दिन 14

बस विश्राम करो और परमेश्वर को परमेश्वर ही रहने दो

बुद्धि भजन संहिता 9:7-12
नए करार मत्ती 11:16-30
जूना करार उत्पत्ति 29:1-30:43

परिचय

जॉयस मेयर ट्वीट करती हैं कि,‘बस विश्राम करें और परमेश्वर को परमेश्वर बने रहने दें।’ यह जानकर बड़ी शांति मिलती है कि जो कुछ भी हो रहा है वह सब प्रेमी परमेश्वर के नियंत्रण में है।

बिशप सॅन्डी मिलर दु:ख के समय या जब चीज़ें बुरी तरह से बिगड़ जाती हैं तब वह अक्सर कहते हैं कि,‘प्रभु राज करते हैं।’

पूरी बाइबल में कई जगह,परमेश्वर का उल्लेख सर्वश्रेष्ठ प्रभु के रूप में किया गया है। जॉयस मेयर और सॅन्डी मिलर ये दोनों सर्वश्रेष्ठ परमेश्वर में संपूर्ण विश्वास को, अलग अलग तरीके से व्यक्त करते हैं।

परमेश्वर सर्वश्रेष्ठ हैं और उनका संपूर्ण नियंत्रण है, तो क्या इसका मतलब यह है कि आप अपने कर्त्तव्यों की ज़िम्मेदारी से मुक्त हो गए हैं? क्या इसका यह मतलब है कि आपके पास ‘स्वतंत्र इच्छा’ नहीं है? जब हम अपने नये नियम के पद्यांश में देखते हैं,तो बाइबल हमें – परमेश्वर की परम प्रधानता के साथ-साथ मनुष्य की ज़िम्मेदारी और स्वतंत्र इच्छा भी सिखाती है।

बुद्धि

भजन संहिता 9:7-12

7 किन्तु यहोवा, तेरा शासन अविनाशी है।
 यहोवा ने अपने राज्य को शक्तिशाली बनाया। उसने जग में न्याय लाने के लिये यह किया।
8 यहोवा धरती के सब मनुष्यों का निष्पक्ष होकर न्याय करता है।
 यहोवा सभी जातियों का पक्षपात रहित न्याय करता है।
9 यहोवा दलितों और शोषितों का शरणस्थल है।
 विपदा के समय वह एक सुदृढ़ गढ़ है।

10 जो तुझ पर भरोसा रखते,
 तेरा नाम जानते हैं।
 हे यहोवा, यदि कोई जन तेरे द्वार पर आ जाये
 तो बिना सहायता पाये कोई नहीं लौटता।

11 अरे ओ सिय्योन के निवासियों, यहोवा के गीत गाओ जो सिय्योन में विराजता है।
 सभी जातियों को उन बातों के विषय में बताओ जो बड़ी बातें यहोवा ने की हैं।
12 जो लोग यहोवा से न्याय माँगने गये,
 उसने उनकी सुधि ली।
 जिन दीनों ने उसे सहायता के लिये पुकारा,
 उनको यहोवा ने कभी भी नहीं बिसारा।

समीक्षा

सर्वश्रेष्ठ परमेश्वर में निस्संदेह रूप से विश्वास

सारी सृष्टि परमेश्वर के नियंत्रण में है: ‘प्रभु राज करता है’ (पद - 7)। परमेश्वर ‘आप ही जगत का न्याय धर्म से करेगा,’ (पद - 8)। ‘वह देश देश के लोगों का मुकद्दमा खराई से निपटाएगा’ (पद - 8)। यह ज्ञान हमें बेहद सांत्वना देता है। शायद हम कभी नहीं जान पाएंगे कि परमेश्वर कभी - कभी हमारे जीवन में भयानक चीज़ें क्यों होने देते हैं।

उनकी सर्वश्रेष्ठता में भरोसा रखिये और उन पर विश्वास बनाए रखिये कि वह आपको कभी नहीं त्यागेंगे: ‘और तेरे नाम के जानने वाले तुझ पर भरोसा रखेंगे, क्योंकि हे यहोवा तू ने अपने खोजियों को त्याग नहीं दिया’ (पद - 10)।

इस दौरान तीन बातों को करते रहिये:

  1. स्तुति कीजिये
  • ‘यहोवा जो सिय्योन में विराजमान है, उसका भजन गाओ! ’ (पद - 11अ)।
  1. प्रचार कीजिये
  • ‘जाति जाति के लोगों के बीच में उसके महाकर्मों का प्रचार करो! ’ (पद - 11ब)।
  1. प्रार्थना कीजिये
  • ‘यहोवा पिसे हुओं के लिये ऊंचा गढ़ ठहरेगा, वह संकट के समय के लिये भी ऊंचा गढ़ ठहरेगा’ (पद - 9)। ‘ वह दीन लोगों की दोहाई को कभी नहीं भूलता’ (पद - 12ब)।

प्रार्थना

प्रभु, मैं आपको धन्यवाद देता हूँ कि आप मेरी दोहाई को कभी नहीं भूलते और मैं निस्संदेह आप पर विश्वास कर सकता हूँ। आपका धन्यवाद कि मैं आराम से रह सकता हूँ और चाहता हूँ कि आप मेरे परमेश्वर हमेशा बने रहें।

नए करार

मत्ती 11:16-30

16 “आज की पीढ़ी के लोगों की तुलना मैं किन से करूँ? वे बाज़ारों में बैठे उन बच्चों के समान हैं जो एक दूसरे से पुकार कर कह रहे हैं,

17 ‘हमने तुम्हारे लिए बाँसुरी बजायी,
पर तुम नहीं नाचे।
हमने शोकगीत गाये,
किन्तु तुम नहीं रोये।’

18 बपतिस्मा देने वाला यूहन्ना आया। जो न औरों की तरह खाता था और न ही पीता था। पर लोगों ने कहा था कि उस में दुष्टात्मा है। 19 फिर मनुष्य का पुत्र आया। जो औरों के समान ही खाता-पीता है, पर लोग कहते हैं, ‘इस आदमी को देखो, यह पेटू है, पियक्कड़ है। यह चुंगी वसूलने वालों और पापियों का मित्र है।’ किन्तु बुद्धि की उत्तमता उसके कामों से सिद्ध होती है।”

अविश्वासियों को यीशु की चेतावनी

20 फिर यीशु ने उन नगरों को धिक्कारा जिनमें उसने बहुत से आश्चर्यकर्म किये थे। क्योंकि वहाँ के लोगों ने पाप करना नहीं छोड़ा और अपना मन नहीं फिराया था। 21 अरे अभागे खुराजीन, अरे अभागे बैतसैदा तुम में जो आश्चर्यकर्म किये गये, यदि वे सूर और सैदा में किये जाते तो वहाँ के लोग बहुत पहले से ही टाट के शोक वस्त्र ओढ़ कर और अपने शरीर पर राख मल कर खेद व्यक्त करते हुए मन फिरा चुके होते। 22 किन्तु मैं तुम लोगों से कहता हूँ न्याय के दिन सूर और सैदा की स्थिति तुमसे अधिक सहने योग्य होगी।

23 “और अरे कफरनहूम, क्या तू सोचता है कि तुझे स्वर्ग की महिमा तक ऊँचा उठाया जायेगा? तू तो अधोलोक में नरक को जायेगा। क्योंकि जो आश्चर्यकर्म तुझमें किये गये, यदि वे सदोम में किये जाते तो वह नगर आज तक टिका रहता। 24 पर मैं तुम्हें बताता हूँ कि न्याय के दिन तेरे लोगों की हालत से सदोम की हालत कहीं अच्छी होगी।”

यीशु को अपनाने वालों को सुख चैन का वचन

25 उस अवसर पर यीशु बोला, “परम पिता, तू स्वर्ग और धरती का स्वामी है, मैं तेरी स्तुति करता हूँ क्योंकि तूने इन बातों को, उनसे जो ज्ञानी हैं और समझदार हैं, छिपा कर रखा है। और जो भोले भाले हैं उनके लिए प्रकट किया है। 26 हाँ परम पिता यह इसलिये हुआ, क्योंकि तूने इसे ही ठीक जाना।

27 “मेरे परम पिता ने सब कुछ मुझे सौंप दिया और वास्तव में परम पिता के अलावा कोई भी पुत्र को नहीं जानता। और कोई भी पुत्र के अलावा परम पिता को नहीं जानता। और हर वह व्यक्ति परम पिता को जानता है, जिसके लिये पुत्र ने उसे प्रकट करना चाहा है।

28 “हे थके-माँदे, बोझ से दबे लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें सुख चैन दूँगा। 29 मेरा जुआ लो और उसे अपने ऊपर सँभालो। फिर मुझसे सीखो क्योंकि मैं सरल हूँ और मेरा मन कोमल है। तुम्हें भी अपने लिये सुख-चैन मिलेगा। 30 क्योंकि वह जुआ जो मैं तुम्हें दे रहा हूँ बहुत सरल है। और वह बोझ जो मैं तुम पर डाल रहा हूँ, हल्का है।”

समीक्षा

यीशु के साथ चलने के आमंत्रण को स्वीकारें

यीशु की शिक्षा चित्ताकर्षक है। आज के पद्यांश के पहले भाग में वह कह रहे हैं, ‘तुम जीत सकते हो’। एक तरफ, यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला आत्मसंयमी था और उस में दुष्टात्मा होने का दोष लगाया। दूसरी तरफ, यीशु हर तरह के लोगों के साथ दावत पर गए और उन लोगों को अपना मित्र बनाया जिन्हें घृणित वर्ग के रूप में माना जाता था। उन्हें पेटू, पियक्कड़ और महसूल लेने वालों का दोस्त और पापियों का मित्र ठहराया गया (पद - 18)।

आप जो भी करें उसका गलत अर्थ निकाला जाएगा। फिर भी यीशु आगे कहते हैं,‘पर ज्ञान अपने कामों में सच्चा ठहराया गया है’ (पद - 19)। मैं इसका मतलब यह समझता हूँ कि हम सिर्फ सही कार्य करें और यह चिंता न करें कि दूसरे क्या सोचते हैं। ‘जनमत का महत्त्व ज़्यादा नहीं है, हैं ना? अच्छी खीर खाने के बाद ही पता चलता कि खीर अच्छी है’ (पद - 19)।

तब वह उन नगरों को उलाहना देने लगा, जिन में उस ने बहुत सामर्थ के काम किए थे; क्योंकि उन्होंने अपना मन नहीं फिराया था और ना ही विश्वास किया था। वह कहते हैं कि उनके पाप सूर और सैदा के पाप से भी घिनौने हैं (पद - 24)। अविश्वास का पाप शायद सबसे गंभीर पाप है 

यीशु आगे इस तरह से शिक्षा देते हैं कि यह स्पष्ट हो जाता है कि उन्होंने नियति (यह कि परमेश्वर ने पहले से ही तय किया है कि क्या होने वाला है) और स्वतंत्र इच्छा, दोनों पर विश्वास किया है। वह दोनों को साथ - साथ सिखा रहे हैं। यह एक विरोधाभास है। विपरीत दिखाई देने वाली दोनों चीज़ें एक ही समय पर सच होती हैं।

यह 50% ‘विरोधाभास’ और 50% ‘स्वतंत्र इच्छा’ यीशु कहते हैं हम 100% पूर्वनिर्धारित हैं और हमें 100% स्वतंत्र इच्छा मिली है। यह असंभव लग सकता है,लेकिन परमेश्वर ऊँचा उठाने में (आगे बढ़ाने में) सक्षम हैं पर फिर भी मनुष्य की स्वतंत्रता को बिगड़ने नहीं देंगे। आखिरकार हम देखते हैं कि यह एक अवतरण है: यीशु 100% परमेश्वर हैं और 100% मनुष्य हैं;वह पूर्ण रूप से परमेश्वर हैं और पूर्ण रूप से मनुष्य हैं।

  • नियति

‘मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंपा है, और कोई पुत्र को नहीं जानता, केवल पिता; और कोई पिता को नहीं जानता, केवल पुत्र और वह जिस पर पुत्र उसे प्रगट करना चाहे ’ (पद - 27)।

परमेश्वर खुद को किसी पर प्रगट करना चाहते हैं और किसी पर नहीं ऐसा क्यों है। अवश्य ही यह बुद्धि और शिक्षा पर आधारित नहीं है। कभी-कभी महान ज्ञानी इसे नहीं देख सकते: ‘तू ने इन बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा रखा है’ (पद - 25)। और फिर भी कभी - कभी कम ज्ञानी या कम शिक्षित या छोटे बालक इसे देख पाते हैं: (‘और बालकों पर प्रगट किया है’, पद - 25),यानि जिन्हें यीशु की गहरी समझ रहती है। ‘तू ने व्यवहार कुशल और ज्ञानियों से छिपा रखा है, परंतु उन्हें स्पष्ट रूप से साधारण लोगों पर प्रगट किया है’ (पद - 25, एम.एस.जी.)।

  • स्वतंत्र इच्छा

यीशु कहते हैं, ‘हे सब परिश्रम करने वालों और बोझ से दबे लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। ’ (पद - 28)। यीशु के पास आने का आमंत्रण हर किसी को दिया गया है। कोई भी छूटा नहीं है। हम सबको बुलाया गया है। हम सबके पास विकल्प है कि हम यीशु का आमंत्रण स्वीकार करें या अस्वीकार करें।

इस विरोधाभास को समझना मुझे मुश्किल लगता है। फिर भी, मुझे निम्नलिखित उदाहरण सहायक साबित हुए हैं। एक कमरे की कल्पना करें जिसका दरवाज़ा मेहराबदार है। मेहराब के बाहरी हिस्से पर ये शब्द लिखे गए हैं ‘सभी मेरे पास आओ …..’ (पद - 28)। दूसरे शब्दों में इस कमरे में हर एक जन आमंत्रित है। जब आप कमरे में प्रवेश करते हैं, तो उसी मेहराब पर लिखा हुआ है, ‘कोई पुत्र को नहीं जानता, केवल पिता; और कोई पिता को नहीं जानता, केवल पुत्र और वह जिस पर पुत्र उसे प्रगट करना चाहे’ (पद - 27ब)।

दूसरे शब्दों में, स्वतंत्र इच्छा हर किसी के लिए सिद्धांत है। कोई भी ऐसा नहीं कह सकता कि, ‘मैं मसीही नहीं बनूँगा क्योंकि मुझे चुना गया है।’ यह आमंत्रण सभी को है। दूसरी तरफ, विरोधाभास एक सिद्धांत है उन लोगों के लिए आश्वासन का जो मसीही हैं। जब आप निमंत्रण को स्वीकार कर लेंगे, तो आप जान लेंगे कि परमेश्वर ने आपको चुना है और इसलिए वह आपको जाने नहीं देंगे।

वचन 28 में यीशु के शब्द मुझे पसंद हैं। तनावपूर्ण दुनिया में बहुत से लोग ‘थके हुए हैं और बोझ से दबे हैं’, यीशु आपको विश्राम देने का वादा करते हैं। वह आपके बोझ को लेकर उन्हें अपने हल्के बोझ से बदलने का प्रस्ताव रखते हैं।

जूआ (कुछ ऐसी चीज़ जिसे यीशु ने सुतार की दुकान में बनाई होगी) जो कि एक लकड़ी का ढांचा था जिसके दोनों सिरे पर दो जानवर (सामान्यत: बैल) गर्दन से जुड़े रहते थे, ताकि वे हल को या गाड़ी को एक साथ खींच सकें। जूए का काम बोझ को आसानी से उठाने का था। मुझे यीशु के साथ कदम मिलाकर चलने, अपना बोझ बांटने, परीक्षाओं को सहने योग्य बनाने और अपेक्षाकृत युद्ध का ‘आसानी’ से सामना करने और ‘हल्का’ बनाने की यह कल्पना पसंद है।

यीशु दासत्व संचालक नहीं हैं। जब आप अपने जीवन के लिए उनकी कार्य सूची का पालन करेंगे तब आप उनका बोझ उठाएंगे लेकिन यह ‘कठिन, सख्त, धारवाला या ज़बरदस्त नहीं है बल्कि यह आरामदायक, अनुकूल और आनंद देने वाला है’ (पद - 30,ए.एम.पी.)। जब आप वह करते हैं जो यीशु ने आपको करने के लिए कहा है, तो वह आपको इसे करने के लिए बल और बुद्धि भी देते हैं और आप उनके साथ उनके बोझ को आसानी से उठा पाते हैं। अवश्य ही इसमें अनेक चुनौतियाँ और परेशानियाँ आएंगी लेकिन इसमें आसानी और हल्कापन भी रहेगा।

यीशु आप से कहते हैं: ‘हे सब परिश्रम करने वालों और बोझ से दबे लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूँ: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे।’ (पद - 28-29)। बस विश्राम करें और परमेश्वर को परमेश्वर बने रहने दें।

प्रार्थना

प्रभु, आपका धन्यवाद कि आपने मुझसे वादा किया है कि आप मेरे प्राण को विश्राम देंगे, धन्यवाद कि आज मैं आपके पास आता हूँ। मैं अपना बोझ आपको देता हूँ ….।

जूना करार

उत्पत्ति 29:1-30:43

याकूब राहेल से मिलता है

29तब याकूब ने अपनी यात्रा जारी रखी। वह पूर्व के प्रदेश में गया। 2 याकूब ने दृष्टि डाली, उसने मैदान में एक कुआँ देखा। वहाँ कुएँ के पास भेड़ों के तीन रेवड़े पड़े हुई थे। यही वह कुआँ था जहाँ ये भेड़ें पानी पीती थीं। वहाँ एक बड़े शिला से कुएँ का मुँह ढका था। 3 जब सभी भेड़ें वहाँ इकट्ठी हो जातीं तो गड़ेंरिये चट्टान को कुएँ के मुँह पर से हटाते थे। तब सभी भेड़े उसका जल पी सकती थीं। जब भेड़ें पी चुकती थीं तब गड़ेरिये शिला को फिर अपनी जगह पर रख देते थे।

4 याकूब ने वहाँ गड़ेंरियों से कहा, “भाईयो, आप लोग कहाँ के हैं?”

उन्होंने उत्तर दिया, “हम हारान के है।”

5 तब याकूब ने कहा, “क्या आप लोग नाहोर के पुत्र लाबान को जानते हैं?”

गड़ेंरियों ने जवाव दिया, “हम लोग उसे जानते हैं।”

6 तब याकूब ने पूछा, “वह कुशल से तो है?”

उन्होंने कहा, “वे ठीक हैं। सब कुछ बहुत अच्छा है। देखो, वह उसकी पुत्री राहेल अपनी भेड़ों के साथ आ रही है।”

7 याकूब ने कहा, “देखो, अभी दिन है और सूरज डूबने में अभी काफी देर है। रात के लिए जानवरों को इकट्ठे करने का अभी समय नहीं है। इसलिए उन्हें पानी दो और उन्हें मैदान में लौट जाने दो।”

8 लेकिन उस गड़ेरिये ने कहा, “हम लोग यह तब तक नहीं कर सकते जब तक सभी रेबड़े इकट्ठे नहीं हो जाते। तब हम लोग शिला को कुएँ से हटाएंगे और सभी भेड़ें पानी पीएँगी।”

9 याकूब जब तक गड़ेंरियों से बातें कर रहा था तब राहेल अपने पिता की भेड़ों के साथ आई। (राहेल का काम भेड़ों की देखभाल करना था।) 10 राहेल लाबान की पुत्री थी। लाबान, रिबका का भाई था, जो याकूब की माँ थी। जब याकूब ने राहेल को देखा तो जाकर शिला को हटाया और भेड़ों को पानी पिलाया। 11 तब याकूब ने राहेल को चूमा और जोर से रोया। 12 याकूब ने बताया कि मैं तुम्हारे पिता के खानदान से हूँ। उसने राहेल को बताया कि मैं रिबका का पुत्र हूँ। इसलिए राहेल घर को दौड़ गई और अपने पिता से यह सब कहा।

13 लाबान ने अपनी बहन के पुत्र, याकूब के बारे में खबर सुनी। इसलिए लाबन उससे मिलने के लिए दौड़ा। लाबान उससे गले मिला, उसे चूमा और उसे अपने घर लाया। याकूब ने जो कुछ हुआ था, उसे लाबान को बताया।

14 तब लाबान ने कहा, “आश्चर्य है, तुम हमारे खानदान से हो।” अतः याकूब लाबान के साथ एक महीने तक रूका।

लाबान याकूब के साथ धोखा करता है

15 एक दिन लाबान ने याकूब से कहा, “यह ठीक नहीं है कि तुम हमारे यहाँ बिना बेतन में काम करते रहो। तुम रिश्तेदार हो, दास नहीं। मैं तुम्हें क्या वेतन दूँ?”

16 लाबान की दो पुत्रियाँ थीं। बड़ी लिआ थी और छोटी राहेल।

17 राहेल सुन्दर थी और लिआ की धुंधली आँखें थीं। 18 याकूब राहेल से प्रेम करता था। याकूब ने लाबान से कहा, “यदि तुम मुझे अपनी पुत्री राहेल के साथ विवाह करने दो तो मैं तुम्हारे यहाँ सात साल तक काम कर सकता हूँ।”

19 लाबान ने कहा, “यह उसके लिए अच्छा होगा कि किसी दूसरे के बजाय वह तुझसे विवाह करे। इसलिए मेरे साथ ठहरो।”

20 इसलिए याकूब ठहरा और सात साल तक लाबान के लिए काम करता रहा। लेकिन यह समय उसे बहुत कम लगा क्योंकि वह राहेल से बहुत प्रेम करता था।

21 सात साल के बाद उसने लाबान से कहा, “मुझे राहेल को दो जिससे मैं उससे विवाह करूँ। तुम्हारे यहाँ मेरे काम करने का समय पूरा हो गया।”

22 इसलिए लाबान ने उस जगह के सभी लोगों को एक दावत दी। 23 उस रात लाबान अपनी पुत्री लिआ को याकूब के पास लाया। याकूब और लिआ ने परस्पर शारीरिक सम्बन्ध स्थापित किया। 24 (लाबान ने अपनी पुत्री को, सेविका के रूप में अपनी नौकरानी जिल्पा को दिया।) 25 सबेरे याकूब ने जाना कि वह लिआ के साथ सोया था। याकूब ने लाबान से कहा, “तुमने मुझे धोखा दिया है। मैंने तुम्हारे लिए कठिन परिश्रम इसलिए किया कि मैं राहेल से विवाह कर सकूँ। तुमने मुझे धोखा क्यों दिया?”

26 लाबान ने कहा, “हम लोग अपने देश में छोटी पुत्री का बड़ी पुत्री से पहले विवाह नहीं करने देंगे। 27 किन्तु विवाह के उत्सव को पूरे सप्ताह मनाते रहो और मैं राहेल को भी तुम्हें विवाह के लिए दूँगा। परन्तु तुम्हें और सात वर्ष तक मेरी सेवा करनी पड़ेगी।”

28 इसलिए याकूब ने यही किया और सप्ताह को बिताया। तब लाबान ने अपनी पुत्री राहेल को भी उसे उसकी पत्नी के रूप में दिया। 29 (लाबान ने अपनी पुत्री राहेल की सेविका के रूप में अपनी नौकरानी बिल्हा को दिया।) 30 इसलिए याकूब ने राहेल के साथ भी शारीरिक सम्बन्ध स्थापित किया और याकूब ने राहेल को लिआ से अधिक प्यार किया। याकूब ने लाबान के लिए और सात वर्ष तक काम किया।

याकूब का परिवार बढ़ता है

31 यहोवा ने देखा कि याकूब लिआ से अधिक राहेल को प्यार करता है। इसलिए यहोवा ने लिआ को इस योग्य बनाया कि वह बच्चों को जन्म दे सके। लेकिन राहेल को कोई बच्चा नहीं हुआ।

32 लिआ ने एक पुत्र को जन्म दिया। उसने उसका नाम रूबेन रखा। लिआ ने उसका यह नाम इसलिए रखा क्योंकि उसने कहा, “यहोवा ने मेरे कष्टों को देखा है। मेरा पति मुझको प्यार नहीं करता, इसलिए हो सकता है कि मेरा पति अब मुझसे प्यार करे।”

33 लिआ फिर गर्भवती हुई और उसने दूसरे पुत्र को जन्म दिया। उसने इस पुत्र का नाम शिमोन रखा। लिआ ने कहा, “यहोवा ने सुना कि मुझे प्यार नहीं मिलता, इसलिए उसने मुझे यह पुत्र दिया।”

34 लिआ फिर गर्भवती हुई और एक और पुत्र को जन्म दिया। उसने पुत्र का नाम लेवी रखा। लिआ ने कहा, “अब निश्चय ही मेरा पति मुझको प्यार करेगा। मैंने उसे तीन पुत्र दिए हैं।”

35 तब लिआ ने एक और पुत्र को जन्म दिया। उसने इस लड़के का नाम यहूदा रखा। लिआ ने उसे यह नाम दिया क्योंकि उसने कहा, “अब मैं यहोवा की स्तुति करूँगी।” तब लिआ को बच्चा होना बन्द हो गया।

30राहेल ने देखा कि वह याकूब के लिए किसी बच्चे को जन्म नहीं दे रही है। राहेल अपनी बहन लिआ से ईर्ष्या करने लगी। इसलिए राहेल ने याकूब से कहा, “मुझे बच्चा दो, वरना मैं मर जाऊँगी।”

2 याकूब राहेल पर क्रोधित हुआ। उसने कहा, “मैं परमेश्वर नहीं हूँ। वह परमेश्वर ही है जिसने तुम्हें बच्चों को जन्म देने से रोका है।”

3 तब राहेल ने कहा, “तुम मेरी दासी बिल्हा को ले सकते हो। उसके साथ सोओ और वह मेरे लिए बच्चे को जन्म देगी। तब मैं उसके द्वारा माँ बनूँगी।”

4 इस प्रकार राहेल ने अपने पति याकूब के लिए बिल्हा को दिया। याकूब ने बिल्हा के साथ शारीरिक सम्बन्ध किया। 5 बिल्हा गर्भवती हुई और याकूब के लिए एक पुत्र को जन्म दिया।

6 राहेल ने कहा, “परमेश्वर ने मेरी प्रार्थना सुन ली है। उसने मुझे एक पुत्र देने का निश्चय किया।” इसलिए राहेल ने इस पुत्र का नाम दान रखा।

7 बिल्हा दूसरी बार गर्भवती हुई और उसने याकूब को दूसरा पुत्र दिया। 8 राहेल ने कहा, “अपनी बहन से मुकाबले के लिए मैंने कठिन लड़ाई लड़ी है और मैंने विजय पा ली है।” इसलिए उसने इस पुत्र क नाम नप्ताली रखा।

9 लिआ ने सोचा कि वह और अधिक बच्चों को जन्म नहीं दे सकती। इसलिए उसने अपनी दासी जिल्पा को याकूब के लिए दिया। 10 तब जिल्पा ने एक पुत्र को जन्म दिया। 11 लिआ ने कहा, “मैं भाग्यवती हूँ। अब स्त्रियाँ मुझे भाग्यवती कहेंगी।” इसलिए उसने पुत्र का नाम गाद रखा। 12 जिल्पा ने दूसरे पुत्र को जन्म दिया। 13 लिआ ने कहा, “मैं बहुत प्रसन्न हूँ।” इसलिए उसने लड़के का नाम आशेर रखा।

14 गेहूँ कटने के समय रूबेन खेतों में गया और कुछ विशेष फूलों को देखा। रूबेन इन फूलों को अपनी माँ लिआ के पास लाया। लेकिन राहेल ने लिआ से कहा, “कृपा कर अपने पुत्र के फूलों में से कुछ मुझे दे दो।”

15 लिआ ने उत्तर दिया, “तुमने तो मेरे पति को पहले ही ले लिया है। अब तुम मेरे पुत्र के फूलों को भी ले लेना चाहती हो।”

लेकिन राहेल ने उत्तर दिया, “यदि तुम अपने पुत्र के फूल मुझे दोगी तो तुम आज रात याकूब के साथ सो सकती हो।”

16 उस रात याकूब खेतों से लौटा। लिआ ने उसे देखा और उससे मिलने गई। उसने कहा, “आज रात तुम मेरे साथ सोओगे। मैंने अपने पुत्र के फूलों को तुम्हारी कीमत के रूप में दिया है।” इसलिए याकूब उस रात लिआ के साथ सोया।

17 तब परमेश्वर ने लिआ को फिर गर्भवती होने दिया। उसने पाँचवें पुत्र को जन्म दिया। 18 लिआ ने कहा, “परमेश्वर ने मुझे इस बात का पुरस्कार दिया है कि मैंने अपनी दासी को अपने पति को दिया।” इसलिए लिआ ने अपने पुत्र का नाम इस्साकर रखा।

19 लिआ फिर गर्भवती हुई और उसने छठे पुत्र को जन्म दिया। 20 लिआ ने कहा, “परमेश्वर ने मुझे एक सुन्दर भेंट दी है। अब निश्चय ही याकूब मुझे अपनाएगा, क्योंकि मैंने उसे छः बच्चे दिए हैं।” इसलिए लिआ ने पुत्र का नाम जबूलून रखा।

21 इसके बाद लिआ ने एक पुत्री को जन्म दिया। उसने पुत्री का नाम दीना रखा।

22 तब परमेश्वर ने राहेल की प्रार्थना सुनी। परमेश्वर ने राहेल के लिए बच्चे उत्पन्न करना सभंव बनाया। 23-24 राहेल गर्भवती हुई और उसने एक पुत्र को जन्म दिया। राहेल ने कहा, “परमेश्वर ने मेरी लज्जा समाप्त कर दी है और मुझे एक पुत्र दिया है।” इसलिए राहेल ने अपने पुत्र का नाम यूसुफ रखा।

याकूब ने लाबान के साथ चाल चली

25 यूसुफ के जन्म के बाद याकूब ने लाबान से कहा, “अब मुझे अपने घर लौटने दो। 26 मुझे मेरी पत्नियाँ और बच्चे दो। मैंने चौदह वर्ष तक तुम्हारे लिए काम करके उन्हें कमाया है। तुम जानते हो कि मैंने तुम्हारी अच्छी सेवा की है।”

27 लाबान ने उससे कहा, “मुझे कुछ कहने दो। मैं अनुभव करता हूँ कि यहोवा ने तुम्हारी वजह से मुझ पर कृपा की है। 28 बताओ कि तुम्हें मैं क्या दूँ और मैं वही तुमको दूँगा।”

29 याकूब ने उत्तर दिया, “तुम जानते हो, कि मैंने तुम्हारे लिए कठिन परिश्रम किया है। तुम्हारी रेवड़े बड़ी हैं और जब तक मैंने उनकी देखभाल की है, ठीक रही हैं। 30 जब मैं आया था, तुम्हारे पास थोड़ी सी थीं। अब तुम्हारे पास बहुत अधिक हैं। हर बार जब मैंने तुम्हारे लिए कुछ किया है यहोवा ने तुम पर कृपा की है। अब मेरे लिए समय आ गया है कि मैं अपने लिए काम करूँ, यह मेरे लिए अपना घर बनाने का समय है।”

31 लाबान ने पूछा, “तब मैं तुम्हें क्या दूँ?”

याकूब ने उत्तर दिया, “मैं नहीं चाहता कि तुम मुझे कुछ दो। मैं केवल चाहता हूँ कि तुम जो मैंने काम किया है उसकी कीमत चुका दो। केवल यही एक काम करो। मैं लौटूँगा और तुम्हारी भेड़ों की देखभाल करूँगा। 32 मुझे अपनी सभी रेवड़ों के बीच से जाने दो और दागदार या धारीदार हर एक मेमने को मुझे ले लेने दो और काली नई बकरी को ले लेने दो हर एक दागदार और धारीदार बकरी को ले लेने दो। यही मेरा वेतन होगा। 33 भविष्य में तुम सरलता से देख लोगे कि मैं इमान्दार हूँ। तुम मेरी रेवड़ों को देखने आ सकते हो। यदि कोई बकरी दागदार नहीं होगी या कोई भेड़ काली नहीं होगी तो तुम जान लोगे कि मैंने उसे चुराया है।”

34 लाबान ने उत्तर दिया, “मैं इसे स्वीकार करता हूँ। हम तुमको जो कुछ मागोगे देंगे।” 35 लेकिन उस दिन लाबान ने दागदार बकरों को छिपा दिया और लाबान ने सभी दागदार या धारीदार बकरियों को छिपा दिया। लाबान ने सभी काली भेड़ों को भी छिपा दिया। लाबान ने अपने पुत्रों को इन भेंडें की देखभाल करने को कहा। 36 इसलिए पुत्रों ने सभी दागदार जानवरों को लिया और वे दूसरी जगह चले गए। उन्होंने तीन दिन तक यात्रा की। याकूब रूक गया और बचे हुए जानवरों की देखभाल करने लगा। किन्तु उनमें कोई जानवर दागदार या काला नहीं था।

37 इसलिए याकूब ने चिनार, बादाम और अर्मोन पेड़ों की हरी शाखाएँ काटीं। उसने उनकी छाल इस तरह उतारी कि शाखाएँ सफेद धारीदार बन गईं। 38 याकूब ने पानी पिलाने की जगह पर शाखाओं को रेवड़े के सामने रख दिया। जब जानवर पानी पीने आए तो उस जगह पर वे गाभिन होने के लिए मिले। 39 तब बकरियाँ जब शाखाओं के सामने गाभिन होने के लिए मिलीं तो जो बच्चे पैदा हुएं वे दागदार, धारीदार या काले हुए।

40 याकूब ने दागदार और काले जानवरों को रेवड़ के अन्य जानवरों से अलग किया। सो इस प्रकार, याकूब ने अपने जानवरों को लाबान के जानवरों से अलग किया। उसने अपनी भेड़ों को लाबान की भेड़ों के पास नहीं भटकने दिया। 41 जब कभी रेवड़ में स्वस्थ जानवर गाभिन होने के लिए मिलते थे तब याकूब उनकी आँखों के सामने शाखाएँ रख देता था, उन शाखाओं के करीब ही ये जानवर गाभिन होने के लिए मिलते थे। 42 लेकिन जब कमजोर जानवर गाभिन होने के लिए मिलते थे। तो याकूब वहाँ शाखाएँ नहीं रखता था। इस प्रकार कमजोर जानवरों से पैदा बच्चे लाबान के थे। स्वस्थ जानवरों से पैदा बच्चे याकूब के थे। 43 इस प्रकार याकूब बहुत धनी हो गया। उसके पास बड़ी रेवड़ें, बहुत से नौकर, ऊँट और गधे थे।

समीक्षा

परमेश्वर को अपने उद्देश्य को पूरा करते हुए देख़ें

हमारी कमज़ोरियों, अति संवेदनशीलता और पाप के बावजूद परमेश्वर अपने उद्देश्यों को पूरा करते हैं। याकूब एक धोखेबाज़ था। हम जो बोते हैं, वही काटते हैं। उसने धोखा बोया था और उसने लाबान से धोखा ही पाया (29:25ब)। फिर उसने धोखेबाज़ी का चक्र चालू रखा (30:37-43)  यह धोखेबाज़ी और अविश्वासयोग्यता और बेईमानी की असाधारण कहानी है।

फिर भी किसी तरह से, इन सबके बावजूद, परमेश्वर ने लोगों में, इस्राएल में, अपने पुत्र यीशु के जन्म में और परमेश्वर के लोगों के भविष्य में अपने उद्देश्यों को पूरा किया है।

याकूब के बच्चों के जन्म में बहुत से पाप और परेशानियाँ शामिल थीं (29:31-30:21)। फिर भी परमेश्वर इस्राएल के बारह गोत्रों में अपने सभी उद्देश्यों को पूरा कर रहे थे। अंत में राहेल की प्रार्थना का उत्तर यूसुफ के जन्म से दिया गया। (30:22)।

जैसे परमेश्वर का नियंत्रण उनके जीवनों पर था उसी तरह से आप भी भरोसा कर सकते हैं कि उनका संपूर्ण नियंत्रण आपके जीवन पर भी रहे और यह कि ‘जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं और उनके उद्देश्यों के अनुसार बुलाए गए हैं, उनके लिए सारी बातें मिलकर भलाई को ही उत्पन्न करती है’ (रोमियों 8:28)। तो बस विश्राम कीजिये और परमेश्वर को परमेश्वर बने रहने दीजिये।

प्रार्थना

प्रभु, मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आप कमज़ोर, अति संवेदनशील और पापी लोगों का भी उपयोग करते हैं। धन्यवाद कि आप मेरा उपयोग कर सकते हैं। आपका धन्यवाद, हालाँकि जैसा मैं हूँ वैसा ही आप मुझ से प्रेम करते हैं, आप मुझ से बेहद प्रेम करते हैं कि जैसा मैं हूँ मुझे वैसा ही बना रहने दें। मेरी मदद कीजिये कि मैं दूसरों से अच्छा बनने के लिए समझौता न करूँ।

अपने जीवन की ज़िम्मेदारी खुद उठाने के साथ-साथ आपकी सर्वश्रेष्ठता पर विश्वास करने में मेरी मदद कीजिये।

पिप्पा भी कहते है

उत्पत्ति 29-30

मैं उत्पत्ति के इन अध्यायों का आनंद ले रही हूँ। यह कहानी टेलीविजन पर सोप ओपेरा देखने से कहीं ज्यादा अच्छी है। इसके आगे वे क्या करेंगे?

यह दिलचस्ल्प बात है कि सारा, रिबका और राहेल को बच्चे होने में मुश्किलें आईं (यह एक नई समस्या है)। फिर भी हर एक बच्चा जो अंतत: पैदा हुआ था वह इस्राएल के लोगों के लिए परमेश्वर की योजना में बेहद महत्त्वपूर्ण था। क्या परमेश्वर सही समय का इंतज़ार कर रहे थे या वह माता-पिता को किसी तरह से तैयार कर रहे थे? याकूब के अधिकतर बच्चे भाइयों में झगड़े और ईर्ष्या के परिणाम स्वरूप पैदा हुए थे। तौभी परमेश्वर ने हार नहीं मानी और अपनी योजनाओं को पूरा किया।

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संदर्भ

नोट्स:

@Joyce Meyer, ‘जस्ट रिलैक्स एंड लेट द गॉड बी गॉड’ https://twitter.com/joycemeyer/status/286320915329994752 \[Last accessed December 2015\]

जॉयस मेयर, एवरी डे बाइबल, (फेथवर्ड्स, 2013) पन्ना 1507

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जिन वचनों को (MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002। जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

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