परमेश्वर के लिए अपने शब्दों का उपयोग करना
परिचय
यदि आप वैज्ञानिक शब्दों को शामिल करें, तो अँग्रेज़ी भाषा में 1,000,000 से भी ज़्यादा शब्द हैं। औसतन एक व्यक्ति 20,000 शब्दों को जानता है और एक सप्ताह में 2,000 अलग - अलग शब्दों का उपयोग करता है। स्त्री और पुरूष एक दिन में औसतन 16,000 शब्द बोलते हैं।
आपके शब्द मायने रखते हैं, सबसे ज़्यादा महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि आप कितने शब्द बोलते हैं, बल्कि आप किस तरह के शब्दों को चुनते हैं और आप किस उद्देश्य से इन शब्दों का उपयोग करते हैं। आज के लेखांशों में, हम देखेंगे कि आपके शब्दों का उपयोग कैसे किया जा सकता है, जैसे कि प्रेरित याकूब ने बताया है, भलाई के लिए या बुराई के लिए। हर दिन आपके पास एक बड़ी क्षमता होती है: या तो नाश करने के लिए या बनाने के लिए।
आज के लेखांश में हम भलाई के लिए, आपके शब्दों का उपयोग करने की छ: कुंजियाँ देखेंगे।
नीतिवचन 4:1-9
विवेक का महत्व
4हे मेरे पुत्रों, एक पिता की शिक्षा को सुनों
उस पर ध्यान दो और तुम समझ बूझ पा लो!
2 मैं तुम्हें गहन—गम्भीर ज्ञान देता हूँ।
मेरी इस शिक्षा का त्याग तुम मत करना।
3 जब मैं अपने पिता के घर एक बालक था
और माता का अति कोमल एक मात्र शिशु था,
4 मुझे सिखाते हुये उसने कहा था—
मेरे वचन अपने पूर्ण मन से थामे रह।
मेरे आदेश पाल तो तू जीवन रहेगा।
5 तू बुद्धि प्राप्त कर और समझ बूझ प्राप्त कर!
मेरे वचन मत भूल और उनसे मत डिग।
6 बुद्धि मत त्याग वह तेरी रक्षा करेगी,
उससे प्रेम कर वह तेरा ध्यान रखेगी।
7 “बुद्धि का आरम्भ ये है: तू बुद्धि प्राप्त कर,
चाहे सब कुछ दे कर भी तू उसे प्राप्त कर! तू समझबूझ प्राप्त कर।
8 तू उसे महत्व दे, वह तुझे ऊँचा उठायेगी,
उसे तू गले लगा ले वह तेरा मान बढ़ायेगी।
9 वह तेरे सिर पर शोभा की माला धरेगी
और वह तुझे एक वैभव का मुकुट देगी।”
समीक्षा
1. बुद्धि के वचन सुनें
मैं अपने जीवन के अंत में पीछे देखकर पछताना नहीं चाहता उन निर्णयों के लिए जो मैंने किये थे। बुद्धि आपको अभी ऐसे निर्णय लेने में मदद करती है जिससे आप बाद में खुश रहेंगे।
इस लेखांश में हम बुद्धि के वचन सीखने और दूसरों को सिखाने का महत्त्व देखेंगे: 'तेरा मन मेरे वचन पर लगा रहे…. उन को भूल न जाना, न मेरी बातों को छोड़ना' (पद - 4-5)। सीखने की इच्छा रखना बुद्धिमानी का मूल है। हालाँकि इसमें कड़ी मेहनत की ज़रूरत है, लेकिन यह अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है: 'जो कुछ तू प्राप्त करे उसे प्राप्त तो कर परन्तु समझ की प्राप्ति का यत्न घटने न पाए' (पद - 7ब)।
बड़ों से सीखने के लिए, यहाँ पर छोटों पर ध्यान दिया जा रहा है। एक पिता अपने बेटों को सिखाता है: ' हे मेरे पुत्रो, पिता की शिक्षा सुनो…..' (पद - 1)। बच्चों को प्रोत्साहित किया जाता है कि वे अपने माता - पिता से ज़्यादा से ज़्यादा सीखें। और माता-पिता की यह ज़िम्मेदारी है कि वे अपने बच्चों को अपना ज़्यादा से ज़्यादा ज्ञान बाटें।
हमें जीवन भर सीखने को महत्त्व देना ज़रूरी है, 'तू उसकी बड़ाई कर, वह तुझ को बढ़ाएगी' (पद - 8)। जैसा कि मेरे दादा कहा करते थे, 'जिस दिन मैं सीखना बंद कर दूँ, मैं मरना चाहूँगा।'
बुद्दि के वचन सिर्फ सुनना ही पर्याप्त नहीं है; उनके अनुसार जीना भी ज़रूरी है (पद - 2,4,5ब)। परमेश्वर के वचन को व्यवहार में लाएं और आप बुद्धि प्राप्त करेंगे।
यदि आप यह बुद्धि और समझ प्राप्त करें, 'तब वह तेरी महिमा करेगी। वह तेरे सिर पर शोभायमान भूषण बान्धेगी; और तुझे सुन्दर मुकुट देगी' (पद - 8-9)।
प्रार्थना
प्रभु, बुद्धि के वचन पढ़ने और सुनने और इसे अपने जीवन में व्यवयहार में लाने के द्वारा, मुझे बढ़ने में मदद कीजिये।
मत्ती 24:1-31
यीशु द्वारा मन्दिर के विनाश की भविष्यवाणी
24मन्दिर को छोड़ कर यीशु जब वहाँ से होकर जा रहा था तो उसके शिष्य उसे मन्दिर के भवन दिखाने उसके पास आये। 2 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “तुम इन भवनों को सीधे खड़े देख रहे हो? मैं तुम्हें सच बताता हूँ, यहाँ एक पत्थर पर दूसरा पत्थर टिका नहीं रहेगा। एक एक पत्थर गिरा दिया जायेगा।”
3 यीशु जब जैतून पर्वत पर बैठा था तो एकांत में उसके शिष्य उसके पास आये और बोले, “हमें बता यह कब घटेगा? जब तू वापस आयेगा और इस संसार का अंत होने को होगा तो कैसे संकेत प्रकट होंगे?”
4 उत्तर में यीशु ने उनसे कहा, “सावधान! तुम लोगों को कोई छलने न पाये। 5 मैं यह इसलिए कह रहा हूँ कि ऐसे बहुत से हैं जो मेरे नाम से आयेंगे और कहेंगे ‘मैं मसीह हूँ’ और वे बहुतों को छलेंगे। 6 तुम पास के युद्धों की बातें या दूर के युद्धों की अफवाहें सुनोगे पर देखो तुम घबराना मत! ऐसा तो होगा ही किन्तु अभी अंत नहीं आया है। 7 हर एक जाति दूसरी जाति के विरोध में और एक राज्य दूसरे राज्य के विरोध में खड़ा होगा। अकाल पड़ेंगें। हर कहीं भूचाल आयेंगे। 8 किन्तु ये सब बातें तो केवल पीड़ाओं का आरम्भ ही होगा।
9 “उस समय वे तुम्हें दण्ड दिलाने के लिए पकड़वायेंगे, और वे तुम्हें मरवा डालेंगे। क्योंकि तुम मेरे शिष्य हो, सभी जातियों के लोग तुमसे घृणा करेंगे। 10 उस समय बहुत से लोगों का मोह टूट जायेगा और विश्वास डिग जायेगा। वे एक दूसरे को अधिकारियों के हाथों सौंपेंगे और परस्पर घृणा करेंगे। 11 बहुत से झूठे नबी उठ खड़े होंगे और लोगों को ठगेंगे। 12 क्योंकि अधर्मता बढ़ जायेगी सो बहुत से लोगों का प्रेम ठंडा पड़ जायेगा। 13 किन्तु जो अंत तक टिका रहेगा उसका उद्धार होगा। 14 स्वर्ग के राज्य का यह सुसमाचार समस्त विश्व में सभी जातियों को साक्षी के रूप में सुनाया जाएगा और तभी अन्त आएगा।
15 “इसलिए जब तुम लोग ‘भयानक विनाशकारी वस्तु को,’ जिसका उल्लेख दानिय्येल नबी द्वारा किया गया था, मन्दिर के पवित्र स्थान पर खड़े देखो।” (पढ़ने वाला स्वयं समझ ले कि इसका अर्थ क्या है) 16 “तब जो लोग यहूदिया में हों उन्हें पहाड़ों पर भाग जाना चाहिये। 17 जो अपने घर की छत पर हों, वह घर से बाहर कुछ भी ले जाने के लिए नीचे न उतरें। 18 और जो बाहर खेतों में काम कर रहें हों, वह पीछे मुड़ कर अपने वस्त्र तक न लें।
19 “उन स्त्रियों के लिये, जो गर्भवती होंगी या जिनके दूध पीते बच्चे होंगे, वे दिन बहुत कष्ट के होंगे। 20 प्रार्थना करो कि तुम्हें सर्दियों के दिनों या सब्त के दिन भागना न पड़े। 21 उन दिनों ऐसी विपत्ति आयेगी जैसी जब से परमेश्वर ने यह सृष्टि रची है, आज तक कभी नहीं आयी और न कभी आयेगी।
22 “और यदि परमेश्वर ने उन दिनों को घटाने का निश्चय न कर लिया होता तो कोई भी न बचता किन्तु अपने चुने हुओं के कारण वह उन दिनों को कम करेगा।
23 “उन दिनों यदि कोई तुम लोगों से कहे, ‘देखो, यह रहा मसीह!’ 24 या ‘वह रहा मसीह’ तो उसका विश्वास मत करना। मैं यह कहता हूँ क्योंकि कपटी मसीह और कपटी नबी खड़े होंगे और ऐसे ऐसे आश्चर्य चिन्ह दिखायेंगे और अदभुत काम करेंगे कि बन पड़े तो वह चुने हुओं को भी चकमा दे दें। 25 देखो मैंने तुम्हें पहले ही बता दिया है।
26 “सो यदि वे तुमसे कहें, ‘देखो वह जंगल में है’ तो वहाँ मत जाना और यदि वे कहें, ‘देखो वह उन कमरों के भीतर छुपा है’ तो उनका विश्वास मत करना। 27 मैं यह कह रहा हूँ क्योंकि जैसे बिजली पूरब में शुरू होकर पश्चिम के आकाश तक कौंध जाती है वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी प्रकट होगा! 28 जहाँ कहीं लाश होगी वहीं गिद्ध इकट्ठे होंगे।
29 “उन दिनों जो मुसीबत पड़ेगी उसके तुरंत बाद:
‘सूरज काला पड़ जायेगा,
चाँद से उसकी चाँदनी नहीं छिटकेगी
आसमान से तारे गिरने लगेंगे
और आकाश में महाशक्तियाँ झकझोर दी जायेंगी।’
30 “उस समय मनुष्य के पुत्र के आने का संकेत आकाश में प्रकट होगा। तब पृथ्वी पर सभी जातियों के लोग विलाप करेंगे और वे मनुष्य के पुत्र को शक्ति और महिमा के साथ स्वर्ग के बादलों में प्रकट होते देखेंगे। 31 वह ऊँचे स्वर की तुरही के साथ अपने दूतों को भेजेगा। फिर वे स्वर्ग के एक छोर से दूसरे छोर तक सब कहीं से अपने चुने हुए लोगों को इकट्ठा करेगा।
समीक्षा
2. यीशु के वचनों को पकड़े रहें
यह दुनिया कब खत्म होगी? यह कैसे खत्म होगी? यहाँ यीशु के वचन शिष्यों के भविष्य के लिए हैं। वह यरूशलेम के पतन के बारे में सवालों का जवाब दे रहे थे, (जो कि ईसा पश्चात 70 में हुआ था), और अंत समय के बारे में (यह प्रश्न मत्ती 24:2 में है)। यह लेखांश पेचीदा लग सकता है, क्योंकि इन दो विषयों को अलग करना मुश्किल है। यीशु का उद्देश्य भविष्य के बारे में सटीक समय बताना नहीं था, बल्कि इस बारे में उनकी मदद करना था कि भविष्य में क्या होगा, इसे लेकर चिंतित या विचलित न हों।
यीशु इस भाग के अंत में कहते हैं (जो आज शुरू होता है और कल खत्म होता है), कि ' आकाश और पृथ्वी टल जाएंगे, परन्तु मेरी बातें कभी न टलेंगी' (पद - 35)। अंत के समय के बारे में बहुत सी अनिश्चितता है। फिर भी, कुछ बातें स्पष्ट हैं:
बहुत से दावे किये जाएंगे (पद - 4-5, 23-26)।
बहुत सी उथल-पुथल, सताव, विभाजन और गिरना होगा (पद - 6-12)।
और बहुतों का प्रेम ठण्डा हो जाएगा (पद - 12)।
जब ऐसा होगा, तब सब लोगों को दिखाई देगा (पद - 27-31)।
यीशु पहली बार कमज़ोर बन कर आए। लेकिन जब वह दूसरी बार आएंगे तो महान सामर्थ के साथ वापस आएंगे (पद - 27, 30-31)।
जब आप यीशु के वापस आने का इंतज़ार कर रहे हैं, तो उनके वचनों को पकड़े रहिये और अपने प्रेम को ठंडा मत होने दीजिये (पद - 12)। उनके लिए अपने प्रेम को गरम रखना बहुत महत्त्वपूर्ण है, अपने पहले प्रेम को याद रखते हुए (प्रकाशितवाक्य 2:4)। जैसा कि जॉयस मेयर लिखती हैं, ‘अपने प्रेम को ठंडा होने न दे। अपने जीवन में प्रेम को बढ़ाएं – अपने जीवन साथी और अपने परिवारवालों, दोस्तों, पड़ोसियों और सहयोगियों के प्रति। दु:खी और ज़रूरतमंद लोगों तक पहुँचें। उनके लिए प्रार्थना करें और उन्हें आशीष दें। इस हद तक बढ़ जाये कि सुबह आपके मन में सबसे पहला विचार यही हो कि आप पूरे दिन में किस - किस को, किस तरह से आशीषित कर सकते हैं।’
3. भविष्यवाणी के शब्दों को परखें
'भविष्यवाणी' पवित्र आत्मा का वरदान है। 'भविष्यवक्ता' के शब्दों को ध्यान से सुनिये। यह लेखांश हमें भविष्यवाणी की सच्चाई के महत्त्व को याद दिलाता है (हालाँकि आधुनिक समय की भविष्यवाणियों में अधिकार का वह स्तर नज़र नहीं आएगा जितना कि पवित्र शास्त्र में नज़र आता है)।
हमें सही और गलत भविष्यवाणी के बीच फर्क जानना ज़रूरी है। यीशु झूठे भविष्यवक्ता के विरूद्ध हमें चेतावनी देते हैं 'बहुत से झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बहुतों को भरमाएंगे' (मत्ती 24:11)। वह हमें सचेत करते हैं कि झूठे नबी हमें यह कह कर भरमाने की कोशिश करेंगे कि 'मैं मसीह हूँ' (पद - 4-5)। लोग कहेंगे, 'देखो, मसीह यहां हैं!' या 'यह मसीह है!' (पद - 23)। तब उन पर यकीन न करने की चेतावनी यीशु हमें देते हैं। वे सब 'झूठे मसीहा हैं और झूठे प्रचारक हैं \[जो\] कहीं से भी उठ खड़े होंगे' (पद - 24, एम.एस.जी.)।
दूसरी तरफ, यीशु सही भविष्यवक्ताओं की पुष्टि करते हैं। वह कहते हैं कि 'भविष्य वक्ता दानिएल द्वारा बोले गए वचन' पूरे होंगे (पद - 15; दानिएल 9:27; 11:31; 12:11 देखें)। वह भविष्यवक्ता यशायाह की पुस्तक से उद्धरण देते हैं (यशायाह 13:10; 34:4 देखें): 'उन दिनों के क्लेश के बाद तुरन्त सूर्य अन्धियारा हो जाएगा, और चाँद का प्रकाश जाता रहेगा, और तारे आकाश से गिर पड़ेंगे और आकाश की शक्तियां हिलाई जाएंगी' (मत्ती 24:29)।
वास्तव में उनके वापस आने का वर्णन (पद - 27 से आगे; खासकर वचन 30 देखें), वह दानिएल द्वारा मसीह संबंधी कही गई भविष्यवाणी का निर्विवाद दावा करते हैं (दानिएल 7:13 देखें)।
4. जीवन बदल देनेवाले वचन बोलें
जब मैं अठ्ठारह साल का था तब यीशु के वचन ने पूरी तरह से मेरा जीवन बदल दिया। तब से मैंने लोगों को, और जीवन बदल देनेवाले उनके संदेश की सामर्थ को, आनंद से देखा और अक्सर अचंभित हुआ।
यीशु के पहली बार आने और दूसरी बार आने के बीच, हमें पूरी दुनिया में जीवन बदल देनेवाले सुसमाचार के संदेश को ले जाने का कार्य सौंपा गया है। 'राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा' (मत्ती 24:14)।
सुसमाचार के वचन शक्तिशाली और जीवन बदल देनेवाले हैं। प्रेरित पौलुस ने लिखा है, 'मैं सुसमाचार से नहीं लजाता, इसलिये कि वह हर एक विश्वास करने वाले के लिये, पहिले तो यहूदी, फिर यूनानी के लिये उद्धार के निमित परमेश्वर की सामर्थ है' (रोमियों 1:16)। सुसमाचार का प्रचार करना कभी न छोड़े। आपका बहुत बड़ा सौभाग्य है कि आपको वचन सौंपा गया है जिसमें शानदार तरीके से लोगों का जीवन बदलने की क्षमता है – इस जीवन के लिए और अनंत जीवन में भी।
प्रार्थना
प्रभु, मैं आपको धन्यवाद देता हूँ कि आपके वचन अनंत हैं। मैं आपको धन्यवाद देता हूँ कि आपने सबसे शक्तिशाली वचनों का उपयोग कर पाने का सौभाग्य मुझे दिया है, यह देखने के लिए कि यीशु के द्वारा दुनिया में लोगों के जीवन बदल रहे हैं। मेरी मदद कीजिये कि मैं ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक इस संदेश को पहुँचाने का हर एक अवसर प्राप्त कर सकूँ।
अय्यूब 35:1-37:24
35एलीहू कहता चला गया। वह बोला:
2 “अय्यूब, यह तेरे लिये कहना उचित नहीं की
‘मैं अय्यूब, परमेश्वर के विरुद्ध न्याय पर है।’
3 अय्यूब, तू परमेश्वर से पूछता है कि
‘हे परमेश्वर, मेरा पाप तुझे कैसे हानि पहुँचाता है?
और यदि मैं पाप न करुँ तो कौन सी उत्तम वस्तु मुझको मिल जाती है?’
4 “अय्यूब, मैं (एलीहू) तुझको और तेरे मित्रों को जो यहाँ तेरे साथ हैं उत्तर देना चाहता हूँ।
5 अय्यूब! ऊपर देख
आकाश में दृष्टि उठा कि बादल तुझसे अधिक उँचें हैं।
6 अय्यूब, यदि तू पाप करें तो परमेश्वर का कुछ नहीं बिगड़ता,
और यदि तेरे पाप बहुत हो जायें तो उससे परमेश्वर का कुछ नहीं होता।
7 अय्यूब, यदि तू भला है तो इससे परमेश्वर का भला नहीं होता,
तुझसे परमेश्वर को कुछ नहीं मिलता।
8 अय्यूब, तेरे पाप स्वयं तुझ जैसे मनुष्य को हानि पहुँचाते हैं,
तेरे अच्छे कर्म बस तेरे जैसे मनुष्य का ही भला करते हैं।
9 “लोगों के साथ जब अन्याय होता है और बुरा व्यवहार किया जाता है,
तो वे मदद को पुकारते हैं, वे बड़े बड़ों की सहायता पाने को दुहाई देते हैं।
10 किन्तु वे परमेश्वर से सहायता नहीं माँगते।
वे नही कहते हैं कि, ‘परमेश्वर जिसने हम को रचा है वह कहाँ है? परमेश्वर जो हताश जन को आशा दिया करता है वह कहाँ है?’
11 वे ये नहीं कहा करते कि,
‘परमेश्वर जिसने पशु पक्षियों से अधिक बुद्धिमान मनुष्य को बनाया है वह कहाँ है?’
12 “किन्तु बुरे लोग अभिमानी होते है,
इसलिये यदि वे परमेश्वर की सहायता पाने को दुहाई दें तो उन्हें उत्तर नहीं मिलता है।
13 यह सच है कि परमेश्वर उनकी व्यर्थ की दुहाई को नहीं सुनेगा।
सर्वशक्तिशाली परमेश्वर उन पर ध्यान नहीं देगा।
14 अय्यूब, इसी तरह परमेश्वर तेरी नहीं सुनेगा,
जब तू यह कहता है कि वह तुझको दिखाई नहीं देता
और तू उससे मिलने के अवसर की प्रतीक्षा में है,
और यह प्रमाणित करने की तू निर्दोष है।
15 “अय्यूब, तू सोचता है कि परमेश्वर दुष्टों को दण्ड नहीं देता है
और परमेश्वर पाप पर ध्यान नहीं देता है।
16 इसलिये अय्यूब निज व्यर्थ बातें करता रहता है।
अय्यूब ऐसा व्यवहार कर रहा है कि जैसे वह महत्वपूर्ण है।
किन्तु यह देखना कितना सरल है कि अय्यूब नहीं जानता कि वह क्या कह रहा है।”
36एलीहू ने बात जारी रखते हुए कहा:
2 “अय्यूब, मेरे साथ थोड़ी देर और धीरज रख।
मैं तुझको दिखाऊँगा की परमेश्वर के पक्ष में अभी कहने को और है।
3 मैं अपने ज्ञान को सबसे बाटूँगा।
मुझको परमेश्वर ने रचा है।
मैं जो कुछ भी जानता हूँ मैं उसका प्रयोग तुझको यह दिखाने के लिये करूँगा कि परमेश्वर निष्पक्ष है।
4 अय्यूब, तू यह निश्चय जान कि जो कुछ मैं कहता हूँ, वह सब सत्य है।
मैं बहुत विवेकी हूँ और मैं तेरे साथ हूँ।
5 “परमेश्वर शक्तिशाली है
किन्तु वह लोगों से घृणा नहीं करता है।
परमेश्वर सामर्थी है
और विवेकपूर्ण है।
6 परमेश्वर दुष्ट लोगों को जीने नहीं देगा
और परमेश्वर सदा दीन लोगों के साथ खरा व्यवहार करता है।
7 वे लोग जो उचित व्यवहार करते हैं, परमेश्वर उनका ध्यान रखता है।
वह राजाओं के साथ उन्हें सिंहासन देता है और वे सदा आदर पाते हैं।
8 किन्तु यदि लोग दण्ड पाते हों और बेड़ियों में जकड़े हों।
यदि वे पीड़ा भुगत रहे हों और संकट में हो।
9 तो परमेश्वर उनको बतायेगा कि उन्होंने कौन सा बुरा काम किया है।
परमेश्वर उनको बतायेगा कि उन्होंने पाप किये है और वे अहंकारी रहे थे।
10 परमेश्वर उनको उसकी चेतावनी सुनने को विवश करेगा।
वह उन्हें पाप करने को रोकने का आदेश देगा।
11 यदि वे लोग परमेश्वर की सुनेंगे
और उसका अनुसरण करेंगे तो परमेश्वर उनको सफल बनायेगा।
12 किन्तु यदि वे लोग परमेश्वर की आज्ञा नकारेंगे तो वे मृत्यु के जगत में चले जायेंगे,
वे अपने अज्ञान के कारण मर जायेंगे।
13 “ऐसे लोग जिनको परवाह परमेश्वर की वे सदा कड़वाहट से भरे रहे है।
यहाँ तक कि जब परमेश्वर उनको दण्ड देता हैं, वे परमेश्वर से सहारा पाने को विनती नहीं करते।
14 ऐसे लोग जब जवान होंगे तभी मर जायेंगे।
वे अभी भ्रष्ट लोगों के साथ शर्म से मरेंगे।
15 किन्तु परमेश्वर दु:ख पाते लोगों को विपत्तियों से बचायेगा।
परमेश्वर लोगों को जगाने के लिए विपदाएं भेजता है ताकि लोग उसकी सुने।
16 “अय्यूब, परमेश्वर तुझको तेरी विपत्तियों से दूर करके तुझे सहारा देना चाहता है।
परमेश्वर तुझे एक विस्तृत सुरक्षित स्थान देना चाहता है
और तेरी मेज पर भरपूर खाना रखना चाहता है।
17 किन्तु अब अय्यूब, तुझे वैसा ही दण्ड मिल रहा है, जैसा दण्ड मिला करता है दुष्टों को, तुझको परमेश्वर का निर्णय और खरा न्याय जकड़े हुए है।
18 अय्यूब, तू अपनी नकेल धन दौलत के हाथ में न दे कि वह तुझसे बुरा काम करवाये।
अधिक धन के लालच से तू मूर्ख मत बन।
19 तू ये जान ले कि अब न तो तेरा समूचा धन तेरी सहायता कर सकता है और न ही शक्तिशाली व्यक्ति तेरी सहायता कर सकते हैं।
20 तू रात के आने की इच्छा मत कर जब लोग रात में छिप जाने का प्रयास करते हैं।
वे सोचते हैं कि वे परमेश्वर से छिप सकते हैं।
21 अय्यूब, बुरा काम करने से तू सावधान रह।
तुझ पर विपत्तियाँ भेजी गई हैं ताकि तू पाप को ग्रहण न करे।
22 “देख, परमेश्वर की शक्ति उसे महान बनाती है।
परमेश्वर सभी से महानतम शिक्षक है।
23 परमेश्वर को क्या करना है, कोई भी व्यक्ति सको बता नहीं सकता।
कोई भी उससे नहीं कह सकता कि परमेश्वर तूने बुरा किया है।
24 परमेश्वर के कर्मो की प्रशंसा करना तू मत भूल।
लोगों ने गीत गाकर परमेश्वर के कामों की प्रशंसा की है।
25 परमेश्वर के कर्म को हर कोई व्यक्ति देख सकता है।
दूर देशों के लोग उन कर्मों को देख सकते हैं।
26 यह सच है कि परमेश्वर महान है। उस की महिमा को हम नहीं समझ सकते हैं।
परमेश्वर के वर्षो की संख्या को कोई गिन नहीं सकता।
27 “परमेश्वर जल को धरती से उपर उठाता है,
और उसे वर्षा के रूप में बदल देता है।
28 परमेश्वर बादलों से जल बरसाता है,
और भरपूर वर्षा लोगों पर गितरी हैं।
29 कोई भी व्यक्ति नहीं समझ सकता कि परमेश्वर कैसे बादलों को बिखराता है,
और कैसे बिजलियाँ आकाश में कड़कती हैं।
30 देख, परमेश्वर कैसे अपनी बिजली को आकाश में चारों ओर बिखेरता है
और कैसे सागर के गहरे भाग को ढक देता है।
31 परमेश्वर राष्ट्रों को नियंत्रण में रखने
और उन्हें भरपूर भोजन देने के लिये इन बादलों का उपयोग करता है।
32 परमेश्वर अपने हाथों से बिजली को पकड़ लेता है और जहाँ वह चाहता हैं,
वहाँ बिजली को गिरने का आदेश देता है।
33 गर्जन, तूफान के आने की चेतावनी देता है।
यहाँ तक की पशू भी जानते हैं कि तूफान आ रहा है।
37“हे अय्यूब, जब इन बातों के विषय में मैं सोचता हूँ,
मेरा हृदय बहुत जोर से धड़कता है।
2 हर कोई सुनों, परमेश्वर की वाणी बादल की गर्जन जैसी सुनाई देती है।
सुनों गरजती हुई ध्वनि को जो परमेश्वर के मुख से आ रही है।
3 परमेश्वर अपनी बिजली को सारे आकाश से होकर चमकने को भेजता है।
वह सारी धरती के ऊपर चमका करती है।
4 बिजली के कौंधने के बाद परमेश्वर की गर्जन भरी वाणी सुनी जा सकती है।
परमेश्वर अपनी अद्भुत वाणी के साथ गरजता है।
जब बिजली कौंधती है तब परमेश्वर की वाणी गरजती है।
5 परमेश्वर की गरजती हुई वाणी अद्भुत है।
वह ऐसे बड़े कर्म करता है, जिन्हें हम समझ नहीं पाते हैं।
6 परमेश्वर हिम से कहता है,
‘तुम धरती पर गिरो’
और परमेश्वर वर्षा से कहता है,
‘तुम धरती पर जोर से बरसो।’
7 परमेश्वर ऐसा इसलिये करता है कि सभी व्यक्ति जिनको उसने बनाया है
जान जाये कि वह क्या कर सकता है। वह उसका प्रमाण है।
8 पशु अपने खोहों में भाग जाते हैं, और वहाँ ठहरे रहते हैं।
9 दक्षिण से तूफान आते हैं,
और उत्तर से सर्दी आया करती है।
10 परमेश्वर का श्वास बर्फ को रचता है,
और सागरों को जमा देता है।
11 परमेश्वर बादलों को जल से भरा करता है,
और बिजली को बादल के द्वारा बिखेरता है।
12 परमेश्वर बादलों को आने देता है कि वह उड़ कर सब कहीं धरती के ऊपर छा जाये
और फिर बादल वहीं करते हैं जिसे करने का आदेश परमेश्वर ने उन्हें दिया है।
13 परमेश्वर बाढ़ लाकर लोगों को दण्ड देने अथवा धरती को जल देकर
अपना प्रेम दर्शाने के लिये बादलों को भेजता है।
14 “अय्यूब, तू क्षण भर के लिये रुक और सुन।
रुक जा और सोच उन अद्भुत कार्यो के बारे में जिन्हें परमेश्वर किया करता हैं।
15 अय्यूब, क्या तू जानता है कि परमेश्वर बादलों पर कैसे काबू रखता है क्या तू जानता है कि परमेश्वर अपनी बिजली को क्यों चमकाता है
16 क्या तू यह जानता है कि आकाश में बादल कैसे लटके रहते हैं।
ये एक उदाहरण मात्र हैं। परमेश्वर का ज्ञान सम्पूर्ण है और ये बादल परमेश्वर की अद्भुत कृति हैं।
17 किन्तु अय्यूब, तुम ये बातें नहीं जानते।
तुम बस इतना जानते है कि तुमको पसीना आता है और तेरे वस्त्र तुझ से चिपके रहते हैं,
और सब कुछ शान्त व स्थिर रहता है, जब दक्षिण से गर्म हवा आती है।
18 अय्यूब, क्या तू परमेश्वर की मदद आकाश को फैलाने में
और उसे झलकाये गये दर्पण की तरह चमकाने में कर सकता है?
19 “अय्यूब, हमें बता कि हम परमेश्वर से क्या कहें।
हम उससे कुछ भी कहने को सोच नहीं पाते क्योंकि हम पर्याप्त कुछ भी नहीं जानते।
20 क्या परमेश्वर से यह कह दिया जाये कि मैं उस के विरोध में बोलना चाहता हूँ।
यह वैसे ही होगा जैसे अपना विनाश माँगना।
21 देख, कोई भी व्यक्ति चमकते हुए सूर्य को नहीं देख सकता।
जब हवा बादलों को उड़ा देती है उसके बाद वह बहुत उजला और चमचमाता हुआ होता है।
22 और परमेश्वर भी उसके समान है।
परमेश्वर की सुनहरी महिमा चमकती है।
परमेश्वर अद्भुत महिमा के साथ उत्तर से आता है।
23 सर्वशक्तिमान परमेश्वर सचमुच महान है,
हम परमेश्वर को नहीं जान सकते परमेश्वर सदा ही लोगों के साथ न्याय और निष्पक्षता के साथ व्यवहार करता हैं।
24 इसलिए लोग परमेश्वर का आदर करते हैं,
किन्तु परमेश्वर उन अभिमानी लोगों को आदर नहीं देता है जो स्वयं को बुद्धिमान समझते हैं।”
समीक्षा
5. खोखली बातें न करें
एलीहू का अर्ध सत्य और गलत शब्दों से भरा मौखिक आक्रमण जारी रहा। उसने कहा, 'निश्चय मेरी बातें झूठी न होंगी,' (36:4)। जबकि वह झूठी थीं। उसने कहा कि, 'यदि तू ने पाप किया है तो ईश्वर का क्या बिगड़ता है?' (35:6)। वास्तव में, हमारे पापों से परमेश्वर को फर्क पड़ता है जैसा कि हम मसीह के क्रूस में देखते हैं।
उसने अय्यूब के बारे में दृढ़ता से कुछ कहा था, यह अय्यूब के बारे में सच नहीं था, बल्कि खुद के बारे में सच था। उसने कहा, 'इस कारण अय्यूब व्यर्थ मुंह खोल कर अज्ञानता की बातें बहुत बनाता है' (पद - 16)। ('अय्यूब तुम बेहद मूर्खतापूर्ण बातें करते हो – लगातार बेवकूफी की बातें!' पद - 16, एम.एस.जी.)। यह एलीहू की बातों का सटीक वर्णन है। यह बिना ज्ञान की खोखली बातें हैं। एलीहू बढ़ा चढ़ाकर बोलता है और अय्यूब की निंदा करता है।
सच्चाई यह है कि हम सब मूर्खतापूर्ण बातें करने में सक्षम है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हमें चुप रहना चाहिये। बल्कि इसका मतलब है कि हमें इसकी असीम शक्ति को समझना चाहिये कि हर एक मनुष्य को अपनी ज़ुबान से दूसरों के जीवन को प्रभावित करना चाहिये। शायद हमारे पास वह ताकत नहीं हो जो धन, प्रसिद्धि या पदवी से आती है, लेकिन हम सबके पास वह ताकत और क्षमता है जो वचनों को बोलने से मिलती है।
- परमेश्वर के वचनों को व्यवहार में लाइये
एलीहू ने इस लेखांश में परमेश्वर के वचन के बारे में बहुत सी बातें बोली हैं (37:4-13)। धन्यवाद रूप से, प्रभु स्वयं खुद के बारे में कहते हैं। कितना सुकून मिलता है! हमारे पास झूठी तसल्ली और खोखले शब्दों के अध्याय पर अध्याय हैं। हम इस तरह की दुनिया में रहते हैं। परमेश्वर के वचन स्वर्ग से मन्ना के जैसे और मरूस्थल में पानी के जैसे है।
प्रभु, आज से मैं जो भी शब्द बोलूँ वह पवित्र आत्मा द्वारा निर्देशित हों। मेरे होठों की रक्षा कीजिये और मेरे जीभ पर निगरानी रखिये।
प्रार्थना
प्रभु आपका धन्यवाद कि आप मुझ से बातें करते हैं और आपके वचन बहुत ही सामर्थी और जीवन बदल देनेवाले हैं। मेरी सहायता कीजिये कि मैं आपके वचनों को सुनूँ, उन्हें कहूँ और उन्हें व्यवहार में लाऊँ।
पिप्पा भी कहते है
मुझे एलीहू थोड़ा उबाऊ लगा!
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संदर्भ
नोट्स:
जॉयस मेयर, एवरी डे लाइफ बाइबल, (फेथवर्ड्स 2009) पन्ना 1536.
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है। कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।
जॉयस मेयर, एवरीडे लाइफ बाइबल, ‘अपने प्रेम को ठंडा होने ना दें। अपने जीवन में प्रेम को बढ़ाएं – अपने जीवन साथी और अपने परिवारवालों, दोस्तों, पड़ोसियों और सहयोगियों के प्रति। दु:खी और ज़रूरतमंद लोगों तक पहुँचें। उनके लिए प्रार्थना करें और उन्हें आशीष दें। इस हद तक बढ़ जाइये कि सुबह आपके मन में सबसे पहला विचार यही हो कि आप पूरे दिन में किसी को किस तरह से आशीषित कर सकते हैं।’ (पन्ना 1536)।