दिन 191

परमेश्वर पर भरोसा कीजिए

बुद्धि भजन संहिता 82:1-8
नए करार प्रेरितों के काम 27:13-44
जूना करार 2 राजा 18:1-19:13

परिचय

विश्वास में सबसे बड़ी बाधा है निर्दोष का कष्ट उठाना। एक अल्फा छोटे समूह में यह उठाया गया प्रथम प्रश्न हैः'यदि एक परमेश्वर हैं जो हमसे प्रेम करते हैं, तो विश्व में क्यों इतना कष्ट है? क्यों इतना अन्याय और अत्याचार है?'

यें बहुत ही महत्वपूर्ण और आवश्यक प्रश्न है लेकिन कोई सरल उत्तर नहीं है। फिर भी कष्ट और संघर्ष के बीच में परमेश्वर हमसे मिलने में सक्षम है। असाधारण रूप से, अक्सर वे लोग जो बड़े कष्टों से गुजरें हैं, उनके पास मजबूत विश्वास होता है। वे अपने साथ परमेश्वर की उपस्थिति की गवाही देते हैं और दर्द में उन्हें मजबूत करते हैं और उन्हें शांति देते हैं। बेसी टेन बूम, जैसे ही वह रेवनस्ब्रक कॉन्संट्रेशन कैम्प में मरते समय लेटी हुई थी, उसने अपनी बहन कोरी की ओर मुड़कर कहा, 'हमें अवश्य ही उन्हें बताना चाहिए कि ऐसा कोई गड्ढ़ा इतना गहरा नहीं है जिसकी तुलना में वह अधिक गहरा नहीं है। वे हमारी सुनेंगे, कोरी, क्योंकि हम वहाँ पर रह चुके हैं।'

विश्वास में परमेश्वर पर भरोसा करना शामिल है। बाईबल में लोगों ने कष्ट उठाने वाले एक विश्व को देखा। लेकिन जो उन्होंने देखा, उसके बावजूद उन्होंने परमेश्वर पर भरोसा किया।

बुद्धि

भजन संहिता 82:1-8

आसाप का एक स्तुति गीत।

82परमेश्वर देवों की सभा के बीच विराजता है।
 उन देवों की सभा का परमेश्वर न्यायाधीश है।
2 परमेश्वर कहता है, “कब तक तुम लोग अन्यायपूर्ण न्याय करोगे?
 कब तक तुम लोग दुराचारी लोगों को यूँ ही बिना दण्ड दिए छोड़ते रहोगे?”

3 अनाथों और दीन लोगों की रक्षा कर,
 जिन्हें उचित व्यवहार नहीं मिलता तू उनके अधिकारों कि रक्षा कर।
4 दीन और असहाय जन की रक्षा कर।
 दुष्टों के चंगुल से उनको बचा ले।

5 “इस्राएल के लोग नहीं जानते क्या कुछ घट रहा है।
 वे समझते नहीं!
 वे जानते नहीं वे क्या कर रहे हैं।
 उनका जगत उनके चारों ओर गिर रहा है।”
6 मैंने (परमेश्वर) कहा, “तुम लोग ईश्वर हो,
 तुम परम परमेश्वर के पुत्र हो।
7 किन्तु तुम भी वैसे ही मर जाओगे जैसे निश्चय ही सब लोग मर जाते हैं।
 तुम वैसे मरोगे जैसे अन्य नेता मर जाते हैं।”

8 हे परमेश्वर, खड़ा हो! तू न्यायाधीश बन जा!
 हे परमेश्वर, तू सारे ही राष्ट्रों का नेता बन जा!

समीक्षा

अन्याय और अत्याचार के बीच में परमेश्वर पर भरोसा कीजिए

विश्व में अन्याय के प्रति हमारा उत्तर कैसा होता है? भजनसंहिता के लेखक भरोसा करते हैं कि आखिर में परमेश्वर चीजों को सही कर देंगेः'संपूर्ण विश्व आपके हाथों में है!' (व.8ब, एम.एस.जी.)।

न्याय की एक अच्छी व्यवस्था में जीना एक महान आशीष है। भ्रष्ट और अक्षम न्यायधीशों के बीच में जीना एक भयानक श्राप है। लेकिन, आखिर में, परमेश्वर उनसे हिसाब लेंगे।

'परमेश्वर की सभा में परमेश्वर ही खड़े हैं; वह ईश्वरों के बीच में न्याय करते हैं' (व.1)। भरोसा कीजिए कि परमेश्वर 'अध्यक्ष' हैं – वह पूर्ण नियंत्रण में हैं।

'वह ईश्वरों के बीच में न्याय करते हैं; तुम लोग कब तक टेढ़ा न्याय करते और दुष्टों का पक्ष लेते रहोगे' (वव.1-2, एम.एस.जी)। लेकिन परमेश्वर की 'अध्यक्षता' में विश्वास से आत्मसंतोष या निष्क्रियता नहीं आनी चाहिए। भजनसंहिता के लेखक विश्व को बदलते हुए देखने के लिए जुनूनी हैं।

हमें ना केवल परमेश्वर पर भरोसा करना है लेकिन हमारा यह कर्तव्य भी है कि वह सबकुछ करें जो हम कर सकते हैं ताकि न्याय किया जाएँ। हमें अवश्य ही गरीबों के पक्ष में कार्य करना चाहिएः'कंगाल और अनाथों का न्याय चुकाओ, दीन-दरिद्र का विचार खराई से करो। कंगाल और निर्धन को बचा लो; दुष्टों के हाथ से उन्हें छुड़ाओ' (वव.3-4)।

एक समय आएगा जब चीजें सही कर दी जाएँगी; अन्याय हटा दिया जाएगा और भ्रष्ट सरकार से छुटकारा मिल जाएगा। वह प्रार्थना करते हैं:'हे परमेश्वर, उठ, और पृथ्वी का न्याय कर' (व.8अ)।

जबकि हम भी परमेश्वर के अंतिम न्याय की आशा करते हैं, हम उस न्याय की प्रतीक्षा करते हैं, अभी गरीबों और सताये हुओं के पक्ष में कार्य करने के द्वारा। हमें सामर्थ के स्थान में बैठे हुए लोगों के सामने यही चुनौती रखनी चाहिए, 'तुम लोग कब तक टेढ़ा न्याय करोगे?'

प्रार्थना

परमेश्वर, आपका धन्यवाद क्योंकि एक दिन सभी का न्याय होगा। आप चीजों को सही से रख देंगे। तब तक, मेरी सहायता करिए कि हमारे विश्व में गरीबों और सतायें हुओं के पक्ष में मैं कार्य कर सकूं

नए करार

प्रेरितों के काम 27:13-44

तूफ़ान

13 जब दक्षिणी पवन हौले-हौले बहने लगा तो उन्होंने सोचा कि जैसा उन्होंने चाहा था, वैसा उन्हें मिल गया है। सो उन्होंने लंगर उठा लिया और क्रीत के किनारे-किनारे जहाज़ बढ़ाने लगे। 14 किन्तु अभी कोई अधिक समय नहीं बीता था कि द्वीप की ओर से एक भीषण आँधी उठी और आरपार लपेटती चली गयी। यह “उत्तर पूर्वी” आँधी कहलाती थी। 15 जहाज़ तूफान में घिर गया। वह आँधी को चीर कर आगे नहीं बढ़ पा रहा था सो हमने उसे यों ही छोड़ कर हवा के रूख बहने दिया।

16 हम क्लोदा नाम के एक छोटे से द्वीप की ओट में बहते हुए बड़ी कठिनाई से रक्षा नौकाओं को पा सके। 17 फिर रक्षा-नौकाओं को उठाने के बाद जहाज़ को रस्सों से लपेट कर बाँध दिया गया और कहीं सुरतिस के उथले पानी में फँस न जायें, इस डर से उन्होंने पालें उतार दीं और जहाज़ को बहने दिया।

18 दूसरे दिन तूफान के घातक थपेड़े खाते हुए वे जहाज़ से माल-असबाब बाहर फेंकने लगे। 19 और तीसरे दिन उन्होंने अपने ही हाथों से जहाज़ पर रखे उपकरण फेंक दिये। 20 फिर बहुत दिनों तक जब न सूरज दिखाई दिया, न तारे और तूफान अपने घातक थपेड़े मारता ही रहा तो हमारे बच पाने की आशा पूरी तरह जाती रही।

21 बहुत दिनों से किसी ने भी कुछ खाया नहीं था। तब पौलुस ने उनके बीच खड़े होकर कहा, “हे पुरुषो यदि क्रीत से रवाना न होने की मेरी सलाह तुमने मानी होती तो तुम इस विनाश और हानि से बच जाते। 22 किन्तु मैं तुमसे अब भी आग्रह करता हूँ कि अपनी हिम्मत बाँधे रखो। क्योंकि तुममें से किसी को भी अपने प्राण नहीं खोने हैं। हाँ! बस यह जहाज़ नष्ट हो जायेगा, 23 क्योंकि पिछली रात उस परमेश्वर का एक स्वर्गदूत, जिसका मैं हूँ और जिसकी मैं सेवा करता हूँ, मेरे पास आकर खड़ा हुआ 24 और बोला, ‘पौलुस डर मत। तुझे निश्चय ही कैसर के सामने खड़ा होना है और उन सब को जो तेरे साथ यात्रा कर रहे हैं, परमेश्वर ने तुझे दे दिया है।’ 25 सो लोगो! अपना साहस बनाये रखो क्योंकि परमेश्वर में मेरा विश्वास है, इसलिये जैसा मुझे बताया गया है, ठीक वैसा ही होगा। 26 किन्तु हम किसी टापू के उथले पानी में अवश्य जा फँसेगें।”

27 फिर जब चौदहवीं रात आयी हम अद्रिया के सागर में थपेड़े खा रहे थे तभी आधी रात के आसपास जहाज़ के चालकों को लगा जैसे कोई तट पास में ही हो। 28 उन्होंने सागर की गहराई नापी तो पाया कि वहाँ कोई अस्सी हाथ गहराई थी। थोड़ी देर बाद उन्होंने पानी की गहराई फिर नापी और पाया कि अब गहराई साठ हाथ रह गयी थी। 29 इस डर से कि वे कहीं किसी चट्टानी उथले किनारे में न फँस जायें, उन्होंने जहाज़ के पिछले हिस्से से चार लंगर फेंके और प्रार्थना करने लगे कि किसी तरह दिन निकल आये। 30 उधर जहाज़ के चलाने वाले जहाज़ से भाग निकलने का प्रयत्न कर रहे थे। उन्होंने यह बहाना बनाते हुए कि वे जहाज़ के अगले भाग से कुछ लंगर डालने के लिये जा रहे हैं, रक्षा-नौकाएँ समुद्र में उतार दीं। 31 तभी सेनानायक से पौलुस ने कहा, “यदि ये लोग जहाज़ पर नहीं रुके तो तुम भी नहीं बच पाओगे।” 32 सो सैनिकों ने रस्सियों को काट कर रक्षा नौकाओं को नीचे गिरा दिया।

33 भोर होने से थोड़ा पहले पौलुस ने यह कहते हुए सब लोगों से थोड़ा भोजन कर लेने का आग्रह किया कि चौदह दिन हो चुके हैं और तुम निरन्तर चिंता के कारण भूखे रहे हो। तुमने कुछ भी तो नहीं खाया है। 34 मैं तुमसे अब कुछ खाने के लिए इसलिए आग्रह कर रहा हूँ कि तुम्हारे जीवित रहने के लिये यह आवश्यक है। क्योंकि तुममें से किसी के सिर का एक बाल तक बाँका नहीं होना है। 35 इतना कह चुकने के बाद उसने थोड़ी रोटी ली और सबके सामने परमेश्वर का धन्यवाद किया। फिर रोटी को विभाजित किया और खाने लगा। 36 इससे उन सब की हिम्मत बढ़ी और उन्होंने भी थोड़ा भोजन लिया। 37 (जहाज़ पर कुल मिलाकर हम दो सौ छिहत्तर व्यक्ति थे।) 38 पूरा खाना खा चुकने के बाद उन्होंने समुद्र में अनाज फेंक कर जहाज़ को हल्का किया।

जहाज़ का टूटना

39 जब भोर हुई तो वे उस धरती को पहचान नहीं पाये किन्तु उन्हें लगा जैसे वहाँ कोई किनारेदार खाडी है। उन्होंने निश्चय किया कि यदि हो सके तो जहाज़ को वहाँ टिका दें। 40 सो उन्होंने लंगर काट कर ढीले कर दिये और उन्हें समुद्र में नीचे गिर जाने दिया। उसी समय उन्होंने पतवारों से बँधे रस्से ढीले कर दिये; फिर जहाज़ के अगले पतवार चढ़ा कर तट की और बढ़ने लगे। 41 और उनका जहाज़ रेते में जा टकराया। जहाज़ का अगला भाग उसमें फँस कर अचल हो गया। और शक्तिशाली लहरों के थपेड़ों से जहाज़ का पिछला भाग टूटने लगा।

42 तभी सैनिकों ने कैदियों को मार डालने की एक योजना बनायी ताकि उनमें से कोई भी तैर कर बच न निकले। 43 किन्तु सेनानायक पौलुस को बचाना चाहता था, इसलिये उसने उन्हें उनकी योजना को अमल में लाने से रोक दिया। उसने आज्ञा दी कि जो भी तैर सकते हैं, वे पहले ही कूद कर किनारे जा लगें 44 और बाकी के लोग तख्तों या जहाज़ के दूसरे टुकड़ों के सहारे चले जायें। इस प्रकार हर कोई सुरक्षा के साथ किनारे आ लगा।

समीक्षा

विपदा और गड़बड़ी के बीच में परमेश्वर पर भरोसा कीजिए

जब आपके जीवन में चीजे गलत हो जाती है तब क्या आप घबराते हैं? मैं जानता हूँ कि मैं घबराता हूँ। जब हमारे जीवन में सबकुछ अच्छा चल रहा हो, तब परमेश्वर पर भरोसा करना आसान बात है। किंतु, ऐसे समय भी आते हैं जब हम अपने विश्वास के प्रति मुख्य चुनौतियों का सामना करते हैं। उनकी बहुत सी चुनौतियों, जाँच और कष्टों के साथ, तीन बार वह जहाज डूब गया जिस पर पौलुस सवार था (2कुरिंथियो 11:23ब-25)।

आज के लेखांश में, हमने ऐसे एक समय के बारे में पढ़ा। पहले तो ऐसा लगता था कि पौलुस की बात गलत थी कि यात्रा के लिए मौसम अच्छा नहीं किंतु विपत्ति आएगी (प्रेरितों के काम 27:13), लेकिन एक बड़ी आँधी उठी (व.14)। अवश्य ही यह एक भयानक अनुभव रहा होगा। लूका लिखते हैं, '(उन्होंने) आखिरकार जीवित रहने की सारी आशा छोड़ दी थी' (व.20)।

फिर भी, पौलुस निरंतर परमेश्वर पर भरोसा करते रहे, साथी यात्रियों से कहते हुए कि, 'परमेश्वर पर भरोसा रखो, ' कि परमेश्वर अब भी नियंत्रण में हैं और उन्होंने हमें बचाने का वायदा किया है (वव.23-25)।

विपत्ति को देखने के बाद उन्होंने पौलुस की बात मानी। असाधारण रूप से, कैदी पौलुस पूर्ण अधिकार लेते हुए दिखाई देते हैं। वह उनसे कहते हैं, 'तुम्हें अवश्य ही मेरी बात माननी चाहिए थी' (व.21, एम.एस.जी.)। वह मल्लाह को डेंगियों में कूदने से रोक देते हैं (व.30)।

शीर्षक या पद के बिना यह लीडरशिप का एक महान उदाहरण है। श्रेष्ठ लीडर्स प्रभाव और मनाने के द्वारा अगुवाई करने में सक्षम होते हैं।

गड़बड़ी ने पौलुस को अपने विश्वास के बारे में बताने का अवसर प्रदान किया। वह अवसर का लाभ लेते हैं, यद्यपि अवश्य ही वह भूख और आँधी के प्रभावों से महान रूप से कष्ट उठा रहे थे। पौलुस ने अपने आपको परमेश्वर का, कहा ('परमेश्वर जिसका मैं हॅं') और उसके सेवक के रूप में ('जिसकी मैं सेवा करता हूँ')। लेकिन परमेश्वर ना केवल उनके मालिक और स्वामी थे; पौलुस ने परमेश्वर पर भरोसा किया और उनके प्रेम के प्रति उनके पास गहरा आश्वासन था। वह जानते थे कि परमेश्वर उनके लिए सर्वश्रेष्ठ चाहते थे, जैसा कि वह आज आपके लिए करते हैं।

पौलुस ने उन्हें आश्वासन दिया, ' तुम में से किसी के सिर का एक बाल भी न गिरेगा' (व.34)। और यह कहकर उसने रोटी लेकर सब के सामने परमेश्वर का धन्यवाद किया और तोड़कर खाने लगा' (व.35)।

विपत्ति के प्रहार के बावजूद, परमेश्वर पूर्ण नियंत्रण में थेः ' तब सैनिकों का यह विचार हुआ कि बन्दियों को मार डालें, ऐसा न हो कोई तैर कर निकल भागे। परन्तु सूबेदार ने पौलुस को बचाने की इच्छा से उन्हें इस विचार से रोका' (वव.42-43अ)।

परमेश्वर ने पौलुस को लोगों की नजरों में और स्वयं परमेश्वर की नजरों में कृपादृष्टि प्रदान की। इसके परिणामस्वरूप 'सभी सुरक्षित रूप से भूमि पर पहुँच गए' (व.44)।

कोई भी चीज परमेश्वर को पौलुस को बचाने और उनके उद्देश्य को पूरा करने और जीवन को बचाने के लिए, उसका इस्तेमाल करने से नहीं रोक सकती थी।

प्रार्थना

परमेश्वर, आपका धन्यवाद क्योंकि आप मुझे बचा सकते हैं, यहाँ तक कि जब विपत्ति आती है। जब चीजें गलत हो जाती हैं, मेरी सहायता करिए कि मैं न घबराऊँ बल्कि अपने साहस को बनाये रखूं और आपमें विश्वास रखूं।

जूना करार

2 राजा 18:1-19:13

हिजकिय्याह यहूदा पर अपना शासन करना आरम्भ करता है

18आहाज का पुत्र हिजकिय्याह यहूदा का राजा था। हिजकिय्याह ने इस्राएल के राजा एला के पुत्र होशे के राज्यकाल के तीसरे वर्ष में शासन करना आरम्भ किया। 2 हिजकिय्याह ने जब शासन करना आरम्भ किया, वह पच्चीस वर्ष का था। हिजकिय्याह ने यरूशलेम में उनतीस वर्ष तक शासन किया। उसकी माँ जकर्याह की पुत्री अबी थी।

3 हिजकिय्याह ने ठीक अपने पूर्वज दाऊद की तरह वे कार्य किये जिन्हें यहोवा ने अच्छा बताया था। 4 हिजकिय्याह ने उच्चस्थानों को नष्ट किया। उसने स्मृति पत्थरों और अशेरा स्तम्भों को खंडित कर दिया। उन दिनों इस्राएल के लोग मूसा द्वारा बनाए गाए काँसे के साँप के लिये सुगन्धि जलाते थे। इस काँसे के साँप का नाम “नहुशतान” था।

हिजकिय्याह ने इस काँसे के साँप के टुकड़े कर डाले क्योंकि लोग उस साँप की पूजा कर रहे थे।

5 हिजकिय्याह यहोवा, इस्राएल के परमेश्वर में विश्वास रखता था।

यहूदा के राजाओं में से उसके पहले या उसके बाद हिजकिय्याह के समान कोई व्यक्ति नहीं था। 6 हिजकिय्याह यहोवा का बहुत भक्त था। उसने यहोवा का अनुसरण करना नहीं छोड़ा। उसने उन आदेशों का पालन किया जिन्हें यहोवा ने मूसा को दिये थे। 7 होवा हिजकिय्याह के साथ था। हिजकिय्याह ने जो कुछ किया, उसमें वह सफल रहा। हिजकिय्याह ने अश्शूर के राजा से अपने को स्वतन्त्र कर लिया। हिजकिय्याह ने अश्शूर के राजा की सेवा करना बन्द कर दिया। 8 हिजकिय्याह ने लगातार गाज्जा तक और उसके चारों ओर के पलिश्तियों को पराजित किया। उसने सभी छोटे से लेकर बड़े पलिश्ती नगरों को पराजित किया।

अश्शूरी शोमरोन पर अधिकार करते हैं

9 अश्शूर का राजा शल्मनेसेर शोमरोन के विरुद्ध युद्ध करने गया। उसकी सेना ने नगर को घेर लिया। यह हिजकिय्याह के यहूदा पर राज्यकाल के चौथे वर्ष में हुआ। (यह इस्राएल के राजा एला के पुत्र होशे का भी सातवाँ वर्ष था।) 10 तीन वर्ष बाद शल्मनेसेर नेशोमरोन पर अधिकार कर लिया। उसने शोमरोन को यहूदा के राजा हिजकिय्याह के राज्यकाल के छठे वर्ष में शोमरोन को ले लिया। (यह इस्राएल के राजा होशे के राज्यकाल का नवाँ वर्ष भी था।) 11 अश्शूर का राजा इस्राएलियों को बन्दी के रूप में अश्शूर ले गया। उसने उन्हें हलह हाबोर पर (गोजान नदी ) और मादियों के नगरों में बसाया। 12 यह हुआ, क्योंकि इस्राएलियों ने यहोवा, अपने परमेश्वर की आज्ञा का पालन नहीं किया। उन्होंने यहोवा की वाचा को तोड़ा। उन्होंने उन सभी नियमों को नहीं माना जिनके लिये यहोवा के सेवक मूसा ने आदेश दिये थे। इस्राएल के लोगों ने यहोवा की वाचा की अनसुनी की या उन कामों को नहीं किया जिन्हें करने की शिक्षा उसमें दी गई थी।

अश्शूर यहूदा को लेने को तैयार होता है

13 हिजकिय्याह के राज्यकाल के चौदहवें वर्ष अश्शूर का राजा सन्हेरीब यहूदा के सभी सुदृढ़ नगरों के विरूद्ध युद्ध छेड़ने गया। सन्हेरीब ने उन सभी नगरों को पराजित किया। 14 तब यहूदा के राजा हिजकिय्याह ने अश्शूर के राजा को लाकीश में एक सन्देश भेजा। हिजकिय्याह ने कहा, “मैंने बुरा किया है। मुझे शान्ति से रहने दो। तब मैं तुम्हें वह भुगतान करूँगा जो कुछ तुम चाहोगे।”

तब अश्शूर के राजा ने यहूदा के राजा हिजकिय्याह से ग्यारह टन चाँदी और एक टन सोना से अधिक मांगा। 15 हिजकिय्याह ने सारी चाँदी जो यहोवा के मन्दिर और राजा के खजानों में थी, वह सब दे दी। 16 उस समय हिजकिय्याह ने उस सोने को उतार लिया जो यहोवा के मन्दिर के दरवाजों और चौखटों पर मढ़ा गया था। राजा हिजकिय्याह ने इन दरवाजों और चौखटों पर सोना मढ़वाया था। हिजकिय्याह ने यह सोना अश्शूर के राजा को दिया।

अश्शूर का राजा अपने लोगों को यरूशलेम भेजता है

17 अश्शूर के राजा ने अपने तीन अत्यन्त महत्वपूर्ण सेनापतियों को एक विशाल सेना के साथ यरूशलेम में राजा हिजकिय्याह के पास भेजा। वे लोग लाकीश से चले और यरूशलेम को गये। वे ऊपरी स्रोत के पास छोटी नहर के निकट खड़े हुए। (ऊपरी स्रोत धोबी क्षेत्र तक ले जाने वाली सड़क पर है।) 18 इन लोगों ने राजा को बुलाया। हिलकिय्याह का पुत्र एल्याकीम (एल्याकीम राजमहल का अधीक्षक था।) शेब्ना (शास्त्री) और आसाप का पुत्र योआह (अभिलेखपाल) उनसे मिलने आए।

19 सेनापतियों में से एक ने उनसे कहा, “हिजकिय्याह से कहो कि महान सम्राट अश्शूर का सम्राट यह कहता हैः

‘किस पर तुम भरोसा करते हो? 20 तुमने केवल अर्थहीन शब्द कहे हैं। तुम कहते हो, “मेरे पास उपयुक्त सलाह और शक्ति युद्ध में मदद के लिये है।” किन्तु तुम किस पर विश्वास करते हो जो तुम मेरे शासन से स्वतन्त्र हो गए हो 21 तुम टूटे बेंत की छड़ी का सहारा ले रहे हो। यह छड़ी मिस्र है। यदि कोई व्यक्ति इस छड़ी का सहारा लेगा तो यह टूटेगी और उसके हाथ को बेधती हुई उसे घायल करेगी! मिस्र का राजा उन सभी लोगों के लिये वैसा ही है, जो उस पर भरोसा करतें हैं। 22 हो सकता है, तुम कहो, “हम यहोवा, अपने परमेश्वर पर विश्वास करते हैं।” किन्तु मैं जानता हूँ कि हिजकिय्याह ने यहोवा के उच्च स्थानों और वेदियों को हटा दिया और यहूदा और यरूशलेम से कहा, “तुम्हें केवल यरूशलेम में वेदी के सामने उपासना करनी चाहिये।”

23 ‘अब अश्शूर के राजा, हमारे स्वामी से यह वाचा करो। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं दो हज़ार घोड़े दूँगा, यदि आप उन पर चढ़ने वाले घुड़सवारों को प्राप्त कर सकेंगे। 24 मेरे स्वामी के अधिकारियों में से सबसे निचले स्तर के अधिकारी को भी तुम हरा नहीं सकते! तुमने रथ और घुड़सवार सैनिक पाने के लिये मिस्र पर विश्वास किया है।

25 ‘मैं यहोवा के बिना यरूशलेम को नष्ट करने नहीं आया हूँ। यहोवा ने मुझसे कहा है, “इस देश के विरुद्ध जाओ और इसे नष्ट करो!”’”

26 तब हिलकिय्याह का पुत्र एल्याकीम, शेब्ना और योआह ने सेनापति से कहा, “कृपया हमसे अरामी में बातें करें। हम उस भाषा को समझते हैं। यहूदा की भाषा में हम लोगों से बातें न करें क्योंकि दीवार पर के लोग हम लोगों की बातें सुन सकते हैं!”

27 किन्तु रबशाके ने उनसे कहा, “मेरे स्वामी ने मुझे केवल तुमसे और तुम्हारे राजा से बातें करने के लिये नहीं भेजा है। मैं उन अन्य लोगों के लिये भी कह रहा हूँ जो दीवार पर बैठते हैं। वे अपना मल और मूत्र तुम्हारे साथ खायेंगे—पीयेंगे।”

28 तब सेनापति हिब्रू भाषा में जोर से चिल्लाया,

“महान सम्राट, अश्शूर के सम्राट का यह सन्देश सुनो। 29 सम्राट कहता है, ‘हिजकिय्याह को, अपने को मूर्ख मत बनाने दो! वह तुम्हें मेरी शक्ति से बचा नहीं सकता।’ 30 हिजकिय्याह के यहोवा के प्रति तुम आस्थावान न होना, हिजकिय्याह कहता है, “हमें यहोवा बचा लेगा! अश्शूर का सम्राट इस नगर को पराजित नहीं कर सकता है।”

31 किन्तु हिजकिय्याह की एक न सुनो। अश्शूर का सम्राट यह कहता हैः मेरे साथ सन्धि करो और मुझसे मिलो। तब तुम हर एक अपनी अंगूर की बेलों और अपने अंजीर के पेड़ों से खा सकते हो तथा अपने कुँए से पानी पी सकते हो। 32 यह तुम तब तक कर सकते हो जब तक मैं न आऊँ और तुम्हारे देश जैसे देश में तुम्हें ले न जाऊँ। यह अन्न और नयी दाखमधु, यह रोटी और अंगूर भरे खेत और जैतून एवं मधु का देश है। तब तुम जीवित रहोगे, मरोगे नहीं।

किन्तु हिजकिय्याह की एक न सुनो! वह तुम्हारे इरादों को बदलना चाहता है। वह कह रहा है, “यहोवा हमें बचा लेगा।” 33 क्या अन्य राष्ट्रों के देवताओं ने अश्शूर के सम्राट्र से अपने देश को बचाया नहीं। 34 हमात और अर्पाद के देवता कहाँ हैं? सपवैम, हेना और इव्वा के देवता कहाँ हैं, क्या वे मुझसे शोमरोन को बचा सके? नहीं! 35 क्या किसी अन्य देश में कोई देवता अपनी भूमि को मुझसे बचा सका नहीं! क्या यहोवा मुझसे यरूशलेम को बचा लेगा नहीं!

36 किन्तु लोग चुप रहे। उन्होंने एक शब्द भी सेनापति को नहीं कहा क्योंकि राजा हिजकिय्याह ने उन्हें ऐसा आदेश दे रखा था। उसने कहा था, “उससे कुछ न कहो।”

37 (हिलकिय्याह का पुत्र एल्याकीम) एल्याकीम राजमहल का अधीक्षक था। (शेब्ना) शास्त्री और (आसाप का पुत्र योआह) अभिलेखपाल हिजकिय्याह के पास लौटे। उन्होंने हिजकिय्याह से वह सब कहा जो अश्शूर के सेनापति ने कहा था।

हिजकिय्याह यशायाह नबी के पास अपने अधिकारियों को भेजता है

19राजा हिजकिय्याह ने वह सब सुना और यह दिखाने के लिये कि वह बहुत दुःखी है और घबराया हुआ है, अपने वस्त्रों को फाड़ डाला और मोटे वस्त्र पहन लिये। तब वह यहोवा के मन्दिर में गया।।

2 हिजकिय्याह ने एल्याकीम (एल्याकीम राजमहल का अधीक्षक था।) शेब्ना (शास्त्री) और याजकों के अग्रजों को आमोस के पुत्र यशायाह नबी के पास भेजा। उन्होंने मोटे वस्त्र पहने जिससे पता चलता था कि वे परेशान और दुःखी हैं। 3 उन्होंने यशायाह से कहा, “हिजकिय्याह यह कहता है, ‘यह हमारे लिये संकट’ दण्ड और अपमान का दिन है। यह बच्चों को जन्म देने जैसा समय है, किन्तु उन्हें जन्म देने के लिये कोई शक्ति नहीं है। 4 सेनापति के स्वामी अश्शूर के राजा ने जीवित परमेश्वर के विषय में निन्दा करने के लिये उसे भेजा है। यह हो सकता है कि यहोवा, आपका परमेश्वर उन सभी बातों को सुन ले। यह हो सकता है कि यहोवा यह प्रमाणित कर दे कि शत्रु गलती पर है! इसलिये उन लोगों के लिये प्रार्थना करें जो अभी तक जीवित बचे हैं।”

5 राजा हिजकिय्याह के अधिकारी यशायाह के पास गए। 6 यशायाह ने उनसे कहा, “अपने स्वामी हिजकिय्याह को यह सन्देश दोः ‘यहोवा कहता हैः उन बातों से डरो नहीं जिन्हें अश्शूर के राजा के अधिकारियों ने मेरी मजाक उड़ाते हुए कही हैं। 7 मैं शीघ्र ही उसके मन में ऐसी भावना पैदा करूँगा जिससे वह एक अफवाह सुनकर अपने देश वापस जाने को विवश होगा और मैं उसे उसके देश में एक तलवार के घाट उतरवा दूँगा।’”

हिजकिय्याह को अश्शूर के राजा की पुनः चेतावनी

8 सेनापति ने सुना कि अश्शूर का राजा लाकीश से चल पड़ा है। अतः सेनापति गया और यह पाया कि उसका सम्राट लिब्ना के विरुद्ध कर रहा है। 9 अश्शूर के राजा ने एक अफवाह कूश के राजा तिर्हाका के बारे में सुनी। अफवाह यह थीः “तिर्हाका तुम्हारे विरुद्ध लड़ने आया है।”

अतः अश्शूर के राजा ने हिजकिय्याह के पास फिर सन्देशवाहक भेजे।

अश्शूर के राजा ने इन सन्देशवाहकों को यह सन्देश दिया। 10 उसने इसमें यह कहाः “यहूदा के राजा हिजकिय्याह से यह कहोः

‘जिस परमेश्वर में तुम विश्वाश रखते हो उसे तुम अपने को मूर्ख बनाने मत दो। वह कहता है, अश्शूर का राजा यरूशलेम को पराजित नहीं करेगा।’ 11 तुमने उन घटानाओं को सुना है जो अश्शूर के राजाओं ने अन्य सभी देशों में घटित की हैं। हमने उन्हें पूरी तरह से नष्ट किया। क्या तुम बच पाओगे। नहीं। 12 उन राष्ट्रों के देवता अपने लोगों की रक्षा नहीं कर सके। मेरे पूर्वजों ने उन सभी को नष्ट किया। उन्होंने गोजान, हारान, रेसेप और तलस्सार में एदेन के लोगों को नष्ट किया। 13 हमात का राजा कहाँ है अर्पाद का राजा सपवैम नगर का राजा हेना और इव्वा का राजा ये सभी समाप्त हो गये हैं।’”

समीक्षा

बुराई और संकट के बीच में परमेश्वर पर भरोसा कीजिए

आखिरकार, ऐसे एक व्यक्ति के विषय में पढ़ना कितनी शांति प्रदान करता है जिसने 'परमेश्वर पर भरोसा किया' (18:5)। हिजकिय्याह 'परमेंश्वर पर भरोसा रखता था, उन पर निर्भर रहता था और उनमें उसका विश्वास था' (व.5, ए.एम.पी.)। वह अपना संपूर्ण भरोसा इस्राएल के परमेश्वर पर रखता था...और इसलिये यहोवा उसके संग रहे, और जहाँ कही वह जाता था, उसका काम सफल होता था' (वव.5-6, एम.एस.जी.)।

जब हिजकिय्याह राजा बन गया, उसने सबसे पहले उन सभी चीजों को नष्ट किया जो लोगों को परमेश्वर की आज्ञा मानने से रोक रही थी (वव.1-4)। शायद से आपके जीवन में भी कई ऐसी चीजें हैं जो परमेश्वर की आज्ञा मानने में आपके सामने बाधा डाल रही है। यद्यपि शायद से वह जरुरी लगे, परमेश्वर की आज्ञा मानने से जरुरी कुछ नहीं। परमेश्वर उनकी आज्ञा मानने में हमारी सहायता करना चाहते हैं –उनसे मॉंगिये और वह आपका सम्मान करेंगे, जैसे कि उन्होंने हिजकिय्याह का सम्मान कियाः'और परमेश्वर उसके संग थे; और जहाँ कही वह जाता था, उसका काम सफल होता था' (व.7)।

ईसा पूर्व 701 वर्ष में हिजकिय्याह ने अश्शूर के राजा के रूप 70 एक बहुत ही शक्तिशाली शत्रु का सामना किया, जिसने उनका मजाक उड़ाया था। हमने इन ऐतिहासिक घटनाओं के बारें में ना केवल बाईबल में लेकिन दूसरी प्राचीन घटनाओं में भी पढ़ा है। इन घटनाओं के बारे में सन्हेरीब के वर्णन में वह लिखते हैं, 'यहूदी, हिजकिय्याह वह मेरे जुएँ के सामने नहीं झुका।' वह अक्खड़ रूप से हिजकिय्याह के बारे में कहता है से अभिभूत हो जाना। 'मेरी प्रभुता के प्रेरणादायक प्रताप के आतंक'

सन्हेरीब, परमेश्वर पर हिजकिय्याह के भरोसे का मजाक उड़ाता है (वव.20,22): 'हिजकिय्याह को तुम्हें परमेश्वर में भरोसा करने के लिए बहकाने मत दो और वह तुम्हें बहका रहा है जब वह कहता है, 'परमेश्वर हमें बचाएगा' (वव.30-32)।

किसी तरह से हिजकिय्याह ने अवश्य ही अपने लोगों से सम्मान जीता होगा क्योंकि उन्होंने उनके निर्देशों को मानाः'परंतु सब लोग चुप रहे और उसके उत्तर में एक बात भी न कही, क्योंकि राजा की ऐसी आज्ञा थी कि उसको उत्तर न देना' (व.36)।

अपने शक्तिशाली शत्रु के सामने, हिजकिय्याह ने प्रार्थना की, 'वह अपने वस्त्र फाड़, टाट ओढ़कर यहोवा के भवन में गया' (19:1)। अधिकारियों का एक समूह भविष्यवक्ता यशायाह के पास गया और उससे कहा, 'हिजकिय्याह यों कहता हैः आज का दिन संकट, और भत्सरना और निंदा का दिन है; बच्चों के जन्म का समय तो हुआ पर जच्चा को जन्म देने का बल न रहा' (वव.3-4)।

यशायाह का उत्तर था, 'यहोवा यो कहता है,जो वचन तूने सुने हैं, उनके कारण मत डर' (व.6)। ना केवल हिजकिय्याह ने परमेश्वर पर भरोसा किया, लेकिन उन्होंने लोगों को भी परमेश्वर पर भरोसा करने के लिए मना लिया।

सालों से, मैंने इस लेखांश के अतिरिक्त, उन चुनौतियों की एक सूची लिखी है जिनका हमने सामना किया। पिछले बीते हुए सालों में मुड़कर देखना और यह देखना अद्भुत है कि परमेश्वर ने किस तरह से बहुत से क्षेत्रों में हमें छुड़ाया है।

आज, जिस किसी चुनौतियों का आप सामना कर रहे हैं उन्हें लिख लीजिए, परमेश्वर पर भरोसा कीजिए, विश्वास कीजिए कि वह आपके संग रहेंगे और उन सभी कामों में आपको सफल करेंगे जो वह आपको करने के लिए कहते हैं।

प्रार्थना

परमेश्वर, आपका धन्यवाद क्योंकि सभी परिस्थितियों में हम आप पर भरोसा कर सकते हैं। आज, आपके सामने मैं उन सभी चुनौतियों को रखता हूँ जिनका मैं सामना कर रहा हूँ। मैं अपना भरोसा आप पर रखता हूँ।

पिप्पा भी कहते है

जब चीजें अच्छी दिखाई नहीं देती हैं तब परमेश्वर पर भरोसा कीजिएः

2 राजाओं 18

प्रेरितों के काम 27:33-34

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संदर्भ

कोरी टेन बूम, द हायडिंग प्लेस (हॉडर एण्ड सॉटन, 2004)

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

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