गोपनीय बातें
परिचय
जब मेरी यीशु से पहली बार मुलाकात हुई, तो मैंने सोचा कि मुझे विश्वास के बारे में हर एक प्रश्नों के जवाब पता होने चाहिये। मगर मैंने बाइबल का जितना ज़्यादा अध्ययन किया, उतना ही मैंने जाना कि हमें हर एक बातों का जवाब देना ज़रूरी नहीं है। ऐसी बातें भी हैं जो फायदेमंद अज्ञेयवाद या जिसे बाइबल आधारित अज्ञेयवाद के रूप में उल्लेखित किया जा सकता है।
कुछ प्रश्न ऐसे हैं जिनका जवाब हम जानते हैं। लेकिन कुछ और अन्य प्रश्न भी हैं जिनका सबसे अच्छा जवाब हम यह दे सकते हैं कि, 'हमें नहीं पता'। गोपनीय बातें हमारे प्रभु परमेश्वर से संबंधित हैं, लेकिन जो बातें प्रगट हैं वह हमारी हैं (व्यवस्थाविवरण 29:29अ)।
हमें उन बातों के बारे में स्पष्ट होना ज़रूरी हैं जिनके बारे में बाइबल स्पष्ट हैं। आप जो जान सकते हैं उसके बारे में अज्ञेयवादी न बनें। समान रूप से, जिन बातों के बारे में बाइबल अज्ञेय है उनके बारे में कट्टर न बनें।
आज के लेखांश में हम बड़े प्रश्नों के तीन उदाहरण देखेंगे जिन्हें बार - बार पूछा जाता है। इन प्रश्नों के उत्तर ऐसे हैं जिनमे से हम कुछ जानते हैं, और कुछ नहीं जानते।
भजन संहिता 18:37-42
37 फिर अपने शत्रुओं का पीछा करुँ, और उन्हें पकड़ सकूँ।
उनमें से एक को भी नहीं बच पाने दूँगा।
38 मैं अपने शत्रुओं को पराजित करुँगा।
उनमें से एक भी फिर खड़ा नहीं. होगा।
मेरे सभी शत्रु मेरे पाँवों पर गिरेंगे।
39 हे परमेश्वर, तूने मुझे युद्ध में शक्ति दी,
और मेरे सब शत्रुओं को मेरे सामने झुका दिया।
40 तूने मेरे शत्रुओं की पीठ मेरी ओर फेर दी,
ताकि मैं उनको काट डालूँ जो मुझ से द्वेष रखते हैं!
41 जब मेरे बैरियों ने सहायता को पुकारा,
उन्हें सहायता देने आगे कोई नहीं आया।
यहाँ तक कि उन्होंने यहोवा तक को पुकारा,
किन्तु यहोवा से उनको उत्तर न मिला।
42 मैं अपने शत्रुओं को कूट कूट कर धूल में मिला दूँगा, जिसे पवन उड़ा देती है।
मैंने उनको कुचल दिया और मिट्टी में मिला दिया।
समीक्षा
मेरे लिए भविष्य में क्या रखा है?
जब वह एक छोटी बच्ची थी, कोरी टेन बूम, (एक डच मसीही जिसने दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान यहूदियों को नाज़ीयों से छुड़ाने में मदद की थी), अपने पिता के पास गई और कहा, 'डैडी, मुझे डर है कि मैं कभी भी पर्याप्त मज़बूत नहीं बन पाऊँगी…. यीशु मसीह के लिए।' 'मुझे बताइये' उसके पिता ने कहा, 'जब तुम एम्स्टर्डम में ट्रेन यात्रा पर जाती हो, तब मैं तुम्हें टिकट के लिए पैसे कब देता हूँ? क्या तीन सप्ताह पहले?' 'नहीं, डैडी, आप मुझे ट्रेन में घुसने से थोड़ी देर पहले टिकट के लिए पैसे देते हैं।' 'यह ठीक है,' उसके पिता ने कहा, 'वैसे ही परमेश्वर की सामर्थ के लिए भी है। स्वर्ग में हमारे पिता जानते हैं कि तुम्हें सामर्थ की कब ज़रूरत पड़ेगी… वह तुम्हारी ज़रूरतों को सही समय पर पूरा करेंगे।'
परमेश्वर ने दाऊद को उसके सभी शत्रुओं पर विजय दिलायी। जब दाऊद पलटकर इन युद्ध को देखते हैं, तो वह कहते हैं कि, ' तू ने युद्ध के लिये मेरी कमर में शक्ति का पटुका बान्धा है;' (पद - 39)। ये आखिरी शत्रु नहीं थे जिनसे दाऊद लड़ने वाले थे। आगे और भी युद्ध होने वाले थे।
- हम क्या नहीं जानते
दाऊद की तरह आपको भी नहीं पता कि आगे कौन सा युद्ध होने वाला है। फिर भी, हम में ज़्यादातर लोगों के लिए, यह जानना शायद मददगार होगा कि आगे कौन सा युद्ध होने वाला है।
- हम क्या जानते हैं
जैसा कि कहा जाता है, 'दाऊद बस इतना जानता था कि जिस तरह से परमेश्वर ने पहले उसकी कमर में शक्ति का पटुका बांधा था उसी तरह से भविष्य में भी करेंगे' (पद - 39)। आप सिर्फ इतना जान लें कि जब भी आपको ज़रूरत होगी परमेश्वर आपको आवश्यक सामर्थ देंगे।
प्रार्थना
प्रभु, मैं आपको धन्यवाद देता हूँ कि मैं विश्वास कर सकता हूँ कि पवित्र आत्मा मुझे आने वाले युद्ध के लिए सही समय पर मेरी कमर में शक्ति का पटुका बांधेंगे।
मत्ती 24:32-25:13
32 “अंजीर के पेड़ से शिक्षा लो। जैसे ही उसकी टहनियाँ कोमल हो जाती हैं और कोंपलें फूटने लगती हैं तुम लोग जान जाते हो कि गर्मियाँ आने को हैं। 33 वैसे ही जब तुम यह सब घटित होते हुए देखो तो समझ जाना कि वह समय निकट आ पहुँचा है, बल्कि ठीक द्वार तक। 34 मैं तुम लोगों से सत्य कहता हूँ कि इस पीढ़ी के लोगों के जीते जी ही ये सब बातें घटेंगी। 35 चाहे धरती और आकाश मिट जायें किन्तु मेरा वचन कभी नहीं मिटेगा।”
केवल परमेश्वर जानता है कि वह समय कब आएगा
36 “उस दिन या उस घड़ी के बारे में कोई कुछ नहीं जानता। न स्वर्ग में दूत और न स्वयं पुत्र। केवल परम पिता जानता है।
37 “जैसे नूह के दिनों में हुआ, वैसे ही मनुष्य का पुत्र का आना भी होगा। 38 वैसे ही जैसे लोग जलप्रलय आने से पहले के दिनों तक खाते-पीते रहे, ब्याह-शादियाँ रचाते रहे जब तक नूह नाव पर नहीं चढ़ा। 39 उन्हें तब तक कुछ पता नहीं चला जब तक जलप्रलय न आ गया और उन सब को बहा नहीं ले गया।
“मनुष्य के पुत्र का आना भी ऐसा ही होगा। 40 उस समय खेत में काम करते दो आदमियों में से एक को उठा लिया जायेगा और एक को वहीं छोड़ दिया जायेगा। 41 चक्की पीसती दो औरतों में से एक उठा ली जायेगी और एक वहीं पीछे छोड़ दी जायेगी।
42 “सो तुम लोग सावधान रहो क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा स्वामी कब आ जाये। 43 याद रखो यदि घर का स्वामी जानता कि रात को किस घड़ी चोर आ जायेगा तो वह सजग रहता और चोर को अपने घर में सेंध नहीं लगाने देता। 44 इसलिए तुम भी तैयार रहो क्योंकि तुम जब उसकी सोच भी नहीं रहे होंगे, मनुष्य का पुत्र आ जायेगा।
अच्छे सेवक और बुरे सेवक
45 “तब सोचो वह भरोसेमंद सेवक कौन है, जिसे स्वामी ने अपने घर के सेवकों के ऊपर उचित समय उन्हें उनका भोजन देने के लिए लगाया है। 46 धन्य है वह सेवक जिसे उसका स्वामी जब आता है तो कर्तव्य करते पाता है। 47 मैं तुमसे सत्य कहता हूँ वह स्वामी उसे अपनी समूची सम्पत्ति का अधिकारी बना देगा।
48 “दूसरी तरफ़ सोचो एक बुरा दास है, जो अपने मन में कहता है मेरा स्वामी बहुत दिनों से वापस नहीं आ रहा है। 49 सो वह अपने साथी दासों से मार पीट करने लगता है और शराबियों के साथ खाना पीना शुरु कर देता है। 50 तो उसका स्वामी ऐसे दिन आ जायेगा जिस दिन वह उसके आने की सोचता तक नहीं और जिसका उसे पता तक नहीं। 51 और उसका स्वामी उसे बुरी तरह दण्ड देगा और कपटियों के बीच उसका स्थान निश्चित करेगा जहाँ बस लोग रोते होंगे और दाँत पीसते होंगे।
दूल्हे की प्रतीक्षा करती दस कन्याओं की दृष्टान्त कथा
25“उस दिन स्वर्ग का राज्य उन दस कन्याओं के समान होगा जो मशालें लेकर दूल्हे से मिलने निकलीं। 2 उनमें से पाँच लापरवाह थीं और पाँच चौकस। 3 पाँचों लापरवाह कन्याओं ने अपनी मशालें तो ले लीं पर उनके साथ तेल नहीं लिया। 4 उधर चौकस कन्याओं ने अपनी मशालों के साथ कुप्पियों में तेल भी ले लिया। 5 क्योंकि दूल्हे को आने में देर हो रही थी, सभी कन्याएँ ऊँघने लगीं और पड़ कर सो गयीं।
6 “पर आधी रात धूम मची, ‘आ हा! दूल्हा आ रहा है। उससे मिलने बाहर चलो।’
7 “उसी क्षण वे सभी कन्याएँ उठ खड़ी हुईं और अपनी मशालें तैयार कीं। 8 लापरवाह कन्याओं ने चौकस कन्याओं से कहा, ‘हमें अपना थोड़ा तेल दे दो, हमारी मशालें बुझी जा रही हैं।’
9 “उत्तर में उन चौकस कन्याओं ने कहा, ‘नहीं! हम नहीं दे सकतीं। क्योंकि फिर न ही यह हमारे लिए काफी होगा और न ही तुम्हारे लिये। सो तुम तेल बेचने वाले के पास जाकर अपने लिये मोल ले लो।’
10 “जब वे मोल लेने जा ही रही थी कि दूल्हा आ पहुँचा। सो वे कन्य़ाएँ जो तैयार थीं, उसके साथ विवाह के उत्सव में भीतर चली गईं और फिर किसी ने द्वार बंद कर दिया।
11 “आखिरकार वे बाकी की कन्याएँ भी गईं और उन्होंने कहा, ‘स्वामी, हे स्वामी, द्वार खोलो, हमें भीतर आने दो।’
12 “किन्तु उसने उत्तर देते हुए कहा, ‘मैं तुमसे सच कह रहा हूँ, मैं तुम्हें नहीं जानता।’
13 “सो सावधान रहो। क्योंकि तुम न उस दिन को जानते हो, न उस घड़ी को, जब मनुष्य का पुत्र लौटेगा।
समीक्षा
यीशु कब वापस आएंगे?
इस लेखांश में यीशु उनके वापस आने के बारे में कहते हैं – दूसरे आगमन के बारे में। वे कहते हैं इस बारे में कुछ खास बातें हैं जिसे हमें जानना ज़रूरी है और कुछ बातें हैं जिन्हें हम नहीं जानते। ('तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आएगा।….' 24:42-43, एम.एस.जी.)।
- हमें क्या नहीं जानना है?
यीशु पूरी तरह से स्पष्ट करते हैं कि कोई नहीं जानता कि वह वापस कब आएंगे। वह कहते हैं, 'उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत, और न पुत्र, परन्तु केवल पिता' (पद - 36)। कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिसके लिए स्वयं यीशु को कहना पड़ा (जब वह धरती पर थे) कि, 'मैं नहीं जानता।'
यीशु के वापस आने का सही समय जानने के लिए बहुत सारा धन और समय खर्च किया गया। हमें यह जानने की ज़रूरत नहीं है कि यीशु कब वापस आएंगे, बल्कि हमें 'सावधान रहने' की ज़रूरत है (पद - 42)। यह एक रहस्य की बात है (व्यवस्थाविवरण 29:29अ) जिसे सिर्फ परमेश्वर जानते हैं।
- हमें क्या जानना है?
यीशु कहते हैं, 'अंजीर के पेड़ से यह दृष्टान्त सीखो: जब उस की डाली कोमल हो जाती और पत्ते निकलने लगते हैं, तो तुम जान लेते हो, कि ग्रीष्म काल निकट है' (मत्ती 24:32)। यीशु कहते हैं जब हम इन संकेतों को देखेंगे तो हम जान जाएंगे कि यीशु का आगमन निकट है। इसलिए हमें सचेत रहना है (पद - 42; 25:31) और तैयार रहना है (24:44)।
हमें यह भी जानना है, हालाँकि उनका आना निकट है, फिर भी उनके आने में बहुत समय लग सकता है (25:5)। और हमें यह भी जानना है कि वह किसी भी पल आएंगे 'क्योंकि जिस घड़ी के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो,' (24:44)। जब भी वह आएंगे वह एक आश्चर्य होगा और मुख्य बात यह है कि हमें हर पल उनके लिए तैयार रहना है।
यह देखने के लिए कि हमें उनके पुनर्आगमन के लिए तैयार रहना है, यीशु हमें एक बुद्धिमान सेवक और दुष्ट सेवक के बीच फर्क की तस्वीर बतलाते हैं। बुद्धिमान सेवक अपने स्वामी के प्रति विश्वासयोग्य बने रहकर और उसके निर्देशों का पालन करके और दूसरों के प्रति सम्मानजनक व्यवहार करने के द्वारा अपने स्वामी के वापस आने के लिए हमेशा तैयार रहता है। दुष्ट सेवक अपने स्वामी के निर्देशों के प्रति वफादार नहीं होता और वह दूसरों के साथ आपत्तिजनक व्यवहार करता है। निष्कर्ष काफी तुलनात्मक है (पद - 47 की तुलना पद - 51 से करें)। दूसरे शब्दों में, यदि ऐसा आप परमेश्वर से और दूसरों से प्रेम करते हुए अपना जीवन बिताएंगे, तो आप यीशु के पुनर्आगमन के लिए तैयार रहेंगे।
फिर भी परमेश्वर से प्रेम करने और दूसरों से प्रेम करने के अंतर्गत एक मुख्य तत्व है जिसका मतलब है यीशु के पुनर्आगमन के लिए तैयार रहना। दस कुवारियों के दृष्टांत में, दूल्हा उन कुंवारियों से कहता है जो सो गई थीं और तैयार नहीं थी, कि 'मैं तुम्हें नहीं जानता' (25:12)। यहाँ हम देखते हैं कि मुख्य कुंजी विभिन्न तरह की बातो को जानना है। यह विवेक संबंधी ज्ञान नहीं है बल्कि यह व्यक्तिगत ज्ञान है।
मूलभूत रूप से यह उस बारे में नहीं है कि आप क्या जानते हैं, बल्कि उस बारे में है कि आप किसे जानते हैं। यह दूल्हे के साथ व्यक्तिगत संबंध रखने के बारे में है। अंत में, यीशु को जानना अन्य बातों से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है। यीशु कहते हैं, ' और अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जाने' (यूहन्ना 17:3)।
प्रार्थना
प्रभु, मैं आपको धन्यवाद देता हूँ कि अंत में सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मैं आपको जानता हूँ। आपको हर दिन और भी बेहतर रीति से जानने में मेरी मदद कीजिये।
अय्यूब 38:1-40:2
38फिर यहोवा ने तूफान में से अय्यूब को उत्तर दिया। परमेश्वर ने कहा:
2 “यह कौन व्यक्ति है
जो मूर्खतापूर्ण बातें कर रहा है?”
3 अय्यूब, तुम पुरुष की भाँति सुदृढ़ बनों।
जो प्रश्न मैं पूछूँ उसका उत्तर देने को तैयार हो जाओ।
4 अय्यूब, बताओ तुम कहाँ थे, जब मैंने पृथ्वी की रचना की थी?
यदि तू इतना समझदार है तो मुझे उत्तर दे।
5 अय्यूब, इस संसार का विस्तार किसने निश्चित किया था?
किसने संसार को नापने के फीते से नापा?
6 इस पृथ्वी की नींव किस पर रखी गई है?
किसने पृथ्वी की नींव के रूप में सर्वाधिक महत्वपूर्ण पत्थर को रखा है?
7 जब ऐसा किया था तब भोर के तारों ने मिलकर गया
और स्वर्गदूत ने प्रसन्न होकर जयजयकार किया।
8 “अय्यूब, जब सागर धरती के गर्भ से फूट पड़ा था,
तो किसने उसे रोकने के लिये द्वार को बन्द किया था।
9 उस समय मैंने बादलों से समुद्र को ढक दिया
और अन्धकार में सागर को लपेट दिया था (जैसे बालक को चादर में लपेटा जाता है।)
10 सागर की सीमाऐं मैंने निश्चित की थीं
और उसे ताले लगे द्वारों के पीछे रख दिया था।
11 मैंने सागर से कहा, ‘तू यहाँ तक आ सकता है किन्तु और अधिक आगे नहीं।
तेरी अभिमानी लहरें यहाँ तक रुक जायेंगी।’
12 “अय्यूब, क्या तूने कभी अपनी जीवन में भोर को आज्ञा दी है
उग आने और दिन को आरम्भ करने की?
13 अय्यूब, क्या तूने कभी प्रात: के प्रकाश को धरती पर छा जाने को कहा है
और क्या कभी उससे दुष्टों के छिपने के स्थान को छोड़ने के लिये विवश करने को कहा है
14 प्रात: का प्रकाश पहाड़ों
व घाटियों को देखने लायक बना देता है।
जब दिन का प्रकाश धरती पर आता है
तो उन वस्तुओं के रूप वस्त्र की सलवटों की तरह उभर कर आते हैं।
वे स्थान रूप को नम मिट्टी की तरह
जो दबोई गई मुहर की ग्रहण करते हैं।
15 दुष्ट लोगों को दिन का प्रकाश अच्छा नहीं लगता
क्योंकि जब वह चमचमाता है, तब वह उनको बुरे काम करने से रोकता है।
16 “अय्यूब, बता क्या तू कभी सागर के गहरे तल में गया है?
जहाँ से सागर शुरु होता है क्या तू कभी सागर के तल पर चला है?
17 अय्यूब, क्या तूने कभी उस फाटकों को देखा है, जो मृत्यु लोक को ले जाते हैं?
क्या तूने कभी उस फाटकों को देखा जो उस मृत्यु के अन्धेरे स्थान को ले जाते हैं?
18 अय्यूब, तू जानता है कि यह धरती कितनी बड़ी है?
यदि तू ये सब कुछ जानता है, तो तू मुझकों बता दे।
19 “अय्यूब, प्रकाश कहाँ से आता है?
और अन्धकार कहाँ से आता है?
20 अय्यूब, क्या तू प्रकाश और अन्धकार को ऐसी जगह ले जा सकता है जहाँ से वे आये है? जहाँ वे रहते हैं।
वहाँ पर जाने का मार्ग क्या तू जानता है?
21 अय्यूब, मुझे निश्चय है कि तुझे सारी बातें मालूम हैं? क्योंकि तू बहुत ही बूढ़ा और बुद्धिमान है।
जब वस्तुऐं रची गई थी तब तू वहाँ था।
22 “अय्यूब, क्या तू कभी उन कोठियारों में गया हैं?
जहाँ मैं हिम और ओलों को रखा करता हूँ?
23 मैं हिम और ओलों को विपदा के काल
और युद्ध लड़ाई के समय के लिये बचाये रखता हूँ।
24 अय्यूब, क्या तू कभी ऐसी जगह गया है, जहाँ से सूरज उगता है
और जहाँ से पुरवाई सारी धरती पर छा जाने के लिये आती है?
25 अय्यूब, भारी वर्षा के लिये आकाश में किसने नहर खोदी है,
और किसने भीषण तूफान का मार्ग बनाया है?
26 अय्यूब, किसने वहाँ भी जल बरसाया, जहाँ कोई भी नहीं रहता है?
27 वह वर्षा उस खाली भूमि के बहुतायत से जल देता है
और घास उगनी शुरु हो जाती है।
28 अय्यूब, क्या वर्षा का कोई पिता है?
ओस की बूँदे कहाँ से आती हैं?
29 अय्यूब, हिम की माता कौन है?
आकाश से पाले को कौन उत्पन्न करता है?
30 पानी जमकर चट्टान सा कठोर बन जाता है,
और सागर की ऊपरी सतह जम जाया करती है।
31 “अय्यूब, सप्तर्षि तारों को क्या तू बाँध सकता है?
क्या तू मृगशिरा का बन्धन खोल सकता है?
32 अय्यूब, क्या तू तारा समूहों को उचित समय पर उगा सकता है,
अथवा क्या तू भालू तारा समूह की उसके बच्चों के साथ अगुवाई कर सकता है?
33 अय्यूब क्या तू उन नियमों को जानता है, जो नभ का शासन करते हैं?
क्या तू उन नियमों को धरती पर लागू कर सकता है?
34 “अय्यूब, क्या तू पुकार कर मेघों को आदेश दे सकता है,
कि वे तुझको भारी वर्षा के साथ घेर ले।
35 अय्यूब बता, क्या तू बिजली को
जहाँ चाहता वहाँ भेज सकता है?
और क्या तेरे निकट आकर बिजली कहेगी, “अय्यूब, हम यहाँ है बता तू क्या चाहता है?”
36 “मनुष्य के मन में विवेक को कौन रखता है,
और बुद्धि को कौन समझदारी दिया करता है?
37 अय्यूब, कौन इतना बलवान है जो बादलों को गिन ले
और उनको वर्षा बरसाने से रोक दे?
38 वर्षा धूल को कीचड़ बना देती है
और मिट्टी के लौंदे आपस में चिपक जाते हैं।
39 “अय्यूब, क्या तू सिंहनी का भोजन पा सकता है?
क्या तू भूखे युवा सिंह का पेट भर सकता है?
40 वे अपनी खोहों में पड़े रहते हैं
अथवा झाड़ियों में छिप कर अपने शिकार पर हमला करने के लिये बैठते हैं।
41 अय्यूब, कौवे के बच्चे परमेश्वर की दुहाई देते हैं,
और भोजन को पाये बिना वे इधर—उधर घूमतें रहते हैं, तब उन्हें भोजन कौन देता है?
39“अय्यूब, क्या तू जानता है कि पहाड़ी बकरी कब ब्याती हैं?
क्या तूने कभी देखा जब हिरणी ब्याती है?
2 अय्यूब, क्या तू जानता है पहाड़ी बकरियाँ और माता हरिणियाँ कितने महीने अपने बच्चे को गर्भ में रखती हैं?
क्या तूझे पता है कि उनका ब्याने का उचित समय क्या है?
3 वे लेट जाती हैं और बच्चों को जन्म देती है,
तब उनकी पीड़ा समाप्त हो जाती है।
4 पहाड़ी बकरियों और हरिणी माँ के बच्चे खेतों में हृष्ट—पुष्ट हो जाते हैं।
फिर वे अपनी माँ को छोड़ देते हैं, और फिर लौट कर वापस नहीं आते।
5 “अय्यूब, जंगली गधों को कौन आजाद छोड़ देता है?
किसने उसके रस्से खोले और उनको बन्धन मुक्त किया?
6 यह मैं (यहोवा) हूँ जिसने बनैले गधे को घर के रूप में मरुभूमि दिया।
मैंने उनको रहने के लिये रेही धरती दी।
7 बनैला गधा शोर भरे नगरों के पास नहीं जाता है
और कोई भी व्यक्ति उसे काम करवाने के लिये नहीं साधता है।
8 बनैले गधे पहाड़ों में घूमते हैं
और वे वहीं घास चरा करते हैं।
वे वहीं पर हरी घास चरने को ढूँढते रहते हैं।
9 “अय्यूब, बता, क्या कोई जंगली सांड़ तेरी सेवा के लिये राजी होगा?
क्या वह तेरे खलिहान में रात को रुकेगा?
10 अय्यूब, क्या तू जंगली सांड़ को रस्से से बाँध कर
अपना खेत जुता सकता है? क्या घाटी में तेरे लिये वह पटेला करेगा?
11 अय्यूब, क्या तू किसी जंगली सांड़ के भरोसे रह सकता है?
क्या तू उसकी शक्ति से अपनी सेवा लेने की अपेक्षा रखता है?
12 क्या तू उसके भरोसे है कि वह तेरा अनाज इकट्ठा
तेरे और उसे तेरे खलिहान में ले जाये?
13 “शुतुरमुर्ग जब प्रसन्न होता है वह अपने पंख फड़फड़ाता है किन्तु शुतुरमुर्ग उड़ नहीं सकता।
उस के पैर और पंख सारस के जैसे नहीं होते।
14 शुतुरमुर्ग धरती पर अण्डे देती है,
और वे रेत में सेये जाते हैं।
15 किन्तु शुतुरमुर्ग भूल जाता है कि कोई उसके अण्डों पर से चल कर उन्हें कुचल सकता है,
अथवा कोई बनैला पशु उनको तोड़ सकता है।
16 शुतुरमुर्ग अपने ही बच्चों पर निर्दयता दिखाता है
जैसे वे उसके बच्चे नहीं है।
यदि उसके बच्चे मर भी जाये तो भी उसको उसकी चिन्ता नहीं है।
17 ऐसा क्यों? क्योंकि मैंने (परमेश्वर) उस शुतुरमुर्ग को विवेक नहीं दिया था।
शुतुरमुर्ग मूर्ख होता है, मैंने ही उसे ऐसा बनाया है।
18 किन्तु जब शुतुरमुर्ग दौड़ने को उठती है तब वह घोड़े और उसके सवार पर हँसती है,
क्योंकि वह घोड़े से अधिक तेज भाग सकती है।
19 “अय्यूब, बता क्या तूने घोड़े को बल दिया
और क्या तूने ही घोड़े की गर्दन पर अयाल जमाया है?
20 अय्यूब, बता जैसे टिड्डी कूद जाती है क्या तूने वैसा घोड़े को कुदाया है?
घोड़ा घोर स्वर में हिनहिनाता है और लोग डर जाते हैं।
21 घोड़ा प्रसन्न है कि वह बहुत बलशाली है
और अपने खुर से वह धरती को खोदा करता है। युद्ध में जाता हुआ घोड़ा तेज दौड़ता है।
22 घोड़ा डर की हँसी उड़ाता है क्योंकि वह कभी नहीं डरता।
घोड़ा कभी भी युद्ध से मुख नहीं मोड़ता है।
23 घोड़े की बगल में तरकस थिरका करते हैं।
उसके सवार के भाले और हथियार धूप में चमचमाया करते हैं।
24 घोड़ा बहुत उत्तेजित है, मैदान पर वह तीव्र गति से दौड़ता है।
घोड़ा जब बिगुल की आवाज सुनता है तब वह शान्त खड़ा नहीं रह सकता।
25 जब बिगुल की ध्वनि होती है घोड़ा कहा करता है “अहा!”
वह बहुत ही दूर से युद्ध को सूँघ लेता हैं।
वह सेना के नायकों के घोष भरे आदेश और युद्ध के अन्य सभी शब्द सुन लेता है।
26 “अय्यूब, क्या तूने बाज को सिखाया अपने पंखो को फैलाना और दक्षिण की ओर उड़ जाना?
27 अय्यूब, क्या तू उकाब को उड़ने की
और ऊँचे पहाड़ों में अपना घोंसला बनाने की आज्ञा देता है?
28 उकाब चट्टान पर रहा करता है।
उसका किला चट्टान हुआ करती है।
29 उकाब किले से अपने शिकार पर दृष्टि रखता है।
वह बहुत दूर से अपने शिकार को देख लेता है।
30 उकाब के बच्चे लहू चाटा करते हैं
और वे मरी हुई लाशों के पास इकट्ठे होते हैं।”
40यहोवा ने अय्यूब से कहा:
2 “अय्यूब तूने सर्वशक्तिमान परमेश्वर से तर्क किया।
तूने बुरे काम करने का मुझे दोषी ठहराया।
अब तू मुझको उत्तर दे।”
समीक्षा
परमेश्वर कष्ट क्यों आने देते हैं?
जब हम अय्यूब की पुस्तक के अंत में पहुँचते हैं, अनेक अध्यायों में अय्यूब और उसके दोस्तों द्वारा परमेश्वर से सवाल करने के बाद, स्थिति बदल जाती है, और परमेश्वर सवाल करने लगते हैं, इस लेखांश का वर्णन 'अय्यूब की अंतिम परीक्षा' के रूप में किया जा सकता है। उसकी परीक्षा में अनेक प्रश्न हैं जिनके जवाब वह नहीं जानता था।
हम अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न 'परमेश्वर कष्ट क्यों आने देते हैं' के जवाब में हम कुछ बातों को जानते हैं, और कुछ बातों को नहीं जानते। अय्यूब के दोस्तों के बारे में प्रभु की शिकायत यह है कि 'उन्होंने अज्ञानता की बातें की हैं' (38:2)। बजाय कहने कि 'मुझे नहीं पता', उन्होंने अय्यूब की तकलीफों का वर्णन करने का प्रयास किया, वह भी वास्तविक जवाबों को जाने बिना।
- हम क्या नहीं जानते
परमेश्वर उससे (काव्यात्मक भाषा में) प्राकृतिक सृष्टि के बारे में उनचास प्रश्न करते हैं, और यदि उसे अवसर दिया जाता, तो वह निश्चित रूप से कहता कि, 'मैं नहीं जानता।' बहुत से प्रश्न ' क्या तू जानता है….?' से शुरू होते हैं (पद - 33; 39:1-2)। यह लगभग ऐसा है जैसे परमेश्वर अय्यूब के साथ प्यार से छेड़खानी कर रहे थे। वह उससे कहते हैं, 'तू निश्चय ही जानता है!' (38:5) और ' यदि तू यह सब जानता है, तो बतला दे' (पद - 18)।
परमेश्वर द्वारा प्रश्न पूछने का मकसद यह है कि कुछ बाते ऐसी हैं जिन्हें हम मानवीय दृष्टि से जानते हैं – 'गोपनीय बातें' हमारे प्रभु परमेश्वर के अधिकार में हैं। यह खासकर कष्ट उठाने के मामले में सही हैं। धर्मशास्त्री और दर्शनशास्त्री सदियों से दु:ख उठाने की समस्या से जूझ रहे हैं और अब तक कोई भी आसान और संपूर्ण समाधान नहीं ढूँढ पाए हैं।
जब आप दु:ख उठाते हैं तो आप हमेशा क्यों का पता लगाने में सक्षम नहीं रहते। परमेश्वर ने अय्यूब को कभी नहीं बताया कि वह क्यों दु:ख उठा रहा है (हालाँकि इस पुस्तक के आरंभ से ही हम इसका जवाब आंशिक रूप से जानते हैं), लेकिन परमेश्वर ने उसे नहीं बताया कि इसके पीछे एक अच्छा कारण है। उन्होंने अय्यूब को बताया कि वह सच में सृष्टि के बारे में बहुत कम जानता है और उससे कहा कि वह परमेश्वर पर भरोसा करे।
अय्यूब की पुस्तक इस बारे में नहीं है कि परमेश्वर ने इतना दु:ख क्यों आने दिया, बल्कि इस बारे में है कि आपको कैसी प्रतिक्रिया करनी चाहिये। तकनीकी और सैद्धांतिक शब्दों का प्रयोग करने के लिए, दु:ख के समय में परमेश्वर की भलाई और उनके न्याय की तुलना में परमेश्वर का प्रगट होना ज़्यादा देखा गया है।
- हम क्या जानते हैं
कल के लेखांश में हम देखेंगे कि अय्यूब जान जाता है कि कुछ बातें हैं जिनका जानना उसके लिए बहुत ही आश्चर्यजनक है (42:3)। दूसरे शब्दों में, कुछ बाते हैं जिन्हें आप इस जीवन में कभी नहीं जान पाएंगे। दूसरी तरफ, कुछ बातें हैं जिन्हें आप जान सकते हैं, 'मैं जानता हूँ कि तू सब कुछ कर सकता है,' (पद - 2)।
आप जान सकते हैं कि सबकुछ परमेश्वर के नियंत्रण में है और इसलिए यह भरोसा करते हुए शांति और विश्वास से जी सकते हैं कि जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं उनके लिए सारी बातें मिलकर भलाई को ही उत्पन्न करती हैं (रोमियों 8:28)।
प्रार्थना
प्रभु, मैं जानता हूँ कि आप सबकुछ कर सकते हैं और आपका कोई भी उद्देश्य नाकाम नहीं हो सकता। जिन बातों को मैं नहीं जानता उनके प्रति विनम्र रहने और जिन बातों को मैं जानता हूँ उनके प्रति विश्वासपूर्ण रहने के लिए मेरी मदद कीजिये।
पिप्पा भी कहते है
मत्ती 24:44
'इसलिये तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो, उसी घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा'।
कभी - कभी, जब मैं किसी की अपेक्षा नहीं करती और घर में कोई मीटिंग नहीं होनी होती है, तब मैं विचलित रहती हूँ और अपना नाश्ता ठीक से नहीं कर पाती और सब कुछ गड़बड़ा जाता है। तब दरवाज़े की घंटी बजती है और कोई अनपेक्षित आगंतुक आ जाता है। मैंने खुद को चीज़ो को डिशवाशर में और फ्रिज के पीछे फेंकते हुए पाया है। तैयार न रहने के दु:ख को मैं जानती हूँ। जब यीशु वापस आएंगे तो यह कितना भयंकर होगा। वह साफ - सुथरे घर को नहीं ढूँढ रहे हैं, बल्कि वह तैयार जीवन को ढूँढ रहे हैं। इसके लिए लगातार कार्य करने की ज़रूरत है।
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संदर्भ
नोट्स:
कोरी टेन बूम (1974)
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