि दाऊद की 'बुराई’ 'बड़ी’ है, तब भी वे जानते हैं कि वे क्षमा किए जा सकते हैं और परमेश्वर के द्वारा सही किए जा सकते हैं (पद - 11)।
धन्यवाद हो कि आपको परमेश्वर के मार्गदर्शन को सुनने के लिए सिद्ध बनने की आवश्यकता नहीं है लेकिन आपको दीनता के एक व्यवहार की आवश्यकता हैः 'वह दीन को बताता है कि क्या सही है और उन्हें अपना मार्ग सिखाता है’ (पद - 9)। परमेश्वर की मित्रता, परमेश्वर की आराधना करने वालों के लिए है; वह उनमें भरोसा रखता है (पद - 14, एम.एस.जी.)।
2. उसके मार्गदर्शन का उद्देश्य
आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि परमेश्वर आपसे केवल वही करने के लिए कहेगा 'जो कि सही है’ (पद - 9अ.)। मार्गदर्शन परमेश्वर की ओर से आ रहा है या नहीं यह जानने के लिए, देखिये कि जो आपको करने के लिए कहा गया है वह 'प्रेमी और वफादार’ है या नहीं (पद - 10अ.)। परमेश्वर कभी भी आपसे वह करने के लिए नहीं कहेंगे जिसमें प्रेम या वफादारी नही है। 'परमेश्वर के सभी काम प्रेम और वफादारी से भरे हैं’ (पद - 10अ.)।
प्रार्थना
परमेश्वर, मैं आपके मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करता हूँ – कि आज आप मुझे निर्देश देंगे, सिखायेंगे और मुझ पर भरोसा करेंगे।
मरकुस 7:1-30
मनुष्य के नियमों से परमेश्वर का विधान महान है
7तब फ़रीसी और कुछ धर्मशास्त्री जो यरूशलेम से आये थे, यीशु के आसपास एकत्र हुए। 2 उन्होंने देखा कि उसके कुछ शिष्य बिना हाथ धोये भोजन कर रहे हैं। 3 क्योंकि अपने पुरखों की रीति पर चलते हुए फ़रीसी और दूसरे यहूदी जब तक सावधानी के साथ पूरी तरह अपने हाथ नहीं धो लेते भोजन नहीं करते। 4 ऐसे ही बाज़ार से लाये खाने को वे बिना धोये नहीं खाते। ऐसी ही और भी अनेक रुढ़ियाँ हैं, जिनका वे पालन करते हैं। जैसे कटोरों, कलसों, ताँबे के बर्तनों को माँजना, धोना आदि।
5 इसलिये फरीसियों और धर्मशास्त्रियों ने यीशु से पूछा, “तुम्हारे शिष्य पुरखों की परम्परा का पालन क्यों नहीं करते? बल्कि अपना खाना बिना हाथ धोये ही खा लेते हैं।”
6 यीशु ने उनसे कहा, “यशायाह ने तुम जैसे कपटियों के बारे में ठीक ही भविष्यवाणी की थी। जैसा कि लिखा है:
‘ये मेरा आदर केवल होठों से करते है,
पर इनके मन मुझसे सदा दूर हैं।
7 मेरे लिए उनकी उपासना व्यर्थ है,
क्योंकि उनकी शिक्षा केवल लोगों द्वारा बनाए हुए सिद्धान्त हैं।’
8 तुमने परमेश्वर का आदेश उठाकर एक तरफ रख दिया है और तुम मनुष्यों की परम्परा का सहारा ले रहे हो।”
9 उसने उनसे कहा, “तुम परमेश्वर के आदेशों को टालने में बहुत चतुर हो गये हो ताकि तुम अपनी रूढ़ियों की स्थापना कर सको! 10 उदाहरण के लिये मूसा ने कहा, ‘अपने माता-पिता का आदर कर’ और ‘जो कोई पिता या माता को बुरा कहे, उसे निश्चय ही मार डाला जाये।’ 11 पर तुम कहते हो कि यदि कोई व्यक्ति अपने माता-पिता से कहता है कि ‘मेरी जिस किसी वस्तु से तुम्हें लाभ पहुँच सकता था, मैंने परमेश्वर को समर्पित कर दी है।’ 12 तो तुम उसके माता-पिता के लिये कुछ भी करना समाप्त कर देने की अनुमति देते हो। 13 इस तरह तुम अपने बनाये रीति-रिवाजों से परमेश्वर के वचन को टाल देते हो। ऐसी ही और भी बहुत सी बातें तुम लोग करते हो।”
14 यीशु ने भीड़ को फिर अपने पास बुलाया और कहा, “हर कोई मेरी बात सुने और समझे। 15 ऐसी कोई वस्तु नहीं है जो बाहर से मनुष्य के भीतर जा कर उसे अशुद्ध करे, बल्कि जो वस्तुएँ मनुष्य के भीतर से निकलतीं हैं, वे ही उसे अशुद्ध कर सकती हैं।” 16
17 फिर जब भीड़ को छोड़ कर वह घर के भीतर गया तो उसके शिष्यों ने उससे इस दृष्टान्त के बारे में पूछा। 18 तब उसने उनसे कहा, “क्या तुम भी कुछ नहीं समझे? क्या तुम नहीं देखते कि कोई भी वस्तु जो किसी व्यक्ति में बाहर से भीतर जाती है, वह उसे दूषित नहीं कर सकती। 19 क्योंकि वह उसके हृदय में नहीं, पेट में जाती है और फिर पखाने से होकर बाहर निकल जाती है।” (ऐसा कहकर उसने खाने की सभी वस्तुओं को शुद्ध कहा।)
20 फिर उसने कहा, “मनुष्य के भीतर से जो निकलता है, वही उसे अशुद्ध बनाता है 21 क्योंकि मनुष्य के हृदय के भीतर से ही बुरे विचार और अनैतिक कार्य, चोरी, हत्या, 22 व्यभिचार, लालच, दुष्टता, छल-कपट, अभद्रता, ईर्ष्या, चुगलखोरी, अहंकार और मूर्खता बाहर आते हैं। 23 ये सब बुरी बातें भीतर से आती हैं और व्यक्ति को अशुद्ध बना देती हैं।”
ग़ैर यहूदी महिला को सहायता
24 फिर यीशु ने वह स्थान छोड़ दिया और सूर के आस-पास के प्रदेश को चल पड़ा। वहाँ वह एक घर में गया। वह नहीं चाहता था कि किसी को भी उसके आने का पता चले। किन्तु वह अपनी उपस्थिति को छुपा नहीं सका। 25 वास्तव में एक स्त्री जिसकी लड़की में दुष्ट आत्मा का निवास था, यीशु के बारे में सुन कर तत्काल उसके पास आयी और उसके पैरों में गिर पड़ी। 26 यह स्त्री यूनानी थी और सीरिया के फिनीकी में पैदा हुई थी। उसने अपनी बेटी में से दुष्टात्मा को निकालने के लिये यीशु से प्रार्थना की।
27 यीशु ने उससे कहा, “पहले बच्चों को तृप्त हो लेने दे क्योंकि बच्चों की रोटी लेकर उसे कुत्तों के आगे फेंक देना ठीक नहीं है।”
28 स्त्री ने उससे उत्तर में कहा, “प्रभु कुत्ते भी तो मेज़ के नीचे बच्चों के खाते समय गिरे चूरचार को खा लेते हैं।”
29 फिर यीशु ने उससे कहा, “इस उत्तर के कारण, तू चैन से अपने घर जा सकती है। दुष्टात्मा तेरी बेटी को छोड़ बाहर जा चुकी है।”
30 सो वह घर चल दी और अपनी बच्ची को खाट पर सोते पाया। तब तक दुष्टात्मा उससे निकल चुकी थी।
समीक्षा
परमेश्वर के वचन को सुनें
यीशु कहते हैं कि परमेश्वर का वचन हमारी सभी रीतियों के ऊपर प्राथमिकता लेते हैं (पद - 8)। रीति में कोई बुराई नहीं है। रीति बहुत महत्त्वपूर्ण और मूल्यवान हो सकती है। किंतु, रीति को कभी भी परमेश्वर के वचन से ज़्यादा प्राथमिकता नहीं देनी चाहिए। परमेश्वर के वचन का पालन न करने के लिए रीति का इस्तेमाल करने की वजह से यीशु फरीसीयों की निंदा करते हैं: 'तुम परमेश्वर की आज्ञा को नहीं मानते, ताकि तुम्हें धार्मिक चीज़ों को मानने में असुविधा न हो’ (पद - 9 एम.एस.जी.)।
उदाहरण के लिए, बूढ़े माता - पिता की देखभाल करना कभी – कभी असुविधाजनक हो सकता है। इसके लिए बहाने ढूंढ़ने का प्रलोभन आ सकता है कि हमें ऐसा क्यों नहीं करना चाहिए। फरीसियों ने कहा यदि आपने परमेश्वर को पैसा उपहार के रूप में दे दिया है, तो आपको अपने माता - पिता की आर्थिक रूप से सहायता न करने की अनुमति है (पद - 11)। यीशु ने कहा कि ऐसा करने के द्वारा वे इस आज्ञा का उल्लंघन कर रहे थे जो कहता है कि 'अपने माता - पिता का सम्मान करो’ (पद - 10अ.)। इसलिए, वह कहते हैं, 'तुम अपनी रीति से परमेश्वर के वचन को बेकार कर देते हो’ (पद - 13)।
फरीसी बाहरी रूप से जो करते थे उससे वे परमेश्वर का सम्मान करते थे (पद - 1-5)। सही वस्तुओं को करना या सही वस्तुओं को कहना पूरी तरह से आसान बात है। हो सकता है कि हम समुदाय के सभी नियमों का पालन करें और फिर भी हमारे हृदय परमेश्वर से बहुत दूर हैं (पद - 6-8)।
परमेश्वर बाहरी रूप के विषय में अधिक चिंता नहीं करते हैं बल्कि हृदय के विषय में करते हैं। यीशु कहते हैं, 'ताकि भीतर से अर्थात मनुष्य के मन से, बुरी - बुरी चिन्ता, व्यभिचार, चोरी, हत्या, परस्त्रीगमन, लोभ, दुष्टता, छल, लुचपन, कुदृष्टि, निन्दा, अभिमान, और मूर्खता निकलती है। ये सब बुरी बातें भीतर ही से निकलती हैं और मनुष्य को अशुद्ध करती हैं“ (पद - 21-23)। ये सारी चीज़ें हमारे जीवन को अशुद्ध करती हैं और परमेश्वर के साथ हमारे संबंध को खराब करती हैं।
यीशु कहते हैं 'मेरी सुनो’ (पद - 14)। यह जीवन के लिए कुंजी है - यीशु की सुनना।
यीशु, यूनानी - सूरूफिनीकी महिला के हृदय की बात जानने के लिए आगे बढ़ते हैं। जैसा कि जॉन केल्विन इसे बताते हैं, यीशु उनकी दिखाई देने वाली शीतलता से 'महिला के विश्वास को समाप्त करना नहीं चाहते थे बल्कि उसके जोश को बढ़ाना और उसके उत्साह को उत्तेजित करना चाहते थे।’
यीशु पहले तो यहूदियों और फिर यूनानियों के लिए आए (पद - 27-29; यशायाह 49:6 देखें, रोमियो 1:16)। महिला के विश्वास की महानता इस तथ्य के द्वारा दिखाई देती है कि उसने ना केवल यह पहचाना कि वह कौन थे और उसकी स्वर्गीय सामर्थ क्या थी, बल्कि, जैसा कि जॉन कॅल्विन आगे कहते हैं, वह 'भयानक विरोध के बीच दृढ़तापूर्वक अपने मकसद के पीछे लगी रही।’ वह हमारे लिए निस्वार्थ और हठीले विश्वास का महान उदाहरण हैं।
प्रार्थना
मेरे हृदय के व्यवहारों को चुनौती देने के लिए परमेश्वर के वचन की सामर्थ के लिए प्रभु आपका धन्यवाद। मैं प्रार्थना करता हूँ कि आज मेरे हृदय को शुद्ध कीजिए, और मुझे एक जोशीला, निस्वार्थ और हठीला विश्वास दीजिए।
निर्गमन 33:7-34:35
मिलापवाला तम्बू
7 मूसा मिलापवाले तम्बू को डेरे से कुछ दूर ले गया। वहाँ उसने उसे लगाया और उसका नाम “मिलापवाला तम्बू” रखा। कोई व्यक्ति जो यहोवा से कुछ जानना चाहता था उसे डेरे के बाहर मिलापवाले तम्बू तक जाना होता था। 8 जब कभी मूसा बाहर तम्बू में जाता तो लोग उसको देखते रहते। लोग अपने तम्बूओं के द्वार पर खड़े रहते और मूसा को तब तक देखते रहते जब तक वह मिलापवाले तम्बू में चला जाता। 9 जब मूसा तम्बू में जाता तो एक लम्बा बादल का स्तम्भ सदा नीचे उतरता था। वह बादल तम्बू के द्वार पर ठहरता। इस प्रकार यहोवा मूसा से बात करता था। 10 जब लोग तम्बू के द्वार पर बादल को देखते तो सामने झुकते और उपासना करते थे। हर एक व्यक्ति अपने तम्बू के द्वार पर उपासना करता था।
11 यहोवा मूसा से आमने—सामने बात करता था। यहोवा मूसा से इस प्रकार बात करता था जिस प्रकार कोई व्यक्ति अपने मित्र से बात करता है। यहोवा से बात करने के बाद मूसा हमेशा अपने डेरे मे वापस लौटता था। नून का पुत्र नवयुवक यहोशू मूसा का सहायक था। यहोशू सदा तम्बू में रहता था जब मूसा उसे छोड़ता था।
मूसा को यहोवा की महिमा का दर्शन
12 मूसा ने यहोवा से कहा, “तूने मुझे इन लोगों को ले चलने को कहा। किन्तु तूने यह नहीं बताया कि मेरे साथ किसे भेजेगा। तूने मुझसे कहा, ‘मैं तुम्हें अच्छी तरह जानता हूँ और मैं तुमसे प्रसन्न हूँ।’ 13 यदि तुझे मैंने सचमुच प्रसन्न किया है तो अपने निर्णय मुझे बता। तुझे मैं सचमुच जानना चाहता हूँ। तब मैं तुझे लगातार प्रसन्न रख सकता हूँ। याद रख कि ये सभी तेरे लोग हैं।”
14 यहोवा ने कहा, “मैं स्वयं तुम्हारे साथ चलूँगा। मैं तुम्हें रास्ता दिखाऊँगा।”
15 तब मूसा ने उससे कहा, “यदि तू हम लोगों के साथ न चले तो तू इस स्थान से हम लोगों को दूर मत भेज। 16 हम यह भी कैसे जानेंगे कि तू मुझसे और इन लोगों से प्रसन्न है? यदि तू साथ चलेगा तो हम लोग निश्चयपूर्वक यह जानेंगे। यदि तू हम लोगों के साथ नहीं जाता तो मैं और ये लोग धरती के अन्य दूसरे लोगों से भिन्न नहीं होंगे।”
17 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “मैं वह करूँगा जो तू कहता है। मैं यह करूँगा क्योंकि मैं तुझसे प्रसन्न हूँ। मैं तुझे अच्छी तरह जानता हूँ।”
18 तब मूसा ने कहा, “अब कृपया मुझे अपनी महिमा दिखा।”
19 तब यहोवा ने उत्तर दिया, “मैं अपनी सम्पूर्ण भलाई को तुम तक जाने दूँगा। मैं यहोवा हूँ और मैं अपने नाम की घोषणा करूँगा जिससे तुम उसे सुन सको। मैं उन लोगों पर कृपा और प्रेम दिखाऊँगा जिन्हें मैं चुनूँगा। 20 किन्तु तुम मेरा मुख नहीं देख सकते। कोई भी व्यक्ति मुझे देख नहीं सकता और यदि देख ले तो जीवित नहीं रह सकता है।
21 “मेरे समीप के स्थान पर एक चट्टान है। तुम उस चट्टान पर खड़े हो सकते हो। 22 मेरी महिमा उस स्थान से होकर गुज़रेगी। उस चट्टान की बड़ी दरार में मैं तुम को रखूँगा और गुजरते समय मैं तुम्हें अपने हाथ से ढकूँगा। 23 तब मैं अपना हाथ हटा लूँगा और तुम मेरी पीठ मात्र देखोगे। किन्तु तुम मेरा मुख नहीं देख पाओगे।”
पत्थर की नयी पटिट्याँ
34तब यहोवा ने मूसा से कहा, “दो और समतल चट्टानें ठीक वैसी ही बनाओ जैसी पहली दो थीं जो टूट गईं। मैं इन पर उन्हीं शब्दों को लिखूँगा जो पहले दोनों पर लिखे थे। 2 कल प्रातःकाल तैयार रहना और सीनै पर्वत पर आना। वहाँ मेरे सामने पर्वत की चोटी पर खड़े रहना। 3 किसी व्यक्ति को तुम्हारे साथ नहीं आने दिया जाएगा। पर्वत के किसी भी स्थान पर कोई भी व्यक्ति दिखाई तक नहीं पड़ना चाहिए। यहाँ तक कि तुम्हारे जानवरों के झुण्ड और भेड़ों की रेवडें भी पर्वत की तलहटी में घास नहीं चर सकेंगी।”
4 इसलिए मूसा ने पहले पत्थरों की तरह पत्थर की दो समतल पटिट्याँ बनाईं। तब अगले सवेरे ही वह सीनै पर्वत पर गया। उसने हर एक चीज़ यहोवा के आदेश के अनुसार की। मूसा अपने साथ पत्थर की दोनों समतल पट्टियाँ ले गया। 5 मूसा के पर्वत पर पहुँच जाने के बाद यहोवा उसके पास बादल में नीचे पर्वत पर आया। यहोवा वहाँ मूसा के साथ खड़ा रहा, और उसने यहोवा का नाम लिया।
6 यहोवा मूसा के सामने से गुज़रा था और उसने कहा, “यहोवा दयालु और कृपालु परमेश्वर है। यहोवा जल्दी क्रोधित नहीं होता। यहोवा महान, प्रेम से भरा है। यहोवा विश्वसनीय है। 7 यहोवा हज़ारों पीढ़ियों पर कृपा करता है। यहोवा लोगों को उन गलतियों के लिए जो वे करते हैं क्षमा करता है। किन्तु यहोवा अपराधियों को दण्ड देना नहीं भूलता। यहोवा केवल अपराधी को ही दण्ड नहीं देगा अपितु उनके बच्चों, उनके पौत्रों और प्रपौत्रों को भी उस बुरी बात के लिये कष्ट सहना होगा जो वे लोग करते हैं।”
8 तब तत्काल मूसा भूमि पर झुका और उसने यहोवा की उपासना की। मूसा ने कहा, 9 “यहोवा, यदि तू मुझसे प्रसन्न है तो मेरे साथ चल। मैं जानता हूँ कि ये लोग हठी हैं। किन्तु तू हमें उन पापों और अपराधों के लिए क्षमा कर जो हमने किए हैं। अपने लोगों के रूप में हमें स्वीकार कर।”
10 तब यहोवा ने कहा, “मैं तुम्हारे सभी लोगों के साथ यह साक्षीपत्र बना रहा हूँ। मैं ऐसे अद्भुत काम करूँगा जैसे इस धरती पर किसी भी दूसरे राष्ट्र के लिए पहले कभी नहीं किए। तुम्हारे साथ सभी लोग देखेंगे कि मैं यहोवा अत्यन्त महान हूँ। लोग उन अद्भुत कामों को देखेंगे जो मैं तुम्हारे लिए करूँगा। 11 आज मैं जो आदेश देता हूँ उसका पालन करो और मैं तुम्हारे शत्रुओं को तुम्हारा देश छोड़ने को विवश करूँगा। मैं एमोरी, कनानी, हित्ती, परिज्जी, हिब्बी और यबूसी को बाहर निकल जाने को विवश करूँगा। 12 सावधान रहो। उन लोगों के साथ कोई सन्धि न करो जो उस प्रदेश में रहते हैं जहाँ तुम जा रहे हो। यदि तुम उनके साथ सन्धि करोगे जो उस प्रदेश में रहते हैं जहाँ तुम जा रहे हो। यदि तुम उनके साथ साक्षीपत्र बनाओगे तो तुम उस में फँस जाओगे। 13 उनकी वेदियों को नष्ट कर दो। उन पत्थरों को तोड़ दो जिनकी वे पूजा करते हैं। उनकी मूर्तियों को काट गिराओ। 14 किसी दूसरे देवता की पूजा न करो। मैं यहोवा (कना) जलन रखने वाला परमेश्वर हूँ। यह मेरा नाम है। मैं (एलकाना) जल उठने वाला परमेश्वर हूँ।
15 “सावधान रहो उस प्रदेश में जो लोग रहते हैं उनसे कोई सन्धि न हो। यदि तुम यह करोगे तो जब वे अपने देवताओं की पूजा करेंगे तब तुम उनके साथ हो सकोगे। वे लोग तुम्हें अपने में मिलने के लिये आमंत्रित करेंगे और तुम उनकी बलियों को खाओगे। 16 तुम उनकी कुछ लड़कियों को अपने पुत्रों की पत्नियों के रूप में चुन सकते हो। वे पुत्रियाँ असत्य देवताओं की सेवा करती हैं। वे तुम्हारे पुत्रों से भी वही करवा सकतीं हैं।
17 “मूर्तियाँ मत बनाना।
18 “अखमीरी रोटियों की दावत का उत्सव मनाओ। मेरे दिए आदेश के अनुसार सात दिन तक अखमीरी रोटी खाओ। इसे उस महीने में करो जिसे मैंने चुना है—आबीब का महीना। क्यों? क्योंकि यह वही महीना है जब तुम मिस्र से बाहर आए।
19 “किसी भी स्त्री का पहलौठा बच्चा सदा मेरा है। पहलौठा जानवर भी जो तुम्हारी गाय, बकरियों या भेड़ों से उत्पन्न होता है, मेरा है। 20 यदि तुम पहलौठे गधे को रखना चाहते हो तो तुम इसे एक मेमने के बदले खरीद सकते हो। किन्तु यदि तुम उस गधे को मेमने के बदले नहीं ख़रीदते तो तुम उस गधे की गर्दन तोड़ दो। तुम्हें अपने पहलौठे सभी पुत्र मुझसे वापस खरीदने होंगे। कोई व्यक्ति बिना भेंट के मेरे सामने नहीं आएगा।
21 “तुम छः दिन काम करोगे। किन्तु सातवें दिन अवश्य विश्राम करोगे। पौधे रोपने और फसल काटने के समय भी तुम्हें विश्राम करना होगा।
22 “सप्ताह की दावत को मनाओ। गेहूँ की फ़सल के पहले अनाज का उपयोग इस दावत में करो और वर्ष के अन्त में फ़सल कटने की दावत मनाओ।
23 “हर वर्ष तुम्हारे सभी पुरुष तीन बार अपने स्वामी, परमेश्वर इस्राएल के यहोवा के पास जाएंगे।
24 “जब तुम अपने प्रदेश में पहुँचोगे तो मैं तुम्हारे शत्रुओं को उस प्रदेश से बाहर जाने को विवश करूँगा। मैं तुम्हारी सीमाओं को बढ़ाऊँगा और तुम अधिकाधिक प्रदेश पाओगे। तुम अपने परमेश्वर यहोवा के सामने वर्ष में तीन बार जाओगे। और उन दिनों तुम्हारा देश तुम से लेने का कोई भी प्रयत्न नहीं करेगा।
25 “यदि तुम मुझे बलि से खून भेंट करो तो उसी समय मुझे खमीर भेंट मत करो
“और फ़सह पर्व का कुछ भी माँस अगली सुबह तक के लिये नहीं छोड़ा जाना चाहिए।
26 “यहोवा को अपनी पहली काटी हुई फ़सलें दो। उन चीज़ों को अपने परमेश्वर यहोवा के घर लाओ।
“कभी बकरी के बच्चे को उसकी माँ के दूध में न पकाओ।”
27 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “जो बातें मैंने बताई हैं उन्हें लिख लो। ये बातें हमारे तुम्हारे और इस्राएल के लोगों के मध्य साक्षीपत्र हैं।”
28 मूसा वहाँ यहोवा के साथ चालीस दिन और चालीस रात रहा। उस पूरे समय उसने न भोजन किया न ही पानी पिया। और मूसा ने साक्षीपत्र के शब्दों के (दस आदेशों) को, पत्थर की दो समतल पट्टियों पर लिखा।
मूसा का तेजस्वी मुख
29 तब मूसा सीनै पर्वत से नीचे उतरा। वह यहोवा की दोनों पत्थरों की समतल पट्टियों को साथ लाया जिन पर यहोवा के नियम लिखे थे। मूसा का मुख चमक रहा था। क्योंकि उसने परमेश्वर से बातें की थीं। किन्तु मूसा यह नहीं जानता था कि उसके मुख पर तेज है। 30 हारून और इस्राएल के सभी लोगों ने देखा कि मूसा का मुख चमक रहा था। इसलिए वे उसके पास जाने से डरे। 31 किन्तु मूसा ने उन्हें बुलाया। इसलिए हारून और लोगों के सभी अगुवा मूसा के पास गए। मूसा ने उन से बातें कीं। 32 उसके बाद इस्राएल के सभी लोग मूसा के पास आए। और मूसा ने उन्हें वे आदेश दिए जो यहोवा ने सीनै पर्वत पर उसे दिए थे।
33 जब मूसा ने बातें करना खत्म किया तब उसने अपने मुख को एक कपड़े से ढक लिया। 34 जब कभी मूसा यहोवा के सामने बातें करने जाता तो कपड़े को हटा लेता था। तब मूसा बाहर आता और इस्राएल के लोगों को वह बताता जो यहोवा का आदेश होता था। 35 इस्राएल के लोग देखते थे कि मूसा का मुख तेज से चमक रहा है। इसलिए मूसा अपना मुख फिर ढक लेता था। मूसा अपने मुख को तब तक ढके रखता था जब तक वह यहोवा के साथ बात करने अगली बार नहीं जाता था।
समीक्षा
परमेश्वर की योजनाओं को सुनें
आप परमेश्वर के एक मित्र बन सकते हैं। यीशु उन लोगों की सराहना करते हैं जो उसके मित्र के रूप में उनके पीछे चलते हैं (यूहन्ना 15:15)। मूसा परमेश्वर के मित्र थे। यदि यह मूसा के लिए संभव था, तो नया नियम हमें बताता है कि यह अब आपके लिए भी संभव है।
परमेश्वर ने मूसा को अपनी योजना बतायी। मूसा परमेश्वर के साथ एक अद्भुत संबंध में थे। वह परमेश्वर से पूछने के लिए सभा के तंबू में जाते थे। बादल का एक खंभा नीचे आ जाता था 'जब परमेश्वर मूसा से बातें करते थे’ (निर्गमन 33:9)। परमेश्वर मूसा से आमने – सामने बातें करते थे, जैसा कि कोई व्यक्ति अपने मित्र से बात करता है (पद - 11अ)। यह मूसा से परमेश्वर की नज़दीकी और उनकी आवाज़ सुनने की तत्परता का वर्णन करता है। मूसा ने प्रार्थना की, 'मुझे अपनी योजनाओं का भाग बनाईयें’ (पद - 13 एम.एस.जी.)।
यह स्पष्ट है कि वे भौतिक रूप से आमने - सामने नहीं थे (पद - 20)। परमेश्वर की उपस्थिति इतनी महिमामयी और पवित्र थी कि कोई भी उसे देखकर जीवित नहीं रह सकता था। यह बहुत ही नज़दीकी संपर्क और सहभागिता का रुपक संकेत है। हमें प्रतिदिन इसी की आवश्यकता है; परमेश्वर से 'आमने - सामने’ सुनना और उनके साथ अपनी सहभागिता में बढ़ना।
मूसा किसी भी दूसरी वस्तु से अधिक 'परमेश्वर की उपस्थिति’ की इच्छा करते थे। हम सभी को अपने जीवनों में – उनकी उपस्थिति और उनकी शांति की आवश्यकता है। परमेश्वर उससे वादा करते हैं, 'मेरी उपस्थिति तेरे साथ जाएगी और मैं तुझे आराम दूँगा’ (पद - 14)। परमेश्वर आपसे भी यही वादा करते हैं।
मूसा कहते हैं, 'यदि आपकी उपस्थिति हमारे साथ नहीं जाती है, तो हमें यहाँ से आगे मत भेज’ (पद - 15)। यह परमेश्वर की उपस्थिति थी जिसने परमेश्वर के लोगों को बाकी दूसरे से अलग किया (पद - 16ब)। बाकी सभी चीज़ों से ऊपर यही है जो हमें आस - पास के विश्व से अलग करता है।
जब मूसा ने परमेश्वर की उपस्थिति में समय बिताया, 'तब उनका चेहरा चमक रहा था क्योंकि उन्होंने परमेश्वर से बात की थी’ (34:29)। 2कुरिंथियो 3 में पौलुस के अद्भुत वचनों का आधार है। वे कहते है कि हम मूसा के अनुभव से कहीं अधिक आनंद ले सकते हैं।
और जो तेजोमय था, वह भी उस तेज के कारण जो उस से बढ़कर तेजोमय था, कुछ तेजोमय न ठहरा। क्योंकि जब वह जो घटता जाता था तेजोमय था, तो वह जो स्थिर रहेगा, और भी तेजोमय क्यों न होगा? (2कुरिंथियो 3:10-11)।
आप मूसा से भी अधिक निर्भीक बन सकते हैं, 'जो अपने चेहरे पर एक परदा रखते थे ताकि इस्त्राएली उसका अंत न देख पायें जो कि गुज़रने वाला था (पद - 13)। पौलुस लिखते हैं, 'जब कभी कोई परमेश्वर के पास आता है, तब परदा हटा दिया जाता है। अब परमेश्वर आत्मा हैं, और जहाँ पर परमेश्वर का आत्मा है, वहाँ पर स्वतंत्रता है। परन्तु जब हम सब के उघाड़े चेहरे से प्रभु का प्रताप इस प्रकार प्रगट होता है, जिस प्रकार दर्पण में, तो प्रभु के द्वारा जो आत्मा हैं, हम उसी तेजस्वी रूप में अंश अंश कर के बदलते जाते हैं ’ (पद - 16-18)।
आत्मा की सेवकाई में शामिल होना एक असाधारण सुविधा है। उदाहरण के लिए, हर अल्फा साप्ताहिक छुट्टी के दिन हम लोगों में परमेश्वर की उपस्थिति का अनुभव करते हुए और उनमें पवित्र आत्मा से भरते हुए देखते हैं। सप्ताह के अंत में मैंने हमेशा लोगों के चेहरे पर चमक देखी है। लेकिन यह एक आता - जाता अनुभव नहीं है जो मूसा की चमक की तरह लुप्त हो जाता है।
पवित्र आत्मा के द्वारा आप 'परमेश्वर की उपस्थिति का अनुभव कर सकते हैं 'हमारे जीवन धीरे - धीरे उज्ज्वल और अधिक सुंदर बनते जा रहे हैं, जैसे ही परमेश्वर हमारे जीवनों में प्रवेश करते हैं और हम उनकी तरह बन जाते है’ (पद - 18 एम.एस.जी.)।
प्रार्थना
'परमेश्वर, आपका धन्यवाद क्योंकि आपने वादा किया है कि, 'मेरी उपस्थिति तुम्हारे साथ जाएगी, और मैं तुम्हे आराम दूँगा’ (निर्गमन 33:14)। परमेश्वर, आपकी आवाज़ को सुनने के लिए और एक मित्र की तरह आमने - सामने आपसे बात करने में और आपकी महिमा को दर्शाने के लिए और हमेशा बढ़ती हुई महिमा के साथ आपके स्वरूप में बदलने के लिए मेरी सहायता कीजिए।
पिप्पा भी कहते है
निर्गमन 33:7–34:35
यहोशू के लिए यह कितना अद्भुत प्रशिक्षण रहा होगा। उसके पास मूसा से सीखने की सुविधा थी, जो कि पुराने नियम में परमेश्वर के महान सेवक थे। यह महत्त्वपूर्ण है कि आप ऐसे अच्छे आदर्श को पाएँ जिनसे आप सीख सकें।
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संदर्भ
नोट्स
जॉन केल्विन; जैसा कि कॅम्ब्रिज ग्रीक टेस्टामेंट कमेंट्री के द्वारा बताया गया है, एड.सी.एफ.डी मोल (कॅम्ब्रिज युनिवर्सिटी प्रेस 1957)
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी', बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
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