कोई भी आशीष अविवादित/निर्विरोध नहीं जाती
परिचय
'कोई भी आशीष निर्विरोध नहीं जाती' यह बिशप सॅन्डी मिलर की अनेक मूल कहावतों में से एक है, जिनसे वह हम सभी को प्रोत्साहित करते थे. एचटीबी के पादरी होने के दौरान उन्होंने हमें सिखाया कि जिन परेशानियों का सामना हम करते हैं उनसे हमें निराश नहीं होना चाहिये, क्योंकि वह हमें फिर से आश्वस्त करना चाहते थे, 'कोई भी आशीष निर्विरोध नहीं जातीं.'
परमेश्वर आपको आश्चर्यजनक और अद्भुत तरीके से आशीषित करते हैं. आज के इस लेखांश में हम परमेश्वर की आशीष के वायदों, विस्तार और सौभाग्य के बारे में पढ़ेंगे.
मगर, हम उन तरीकों के बारे में भी पढ़ेंगे जिनसे इन आशीषों का विरोध होता है. यह पुराने नियम में परमेश्वर के लोगों और यीशु के शिष्यों के बारे में सच था और यह आपके जीवन में भी सच साबित होगा: 'कोई भी आशीष निर्विरोध नहीं जातीं.'
भजन संहिता 41:1-6
संगीत निर्देशक के लिये दाऊद का एक पद।
41दीन का सहायक बहुत पायेगा।
ऐसे मनुष्य पर जब विपत्ति आती है, तब यहोवा उस को बचा लेगा।
2 यहोवा उस जन की रक्षा करेगा और उसका जीवन बचायेगा।
वह मनुष्य धरती पर बहुत वरदान पायेगा।
परमेश्वर उसके शत्रुओं द्वारा उसका नाश नहीं होने देगा।
3 जब मनुष्य रोगी होगा और बिस्तर में पड़ा होगा,
उसे यहोवा शक्ति देगा। वह मनुष्य बिस्तर में चाहे रोगी पड़ा हो किन्तु यहोवा उसको चँगा कर देगा!
4 मैंने कहा, “यहोवा, मुझ पर दया कर।
मैंने तेरे विरद्ध पाप किये हैं, किन्तु मुझे और अच्छा कर।”
5 मेरे शत्रु मेरे लिये अपशब्द कह रहे हैं,
वे कहा रहे हैं, “यह कब मरेगा और कब भुला दिया जायेगा?”
6 कुछ लोग मेरे पास मिलने आते हैं।
पर वे नहीं कहते जो सचमुच सोच रहे हैं।
वे लोग मेरे विषय में कुछ पता लगाने आते
और जब वे लौटते अफवाह फैलाते।
समीक्षा
परेशानी, बीमारी और बदनामी द्वारा आशीषों का विरोध
- जो गरीबों की देखभाल करते हैं उनपर आशीषें
' क्या ही धन्य है वह, जो कमजोरों की सुधि रखता है!' (व.1) उदाहरण के लिए जो गरीब, भूखे, बीमार, व्यसन से ग्रस्त और जो कैद में हैं. यह उन लोगों के गुण होने चाहिये जो यीशु का अनुसरण करते हैं.यदि आप कंगालों की सुधि लेते हैं, परमेश्वर का वायदा है कि वह आपको परेशानी के समय में छुड़ाएंगे, आपकी रक्षा करेंगे, आपके जीवन को सुरक्षित रखेंगे और आपको आशीष देंगे (व.2). वह आपको संभालने और स्वस्थ रखने का वायदा करते हैं (व.3). लेकिन परमेश्वर से ये आशीषें निर्विरोध नहीं हैं.
- परेशानी, बीमारी और बदनामी द्वारा विरोध
विपत्ती के दिन आ सकते हैं (व.1ब). शत्रुता हो सकती है (व.2ब). बीमारी के दिन आ सकते हैं (व.3). व्यर्थ की बातें हो सकती हैं: ' जब वह मुझ से मिलने आता है, तब वह व्यर्थ बातें बकता है, जब कि उसका मन अपने अन्दर अधर्म की बातें संचय करता है; और बाहर जाकर उनकी चर्चा करता है' (व.6).
यह जानते हुए कि आपके चारों ओर शत्रु हैं परमेश्वर आपकी रक्षा करते हैं. उदाहरण के लिए कुछ झूठी निंदा करने आते हैं. वे आपके विरोध में बातें करने के लिए युक्ति बनाते हैं ताकि आपके विरोध में बाहर अफवाहें फैला सकें. लेकिन परमेश्वर आशीष देने का वायदा करते हैं कि वह आपको शत्रुओं की इच्छा पर नहीं छोड़ेंगे.
इस भजन के बारे में प्रेरणादायक बात यह है ऐसा नहीं लगता कि सुरक्षा की आशीष आपके सही होने पर निर्भर नहीं है. दाऊद अपने पाप के बारे में अच्छी तरह से जानता था, इसलिए जहाँ वह कमजोर पड़ रहा था उसने परमेश्वर से दया और चंगाई के लिए विनती की, (व.4).
प्रार्थना
प्रभु उन सभी आशीषों के लिए धन्यवाद जो आपने मुझ पर उंडेली हैं. आपके इस वायदे के लिए धन्यवाद कि आप मुझे परेशानी, बीमारी और बदनामी के समय में छुड़ायेंगे.
लूका 9:57-10:24
यीशु का अनुसरण
57 जब वे राह किनारे चले जा रहे थे किसी ने उससे कहा, “तू जहाँ कहीं भी जाये, मैं तेरे पीछे चलूँगा।”
58 यीशु ने उससे कहा, “लोमड़ियों के पास खोह होते हैं। और आकाश की चिड़ियाओं के भी घोंसले होते हैं किन्तु मनुष्य के पुत्र के पास सिर टिकाने तक को कोई स्थान नहीं है।”
59 उसने किसी दूसरे से कहा, “मेरे पीछे हो ले।”
किन्तु वह व्यक्ति बोला, “हे प्रभु, मुझे जाने दे ताकि मैं पहले अपने पिता को दफ़न कर आऊँ।”
60 तब यीशु ने उससे कहा, “मरे हुओं को अपने मुर्दे गाड़ने दे, तू जा और परमेश्वर के राज्य की घोषणा कर।”
61 फिर किसी और ने भी कहा, “हे प्रभु, मैं तेरे पीछे चलूँगा किन्तु पहले मुझे अपने घर वालों से विदा ले आने दे।”
62 इस पर यीशु ने उससे कहा, “ऐसा कोई भी जो हल पर हाथ रखने के बाद पीछे देखता है, परमेश्वर के राज्य के योग्य नहीं है।”
यीशु द्वारा बहत्तर शिष्यों का भेजा जाना
10इन घटनाओं के बाद प्रभु ने बहत्तर शिष्यों को और नियुक्त किया और फिर जिन-जिन नगरों और स्थानों पर उसे स्वयं जाना था, दो-दो करके उसने उन्हें अपने से आगे भेजा। 2 वह उनसे बोला, “फसल बहुत व्यापक है किन्तु, काम करने वाले मज़दूर कम है। इसलिए फसल के प्रभु से विनती करो कि वह अपनी फसलों में मज़दूर भेजे।
3 “जाओ और याद रखो, मैं तुम्हें भेड़ियों के बीच भेड़ के मेमनों के समान भेज रहा हूँ। 4 अपने साथ न कोई बटुआ, न थैला और न ही जूते लेना। रास्ते में किसी से नमस्कार तक मत करो। 5 जिस किसी घर में जाओ, सबसे पहले कहो, ‘इस घर को शान्ति मिले।’ 6 यदि वहाँ कोई शान्तिपूर्ण व्यक्ति होगा तो तुम्हारी शान्ति उसे प्राप्त होगी। किन्तु यदि वह व्यक्ति शान्तिपूर्ण नहीं होगा तो तुम्हारी शान्ति तुम्हारे पास लौट आयेगी। 7 जो कुछ वे लोग तुम्हें दें, उसे खाते पीते उसी घर में ठहरो। क्योंकि मज़दूरी पर मज़दूर का हक है। घर-घर मत फिरते रहो।
8 “और जब कभी तुम किसी नगर में प्रवेश करो और उस नगर के लोग तुम्हारा स्वागत सत्कार करें तो जो कुछ वे तुम्हारे सामने परोसें बस वही खाओ। 9 उस नगर के रोगियों को निरोग करो और उनसे कहो, ‘परमेश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुँचा है।’
10 “और जब कभी तुम किसी ऐसे नगर में जाओ जहाँ के लोग तुम्हारा सम्मान न करें, तो वहाँ की गलियों में जा कर कहो, 11 ‘इस नगर की वह धूल तक जो हमारे पैरों में लगी है, हम तुम्हारे विरोध में यहीं पीछे जा रहे है। फिर भी यह ध्यान रहे कि परमेश्वर का राज्य निकट आ पहुँचा है।’ 12 मैं तुमसे कहता हूँ कि उस दिन उस नगर के लोगों से सदोम के लोगों की दशा कहीं अच्छी होगी।
अविश्वासियों को यीशु की चेतावनी
13 “ओ खुराजीन, ओ बैतसैदा, तुम्हें धिक्कार है, क्योंकि जो आश्चर्यकर्म तुममें किये गए, यदि उन्हें सूर और सैदा में किया जाता, तो न जाने वे कब के टाट के शोक-वस्त्र धारण कर और राख में बैठ कर मन फिरा लेते। 14 कुछ भी हो न्याय के दिन सूर और सैदा की स्थिति तुमसे कहीं अच्छी होगी। 15 अरे कफ़रनहूम क्या तू स्वर्ग तक ऊँचा उठाया जायेगा? तू तो नीचे नरक में पड़ेगा!
16 “शिष्यों! तो कोई तुम्हें सुनता है, मुझे सुनता है, और जो तुम्हारा निषेध करता है, वह मेरा निषेध करता है। और जो मुझे नकारता है, वह उसे नकारता है जिसने मुझे भेजा है।”
शैतान का पतन
17 फिर वे बहत्तर आनन्द के साथ वापस लौटे और बोले, “हे प्रभु, दुष्टात्माएँ तक तेरे नाम में हमारी आज्ञा मानती हैं!”
18 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “मैंने शैतान को आकाश से बिजली के समान गिरते देखा है। 19 सुनो! साँपों और बिच्छुओं को पैरों तले रौंदने और शत्रु की समूची शक्ति पर प्रभावी होने का सामर्थ्य मैंने तुम्हें दे दिया है। तुम्हें कोई कुछ हानि नहीं पहुँचा पायेगा। 20 किन्तु बस इसी बात पर प्रसन्न मत होओ कि आत्माएँ तुम्हारे बस में हैं, बल्कि इस पर प्रसन्न होओ कि तुम्हारे नाम स्वर्ग में अंकित हैं।”
यीशु की परम पिता से प्रार्थना
21 उसी क्षण वह पवित्र आत्मा में स्थित होकर आनन्दित हुआ और बोला, “हे परम पिता! हे स्वर्ग और धरती के प्रभु! मैं तेरी स्तुति करता हूँ कि तूमने इन बातों को चतुर और प्रतिभावान लोगों से छुपा कर रखते हुए भी बच्चों के लिये उन्हें प्रकट कर दिया। हे परम पिता! निश्चय ही तू ऐसा ही करना चाहता था।
22 “मुझे मेरे पिता द्वारा सब कुछ दिया गया है और पिता के सिवाय कोई नहीं जानता कि पुत्र कौन है और पुत्र के अतिरिक्त कोई नहीं जानता कि पिता कौन है, या उसके सिवा जिसे पुत्र इसे प्रकट करना चाहता है।”
23 फिर शिष्यों की तरफ़ मुड़कर उसने चुपके से कहा, “धन्य हैं, वे आँखें जो तुम देख रहे हो, उसे देखती हैं। 24 क्योंकि मैं तुम्हें बताता हूँ कि उन बातों को बहुत से नबी और राजा देखना चाहते थे, जिन्हें तुम देख रहे हो, पर देख नहीं सके। जिन बातों को तुम सुन रहे हो, वे उन्हें सुनना चाहते थे, पर वे सुन न पाये।”
समीक्षा
शैतान और शैतानी ताकतों द्वारा आशीषों का विरोध
- यीशु के पीछे चलने की आशीषें
यीशु के शिष्य होने के नाते, आप उन लोगों से ज्यादा आशीषित हैं जो यीशु के पहले जीवित थे. यीशु कहते हैं, 'धन्य हैं वे आंखे, जो ये बातें जो तुम देखते हो देखती हैं। क्योंकि मैं तुम से कहता हूं, कि बहुत से भविष्यद्वक्ताओं और राजाओं ने चाहा, कि जो बातें तुम देखते हो देखें; पर न देखीं और जो बातें तुम सुनते हो सुनें, पर न सुनीं' (10:23-24).
ये आशीषें इतनी महान हैं कि वे किसी भी प्रत्यक्ष कीमत से कई गुना ज्यादा हैं. कभी-कभी आप आराम (9:58), समझौता (व.60) और बल्कि कंपनी को अलविदा कह सकते हैं (वव. 61-62).
उन 'बहत्तर शिष्यों' की तरह, बहुत बड़ी फसल की कटनी के लिए यीशु द्वारा आपको भेजे जाने की आशीष आपको भी मिली है (10:2). आपको लोगों की बीमारी ठीक करने का और उनसे यह कहने का सौभाग्य मिला है कि, 'परमेश्वर का राज्य आपके निकट है' (व. 9).
बीमारों को चंगा करने और राज्य का प्रचार करने के लिए केवल बारह शिष्यों को ही नहीं भेजा गया था. बहत्तर लोग भी गए थे और उन्होंने भी वही कार्य किये. वे आनंद से लौटे (व.17). जब उन्होंने देखा कि उन पर विश्वास करने वालों को आश्चर्यजनक आशीषें मिलीं हैं, तो उस समय यीशु पवित्र आत्मा में होकर आनंद से भर गए (व.21).
- शैतान और शैतानी ताकतों द्वारा विरोध
यीशु हमें भेड़ियों के बीच में भेड़ों की नाई भेजते हैं (व.3). लेकिन नये नियम में हमारा अंतिम शत्रु आत्मिक है (' हमारा यह मल्लयुद्ध, लोहू और मांस से नहीं' इफीसियों 6:12). जब बहत्तर लोग आनंद मनाते हुए लौटे और कहा, 'वे सत्तर आनन्द से फिर आकर कहने लगे, हे प्रभु, तेरे नाम से दुष्टात्मा भी हमारे वश में हैं। उस ने उन से कहा; मैं शैतान को बिजली की नाईं स्वर्ग से गिरा हुआ देख रहा था। देखो, मैंने तुम्हे सांपों और बिच्छुओं को रौंदने का, और शत्रु की सारी सामर्थ पर अधिकार दिया है......' (लूका 10:17-19). शत्रु, शैतान और उसकी दुष्टात्माएं हैं.
फिर से, आपको विजयी होने का वायदा किया गया है. दुष्टात्माओं को यीशु के नाम के आगे झुकना ही होगा (वव.17, 20). लेकिन यीशु कहते हैं इससे भी महान आशीषें हैं और वह यह हैं कि ' तुम्हारे नाम स्वर्ग पर लिखे हैं' (व.20).
प्रार्थना
प्रभु यीशु, आपको धन्यवाद कि मेरा नाम स्वर्ग में लिखा गया है. मेरी मदद कीजिये कि मैं युद्ध में कभी पराजित न होऊँ, क्योंकि आपने मुझे 'शत्रु की सारी सामर्थ पर अधिकार दिया है' (व.19).
व्यवस्था विवरण 1:1-2:23
मूसा इस्राएल के लोगों से बातचीत करता है
1मूसा द्वारा इस्राएल के लोगों को दिया गया सन्देश यह है। उसने उन्हें यह सन्देश तब दिया जब वे यरदन की घाटी में, यरदन नदी की पूर्व के मरुभूमि में थे। यह सूप के उस पार एक तरफ पारान मरुभूमि और दूसरी तरफ तोपेल, लाबान, हसेरोत और दीजाहाब नगरों के बीच में था।
2 होरेब (सीनै) पर्वत से सेईर पर्वत से होकर कादेशबर्ने की यात्रा केवल ग्यारह दिन की है। 3 किन्तु जब मूसा ने इस्राएल के लोगों को इस स्थान पर सन्देश दिया तब इस्राएल के लोगों को मिस्र छोड़े चालीस वर्ष हो चुके थे। यह चालीस वर्ष के ग्यारहवें महीने का पहला दिन था, जब मूसा ने लोगों से बातें कीं तब उसने उनसे वही बातें कहीं जो यहोवा ने उसे कहने का आदेश दिया था। 4 यह यहोवा की सहायता से उनके द्वारा एमोरी लोगों के राजा सीहोन और बाशान के राजा ओग को पराजित किए जाने के बाद हुआ। (सीहोन हेशबोन और ओग अशतारोत एवं एद्रेई में रहते थे।) 5 उस समय वे यरदन नदी के पूर्व की ओर मोआब के प्रदेश में थे और मूसा ने परमेश्वर के आदेशों की व्याख्या की। मूसा ने कहाः
6 “यहोवा, हमारे परमेश्वर ने होरेब (सीनै) पर्वत पर हमसे कहा। उसने कहा, ‘तुम लोग काफी समय तक इस पर्वत पर ठहर चुके हो। 7 यहाँ से चलने के लिए हर एक चीज तैयार कर लो। एमोरी लोगों के यरदन घाटी, पहाड़ी क्षेत्र, पश्चिमी ढाल—अराबा का पहाड़ी प्रदेश, नीची भूमी, नेगेव और समुद्र से लगे क्षेत्रों में जाओ। कनानी लोगों के देश में तथा लबानोन में परात नामक बड़ी नदी तक जाओ। 8 देखो, मैंने यह सारा देश तुम्हें दिया है। अन्दर जाओ, और स्वयं उस पर अधिकार करो। यह वही देश है जिसे देने का वचन मैंने तुम्हारे पूर्वजों इब्राहीम, इसहाक और याकूब को दिया था। मैंने यह प्रदेश उन्हें तथा उनके वंशजों को देने का वजन दिया था।’”
मूसा प्रमुखों की नियुक्ति करता है
9 मूसा ने कहा, “उस समय जब मैंने तुमसे बात की थी तब कहा था, मैं अकेले तुम लोगों का नेतृत्व करने और देखभाल करने में समर्थ नहीं हूँ। 10 यहोवा तुम्हारे परमेश्वर ने क्रमशः लोगों को इतना बढ़ाया है कि तुम लोग अब उतने हो गए हो जितने आकाश में तारे हैं! 11 तुम्हें यहोवा, तुम्हारे पूर्वजों का परमेश्वर, आज तुम जितने हो, उससे हजार गुना अधिक करे! वह तुम्हें वह आशीर्वाद दे जो उसने तुम्हें देने का वचन दिया है! 12 किन्तु मैं अकेले तुम्हारी देखभाल नहीं कर सकता और न तो तुम्हारी सारी समस्याओं और वाद—विवाद का समाधान कर सकता हूँ। 13 ‘इसलिए हर एक परिवार समूह से कुछ व्यक्तियो को चुनो और मैं उन्हें तुम्हारा नेता बनाऊँगा। उन बुद्धिमान लोगों को चुनो जो समझदार और अनुभवी हों।’
14 “और तुम लोगों ने कहा, ‘हम लोग समझते हैं ऐसा करना अच्छा है।’
15 “इसलिए मैंने, तुम लोगों द्वारा अपने परिवार समूह से चुने गए बुद्धिमान और अनुभवी व्यक्तियों को लिया और उन्हें तुम्हार प्रमुख बनाया। मैंने उनमें से कुछ को हजार का, कुछ को सौ का, कुछ को पचास का और कुछ को दस का प्रमुख बनाया है। उनको मैंने तुम्हारे परिवार समूहों के लिए अधिकारी नियुक्त किया है।
16 “उस समय, मैंने तुम्हारे इन प्रमुखों को तुम्हारा न्यायाधीश बनाया था। मैंने उनसे कहा, ‘अपने लोगों के बीच के वाद—प्रतिवाद को सुनो। हर एक मुकदमे का फैसला सही—सही करो। इसका कोई महत्व नहीं कि मुकदमा दो इस्राएली लोगों के बीच है या इस्राएली और विदेशी के बीच। तुम्हें हर एक मुकदमे का फैसला सही करना चाहिए। 17 जब तुम फैसला करो तब यह न सोचो कि कोई व्यक्ति दूसरे की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है। तुम्हें हर एक व्यक्ति का फैसला एक समान समझकर करना चाहिए। किसी से डरो नहीं क्योंकि तुम्हारा फैसला परमेश्वर से आया है। किन्तु यदि कोई मुकदमा इतना जटिल हो कि तुम फैसला ही न कर सको तो उसे मेरे पास लाओ और इसका फैसला मैं करूँगा।’ 18 उसी समय, मैंने वे सभी दूसरी बातें बताईं जिन्हें तुम्हें करना है।
जासूस कनान देश में गए
19 “तब हम लोगों ने वह किया जो हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमें आदेश दिया। हम लोगों ने होरेब पर्वत को छोड़ा और एमोरी लोगों के पहाड़ी प्रदेश की यात्रा की। हम लोग उन बड़ी और सारी भयंकर मरुभूमि से होकर गुजरे जिन्हें तुमने भी देखा। हम लोग कादेशबर्ने पहुँचे। 20 तब मैंने तुमसे कहा, ‘तुम लोग एमोरी लोगों के पहाड़ी प्रदेश में आ चुके हो। यहोवा हामारा परमेश्वर यह देश हमको देगा। 21 देखो, यह देश वहाँ है! आगे बढ़ो और भूमि को अपना बना लो! तुम्हारे पूर्वजों के यहोवा परमेश्वर ने तुम लोगों को ऐसा करने को कहा है। इसलिए डरो नहीं, किसी प्रकार की चिन्ता न करो!’
22 “तब तुम सभी मेरे पास आए और बोले, ‘हम लोगों के पहले उस देश को देखने के लिए व्यक्तियों को भेजो। वे वहाँ के सभी कमजोर और शक्तिशाली स्थानों को देख सकते हैं। वे तब वापस आ सकते हैं और हम लोगों को उन रास्तों को बता सकते हैं जिनसे हमें जाना है तथा उन नगरों को बता सकते हैं जिन तक हमें पहुँचना है।’
23 “मैंने सोचा कि यह अच्छा विचार है। इसलिए मैंने तुम लोगों में से हर परिवार समूह के लिए एक व्यक्ति के हिसाब से बारह व्यक्तियों को चुना। 24 तब वे व्यक्ति हमें छोड़कर पहाड़ी प्रदेश में गए। वे एशकोल की घाटी में गए और उन्होंने उसकी छान—बीन की। 25 उन्होंने उस प्रदेश के कुछ फल लिए और उन्हें हमारे पास लाए। उन्होंने हम लोगों को विवरण दिया और कहा, ‘यह अच्छा देश है जिसे यहोवा हमारा परमेश्वर हमें दे रहा है!’
26 “किन्तु तुमने उसमें जाने से इन्कार किया। तुम लोगों ने अपने यहोवा परमेश्वर के आदेश को मानने से इन्कार किया। 27 तुम लोगों ने अपने खेमों में शिकायत की। तुम लोगों ने कहा, ‘यहोवा हमसे घृणा करता है! वह हमें मिस्र से बाहर एमोरी लोगों को देने के लिए ले आया। जिससे वे हमें नष्ट कर सकें! 28 अब हम लोग कहाँ जायें? हमारे बारह जासूस भाईयों ने अपने विवरण से हम लोगों को डराया। उन्होंने कहा: वहाँ के लोग हम लोगों से बड़े और लम्बे हैं, नगर बड़े हैं और उनकी दीवारें आकाश को छूती हैं और हम लोगों ने दानव लोगों को वहाँ देखा।’
29 “तब मैंने तुमसे कहा, ‘घबराओ नहीं! उन लोगों से डरो नहीं! 30 यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हारे सामने जायेगा और तुम्हारे लिए लड़ेगा। वह यह वैसे ही करेगा जैसे उसने मिस्र में किया। तुम लोगों ने वहाँ अपने सामने उसको 31 मरुभूमि में जाते देखा। तुमने देखा कि यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें वैसे ले आया जैसे कोई व्यक्ति अपने पुत्र को लाता है। यहोवा न पूरे रास्ते तुम लोगों की रक्षा करते हुए तुम्हें यहाँ पहुँचाया है।’
32 “किन्तु तब भी तुमने यहोवा अपने परमेश्वर पर विश्वास नहीं किया। 33 जब तुम यात्रा कर रहे थे तब वह तुम्हारे आगे तुम्हारे डेरे डालने के लिए जगह खोजने गया। तुम्हें यह बताने के लिए कि तुम्हें किस राह जाना है वह रात को आग में और दिन को बादल में चला।
लोगों के कनान जाने पर प्रतिबन्ध
34 “यहोवा ने तुम्हारा कहना सुना, वह क्रोधित हुआ। उसने प्रतिज्ञा की। उसने कहा, 35 ‘आज तुम जीवित बुरे लोगों में से कोई भी व्यक्ति उस अच्छे देश में नहीं जाएगा जिसे देने का वचन मैंने तुम्हारे पूर्वजों को दिया है। 36 यपुन्ने का पुत्र कालेब ही केवल उस देश को देखेगा। मैं कालेब को वह देश दूँगा जिस पर वह चला और मैं उस देश को कालेब के वंशजों को दूँगा। क्यों? क्यो कि कालेब ने वह सब किया जो मेरा आदेश था।’
37 “यहोवा तुम लोगों के कारण मुझसे भी अप्रसन्न था। उसने मुझसे कहा, ‘तुम भी उस देश में नहीं जा सकते। 38 किन्तु तुम्हारा सहायक, नून का पुत्र यहोशू उस देश में जाएगा। यहोशू को उत्साहित करो, क्योंकि वही इस्राएल के लोगों को भूमि पर अपना अधिकार जामाने के लिए ले जाएगा।’ 39 और यहोवा ने हमसे कहा, ‘तुमने कहा, कि तुम्हारे छोटे बच्चे शत्रु द्वारा ले लिए जायेंगे। किन्तु वे बच्चे उस देश में जायेंगे। मैं तुम्हारी गलतियों के लिए तुम्हारे बच्चों को दोषी नहीं मानता। क्योंकि वे अभी इतने छोटे हैं कि वे यह जान नहीं सकते कि क्या सही है और क्या गलत। इसलिए मैं उन्हें वह देश दूँगा। तुम्हारे बच्चे अपने देश के रूप में उसे प्राप्त करेंगे। 40 लेकिन तुम्हें, पीछे मुड़ना चाहिए और लाल सागर जाने वाले मार्ग से मरुभूमि को जाना चाहिए।’
41 “तब तुमने कहा, ‘मूसा, हम लोगों ने यहोवा के विरुद्ध पाप किया है। किन्तु अब हम आगे बढ़ेंगे और जैसे पहले यहोवा हमारे परमेश्वर ने आदेश दिया था वैसे ही लड़ेंगे।’
“तब तुम में से हर एक ने युद्ध के लिए शस्त्र धारण किये। तुम लोगों ने सोचा कि पहाड़ में जाना सरस होगा। 42 किन्तु यहोवा ने मुझसे कहा, ‘लोगों से कहो कि वे वहाँ न जायें और न लड़ें। क्यों? क्योंकि मैं उनका साथ नहीं दूँगा और उनके शत्रु उनको हरा देंगे।’
43 “इसलिए मैंने तुम लोगों को समझाने की कोशिश की, किन्तु तुम लोगों ने मेरी एक न सुनी। तुम लोगों ने यहोवा का आदेश मानने से इन्कार कर दिया। तुम लोगों ने अपनी शक्ति का उपयोग करने की बात सोची। इसलिए तुम लोग पहाड़ी प्रदेश में गए। 44 तब एमोरी लोग तुम्हारे विरुद्ध आए। वे उस पहाड़ी प्रदेश में रहते हैं। उन्होंने तुम्हारा वैसे पीछा किया जैसे मधुमक्खियाँ लोगों का पीछा करती हैं। उन्होंने तुम्हारा सेईर से लेकर होर्मा तक पूरे रास्ते पीछा किया और तुम्हें वहाँ हराया। 45 तुम सब लौटे और यहोवा के सामने सहायता के लिए रोए चिल्लाए। किन्तु यहोवा ने तुम्हारी बात कुछ न सुनी। उसने तुम्हारी बात सुनने से इन्कार कर दिया। 46 इसलिए तुम लोग कादेश में बहुत समय तक ठहरे।
इस्राएल के लोग मरुभूमि में भटकते हैं
2“तब हम लोग मुड़े और लालसागर के सड़क पर मरुभूमि की यात्रा की। यह वह काम है जिसे यहोवा ने कहा कि हमें करना चाहिए। हम लोग सेईर के पहाड़ी प्रदेश से होकर कई दिन चले। 2 तब यहोवा ने मुझसे कहा, 3 ‘तुम इस पहाड़ी प्रदेश से होकर काफी समय चल चुके हो। उत्तर की ओर मुड़ो। 4 और उसने मुझे तुमसे यह कहने को कहाः तुम सेईर प्रदेश से होकर गुजरोगे। यह प्रदेश तुम लोगों के सम्बन्धी एसाव के वंशजों का है। वे तुमसे डरेंगे। बहुत सावधान रहो। 5 उनसे लड़ो मत। मैं उनकी कोई भी भूमि एक फुट भी तुमको नहीं दूँगा। क्यों? क्योंकि मैंने एसाव को सेईर का पहाड़ी प्रदेश उसके अधिकार में दे दिया। 6 तुम्हें एसाव के लोगों को वहाँ पर भोजन करने या पानी पीने का मूल्य चुकाना चाहिए। 7 यह याद रखो कि यहोवा तुम्हारे परमेश्वर, ने तुमको तुमने जो कुछ भी किया उन सभी के लिए आशीर्वाद दिया। वह इस विस्तृत मरुभूमि से तुम्हारा गुजरना जानता है। यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर इन चालीस वर्षों में तुम्हारे साथ रहा है। तुम्हें वे सभी चीजें मिली हैं जिनकी तुम्हें आवश्यकता थी।’
8 “इसलिए हम लोग सेईर में रहने वाले अपने सम्बन्धी एसाव के लोगों के पास से आगे बढ़ गए। यरदन घाटी से एलत और एस्योनगेबेर नगरों को जाने वाली सड़क को पीछे छोड़ दिया। तब हम उस मरुभूमि की तरफ जाने वाली सड़क पर मुड़े जो मोआब में है।
आर—प्रदेश में इस्राएल
9 “यहोवा ने मुझसे कहा, ‘मोआब के लोगों को परेशान न करो। उनके खिलाफ लड़ाई न छेड़ो। मैं उनकी कोई भूमि तुमको नहीं दुँगा। वे लूत के वंशज हैं, और मैंने उन्हें आर प्रदेश दिया है।’”
10 (पहले, आर में एमी लोग रहते थे। वे शक्तिशाली लोग थे और वहाँ उनमें से बहुत से थे। वे अनाकी लोगों की तरह बहुत लम्बे थे। 11 अनाकी लोगो की तरह, एमी रपाई लोगों के एक भाग समझे जाते थे। किन्तु मोआबी लोग उन्हें एमी कहते थे। 12 पहले होरी लोग भी सेईर में रहते थे, किन्तु एसाव के लोगों ने उनकी भुमि ले ली। एसाव के लोगों ने होरीतों को नष्ट कर दिया। तब एसाव के लोग वहाँ रहने लगे जहाँ पहले होरीत रहते थे। यह वैसा ही काम था जैसा इस्राएल के लोगों द्वारा उन लोगों के प्रति किया गया जो यहोवा द्वारा इस्राएली अधिकार में भूमि को देने के पहले वहाँ रहते थे।)
13 “यहोवा ने मुझसे कहा, ‘अब तैयार हो जाओ और जेरेद घाटी के पार जाओ।’ इसलिए हमने जेरेद घाटी को पार किया। 14 कादेशबर्ने को छोड़ने और जेरेदे घाटी को पार करने में अड़तीस वर्ष का समय बीता था। उस पीढ़ी के सभी योद्धा मर चुके थे। यहोवा ने कहा था कि ऐसा ही होगा। 15 यहोवा उन लोगों के विरुद्ध तब तक रहा जब तक वे सभी नष्ट न हो गए।
16 “जब सभी योद्धा मर गए और लोगों के बीच से सदा के लिए समाप्त हो गए। 17 तब यहोवा ने मुझसे कहा, 18 ‘आज तुम्हें आर नगर की सीमा से होकर जाना चाहिए। 19 जब तुम अम्मोनी लोगों के पास पहुँचो तो उन्हें तंग मत करना। उनसे लड़ना नहीं क्योंकि मैं तुम्हें उनकी भूमि नहीं दूँगा। क्यों? क्योंकि मैंने वह भूमि लूत के वंशजों को अपने पास रखने के लिए दी है।’”
20 (वह प्रदेश रपाई लोगों का देश भी कहा जाता है। वे ही लोग पहले वहाँ रहते थे। अम्मोनी के लोग उन्हें जमजुम्मी लोग कहते थे। 21 जमजुम्मी लोग बहुत शक्तिशाली थे और उनमें से बहुत से वहाँ थे। वे अनाकी लोगों की तरह लम्बे थे। किन्तु यहोवा ने जमजुम्मी लोगों को अम्मोनी लोगों के लिए नष्ट किया। अम्मोनी लोगों ने जमजुम्मी लोगों का प्रदेश ले लिया और अब वे वहाँ रहते थे। 22 परमेश्वर ने यही काम एसावी लोगों के लिए किया जो सेईर में रहते थे। उन्होंने वहाँ रहने वाले होरी लोगों को नष्ट किया। अब एसाव के लोग वहाँ रहते हैं जहाँ पहले होरी लोग रहते थे। 23 और कुछ लोग कप्तोर से आए और अव्वियों को उन्होंने नष्ट किया। अव्वी लोग अज्जा तक, नगरों में रहते थे किन्तु यहोवा ने अव्वियों को कप्तोरी लोगों के लिए नष्ट किया।)
समीक्षा
परेशानी, बोझ और झगड़े द्वारा आशीष का विरोध
- उजाड़ वर्षों में आशीषें
क्या आप इस समय मुश्किल समय से गुजर रहे हैं? क्या आपको लगता है कि आप अपने जीवन के उजाड़ समय में जी रहे हैं?
कभी-कभी परमेश्वर के वायदे और वायदों के पूरा होने में काफी देरी महसूस होती है. जब हम इंतजार करते हैं कि परमेश्वर अपने वायदे को पूरा करेंगे तब हम क्या करते हैं?
उजाड़ वर्षों में, आपके विश्वास की परीक्षा होती है. कठिन समय में परमेश्वर पर भरोसा करना, उनकी उपस्थिति में आना और उनकी आराधना करना सीखें.
व्यवस्थाविवरण, प्रचार किया गया सबसे लंबा संदेश है. यह अवश्य ही बाइबल का सबसे लंबा और मूसा द्वारा प्रचार किया गया सबसे अंतिम संदेश है.
व्यवस्थाविवरण की पुस्तक में हम मूसा को लोगों को निर्देश देते हुए सुनते हैं. यहाँ मूसा परमेश्वर की व्यवस्था को दोहराता हैं जिसे परमेश्वर ने लोगों को दिया था, नई पीढ़ी को परमेश्वर के तरीके को पुन:प्रसारित करते हुए. मुख्य विषय 'देश' है, जिसकी बराबरी शायद नये नियम में 'परमेश्वर के राज्य' से की गई है, जो मसीह में होने के द्वारा और परमेश्वर के नियम और राज्य के अंतर्गत रहने के द्वारा आती है.
बाइबल परमेश्वर के लोगों, परमेश्वर की आशीष और परमेश्वर के नियमों की कहानी है. जब आप परमेश्वर की व्यवस्था के अधीन रहते हैं तो आप परमेश्वर की आशीष का अनुभव करते हैं. व्यवस्थाविवरण के आरंभ में, हमें उनके लोगों पर अतीत, वर्तमान और भविष्य में परमेश्वर की आशीषों की याद दिलाता है.
पहले, अतीत के बारे में मूसा ने कहा कि, 'फिर तुम ने जंगल में भी देखा, कि जिस रीति कोई पुरूष अपने लड़के को उठाए चलता है, उसी रीति हमारा परमेश्वर हम को उठाये रहा. इन चालीस वर्षो में तुम्हारा परमेश्वर तुम्हारे संग संग रहा है; और तुम को कुछ घटी नहीं हुई।' (1:31; 2:7).
दूसरा, वर्तमान के संदर्भ में, मूसा उन्हें उन बातों की याद दिलाता है जिसमें परमेश्वर अब्राहम से किये गए वायदों के प्रति विश्वासयोग्य रहे हैं: 'तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम को यहॉ तक बढ़ाया है, कि तुम गिनती में आज आकाश के तारों के समान हो गए हो' (1:10). आरंभिक अध्याय में हमने चार बार देखा कि परमेश्वर अपने लोगों को कनान देश दे रहे हैं (वव.8,20,21,25). यह परमेश्वर के लोगों को एक उपहार है जिसके योग्य वे लोग नहीं थे – यह शुद्ध अनुग्रह है जिसे आप और मैं परमेश्वर के साथ संबंध बनाने पर यीशु के द्वारा पा सकते हैं.
तीसरा, भविष्य के संदर्भ में, मूसा ने परमेश्वर की सभी आशीषों के बारे में बताया जिसे परमेश्वर अपने लोगों को देने वाले हैं. उसने प्रार्थना की, 'तुम्हारे पितरों का परमेश्वर तुम को हजारगुणा और भी बढ़ाए, और अपने वचन के अनुसार तुम को आशीष भी देता रहे' (व.11). जब आप परमेश्वर के नियमों के अंतर्गत रहेंगे तब आप परमेश्वर की आशीष का बहुतायत से अनुभव करेंगे.
- परेशानियों, बोझ और झगड़े द्वारा विरोध
फिर भी इन आशीषों के साथ-साथ मूसा ने परेशानियों, बोझ और झगड़े की श्रृंखला का भी वर्णन किया (व.12). परमेश्वर ने कहा, ' तुम लोगों को इस पहाड़ के पास रहते हुए बहुत दिन हो गए हैं..... सुनो, मैं उस देश को तुम्हारे सामने किऐ देता हॅू, उसको अब जा कर अपने अधिकार में कर लो' (वव.6-8). यह केवल ग्यारह दिन की यात्रा थी लेकिन इसमें चालीस साल लग गए! उन्होंने मानसिक रूप से निर्जन स्थान बनाया था और खुद को डर और निराशा(व.21), कुड़कुड़ाना (व.27), मन कच्चा करना (व.28) और विरोध (व.26 से आगे) में घिरने दिया था.
अब 'आगे बढ़ने' का समय आ गया था (व.7). फिर भी मूसा ने वायदा नहीं किया कि वे परेशानियों से मुक्त हो जाएंगे. वास्तव में, मूसा 'तुम्हारे शत्रुओं' के बारे में बताता है (व.42). उन्हें आगे कई युद्ध और अत्यधिक विरोध का सामना करना था. पूरे मन से प्रभु का अनुसरण करना ही कुंजी है (व.36ब).
हमें लीडरशिप और व्यवस्थापन की भी जरूरत है. मूसा ने उनसे कहा, ' तुम अपने एक एक गोत्र में से बुद्धिमान और समझदार और प्रसिद्ध पुरूष चुन लो' (व.13) और मैं उन्हें तुम पर मुखिया बनाऊँग़ा. सही व्यक्ति को चुनना नियुक्त करने और सूक्ष्म प्रबंधन की आवश्यकता को टालना एक कुंजी है. जैसा कि जनरल जॉर्ज पैटन ने कहा है, 'लोगों को कभी न बतायें कि चीजों को कैसे करना है. उनसे कहें कि उन्हें क्या करना है और वे आपको अपनी चालाकी से चकित कर देंगे.' नियुक्त करना यानि दूसरों को जिम्मेदारी देने के साथ-साथ अंतिम जिम्मेदारी खुद पर लेना है (वव.9-18).
आपके विरोधियों को कभी भी आपको पराजित होने न दें. मूसा ने कहा है 'उनके कारण त्रास मत खाओ और न डरो। तुम्हारा परमेश्वर यहोवा जो तुम्हारे आगे आगे चलता है वह आप तुम्हारी ओर से लड़ेगा' (वव.29-30).
प्रार्थना
प्रभु, मेरी मदद कीजिये कि मैं कभी भी परेशानियों, बोझ और झगड़ों से तथा डर, निराशा या विरोध से पराजित न होऊँ, बल्कि पूरे दिल से आपके पीछे चलूँ और आपकी आशीषों का पूरा आनंद उठाऊँ.
पिप्पा भी कहते है
लूका 10:19
'मैने तुम्हे सांपों और बिच्छुओं को रौंदने का, और शत्रु की सारी सामर्थ पर अधिकार दिया है; और किसी वस्तु से तुम्हें कुछ हानि न होगी'
मैंने इस वचन को बहुत ही तसल्ली देने वाला पाया है, हालाँकि मैं इसकी परीक्षा करना नहीं चाहूँगी!
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संदर्भ
नोट्स:
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