मेरी आँखें खुल गईं
परिचय
यह ऐसा था जैसे कि मैं अंधा हूँ। मैंने कई बार सुना था कि यीशु हमारे पापों के लिए मरे। लेकिन मैंने इसे नज़रअंदाज़ किया। मैं आत्मिक रूप से अंधा था। लेकिन जब मैंने क्रूस को समझा तो मेरी आँखें खुल गईं।
तब से, मैंने देखा कि जब मैं 'मसीह के क्रूस पर बलिदान होने' का संदेश प्रचार करता हूँ, कई तरह की प्रतिक्रियाएं होती हैं। कभी - कभी अति बुद्धिमान लोग भी इसे नहीं देख पाते (1कुरिंथियों 1:23-25 देखें)। दूसरी तरफ, मैं लोगों की समझ पर अचंभित होता हूँ, जिसमे बहुत छोटे बच्चे भी शामिल हैं। क्योंकि जो भी इसे देखता है, वह जीवन बदल देने वाला है: 'यह हम उद्धार पाने वालों के निकट परमेश्वर की सामर्थ है' (1कुरिंथियों 1:18)।
मुझे लगता है आज के नये नियम का लेखांश विस्मयकारी है, यीशु ने अपनी मृत्यु के बारे में बताया था, हमने अंधे बरतिमाई की कहानी सुनी है जिसकी आँखें खुल गई थीं (मरकुस 10:46-52)। वह यीशु से कहता है, 'मैं देखना चाहता हूँ' (पद - 51)। यीशु ने उत्तर दिया, 'जा….तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है।' तुरंत ही उसकी दृष्टि आ जाती है और वह यीशु के पीछे हो लेता है' (पद - 52)। चंगाई के लिए जिस शब्द का प्रयोग किया गया है उद्धार के लिए भी ग्रीक में वही (सोज़ो) शब्द है।
क्या आपने देखा? आज का लेखांश हमें यीशु की मृत्यु के महत्त्व को देखने में मदद करता है।
नीतिवचन 6:12-19
दुष्ट जन
12 नीच और दुष्ट वह होता है
जो बुरी बातें बोलता हुआ फिरता रहता है।
13 जो आँखों द्वारा इशारा करता है और
अपने पैरों से संकेत देता है और
अपनी उगंलियों से इशारे करता है।
14 जो अपने मन में षड्यन्त्र रचता है और
जो सदा अनबन उपजाता रहता है।
15 अत: उस पर अचानक महानाश गिरेगा और तत्काल वह नष्ट हो जायेगा।
उस के पास बचने का उपाय भी नहीं होगा।
वे सात बातें जिनसे यहोवा घृणा करता है
16 ये हैं छ: बातें वे जिनसे यहोवा घृणा रखता और
ये ही सात बातें जिनसे है उसको बैर:
17 गर्वीली आँखें, झूठ से भरी वाणी,
वे हाथ जो अबोध के हत्यारे हैं।
18 ऐसा हृदय जो कुचक्र भरी योजनाएँ रचता रहताहै,
ऐसे पैर जो पाप के मार्ग पर तुरन्त दौड़ पड़ते हैं।
19 वह झूठा गवाह, जो निरन्तर झूठ उगलता है
और ऐसा व्यक्ति जो भाईयों के बीच फूट डाले।
समीक्षा
बुराई के लिए परमेश्वर की प्रतिक्रिया देखें
आप क्रूस को पूरी तरह से नहीं समझ पाएंगे जब तक आप यह न समझ लें कि यह क्यों ज़रूरी था।
पाप के विरूद्ध परमेश्वर की शत्रुतापूर्ण प्रतिक्रिया देखिये। नीतिवचन का लेखक उन बातों की सूची देता है जिससे परमेश्वर बैर रखता है और जिससे परमेश्वर घृणा करता है। (16अ) - 'घमण्ड से चढ़ी हुई आंखें, झूठ बोलने वाली जीभ, और निर्दोष का लहू बहाने वाले हाथ, अनर्थ कल्पना गढ़ने वाला मन, बुराई करने के लिए वेग से दौड़ने वाले पांव' (पद - 16-19)।
परमेश्वर प्रेम हैं। परमेश्वर न्यायी और पवित्र भी हैं। जिन पापों को यहाँ सूचीबद्ध किया है वे हमारे जीवन को, दूसरों के जीवन को और समाज को अत्यधिक नुकसान पहुँचाते हैं। उदाहरण के लिए, ऐसा व्यक्ति जो 'झगड़ा उत्पन्न करता है' (पद - 19)। ज़रा सोचिये उस व्यक्ति द्वारा कितना नुकसान होगा जो परिवार में या चर्च में या पड़ोस में या देश में विभाजन को लाता है।
परमेश्वर हमारे जैसे नफरत नहीं करते: इसमें द्वेष, तुच्छता और पाखंड नहीं होता – बल्कि यह पाप के विरूद्ध प्रेमी और पवित्र परमेश्वर की प्रतिक्रिया है।
जब हम पाप के विरूद्ध परमेश्वर की घृणा को समझने लगते हैं तो यह हमें क्रूस की ओर ले जाता है, इसके लिए हम एकमात्र यही प्रतिक्रिया कर सकते हैं कि हम क्षमा और मदद पाने के लिए प्रार्थना में परमेश्वर की ओर मुड़ें।
प्रार्थना
दयालु प्रभु, आपकी सेवा करने के लिए आप हमारे संघर्ष को जानते हैं, जब पाप हमारे जीवन को बरबाद कर देता है और हमारे दिलों पर छा जाता है, तो हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा हमारी सहायता के लिए आकर हमें फिर से अपनी ओर मोड़ लीजिये (‘एंजलिकन कलेक्ट फोर एश वेडनसडे’ से प्रार्थना)।
मरकुस 10:32-52
यीशु द्वारा अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी
32 फिर यरूशलेम जाते हुए जब वे मार्ग में थे तो यीशु उनसे आगे चल रहा था। वे डरे हुए थे और जो उनके पीछे चल रहे थे, वे भी डरे हुए थे। फिर यीशु बारहों शिष्यों को अलग ले गया और उन्हें बताने लगा कि उसके साथ क्या होने वाला है। 33 “सुनो, हम यरूशलेम जा रहे हैं। मनुष्य के पुत्र को धोखे से पकड़वा कर प्रमुख याजकों और धर्मशास्त्रियों को सौंप दिया जायेगा। और वे उसे मृत्यु दण्ड दे कर ग़ैर यहूदियों को सौंप देंगे। 34 जो उसकी हँसी उड़ाएँगे और उस पर थूकेंगे। वे उसे कोड़े लगायेंगे और फिर मार डालेंगे। और फिर तीसरे दिन वह जी उठेगा।”
याकूब और यूहन्ना का यीशु से आग्रह
35 फिर जब्दी के पुत्र याकूब और यूहन्ना यीशु के पास आये और उससे बोले, “गुरु, हम चाहते हैं कि हम जो कुछ तुझ से माँगे, तू हमारे लिये वह कर।”
36 यीशु ने उनसे कहा, “तुम मुझ से अपने लिये क्या करवाना चाहते हो?”
37 फिर उन्होंने उससे कहा, “हमें अधिकार दे कि तेरी महिमा में हम तेरे साथ बैठें, हममें से एक तेरे दायें और दूसरा बायें।”
38 यीशु ने उनसे कहा, “तुम नहीं जानते तुम क्या माँग रहे हो। जो कटोरा मैं पीने को हूँ, क्या तुम उसे पी सकते हो? या जो बपतिस्मा मैं लेने को हूँ, तुम उसे ले सकते हो?”
39 उन्होंने उससे कहा, “हम वैसा कर सकते हैं!”
फिर यीशु ने उनसे कहा, “तुम वह प्याला पिओगे, जो मैं पीता हूँ? तुम यह बपतिस्मा लोगे, जो बपतिस्मा मैं लेने को हूँ? 40 किन्तु मेरे दायें और बायें बैठने का स्थान देना मेरा अधिकार नहीं है। ये स्थान उन्हीं पुरुषों के लिए हैं जिनके लिये ये तैयार किया गया हैं।”
41 जब बाकी के दस शिष्यों ने यह सुना तो वे याकूब और यूहन्ना पर क्रोधित हुए। 42 फिर यीशु ने उन्हें अपने पास बुलाया और उनसे कहा, “तुम जानते हो कि जो ग़ैर यहूदियों के शासक माने जाते हैं, उनका और उनके महत्वपूर्ण नेताओं का उन पर प्रभुत्व है। 43 पर तुम्हारे साथ ऐसा नहीं है। तुममें से जो कोई बड़ा बनना चाहता है, वह तुम सब का दास बने। 44 और जो तुम में प्रधान बनना चाहता है, वह सब का सेवक बने 45 क्योंकि मनुष्य का पुत्र तक सेवा कराने नहीं आया है, बल्कि सेवा करने आया है। और बहुतों के छुटकारे के लिये अपना जीवन देने आया है।”
अंधे को आँखें
46 फिर वे यरीहो आये और जब यीशु अपने शिष्यों और एक बड़ी भीड़ के साथ यरीहो को छोड़ कर जा रहा था, तो बरतिमाई (अर्थ “तिमाई का पुत्र”) नाम का एक अंधा भिखारी सड़क के किनारे बैठा था। 47 जब उसने सुना कि वह नासरी यीशु है, तो उसने ऊँचे स्वर में पुकार पुकार कर कहना शुरु किया, “दाऊद के पुत्र यीशु, मुझ पर दया कर।”
48 बहुत से लोगों ने डाँट कर उसे चुप रहने को कहा। पर वह और भी ऊँचे स्वर में पुकारने लगा, “दाऊद के पुत्र, मुझ पर दया कर!”
49 तब यीशु रुका और बोला, “उसे मेरे पास लाओ।”
सो उन्होंने उस अंधे व्यक्ति को बुलाया और उससे कहा, “हिम्मत रख! खड़ा हो! वह तुझे बुला रहा है।” 50 वह अपना कोट फेंक कर उछल पड़ा और यीशु के पास आया।
51 फिर यीशु ने उससे कहा, “तू मुझ से अपने लिए क्या करवाना चाहता है?”
अंधे ने उससे कहा, “हे रब्बी, मैं फिर से देखना चाहता हूँ।”
52 तब यीशु बोला, “जा, तेरे विश्वास से तेरा उद्धार हुआ।” फिर वह तुरंत देखने लगा और मार्ग में यीशु के पीछे हो लिया।
समीक्षा
क्रूस का परिणाम देखें
यदि यीशु ने आपसे पूछा होता, तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिये करूँ? इस लेखांश में यीशु यह प्रश्न दोबार करते हैं (पद - 36,51)। शिष्य गलत जवाब देते हैं (पद - 37)। बरतिमाई सही जवाब देता है: 'मैं देखना चाहता हूँ' (पद - 51)।
कुछ लोग इसे नहीं देख पाते। कुछ लोगों ने यीशु की मृत्यु को 'अकस्मात और दु:खद' बताया है। लेकिन वास्तव में यह सुनियोजित, भविष्यवक्ताओं द्वारा कही गई और पहले से बताई गई है।
मरकुस के सुसमाचार में यह लेखांश (पद - 32-34) तीसरा और सबसे ज़्यादा विस्तृत विवरण है जिसे यीशु ने अपनी मृत्यु के बारे में बताया है। यह बताता है कि यीशु ने अपनी खुद की मृत्यु की अपेक्षा की थी और बल्कि अपने पुनरूत्थान की भी (पद - 33-34)। उनकी मृत्यु अनपेक्षित नहीं थी। इसे जानबूझकर चुना गया था। इसका अंत दु:खद नहीं था, बल्कि विजय में था।
इसके अलावा, अपनी मृत्यु के उद्देश्य और इसके परिणाम की उन्हें स्पष्ट समझ थी: 'मनुष्य का पुत्र इसलिये नहीं आया, कि उस की सेवा टहल की जाए, पर इसलिये आया, कि आप सेवा टहल करें, और बहुतों की छुड़ौती के लिये अपना प्राण दे' (पद - 45)।
अपनी मृत्यु की समझ की पृष्ठभूमि में यशायाह 53 शामिल है - 'दु:ख उठाने वाले' दास का लेखांश। यहाँ हम स्पष्ट प्रमाण देखते हैं कि यीशु ने अपनी मृत्यु को 'दु:ख उठाने वाले दास' के रूप में देखा।
- दु:ख उठाना
यीशु इस दुनिया में क्यों आए थे? वह जान गए थे कि उनके मिशन का उद्देश्य दु:ख उठाना था। उनके आने का यही 'मकसद' था (मरकुस 10:45ब)। वह मेरे लिए और आपके लिए अपना प्राण बलिदान करने के लिए आए थे।
- सेवक
यीशु 'सेवा करने' की अभिव्यक्ति का उपयोग करते हैं (पद - 45अ)। वह खुद को 'एक सेवक' के रूप में देखते हैं। वह 'सेवा करवाने' नहीं, बल्कि 'सेवा करने' आए थे। 'अपना प्राण देने' की अभिव्यक्ति (पद - 45ब) यशायाह 53:10 में दास के शब्दों की पुनरावृत्ति है ('पाप के लिए अपने प्राण का बलिदान देते हैं') और यशायाह 53:12 ('उसने अपना प्राण मृत्यु के लिये उण्डेल दिया')।
- उद्धारकर्ता
शब्द 'छुड़ौती' शब्द (मरकुस 10:45ब) का उपयोग युद्ध के कैदियों और गुलामी के लिए किया गया है। इसका मतलब है उनकी फिरौती के लिए दी गई कीमत (गिनती 18:15-16)। इसे गुलामों को आज़ाद करने के लिए दी जाती है। क्रूस पर यीशु की मृत्यु आज़ाद करने के द्वारा आपको और मुझे बचाता है।
- बदले में
मरकुस 10:45 में 'के लिए' शब्द का ग्रीक में अनुवाद 'के विरोध' में है जिसका मतलब है 'के बदले' और यह प्रतिस्थापन के विचार का सुझाव देता है। यह हमारे बदले में दु:ख उठाने का विचार है जो यशायाह में 53 दृढ़ता से बताया गया है। इन शब्दों का उपयोग करने के द्वारा यीशु बतलाते हैं कि उनकी मृत्यु अकस्मात या उनके खुद के पापों के कारण नहीं हुई थी, बल्कि यह उन लोगों के 'बदले में' दु:ख उठाना था जिन्हें यह दु:ख उठाना पड़ता था।
शब्द 'बहुतों' (मरकुस 10:45) का उपयोग यशायाह 53:11-12 में किया गया है जो सेवक के दु:ख उठाने के फायदों का वर्णन करता है। यशायाह 53 में यह मुख्य शब्द है।
इसके अलावा, यीशु अपनी मृत्यु की उपमा (मरकुस 10:38) पुराने नियम में से कटोरा पीने के रूप में देते हैं। पुराना नियम पाप के विरूद्ध परमेश्वर के क्रोध का कटोरा बतलाता है। यीशु कहते हैं 'जो कटोरा मैं पीने पर हूँ' (पद - 38)। वह खुद को, हमारे बदले में पाप के विरूद्ध परमेश्वर की शत्रुतापूर्ण प्रतिक्रिया, के रूप में देखते हैं।
यीशु ने अपनी मृत्यु और पुनरूत्थान के द्वारा पाप, बुराई और मृत्यु को हरा दिया है। इसके परिणाम स्वरूप, हम क्षमा पा सकते हैं, अपने अपराध से मुक्त हो सकते हैं, भलाई से बुराई पर जय पा सकते हैं। आपको भविष्य के बारे में डरने की ज़रूरत नहीं है। मृत्यु खुद ही पराजित हो गई है।
जब यीशु ने अपने शिष्यों से पूछा, 'तुम क्या चाहते हो, जो मैं तुम्हारे लिए करूँ?', तब उन्होंने गलत जवाब दिया। उन्हें प्रमुख स्थान चाहिये था (पद - 37)। मसीही अगुआई की हमेशा से यह इच्छा रही है कि वे प्रमुख स्थानों के लिए प्रतियोगिता करें।
हमें यीशु का अनुसरण करने, उनकी सेवा करने और दूसरों की सेवा करने के लिए बुलाया गया है। आत्मिक अभिलाषा रखना गलत बात नहीं है। यह यीशु के लिए इच्छा करने के बजाय अपनी महिमा करवाने जितना गूढ़ है। यीशु कहते हैं, ' तुम में ऐसा नहीं है, वरन जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे वह तुम्हारा सेवक बने' (पद - 43)।
अवश्य ही, अक्सर हम में से ज़्यादातर लोगों का मूलभाव मिलाजुला रहता है। जहाँ हम शिष्यों की तरह, अपनी पदवियों, अपेक्षाओं, पदोन्नति, आमदनी और प्रसिद्धि पाने की चेष्टा में लगे रहते हैं, यीशु हम से छ: शब्द कहते हैं: ' पर तुम में ऐसा नहीं है' (पद - 43)। हमें सेवा करने के लिए बुलाया गया है क्योंकि यीशु की सेवा करने की रूप रेखा ऐसी ही रही है।
प्रमाणिक अगुआई की पोशाक एक सम्राट की पोशाक के समान बैंगनी रंग की नहीं है, बल्कि हमारे मुक्तिदाता के कांटों का मुकुट है। यह क्रूस के बारे में है, ना कि सिंहासन के बारे में। यह दूसरों के लिए जीवन देने के बारे में है।
तो आइये हम बरतिमाई के समान यीशु को दया के लिए पुकारें (पद - 47)। जब हम दया के लिए उन्हें पुकारते हैं, तो यीशु हमेशा जवाब देते हैं। बरतिमाई ने दृष्टि मांगी। उसकी आँखें खुल गईं और उसने यीशु को देखा।
परमेश्वर से आज ही कहिये कि वह आपकी आँखें खोल दें ताकि आप यीशु को देखें और वह सब समझ पाएं जो उन्होंने क्रूस पर अपनी मृत्यु के द्वारा आपके लिए की है।
प्रार्थना
प्रभु मेरी आँखें खोलिये कि मैं आपको स्पष्ट रूप से देखूँ, आप से और भी गहराई से प्यार करूँ तथा आपके और ज़्यादा करीब आ जाऊँ (‘सेंट रिचर्ड ऑफ चाइचेस्टर’ की प्रार्थना से लिया गया)।
लैव्यव्यवस्था 5:14-7:10
14 यहोवा ने मूसा से कहा, 15 “कोई व्यक्ति यहोवा की पवित्र वस्तुओं के प्रति अकस्मात् कोई गलती कर सकता है। तो उस व्यक्ति को एक दोष रहित मेढ़ा लाना चाहिए। यह मेढ़ा यहोवा के लिए उसकी दोषबलि होगी। तुम्हें उस मेढ़े का मुल्य निर्धारित करने के लिए अधिकृत मानक का प्रयोग करना चाहिए। 16 उस व्यक्ति को पवित्र चीजों के विपरीत किये गये पाप के लिए भुगतान अवश्य करना चाहिए। जिन चीज़ों का उसने वायदा किया है, वे अवश्य देनी चाहिए। उसे मूल्य में पाँचवाँ भाग जोड़ना चाहिए। उसे यह धन याजक को देना चाहिए। इस प्रकार याजक दोषबलि के मेढ़े द्वारा उस व्यक्ति के पाप को धोएगा और यहोवा उसके पाप को क्षमा करेगा।
17 “यदि कोई व्यक्ति पाप करता है और जिन चीजों को न करने का आदेश यहोवा ने दिया है। उन्हें करता है तो इस बात का कोई महत्व नहीं कि वह इसे नहीं जानता । वह व्यक्ति अपराधी है और उसे अपने पाप का फल भोगना होगा। 18 उस व्यक्ति को एक निर्दोष मेढ़ा अपनी रेवड़ से याजक के पास लाना चाहिए। मेढ़ा दोषबलि होगा। इस प्रकार याजक उस व्यक्ति के उस पाप का भुगतान करेगा जिसे उसने अनजाने में किया। यहोवा उस व्यक्ति को क्षमा करेगा। 19 व्यक्ति अपराधी हो चाहे वह यह न जानता हो कि वह पाप कर रहा है। इसलिए उसे यहोवा को दोषबलि देना होगी।”
बेईमान लोगों की दोषबलि
6यहोवा ने मूसा से कहा, 2 “कोई व्यक्ति यहोवा के प्रति इनमें से किसी एक को करके अपराध कर सकता है: वह किसी अन्य के लिए जिसकी वह देखभाल कर रहा हो, उसे कुछ होने के बारे में झूठ बोल सकता है, अथवा कोई व्यक्ति अपने दिए वचन के बारे में झूठ बोल सकता है, अथवा कोई व्यक्ति कुछ चुरा सकता है, या कोई व्यक्ति किसी को ठग सकता है, 3 अथवा किसी को कोई खोई चीज मिले और तब वह उसके विषय में झूठ बोल सकता है या कोई व्यक्ति कुछ करने का वचन दे सकता है और तब अपने दिये गये वचन को पूरा नहीं करता है, अथवा कोई कुछ अन्य बुरा कर सकता है। 4 यदि कोई व्यक्ति इनमें से किसी को करता है तो वह पाप करने का दोषी है। उस व्यक्ति को जो कुछ उसने चुराया हो या ठगकर जो कुछ लिया हो या किसी व्यक्ति के कहने से उसकी धरोहर के रूप में जो रखा हो, या किसी का खोया हुआ पाकर उसके बारे में झुठ बोला हो 5 या जिस किसी के बारे में झुठा वचन दिया हो, वह उसे लौटान चाहिए। उसे पूरा मूल्य चुकाना चाहिए और तब उसे वस्तु के मूल्य का पाँचवाँ हिस्सा अतिरिक्त देना चाहिए। उसे असली मालिक को धन देना चाहिए। उसे यह उसी दिन करना चाहिए जिस दिन वह दोषबलि लाए। 6 उस व्यक्ति को दोषबलि याजक के पास लाना चाहिए। यह रेवड़ से एक मेढ़ा होना चाहिए। मेढ़े में कोई दोष नहीं होना चाहिए। यह उसी मूल्य का होना चाहिए जो याजक कहे। यह यहोवा को दी गी दोषबलि होगी। 7 तब याजक यहोवा के पास जाएगा और उस व्यक्ति के उन पापों के लिए भुगतान करेगा जिनका वह अपराधी है, और यहोवा उस व्यक्ति को उन पापों के लिए क्षमा करेगा जिन्होंने उसे अपराधी बनाया।”
होमबलि
8 यहोवा ने मूसा से कहा, 9 “हारून और उसके पुत्रों को यह आदेश दोः यह होमबलि का नियम है। होमबलि को वेदी के अग्नि कुण्ड में पूरी रात सवेरा होने तक रखना चाहिए। वेदी की आग को वेदी पर जलती रहनी चाहिए। 10 याजक को सन के उत्तम रेशों के बने वस्त्र पहनने चाहिए। उसे अपने शरीर से चिपका सन का अर्न्तवस्त्र पहनना चाहिए। तब याजक को वेदी पर होमबलि पर जलने के बाद बची हुई राख को उठाना चाहिए। याजक को वेदी की एक ओर राख को रखना चाहिए। 11 तब याजक को अपने वस्त्रों को उतारना चाहिए और अन्य वस्त्र पहनने चाहिए। तब उसे डेरे से बाहर स्वच्छ स्थान पर राख ले जानी चाहिए। 12 किन्तु वेदी की आग वेदी में जलती रहनी चाहिए। इसे बुझने नहीं देना चाहिए। याजक को हर सुबह वेदी पर लकड़ी जलानी चाहिए। उसे वेदी पर लकड़ी रखनी चाहिए। उसे मेलबलि की चर्बी जलानी चाहिए। 13 वेदी पर आग लगातार जलती रहनी चाहिए। यह बुझनी नहीं चाहिए।
अन्नबलि
14 “अन्नबलि का यह नियम है कि: हारून के पुत्रों को वेदी के सामने यहोवा के लिए इसे लाना चाहिए। 15 याजक को अन्नबलि में से मुट्ठी भर उत्तम आटा लेना चाहिए। तेल और लोबान अन्नबलि पर अवश्य होना चाहिए। याजक को अन्नबलि को वेदी पर जलाना चाहिए। यह यहोवा को एक सुगन्धित और स्मृति भेंट होगी।
16 “हारून और उसके पुत्रों को बची हुई अन्नबलि को खाना चाहिए। अन्नबलि एक प्रकार की अख़मीरी रोटी की भेंट है। याजक को इस रोटी को पवित्र स्थान में खाना चाहिए। उन्हें मिलापवाले तम्बू के आँगन में अन्नबलि खानी चाहिए। 17 अन्नबलि खमीर के साथ नहीं पकाई जानी चाहिए। मुझको (यहोवा को) आग द्वारा दी जाने वली बलि में से उनके (याजकों के) भाग के रूप में मैंने इसे दिया है। यह पापबलि तथा दोषबलि के समान अत्यन्त पवित्र है। 18 हारून की सन्तानों में से हर एक लड़का आग द्वारा यहोवा को चड़ाई गई भेंट में से खा सकता है। यह तुम्हारी पीढ़ीयों का सदा के लिए नियम है। इन बलियों का स्पर्श उन व्यक्तियों को पवित्र करता है।”
याजकों की अन्नबलि
19 यहोवा ने मूसा से कहा, 20 “हारून तथा उसेके पुत्रों को जो बलि यहोवा को लानी चाहिए, वह यह है। उन्हें यह उस दिन करना चाहिए जिस दिन हारून का अभिषेक हुआ है। उन्हें सदा दो क्वार्ट उत्तम महीन आटा अन्नबलि के लिए लेना चाहिए। उन्हें इसका आधा प्रातः काल तथा आधा सन्ध्या काल में लाना चाहिए। 21 उत्तम महीन आटे में तेल मिलाना चाहिए और उसे कड़ाही में भूनना चाहिए। जब यह भुन जाए तब इसे अन्दर लाना चाहिए। तुम्हें अन्नबलि का चूरमा बना लेना चाहिए। इस की सुगन्ध यहोवा को प्रसन्न करेगी।
22 “हारून के वंश में से वह याजक जिसका हारून के स्थान पर अभिषेक हो, यहोवा को यह अन्नबलि चढ़ाए। यह नियम सदा के लिए है। यहोवा के लिए अन्नबलि पूरी तरह जलाई जानी चाहिए। 23 जाजक की हर एक अन्नबलि पूरी तरह जलाई जानी चाहिए। इसे खाना नहीं चाहिए।”
पापबलि के नियम
24 यहोवा ने मूसा से कहा, 25 “हारून और उसके पुत्रों से कहो: पापबलि के लिए यह नियम है कि पापबलि को भी वहीं मारा जाना चाहिए जहाँ यहोवा के सामने होमबलि को मारा जाता है। यह अत्यन्त पवित्र है। 26 उस याजक को इसे खाना चाहिए, जो पापबलि चढ़ाता है। उसे पवित्र स्थान पर मिलापवाले तम्बू के आँगन में इसे खाना चाहिए। 27 पापबलि के माँस का स्पर्श किसी भी व्यक्ति को पवित्र करता है।
“यदि छिड़का हुआ खून किसी के वस्त्रों पर पड़ता है तो उन वस्त्रों को धो दिया जाना चाहिए। तुम्हें उन वस्त्रों को एक निश्चित पवित्र स्थान में धोना चाहिए। 28 यदि पापबलि किसी मिट्टी के बर्तन में उबाली जाए तो उस बर्तन को फोड़ देना चाहिए। यदि पापबलि को काँसे के बर्तन में उबाला जाय तो बर्तन को माँजा जाए और पानी में धोया जाए।
29 “परिवार का प्रत्येक पुरुष सदस्य याजक, पापबलि को खा सकात है। यह अत्यन्त पवित्र है। 30 किन्तु यदि पापबलि का खून पवित्र स्थान को शुद्ध करने के लिए मिलापवाले तम्बू में ले जाया गया हो तो पापबलि को आग में जला देना चाहिए। याजक उस पापबलि को नहीं खा सकते।”
दोषबलि
7“दोषबलि के लिए यह नियम है। यह अत्यन पवित्र है। 2 याजक को दोष बलि को उसी स्थान पर मारना चाहिए जिस पर वह होमबलियों को मारता है। याजक को दोषबलि में से वेदी के चारों ओर खून छिड़कना चाहिए।
3 “याजक को दोषबलि की सारी चर्बी चढ़ानी चाहिए। उसे चर्बी भरी पूँछ, भीतरी भागों को ढकने वाली चर्बी, 4 दोनों गुर्दे और उनके ऊपर की चर्बी, पुट्ठों की चर्बी, और कलेजे की चर्बी चढ़ानी चाहिए। 5 याजक को वेदी पर उन सभी चीजों को जलाना चाहिए। ये यहोवा को आग द्वारा दी गई बलि होगी। यह दोषबलि है।
6 “हर एक पुरुष जो याजक है, दोषबलि खा सकता है। यह बहुत पवित्र है। अत: इसे एक निश्चित पवित्र स्थान में खाना चाहिए। 7 दोषबलि पापबलि के समान है। दोनों के लिए एक जैसे नियम हैं। वह याजक, जो बलि चढ़ाता है, उसको वह प्राप्त करेगा। 8 वह याजक जो बलि चढ़ाता है चमड़ा भी होमबलि से ले सकता है। 9 हर एक अन्नबलि चढ़ाने वाले याजक की होती है। याजक उन अन्नबलियों को लेगा जो चूल्हे में पकी हों, या कड़ाही में पकी हों या तवे पर पकी हों। 10 अन्नबलि हारुन के पुत्रों की होंगी। उससे कोई अन्तर नहीं पड़ेगा कि वे सूखी अथवा तेल मिली हैं। हारून के पुत्र याजक समान भागीदार होंगे।
समीक्षा
उनकी मृत्यु का कारण देखें
यहाँ हम फिर से खुद की मृत्यु के बारे में यीशु की समझ की पृष्ठ भूमि देखेंगे। 'दोषबलि' पाप के लिए अदा किया गया 'दंड' है (5:15)। यह क्षमा की ओर ले जाता है (पद - 16) और इसमें लहू बहाना शामिल है (7:2)। यह इस बात का पूर्वाभास है जो यीशु आपके लिए और मेरे लिए क्रूस पर करने वाले थे।
जब मैं पुराने नियम की पृष्ठ भूमि को और खुद के पाप की गंभीरता समझने लगा, मैं उस बलिदान की भयावहता को समझने लगा जो यीशु ने मेरे लिए किया है। जब यीशु ने मेरे पापों के लिए परमेश्वर की शत्रुपूर्ण प्रतिक्रिया को सहन किया, तो इसने मुझे परमेश्वर से क्षमा पाना और परिपूर्णता के जीवन को अनुभव करना संभव बना दिया।
तब मेरा अनुभव अंधे बरतिमाई के जैसा था। मेरा अंधापन शारीरिक नहीं बल्कि आत्मिक था। मैंने भी उसके जैसे पुकारा, 'यीशु…. मुझ पर दया कर' (मरकुस 10:47-48)। मैंने दृष्टि पाई और मैं यीशु के पीछे चलने लगा। यह ऐसा नहीं है जिसे मैंने सीखा है। यह विश्वास के द्वारा पाया गया वरदान है, जैसा कि यीशु ने बरतिमाई से कहा था, 'जा….. तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है' (पद - 52)।
प्रार्थना
प्रभु, मेरे बदले में क्रूस पर अपने बलिदान की भयावहता को सहन करने के बारे में मेरी समझ की आँखें खोलने के लिए धन्यवाद। आपका धन्यवाद कि मुझे कभी क्षमा नहीं मिल सकती थी, लेकिन मैंने इसे विश्वास के वरदान द्वारा पाया है। मेरी मदद कीजिये, कि मैं बरतिमाई के समान आपके पीछे चलूँ और अपना जीवन आपकी सेवा में और दूसरों की सेवा में समर्पित कर दूँ।
पिप्पा भी कहते है
लैव्यव्यवस्था 6:4
'तब जो भी वस्तु उसने लूट, व अन्धेर करके, व धरोहर, व पड़ी पाई हो; चाहे कोई भी वस्तु क्यों न हो जिसके विषय में उसने झूठी शपथ खाई हो; तो वह उसको पूरा - पूरा लौटा दे'
मुझे यह कहना पड़ेगा कि आराधनालय में लोगों की बहुत सी छतरियाँ छूट गई थीं और हमने इन्हें बेहद उपयोगी पाया!

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संदर्भ
नोट्स:
सामान्य आराधना: सर्विसेस एंड प्रेयर्स फोर द चर्च ऑफ इंग्लैंड, सभा में शामिल की जानेवाली सामग्री, जो कि द आर्कबिषप्स काउंसिल 2000 की कॉपी राइट© है
प्रेयर ऑफ सेंट रिचर्ड ऑफ चाइचेस्टर (1197-1253), http://www.spck.org.uk/classic-prayers/st-richard-of-chichester/, © SPCK - Society for Promoting Christian Knowledge 2015 \[last accessed, February 2015\]
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है। कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002। जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।