जीवन के लिए मार्गदर्शन
परिचय
पिप्पा और मैं अक्सर जल्दी में होते हैं। हम अपनी कार यात्रा की सही योजना नहीं बना पाते। कई बार हम गलत दिशा में निकल जाते हैं और अक्सर रास्ता भी भटक जाते हैं (यहाँ तक कि Google Maps के साथ भी!)। मुझे समझ नहीं आता कि मुझे अच्छे दिशा-निर्देश लेने और उन्हें मानने की अहमियत समझने में इतना समय क्यों लग गया।
हम में से बहुत से लोग जीवन में भी ऐसे ही होते हैं। हम बिना सोचे-समझे भागते रहते हैं। हमें यह एहसास नहीं होता कि जीवन के लिए सही दिशा-निर्देश लेना कितना ज़रूरी है। अगर आप परमेश्वर के दिए हुए दिशा-निर्देशों का पालन करेंगे, तो आप न केवल स्वयं आशीष पाएँगे बल्कि दूसरों के लिए भी आशीष का कारण बनेंगे।
भजन संहिता 5:1-12
बाँसुरी वादकों के निर्देशक के लिये दाऊद का गीत।
5हे यहोवा, मेरे शब्द सुन
और तू उसकी सुधि ले जिसको तुझसे कहने का मैं यत्न कर रहा हूँ।
2 मेरे राजा, मेरे परमेश्वर
मेरी प्रार्थना सुन।
3 हे यहोवा, हर सुबह तुझको, मैं अपनी भेंटे अर्पित करता हूँ।
तू ही मेरा सहायक है।
मेरी दृष्टि तुझ पर लगी है और तू ही मेरी प्रार्थनाएँ हर सुबह सुनता है।
4 हे यहोवा, तुझ को बुरे लोगों की निकटता नहीं भाती है।
तू नहीं चाहता कि तेरे मन्दिर में कोई भी पापी जन आये।
5 तेरे निकट अविश्वासी नहीं आ सकते।
ऐसे मनुष्यों को तूने दूर भेज दिया जो सदा ही बुरे कर्म करते रहते हैं।
6 जो झूठ बोलते हैं उन्हें तू नष्ट करता है।
यहोवा ऐसे मनुष्यों से घृणा करता है, जो दूसरों को हानि पहुँचाने का षड़यन्त्र रचते हैं।
7 किन्तु हे यहोवा, तेरी महा करुणा से मैं तेरे मन्दिर में आऊँगा।
हे यहोवा, मुझ को तेरा डर है, मैं सम्मान तुझे देता हूँ। इसलिए मैं तेरे मन्दिर की ओर झुककर तुझे दण्डवत करुँगा।
8 हे यहोवा, तू मुझको अपनी नेकी का मार्ग दिखा।
तू अपनी राह को मेरे सामने सीधी कर
क्योंकि मैं शत्रुओं से घिरा हुआ हूँ।
9 वे लोग सत्य नहीं बोलते।
वे झूठे हैं, जो सत्य को तोड़ते मरोड़ते रहते हैं।
उनके मुख खुली कब्र के समान हैं।
वे औरों से उत्तम चिकनी—चुपड़ी बातें करते किन्तु वे उन्हें बस जाल में फँसाना चाहते हैं।
10 हे परमेश्वर, उन्हें दण्ड दे।
उनके अपने ही जालों में उनको उलझने दे।
ये लोग तेरे विरुद्ध हो गये हैं,
उन्हें उनके अपने ही बहुत से पापों का दण्ड दे।
11 किन्तु जो परमेश्वर के आस्थावान होते हैं, वे सभी प्रसन्न हों और वे सदा सर्वदा को आनन्दित रहें।
हे परमेश्वर, तू उनकी रक्षा कर और उन्हें तू शक्ति दे जो जन तेरे नाम से प्रीति रखते हैं।
12 हे यहोवा, तू निश्चय ही धर्मी को वरदान देता है।
अपनी कृपा से तू उनको एक बड़ी ढाल बन कर फिर ढक लेता है।
समीक्षा
हर दिन की शुरुआत दिशा-निर्देश पाने से करें
जब हम किसी यात्रा पर निकलते हैं, तो सबसे अच्छा समय सही दिशा-निर्देश लेने का होता है – यात्रा शुरू करने से पहले।
इस भजन में हमें यह सिखाया गया है कि हर दिन की शुरुआत कैसे करें: "हे मेरे राजा और मेरे परमेश्वर, मेरी दोहाई सुन, क्योंकि मैं तुझी से प्रार्थना करता हूँ। प्रभु, तू सुबह को मेरी बात सुनता है; सुबह को ही मैं तुझ से अपनी विनती करके आशा रखता हूँ" (भजन 5:2–3). दाऊद "दिशा-निर्देश की प्रतीक्षा कर रहा है" (पद 8, संस्करण के अनुसार)।
हर दिन की शुरुआत परमेश्वर के सामने अपने निवेदन रखने से कुछ खास होती है। जब आप आशा और भरोसे के साथ प्रतीक्षा करते हैं, तो आपका पूरा दिन एक नई दिशा और उद्देश्य के साथ आगे बढ़ता है।
प्रार्थना
प्रभु, आज मैं अपने निवेदन तेरे सामने रखता हूँ और तेरे मार्गदर्शन की प्रतीक्षा करता हूँ। हे प्रभु, मेरी अगुवाई कर। मुझ पर अपनी सुरक्षा फैला दे। मुझे अपनी कृपा से ऐसे घेर ले जैसे ढाल घेरती है। (भजन 5:8, 11, 12 के आधार पर)
मत्ती 5:21-42
क्रोध
21 “तुम जानते हो कि हमारे पूर्वजों से कहा गया था ‘हत्या मत करो और यदि कोई हत्या करता है तो उसे अदालत में उसका जवाब देना होगा।’ 22 किन्तु मैं तुमसे कहता हूँ कि जो व्यक्ति अपने भाई पर क्रोध करता है, उसे भी अदालत में इसके लिये उत्तर देना होगा और जो कोई अपने भाई का अपमान करेगा उसे सर्वोच्च संघ के सामने जवाब देना होगा और यदि कोई अपने किसी बन्धु से कहे ‘अरे असभ्य, मूर्ख।’ तो नरक की आग के बीच उस पर इसकी जवाब देही होगी।
23 “इसलिये यदि तू वेदी पर अपनी भेंट चढ़ा रहा है और वहाँ तुझे याद आये कि तेरे भाई के मन में तेरे लिए कोई विरोध है 24 तो तू उपासना की भेंट को वहीं छोड़ दे और पहले जा कर अपने उस बन्धु से सुलह कर। और फिर आकर भेंट चढ़ा।
25 “तेरा शत्रु तुझे न्यायालय में ले जाता हुआ जब रास्ते में ही हो, तू झटपट उसे अपना मित्र बना ले कहीं वह तुझे न्यायी को न सौंप दे और फिर न्यायी सिपाही को, जो तुझे जेल में डाल देगा। 26 मैं तुझे सत्य बताता हूँ तू जेल से तब तक नहीं छूट पायेगा जब तक तू पाई-पाई न चुका दे।
व्यभिचार
27 “तुम जानते हो कि यह कहा गया है, ‘व्यभिचार मत करो।’ 28 किन्तु मैं तुमसे कहता हूँ कि यदि कोई किसी स्त्री को वासना की आँख से देखता है, तो वह अपने मन में पहले ही उसके साथ व्यभिचार कर चुका है। 29 इसलिये यदि तेरी दाहिनी आँख तुझ से पाप करवाये तो उसे निकाल कर फेंक दे। क्योंकि तेरे लिये यह अच्छा है कि तेरे शरीर का कोई एक अंग नष्ट हो जाये बजाय इसके कि तेरा सारा शरीर ही नरक में डाल दिया जाये। 30 और यदि तेरा दाहिना हाथ तुझ से पाप करवाये तो उसे काट कर फेंक दे। क्योंकि तेरे लिये यह अच्छा है कि तेरे शरीर का एक अंग नष्ट हो जाये बजाय इसके कि तेरा सम्पूर्ण शरीर ही नरक में चला जाये।
तलाक
31 “कहा गया है, ‘जब कोई अपनी पत्नी को तलाक देता है तो उसे अपनी पत्नी को लिखित रूप में तलाक देना चाहिये।’ 32 किन्तु मैं तुमसे कहता हूँ कि हर वह व्यक्ति जो अपनी पत्नी को तलाक देता है, यदि उसने यह तलाक उसके व्यभिचारी आचरण के कारण नहीं दिया है तो जब वह दूसरा विवाह करती है, तो मानो वह व्यक्ति ही उससे व्यभिचार करवाता है। और जो कोई उस छोड़ी हुई स्त्री से विवाह रचाता है तो वह भी व्यभिचार करता है।
शपथ
33 “तुमने यह भी सुना है कि हमारे पूर्वजों से कहा गया था, ‘तू शपथ मत तोड़ बल्कि प्रभु से की गयी प्रतिज्ञाओं को पूरा कर।’ 34 किन्तु मैं तुझसे कहता हूँ कि शपथ ले ही मत। स्वर्ग की शपथ मत ले क्योंकि वह परमेश्वर का सिंहासन है। 35 धरती की शपथ मत ले क्योंकि यह उसकी पाँव की चौकी है। यरूशलेम की शपथ मत ले क्योंकि यह महा सम्राट का नगर हैं। 36 अपने सिर की शपथ भी मत ले क्योंकि तू किसी एक बाल तक को सफेद या काला नहीं कर सकता है। 37 यदि तू ‘हाँ’ चाहता है तो केवल ‘हाँ’ कह और ‘ना’ चाहता है तो केवल ‘ना’ क्योंकि इससे अधिक जो कुछ है वह शैतान से है।
बदले की भावना मत रख
38 “तुमने सुना है: कहा गया है, ‘आँख के बदले आँख और दाँत के बदले दाँत।’ 39 किन्तु मैं तुझ से कहता हूँ कि किसी बुरे व्यक्ति का भी विरोध मत कर। बल्कि यदि कोई तेरे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल भी उसकी तरफ़ कर दे। 40 यदि कोई तुझ पर मुकद्दमा चला कर तेरा कुर्ता भी उतरवाना चाहे तो तू उसे अपना चोगा तक दे दे। 41 यदि कोई तुझे एक मील चलाए तो तू उसके साथ दो मील चला जा। 42 यदि कोई तुझसे कुछ माँगे तो उसे वह दे दे। जो तुझसे उधार लेना चाहे, उसे मना मत कर।
समीक्षा
यीशु के जीवन के दिशा-निर्देशों का पालन करें
जैसे हर गाड़ी चलाने के लिए कुछ सामान्य नियम होते हैं, वैसे ही यीशु ने अपने पहाड़ी उपदेश (Sermon on the Mount) में एक ऐसा जीवन जीने के लिए दिशा-निर्देश दिए हैं जो आशीषों से भरा हो — यह एक तरह से जीवन के लिए 'हाईवे कोड' है।
यीशु के बताए रास्ते पर चलना एक अलग और कट्टर जीवनशैली अपनाना है। वो हमें हर गलत सोच, रवैये, शब्द और काम से सख्ती से निपटने की चुनौती देते हैं।
हमारे शब्द आशीर्वाद देने वाले होने चाहिए, न कि गुस्से से भरे हुए। अपने भाई-बहनों के खिलाफ गुस्से वाले शब्द न बोलें (पद 21–22)। जैसा कि एक अनुवाद में लिखा है: “सरल नैतिक सच्चाई यह है कि शब्द मार डालते हैं” (पद 22, MSG)। लेकिन, शब्द जीवन भी दे सकते हैं। आज तय करें कि आप ऐसे शब्द बोलेंगे जो बुद्धि, हिम्मत और आशीर्वाद से भरे हों।
अगर किसी से हमारी अनबन हो गई है, तो हमें अपनी तरफ से पूरी कोशिश करनी चाहिए कि सुलह हो जाए (पद 23–26)। अगर हमें याद आता है कि किसी दोस्त को हमसे कोई शिकायत है, तो पहल करके जाकर सुलह करनी चाहिए (पद 23–24, MSG)। और अगर किसी पुराने दुश्मन से सामना होता है, तो भी पहल कर के रिश्ता ठीक करने की कोशिश करनी चाहिए (पद 25, MSG)।
हमें अपनी आँखों और दिल की सुरक्षा करनी है। अगर ये बिगड़ जाएं, तो हम दूसरों के लिए आशीष नहीं बल्कि खुद एक सड़ी हुई सोच बन जाएंगे।
यीशु जब व्यभिचार (adultery) की बात करते हैं, तो वो केवल शारीरिक संबंध की बात नहीं करते। वो कहते हैं, “यह मत सोचो कि केवल बिस्तर से दूर रहकर तुमने अपनी पवित्रता बचा ली। तुम्हारा दिल वासना से शरीर से भी जल्दी भ्रष्ट हो सकता है। वो घूरती हुई नज़रें जो तुम्हें लगता है कोई नहीं देख रहा – वो भी तुम्हें खराब कर देती हैं” (पद 28, MSG)।
यीशु बताते हैं कि व्यभिचार की शुरुआत आँखों से होती है। इसलिए शुरुआत में ही कड़ा कदम उठाना जरूरी है (पद 29–30)। जैसे अय्यूब ने कहा था, “मैंने अपनी आँखों से यह वादा किया कि किसी लड़की को वासना की नजर से नहीं देखूंगा” (अय्यूब 31:1)।
शादी एक ऐसा रिश्ता है जिसमें एक-दूसरे को आशीर्वाद देना और दूसरों के लिए आशीर्वाद का स्रोत बनना होता है। इसका मतलब है शादी में पूरी वफादारी से जीना (मत्ती 5:31–32)। यीशु तलाक को ‘स्वार्थ और मनमानी’ का बहाना बनाने के खिलाफ बोलते हैं (पद 32a, MSG)।
हमें एकदम सच्चे और ईमानदार जीवन जीना है — जहाँ हम जो कहें, वही मतलब हो। “तुम्हारा ‘हाँ’ का मतलब बस ‘हाँ’ हो और ‘ना’ का मतलब बस ‘ना’। इससे ज़्यादा कुछ शैतान से आता है” (पद 37)।
दूसरों को आशीर्वाद देना मतलब उन लोगों को भी आशीर्वाद देना जो हमारे साथ बुरा करते हैं (पद 38–42)। “बिलकुल भी पलटकर मत मारो... अब और बदले की बात नहीं। उदारता से जियो” (पद 39, 42, MSG)। जो बुराई के बदले बुराई करता है, वो शैतानी है। जो अच्छाई के बदले अच्छाई करता है, वो इंसानी है। लेकिन जो बुराई के बदले भी अच्छाई करता है — वही यीशु का तरीका है।
प्रार्थना
प्रभु, मेरी मदद कर कि मैं इस साल तेरे जीवन के दिशा-निर्देशों का पालन कर सकूं और जहाँ भी जाऊँ, वहाँ आशीष फैलाऊँ।
उत्पत्ति 11:10-13:18
शेम के परिवार की कथा
10 यह शेम के परिवार की कथा है। बाढ़ के दो वर्ष बाद जब शेम सौ वर्ष का था उसके पुत्र अर्पक्षद का जन्म हुआ। 11 उसके बाद शेम पाँच सौ वर्ष जीवित रहा। उसके अन्य पुत्र और पुत्रियाँ थीं।
12 जब अर्पक्षद पैंतीस वर्ष का था उसके पुत्र शेलह का जन्म हुआ। 13 शेलह के जन्म होने के बाद अर्पक्षद चार सौ तीन वर्ष जीवित रहा। इन दिनों उसके दूसरे पुत्र और पुत्रियाँ पैदा हुईं।
14 शेलह के तीस वर्ष के होने पर उसके पुत्र एबेर का जन्म हुआ। 15 एबेर के जन्म के बाद शेलह चार सौ तीन वर्ष जीवित रहा। इन दिनों में उसके दूसरे पुत्र और पुत्रियाँ उत्पन्न हुईं।
16 एबेर के चौंतीस वर्ष के होने के बाद उसके पुत्र पेलेग का जन्म हुआ। 17 पेलेग के जन्म के बाद एबेर चार सौ तीन वर्ष और जीवित रहा। इन दिनों में इसको दूसरे पुत्र और पुत्रियाँ हुईं।
18 जब पेलेग तीस वर्ष का हुआ, उसके पुत्र रु का जन्म हुआ। 19 रु के जन्म के बाद पेलेग दो सौ नौ वर्ष और जीवित रहा। उन दिनों में उसके अन्य पुत्रियों और पुत्रों का जन्म हुआ।
20 जब रु बत्तीस वर्ष का हुआ, उसके पुत्र सरूग का जन्म हुआ। 21 सरूग के जन्म के बाद रु दो सौ सात वर्ष और जीवित रहा। इन दिनों उसके दूसरे पुत्र और पुत्रियाँ हुईं।
22 जब सरुग तीस वर्ष का हुआ, उसके पुत्र नाहोर का जन्म हुआ। 23 नाहोर के जन्म के बाद सरुग दो सौ वर्ष और जीवित रहा। इन दिनों में उसके दूसरे पुत्रों और पुत्रियों का जन्म हुआ।
24 जब नाहोर उनतीस वर्ष का हुआ, उसके पुत्र तेरह का जन्म हुआ। 25 तेरह के जन्म के बाद नाहोर एक सौ उन्नीस वर्ष और जीवित रहा। इन दिनों में उसके दूसरी पुत्रियों और पुत्रों का जन्म हुआ।
26 तेरह जब सत्तर वर्ष का हुआ, उसके पुत्र अब्राम, नाहोर और हारान का जन्म हुआ।
तेरह के परिवार की कथा
27 यह तेरह के परिवार की कथा है। तेरह अब्राम, नाहोर और हारान का पिता था। हारान लूत का पिता था। 28 हारान अपनी जन्मभूमि कसदियों के उर नगर में मरा। जब हारान मरा तब उसका पिता तेरह जीवित था। 29 अब्राम और नाहोर दोनों ने विवाह किया। अब्राम की पत्नी सारै थी। नाहोर की पत्नी मिल्का थी। मिल्का हारान की पुत्री थी। हारान मिल्का और यिस्का का बाप था। 30 सारै के कोई बच्चा नहीं था क्योंकि वह किसी बच्चे को जन्म देने योग्य नहीं थी।
31 तेरह ने अपने परिवार को साथ लिया और कसदियों के उर नगर को छोड़ दिया। उन्होंने कनान की यात्रा करने का इरादा किया। तेरह ने अपने पुत्र अब्राम, अपने पोते लूत (हारान का पुत्र), अपनी पुत्रवधू (अब्राम की पत्नी) सारै को साथ लिया। उन्होंने हारान तक यात्रा की और वहाँ ठहरना तय किया। 32 तेरह दो सौ पाँच वर्ष जीवित रहा। तब वह हारान में मर गया।
परमेश्वर अब्राम को बुलाता है
12यहोवा ने अब्राम से कहा,
“अपने देश और अपने लोगों को छोड़ दो।
अपने पिता के परिवार को छोड़ दो
और उस देश जाओ जिसे मै तुम्हें दिखाऊँगा।
2 मैं तुम्हें आशीर्वाद दूँगा।
मैं तुझसे एक महान राष्ट्र बनाऊँगा।
मैं तुम्हारे नाम को प्रसिद्ध करूँगा।
लोग तुम्हारे नाम का प्रयोग
दूसरों के कल्यान के लिए करेंगे।
3 मैं उन लोगों को आशीर्वाद दूँगा, जो तुम्हारा भला करेंगे।
किन्तु उनको दण्ड दूँगा जो तुम्हारा बुरा करेंगे।
पृथ्वी के सारे मनुष्यों को आशीर्वाद देने के लिए
मैं तुम्हारा उपयोग करूँगा।”
अब्राम कनान जाता है
4 अब्राम ने यहोवा की आज्ञा मानी। उसने हारान को छोड़ दिया और लूत उसके साथ गया। इस समय अब्राम पच्हत्तर वर्ष का था। 5 अब्राम ने जब हारान छोड़ा तो वह अकेला नहीं था। अब्राम अपनी पत्नी सारै, भतीजे लूत और हारान में उनके पास जो कुछ था, सबको साथ लाया। हारान में जो दास अब्राम को मिले थे वे भी उनके साथ गए। अब्राम और उसके दल ने हारान को छोड़ा और कनान देश तक यात्रा की। 6 अब्राम ने कनान देश में शकेम के नगर और मोरे के बड़े पेड़ तक यात्रा की। उस समय कनानी लोग उस देश में रहते थे।
7 यहोव अब्राम के सामने आया यहोवा ने कहा, “मैं यह देश तुम्हारे वंशजों को दूँगा।”
यहोवा अब्राम के सामने जिस जगह पर प्रकट हुआ उस जगह पर अब्राम ने एक वेदी यहोवा की उपासना के लिए बनाया। 8 तब अब्राम ने उस जगह को छोड़ा और बेतेल के पूर्व पहाड़ों तक यात्रा की। अब्राम ने वहाँ अपना तम्बू लगाया। बेतेल नगर पश्चिम में था। ये नगर पूर्व में था। उस जगह अब्राम ने यहोवा के लिए दूसरी वेदी बनाई और अब्राम ने वहाँ यहोवा की उपासना की। 9 इसके बाद अब्राम ने फिर यात्रा आरम्भ की। उसने नेगव की ओर यात्रा की।
मिस्र में अब्राम
10 इन दिनों भूमि बहुत सूखी थी। वर्षा नहीं हो रही थी और कोई खाने की चीज़ नहीं उग सकती थी। इसलिए अब्राम जीवित रहने के लिए मिस्र चला गया। 11 अब्राम ने देखा कि उसकी पत्नी सारै बहुत सुन्दर थी। इसलिए मिस्री में आने के पहले अब्राम ने सारै से कहा, “मैं जानता हूँ कि तुम बहुत सुन्दर स्त्री हो। 12 मिस्र के लोग तुम्हें देखेंगे। वे कहेंगे ‘यह स्त्री इसकी पत्नी है।’ तब वे मुझे मार डालेंगे क्योंकि वे तुमको लेना चाहेंगे। 13 इसलिए तुम लोगों से कहना कि तुम मेरी बहन हो। तब वे मुझको नहीं मारेंगे। वे मुझ पर दया करेंगे क्योंकि वे समझेंगे कि मैं तुम्हारा भाई हूँ। इस तरह तुम मेरा जीवन बचाओगी।”
14 इस प्रकार अब्राम मिस्र में पहुँचा। मिस्र के लोगों ने देखा, सारै बहुत सुन्दर स्त्री है। 15 कुछ मिस्र के अधिकारियों ने भी उसे देखा। उन्होंने फ़िरौन से कहा कि वह बहुत सुन्दर स्त्री है। वे अधिकारी सारै को फ़िरौन के घर ले गए। 16 फिरौन ने अब्राम के ऊपर दया की क्योंकि उसने समझा कि वह सारै का भाई है। फ़िरौन ने अब्राम को भेड़ें, मवेशी और गधे दिए। अब्राम को ऊँटों के साथ—साथ आदमी और स्त्रियाँ दास—दासी के रूप में मिले।
17 फ़िरौन ने अब्राम की पत्नी को रख लिया। इससे यहोवा ने फ़िरौन और उसके घर के मनुष्यों में बुरी बीमारी फैला दी। 18 इसलिए फिरौन ने अब्राम को बुलाया। फ़िरौन ने कहा, “तुमने मेरे साथ बड़ी बुराई की है। तुमने यह नहीं बताया कि सारै तुम्हारी पत्नी है। क्यों? 19 तुमने कहा, ‘यह मेरी बहन है।’ तुमने ऐसा क्यों कहा? मैंने इसे इसलिए रखा कि यह मेरी पत्नी होगी। किन्तु अब मैं तुम्हारी पत्नी को तुम्हें लौटाता हूँ। इसे लो और जाओ।” 20 तब फ़िरौन ने अपने पुरुषों को आज्ञा दी कि वे अब्राम को मिस्र के बाहर पहुँचा दें। इस तरह अब्राम और उसकी पत्नी ने वह जगह छोड़ी और वे सभी चीज़ें अपने साथ ले गए जो उनकी थीं।
अब्राम कनान लौटा
13अब्राम ने मिस्र छोड़ दिया। अब्राम ने अपनी पत्नी तथा अपने सभी सामान के साथ नेगेव से होकर यात्रा की। लूत भी उसके साथ था। 2 इस समय अब्राम बहुत धनी था। उसके पास बहुत से जानवर, बहुत सी चाँदी और बहुत सा सोना था।
3 अब्राम चारों तरफ यात्रा करता रहा। उसने नेगेव को छोड़ा और बेतेल को लौट गया। वह बेतेल नगर और ऐ नगर के बीच के प्रदेश में पहुँचा। यह वही जगह थी जहाँ अब्राम और उसका परिवार पहले तम्बू लगाकर ठहरा था। 4 यह वही जगह थी जहाँ अब्राम ने एक वेदी बनाई थी। इसलिए अब्राम ने यहाँ यहोवा की उपासना की।
अब्राम और लूत अलग हुए
5 इस समय लूत भी अब्राम के साथ यात्रा कर रहा था। लूत के पास बहुत से जानवर और तम्बू थे। 6 अब्राम और लूत के पास इतने अधिक जानवर थे कि भूमि एक साथ उनको चारा नहीं दे सकती थी। 7 (उन दिनों कनानी लोग और परिज्जी लोग भी इसी प्रदेश में रहते थे।) अब्राम और लूत के मज़दूर आपस में बहस करने लगे।
8 अब्राम ने लूत से कहा, “हमारे और तुम्हारे बीच कोई बहस नहीं होनी चाहिए। हमारे और तुम्हारे लोग भी बहस न करें। हम सभी भाई हैं। 9 हम लोगों को अलग हो जाना चाहिए। तुम जो चाहो जगह चुन लो। अगर तुम बायीं औरो जाओगे तो मैं दाहिनी ओर जाऊँगा। अगर तुम दाहिनी ओर जाओगे तो मैं बायीं ओर जऊँगा।”
10 लूत ने निगाह दौड़ाई और यरदन की घाटी को देखा। लूत ने देखा कि वहाँ बहुत पानी है। (यह बात उस समय की है जब यहोवा ने सदोम और अमोरा को नष्ट नहीं किया था। उस समय यरदन की घाटी सोअर तक यहोवा के बाग की तरह पूरे रास्ते के साथ—साथ फैली थी। यह प्रदेश मिस्र देश की तरह अच्छा था।) 11 इसलिए लूत ने यरदन घाटी में रहना स्वीकार किया। इस तरह दोनों व्यक्ति अलग हुए और लूत ने पूर्व की ओर यात्रा शुरू की। 12 अब्राम कनान प्रदेश में रहा और लूत घाटी के नगरों में रहा। लूत सदोम के दक्षिण में बढ़ा और ठहर गया। 13 सदोम के लोग बहुत पापी थे। वे हमेशा यहोवा के विरुद्ध पाप करते थे।
14 जब लूत चला गया तब यहोवा ने अब्राम से कहा, “अपने चारों ओर देखो, उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम की ओर देखो। 15 यह सारी भूमि, जिसे तुम देखते हो, मैं तुमको और तुम्हारे बाद जो तुम्हारे लोग रहेंगे उनको देता हूँ। यह प्रदेश सदा के लिए तुम्हारा है। 16 मैं तुम्हारे लोगों को पृथ्वी के कणों के समान अनगिनत बनाऊँगा। अगर कोई व्यक्ति पृथ्वी के कणों को गिन सके तो वह तुम्हारे लोगों को भी गिन सकेगा। 17 इसलिए जाओ। अपनी भूमि पर चलो। मैं इसे अब तुमको देता हूँ।”
18 इस तरह अब्राम ने अपना तम्बू हटाया। वह मम्रे के बड़े पेड़ों के पास रहने लगा। यह हेब्रोन नगर के करीब था। उस जगह पर अब्राम ने एक वेदी यहोवा की उपासना के लिए बनायी।
समीक्षा
भरोसे के साथ एक-एक कदम पर परमेश्वर का साथ
जब मैं किसी लंबी कार यात्रा पर निकलता हूँ, तो मुझे Google Maps से भी ज्यादा अच्छा लगता है अगर कोई ऐसा व्यक्ति साथ हो जो रास्ता जानता हो और हर मोड़ पर बताए कि अगला कदम क्या है। जीवन की यात्रा में परमेश्वर यही करते हैं — वे हमारे साथ चलते हैं और हमें एक-एक कदम पर दिशा दिखाते हैं, आशीषों से भरे जीवन की ओर।
यह बाइबल के सबसे अहम पलों में से एक है — जहाँ परमेश्वर इंसानियत के लिए अपने उद्धार की योजना की शुरुआत करते हैं। इससे पहले के अध्यायों में पाप और परमेश्वर से दूरी लगातार बढ़ती जा रही थी। लेकिन अब सबकुछ बदल जाता है — परमेश्वर अपना समाधान प्रकट करते हैं: अब्राहम!
परमेश्वर अब्राहम से कहते हैं: "मैं तुझे एक बड़ी जाति बनाऊँगा और तुझे आशीष दूँगा; तेरा नाम बड़ा करूँगा, और तू आशीष का कारण होगा। जो तुझे आशीष देंगे, मैं उन्हें आशीष दूँगा… और पृथ्वी के सारे लोग तेरे द्वारा आशीष पाएँगे" (उत्पत्ति 12:2–3)।
परमेश्वर पहले एक व्यक्ति को चुनते हैं और उसे आशीष देते हैं, फिर एक राष्ट्र को — लेकिन उनका मकसद हमेशा यही रहता है कि वे इस आशीष को आगे बढ़ाएँ (पद 3)। यही बात पुराने नियम को समझने की कुंजी है — कि परमेश्वर ने इस्राएल को इसलिए चुना ताकि उसके द्वारा पूरी दुनिया आशीष पाए।
आखिरकार यह प्रतिज्ञा यीशु में पूरी होती है। वे इस्राएल की सारी आशाओं और वादों की पूर्ति हैं, और उन्हीं के द्वारा हर कोई आशीष पा सकता है।
अब यही परमेश्वर की योजना तुम्हारे लिए है। प्रेरित पौलुस लिखते हैं, "जो विश्वास रखते हैं वे अब्राहम की संतान हैं… पवित्रशास्त्र ने पहले से ही कह दिया था कि परमेश्वर अन्यजातियों को विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराएगा, इसलिए उसने अब्राहम को पहले ही खुशखबरी दे दी: ‘तेरे द्वारा सब जातियाँ आशीष पाएँगी।’ इसलिए जो विश्वास पर निर्भर करते हैं, वे अब्राहम के साथ आशीष पाते हैं — जो विश्वास का मनुष्य था" (गलातियों 3:7–9)।
मसीही कलीसिया (Church) को भी अब्राहम और इस्राएल की तरह इसलिए आशीष मिली है कि वे इसे दुनिया तक पहुँचा सकें। अगर तुम्हें परमेश्वर ने आशीष दी है, तो वह केवल तुम्हारे लिए नहीं है — वह इसलिए है ताकि तुम दूसरों के लिए भी आशीष बनो।
परमेश्वर अब्राहम को कहते हैं कि वह अपने देश, अपने रिश्तेदारों और पिता के घर से निकलकर उस देश में जाए जिसे परमेश्वर उसे दिखाएँगे (उत्पत्ति 12:1)। अब्राहम ने ठीक वैसा ही किया जैसा प्रभु ने निर्देश दिया (पद 4, AMP)। उसने परमेश्वर पर भरोसा किया कि वह एक-एक कदम पर उसे दिशा देगा। उस समय उसे आगे क्या होगा ये नहीं पता था, लेकिन उसने परमेश्वर के वादों पर विश्वास किया।
मेरे जीवन में भी यही अनुभव रहा है। कभी-कभी परमेश्वर हमें एक मोटा-सा चित्र दिखाते हैं कि हमें क्या करना है, लेकिन अधिकतर वे हमें एक-एक कदम पर मार्गदर्शन देते हैं। विश्वास का जीवन परमेश्वर के निर्देशों पर एक-एक कदम आगे बढ़ने का नाम है।
यह यात्रा हमेशा आसान नहीं होती। अब्राहम भी हमारी तरह ही कमज़ोर और गलतियाँ करने वाला इंसान था। परमेश्वर ने उसे बहुत धन और ‘अद्भुत सुंदर पत्नी’ से आशीष दी (13:1, 12:14, MSG)। फिर भी एक डर और धोखे के पल में, वह अपनी पत्नी को फ़िरौन की पत्नी बनने देता है (पद 10–20)।
इसके बाद अब्राहम और उसके भतीजे लूत के सेवकों के बीच झगड़ा होता है (13:7)। अब्राहम इस बात को समझते हैं और लूत से अलग होने का निर्णय लेते हैं (पद 8–11)। असल में अब्राहम और लूत में नहीं, बल्कि उनके लोगों में झगड़ा था — जैसा अक्सर होता है।
लूत ने सबसे अच्छी ज़मीन चुनी और अब्राहम को जो कम अच्छा दिखता था वह दे दिया। लेकिन फिर से परमेश्वर अब्राहम को दिशा देते हैं। वे कहते हैं: "जहाँ तू है, वहीं से चारों ओर देख" (पद 14)।
फिर परमेश्वर कहते हैं: "तेरे वंशजों को मैं धरती की धूल के समान बना दूँगा — जितना असंभव है मिट्टी के कण गिनना, उतना ही असंभव होगा तेरे वंशजों को गिनना। अब उठ, इस धरती के हर कोने में चल — इसकी लंबाई और चौड़ाई में घूम — मैं यह सब तुझे देने जा रहा हूँ" (पद 16–17, MSG)।
जब कोई तुम्हें निराश करता है या परिस्थितियाँ तुम्हारे खिलाफ दिखती हैं, तो गुस्से या निराशा में मत पड़ो। इसके बजाय, "जहाँ हो वहीं से चारों ओर देखो" (पद 14) — अपनी नजरें परमेश्वर पर टिकाओ और सब कुछ उसकी दृष्टि से देखने की कोशिश करो, न कि दुश्मन की। विश्वास रखो कि वह तुम्हारी मदद करेगा — उसकी योजना है कि वह तुम्हें आशीष दे।
अब्राहम को यह अद्भुत आशीष केवल परमेश्वर के अनुग्रह से मिली थी। परमेश्वर का मकसद यही था कि वह दुनिया के लिए आशीष बने। यही बात आज तुम्हारे लिए भी है — तुम परमेश्वर की आशीषों के नीचे जीने के लिए बुलाए गए हो ताकि दूसरों के लिए आशीष बन सको।
प्रार्थना
प्रभु, इस साल मेरी मदद कर कि मैं तेरे निर्देशों का एक-एक कदम पर पालन कर सकूं, तेरी आशीष के नीचे जी सकूं, और अपने आस-पास के हर व्यक्ति के लिए यथासंभव आशीष का कारण बन सकूं।
पिप्पा भी कहते है
हर दिन, जीवन के कठिन फैसलों में हमें मार्गदर्शन की ज़रूरत होती है। सीधी राह पर चलना हमें भटकने से बचाता है — जिससे समय और ऊर्जा दोनों की बचत होती है। आज मेरी प्रार्थना भजन संहिता 5:8 के शब्दों में है: “हे यहोवा, तू अपने धर्म के अनुसार मेरी अगुवाई कर… मेरे सामने अपना मार्ग सरल कर दे।” (भजन संहिता 5:8)

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संदर्भ
‘पहाड़ी उपदेश’ (मत्ती 5–7) की और अधिक विस्तृत व्याख्या और अनुप्रयोग के लिए, निकी गम्बल की पुस्तक The Jesus Lifestyle देखें।
(AMP) के रूप में चिह्नित बाइबिल उद्धरण Amplified® Bible से लिए गए हैं, कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 The Lockman Foundation अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
निक्की और पिप्पा गम्बल के साथ बाइबल (जिसे पहले Bible in One Year के नाम से जाना जाता था) © Alpha International 2009। सर्वाधिकार सुरक्षित।
दैनिक बाइबल पाठों का संकलन © Hodder & Stoughton Limited 1988। इसे Bible in One Year के रूप में Hodder & Stoughton Limited द्वारा प्रकाशित किया गया है।
जब तक अन्यथा उल्लेख न किया गया हो, पवित्रशास्त्र के उद्धरण पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनेशनल वर्शन (एंग्लिसाइज़्ड) से लिए गए हैं, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 Biblica, जिसे पहले International Bible Society के नाम से जाना जाता था। इसे Hodder & Stoughton Publishers, जो कि Hachette UK कंपनी है, की अनुमति से प्रयोग किया गया है। सर्वाधिकार सुरक्षित। ‘NIV’ Biblica का पंजीकृत ट्रेडमार्क है। UK ट्रेडमार्क संख्या 1448790।
(AMP) से चिह्नित पवित्रशास्त्र के उद्धरण Amplified® Bible से लिए गए हैं, कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 The Lockman Foundation द्वारा। अनुमति से प्रयुक्त। (www.Lockman.org)
MSG से चिह्नित पवित्रशास्त्र के उद्धरण The Message से लिए गए हैं, कॉपीराइट © 1993, 2002, 2018 Eugene H. Peterson द्वारा। NavPress की अनुमति से प्रयुक्त। सर्वाधिकार सुरक्षित। Tyndale House Publishers द्वारा प्रतिनिधित्व किया गया है।
