दिन 136

वह केवल आपको चाहते हैं

बुद्धि भजन संहिता 61:1-8
नए करार यूहन्ना 8:31-59
जूना करार न्यायियों 20:1-21:25

परिचय

'वह केवल आपको चाहते हैं' इस पुस्तक में, बिशप सँडी मिलर सालों पहले एक कॉन्फरेंस में उपस्थित होने के अपने अनुभव को बताते हैं, जिसमें उन्होंने परमेश्वर की आत्मा को शक्तिशाली तरीके से काम करते हुए देखा. जब सभा समाप्त हुई, तब वह समुद्रतट पर सैर करने के लिए निकल पड़े. वह लिखते हैं, 'जैसे ही मैं चल रहा था, मैं आगे आने वाली चीजों और परमेश्वर की आत्मा के रोमांच से भर गया. मैं कह रहा था, 'परमेश्वर, मैं आपको वह सब दूँगा जो आप चाहते हैं...मैं वह सब करुँगा जो आप चाहते हैं कि मैं करुँ.'

सैंडी आगे बताते हैं, 'मैं ईमानदारी से बता सकता हूँ कि मैंने इस तरह से परमेश्वर की बातों को तीन बार सुना था, लेकिन स्पष्ट रूप से मैंने उन्हें यह कहते हुए सुना, 'मैं केवल तुम्हें चाहता हूँ.'...यह सबसे दीन करने वाली चीज थी...जिसे वह पसंद करते हैं उससे वह कुछ भी कर सकते हैं. लेकिन उन्हें केवल आप चाहिए.

बुद्धि

भजन संहिता 61:1-8

तार के वाद्यों के संगीत निर्देशक के लिये दाऊद का एक पद।

61हे परमेश्वर, मेरा प्रार्थना गीत सुन।
 मेरी विनती सुन।

2 जहाँ भी मैं कितनी ही निर्बलता में होऊँ,
 मैं सहायता पाने को तुझको पुकारूँगा!
 जब मेरा मन भारी हो और बहुत दु:खी हो,
 तू मुझको बहुत ऊँचे सुरक्षित स्थान पर ले चल।
3 तू ही मेरा शरणस्थल है!
 तू ही मेरा सुदृढ़ गढ़ है, जो मुझे मेरे शत्रुओं से बचाता है।

4 तेरे डेरे में, मैं सदा सदा के लिए निवास करूँगा।
 मैं वहाँ छिपूँगा जहाँ तू मुझे बचा सके। 5 हे परमेश्वर, तूने मेरी वह मन्नत सुनी है, जिसे तुझ पर चढ़ाऊँगा,
 किन्तु तेरे भक्तों के पास हर वस्तु उन्हें तुझसे ही मिली है।

6 राजा को लम्बी आयु दे।
 उसको चिरकाल तक जीने दे!
7 उसको सदा परमेश्वर के साथ में बना रहने दे!
 तू उसकी रक्षा निज सच्चे प्रेम से कर।

8 मैं तेरे नाम का गुण सदा गाऊँगा।
 उन बातों को करूँगा जिनके करने का वचन मैंने दिया है।

समीक्षा

परमेश्वर की अगुवाई में चले

क्या आप अपने आपको कभी जीवन की सभी परेशानियों से पराजित महसूस करते हैं? दाऊद 'पराजित हो गए थे और मुरझा गए थे' (व.2, ए.एम.पी.).

वह एक लीडर थे ('राजा', व.6). जो लोग दूसरों की अगुवाई करते हैं उन्हें परमेश्वर की अगुवाई की आवश्यकता है. यह प्रार्थना हम सभी पर लागू होती है. वह परमेश्वर से कह रहे थे कि वह उनकी प्रार्थना सुने और उनकी अगुवाई करें (वव.1-2).

सबसे अधिक, यह प्रार्थना एक सुरक्षा की प्रार्थना है. ऐसे समय होते हैं जब हम दौड़कर छिप जाना चाहते हैं. परमेश्वर हमें 'इन सबसे बचने का एक स्थान' प्रदान करते हैं (व.3, एम.एस.जी.). वह एक 'शरणस्थान' हैं (व.4, एम.एस.जी.). वह हमें चट्टान की तरह भौतिक सुरक्षा देते हैं (व.2), हमारे आस-पास उनकी भुजाओं की भावनात्मक सुरक्षा (व.4) और 'आपके प्रेम और वफादारी' की आत्मिक सुरक्षा (व.7).

प्रार्थना

परमेश्वर, आज मुझे अपनी उपस्थिति में ले जाईये और मेरे सभी निर्णयों में मेरी अगुवाई कीजिए, और मेरी बातचीत में और जिन शब्दों को मैं बोलता हूँ, उसमें मेरी अगुवाई कीजिए.

नए करार

यूहन्ना 8:31-59

पाप से छुटकारे का उपदेश

31 सो यीशु उन यहूदी नेताओं से कहने लगा जो उसमें विश्वास करते थे, “यदि तुम लोग मेरे उपदेशों पर चलोगे तो तुम वास्तव में मेरे अनुयायी बनोगे। 32 और सत्य को जान लोगे। और सत्य तुम्हें मुक्त करेगा।”

33 इस पर उन्होंने यीशु से प्रश्न किया, “हम इब्राहीम के वंशज हैं और हमने कभी किसी की दासता नहीं की। फिर तुम कैसे कहते हो कि तुम मुक्त हो जाओगे?”

34 यीशु ने उत्तर देते हुए कहा, “मैं तुमसे सत्य कहता हूँ। हर वह जो पाप करता रहता है, पाप का दास है। 35 और कोई दास सदा परिवार के साथ नहीं रह सकता। केवल पुत्र ही सदा साथ रह सकता है। 36 अतः यदि पुत्र तुम्हें मुक्त करता है तभी तुम वास्तव में मुक्त हो। मैं जानता हूँ तुम इब्राहीम के वंश से हो। 37 पर तुम मुझे मार डालने का यत्न कर रहे हो। क्योंकि मेरे उपदेशों के लिये तुम्हारे मन में कोई स्थान नहीं है। 38 मैं वही कहता हूँ जो मुझे मेरे पिता ने दिखाया है और तुम वह करते हो जो तुम्हारे पिता से तुमने सुना है।”

39 इस पर उन्होंने यीशु को उत्तर दिया, “हमारे पिता इब्राहीम हैं।”

यीशु ने कहा, “यदि तुम इब्राहीम की संतान होते तो तुम वही काम करते जो इब्राहीम ने किये थे। 40 पर तुम तो अब मुझे यानी एक ऐसे मनुष्य को, जो तुमसे उस सत्य को कहता है जिसे उसने परमेश्वर से सुना है, मार डालना चाहते हो। इब्राहीम ने तो ऐसा नहीं किया। 41 तुम अपने पिता के कार्य करते हो।”

फिर उन्होंने यीशु से कहा, “हम व्यभिचार के परिणाम स्वरूप पैदा नहीं हुए हैं। हमारा केवल एक पिता है और वह है परमेश्वर।”

42 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “यदि परमेश्वर तुम्हारा पिता होता तो तुम मुझे प्यार करते क्योंकि मैं परमेश्वर में से ही आया हूँ। और अब मैं यहाँ हूँ। मैं अपने आप से नहीं आया हूँ। बल्कि मुझे उसने भेजा है। 43 मैं जो कह रहा हूँ उसे तुम समझते क्यों नहीं? इसका कारण यही है कि तुम मेरा संदेश नहीं सुनते। 44 तुम अपने पिता शैतान की संतान हो। और तुम अपने पिता की इच्छा पर चलना चाहते हो। वह प्रारम्भ से ही एक हत्यारा था। और उसने सत्य का पक्ष कभी नहीं लिया। क्योंकि उसमें सत्य का कोई अंश तक नहीं है। जब वह झूठ बोलता है तो सहज भाव से बोलता है क्योंकि वह झूठा है और सभी झूठों को जन्म देता है।

45 “पर क्योंकि मैं सत्य कह रहा हूँ, तुम लोग मुझमें विश्वास नहीं करोगे। 46 तुममें से कौन मुझ पर पापी होने का लांछन लगा सकता है। यदि मैं सत्य कहता हूँ, तो तुम मेरा विश्वास क्यों नहीं करते? 47 वह व्यक्ति जो परमेश्वर का है, परमेश्वर के वचनों को सुनता है। इसी कारण तुम मेरी बात नहीं सुनते कि तुम परमेश्वर के नहीं हो।”

अपने और इब्राहीम के विषय में यीशु का कथन

48 उत्तर में यहूदियों ने उससे कहा, “यह कहते हुए क्या हम सही नहीं थे कि तू सामरी है और तुझ पर कोई दुष्टात्मा सवार है?”

49 यीशु ने उत्तर दिया, “मुझ पर कोई दुष्टात्मा नहीं है। बल्कि मैं तो अपने परम पिता का आदर करता हूँ और तुम मेरा अपमान करते हो। 50 मैं अपनी महिमा नहीं चाहता हूँ पर एक ऐसा है जो मेरी महिमा चाहता है और न्याय भी करता है। 51 मैं तुम्हें सत्य कहता हूँ यदि कोई मेरे उपदेशों को धारण करेगा तो वह मौत को कभी नहीं देखेगा।”

52 इस पर यहूदी नेताओं ने उससे कहा, “अब हम यह जान गये हैं कि तुम में कोई दुष्टात्मा समाया है। यहाँ तक कि इब्राहीम और नबी भी मर गये और तू कहता है यदि कोई मेरे उपदेश पर चले तो उसकी मौत कभी नहीं होगी। 53 निश्चय ही तू हमारे पूर्वज इब्राहीम से बड़ा नहीं है जो मर गया। और नबी भी मर गये। फिर तू क्या सोचता है? तू है क्या?”

54 यीशु ने उत्तर दिया, “यदि मैं अपनी महिमा करूँ तो वह महिमा मेरी कुछ भी नहीं है। जो मुझे महिमा देता है वह मेरा परम पिता है। जिसके बारे में तुम दावा करते हो कि वह तुम्हारा परमेश्वर है। 55 तुमने उसे कभी नहीं जाना। पर मैं उसे जानता हूँ, यदि मैं यह कहूँ कि मैं उसे नहीं जानता तो मैं भी तुम लोगों की ही तरह झूठा ठहरूँगा। मैं उसे अच्छी तरह जानता हूँ, और जो वह कहता है उसका पालन करता हूँ। 56 तुम्हारा पूर्वज इब्राहीम मेरा दिन को देखने की आशा से आनन्द से भर गया था। उसने देखा और प्रसन्न हुआ।”

57 फिर यहूदी नेताओं ने उससे कहा, “तू अभी पचास बरस का भी नहीं है और तूने इब्राहीम को देख लिया।”

58 यीशु ने इस पर उनसे कहा, “मैं तुम्हें सत्य कहता हूँ। इब्राहीम से पहले भी मैं हूँ।” 59 इस पर उन्होंने यीशु पर मारने के लिये बड़े-बड़े पत्थर उठा लिये किन्तु यीशु छुपते-छुपाते मन्दिर से चला गया।

समीक्षा

यीशु के द्वारा स्वतंत्र हो जाईये

नेल्सन मंडेला ने एक बंदीगृह के पहरेदार के बारे में बताया, जिसने उनसे कहा था, 'क्या तुम जानते हो कि मेरे पास तुम्हें जान से मार देने की सामर्थ है?' मंडेला ने उत्तर दिया, 'क्या तुम नहीं जानते कि अपनी मृत्यु के पास स्वतंत्र रूप से जाने की सामर्थ मुझ में है?'

क्या आप एक सच्ची आजादी का जीवन जीना चाहते हैं? यीशु महान स्वतंत्रा प्रदान करने वाले हैं. यदि यीशु 'आपको स्वतंत्र करते हैं तो आप सच में और निस्संदेह मुक्त हैं' (व.36, ए.एम.पी.).

यूहन्ना के सुसमाचार में यह अध्याय इस प्रश्न के ईर्द-गिर्द घूमता है, 'यीशु कौन हैं?' (वव.12-59). सच में, यीशु से यह प्रश्न पूछा गया, 'तुम अपने आपको क्या ठहराते हो?' (व.53). उनका उत्तर पिता के साथ उनकी अद्वितीय संबंध की ओर इशारा करता है. यह असाधारण दावा करता है, 'अब्राहम के पैदा होने से पहले, मैं हूँ!' (व.58). ठीक इसी तरीके से परमेश्वर ने अपने आपको जलती हुई झाड़ी के पास मूसा के सामने प्रगट किया था (निर्गमन 3:14). यीशु ऐसी भाषा का प्रयोग करते हैं जिसका इस्तेमाल केवल परमेश्वर कर सकते हैं. तब उन्होंने उसे मारने के लिये पत्थर उठाए (यूहन्ना 8:59).

यद्पि पिता के साथ यीशु का संबंध अद्वितीय था, यीशु के द्वारा आप भी परमेश्वर को जान सकते हैं. संबंध आपके जीवन में आजादी लाता है. लेकिन इस आजादी का क्या अर्थ है?

यीशु कहते हैं कि उनको जानने का अर्थ है सत्य को जानना, और 'सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा' (व.32). यहूदी धर्म में**,** नियम सच्चाई थी; और नियम का अध्ययन करना और इसका पालन करना एक व्यक्ति को स्वतंत्र बनाता था. यीशु कहते हैं, 'यदि तुम मेरी शिक्षाओं को मानोगे, तो तुम सच में मेरे चेले हो' (व.31).

कभी कभी मसीहों पर सकरे दिमाग वाले या विवेक विरोधी होने का दोष लगाया जाता है –जोकि 'मुक्त सोच रखने वालों' से विपरीत सोच रखते हैं. यीशु कहते हैं, कि, वास्तव में, यह उल्टा है. यीशु के पीछे चलना ही विवेक की आजादी और विश्वसनीयता का रास्ता है.

सच्चाई परमेश्वर के द्वारा प्रगट हुई. यीशु 'सच्चाई' हैं (14:6). वह परमेश्वर का पूर्ण दर्शन हैं. सच्चाई को जानना, सुझावों के प्रति सहमत होने के विषय में नहीं है, लेकिन एक व्यक्ति को जानने के विषय में है. सत्य में जीने का अर्थ है यीशु के साथ प्रेमसंबंध में जीना, जो कि सत्य है. यीशु को जानना आपके दिमाग को व्यापक बनाता है, आपके अंतर्ज्ञान की गहराई को बढ़ाता है और आपकी समझ के विस्तार को बढ़ाता है.

इसका यह अर्थ नहीं हे कि आपके पास सारे उत्तर हैं लेकिन यह कि आपके पास सोचने का एक सच्चा तरीका है. वैज्ञानिक नियम एक तरीके को प्रदान करते हैं जो कि भौतिक स्तर में जाँच – पड़ताल करने की आजादी देते हैं. परमेश्वर का दर्शन ऐसे तरीके को प्रदान करता है जो कि आत्मिक स्तर में जाँच –पड़ताल करने की विवेकशील आजादी देता है. विश्वास करने से समझ आती है.

यीशु के वचनो के प्रति उनके उत्तर थे, 'हम तो अब्राहम के वंश से हैं, और कभी किसी के दास नहीं हुए. फिर तू कैसे कहता है कि तुम स्वतंत्र हो जाओगे?' (8:33). लेकिन यीशु ने उत्तर दिया, 'मैं तुम से सच सच कहता हूँ कि जो कोई पाप करता है वह पाप का दास है' (व.34). पाप करने का अर्थ है हमारी मजबूरियों, हमारे व्यसनों का एक दास बनना, सामर्थ और सराहने के लिए हमारी जरुरत का एक दास होना, दूसरे हमारे बारे में क्या सोचते हैं, इस बात के दास, दूसरों से डर के एक दास. यीशु मसीह के बिना, हम सभी पाप के दास हैं. लेकिन, 'यदि पुत्र तुम्हें स्वतंत्र करता है, तो तुम सच में और निस्संदेह मुक्त हो' (व.36, ए.एम.पी.).

  1. आत्मग्लानि से आजादी

यीशु आपको आत्मग्लानि और शर्म से स्वतंत्र करता है. उन्होंने अपनी जान दी ताकि आपको क्षमा मिले और आपकी आत्मग्लानि और शर्म को हटा दिया जाए.

  1. व्यसन से आजादी

वह आपको व्यसन से मुक्त करते हैं -'पाप के एक दास' होने से (व.34). क्रूस पर व्यसन की सामर्थ को तोड़ दिया गया था. यद्पि शायद आप समय-समय पर असफल हो जाएं, तब भी व्यसन की सामर्थ तोड़ दी गई है जब यीशु ने आपको स्वतंत्र किया था. हो सकता है कि जब वे यीशु के पास आते हैं, तब कुछ लोग पूर्ण आजादी को प्राप्त कर लें एक निश्चित व्यसन से और शायद कुछ दूसरों के लिए थोड़ा ज्यादा समय लगे.

  1. डर से आजादी

यीशु आपको डर से स्वतंत्र करते हैं. यीशु आये ताकि 'उनकी मृत्यु के द्वारा उसे नष्ट कर सकें जिसके पास मृत्यु का अधिकार था – अर्थात्, शैतान –और उन लोगों को स्वतंत्र करें जो जीवनभर मृत्यु के भय के कारण दासत्व में थे' (इब्रानियो 2:14-15). यीशु यहाँ पर कहते हैं, 'मैं तुम से सच सच कहता हूँ, जो कोई मेरे वचनो को मानता है वह मृत्यु को कभी नहीं देखेगा' (यूहन्ना 8:51).

मृत्यु उनके लिए अंत नहीं है जिन्हें यीशु ने स्वतंत्र किया है. इसके बजाय यह स्वर्ग में जाने का रास्ता है. जब यीशु आपको मृत्यु के भय से स्वतंत्र करते हैं, तब वह आपको बाकी दूसरे डरों से भी स्वतंत्र करते हैं.

  1. परमेश्वर को जानने की आजादी

यीशु आपको स्वतंत्र करते हैं ताकि आप उनकी तरह परमेश्वर के साथ एक संबंध रख सकें. यीशु ऐसे व्यक्ति का एक सिद्ध उदाहरण हैं जो परमेश्वर की अगुवाई में चलते थे. वह अपने विषय में कहते हैं, 'मैं परमेश्वर से सुनता हूँ' (व.40). लेकिन वह आगे कहते हैं, 'जो कोई परमेश्वर का है वह परमेश्वर की बातें सुनता है' (व.47). हम सभी के लिए परमेश्वर से सुनना संभव बात है.

यीशु कहते हैं, 'मैं उन्हें जानता हूँ' (व.55). वह आपके लिए संभव बनाते हैं कि आप परमेश्वर को जाने.

  1. स्वयं बनने की आजादी

यीशु आपको स्वतंत्र करते हैं ताकि आप सच में आप बनें जैसा कि परमेश्वर ने आपके लिए योजना बनाई थी. वह आपको विवेकशील रूप से, नैतिक रूप से और भावनात्मक रूप से स्वतंत्र करते हैं.

  1. प्रेम करने की आजादी

यीशु आपको प्रेम करने के लिए स्वतंत्र करते हैं (पाप के स्वयंकेंद्रीयता के विपरीत). यह सच्ची आजादी हैः'यदि पुत्र तुम्हें स्वतंत्र करे, तो तुम सच में स्वतंत्र हो' (व.36).

प्रार्थना

परमेश्वर, उस आजादी के लिए आपका धन्यवाद जिसे आप मेरे जीवन में लाते हैं. आपका धन्यवाद क्योंकि मैं आपको जान सकता हूँ और आपकी आवाज सुन सकता हूँ.

जूना करार

न्यायियों 20:1-21:25

इस्राएल और बिन्यामीन के बीच युद्ध:

20इस प्रकार इस्राएल के सभी लोग एक हो गए। वे मिस्पा नगर में यहोवा के सामने खड़े होने के लिए एक साथ आए। वे पूरे इस्राएल देश से आए। गिलाद प्रदेश के सभी इस्राएली लोग भी वहाँ थे। 2 इस्राएल के परिवार समूहों के सभी प्रमुख वहाँ थे। वे परमेश्वर के सारे लोगों की सभा में अपने—अपने स्थानों पर बैठे। उस स्थान पर तलवार के साथ चार लाख सैनिक थे। 3 बिन्यामीन के परिवार समूह के लोगों ने सुना कि इस्राएल के लोग मिस्पा नगर में पहुँचे हैं। इस्राएल के लोग ने कहा, “यह बताओ कि यह पाप कैसे हुआ।”

4 अत: जिस स्त्री की हत्या हुई थी उसके पति ने कहा, “मेरी रखैल और मैं बिन्यामीन के प्रदेश में गिबा नगर में पहुँचे। हम लोगों ने वहाँ रात बिताई। 5 किन्तु रात को गिबा नगर के प्रमुख उस घर पर आए जिसमें मैं ठहरा था। उन्होंने घर को घेर लिया और वे मुझे मार डालना चाहते थे। उन्होंने मेरी रखैल के साथ कुकर्म किया और वह मर गई। 6 इसलिए मैं अपनी रखैल को ले गया और उसके टुकड़े कर डाले। तब मैंने हर एक टुकड़ा इस्राएल के हर एक परिवार समूह को भेजा। मैंने बारह टुकड़े उन प्रदेशों को भेजे जिन्हें हमने पाया। मैंने यह इसलिए किया कि बिन्यामीन के परिवार समूह के लोगों ने इस्राएल के देश में यह क्रूर और भयंकर काम किया है। 7 अब, इस्राएल के सभी लोग, आप बोलें। आप अपना निर्णय दें कि हमें क्या करना चाहिये?”

8 तब सभी लोग उसी समय उठ खड़े हुए। उन्होंने आपस में कहा, “हम लोगों में से कोई घर नहीं लौटेगा। कोई नहीं, हम लोगों में से एक भी घर नहीं लौटेगा। 9 हम लोग गिबा नगर के साथ यह करेंगे। हम गोट डालेंगे। जिससे परमेश्वर बताएगा कि हम लोग उन लोगों के साथ क्या करें। 10 हम लोग इस्राएल के सभी परिवारों के हर एक सौ में से दस व्यक्ति चुनेंगे और हम लोग हर एक हजार में से सौ व्यक्ति चुनेंगे। हम लोग हर एक दस हजार में से हजार चुनेंगे। जिन लोगों को हम चुन लेंगे वे सेना के लिए आवश्यक सामग्री पाएंगे। तब सेना बिन्यामीन के प्रदेश में गिबा नगर को जाएगी। वह सेना उन लोगों से बदला चुकाएगी जिन्होंने इस्राएल के लोगों में यह भयंकर काम किया है।”

11 इसलिए इस्राएल के सभी लोग गिबा नगर में एकत्रित हुए। वे उसके एक मत थे, जो वे कर रहे थे। 12 इस्राएल के परिवार समूह ने एक सन्देश के साथ लोगों को बिन्यामीन के परिवार समूह के पास भेजा। सन्देश यह था: “इस पाप के बारे में क्या कहना है जो तुम्हारे कुछ लोगों ने किया है? 13 उन गिबा के पापी मनुष्यों को हमारे पास भेजो। उन लोगों को हमें दो जिससे हम उन्हें जान से मार सकें। हम इस्राएल के लोगों में से पाप को अवश्य दूर करेंगे।”

किन्तु बिन्यामीन के परिवार समूह के लोगों ने अपने सम्बन्धी इस्राएल के लोगो के दूतों की एक न सुनी। 14 बिन्यामीन के परिवार समूह के लोगों ने अपने नगरों को छोड़ा और वे गिबा नगर में पहुँचे। वे गिबा में इस्राएल के अन्य परिवार समूह के विरुद्ध लड़ने गए। 15 बिन्यामीन परिवार समूह के लोगों ने छब्बीस हजार सैनिकों को इकट्ठा किया। वे सभी सैनिक युद्ध के लिये प्रशिक्षित थे। उनके साथ गिबा नगर के सात सौ प्रशिक्षित सैनिक भी थे। 16 उनके सात सौ ऐसे प्रशिक्षित व्यक्ति भी थे जो बाँया हाथ चलाने में दक्ष थे। उनमें से हर एक गुलेल का उपयोग दक्षता से कर सकता था। वे सब एक बाल पर भी पत्थर मार सकते थे और निशाना नहीं चूकता था।

17 इस्राएल के सारे परिवारों ने, बिन्यामीन को छोड़कर चार लाख योद्धाओं को इकट्ठा किया। उन चार लाख योद्धाओं के पास तलवारें थीं। उनमें हर एक प्रशिक्षित सैनिक था। 18 इस्राएल के लोग बेतेल नगर तक गए। बेतेल में उन्होंने परमेश्वर से पूछा, “कौन सा परिवार समूह बिन्यामीन के परिवार समूह पर प्रथम आक्रमण करेगा?”

यहोवा ने उत्तर दिया, “यहूदा का परिवार समूह प्रथम जाएगा।”

19 अगली सुबह इस्राएल के लोग उठे। उन्होंने गिबा के निकट डेरा डाला। 20 तब इस्राएल की सेना बिन्यामीन की सेना से युद्ध के लिये निकल पड़ी। इस्राएल की सेना ने गिबा नगर में बिन्यामीन की सेना के विरुद्ध अपना मोर्चा लगाया। 21 तब बिन्यामीन की सेना गिबा नगर के बाहर निकली। उन्होंने उस दिन की लड़ाई में इस्राएल की सेना के बाईस हजार लोगों को मार डाला।

22-23 इस्राएल के लोग यहोवा के सामने गए। वे शाम तक रोकर चिल्लाते रहे। उन्होंने यहोवा से पूछा, “क्या हमें बिन्यामीन के विरुद्ध लड़ने जाना चाहिए? वे लोग हमारे सम्बन्धी हैं।”

यहोवा ने उत्तर दिया, “जाओ और उनके विरुद्ध लड़ो। इस्राएल के लोगों ने एक दूसरे का साहस बढ़ाया। इसलिए वे पहले दिन की तरह फिर लड़ने गए।”

24 तब इस्राएल की सेना बिन्यामीन की सेना के पास आई। यह युद्ध का दूसरा दिन था। 25 बिन्यामीन की सेना दूसरे दिन इस्राएल की सेना पर आक्रमण करने के लिये गिबा नगर से बाहर आई। इस समय बिन्यामीन की सेना ने इस्राएल की सेना के अन्य अट्ठारह हजार सैनिकों को मार डाला। इस्राएल की सेना के वे सभी प्रशिक्षित सैनिक थे।

26 तब इस्राएल के सभी लोग बेतेल नगर तक गए। उस स्थान पर वे बैठे और यहोवा को रोकर पुकारा। उन्होंने पूरे दिन शाम तक कुछ नहीं खाया। वे होमबलि और मेलबलि भी यहोवा के लिये लाए। 27 इस्राएल के लोगों ने यहोवा से एक प्रश्न पूछा। (इन दिनों परमेश्वर का साक्षीपत्र का सन्दूक बेतेल में था। 28 पीनहास नामक एक याजक साक्षीपत्र के सन्दूक के सामने सेवा करता था। पीनहास एलीआज़ार नामक व्यक्ति का पुत्र था। एलीआज़ार हारून का पुत्र था।) इस्राएल के लोगों ने पूछा, “क्या हमें बिन्यामीन के लोगों के विरूद्ध फिर लड़ने जाना चाहिए? वे लोग हमारे सम्बन्धी हैं या हम युद्ध करना बन्द कर दें?” यहोवा ने उत्तर दिया, “जाओ। कल मैं उन्हें हराने में तुम्हारी सहायता करूँगा।”

29 तब इस्राएल की सेना ने गिबा नगर के चारों ओर अपने व्यक्तियों को छिपा दिया। 30 इस्राएल की सेना तीसरे दिन गिबा नगर के विरुद्ध लड़ने गई। उन्होंने जैसा पहले किया था वैसा ही लड़ने के लिये मोर्चा लगाया। 31 बिन्यामीन की सेना इस्राएल की सेना से युद्ध करने के लिये गिबा नगर के बाहर निकल आई। इस्राएल की सेना पीछे हटी और उसने बिन्यामीन की सेना को पीछा करने दिया।

इस प्रकार बिन्यामीन की सेना को नगर को बहुत पीछे छोड़ देने के लिये धोखा दिया गया। बिन्यमीन की सेना ने इस्राएल की सेना के कुछ लोगों को वेसे ही मारना आरम्भ किया जैसे उन्होंने पहले मारा था। इस्राएल के लगभग तीस व्यक्ति मारे गए। उनमें से कुछ लोग मैदानों में मारे गए थे। उनमें से कुछ व्यक्ति सड़कों पर मारे गए थे। एक सड़क बेतेल को जा रही थी। दूसरी सड़क गिबा को जा रही थी। 32 बिन्यामीन के लोगों ने कहा, “हम पहले की तरह जीत रहे हैं।”

उसी समय इस्राएल के लोग पीछे भाग रहे थे लेकिन यह एक चाल थी। वे बिन्यामीन के लोगों को उनके नगर से दूर सड़कों पर लाना चाहते थे। 33 इस्राएल की सेना के सभी लोग अपने स्थानों से हटे। वे बालतामार स्थान पर रूके। तब जो लोग गिबा नगर की ओर छिपे थे, वे अपने छिपने के स्थानों से गिबा के पश्चिम को दौड़ पड़े। 34 इस्राएल की सेना के पूरे प्रशिक्षित दस हजार सैनिकों ने गिबा नगर पर आक्रमण किया। युद्ध बड़ा भीषण था। किन्तु बिन्यामीन की सेना नहीं जानती थी कि उनके साथ कौन सी भंयकर घटना होने जा रही है?

35 यहोवा ने इस्राएल की सेना का उपयोग किया और बिन्यामीन की सेना को पराजित किया। उस दिन इस्राएल के सेना ने बिन्यामीन की पच्चीस हजार एक सौ सैनिकों को मार डाला। वे सभी सैनिक युद्ध के लिये प्रशिक्षित थे। 36 इस प्रकार बिन्यामीन के लोगों ने देखा कि वे पराजित हो गए।

इस्राएल की सेना पीछे हटी। वे पीछे हटे क्योंकि वे उस अचानक आक्रमण पर भरोसा कर रहे थे जिसके लिये वे गिबा के निकट व्यवस्था कर चुके थे। 37 जो व्यक्ति गिबा के चारों ओर छिपे थे वे गिबा नगर में टूट पड़े। वे फैल गए और उन्होंने अपनी तलवारों से नगर के हर एक को मार डाला। 38 इस्राएली सेना के दल और छिपकर घात लगाने वाले दल के बीच यह संकेत चिन्ह निश्चित किया गया था कि छिपकर घात लगाने वाला दल नगर से धुएँ का विशाल बादल उड़ाएगा।

39-41 इसलिये युद्ध के समय इस्राएल की सेना पीछे मुड़ी और बिन्यामीन की सेना ने इस्राएल की सेना के सैनिकों को मारना आरम्भ किया। उन्होंने लगभग तीस सैनिक मारे। वे कह रहे थे, “हम वैसे जीत रहे हैं जैसे पहले युद्ध में जीत रहे थे।” किन्तु तभी धुएँ का विशाल बादल नगर से उठना आरम्भ हुआ। बिन्यामीन के सैनिक मुड़े और धुएँ को देखा। पूरा नगर आग की लपटों में था तब इस्राएल की सेना मुड़ी और लड़ने लगी। बिन्यामीन के लोग डर गए थे। अब वे समझ गए थे कि उनके साथ कौन सी भंयकर घटना हो चुकी थी।

42 इसलिये बिन्यामीन की सेना इस्राएल की सेना के सामने से भाग खड़ी हुई। वे रेगिस्तान की ओर भागे। लेकिन वे युद्ध से बच न सके। इस्राएल के लोग नगर से बाहर आए और उन्हें मार डाला। 43 इस्राएल के लोगों ने बिन्यामीन के लोगों को हराया। उन्होंने बिन्यामीन के लोगों का पीछा किया। उन्हें आराम नहीं करने दिया। उन्होंने उन्हें गिबा के पूर्व के क्षेत्र में हराया। 44 इस प्रकार अट्ठारह हजार वीर और शक्तिशाली बिन्यामीन की सेना के सैनिक मारे गए।

45 बिन्यामीन की सेना मुड़ी और मरुभूमि की ओर भागी। वे रिम्मोन की चट्टान नामक स्थान पर भाग कर गए। किन्तु इस्राएल की सेना ने सड़क के सहारे बिन्यामीन की सेना के पाँच हजार सैनिकों को मार डाला। वे बिन्यामीन के लोगों का पीछा करते रहे। उन्होंने उनका पीछा गिदोम नामक स्थान तक किया। इस्राएल की सेना ने उस स्थान पर बिन्यामीन की सेना के दो हजार और सैनिकों को मार डाला।

46 उस दिन बिन्यामीन की सेना के पच्चीस हजार सैनिक मारे गए। उन सभी व्यक्तियों के पास तलवारें थीं। बिन्यामीन के वे लोग वीर योद्धा थे। 47 किन्तु बिन्यामीन के छ: सौ व्यक्ति मुड़े और मरुभूमि में भाग गए। वे रिम्मोन की चट्टान नामक स्थान पर गए। वे वहाँ चार महीने तक ठहरे रहे। 48 इस्राएल के लोग बिन्यामीन के प्रदेश में लौटकर गए। जिन नगरों में वे पहुँचे, उन नगरों के आदमियों को उन्होंने मार डाला। उन्होंने सभी जानवरों को भी मार डाला। वे जो कुछ पा सकते थे, उसे नष्ट कर दिया। वे जिस नगर में गए, उसे जला डाला।

बिन्यामीन के लोगों के लिये पत्नियाँ प्राप्त करना

21मिस्पा में इस्राएल के लोगों ने प्रतिज्ञा की। उनकी प्रतिज्ञा यह थी, “हम लोगों में से कोई अपनी पुत्री को बिन्यामीन के परिवार समूह के किसी व्यक्ति से विवाह नहीं करने देगा।”

2 इस्राएल के लोग बेतेल नगर को गए। इस नगर में वे परमेश्वर के सामने शाम तक बैठे रहे। वे बैठे हुए रोते रहे। 3 उन्होंने परमेश्वर से कहा, “यहोवा, तू इस्राएल के लोगों का परमेश्वर है। ऐसी भयंकर बात हम लोगों के साथ कैसे हो गई है? इस्राएल के परिवार समूहों में से एक परिवार समूह क्यों कम हो जाये!”

4 अगले दिन सवेरे इस्राएल के लोगों ने एक वेदी बनाई। उन्होंने उस वेदी पर परमेश्वर को होमबली और मेलबलि चढ़ाई। 5 तब इस्राएल के लोगों ने कहा, “क्या इस्राएल का कोई ऐसा परिवार समूह है जो यहोवा के सामने हम लोगों के साथ मिलने नहीं आया है?” उन्होंने यह प्रश्न इसलिए पूछा कि उन्होंने एक गंभीर प्रतिज्ञा की थी। उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि जो कोई मिस्पा में अन्य परिवार समूहों के साथ नहीं आएगा, मार डाला जाएगा।

6 इस्राएल के लोग अपने रिश्तेदारों, बिन्यामीन के परिवार समूह के लोगों के लिये, बहुत दुःखी थे। उन्होंने कहा, “आज इस्राएल के लोगों से एक परिवार समूह कट गया है। 7 हम लोगों ने यहोवा के सामने प्रतिज्ञा की थी कि हम अपनी पुत्रियों को बिन्यामीन परिवार के किसी व्यक्ति से विवाह नहीं करने देंगे। हम लोगों को कैसे विश्वास होगा कि बिन्यामीन परिवार समूह के लोगों को पत्नियाँ प्राप्त होंगी?”

8 तब इस्राएल के लोगों ने पूछा, “इस्राएल के परिवार समूहों में से कौन मिस्पा में यहाँ नहीं आया है? हम लोग यहोवा के सामने एक साथ आए हैं। किन्तु एक परिवार समूह यहाँ नहीं है।” तब उन्हें पता लगा कि इस्राएल के अन्य लोगों के साथ यावेश गिलाद नगर का कोई व्यक्ति वहाँ नहीं था। 9 इस्राएल के लोगों ने यह जानने के लिये कि वहाँ कौन था और कौन नहीं था, हर एक को गिना। उन्होंने पाया कि यावेश गिलाद का कोई भी वहाँ नहीं था। 10 इसलिए इस्राएल के लोगों की परिषद ने बारह हजार सैनिकों को यावेश गिलाद नगर को भेजा। उन्होंने उन सैनिकों से कहा, “जाओ और यावेश गिलाद लोगों को अपनी तलवार के घाट उतार दो। 11 तुम्हें यह अवश्य करना होगा। यावेश गिलाद में हर एक पुरुष को मार डालो। उस स्त्री को भी मार डालो जो एक पुरुष के साथ रह चुकी हो। किन्तु उस स्त्री को न मारो जिसने किसी पुरुष के साथ कभी शारीरिक सम्बन्ध न किया हो।” सैनिकों ने यही किया। 12 उन बारह हजार सैनिकों ने यावेश गिलाद में चार सौ ऐसी स्त्रियों को पाया, जिन्होंने किसी पुरुष के साथ शारीरिक सम्बन्ध नहीं किया था। सैनिक उन स्त्रीयों को शीलो नगर के डेरे पर ले आए। शीलो कनान प्रदेश में है।

13 तब इस्राएल के लोगों ने बिन्यामीन के लोगों के पास एक सन्देश भेजा। उन्होंने बिन्यामीन के लोगों के साथ शान्ति—सन्धि करने का प्रस्ताव रखा। बिन्यामीन के लोग रिम्मोन की चट्टान नामक स्थान पर थे। 14 इसलिये बिन्यामिन के लोग उस समय इस्राएल के लोगों के पूरे परिवार के पास लौटे। इस्राएल के लोगों ने उन्हें उन यावेश गिलाद की स्त्रियों को दिया, जिन्हें उन्होंने मारा नहीं था। किन्तु बिन्यामीन के सभी लोगों के लिये पर्याप्त स्त्रियाँ नहीं थीं।

15 इस्राएल के लोग बिन्यामीन के लोगों के लिये दुःखी हुए। उन्होंने उनके लिये इसलिए दुःख अनुभव किया क्योंकि यहोवा ने इस्राएल के परिवार समूहों को अलग कर दिया था। 16 इस्राएल के लोगों के अग्रजों ने कहा, “बिन्यामीन परिवार समूह की स्त्रियाँ मार डाली गई हैं। हम लोग बिन्यामीन के जो लोग जीवित हैं उनके लिये पत्नियाँ कहाँ पाएंगे। 17 बिन्यामीन के जो लोग अभी जीवित हैं, अपने परिवार को आगे बढ़ाने के लिये उन्हें बच्चे चाहिये। यह इसलिए करना होगा कि इस्राएल का एक परिवार समूह नष्ट न हो। 18 किन्तु हम लोग अपनी पुत्रियों को बिन्यामीन लोगों के साथ विवाह करने की स्वीकृति नहीं दे सकते। हम यह प्रतिज्ञा कर चुके हैं: ‘कोई व्यक्ति जो बिन्यामीन के व्यक्ति को पत्नी देगा, अभिशप्त होगा।’ 19 हम लोगों के सामने एक उपाय है। यह शीलो नगर में यहोवा के लिये उत्सव का समय है। यह उत्सव यहाँ हर वर्ष मनाया जाता है।” (शीलो नगर बेतेल नगर के उत्तर में है और उस सड़क के पूर्व में है जो बेतेल से शकेन को जाती है। और यह लबोना नगर के दक्षिण में भी है।)

20 इसलिये अग्रजों ने बिन्यामीन लोगों को अपना विचार बताया। उन्होंने कहा, “जाओ, और अंगूर के बेलो के खेतों में छिप जाओ। 21 उत्सव में उस समय की प्रतीक्षा करो जब शीलो की युवतियाँ नृत्य में भाग लेने आएं। तब अंगूर के खेतों में अपने छुपने के स्थान से बाहर निकल दौड़ो। तुममें से हर एक उस युवतियों को शीलो नगर से बिन्यामीन के प्रदेश में ले जाओ और उसके साथ विवाह करो। 22 उन युवतियों के पिता और भाई हम लोगों के पास आएंगे और शिकायत करेंगे। किन्तु हम लोग उन्हें इस प्रकार उत्तर देंगे: “बिन्यामीन के लोगों पर कृपा करो। वे अपने लिए पत्नियाँ इसलिए नहीं पा रहे हैं कि वे लोग तुमसे लड़े और वे इस प्रकार से स्त्रियों को ले गए हैं, अत: तुमने अपनी परमेश्वर के सामने की गई प्रतिज्ञा नहीं तोड़ी। तुमने प्रतिज्ञा की थी कि तुम उन्हें स्त्रियाँ नहीं दोगे, तुमने बिन्यामीन के लोगों को स्त्रियाँ नहीं दीं परन्तु उन्होंने तुमसे स्त्रियाँ ले लीं। इसलिये तुमने प्रतिज्ञा भंग नहीं की।”

23 इसलिये बिन्यामीन के परिवार समूह के लोगों ने वही किया। जब युवतियाँ नाच रही थीं, तो हर एक व्यक्ति ने उनमें से एक—एक को पकड़ लिया। वे उन स्त्रियों को दूर ले गए और उनके साथ विवाह किया। वे उस प्रदेश में लौटे, जो उन्हें उत्तराधिकार में मिला था। बिन्यामीन के लोगों ने उस प्रदेश में फिर नगर बसाये और उन नगरों में रहने लगे। 24 तब इस्राएल के लोग अपने घर लौटे। वे अपने प्रदेश और परिवार समूह को गए।

25 उन दिनों इस्राएल के लोगों का कोई राजा नहीं था। हर एक व्यक्ति वही करता था, जिसे वह ठीक समझता था।

समीक्षा

परमेश्वर के प्रति ईमानदार बनें

जैसे ही इस्राएल के इतिहास में यह अस्त-व्यस्त समय की घटना न्यायियों की पुस्तक में समाप्त होती है, वैसे ही लेखक निष्कर्ष निकालते हैं: 'उन दिनों में इस्रालियों का कोई राजा न था; जिसको जो ठीक जान पड़ता था वही वह करता था' (21:25, एम.एस.जी.). एक परमेश्वर के प्रति ईमानदारी के आधार पर, परमेश्वर ने उन्हें एक राजनैतिक व्यवस्था दी थी. लेकिन वह ईमानदारी थोड़े ही समय की थी और पूरी व्यवस्था बिगड़ने लगी.

जैसा कि हम देखेंगे, जब हम 1शमुएल की पुस्तक को देखेंगे, इस्राएल में एक राजा नियुक्त करने की आवश्यकता को पूरी तरह से सकारात्मक रूप से नहीं देखा जा रहा था. फिर भी इन अस्त-व्यस्त मामले की स्थिति में यह उचित लग रहा था, क्योकि यहाँ पर जिसको जो ठीक लगता था वही वह करता था.'

यहाँ तक कि गड़बड़ी की स्थिति में भी, ऐसे समय थे जब परमेश्वर के लोगों ने 'परमेश्वर को पुकारा' (20:18). उन्होंने माँगा कि परमेश्वर उनकी अगुवाई करें. परमेश्वर के साथ नियमित बातचीत और सुझाव में रहने की सीख, पुराने नियम में बहुत ही प्रबल है. यदि इस्राएल ने यहाँ पर गलती कर दी, तो ऐसा था कि उनको परमेश्वर से पूछना चाहिए था कि उन्हें युद्ध में जाना चाहिए या नहीं – उन्होंने केवल यही पूछा कि युद्ध किस तरह से करना चाहिए.

हम यह भी सीखते हैं कि यहाँ तक कि यदि परमेश्वर एक योजना के पीछे हैं, तब भी आप बड़ी हार से कष्ट उठा सकते हैं, जैसा कि परमेश्वर के लोग यहाँ पर उठा रहे थे. यद्पि परमेश्वर ने विजय का वायदा किया था, तब भी युद्ध में लोग घायल हो रहे थे. यदि यह उन भौतिक लड़ाईयों में सच था जिनका वे सामना कर रहे थे, तो यह निश्चित ही उन आत्मिक युद्ध में सच है जिनका आप सामना करते हैं. हार के द्वारा आश्चर्यचकित मत होईये. आवश्यक रूप से इसका यह अर्थ नहीं है कि परमेश्वर के द्वारा आपकी अगुवाई नहीं हो रही है. न्यायियों की पुस्तक की यह सीख है कि, जो कुछ हो, परमेश्वर के प्रति ईमानदार बने रहो.

प्रार्थना

परमेश्वर, मेरी सहायता कीजिए कि आपके प्रति निरंतर मैं ईमानदार रहूँ. मत होने दीजिए कि मुझे हार देखनी पड़े. होने दीजिए कि मैं हमेशा अपने जीवन में आपकी इच्छा को खोजने का प्रयास करुँ.

पिप्पा भी कहते है

भजनसंहिता 61:2ब

मुझे उस चट्टान पर ले जाईये जो मुझसे ज्यादा ऊँची है.

जब हम एक क‏ठिन स्थिति से गुजरते हैं. तब हमें उस चट्टान पर जाने की आवश्यकता है जो हमसे ऊँची है. परमेश्वर आज उस स्थिति के प्रति आपके नजरियें को बदल सकते हैं.

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संदर्भ

जॉन वेनियर, शांति को खोजना, (कॉटिनम आय.पी.जी., 2003) पी.24

सॅन्डि मिलर, मैं केवल आपको चाहता हूँ, (लंदन अल्फा अंतर्राष्ट्रीय, 2005) पी.21

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

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