दिन 18

तेरा राज्य आए

बुद्धि भजन संहिता 10:12-18
नए करार मत्ती 13:18-35
जूना करार उत्पत्ति 36:1-37:36

परिचय

महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय ने यूनाइटेड किंगडम पर 63 वर्ष तक राज किया था। ब्रिटिश सम्राट में उनका शासनकाल सबसे लंबे समय तक रहा है। प्रत्येक वर्ष, क्रिसमस के दिन, महारानी देश के लिए संदेश देती हैं। वर्ष 2014 में उन्होंने कहा कि, ‘यीशु मसीह का जीवन, शांति के राजकुमार, जिनका जन्मदिन हम आज मनाते हैं, वे मेरे जीवन की प्रेरणा और भरोसा हैं’।

पिछले महीने यूहन्ना के सुसमाचार से उन्होंने कहा — यीशु की ज्योति, वर्ष 2015 के अंधकार के क्षणों पर विजयी हुई है। यीशु की कहानी हमारी कल्पनाओं को आकर्षित करती है और कभी न बदलनेवाले उनके संदेश हमें प्ररित करते हैं। बदले और हिंसा के लिए नहीं बल्कि हर कहीं और हर समय हम प्रेम का प्रसार कर सकते हैं।

यूनाइटेड किंगडम की महारानी किसी और ही राज्य की ओर संकेत कर रही थीं, वह राज्य जिसे स्थापित करने के लिए यीशु आए, और उस राज्य पर शासन करने वे फिर आएंगे। यीशु ने हमें प्रार्थना करना सिखाया, ‘तेरा राज्य आए’ (मत्ती 6:10) परमेश्वर का राज्य, परमेश्वर का शासन और परमेश्वर की प्रभुता है।

बुद्धि

भजन संहिता 10:12-18

12 हे यहोवा, उठ और कुछ तो कर!
 हे परमेश्वर, ऐसे दुष्ट जनों को दण्ड दे!
 और इन दीन दुखियों को मत बिसरा!

13 दुष्ट जन क्यों परमेश्वर के विरुद्ध होते हैं?
 क्योंकि वे सोचते हैं कि परमेश्वर उन्हें कभी नहीं दण्डित करेगा।
14 हे यहोवा, तू निश्चय ही उन बातों को देखता है, जो क्रूर और बुरी हैं। जिनको दुर्जन किया करते हैं।
 इन बातों को देख और कुछ तो कर!
 दु:खों से घिरे लोग सहायता माँगने तेरे पास आते हैं।
 हे यहोवा, केवल तू ही अनाथ बच्चों का सहायक है, अत: उन की रक्षा कर!

15 हे यहोवा, दुष्ट जनों को तू नष्ट कर दे।
16 तू उन्हें अपनी धरती से ढकेल बाहर कर
17 हे यहोवा, दीन दु:खी लोग जो चाहते हैं वह तूने सुन ली।
 उनकी प्रार्थनाएँ सुन और उन्हें पूरा कर जिनको वे माँगते हैं!
18 हे यहोवा, अनाथ बच्चों की तू रक्षा कर।
 दु:खी जनों को और अधिक दु:ख मत पाने दे।
 दुष्ट जनों को तू इतना भयभीत कर दे कि वे यहाँ न टिक पायें।

समीक्षा

समाज के परिवर्तन के लिए विनती करें

‘परमेश्वर अनंतकाल के लिए महाराजा हैं’ (पद - 16अ)। परमेश्वर के हाथों में इस सृष्टि का अंतिम नियंत्रण हैं। फिर भी भजनकार परमेश्वर की दोहाई देते हैं: उठने का समय, ‘ हे यहोवा, उठ;’ (पद - 12अ)। वह प्रभावशाली प्रार्थना करते हैं कि परमेश्वर का राज्य इस धरती पर आएगा  जब परमेश्वर उठते हैं, ‘आतंक का शासनकाल समाप्त हुआ, ईश्वरों के समूह का शासन करना जाता रहा। (पद - 18ब, एम.एस.जी.)

भजनकार अनेक समूह के लोगों के लिए व्यक्तिगत रूप से प्रार्थना करते हैं। वह उनके लिए प्रार्थना करते हैं जो:

मज़दूर हैं (पद - 12)

परेशान हैं (पद - 14)

दु:खी हैं (पद - 14)

पीड़ित हैं (पद - 14)

अनाथ हैं (पद - 14-18)

बेघर हैं (पद - 18 एम.एस.जी.)

दबे हुए हैं (पद - 18)

यदि आप परमेश्वर के राज्य को आते हुए और समाज को बदलते हुए देखना चाहते हैं, तो ये ही वो लोग हैं जिनके विषय में आपको निश्चय ही चिंतित होना है।

प्रार्थना

प्रभु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आप महाराजा हैं। जो मज़दूर, परेशान, दु:खी, पीड़ित, अनाथ, बेघर, दबे हुए हैं, उन सभी पर आप राज्य करें

नए करार

मत्ती 13:18-35

बीज बोने की दृष्टान्त-कथा का अर्थ

18 “तो बीज बोने वाले की दृष्टान्त-कथा का अर्थ सुनो:

19 “वह बीज जो राह के किनारे गिर पड़ा था, उसका अर्थ है कि जब कोई स्वर्ग के राज्य का सुसंदेश सुनता है और उसे समझता नहीं है तो दुष्ट आकर, उसके मन में जो उगा था, उसे उखाड़ ले जाता है।

20 “वे बीज जो चट्टानी धरती पर गिरे थे, उनका अर्थ है वह व्यक्ति जो सुसंदेश सुनता है, उसे आनन्द के साथ तत्काल ग्रहण भी करता है। 21 किन्तु अपने भीतर उसकी जड़ें नहीं जमने देता, वह थोड़ी ही देर ठहर पाता है, जब सुसंदेश के कारण उस पर कष्ट और यातनाएँ आती हैं तो वह जल्दी ही डगमगा जाता है।

22 “काँटों में गिरे बीज का अर्थ है, वह व्यक्ति जो सुसंदेश को सुनता तो है, पर संसार की चिंताएँ और धन का लोभ सुसंदेश को दबा देता है और वह व्यक्ति सफल नहीं हो पाता।

23 “अच्छी धरती पर गिरे बीज से अर्थ है, वह व्यक्ति जो सुसंदेश को सुनता है और समझता है। वह सफल होता है। वह सफलता बोये बीज से तीस गुना, साठ गुना या सौ गुना तक होती है।”

गेहूँ और खरपतवार का दृष्टान्त

24 यीशु ने उनके सामने एक और दृष्टान्त कथा रखी: “स्वर्ग का राज्य उस व्यक्ति के समान है जिसने अपने खेत में अच्छे बीज बोये थे। 25 पर जब लोग सो रहे थे, उस व्यक्ति का शत्रु आया और गेहूँ के बीच जंगली बीज बोया गया। 26 जब गेहूँ में अंकुर निकले और उस पर बालें आयीं तो खरपतवार भी दिखने लगी। 27 तब खेत के मालिक के पास आकर उसके दासों ने उससे कहा, ‘मालिक, तूने तो खेत में अच्छा बीज बोया था, बोया था ना? फिर ये खरपतवार कहाँ से आई?’

28 “तब उसने उनसे कहा, ‘यह किसी शत्रु का काम है।’

“उसके दासों ने उससे पूछा, ‘क्या तू चाहता है कि हम जाकर खरपतवार उखाड़ दें?’

29 “वह बोला, ‘नहीं, क्योंकि जब तुम खरपतवार उखाड़ोगे तो उनके साथ, तुम गेहूँ भी उखाड़ दोगे। 30 जब तक फसल पके दोनों को साथ-साथ बढने दो, फिर कटाई के समय में फसल काटने वालों से कहूँगा कि पहले खरपतवार की पुलियाँ बना कर उन्हें जला दो, और फिर गेहूँ को बटोर कर मेरे खते में रख दो।’”

कई अन्य दृष्टान्त-कथाएँ

31 यीशु ने उनके सामने और दृष्टान्त-कथाएँ रखीं: “स्वर्ग का राज्य राई के छोटे से बीज के समान होता है, जिसे किसी ने लेकर खेत में बो दिया हो। 32 यह बीज छोटे से छोटा होता है किन्तु बड़ा होने पर यह बाग के सभी पौधों से बड़ा हो जाता है। यह पेड़ बनता है और आकाश के पक्षी आकर इसकी शाखाओं पर शरण लेते हैं।”

33 उसने उन्हें एक दृष्टान्त कथा और कही: “स्वर्ग का राज्य खमीर के समान है, जिसे किसी स्त्री ने तीन बार आटे में मिलाया और तब तक उसे रख छोड़ा जब तक वह सब का सब खमीर नहीं हो गया।”

34 यीशु ने लोगों से यह सब कुछ दृष्टान्त-कथाओं के द्वारा कहा। वास्तव में वह उनसे दृष्टान्त-कथाओं के बिना कुछ भी नहीं कहता था। 35 ऐसा इसलिये था कि परमेश्वर ने भविष्यवक्ता के द्वारा जो कुछ कहा था वह पूरा होः परमेश्वर ने कहा,

“मैं दृष्टान्त कथाओं के द्वारा अपना मुँह खोलूँगा।
सृष्टि के आदिकाल से जो बातें छिपी रही हैं, उन्हें उजागर करूँगा।”

समीक्षा

यीशु के बारे में लोगों से कहना जारी रखें

हर समय जब आप किसी को यीशु के बारे में कहते हैं और सुसमाचार बताते हैं, आपने उसके मन में बीज ‘बोया’ है। बीज बोने वाले के दृष्टांत से हमें यह पता चलता है कि प्रत्येक बीज जिसे हम बोते हैं वह फल नहीं लाता। कुछ बीज इस तरह के अस्थायी परिणाम उत्पन्न करते हैं। ‘चिंता’ या ‘जीवन की परेशानियाँ’ और ‘धन के धोखे’ से हम परमेश्वर से दूर हो जाएंगे’ (पद - 21-22)।

फिर भी यदि बीज अच्छी तरह बढ़ता है तो यह दृष्टांत हमें दर्शाता है कि आप प्रभावशाली हो सकते हैं। ‘जो बीज अच्छी भूमि में बोया गया यह वह व्यक्ति है जो सुनता है और उस पर ध्यान देता है, और यह बीज उसकी कल्पना से भी ज़्यादा फसल उत्पन्न करता है’ (पद - 23, एम.एस.जी.)।

जब मैं उन लोगों के जीवन को देखता हूँ जिन्होंने पाँच दस या पंद्रह वर्ष पहले “आल्फा कोर्स” किया था, वे विशाल रूप से प्रभावशाली हैं। उनमें से कुछ ने तो सेवकाई भी शुरु कर दी है जिसका प्रभाव पूरी दुनिया में पड़ रहा है।

यीशु बहुत से दृष्टांतों द्वारा परमेश्वर के राज्य के विषय में कहते हैं। (‘स्वर्ग का राज्य’ मत्ती का मुख्य शब्द रूप है, यहूदियों की व्यवस्था का नियमित अनुपालन करते हुए यीशु सम्मान पूर्वक ‘परमेश्वर’ के बजाय ‘स्वर्ग’ कहते हैं)।

राज्य ‘अब’ और ‘अब तक नही’ दोनों ही है। यीशु जंगली बीज द्वारा राज्य के विषय में भविष्य का दृष्टिकोण बताते हैं। इस समय गेहूँ और जंगली बीजों को साथ - साथ बढ़ने दो। एक दिन कटनी और न्याय होगा। जब यीशु लौटेंगे, तब परमेश्वर का राज्य अपनी पूर्णता के साथ आएगा (पद - 24-30)।

यीशु कहते हैं, स्वर्ग का राज्य राई के बीज के समान है, जिसे एक व्यक्ति ने लेकर भूमि में बोया। यद्यपि यह बीज सबसे छोटा होता है; परंतु जब यह बढ़ जाता है तब बाग के सभी पौधों से बड़ा होता है और ऐसा पेड़ बन जाता है कि पक्षी आकर उसकी डालियों पर बसेरा करते हैं (मत्ती 13:31-32)।

डालियों पर पक्षियों का चित्रण, पुराने नियम में कुछ समय प्रकट होता है, जो यह दर्शाता है कि सारे देशों से लोग परमेश्वर के परिवार का हिस्सा बन रहे हैं (यहेजिकल 17:22-24; 31:3-14 देखें; दानिय्येल 4:9-23 देखें)। यीशु अपने सुनने वालों को यह स्मरण दिलाते हैं कि स्वर्ग का राज्य केवल एक देश के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण जगत के लिए है।

यहाँ पर पौधे लगाने के अनेक प्रकार हैं। उदाहरण के लिए एक छोटा समूह एक दूसरे को रोपता है और ‘वह बढ़ता है’ (मत्ती 13:32)। फिर ‘कलीसिया स्थापित करना है। जो बोया जा रहा है, वह थोड़ा छोटा होता है — राई के बीज की तरह। लेकिन बोने के बाद... वह बढ़ता है’ (पद - 31-32)।

मैं आस - पास के ‘कलीसिया के पौधों’ को अपनी स्थानीय कलीसिया जैसा देखता हूँ और मैंने उनका प्रभाव उस क्षेत्र में देखा—‘आकाश के पक्षी आकर उसकी डालियों पर बसेरा करते हैं (पद - 32)। परमेश्वर के राज्य में, जिनमें आशा न थी ऐस्री अन्य – जातियाँ, विश्वासीयों के रूप में यहूदी देश में आते हैं। हम सारे जगत में ‘कलीसिया के पौधों’ का प्रभाव देख रहे हैं। जैसा कि कलीसिया को बढ़ानेवाले विशेषज्ञ पीटर पॉगनेर ने कहा है, ‘स्वर्ग के नीचे कलीसिया स्थापित करना सुसमाचार प्रचार करने का सबसे प्रभावशाली तरीका है।

यीशु स्वर्ग राज्य के विषय में कहते हैं कि यह खमीर की तरह है जो पूरे गूँथे हुए आटे को खमीर बना देता है (पद - 33) आपकी प्रभुता बढ़ सकती है — आपके घर, परिवार, विद्यालय, यूनीवर्सिटी, कारखाने में या ऑफिस में। इस तरह से समाज में बदलाव आता है।

प्रार्थना

प्रभु मेरी सहायता कीजिए कि मैं ज़्यादा से ज़्यादा बीज बो सकूँ, जिससे मैं यीशु का सुसमाचार अपने संसार में बढ़ा सकूँ। आपका राज्य मेरे शहर में, देश में और पूरी दुनिया में आए।

जूना करार

उत्पत्ति 36:1-37:36

एसाव का परिवार

36एसाव ने कनान देश की पुत्रियों से विवाह किया। यह एसाव के परिवार की एक सूची है। (जो एदोम भी कहा जाता है।) 2 एसाव की पत्नियाँ थी: आदा, हित्ती एलीन की पुत्री। ओहोलीबामा हिव्वी सिबोन की नतिन और अना की पुत्री। 3 बासमत इश्माएल की पुत्री और नबायोत की बहन। 4 आदा ने एसाव को एक पुत्र एलीपज दिया। बासमत को रुएल नाम का पुत्र हुआ। 5 ओहोलीबामा ने एसाव को तीन पुत्र दिए यूश, यालाम और कोरह ये एसाव के पुत्र थे। ये कनान प्रदेश में पैदा हुए थे।

6-8 याकूब और एसाव के परिवार अब बहुत बढ़ गये और कनान में इस बड़े परिवार का खान—पान जुटा पाना कठिन हो गया। इसलिए एसाव ने कनान छोड़ दिया और अपने भाई याकूब से दूर दूसरे प्रदेश में चला गया। एसाव अपनी सभी चीज़ों को अपने साथ लाया। कनान में रहते हुए उसने ये चीज़ें प्राप्त की थीं। इसलिए एसाव अपने साथ अपनी पत्नियों, पुत्रों, पुत्रियों सभी सेवकों, पशु और अन्य जानवरों को लाया। एसाव और याकूब के परिवार इतने बड़े हो रहे थे कि उनका एक स्थान पर रहना कठिन था। वह भूमि दोनों परिवारों के पोषण के लिए काफी बड़ी नहीं थी। उनके पास अत्याधिक पशु थे। एसाव पहाड़ी प्रदेश सेईर की ओर बढ़ा। (एसाव का नाम एदोम भी है।)

9 एसाव एदोम के लोगों का आदि पिता है। सेईर एदोम के पहाड़ी प्रदेश में रहने वाले एसाव के परिवार के ये नाम हैं।

10 एसाव के पुत्र थे, एलीपज, आदा और एसाव का पुत्र। रुएल बासमत और एसाव का पुत्र।

11 एलीपज के पाँच पुत्र थे: तेमान, ओमार, सपो, गाताम, कनज।

12 एलीपज की एक तिम्ना नामक दासी भी थी। तिम्ना और एलीपज ने अमालेक को जन्म दिया।

13 रुएल के चार पुत्र थे: नहत, जेरह, शम्मा मिज्जा।

वे एसाव की पत्नी बासमत से उसके पौत्र हैं।

14 एसाव की तीसरी पत्नी अना की पुत्री ओहोलीबामा थी। (अना सिबोन का पुत्र था।) एसाव और ओहोलीबामा के पुत्र थे: यूश, यालाम, कोरह।

15 एसाव से चलने वाले वंश ये ही हैं।

एसाव का पहला पुत्र एलीपज था। एलीपज से आए: तेमान, ओमार, सपो, कनज, 16 कोरह, गाताम, अमालेक।

ये सभी परिवार एसाव की पत्नी आदा से आए।

17 एसाव का पुत्र रुएल इन परिवारों का आदि पिता था: नहत, जेरह, शम्मा, मिज्जा।

ये सभी परिवार एसाव की पत्नी बासमत से आए।

18 अना की पुत्री एसाव की पत्नी ओहोलीबामा ने यूश, यालाम और कोरह को जन्म दिया। ये तीनों अपने—अपने परिवारों के पिता थे।

19 ये सभी परिवार एसाव से चले।

20 एसाव के पहले एदोम में सेईर नामक एक होरी व्यक्ति रहता था। सेईर के पुत्र ये हैं:

लोतान, शोबाल, शिबोन, अना 21 दीशोन, एसेर, दिशान। ये पुत्र अपने परिवारों के मुखिया थे।

22 लोतान, होरी, हेमाम का पिता था। (तिम्ना लोतान की बहन थी।)

23 शोबल, आल्वान, मानहत एबल शपो, ओनाम का पिता था।

24 शिबोन के दो पुत्र थे: अथ्या, अना, (अना वह व्यक्ति है जिसने अपने पिता के गधों की देखभाल करते समय पहाड़ों में गर्म पानी का सोता ढूँढा।)

25 अना, दीशोन और ओहोलीबामा का पिता था।

26 दीशोन के चार पुत्र थे: हेमदान, एश्वान, यित्रान, करान।

27 एसेर के तीन पुत्र थे: बिल्हान, जावान, अकान।

28 दीशान के दो पुत्र थे: ऊस और अरान।

29 ये होरी परिवारों के मुखियाओं के नाम हैं। लोतान, शोबाल, शिबोन, अना। 30 दिशोन, एसेर, दीशोन। ये व्यक्ति उन परिवारों के मुखिया थे जो सेईर (एदोम) प्रदेश में रहते थे।

31 उस समय एदोम में कई राजा थे। इस्राएल में राजाओं के होने के बहुत पहले ही एदोम में राजा थे।

32 बोर का पुत्र बेला एदोम में शासन करने वाला राजा था। वह दिन्हावा नगर पर शासन करता था।

33 जब बेला मरा तो योबाब राजा हुआ। योबाब बोस्रा से जेरह का पुत्र था।

34 जब योबाब मरा, हूशाम ने शासन किया। हूशाम तेमानी लोगों के देश का था।

35 जब हूशाम मरा, हदद ने उस क्षेत्र पर शासन किया। हदद बदद का पुत्र था। (हदद वह व्यक्ति था जिसने मिद्यानी लोगों को मोआब देश में हराया था।) हदद अबीत नगर का था।

36 जब हदद मरा, सम्ला ने उस प्रदेश पर शासन किया। सम्ला मस्रेका था।

37 जब सम्ला मरा, शाऊल ने उस क्षेत्र पर शासन किया। शाऊल फरात नदी के किनारे रहोबोत का था।

38 जब शाऊल मरा, बाल्हानान ने उस देश पर शासन किया। बाल्हानान अकबोर का पुत्र था।

39 जब बाल्हानान मरा, हदर ने उस देश पर शासन किया। हदर पाऊ नगर का था। मत्रेद की पुत्री हदर की पत्नी का नाम महेतबेल था। (मत्रेद का पिता मेजाहब था।)

40-43 एदोमी परिवारों:

तिम्ना, अल्बा, यतेत, ओहोलीबामा, एला, पीपोन, कनज, तेमान, मिबसार, मग्दीएल और ईराम आदि का पिता एसाब था। हर एक परिवार एक ऐसे प्रदेश में रहता था जिसका नाम वही था जो उनका पारिवारिक नाम था।

स्वप्नदृष्टा यूसुफ

37याकूब ठहर गया और कनान प्रदेश में रहने लगा। यह वही प्रदेश है जहाँ उसका पिता आकर बस गया था। 2 याकूब के परिवार की यही कथा है।

यूसुफ एक सत्रह वर्ष का युवक था। उसका काम भेड़ बकरियों की देखभाल करना था। यूसुफ यह काम अपने भाईयों यानि कि बिल्हा और जिल्पा के पुत्रों के साथ करता था। (बिल्हा और जिल्पा उस के पिता की पत्नियाँ थीं) 3 यूसुफ अपने पिता को अपने भाईयों की बुरी बातें बताया करता था। यूसुफ उस समय उत्पन्न हुआ जब उसका पिता इस्राएल (याकूब) बहुत बूढ़ा था। इसलिए इस्राएल यूसुफ को अपने अन्य पुत्रों से अधिक प्यार करता था। याकूब ने अपने पुत्र को एक विशेष अंगरखा दिया। यह अंगरखा लम्बा और बहुत सुन्दर था। 4 यूसुफ के भाइयों ने देखा कि उनका पिता उनकी अपेक्षा यूसुफ को अधिक प्यार करता है। वे इसी कारण अपने भाई से घृणा करते थे। वे यूसुफ से अच्छी तरह बात नहीं करते थे।

5 एक बार यूसुफ ने एक विशेष सपना देखा। बाद में यूसुफ ने अपने इस सपने के बारे में अपने भाईयों को बताया। इसके बाद उसके भाई पहले से भी अधिक उससे घृणा करने लगे।

6 यूसुफ ने कहा, “मैंने एक सपना देखा। 7 हम सभी खेत में काम कर रहे थे। हम लोग गेहूँ को एक साथ गट्ठे बाँध रहे थे। मेरा गट्ठा खड़ा हुआ और तुम लोगों के गट्ठों ने मेरे गट्ठे के चारों ओर घेरा बनाया। तब तुम्हारे सभी गट्ठों ने मेरे गट्ठे को झुक कर प्रणाम किया।”

8 उसके भाईयों ने कहा, “क्या, तुम सोचते हो कि इसका अर्थ है कि तुम राजा बनोगे और हम लोगों पर शासन करोगे?” उसके भाईयों ने यूसुफ से अब और अधिक घृणा करनी आरम्भ की क्योंकि उसने उनके बारे में सपना देखा था। 9 तब यूसुफ ने दूसरा सपना देखा। यूसुफ ने अपने भाईयों से इस सपने के बारे में बताया। यूसुफ ने कहा, “मैंने दूसरा सपना देखा है। मैंने सूरज, चाँद और ग्यारह नक्षत्रों को अपने को प्रणाम करते देखा।”

10 यूसुफ ने अपने पिता को भी इस सपने के बारे में बताया। किन्तु उसके पिता ने इसकी आलोचना की। उसके पिता ने कहा, “यह किस प्रकार का सपना है? क्या तुम्हें विश्वास है कि तुम्हारी माँ, तुम्हारे भाई और हम तुमको प्रणाम करेंगे?” 11 यूसुफ के भाई उससे लगातार इर्षा करते रहे। किन्तु यूसुफ के पिता ने इन सभी बातों के बारे में बहुत गहराई से विचार किया और सोचा कि उनका अर्थ क्या होगा?

12 एक दिन यूसुफ के भाई अपने पिता की भेड़ों की देखभाल के लिए शकेम गए। 13 याकूब ने यूसुफ से कहा, “शकेम जाओ। तुम्हारे भाई मेरी भेड़ों के साथ वहाँ हैं।” यूसुफ ने उत्तर दिया, “मैं जाऊँगा।”

14 यूसुफ के पिता ने कहा, “जाओ और देखो कि तुम्हारे भाई सुरक्षित हैं। लौटकर आओ और बताओ कि क्या मेरी भेड़ें ठीक हैं?” इस प्रकार यूसुफ के पिता ने उसे हेब्रोन की घाटी से शकेम को भेजा।

15 शकेम में यूसुफ खो गया। एक व्यक्ति ने उसे खेतों में भटकते हुए पाया। उस व्यक्ति ने कहा, “तुम क्या खोज रहे हो?”

16 यूसुफ ने उत्तर दिया, “मैं अपने भाईयों को खोज रहा हूँ। क्या तुम बता सकते हो कि वे अपनी भेड़ों के साथ कहाँ हैं?”

17 व्यक्ति ने उत्तर दिया, “वे पहले ही चले गए है। मैंने उन्हें कहते हुए सुना कि वे दोतान को जा रहे हैं।” इसलिए यूसुफ अपने भाईयों के पीछे गया और उसने उन्हें दोतान में पाया।

यूसुफ दासता के लिए बेचा गया

18 यूसुफ के भाईयों ने बहुत दूर से उसे आते देखा। उन्होंने उसे मार डालने की योजना बनाने का निश्चय किया। 19 भाईयों ने एक दूसरे से कहा, “यह सपना देखने वाला यूसुफ आ रहा है। 20 मौका मिले हम लोग उसे मार डालें हम उसका शरीर सूखे कुओं में से किसी एक में फेंक सकते हैं। हम अपने पिता से कह सकते हैं कि एक जंगली जानवर ने उसे मार डाला। तब हम लोग उसे दिखाएंगे कि उसके सपने व्यर्थ हैं।”

21 किन्तु रूबेन यूसुफ को बचाना चाहता था। रूबेन ने कहा, “हम लोग उसे मारे नहीं। 22 हम लोग उसे चोट पहुँचाए बिना एक कुएँ में डाल सकते हैं।” रूबेन ने यूसुफ को बचाने और उसके पिता के साथ भेजने की योजना बनाई। 23 यूसुफ अपने भाईयों के पास आया। उन्होंने उस पर आक्रमण किया और उसके लम्बे सुन्दर अंगरखा को फाड़ डाला। 24 तब उन्होंने उसे खाली सूखे कुएँ में फेंक दिया।

25 यूसुफ कुएँ में था, उसके भाई भोजन करने बैठे। तब उन्होंने नज़र उठाई और व्यापारियों का एक दल को देखा जो गिलाद से मिस्र की यात्रा पर थे। उनके ऊँट कई प्रकार के मसाले और धन ले जा रहे थे। 26 इसलिए यहूदा ने अपने भाईयों से कहा, अगर हम लोग अपने भाई को मार देंगे और उसकी मृत्यु को छिपाएंगे तो उससे हमें क्या लाभ होगा? 27 हम लोगों को अधिक लाभ तब होगा जब हम उसे इन व्यापारियों के हाथ बेच देंगे। अन्य भाई मान गए। 28 जब मिद्यानी व्यापारी पास आए, भाईयों ने यूसुफ को कुएँ से बाहर निकाला। उन्होंने बीस चाँदी के टुकड़ों में उसे व्यापारियों को बेच दिया। व्यापारी उसे मिस्र ले गए।

29 इस पूरे समय रूबेन भाईयों के साथ वहाँ नहीं था। वह नहीं जानता था कि उन्होंने यूसुफ को बेच दिया था। जब रूबेन कुएँ पर लौटकर आया तो उसने देखा कि यूसुफ वहाँ नहीं है। रूबेन बहुत अधिक दुःखी हुआ। उसने अपने कपड़ों को फाड़ा। 30 रूबेन भाईयों के पास गया और उसने उनसे कहा, “लड़का कुएँ पर नहीं है। मैं क्या करूँ?” 31 भाईयों ने एक बकरी को मारा और उसके खून को यूसुफ के सुन्दर अंगरखे पर डाला। 32 तब भाईयों ने उस अंगरखे को अपने पिता को दिखाया और भाईयों ने कहा, “हमे यह अंगरखा मिला है, क्या यह यूसुफ का अंगरखा है?”

33 पिता ने अंगरखे को देखा और पहचाना कि यह यूसुफ का है। पिता ने कहा, “हाँ, यह उसी का है। संभव है उसे किसी जंगली जानवर ने मार डाला हो। मेरे पुत्र यूसुफ को कोई जंगली जानवर खा गया।” 34 याकूब अपने पुत्र के लिए इतना दुःखी हुआ कि उसने अपने कपड़े फाड़ डाले। तब याकूब ने विशेष वस्त्र पहने जो उसके शोक के प्रतीक थे। याकूब लम्बे समय तक अपने पुत्र के शोक में पड़ा रहा। 35 याकूब के सभी पुत्रों, पुत्रियों ने उसे धीरज बँधाने का प्रयत्न किया। किन्तु याकूब कभी धीरज न धर सका। याकूब ने कहा, “मैं मरने के दिन तक अपने पुत्र यूसुफ के शोक में डूबा रहूँगा।”

36 उन मिद्यानी व्यापारियों ने जिन्होंने यूसुफ को खरीदा था, बाद में उसे मिस्र में बेच दिया। उन्होंने फिरौन के अंगरक्षकों के सेनापति पोतीपर के हाथ उसे बेचा।

समीक्षा

राजाओं के राजा के सामने घुटने टेकें

आज हम यूसुफ की कहानी का प्रारंभ करते हैं। इस्राएल के अन्य पुत्रों से बढ़कर यूसुफ को प्यार किया गया था (37:3) और उसके भाई उससे जलने लगे थे (पद - 4)। यूसुफ ने प्रसिद्ध स्वप्न देखा (पद - 7ब)। उसने देखा कि उसके भाई उसके सम्मुख घुटने टेक रहे हैं।

इसमें कोई संदेह नहीं कि परमेश्वर स्वप्न के द्वारा बात करते हैं — उन्होंने निश्चित रूप से इसी प्रकार यूसुफ से बात की है (पद - 5ब)। भविष्य में होनेवाली बातें और परमेश्वर उसके जीवन का उपयोग किस तरह से करेंगे इसके बारे में यूसुफ ने स्वप्न द्वारा झलक देखी थी।

फिर भी, इसमें बुद्धिमानी नहीं है कि आप अपने जीवन के विषय में स्वप्न और दर्शन को हर एक व्यक्ति को बताएं। यूसुफ सत्रह वर्ष का हो गया था (पद - 2)। उसे कोई अनुभव नहीं था। उसने अपना स्वप्न हर एक व्यक्ति को बताकर गलती की थी। यहीं उसके लिए घृणा और ईर्ष्या बन गई (पद - 11) उसके भाइयों ने कहा — (पद - 58) क्या तेरा मकसद हम पर शासन करना है? क्या वास्तव में तू हम पर राज्य करेगा? (पद - 8अ) उन्हें यूसुफ के राजा बनने के विचार से घृणा होने लगी।

उसके बाद उसने एक और स्वप्न देखा जिसमें वे सभी प्रभावशाली रूप से उसके सामने घुटने टेक रहे हैं (पद - 9)। उसके पिता बुद्धिमानी से से उस पर सोच - विचार करने लगे जो यूसुफ ने देखा था (पद - 11 एम.एस.जी)। स्वप्न और दर्शन जिसे आप सोचते हैं कि यह परमेश्वर की ओर से है, उसका उत्तर देने के बारे में यदि आप अनिश्चित हैं, तो उस बारे में साधारण रूप से अपने मन में सोचना ही बुद्धिमानी से उत्तर देना है (लूका 2:19 देखें)।

फिर भी, अपने पूरे परिवार को फिर से बता कर यूसुफ ने गलती की। उसके भाई उससे और भी जलने लगे (उत्पत्ति 37:11)। उन्होंने षड़यंत्र रचा कि यूसुफ को नाश करें (पद - 18)। यूसुफ को मिद्यानी के हाथ बेचा गया, जिन्होंने मिस्र में पोतिपर को बेच दिया, जो फिरौन का अधिकारी था, और सेना का प्रमुख भी था (पद - 26)। यूसुफ मिस्र के महाराजा के अधीन हो गया।

यूसुफ ने मूर्खतापूर्ण अपने भाइयों से अपने स्वप्नों को बताया था जिसका परिणाम यह हुआ कि उसे वर्षों तक के कठोर परिश्रम और समस्याओं से होकर गुज़रना पड़ा। परमेश्वर ने इसका उपयोग उसका चरित्र विकसित करने और उसके जीवन के कार्यों के लिए तैयार करने में किया।

पुराने नियम में हम जिन शासक के विषय में पढ़ते हैं वह नए नियम में परमेश्वर के राज्य का पुर्वानुमान है। आज के पद्यांश में हम अलग अलग तरह के शासक देखते हैं — एदोम के राजा और अधिकारियों से लेकर (36:31-43), मिस्र के फिरौन तक (37:36) उत्पत्ति के इन समापन अध्यायों में महत्त्वपूर्ण संदेश यह है कि परमेश्वर, सारे मानव शासकों के ऊपर और पीछे हैं। यह विशेषकर यूसुफ की कहानी के द्वारा दर्शाता है।

कहानी में एक मोड़ और बदलाव का आना कभी - कभी अनोखा और अनियमित प्रतीत होता है। फिर भी, शुरु से अंत तक हम परमेश्वर की सहभागिता को पढ़ते हैं। (जैसे कि यूसुफ के स्वप्न में) और अंत में हमें यह पता चलता है कि यह सब कुछ परमेश्वर के उद्देश्य के प्रति कार्य कर रहा था (50:20)।

यूसुफ ‘मसीह’ का एक प्रकार है। दूसरे शब्दों में, उसका जीवन यीशु के जीवन के लक्षण को बताता है। (जैसा कि हम आनेवाले दिनों में देखेंगे) लेकिन यहाँ पर आरंभ में हम एक अंतर देखते हैं। यीशु भी जानते थे कि परमेश्वर उनका उपयोग कैसे करनेवाले हैं, लेकिन वे दूसरों से कहने में बहुत सावधान रहते थे। बल्कि वे यहाँ तक सावधान रहते थे कि लोग अब ‘मसीही रहस्य’ के बारे में बातें करते हैं।

हम इस पथ में यूसुफ और यीशु के बीच समानता का आरंभ देखते हैं। एक दिन, लोग यूसुफ के सामने घुटने टेकेंगे (37:7,9)। और एक दिन हर एक घुटना राजा यीशु के सामने टिकेगा (फिल्लिपियों 2:10; प्रकाशितवाक्य 19:4-6)।

यह तब होगा जब आप स्वेच्छा से यीशु के सामने घुटने टेकेंगे, और उन्हें अपने जीवन में सर्वोच्च राजा के रूप में मानेंगे, जिससे आप विभिन्न प्रकार की सामर्थ्य के परिणाम के बारे में चिंतित नहीं होंगे जो अन्य लोगों के लिए कार्य करती है और जो आपके जीवन में मौजूद हैं (उदाहरण के लिए, शिक्षक, बॉस, सरकार)।

प्रार्थना

प्रभु यीशु मसीह, राजाओं के राजा, मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि जब मैं आपका अनुसरण करने लगा, तब मैं आपकी प्रभुता के आधीन हो गया। आज मैं आपके सम्मुख घुटने टेकता हूँ और स्वीकार करता हूँ कि आप ही प्रभु हैं। मैं प्रार्थना करता हूँ कि आपका राज्य मेरे जीवन में और मेरे आस - पास के लोगों के जीवन में आए।

पिप्पा भी कहते है

याकूब “द पैरेंटिंग” बुक का उपयोग कर सकता था। अपने किसी एक बच्चे का ज्यादा समर्थन करने से परेशानी खड़ी हो सकती है। लेकिन परमेश्वर अपने उद्देश्यों के लिए हमारी गलतियों का भी उपयोग करते हैं।

reader

App

Download The Bible with Nicky and Pippa Gumbel app for iOS or Android devices and read along each day.

reader

Email

Sign up now to receive The Bible with Nicky and Pippa Gumbel in your inbox each morning. You’ll get one email each day.

Podcast

Subscribe and listen to The Bible with Nicky and Pippa Gumbel delivered to your favourite podcast app everyday.

reader

Website

Start reading today’s devotion right here on the BiOY website.

संदर्भ

नोट्स:

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी, MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

एक साल में बाइबल

  • एक साल में बाइबल

This website stores data such as cookies to enable necessary site functionality and analytics. Find out more