एक बात/चीज की जरूरत है
परिचय
सन 1974 में मैंने सबसे पहले व्यक्तिगत रूप से यीशु से मुलाकात की. मैंने एक बातचीत सुनी थी और इतने वर्षों के बाद भी मुझे यह याद है. यह अठ्ठारह साल उम्र के व्यक्ति द्वारा दिया गया, शीर्षक था, 'पाँच "एक बातें/चीजें"'. उसकी बातचीत में बाइबल की 'एक बात/चीज' की पाँच महत्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख था. इनमें से हरएक हमारी प्राथमिकताओं के बारे में कहती हैं. इन पाँच घटनाओं में से एक घटना हमारे आज के नये नियम के लेखांश में बताई गई है (लूका 10:42).
मुझे मार्था से बहुत हमदर्दी है. यीशु ने उससे कहा, 'तू बहुत बातों के लिये चिन्ता करती और घबराती है' (व.41). जीवन में बहुत सी बातें हैं, लेकिन यीशु कहते हैं, 'परन्तु एक बात अवश्य' (लूका 42). मरियम की प्राथमिकता बिल्कुल सही थी.
भजन संहिता 41:7-13
7 मेरे शत्रु छिपे छिपे मेरी निन्दायें कर रहे हैं।
वे मेरे विरद्ध कुचक्र रच रहे हैं।
8 वे कहा करते हैं, “उसने कोई बुरा कर्म किया है,
इसी से उसको कोई बुरा रोग लगा है।
मुझको आशा है वह कभी स्वस्थ नहीं होगा।”
9 मेरा परम मित्र मेरे संग खाता था।
उस पर मुझको भरोसा था। किन्तु अब मेरा परम मित्र भी मेरे विरुद्ध हो गया है।
10 सो हे यहोवा, मुझ पर कृपा कर और मुझ पर कृपालु हो।
मुझको खड़ा कर कि मैं प्रतिशोध ले लूँ।
11 हे यहोवा, यदि तू मेरे शत्रुओं को बुरा नहीं करने देगा,
तो मैं समझूँगा कि तूने मुझे अपना लिया है।
12 मैं निर्दोष था और तूने मेरी सहायता की।
तूने मुझे खड़ा किया और मुझे तेरी सेवा करने दिया।
13 इस्राएल का परमेश्वर, यहोवा धन्य है!
वह सदा था, और वह सदा रहेगा।
आमीन, आमीन!
समीक्षा
उनकी उपस्थिति की प्राथमिकता
आप अपने जीवन की चुनौतियों के बीच परमेश्वर की उपस्थिति और उनकी प्रसन्नता जान सकते हैं.
दाऊद को चिंता और व्याकुलता थी. उसके कई शत्रु थे और यीशु की तरह वह कहते हैं, 'मेरा परम मित्र जिस पर मैं भरोसा रखता था, जो मेरी रोटी खाता था, उसने भी मेरे विरुद्ध लात उठाई है' (व.9; यूहन्ना 13:18 भी देखें).
साहसी रहें, जैसे दाऊद के साथ बुराई पर भलाई ने जय पाई थी (भजन संहिता 41:11ब). यह जान लें कि परमेश्वर आप से प्रसन्न हैं (व.11अ). दाऊद की जबर्दस्त अभिलाषा थी कि परमेश्वर उसे सर्वदा के लिए अपने सम्मुख स्थिर करें (व.12). इसे अपनी सबसे बड़ी प्राथमिकता बनाएं. आप इसके लिए ही बनाये गए हैं. परमेश्वर की उपस्थिति आपकी सबसे गहरी आवश्यकता को पूरा करती है.
प्रार्थना
पिता, आज मुझे सभी चुनौतियों और परेशानियों के बीच आपकी उपस्थिति और प्रसन्नता का आनंद लेने में मेरी मदद कीजिये.
लूका 10:25-11:4
अच्छे सामरी की कथा
25 तब एक न्यायशास्त्री खड़ा हुआ और यीशु की परीक्षा लेने के लिये उससे पूछा, “गुरु, अनन्त जीवन पाने के लिये मैं क्या करूँ?”
26 इस पर यीशु ने उससे कहा, “व्यवस्था के विधि में क्या लिखा है, वहाँ तू क्या पढ़ता है?”
27 उसने उत्तर दिया, “‘तू अपने सम्पूर्ण मन, सम्पूर्ण आत्मा, सम्पूर्ण शक्ति और सम्पूर्ण बुद्धि से अपने प्रभु से प्रेम कर।’ और ‘अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार कर, जैसे तू अपने आप से करता है।’ ”
28 तब यीशु ने उस से कहा, “तू ने ठीक उत्तर दिया है। तो तू ऐसा ही कर इसी से तू जीवित रहेगा।”
29 किन्तु उसने अपने को न्याय संगत ठहराने की इच्छा करते हुए यीशु से कहा, “और मेरा पड़ोसी कौन है?”
30 यीशु ने उत्तर में कहा, “देखो, एक व्यक्ति यरूशलेम से यरीहो जा रहा था कि वह डाकुओं से घिर गया। उन्होंने सब कुछ छीन कर उसे नंगा कर दिया और मार पीट कर उसे अधमरा छोड़ कर वे चले गये।
31 “अब संयोग से उसी मार्ग से एक याजक जा रहा था। जब उसने इसे देखा तो वह मुँह मोड़कर दूसरी ओर चला गया। 32 उसी रास्ते होता हुआ एक लेवी भी वहीं आया। उसने उसे देखा और वह भी मुँह मोड़कर दूसरी ओर चला गया।
33 “किन्तु एक सामरी भी जाते हुए वहीं आया जहाँ वह पड़ा था। जब उसने उस व्यक्ति को देखा तो उसके लिये उसके मन में करुणा उपजी, 34 सो वह उसके पास आया और उसके घावों पर तेल और दाखरस डाल कर पट्टी बाँध दी। फिर वह उसे अपने पशु पर लाद कर एक सराय में ले गया और उसकी देखभाल करने लगा। 35 अगले दिन उसने दो दीनारी निकाली और उन्हें सराय वाले को देते हुए बोला, ‘इसका ध्यान रखना और इससे अधिक जो कुछ तेरा खर्चा होगा, जब मैं लौटूँगा, तुझे चुका दूँगा।’”
36 यीशु ने उससे कहा, “बता तेरे विचार से डाकुओं के बीच घिरे व्यक्ति का पड़ोसी इन तीनों में से कौन हुआ?”
37 न्यायशास्त्री ने कहा, “वही जिसने उस पर दया की।”
इस पर यीशु ने उससे कहा, “जा और वैसा ही कर जैसा उसने किया!”
मरियम और मार्था
38 जब यीशु और उसके शिष्य अपनी राह चले जा रहे थे तो यीशु एक गाँव में पहुँचा। एक स्त्री ने, जिसका नाम मार्था था, उदारता के साथ उसका स्वागत सत्कार किया। 39 उसकी मरियम नाम की एक बहन थी जो प्रभु के चरणों में बैठी, जो कुछ वह कह रहा था, उसे सुन रही थी। 40 उधर तरह तरह की तैयारियों में लगी मार्था व्याकुल होकर यीशु के पास आयी और बोली, “हे प्रभु, क्या तुझे चिंता नहीं है कि मेरी बहन ने सारा काम बस मुझ ही पर डाल दिया है? इसलिए उससे मेरी सहायता करने को कह।”
41 प्रभु ने उसे उत्तर दिया, “मार्था, हे मार्था, तू बहुत सी बातों के लिये चिंतित और व्याकुल रहती है। 42 किन्तु बस एक ही बात आवश्यक है, और मरियम ने क्योंकि अपने लिये उसी उत्तम अंश को चुन लिया है, सो वह उससे नहीं छीना जायेगा।”
प्रार्थना
11अब ऐसा हुआ कि यीशु कहीं प्रार्थना कर रहा था। जब वह प्रार्थना समाप्त कर चुका तो उसके एक शिष्य ने उससे कहा, “हे प्रभु, हमें सिखा कि हम प्रार्थना कैसे करें। जैसा कि यूहन्ना ने अपने शिष्यों को सिखाया था।”
2 इस पर वह उनसे बोला, “तुम प्रार्थना करो, तो कहो:
‘हे पिता, तेरा नाम पवित्र माना जाए।
तेरा राज्य आवे,
3 हमारी दिन भर की रोटी प्रतिदिन दिया कर।
4 हमारे अपराध क्षमा कर,
क्योंकि हमने भी अपने अपराधी को क्षमा किये,
और हमें कठिन परीक्षा में मत पड़ने दे।’”
समीक्षा
यीशु की प्राथमिकता
आपकी प्राथमिकताएं क्या हैं? क्या आप अपने व्यस्त समय में से यीशु के लिए कुछ समय निकालने की कोशिश करते हैं? या आप उनके साथ अपने संबंध को पहली प्राथमिकता देते हैं?
एक शिक्षित शास्त्री और वकील ने यीशु, एक साधारण व्यक्ति, से अनंत जीवन के मार्ग के बारे में बिलियन डॉलर का प्रश्न पूछा.
यीशु हमें प्रतिक्रिया करने के तरीका का एक उदाहरण बताते हैं – और इसे हम अल्फा में छोटे समूह की बातचीत में अपनाने की कोशिश करते हैं. वास्तव में यीशु एक प्रश्न पूछते हैं, 'तुम्हें क्या लगता है?' (10:26,36).
वकील सही उत्तर देता है: 'अपने प्रभु परमेश्वर से पूरे हृदय, पूरे प्राण और पूरी शक्ति और पूरे मन से प्रेम करो (व. 27). यह आपकी सबसे पहली प्राथमिकता होनी चाहिये. आपकी अगली प्राथमिकता अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करने की होनी चाहिये.
फिर यीशु एक और प्रश्न पूछते हैं जो यह बताता है कि वकील बचाव का उपाय ढूँढ रहे थे (व.29). वह 'पड़ोसी' – परिवार, दोस्त, रिश्तेदार, उसी धार्मिक समाज के सदस्यों को सीमित रूप से जिम्मेदार बनाना चाहते थे.
यीशु अन्याय के बारे में एक कहानी द्वारा प्रतिक्रिया करते हैं. एक आदमी एक खतरनाक रास्ते पर, यरूशलेम से यरीहो तक सतरह मील लंबे और 3,000 फुट ढलान पर विख्यात रूप से चल रहा था. वह सामान और मूल्यवान चीजें ले जा रहा था. उस पर अन्याय हुआ. डाकूओं ने उसे लूटा, उसके कपड़े उतार लिये, उसे मार पीट कर और उसे अधमुआ छोड़ कर चले गये (व.30).
उसी मार्ग से धार्मिक लीडर्स जा रहे थे. पहले, याजक (जो शायद यरूशलेम में एक मंदिर में सभा चलाता था) फिर एक लेवीय (ईसाइयों की प्रार्थना करने की रीति और संगीत का सहायक). दोनों ने पीड़ित को देखा (वव.31-32) लेकिन उन में से कोई नहीं रूका. कम से कम तीन कारण जिसकी वजह से वे और हम, इस में शामिल नहीं होते:
- हम बहुत व्यस्त हैं
शायद वे जल्दी में थे. वे उस गतिविधी में शामिल नहीं होना चाहते थे ज्यादा जिसमें समय लगता था.
- हम खुद को दूषित नहीं करना चाहते
मृत शरीर को छूने से वे सात दिनों तक अशुद्ध माने जाते थे (गिनती 19:11). इस दौरान वे मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकते थे (लैव्यव्यवस्था 21:1). वे मंदिर में अपनी सेवा का मौका गंवा सकते थे.
- हम जोखिम उठाना नहीं चाहते
अवश्य ही वहाँ आसपास डाकू थे. यह घात के लिए एक फंदा हो सकता था.
सुनने वाले इस कहानी के संभावित नायक की कहानी से दंग रह गए होंगे. यीशु ने उनके सबसे कम पसंदीदा व्यक्ति को चुना. सामरी एक ऐसी जाति थी जिसे यहूदियों ने सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक रीति से तिरस्कृत किया था. यह कहानी एक अलग जाति और धर्म के व्यक्ति के बारे में है जो दयालु था (लूका 10:33). सामरी ने व्यवहारिक रूप से सहायता की. इसमे उसका समय, ताकत और धन लगा (वव.34-35).
यीशु ने जो कहानी बताई उससे यह प्रतीत होता है कि वकील ने गलत सवाल किया था (व.29). सही सवाल यह नहीं है कि 'मेरा पड़ोसी कौन है?' बल्कि, 'मैं किसका पड़ोसी बन सकता हूँ?' यीशु प्रेम की जिम्मेदारी लेकर संपूर्ण और असीमित व्यवहार की शिक्षा देते हैं. यीशु सभी बाधाओं को दूर करने के लिए आए हैं. सारी मानव जाति हमारी पड़ोसी है.
रानी एलिजाबेथ II ने क्रिसमस के एक संदेश में कहा है: 'एक मसीही के रूप में जब यीशु मेरे सवाल का जवाब देते हैं, "मेरा पड़ोसी कौन है?" तो यीशु द्वारा बताया गया तात्पर्य स्पष्ट है, फिर चाहें वह किसी भी जाति, समुदाय या रंग का क्यों न हो.'
'परन्तु \[वह\] उसे देख कर कतरा कर चला गया' (व.31ब) यह याद ताजा करने वाली अभिव्यक्ति है. हमारे आसपास बहुत से दु:खी लोग हैं. जब हम उन्हें देखें, तो यीशु के दृष्टांत में याजक और लेवी के समान उसे छोड़कर दूसरी तरफ से मत निकलिये. सामरी यात्री को दया आई (व.33ब) और उसने उसकी देखभाल की (व.34ब) और उसे अपना धन दिया (व.35). इस कहानी के अंत में यीशु कहते हैं, 'जा, तू भी ऐसा ही कर.'
जरूरत मंद लोगों के करीब जाइये – उनमें शामिल होइये और उनकी मदद कीजिये. जब आप दु:खी लोगों की मदद करते हैं, गिरे हुओं को उठाते हैं और टूटे हुए लोगों को पुनर्स्थापित करते हैं तब आप परमेश्वर की तरह तो नहीं हैं. लेकिन अगली कहानी बताती है कि ऐसा करने के लिए आपकी क्षमता उच्च प्राथमिकता से उपजी है.
मरियम की प्राथमिकता सही थी. वह, वह प्रभु के पांवों के पास बैठकर उसका वचन सुनती थी।' (व.39). उसने जान लिया था, हालांकि चारों तरफ अनेक चिंताए और व्याकुलता हैं, फिर भी यीशु के पाँवों के पास बैठकर वचन सुनने से ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ नहीं है. यह आपकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिये.
जब वह घर पर आए थे तब मार्था यीशु के साथ अपनी सहभागिता के लिए समय नहीं निकाल पाई. यीशु के साथ समय न बिताने का अर्थ है आप अपने आत्मिक जीवन में सबसे बड़ी गलती कर रहे हैं. अपनी मृत्यु के समय कोई नहीं कहता 'काश मैं अपने ऑफिस में थोड़ा और समय बिता पाता.' ज्यादातर लोग अपने महत्वपूर्ण संबंधियों के साथ ज्यादा समय न बिताने का अफसोस मनाते हैं.
लूका की अगली कहानी कोई संयोग नहीं है जब वह अपने शिष्यों को सिखाते हैं कि प्रार्थना कैसे की जाए. हम देखते हैं कि यीशु ने स्वयं परमेश्वर से प्रार्थना करने के महत्व का उदाहरण दर्शाया है और उनके शिष्यों में इसके प्रति दिलचस्पी पैदा हुई है (11:1). इसके बाद उनके लिए अगला विषय है 'प्रभु की प्रार्थना'.
परमेश्वर के साथ असाधारण घनिष्ठता के साथ प्रार्थना शुरू होती है, जब आप उन्हें 'पिता' कहकर पुकारते हैं. लेकिन परमेश्वर के साथ संबंध ने आपके बाकी के जीवन को भी प्रभावित करना चाहिये. रोज की रोटी के लिए प्रार्थना करें (व. 3). प्रार्थना करें कि 'परमेश्वर का राज्य आए' (व.2) और दूसरों के पाप के बारे में सोचिये जिन्हें आपको क्षमा करना है या आपको पापों की क्षमा मांगनी है (व.4).
यीशु के साथ संबंध बनाने के लिए कई तरीके हैं. आप चाहें किसी भी तरीके से करें, यह आपकी सबसे पहली प्राथमिकता होनी चाहिये.
प्रार्थना
प्रभु, आपकी उपस्थिति का आनंद लेने में मेरी मदद कीजिये. गिरे हुओं को उठाने, टूटे हुओं को फिर से स्थापित करने और दु:खी लोगों की मदद करने के लिए मुझ में प्रेम और साहस बना रहे.
व्यवस्था विवरण 2:24-4:14
एमोरी लोगों के विरुद्ध युद्ध करने का आदेश
24 “यहोवा ने मुझसे कहा, ‘यात्रा के लिए तैयार हो जाओ। अर्नोन नदी की घाटी से होकर जाओ। मैं तुम्हें हेशबोन के राजा एमोरी सीहोन पर विजय की शक्ति दे रहा हूँ। मैं तुम्हें उसका देश जीतने की शक्ति दे रहा हूँ। इसलिए उसके विरुद्ध लड़ो और उसके देश पर अधिकार करना आरम्भ करो। 25 आज मैं तुम्हें सारे संसार के लोगों को भयभीत करने वाला बनाना आरम्भ कर रहा हूँ। वे तुम्हारे बारे में सूचनाएँ पाएंगे और वे भय से काँप उठेंगे। जब वे तुम्हारे बारे में सोचेंगे तब वे घबरा जाएंगें।’
26 “कदेमोत की मरुभूमि से मैंने हेशबोन के राजा सिहोन के पास एक दूत को भेजा। दूत ने सीहोन के सामने शान्ति सन्धि रखी। उन्होंने कहा, 27 ‘अपने देश से होकर हमें जाने दो। हम लोग सड़क पर ठहरेंगे। हम लोग सड़क से दायें। या बाएं नहीं मुड़ेंगे। 28 हम जो भोजन करेंगे या जो पानी पीएंगे उसका मूल्य चाँदी मे चुकाएंगे। हम केवल तुम्हारे देश से यात्रा करना चाहते हैं। 29 अपने देश से होकर तुम हमें तब तक जाने दो जब तक हम यरदन नदी को पार कर उस देश में न पहुँचें जिसे यहोवा, हमारा परमेशवर, हमें दे रहा है। अन्य लोगों में सेईर में रहने वाले एसाव तथा आर में रहने वाले मोआबी लोगों ने अपने देश से हमें गुजरने दिया है।’
30 “किन्तु हेशबोन के राजा सीहोन ने, अपने देश से हमें गुजरने नहीं दिया। यहोवा, तुम्हारे परमेश्वर ने, उसे बहुत हठी बना दिया था। यहोवा ने यह इसलिए किया कि वह सीहोन को तुम्हारे अधिकार में दे सके और उसने अब यह कर दिया है।
31 “यहोवा ने मुझसे कहा, ‘मैं राजा सीहोन और उसके देश को तुम्हें दे रहा हूँ। भूमि लेना आरम्भ करो। यह तब तुम्हारी होगी।’
32 “तब राजा सीहोन और उसके सब लोग हमसे यहस में युद्ध करने बाहर निकले। 33 किन्तु हमारे परमेश्वर ने उसे हमें दे दिया। हमने उसे, उसके नगरों और उसके सभी लोगों को हराया। 34 हम लोगों ने उन सभी नगरों पर अधिकार कर लिया जो सीहोन के अधिकार में उस समय थे। हम लोगों ने हर एक नगर में लोगों—पुरूष, स्त्री तथा बच्चों को पूरी तरह नष्ट कर दिया। हम लोगों ने किसी को जीवित नहीं छोड़ा। 35 हम लोगों ने जिन नगरों को जीता उनसे केवल पशु और कीमती चीजें लीं। 36 हमने अरोएर नगर को जो अर्नोन की घाटी में है तथा उस घाटी के मध्य के अन्य नगर को भी हराया। यहोवा हमारे परमेश्वर ने हमें अर्नोन की घाटी और गिलाद के बीच के सभी नगरों को पराजित करने दिया। कोई नगर हम लोगों के लिए हमारी शक्ति से बाहर दृढ़ नहीं था। 37 किन्तु उस प्रदेश के निकट नहीं गए जो अम्मोनी लोगों का था। तुम यब्बोक नदी के तटों या पहाड़ी प्रदेश के नगरों के निकट नहीं गए। तुम ऐसी किसी जगह के निकट नहीं गए जिसे यहोवा, हमारा परमेश्वर हमें लेने देना नहीं चाहता था।
बाशान के लोगों के साथ युद्ध
3“हम मुड़े और बाशान को जानेवाली सड़क पर चलते रहे। बाशान का राजा ओग और उसके सभी लोग प्रदेश में हम लोगों से लड़ने आए। 2 यहोवा ने मुझसे कहा, ‘ओग से डरो मत, क्योंकि मैंने इसे तुम्हारे हाथ में देने का निश्चय किया है। मैं इसके सभी लोगों और भूमि को तुम्हें दूँगा। तुम इसे वैसे ही हराओगे जैसे तुमने हेशबोन के शासक एमोरी राजा सीहोन को हराया।’
3 “इस प्रकार यहोवा, हमारे परमेश्वर ने बाशान के राजा ओग और उसके सभी लोगों को हमारे हाथ में दिया। हमने उसे इस तरह हराया कि उसका कोई आदमी नहीं बचा। 4 तब हम लोगों ने उन नगरों पर अधिकार किया जो उस समय ओग के थे। हमने ओग के लोगों से, बाशान में ओग के राज्य अर्गोब क्षेत्र के सारे साठ नगर लिए। 5 ये सभी नगर ऊँची दीवारों, द्वारों और द्वारों में मजबूत छड़ों के साथ बहुत शक्तिशाली थे। कुछ दूसरे नगर बिना दीवारों के थे। 6 हम लोगों ने उन्हें वैसे नष्ट किया जैसे हेशबोन के राजा सीहोन के नगरों को नष्ट किया था। हमने हर एक नगर को उनके लोगों के साथ, स्त्रियों और बच्चों को भी, नष्ट किया। 7 किन्तु हमने नगरों से सभी पशुओं और कीमती चीजों को अपने लिए रखा।
8 “उस समय, हमने एमोरी लोगों के दो राजाओं से भूमि ली। यह भूमि यरदन नदी की दूसरी ओर है। यह भूमि अर्नोन घाटी से लेकर हेर्मोन पर्वत तक है। 9 (सिदोनी हेर्मोन पर्वत को ‘सिर्योन’ कहते हैं, किन्तु एमोरी इसे ‘सनीर’ कहते हैं।) 10 हमने समतल मैदान के नगर और गिलाद और सारे बाशान में सल्का और एद्रेई तक के नगर पर आधिपत्य स्थापित किया। सल्का और एद्रेई बाशान में ओग के राज्य के नगर थे।”
11 (बाशान का राजा ओग अकेला व्यक्ति था जो रपाई लोगों में जीवित छोड़ा गया था। ओग की चारपाई लोहे की थी। यह लगभग नौ हाथ लम्बी और चार हाथ चौड़ी थी। रब्बा नगर में यह चारपाई अभी तक है,जहाँ एमोरी लोग रहते है।)
यरदन नदी के पूर्व की भूमि
12 “उस समय उस भूमि को हम लोगों ने जीता था। मैंने रूबेन परिवार समूह को और गादी परिवार समूह को अर्नोन घाटी के सहारे अरोएर से लेकर गिलाद के आधे पहाड़ी भाग तक उसके नगरों के साथ का प्रदेश दिया है। 13 मनश्शे के आधे परिवार समूह को मैंने गिलाद का दूसरा आधा भाग और पूरा बाशान दिया अर्थात् अर्गोब का पूरा क्षेत्र बाशान ओग का राज्य था।”
(बाशान का क्षेत्र रपाईयों का प्रदेश कहा जाता था। 14 मनश्शे के एक वंशज याईर ने अर्गोब के पूरे क्षेत्र अर्थात् बाशान, गशूरी और माका लोगों की सीमा तक के पूरे प्रदेश पर आधिपत्य स्थापित किया। याईर ने बाशान के इन शहरों को अपने नाम पर रखा। इसी से आज भी याईर नगर के नाम से पुकारा जाता है।)
15 “मैंने गिलाद माकीर को दिया। 16 और रूबेन परिवार समूह को तथा गाद परिवार समूह को मैंने वह प्रदेश दिया जो अर्नोन घाटी से यब्बोक नदी तक जाता है। घाटी के मध्य एक सीमा है। यब्बोक नदी अम्मोनी लोगों की सीमा है। 17 यरदन घाटी में यरदन नदी पश्चिम सीमा निर्मित करती है। इस क्षेत्र के उत्तर में किन्नेरेत झील और दक्षिण में अराबा सागर है (जिसे लवण सागर कहते हैं।) यह पूर्व में पिसगा की चोटी के तलहटी में स्थित है।
18 “उस समय, मैंने उन परिवार समूहों को यह आदेश दिया था: ‘यहोवा, तुम्हारे परमेश्वर ने तुमको रहने के लिए यरदन नदी के इस तरफ का प्रदेश दिया है। किन्तु अब तुम्हारे योद्धाओं को अपने हथियार उठाने चाहिए और अन्य इस्राएली परिवार समूहों को नदी के पार ले जाने की अगुवाई करना चाहिए। 19 तुम्हारी पत्नियाँ, तुम्हारे छोटे बच्चे और तुम्हारे पशु (मैं जानता हूँ कि तुम्हारे पास बहुत से पशु हैं।) यहाँ उन शहरों में रहेंगे जिन्हें मैंने तुम्हें दिया है। 20 किन्तु तुम्हें अपने इस्राएली सम्बन्धियों की सहायता तब तक करनी चाहिए जब तक वे यरदन नदी के दूसरे किनारे पर उस प्रदेश को पा नहीं लेते जो यहोवा ने दिया है। उनकी तब तक सहायता करो जब तक वे ऐसी शान्ति पा लें जैसी तुमने यहाँ पा ली है। तब तुम यहाँ अपने देश में लौट सकते हो जिसे मैंने तुम्हें दिया है।’
21 “तब मैंने यहोशू से कहा, ‘तुमने वह सब देखा है। जो यहोवा, तुम्हारे परमेश्वर ने इन दो राजाओं के साथ किया है। यहोवा ऐसा ही उन सभी राजाओं के साथ करेगा जिनके राज्य में तुम प्रवेश करोगे। 22 इन देशों के राजाओं से डरो मत, क्योंकि यहोवा तुम्हारा परमेश्वर, तुम्हारे लिए लड़ेगा।’
मूसा को कनान में प्रवेश करने से मना
23 “मैंने उस समय यहोवा से विशेष कृपा की प्रार्थना की। 24 मैंने यहोवा से कहा, ‘मेरे स्वामी, यहोवा, मैं तेरा सेवक हूँ। मैं जानता हूँ कि तूने उन शक्तिशाली और अद्भुत चीजों का एक छोटा भाग ही मुझे दिखाया है जो तू कर सकता है। स्वर्ग या पृथ्वी पर कोई ऐसा दूसरा ईश्वर नहीं है, जो तूने किया है तेरे समान महान और शक्तिशाली कार्य कर सके! 25 मैं तुमसे निवेदन करता हूँ कि तू मुझे पार जाने दे और यरदन नदी के दूसरी ओर के अच्छे प्रदेश, सुन्दर पहड़ी प्रदेश लबानोन को देखने दे।’
26 “किन्तु यहोवा तुम्हारे कारण मुझ पर अप्रसन्न था। उसने मेरी बात सुनने से इन्कार कर दिया। उसने मुझसे कहा, ‘तुम अपनी बात यहीं खत्म करो! इसके बारे में एक शब्द भी न कहो। 27 पिसगा पर्वत की चोटी पर जाओ। पश्चिम की ओर, उत्तर की ओर, दक्षिण की ओर, पूर्व की ओर देखो। सारे प्रदेश को तुम अपनी आँखों से ही देखो क्योंकि तुम यरदन नदी को पार नहीं करोगे। 28 तुम्हें यहोशू को निर्देश देना चाहिए। उसे दृढ़ और साहसी बनाओ! क्यों? क्योंकि यहोशू लोगों को यरदन नदी के पार ले जाएगा। यहोशू उन्हें प्रदेश को लेने और उसमें रहने के लिए ले जाएगा। यही वह प्रदेश है जिसे तुम देखोगे।’
29 “इसलिए हम बेतपोर की दूसरी ओर घाटी में ठहर गये।”
मूसा लोगों को परमेश्वर के नियमों पर ध्यान देने के लिए चेतावनी देता है
4“इस्राएल, अब उन नियमों और आदेशों को सुनो जिनका उपदेश मैं दे रहा हूँ। उनका पालन करो। तब तुम जीवित रहोगे और जा सकोगे तथा उस प्रदेश को ले सकोगे जिसे यहोवा तुम्हारे पूर्वजों का परमेश्वर तुम्हें दे रहा है। 2 जो मैं आदेश देता हूँ उसमें और कुछ जोड़ना नहीं। तुम्हें उसमें से कुछ घटाना भी नहीं चाहिए। तुम्हें अपने यहोवा परमेश्वर के उन आदेशों का पालन करना चाहिए जिन्हें मैंने तुम्हें दिये हैं।
3 “तुमने देखा है कि बालपोर में यहोवा ने क्या किया। तुम्हारे यहोवा परमेश्वर ने तुम्हारे उन सभी लोगों को नष्ट कर दिया जो पोर में बाल के अनुयायी थे। 4 किन्तु तुम लोग सभी जो यहोवा अपने परमेश्वर के साथ रहे आज जीवित हो।
5 “ध्यान दो, मेरे परमेश्वर यहोवा ने जो मुझे आदेश दिये उन्ही नियमों, विधियों की मैंने तुमको शिक्षा दी है। मैंने यहोवा के इन नियमों की शिक्षा इसलिए दी कि जिस देश में प्रवेश करने और जिसे अपना बनाने के लिए तैयार हो उसमें उनका पालन कर सको। 6 इन नियमों का सावधानी से पालन करो। यह अन्य राष्ट्रों को सूचित करेगा कि तुम बुद्धि और समझ रखते हो। जब उन देशों के लोग इन नियमों के बारे में सुनेंगे तो वे कहेंगे कि, ‘सचमुच इस महान राष्ट्र (इस्राएल) के लोग बुद्धिमान और समझदार हैं।’
7 “किसी राष्ट्र का कोई देवता उनके साथ उतना निकट नहीं रहता जिस तरह हमारा परमेश्वर यहोवा जो हम लोगों के पास रहता है, जब हम उसे पुकारते हैं 8 और कोई दूसरा राष्ट्र इतना महान नहीं कि उसके पास वे अच्छे विधि और नियम हों जिनका उपदेश मैं आज कर रहा हूँ। 9 किन्तु तुम्हें सावधान रहना है। निश्चय कर लो कि जब तक तुम जीवित रहोगे, तब तक तुम देखी गई चीजों को नहीं भूलोगे। तुम्हें इन उपदेशों को अपने पुत्रों और पौत्रों को देना चाहिए। 10 उस दिन को याद रखो जब तुम होरेव (सीनै) पर्वत पर अपने यहोवा परमेश्वर के सामने खड़े थे। यहोवा ने मुझसे कहा, मैं जो कुछ कहता हूँ, उसे सुनने के लिए लोगों को इकट्ठा करो। तब वे मेरा सम्मान सदा करना सीखेंगे जब तक वे घरती पर रहेंगे। और वे ये उपदेश अपने बच्चों को भी देंगे। 11 तुम समीप आए और पर्वत के तले खड़े हुए। पर्वत में आग लग गई और वह आकाश छूने लगी। घने काले बादल और अंधकार उठे। 12 तब यहोवा ने आग में से तुम लोगों से बातें कीं। तुमने किसी बोलने वाले की आवाज सुनी। किन्तु तुमने कोई रुप नहीं देखा। केवल आवाज सुनाई पड़ रही थी। 13 यहोवा ने तुम्हें यह साक्षी पत्र दिया। उसने दस आदेश दिए और उन्हें पालन करने का आदेश दिया। यहोवा ने साक्षीपत्र के नियमों को दो पत्थर की शिलाओं पर लिखा। 14 उस समय यहोवा ने मुझे भी आदेश दिया कि मैं तुम्हें इन विधियों और नियमों का उपदेश दूँ। ये वे नियम व विधि हैं जिनका पालन तुम्हें उस देश में करना चाहिए जिसे तुम लेने और जिसमें रहने तुम जा रहे हो।
समीक्षा
संबंध की प्राथमिकता
मूसा लिखते हैं कि किस प्रकार परमेश्वर ने उन्हें वह देश दिया और उसके साथ-साथ निर्देश भी दिये. परमेश्वर के लोगों के लिए सबसे सौभाग्य की बात देश या नियम नहीं था बल्कि परमेश्वर का प्रेम था: 'हम जब भी उन से प्रार्थना करते हैं, तब प्रभु परमेश्वर हमारे करीब होते हैं' (व.4:7).
इसके अलावा, परमेश्वर के लोगों को जीने के लिए जो निर्देश दिये गए थे और जिसका प्रभाव जब दूसरे देशों पर पड़ेगा उसके बीच एक उद्देश्यपूर्ण संबंध था (व.6). परमेश्वर का उद्देश्य उन्हें अत्यधिक दृढ उदाहरण बनाने का था – जिस परमेश्वर की वे आराधना करते हैं उसके चरित्र और उनके समाज में लागू किये गए सामाजिक न्याय दोनों के रूप में. दूसरे शब्दों में अच्छे सामरी के उदाहरण का अनुसरण करने से सुसमाचार संबन्धी परिणाम मिलता है.
ये नियम परमेश्वर के प्रेम और उनके करीब रहने की इच्छा की अभिव्यक्ति है. इसलिए उनसे कहा गया कि, ' तुम अपने विषय में सचेत रहो, और अपने मन की बड़ी चौकसी करो, कहीं ऐसा न हो कि जो जो बातें तुम ने अपनी आंखों से देखीं उन को भूल जाओ, और वह जीवन भर के लिये तुम्हारे मन से जाती रहे; किन्तु तुम उन्हें अपने बेटों पोतों को सिखाना' (व.9). ये नियम उन्हें वाचा के संदर्भ में दिये गए थे (व.13). यह हमारे लिए परमेश्वर की प्रतिबद्धता और हमारे लिए उनके प्रेम से शुरू होती हैं.
उसी तरह से, नये नियम की शुरुवात यीशु की मृत्यु और उनके पुनरूत्थान तथा आपके दिलों में पवित्र आत्मा के उंडेले जाने के द्वारा परमेश्वर की प्रतिबद्धता से शुरू होती हैं. आपको परमेश्वर की उपस्थिति में स्थायी प्रवेश मिला है (इफीसियों 2:18).
प्रार्थना
पिता, मुझे आपके करीब रहने में, आपकी उपस्थिति में जीने में, यीशु के पाँवों के पास बैठकर वचनों को सुनने में और बाहर जाकर उन पर कार्य करने में मेरी मदद कीजिये.
पिप्पा भी कहते है
लूका 10:38-42
मुझे मरियम और मार्था दोनों से सहानुभूति है. आसपास बैठे लोगों के लिए भोजन की तैयारी करने में होने वाली परेशानी को मैं जानती हूँ जबकि गड़बड़ी होने पर भी दूसरे लोग 'आत्मिक होकर' बैठे रहते हैं और कुछ नहीं करते. लेकिन मैंने उस समय का भी अनुभव किया है जब आसपास के लोग काम में लगे रहते थे और मैं एक जगह बैठी रहती थी. मैं ब्र्यान ह्युस्टन की एक बातचीत से प्रभावित हुई जिसका शीर्षक था 'बोझ और आराम': जीवन में दोनों जरूरी हैं.

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संदर्भ
नोट्स:
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।