दिन 29

आपसे प्रेम किया गया है

बुद्धि भजन संहिता 17:6-12
नए करार मत्ती 20:1-19
जूना करार अय्यूब 11:1-14:22

परिचय

शेन टेलर यू.के. की बंदीगृह पध्दति में बहुत ही खतरनाक व्यक्ति के रुप में जाने जाते थे। उन्हें हत्या के प्रयास में जेल हुई थी, और जब उन्होंने टूटे हुए ग्लास से बंदीगृह के अधिकारी पर आक्रमण किया था, तब उनकी सज़ा को और 4 वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया था।

उन्हें अधिकतम सुरक्षित बंदीगृह के अंदर अलग विभाग में रखा गया था। उन्हें उनका भोजन द्वार के माध्यम से ही दिया जाता था। उनका द्वार तब तक नहीं खोला जाता था जब तक बाहर छह अधिकारी हथियारों के साथ तैनात ना हों।

बाद में लाँग लार्टिन का अधिकतम सुरक्षित बंदीगृह में स्थानांतरण किया गया, जहाँ उन्हें अल्फा के लिए निमंत्रण दिया गया। अध्ययन के दौरान उन्होंने प्रार्थना की ‘यीशु मसीह, मैं जानता हूँ कि आप मेरे लिए सूली पर मरे। मैं जो भी हूँ उससे मैं नफरत करता हूँ, कृपया मुझे क्षमा कर दीजिए और मेरे जीवन में आइये’। उसी क्षण वे पवित्र आत्मा से भर गए। एक रात में सब कुछ बदल गया। उन्होंने कहा ‘मैंने परमेश्वर के अस्तित्व को जाना है, मैंने जाना है कि यीशु ने मुझे स्पर्श किया है और मैं सदा उनके लिए जीऊँगा’।

उनका व्यवहार इतना परिवर्तित हो गया कि उन्हें बंदीगृह में सम्पूर्ण अलगाव में रहने से हटाकर बंदीग्रह में पादरी के पद की भरोसेमंद नौकरी दी गई। उन्होंने बंदीगृह में रहते हुए ही, अफ्रीका के एक दानी संस्था को भेंट के लिए पैसे भेजने शुरु कर दिये थे। उन्होंने बंदीगृह के अधिकारियों के लिए और अपने शत्रुओं के लिए प्रार्थनाएं की, और जब वे बंदीगृह से बाहर आए, तब वे एक कलीसिया से जुड़ गए। वे एक लड़की से मिले जिसे ‘सैम’ बुलाते थे, उनका जीवन भी बहुत कठिन था और वे नशीली दवाइयों और अपराधी गतिविधियों में सम्मिलित थीं। वह भी यीशु में विश्वास करने लगीं। अब उनका विवाह हो चुका है और उनकी 4 संतान हैं।

शेन से अब बातें करते हुए, कल्पना करना कठिन है कि ये वही व्यक्ति है जिसने कुछ समय पहले बहुत लोगों को सताया था। उसके बाद उसने परमेश्वर के ‘अदभुत प्रेम के आश्चर्य’ का अनुभव किया था। (भजन संहिता 17:7) वे कहते हैं कि ‘यीशु ने मुझे दिखाया है कैसे प्रेम करना है और कैसे क्षमा करना है। उन्होंने मुझे बचाया है। जो कुछ मैंने किया था उसके लिए उन्होंने मुझे क्षमा किया है। उन्होंने मेरे जीवन को चारों ओर से बदल दिया है।’

बुद्धि

भजन संहिता 17:6-12

6 हे परमेश्वर, मैंने हर किसी अवसर पर तुझको पुकारा है और तूने मुझे उत्तर दिया है।
 सो अब भी तू मेरी सुन।
7 हे परमेश्वर, तू अपने भक्तों की सहायता करता है।
 उनकी जो तेरे दाहिने रहते हैं।
 तू अपने एक भक्त की यह प्रार्थना सुन।
8 मेरी रक्षा तू निज आँख की पुतली समान कर।
 मुझको अपने पंखों की छाया तले तू छुपा ले।
9 हे यहोवा, मेरी रक्षा उन दुष्ट जनों से कर जो मुझे नष्ट करने का यत्न कर रहे हैं।
 वे मुझे घेरे हैं और मुझे हानि पहुँचाने को प्रयत्नशील हैं।
10 दुष्ट जन अभिमान के कारण परमेश्वर की बात पर कान नहीं लगाते हैं।
 ये अपनी ही ढींग हाँकते रहते हैं।
11 वे लोग मेरे पीछे पड़े हुए हैं, और मैं अब उनके बीच में घिर गया हूँ।
 वे मुझ पर वार करने को तैयार खड़े हैं।
12 वे दुष्ट जन ऐसे हैं जैसे कोई सिंह घात में अन्य पशु को मारने को बैठा हो।
 वे सिंह की तरह झपटने को छिपे रहते हैं।

समीक्षा

यह जान लीजिए कि परमेश्वर आपसे प्रेम करते हैं, और आप उनके लिए मूल्यवान हैं

परमेश्वर का प्रेम आपके लिए बहुत ही अदभुत है, क्योंकि यह बहुत घनिष्ठ है। दाऊद परमेश्वर को पुकारते हैं और उनसे कहते हैं कि ‘परमेश्वर अपने सर्वोत्तम प्रेम का अदभुत दृश्य दिखाइए’ (पद - 7)। वह प्रार्थना करते हैं कि ‘अपनी आँखो की पुतली की नाईं सुरक्षित रखें’ (पद - 8अ)। आँख की पुतली यह (आँखों में पुतली का खुलना, जिसके द्वारा एक प्रकाश दृष्टिपटल तक पहुँचता है), सबसे अधिक बहुमूल्य है। यह आपके लिए परमेश्वर के अद्भुत प्रेम का उल्लेखनीय चित्र है।

फिर से वे प्रार्थना करते हैं, ‘अपने पंखो के तले मुझे छिपाए रख’ (पद - 8ब)। फिर एक बार, यह परमेश्वर के प्रेम, घनिष्टता और सुरक्षा को कहता है। यीशु इसी चित्र को लेकर अपने क्रूस पर चढ़ाए जाने के दिनों में यरुशलेम के लोगों को देखते हैं, और चाहते हैं कि वे आएं और उनके पंखो तले छिप जाएँ। (मत्ती 23:37)

दाऊद ‘शत्रुओं’ से घिरे हुए हैं (भजन संहिता 17:9), ऐसे कठोर हृदय वाले लोग जो उनके विरुद्ध घमंड से बातें करते हैं (पद - 10)। आपके जीवन में ऐसा समय आया होगा जब आपने पूरी तरह से “शत्रुओं” का सामना किया, लेकिन जिस भी संघर्ष या कठिनायों का आप सामना कर रहे हैं, आप उसके लिए अपने प्रति, परमेश्वर के घनिष्ठ प्रेम पर निर्भर हो सकते हैं।

प्रार्थना

प्रभु, मैं आज आपको पुकारता हूँ। मुझे समझ दीजिए और मेरी प्रार्थना सुनिए। आपके अद्भुत प्रेम का चमत्कार मुझे दिखाए। मुझे अपनी आँखो की पुतली की तरह रखिए, अपने पंखो तले मुझे छिपाए रखिए।

नए करार

मत्ती 20:1-19

मजदूरों की दृष्टान्त-कथा

20“स्वर्ग का राज्य एक ज़मींदार के समान है जो सुबह सवेरे अपने अंगूर के बगीचों के लिये मज़दूर लाने को निकला। 2 उसने चाँदी के एक रुपया पर मज़दूर रख कर उन्हें अपने अंगूर के बगीचे में काम करने भेज दिया।

3 “नौ बजे के आसपास ज़मींदार फिर घर से निकला और उसने देखा कि कुछ लोग बाजार में इधर उधर यूँ ही बेकार खड़े हैं। 4 तब उसने उनसे कहा, ‘तुम भी मेरे अंगूर के बगीचे में जाओ, मैं तुम्हें जो कुछ उचित होगा, दूँगा।’ 5 सो वे भी बगीचे में काम करने चले गये।

“फिर कोई बारह बजे और दुबारा तीन बजे के आसपास, उसने वैसा ही किया। 6 कोई पाँच बजे वह फिर अपने घर से गया और कुछ लोगों को बाज़ार में इधर उधर खड़े देखा। उसने उनसे पूछा, ‘तुम यहाँ दिन भर बेकार ही क्यों खड़े रहते हो?’

7 “उन्होंने उससे कहा, ‘क्योंकि हमें किसी ने मज़दूरी पर नहीं रखा।’

“उसने उनसे कहा, ‘तुम भी मेरे अंगूर के बगीचे में चले जाओ।’

8 “जब साँझ हूई तो अंगूर के बगीचे के मालिक ने अपने प्रधान कर्मचारी को कहा, ‘मज़दूरों को बुलाकर अंतिम मज़दूर से शुरू करके जो पहले लगाये गये थे उन तक सब की मज़दूरी चुका दो।’

9 “सो वे मज़दूर जो पाँच बजे लगाये थे, आये और उनमें से हर किसी को चाँदी का एक रुपया मिला। 10 फिर जो पहले लगाये गये थे, वे आये। उन्होंने सोचा उन्हें कुछ अधिक मिलेगा पर उनमें से भी हर एक को एक ही चाँदी का रुपया मिला। 11 रुपया तो उन्होंने ले लिया पर ज़मींदार से शिकायत करते हुए 12 उन्होंने कहा, ‘जो बाद में लगे थे, उन्होंने बस एक घंटा काम किया और तूने हमें भी उतना ही दिया जितना उन्हें। जबकि हमने सारे दिन चमचमाती धूप में मेहनत की।’

13 “उत्तर में उनमें से किसी एक से जमींदार ने कहा, ‘दोस्त, मैंने तेरे साथ कोई अन्याय नहीं किया है। क्या हमने तय नहीं किया था कि मैं तुम्हें चाँदी का एक रुपया दूँगा? 14 जो तेरा बनता है, ले और चला जा। मैं सबसे बाद में रखे गये इस को भी उतनी ही मज़दूरी देना चाहता हूँ जितनी तुझे दे रहा हूँ। 15 क्या मैं अपने धन का जो चाहूँ वह करने का अधिकार नहीं रखता? मैं अच्छा हूँ क्या तू इससे जलता है?’

16 “इस प्रकार अंतिम पहले हो जायेंगे और पहले अंतिम हो जायेंगे।”

यीशु द्वारा अपनी मृत्यु का संकेत

17 जब यीशु अपने बारह शिष्यों के साथ यरूशलेम जा रहा था तो वह उन्हें एक तरफ़ ले गया और चलते चलते उनसे बोला, 18 “सुनो, हम यरूशलेम पहुँचने को हैं। मनुष्य का पुत्र वहाँ प्रमुख याजकों और यहूदी धर्म शास्त्रियों के हाथों सौंप दिया जायेगा। वे उसे मृत्यु दण्ड के योग्य ठहरायेंगे। 19 फिर उसका उपहास करवाने और कोड़े लगवाने को उसे गै़र यहूदियों को सौंप देंगे। फिर उसे क्रूस पर चढ़ा दिया जायेगा किन्तु तीसरे दिन वह फिर जी उठेगा।”

समीक्षा

परमेश्वर के प्रेम, उदारता और अनुग्रह को अनुभव करना

यीशु एक दृंष्टात को कहते हैं, जो फिर एक बार परमेश्वर के आश्चर्य को दर्शाता है। दाख की बारी का दृष्टांत परमेश्वर की असाधारण उदारता और अनुग्रह को दर्शाता है, जो राज्य में अंत में प्रवेश करने वालों को सभी के समान आशीष देता है। यह कभी कभी हमें ‘ईष्यालु’ बना देता है (पद - 15ब)। हम अपनी परिस्थिति के साथ तब तक ही खुश रहते हैं, जब तक हम यह नहीं सुनते कि कोई और हमसे बेहतर कर रहा है। उसके बाद हम उनसे ईर्ष्या के प्रलोभन में आते हैं।

दृष्टांत में ज़मींदार सामान्य व्यवसायिक अभ्यासों से उल्टा करता है। वो यह करता है कि, स्वयं के लिए अधिक मुनाफा नहीं कमाता लेकिन उसके विपरीत कारणों के लिए वो दयालु बनता है। वो न्याय की माँग से भी बढ़कर मूल्य देता है। परमेश्वर उस ज़मींदार की तरह हैं और उनके आशीष और उनकी क्षमा हमारी योग्यता से कहीं बढ़कर हैं।

शेन टेलर जिसने खतरनाक जीवन बिताया था, उसकी तरह हम बहुत से लोगों की गवाही सुनते हैं। बाद में, ‘ग्यारहवें घंटे’ (पद - 9) वे मन फिराते हैं और यीशु पर विश्वास करते हैं। वे पूर्ण रुप से क्षमा किये जाते हैं और उन्हें यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान का पूरा लाभ मिलता है। कुछ लोग शिकायत करते हैं कि यह उचित नहीं है, या जो शेन की तरह है उन्हें बहुत ऊँची रुपरेखा दी है। फिर भी कई बार देखा गया है कि जिन्होंने ‘दिन - भर की धूप सही’ उनसे अधिक परमेश्वर ऐसे लोगों की गवाहियों का अदभुत रीति से उपयोग करते हैं।

जैसा कि कल हमने देखा था, ‘परमेश्वर का राज्य अस्त - व्यस्त का राज्य है,’ इसलिए जो पीछे हैं, वह पहले होंगे और जो पहले हैं वे पीछे होंगे’ (पद - 16)। यीशु कहते हैं कि ईर्ष्या करने का कारण यह नहीं है। बल्कि यह परमेश्वर की उदारता पर आश्चर्य करना है। उनके अदभुत प्रेम में वे सभी पर दयालु रहते हैं। यह सब उनका अनुग्रह है। यह सब अनर्जित है। यह सब कुछ यीशु ने जो कहा था उसका परिणाम था। (पद - 17-20)

वास्तविकता ये है कि यह शेन की तरह अन्य लोंगो के लिए नहीं है कि परमेश्वर उनके लिए दयालु बनें। वे मेरे और आपके लिए भी दयालु हैं। यदि परमेश्वर हमें केवल वही दें जो हमने कमाया है तो हम बहुत पहले ही बेकार हो जाते। फिर भी यदि आपने उस उदारता को स्वीकार किया है जो परमेश्वर ने आप पर प्रकट की है, तो उसका परिणाम चौंका देने वाला होगा।

यीशु अपनी मृत्यु और पुनरुत्थान के द्वारा (पद - 18-19) आपके और मेरे लिए यह संभव करते हैं कि हम क्षमा किए जाएं और अनंतकाल तक उनके अदभुत प्रेम का आनंद लें।

प्रार्थना

प्रभु, मैं धन्यवाद करता हूँ, आपकी असाधारण उदारता के लिए। मैं प्रार्थना करता हूँ कि मैं कभी भी उनसे ईर्ष्यालु ना बनूं जिन्हें आप मुझसे अधिक आशीष देते हैं। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि मैं यह जानता हूँ कि मुझसे अभी और सदा के लिए प्रेम किया गया है ।

जूना करार

अय्यूब 11:1-14:22

सोपर का अय्यूब से कथन

11इस पर नामात नामक प्रदेश के सोपर ने अय्यूब को उत्तर देते हुये कहा,

2 “इस शब्दों के प्रवाह का उत्तर देना चाहिये।
 क्या यह सब कहना अय्यूब को निर्दोंष ठहराता है? नहीं!
3 अय्यूब, क्या तुम सोचते हो कि
 हमारे पास तुम्हारे लिये उत्तर नहीं है?
 क्या तुम सोचते हो कि जब तुम परमेश्वर पर
 हंसते हो तो कोई तुम्हें चेतावनी नहीं देगा।
4 अय्यूब, तुम परमेश्वर से कहते रहे कि,
 ‘मेरा विश्वास सत्य है
 और तू देख सकता है कि मैं निष्कलंक हूँ!’
5 अय्यूब, मेरी ये इच्छा है कि परमेश्वर तुझे उत्तर दे,
 यह बताते हुए कि तू दोषपूर्ण है!
6 काश! परमेश्वर तुझे बुद्धि के छिपे रहस्य बताता
 और वह सचमुच तुझे उनको बतायेगा! हर कहानी के दो पक्ष होते हैं,
 अय्यूब, मेरी सुन परमेश्वर तुझे कम दण्डित कर रहा है,
 अपेक्षाकृत जितना उसे सचमुच तुझे दण्डित करना चाहिये।

7 “अय्यूब, क्या तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रहस्यपूर्ण सत्य समझ सकते हो?
 क्या तुम उसके विवेक की सीमा मर्यादा समझ सकते हो?
8 उसकी सीमायें आकाश से ऊँची है,
 इसलिये तुम नहीं समझ सकते हो!
 सीमायें नर्क की गहराईयों से गहरी है,
 सो तू उनको समझ नहीं सकता है!
9 वे सीमायें धरती से व्यापक हैं,
 और सागर से विस्तृत हैं।

10 “यदि परमेश्वर तुझे बंदी बनाये और तुझको न्यायालय में ले जाये,
 तो कोई भी व्यक्ति उसे रोक नहीं सकता है।
11 परमेश्वर सचमुच जानता है कि कौन पाखण्डी है।
 परमेश्वर जब बुराई को देखता है, तो उसे याद रखता है।
12 किन्तु कोई मूढ़ जन कभी बुद्धिमान नहीं होगा,
 जैसे बनैला गधा कभी मनुष्य को जन्म नहीं दे सकता है।
13 सो अय्यूब, तुझको अपना मन तैयार करना चाहिये, परमेश्वर की सेवा करने के लिये।
 तुझे अपने निज हाथों को प्रार्थना करने को ऊपर उठाना चाहिये।
14 वह पाप जो तेरे हाथों में बसा है, उसको तू दूर कर।
 अपने तम्बू में बुराई को मत रहने दे।
15 तभी तू निश्चय ही बिना किसी लज्जा के आँख ऊपर उठा कर परमेश्वर को देख सकता है।
 तू दृढ़ता से खड़ा रहेगा और नहीं डरेगा।
16 अय्यूब, तब तू अपनी विपदा को भूल पायेगा।
 तू अपने दुखड़ो को बस उस पानी सा याद करेगा जो तेरे पास से बह कर चला गया।
17 तेरा जीवन दोपहर के सूरज से भी अधिक उज्जवल होगा।
 जीवन की अँधेरी घड़ियाँ ऐसे चमकेगी जैसे सुबह का सूरज।
18 अय्यूब, तू सुरक्षित अनुभव करेगा क्योंकि वहाँ आशा होगी।
 परमेश्वर तेरी रखवाली करेगा और तुझे आराम देगा।
19 चैन से तू सोयेगा, कोई तुझे नहीं डरायेगा
 और बहुत से लोग तुझ से सहायता माँगेंगे!
20 किन्तु जब बुरे लोग आसरा ढूढेंगे तब उनको नहीं मिलेगा।
 उनके पास कोई आस नहीं होगी।
 वे अपनी विपत्तियों से बच कर निकल नहीं पायेंगे।
 मृत्यु ही उनकी आशा मात्र होगी।”

सोपर को अय्यूब का उत्तर

12फिर अय्यूब ने सोपर को उत्तर दिया:

2 “निःसन्देह तुम सोचते हो कि मात्र
 तुम ही लोग बुद्धिमान हो,
 तुम सोचते हो कि जब तुम मरोगे तो
 विवेक मर जायेगा तुम्हारे साथ।
3 किन्तु तुम्हारे जितनी मेरी बुद्धि भी उत्तम है,
 मैं तुम से कुछ घट कर नहीं हूँ।
 ऐसी बातों को जैसी तुम कहते हो,
 हर कोई जानता है।

4 “अब मेरे मित्र मेरी हँसी उड़ाते हैं,
 वह कहते है: ‘हाँ, वह परमेश्वर से विनती किया करता था, और वह उसे उत्तर देता था।
 इसलिए यह सब बुरी बातें उसके साथ घटित हो रही है।’
 यद्यपि मैं दोषरहित और खरा हूँ, लेकिन वे मेरी हँसी उड़ाते हैं।
5 ऐसे लोग जिन पर विपदा नहीं पड़ी, विपदाग्रस्त लोगों की हँसी किया करते हैं।
 ऐसे लोग गिरते हुये व्यक्ति को धक्का दिया करते हैं।
6 डाकुओं के डेरे निश्चिंत रहते हैं,
 ऐसे लोग जो परमेश्वर को रुष्ट करते हैं, शांति से रहते हैं।
 स्वयं अपने बल को वह अपना परमेश्वर मानते हैं।

7 “चाहे तू पशु से पूछ कर देख, वे तुझे सिखादेंगे,
 अथवा हवा के पक्षियों से पूछ वे तुझे बता देंगे।
8 अथवा तू धरती से पूछ ले वह तुझको सिखा देगी
 या सागर की मछलियों को अपना ज्ञान तुझे बताने दे।
9 हर कोई जानता है कि परमेश्वर ने इन सब वस्तुओं को रचा है।
10 हर जीवित पशु और हर एक प्राणी जो साँस लेता है,
 परमेश्वर की शक्ति के अधीन है।
11 जैसे जीभ भोजन का स्वाद चखती है,
 वैसी ही कानों को शब्दों को परखना भाता है।
12 हम कहते है, “ऐसे ही बूढ़ों के पास विवेक रहता है और लम्बी आयु समझ बूझ देती है।”
13 विवेक और सामर्थ्य परमेश्वर के साथ रहते है, सम्मत्ति और सूझ—बूझ उसी की ही होती है।
14 यदि परमेश्वर किसी वस्तु को ढा गिराये तो, फिर लोग उसे नहीं बना सकते।
 यदि परमेश्वर किसी व्यक्ति को बन्दी बनाये, तो लोग उसे मुक्त नहीं कर सकते।
15 यदि परमेश्वर वर्षा को रोके तो धरती सूख जायेगी।
 यदि परमेश्वर वर्षा को छूट दे दे, तो वह धरती पर बाढ़ ले आयेगी।
16 परमेश्वर समर्थ है और वह सदा विजयी होता है।
 वह व्यक्ति जो छलता है और वह व्यक्ति जो छला जाता है दोनो परमेश्वर के हैं।
17 परमेश्वर मन्त्रियों को बुद्धि से वंचित कर देता है,
 और वह प्रमुखों को ऐसा बना देता है कि वे मूर्ख जनों जैसा व्यवहार करने लगते हैं।
18 राजा बन्दियों पर जंजीर डालते हैं किन्तु उन्हें परमेश्वर खोल देता है।
 फिर परमेश्वर उन राजाओं पर एक कमरबन्द बांध देता है।
19 परमेश्वर याजकों को बन्दी बना कर, पद से हटाता है और तुच्छ बना कर ले जाता है।
 वह बलि और शक्तिशाली लोगों को शक्तिहीन कर देता है।
20 परमेश्वर विश्वासपात्र सलाह देनेवाले को चुप करा देता है।
 वह वृद्ध लोगों का विवेक छीन लेता है।
21 परमेश्वर महत्वपूर्ण हाकिमों पर घृणा उंडेल देता है।
 वह शासकों की शक्ति छीन लिया करता है।
22 परमेश्वर गहन अंधकार से रहस्यपूर्ण सत्य को प्रगट करता है।
 ऐसे स्थानों में जहाँ मृत्यु सा अंधेरा है वह प्रकाश भेजता है।
23 परमेश्वर राष्ट्रों को विशाल और शक्तिशाली होने देता है,
 और फिर उनको वह नष्ट कर डालता है।
 वह राष्ट्रों को विकसित कर विशाल बनने देता है,
 फिर उनके लोगों को वह तितर—बितर कर देता है।
24 परमेश्वर धरती के प्रमुखों को मूर्ख बना देता है, और उन्हें नासमझ बना देता है।
 वह उनको मरुभूमि में जहाँ कोई राह नहीं भटकने को भेज देता है।
25 वे प्रमुख अंधकार के बीच टटोलते हैं, कोई भी प्रकाश उनके पास नहीं होता है।
 परमेश्वर उनको ऐसे चलाता है, जैसे पी कर धुत्त हुये लोग चलते हैं।

13अय्यूब ने कहा:

“मेरी आँखों ने यह सब पहले देखा है
 और पहले ही मैं सुन चुका हूँ जो कुछ तुम कहा करते हो।
 इस सब की समझ बूझ मुझे है।
2 मैं भी उतना ही जानता हूँ जितना तू जानता है,
 मैं तुझ से कम नहीं हूँ।
3 किन्तु मुझे इच्छा नहीं है कि मैं तुझ से तर्क करूँ,
 मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर से बोलना चाहता हूँ।
 अपने संकट के बारे में, मैं परमेश्वर से तर्क करना चाहता हूँ।
4 किन्तु तुम तीनो लोग अपने अज्ञान को मिथ्या विचारों से ढकना चाहते हो।
 तुम वो बेकार के चिकित्सक हो जो किसी को अच्छा नहीं कर सकता।
5 मेरी यह कामना है कि तुम पूरी तरह चुप हो जाओ,
 यह तुम्हारे लिये बुद्धिमत्ता की बात होगी जिसको तुम कर सकते हो!

6 “अब, मेरी युक्ति सुनो!
 सुनो जब मैं अपनी सफाई दूँ।
7 क्या तुम परमेश्वर के हेतु झूठ बोलोगे?
 क्या यह तुमको सचमुच विश्वास है कि ये तुम्हारे झूठ परमेश्वर तुमसे बुलवाना चाहता है
8 क्या तुम मेरे विरुद्ध परमेश्वर का पक्ष लोगे?
 क्या तुम न्यायालय में परमेश्वर को बचाने जा रहे हो?
9 यदि परमेश्वर ने तुमको अति निकटता से जाँच लिया तो
 क्या वह कुछ भी अच्छी बातपायेगा?
 क्या तुम सोचते हो कि तुम परमेश्वर को छल पाओगे,
 ठीक उसी तरह जैसे तुम लोगों को छलते हो?
10 यदि तुम न्यायालय में छिपे छिपे किसी का पक्ष लोगे
 तो परमेश्वर निश्चय ही तुमको लताड़ेगा।
11 उसका भव्य तेज तुमको डरायेगा
 और तुम भयभीत हो जाओगे।
12 तुम सोचते हो कि तुम चतुराई भरी और बुद्धिमत्तापूर्ण बातें करते हो, किन्तु तुम्हारे कथन राख जैसे व्यर्थ हैं।
 तुम्हारी युक्तियाँ माटी सी दुर्बल हैं।

13 “चुप रहो और मुझको कह लेने दो।
 फिर जो भी होना है मेरे साथ हो जाने दो।
14 मैं स्वयं को संकट में डाल रहा हूँ
 और मैं स्वयं अपना जीवन अपने हाथों में ले रहा हूँ।
15 चाहे परमेश्वर मुझे मार दे।
 मुझे कुछ आशा नहीं है, तो भी मैं अपना मुकदमा उसके सामने लड़ूँगा।
16 किन्तु सम्भव है कि परमेश्वर मुझे बचा ले, क्योंकि मैं उसके सामने निडर हूँ।
 कोई भी बुरा व्यक्ति परमेश्वर से आमने सामने मिलने का साहस नहीं कर सकता।
17 उसे ध्यान से सुन जिसे मैं कहता हूँ,
 उस पर कान दे जिसकी व्याख्या मैं करता हूँ।
18 अब मैं अपना बचाव करने को तैयार हूँ।
 यह मुझे पता है कि
 मुझको निर्दोष सिद्ध किया जायेगा।
19 कोई भी व्यक्ति यह प्रमाणित नहीं कर सकता कि मैं गलत हूँ।
 यदि कोई व्यक्ति यह सिद्ध कर दे तो मैं चुप हो जाऊँगा और प्राण दे दूँगा।

20 “हे परमेश्वर, तू मुझे दो बाते दे दे,
 फिर मैं तुझ से नहीं छिपूँगा।
21 मुझे दण्ड देना और डराना छोड़ दे,
 अपने आतंको से मुझे छोड़ दे।
22 फिर तू मुझे पुकार और मैं तुझे उत्तर दूँगा,
 अथवा मुझको बोलने दे और तू मुझको उत्तर दे।
23 कितने पाप मैंने किये हैं?
 कौन सा अपराध मुझसे बन पड़ा?
 मुझे मेरे पाप और अपराध दिखा।
24 हे परमेश्वर, तू मुझसे क्यों बचता है?
 और मेरे साथ शत्रु जैसा व्यवहार क्यों करता है?
25 क्या तू मुझको डरायेगा?
 मैं (अय्यूब) एक पत्ता हूँ जिसके पवन उड़ाती है।
 एक सूखे तिनके पर तू प्रहार कर रहा है।
26 हे परमेश्वर, तू मेरे विरोध में कड़वी बात बोलता है।
 तू मुझे ऐसे पापों के लिये दु:ख देता है जो मैंने लड़कपन में किये थे।
27 मेरे पैरों में तूने काठ डाल दिया है, तू मेरे हर कदम पर आँख गड़ाये रखता है।
 मेरे कदमों की तूने सीमायें बाँध दी हैं।
28 मैं सड़ी वस्तु सा क्षीण होता जाता हूँ
 कीड़ें से खाये हुये
 कपड़े के टुकड़े जैसा।”

14अय्यूब ने कहा,

“हम सभी मानव है
 हमारा जीवन छोटा और दु:खमय है!
2 मनुष्य का जीवन एक फूल के समान है
 जो शीघ्र उगता है और फिर समाप्त हो जाता है।
 मनुष्य का जीवन है जैसे कोई छाया जो थोड़ी देर टिकती है और बनी नहीं रहती।
3 हे परमेश्वर, क्या तू मेरे जैसे मनुष्य पर ध्यान देगा?
 क्या तू मेरा न्याय करने मुझे सामने लायेगा?

4 “किसी ऐसी वस्तु से जो स्वयं अस्वच्छ है स्वच्छ वस्तु कौन पा सकता है? कोई नहीं।
5 मनुष्य का जीवन सीमित है।
 मनुष्य के महीनों की संख्या परमेश्वर ने निश्चित कर दी है।
 तूने मनुष्य के लिये जो सीमा बांधी है, उसे कोई भी नहीं बदल सकता।
6 सो परमेश्वर, तू हम पर आँख रखना छोड़ दे। हम लोगों को अकेला छोड़ दे।
 हमें अपने कठिन जीवन का मजा लेने दे, जब तक हमारा समय नहीं समाप्त हो जाता।

7 “किन्तु यदि वृक्ष को काट गिराया जाये तो भी आशा उसे रहती है कि
 वह फिर से पनप सकता है,
 क्योंकि उसमें नई नई शाखाऐं निकलती रहेंगी।
8 चाहे उसकी जड़े धरती में पुरानी क्यों न हो जायें
 और उसका तना चाहे मिट्टी में गल जाये।
9 किन्तु जल की गंध मात्र से ही वह नई बढ़त देता है
 और एक पौधे की तरह उससे शाखाऐं फूटती हैं।
10 किन्तु जब बलशाली मनुष्य मर जाता है
 उसकी सारी शक्ति खत्म हो जाती है। जब मनुष्य मरता है वह चला जाता है।
11 जैसे सागर के तट से जल शीघ्र लौट कर खो जाता है
 और जल नदी का उतरता है, और नदी सूख जाती है।
12 उसी तरह जब कोई व्यक्ति मर जाता है वह नीचे लेट जाता है
 और वह महानिद्रा से फिर खड़ा नहीं होता। वैसे ही वह व्यक्ति जो प्राण त्यागता है
 कभी खड़ा नहीं होता अथवा चिर निद्रा नहीं त्यागता जब तक आकाश विलुप्त नहीं होंगे।

13 “काश! तू मुझे मेरी कब्र में मुझे छुपा लेता
 जब तक तेरा क्रोध न बीत जाता।
 फिर कोई समय मेरे लिये नियुक्त करके तू मुझे याद करता।
14 यदि कोई मनुष्य मर जाये तो क्या जीवन कभी पायेगा?
 मैं तब तक बाट जोहूँगा, जब तक मेरा कर्तव्य पूरा नहीं हो जाता और जब तक मैं मुक्त न हो जाऊँ।
15 हे परमेश्वर, तू मुझे बुलायेगा
 और मैं तुझे उत्तर दूँगा।
 तूने मुझे रचा है, सो तू मुझे चाहेगा।
16 फिर तू मेरे हर चरण का जिसे मैं उठाता हूँ, ध्यान रखेगा
 और फिर तू मेरे उन पापों पर आँख रखेगा, जिसे मैंने किये हैं।
17 काश! मेरे पाप दूर हो जाएँ। किसी थैले में उन्हें बन्द कर दिया जाये
 और फिर तू मेरे पापों को ढक दे।

18 “जैसे पर्वत गिरा करता है और नष्ट हो जाता है
 और कोई चट्टान अपना स्थान छोड़ देती है।
19 जल पत्थरों के ऊपर से बहता है और उन को घिस डालता है
 तथा धरती की मिट्टी को जल बहाकर ले जाती है।
 हे परमेश्वर, उसी तरह व्यक्ति की आशा को तू बहा ले जाता है।
20 तू एक बार व्यक्ति को हराता है
 और वह समाप्त हो जाता है।
 तू मृत्यु के रूप सा उसका मुख बिगाड़ देता है,
 और सदा सदा के लिये कहीं भेज देता है।
21 यदि उसके पुत्र कभी सम्मान पाते हैं तो उसे कभी उसका पता नहीं चल पाता।
 यदि उसके पुत्र कभी अपमान भोगतें हैं, जो वह उसे कभी देख नहीं पाता है।
22 वह मनुष्य अपने शरीर में पीड़ा भोगता है
 और वह केवल अपने लिये ऊँचे पुकारता है।”

समीक्षा

कठिन दिनों के द्वारा उनके अनोखे प्रेम को पकड़े रहें।

अय्यूब लंबे समय के अत्यधिक कष्ट के समय, परमेश्वर के अनोखे प्रेम को पकड़े रहे थे। वे कहते हैं ‘अगर वह मुझे घात करे, तौभी मुझे उसी में आशा है’ (पद - 13:15)।

हालाँकि अय्यूब ने दोषरहित और खरा जीवन बिताया है, परमेश्वर से डरते हुए, दुष्ट से बचते हुए (1:1), फिर भी वह सिद्ध नहीं था। वे यहाँ कहते हैं, मेरी जवानी के पाप, (13:26) और कहते हैं ‘मेरे अपराध छाप लगी हुई थैली में हैं, तूने मेरे अधर्म को सी रखा है’ (पद - 14:17)।

अय्यूब के मित्रों ने जो गलती की, उसके संघर्ष का उसके पाप से संबंध है। इस पथ में हम देखेते हैं कि अय्यूब की निराशा उनके मित्रों के साथ बढ़ती जा रही थी। वे ‘पाप’ के विषय में जारी रहते हैं (11:64) और अय्यूब पर प्रभावशाली दोष लगाते हैं (पद - 5)। वे सभी तुच्छ बातें करते हैं जो किसी भी प्रकार की सच्ची सांत्वना नहीं देती हैं।

अंत में अय्यूब मुड़कर उत्तर देते हैं ‘परंतु तुम्हारी तरह मुझ में भी समझ है, मैं तुम लोगों से कुछ नीचा नहीं हूँ कौन ऐसा है जो ऐसी बातें ना जानता हो? (12:3) जो कुछ तुम जानते हो वह मैं भी जानता हूँ (13:2)। वह उनकी ओर इशारा करते हैं कि उनकी अच्छी नीति यही होती कि वे कुछ ना कहें: ‘अगर तुम सब बिलकुल चुप रहते! तो इससे बुद्धिमान ठहरते’ (पद - 5)

हमें इसी प्रकार की बुद्धि की आवश्यक्ता है जब लोग संघर्ष कर रहे हों, तब हम चिकनी - चुपड़ी तुच्छ बातें ना करें, लेकिन सुनिश्चित करें कि हम परमेश्वर के अद्भुत प्रेम को हमारे व्यवहारों के द्वारा दर्शा रहे हैं और हम जो कह रहे हैं उसमें बहुत सतर्क हैं।

अय्यूब का स्वभाव उसके मित्रों से बढ़कर कहीं अधिक स्वस्थ था। अपने अत्याधिक संघर्षों में उसने अकेलेपन के भाव को अनुभव किया और परमेश्वर की ओर रोकर कहा कि, ‘तू ने अपना मुख क्यों छुपाया है?’ (पद - 24) सी. एस. लेवीस की पत्नी की मृत्यु के पश्चात उन्होंने एक पुस्तक लिखी, द ग्रीफ ओबसर्व्ड। इस पुस्तक में, वे अपने अनुभव को ऐसे वर्णित करते हैं ‘जैसे एक द्वार हमारे मुख पर ज़ोर से बंद हुआ हो’।

फिर भी, इन सभी के मध्य, अय्यूब परमेश्वर से कह रहे थे, ‘यदि वे मुझे मार भी डालेंगे, मैं उनपर ही आशा रखूँगा’ (पद - 15 एम.एस.जी.)। वे यह जानते थे कि गहरी निराशा के मध्य परमेश्वर पर विश्वास करना पर्याप्त है।

यह जानना और विश्वास करना कि आपके जीवन की लंबाई अंत में परमेश्वर निर्धारित करेंगे और ‘महीनों की संख्या पूरी तरह नियंत्रण में है’ और कोई भी ‘उनके निर्धारित समय को पार नहीं कर सकता है’ (पद - 15:5 एम.एस.जी.)।

एक ही समय पर, अय्यूब को प्रतीत हो रहा था कि कब्र से परे जीवन की एक झलक देखें — कि कुछ भी, यहाँ तक कि मृत्यु भी नहीं है, जो आपको परमेश्वर के अद्भुत प्रेम से अलग कर सके: यदि हम मानव मर जाएँ, क्या हम फिर से जीएँगे? मेरा यही प्रश्न है। इन सभी कठिनाइयों के दिनों में: मैं आशा रखूँगा, और आखिरी परिवर्तन का इंतज़ार करूँगा — ‘पुनरुत्थान के लिए!’ (पद - 14 एम.एस.जी.; 19:25 के आगे भी देखें)

आप और मैं अय्यूब की तुलना में बहुत ही धनी हैं, क्योंकि हम क्रूस और यीशु के पुनरुत्थान को जानते हैं और परमेश्वर की उपस्थिति में हमें अनंतकाल की आशा है — उनके महान प्रेम पर सदा के लिए आश्चर्य करते रहना।

जैसा कि अय्यूब की कहानी प्रकट करती है, हम देखते हैं कि वह परमेश्वर पर विश्वास करके सही कर रहे हैं। परमेश्वर ने कभी समझाया नहीं कि क्यों उन्होंने अय्यूब को इन सब से होकर गुज़रने की अनुमति दी, लेकिन परमेश्वर के प्रेम पर अय्यूब का आत्म विश्वास दोषमुक्त है। कठिनाइयों के मध्य जैसे भी हो ‘हमें महान अद्भुत प्रेम को पकड़े रहना है’। (भजन संहिता 17:7)

प्रार्थना

प्रभु, मैं धन्यवाद करता हूँ कि ऐसी बहुत सी बातें इस संसार में हैं जिन्हें मैं नहीं समझता, मैं आपके महान प्रेम में विश्वास करता हूँ। आप आज, और प्रतिदिन, मेरी सहायता कीजिए कि मैं आपके महान प्रेम पर आश्चर्य करना जारी रख सकूँ।

पिप्पा भी कहते है

‘जो पीछे हैं वे आगे किये जाएंगे और जो आगे हैं वे पीछे किये जाएंगे’।

मैंने इस वचन को कई बार इस विषय से हटकर बताया है। जब बच्चे छोटे थे और दौड़ प्रतियोगिता में हार जाते थे या परीक्षा में या किसी प्रतिस्पर्धा में अच्छा नहीं करते थे, तो मैं इसे दोहराती थी, ‘जो पीछे हैं वे आगे किये जाएंगे और जो आगे हैं वे पीछे किये जाएंगे’। यह एक तरह का मज़ाक था, लेकिन यह याद भी दिलाता है कि हम सफलता, उपलब्धि, और सबसे ऊपर आने को कितना महत्त्व देते हैं – जिसे शायद स्वर्ग राज्य में इतना मूल्य नहीं दिया जाएगा।

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संदर्भ

नोट्स:

सी.एस. लेविस, ए ग्रीफ ऑब्जर्व्ड, (फेबर एंड फेबर, 2013).

जिन वचनों को (एएमपी) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है. (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित।’एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

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