तीन प्रकार की विजय
परिचय
होज़े हेनरीक्वेज़ उन तैंतीस युवाओं में से एक थे जो ज़मीन के 2300 फुट नीचे फंस गए थे, जब उत्तरी चिली में सॅन होज़े तांबे की एक खान का भाग धंस गया था। यह 5 अगस्त 2010 था। सतरह दिनों तक किये गए सारे बचाव प्रयास असफल हो गए। सॅन होज़े खान में जीवन का कोई संकेत नजर नहीं आ रहा था। फंसे हुए खनिकों के पास तीन दिन तक के लिए पर्याप्त भोजन और बहुत थोड़ा पानी बचा था। वे लोग भूख से होने वाली मृत्यु की संभावना का सामना कर रहे थे।
मैंने एच.टी.बी. पर होज़े हेनिरिक्वेज़ और उनकी पत्नी से मुलाकात पेश की। उन्होंने बताया कि परमेश्वर से एक चमत्कार के लिए उन्होंने किस तरह से प्रार्थना की। उन्होंने उस पल का वर्णन किया, 22 अगस्त को, जब सुरंग में ड्रिल टूट गई जहाँ पर लोग फंसे हुए थे। उन्होंने लोहे की छड़ों से ड्रिल को ठोका। उन्होंने उस पर पेन्ट स्प्रे किया। उन्होंने उसे लपेटा। उन्होंने इससे ऊपर अनेक संदेश भेजे। जब ड्रिल सतह पर वापस गई तो केवल एक ही संदेश लगा हुआ मिला। यह इस प्रकार था, ‘हम ठीक हैं। बचाव स्थान में 33 जन हैं।’
इससे पहले कि उन्हें ज़मीन के नीचे से ऊपर लाया जाए तब तक कुल उनसठ दिन बीत गए थे। एक अरब से भी ज़्यादा लोगों ने टीवी पर लाइव बचाव कार्य देखा। यह असाधारण दृश्य था जब इन पुरूषों ने, उनके परिवारवालों ने, चिली के लोगों ने और पूरी दुनिया ने इस आश्चर्यजनक विजय का उत्सव मनाया।
विश्वास का जीवन चुनौतियों, परेशानियों और परीक्षाओं से भरा हुआ है। लेकिन इसमें विजय के पल भी आते हैं। आज के इस लेखांश में हम तीन प्रकार की विजय देखते हैं।
भजन संहिता 18:16-24
16 यहोवा ऊपर अम्बर से नीचे उतरा और मेरी रक्षा की।
मुझको मेरे कष्टों से उबार लिया।
17 मेरे शत्रु मुझसे कहीं अधिक सशक्त थे।
वे मुझसे कहीं अधिक बलशाली थे, और मुझसे बैर रखते थे। सो परमेश्वर ने मेरी रक्षा की।
18 जब मैं विपत्ति में था, मेरे शत्रुओं ने मुझ पर प्रहार किया
किन्तु तब यहोवा ने मुझ को संभाला!
19 यहोवा को मुझसे प्रेम था, सो उसने मुझे बचाया
और मुझे सुरक्षित ठौर पर ले गया।
20 मैं अबोध हूँ, सो यहोवा मुझे बचायेगा।
मैंने कुछ बुरा नहीं किया। वह मेरे लिये उत्तम चीजें करेगा।
21 क्योंकि मैंने यहोवा की आज्ञा पालन किया!
अपने परमेश्वर यहोवा के प्रति मैंने कोई भी बुरा काम नहीं किया।
22 मैं तो यहोवा के व्यवस्था विधानों को
और आदेशों को हमेशा ध्यान में रखता हूँ!
23 स्वयं को मैं उसके सामने पवित्र रखता हूँ
और अबोध बना रहता हूँ।
24 क्योंकि मैं अबोध हूँ! इसलिये मुझे मेरा पुरस्कार देगा!
जैसा परमेश्वर देखता है कि मैंने कोई बुरा नहीं किया, अतःवह मेरे लिये उत्तम चीज़ें करेगा।
समीक्षा
1. अपने शत्रुओं पर विजय
दाऊद ने अपने जीवन में कई युद्धों का सामना किया। वह शत्रुओं से घिरा हुआ था। ‘वे अधिक सामर्थी थे’ (पद - 17ब)। फिर भी वे परमेश्वर से ज़्यादा सामर्थी नहीं थे। परमेश्वर ने उसे उन लोगों से बचाया जो उससे बहुत सामर्थी थे और उसे एक ‘चौड़े स्थान में पहुँचा दिया’ (पद - 19)। ‘उसने मुझ को छुड़ाया, क्योंकि वह मुझ से प्रसन्न था’ (पद - 19ब)।
यदि इस समय आप एक ‘चौड़े स्थान’ में हैं, तो इसके लिए परमेश्वर को धन्यवाद देना याद रखिये। यदि नहीं, तो परमेश्वर से विनती कीजिये कि वह आपको बचाएं। यदि आपके परिवार का कोई भी सदस्य या दोस्त इस समय संघर्ष कर रहा है, तो प्रार्थना कीजिये कि परमेश्वर उन्हें एक चौड़े स्थान में ले आए।
प्रार्थना
प्रभु, परमेश्वर मैं आपको उस समय के लिए धन्यवाद देता हूँ जब आपने मुझे गहरे पानी में डूबने से बचा लिया था और मुझे एक चौड़े स्थान में ले आए थे। आज मैं …… के लिए प्रार्थना करता हूँ कि आप उन्हें एक चौड़े स्थान में ले आएं।
मत्ती 22:15-46
यहूदी नेताओं की चाल
15 फिर फरीसियों ने जाकर एक सभा बुलाई, जिससे वे इस बात का आपस में विचार-विमर्श कर सकें कि यीशु को उसकी अपनी ही कही किसी बात में कैसे फँसाया जा सकता है। 16 उन्होंने अपने चेलों को हेरोदियों के साथ उसके पास भेजा। उन लोगों ने यीशु से कहा, “गुरु, हम जानते हैं कि तू सच्चा है तू सचमुच परमेश्वर के मार्ग की शिक्षा देता है। और तब, कोई क्या सोचता है, तू इसकी चिंता नहीं करता क्योंकि तू किसी व्यक्ति की हैसियत पर नहीं जाता। 17 सो हमें बता तेरा क्या विचार है कि सम्राट कैसर को कर चुकाना उचित है कि नहीं?”
18 यीशु उनके बुरे इरादे को ताड़ गया, सो वह बोला, “ओ कपटियों! तुम मुझे क्यों परखना चाहते हो? 19 मुझे कोई दीनार दिखाओ जिससे तुम कर चुकाते हो।” सो वे उसके पास दीनार ले आये। 20 तब उसने उनसे कहा, “इस पर किसकी मूरत और लेख खुदे हैं?”
21 उन्होंने उससे कहा, “महाराजा कैसर के।”
तब उसने उनसे कहा, “अच्छा तो फिर जो महाराजा कैसर का है, उसे महाराजा कैसर को दो, और जो परमेश्वर का है, उसे परमेश्वर को।”
22 यह सुनकर वे अचरज से भर गये और उसे छोड़ कर चले गये।
सदूकियों की चाल
23 उसी दिन (कुछ सदूकी जो पुनरुत्थान को नहीं मानते थे) उसके पास आये। और उससे पूछा, 24 “गुरु, मूसा के उपदेश के अनुसार यदि बिना बाल बच्चों के कोई, मर जाये तो उसका भाई, निकट सम्बन्धी होने के नाते उसकी विधवा से ब्याह करे और अपने भाई का वंश बढ़ाने के लिये संतान पैदा करे। 25 अब मानो हम सात भाई हैं। पहले का ब्याह हुआ और बाद में उसकी मृत्यु हो गयी। फिर क्योंकि उसके कोई संतान नहीं हुई, इसलिये उसके भाई ने उसकी पत्नी को अपना लिया। 26 जब तक कि सातों भाई मर नहीं गये दूसरे, तीसरे भाईयों के साथ भी वैसा ही हुआ 27 और सब के बाद वह स्त्री भी मर गयी। 28 अब हमारा पूछना यह है कि अगले जीवन में उन सातों में से वह किसकी पत्नी होगी क्योंकि उसे सातों ने ही अपनाया था?”
29 उत्तर देते हुए यीशु ने उनसे कहा, “तुम भूल करते हो क्योंकि तुम शास्त्रों को और परमेश्वर की शक्ति को नहीं जानते। 30 तुम्हें समझाना चाहिये कि पुर्नजीवन में लोग न तो शादी करेंगे और न ही कोई शादी में दिया जायेगा। बल्कि वे स्वर्ग के दूतों के समान होंगे। 31 इसी सिलसिले में तुम्हारे लाभ के लिए परमेश्वर ने मरे हुओं के पुनरुत्थान के बारे में जो कहा है, क्या तुमने कभी नहीं पढ़ा? उसने कहा था, 32 ‘मैं इब्राहीम का परमेश्वर हूँ, इसहाक का परमेश्वर हूँ, और याकूब का परमेश्वर हूँ।’ वह मरे हुओं का नहीं बल्कि जीवितों का परमेश्वर है।”
33 जब लोगों ने यह सुना तो उसके उपदेश पर वे बहुत चकित हो गए।
सबसे बड़ा आदेश
34 जब फरीसियों ने सुना कि यीशु ने अपने उत्तर से सदूकियों को चुप करा दिया है तो वे सब इकट्ठे हुए 35 उनमें से एक यहूदी धर्मशास्त्री ने यीशु को फँसाने के उद्देश्य से उससे पूछा, 36 “गुरु, व्यवस्था में सबसे बड़ा आदेश कौन सा है?”
37 यीशु ने उससे कहा, “सम्पूर्ण मन से, सम्पूर्ण आत्मा से और सम्पूर्ण बुद्धि से तुझे अपने परमेश्वर प्रभु से प्रेम करना चाहिये।” 38 यह सबसे पहला और सबसे बड़ा आदेश है। 39 फिर ऐसा ही दूसरा आदेश यह है: ‘अपने पड़ोसी से वैसे ही प्रेम कर जैसे तू अपने आप से करता है।’ 40 सम्पूर्ण व्यवस्था और भविष्यवक्ताओं के ग्रन्थ इन्हीं दो आदेशों पर टिके हैं।”
क्या मसीह दाऊद का पुत्र या दाऊद का प्रभु है?
41 जब फ़रीसी अभी इकट्ठे ही थे, कि यीशु ने उनसे एक प्रश्न पूछा, 42 “मसीह के बारे में तुम क्या सोचते हो कि वह किसका बेटा है?”
उन्होंने उससे कहा, “दाऊद का।”
43 यीशु ने उनसे पूछा, “फिर आत्मा से प्रेरित दाऊद ने उसे ‘प्रभु’ कहते हुए यह क्यों कहा था:
44 ‘प्रभु ने मेरे प्रभु से कहा:
मेरे दाहिने हाथ बैठ कर शासन कर,
जब तक कि मैं तेरे शत्रुओं को तेरे अधीन न कर दूँ।’
45 फिर जब दाऊद ने उसे ‘प्रभु’ कहा तो वह उसका बेटा कैसे हो सकता है?”
46 उत्तर में कोई भी उससे कुछ नहीं कह सका। और न ही उस दिन के बाद किसी को उससे कुछ और पूछने का साहस ही हुआ।
समीक्षा
2. अपने आलोचकों पर विजय
यीशु के विरोधियों ने यीशु से तीन प्रश्न पूछे: फंसाने वाला प्रश्न, एक कपट से भरा प्रश्न, एक कसौटी वाला प्रश्न (पद - 17,23,35)। हर बार वह विजयी हुए और ऐसा जवाब दिया जिसने उन्हें न केवल अचंभित (पद - 22) और विस्मित (पद - 33) किया, बल्कि इसका प्रभाव पूरे इतिहास पर पड़ा। हम यीशु के उत्तरों से क्या सीख सकते हैं?
- अपने जीवन को पवित्र और सासांरिक जीवन में न बाटें
फरीसियों ने यीशु को उनके ही शब्दों के जाल में फंसाने की योजना बनाई। उन्होंने यीशु से पूछा: ‘हमें बता तू क्या समझता है? कैसर को कर देना उचित है, कि नहीं’ (पद - 17)। वे जिस कर के बारे में पूछ रहे थे वह बहुत ही अलोकप्रिय था। यदि यीशु ने ‘हाँ’ कहा होता, तो वह लोगों की नज़रों में बदनाम हो जाते। सभी लोगों ने उनसे नफरत की होती और उन्हें रोमियों की मदद करने वाला कपटी समझा होता।
यदि उन्होंने ‘नहीं’ कहा होता, तो राजद्रोह के अपराधी ठहरते और उन्हें कैद और फांसी की सज़ा हो सकती थी।
यीशु ने अपनी असाधारण बुद्धिमत्ता से, नियम और कानून का विरोध नहीं किया बल्कि उन्होंने अनंत सिद्धांतों की व्याख्या भी की। वह अचंभित कर देने वाला उत्तर देते हैं: ‘तब उस ने, उन से कहा; जो कैसर का है, वह कैसर को; और जो परमेश्वर का है, वह परमेश्वर को दो’ (पद - 21)।
यीशु के सभी मानने वालों के पास दोहरी नागरिकता है। आपको एक अच्छे नागरिक के रूप में अपने समाज में शामिल व्यवस्थाओं की ज़िम्मेदारी निभानी है।
और इसके साथ - साथ आपको स्वर्गीय नागरिक के रूप में परमेश्वर के प्रति ज़िम्मेदारी भी निभानी है। सैद्धांतिक रूप से – कैसर और परमेश्वर – के बीच पक्षपात नहीं होना चाहिये। आपको दोनों के अच्छे नागरिक होने के लिए बुलाया गया है। जीवन में अपने समाज में शामिल होइये और इससे अलग मत होइये।
ऐसा नहीं है कि परमेश्वर आपके जीवन के ‘पवित्र’ हिस्से के स्वामी है और सरकार आपके सांसारिक जीवन की। बल्कि आपका पूरा जीवन परमेश्वर के अधिकार के अधीन है। परमेश्वर के प्रति समर्पण का एक हिस्सा सरकार की आज्ञा का पालन वैध तरीके से करना भी है। जिस तरह से सिक्के पर कैसर की तस्वीर बनी हुई है उसी तरह से आप पर परमेश्वर की तस्वीर बनी हुई है (उत्पत्ती 1:16)। परमेश्वर आपका संपूर्ण जीवन चाहते हैं।
- आप जानते हैं कि मृत्यु के बाद भी जीवन है
अगला, सदूकियों ने कपटपूर्ण सवाल किया, उस पुरूष के बारे में जिसकी सात पत्नियाँ थीं। क्योंकि सदूकी पुनरूत्थान पर विश्वास नहीं करते, इसलिए उन्होंने कपटपूर्ण, जटिल प्रश्न किया यह दिखाने के लिए कि यीशु कितने विवेकहीन हैं (मत्ती 22:23-28)।
'यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, कि तुम पवित्र शास्त्र और परमेश्वर की सामर्थ नहीं जानते' (पद - 29)। यीशु मूसा की बनाई पाँच पुस्तकों का उपयोग करते हैं (बाइबल की पहली पाँच पुस्तकें – जिस पर सदूकियों ने भरोसा किया था) यह दिखाने के लिए कि ‘परमेश्वर केवल मरे हुओं का नहीं, परन्तु जीवतों के भी परमेश्वर हैं’ (पद - 32ब)।
वह निर्गमन 3:6 से उन शब्दों का बयान करते हैं जो परमेश्वर ने मूसा से झाड़ियों में दर्शन देते समय कहा था, ‘मैं इब्राहीम का परमेश्वर, और इसहाक का परमेश्वर, और याकूब का परमेश्वर हूँ’ (मत्ती 22:32अ)। जब मूसा ने ये शब्द सुने थे तो अब्राहम, इसहाक और याकूब को मरे हुए सैकड़ों साल हो गए थे। परमेश्वर ने ऐसा नहीं कहा कि, ‘मैं उनका परमेश्वर था’ बल्कि यह कहा कि ‘मैं उनका परमेश्वर हूँ।’ वे अब भी जीवित हैं।
यीशु यह दर्शा रहे थे कि जीवन इतना ही नहीं है। इसके अलावा, इस जीवन और आने वाले जीवन के बीच भी निरंतरता बनी रहेगी। यह शरीर में फिर से जी उठना है। फिर भी, हमारे लिए एक अंतराल बना हुआ है ‘वे स्वर्ग में परमेश्वर के दूतों की नाईं होंगे’ (पद - 30)। इसके अलावा, पवित्र शास्त्र हमें बताता है कि पुनरूत्थान होगा और यदि परमेश्वर सर्वशक्तिमान हैं, तो हमें वहाँ क्यों नहीं होना चाहिये?
- परमेश्वर और दूसरों के प्रति प्रेम को प्राथमिकता दें
तब, फरीसी एक कसौटी प्रश्न के साथ आते हैं, जिसका यीशु ने बहुत ही शानदार उत्तर दिया, जो कि संपूर्ण पुराने नियम का केन्द्र है: (‘अपने सारे धन और प्रार्थना और बुद्धि से’) परमेश्वर से प्रेम करो (पद - 37, एम.एस.जी.), और (‘जैसा तुम अपने आप से प्रेम करते हो वैसा ही) अपने पड़ोसी से प्रेम करो (पद - 39, एम.एस.जी.)। बाकी की सब बातें इन दो आज्ञाओं का विस्तृतीकरण है (पद - 34-40)।
अपने आलोचकों को चुप करने के बाद यीशु ने उनसे एक प्रश्न पूछा। यह प्रश्न उनकी पहचान के बारे में है। यीशु पवित्र शास्त्र से उन लोगों को बताते हैं कि मसीह केवल दाऊद की संतान नहीं है – बल्कि वह दाऊद का प्रभु भी है (पद - 41-46)। वह साबित करते हैं कि मसीहा महान मानवीय राजा से बढ़कर है, यह उनके लिए यीशु की छिपी हुई पहचान भी है।
यह यीशु के लिए विजय का पल है: ‘उसके उत्तर में कोई भी एक बात न कह सका; परन्तु उस दिन से किसी को फिर उस से कुछ पूछने का हियाव न हुआ’ (पद - 46)।
प्रार्थना
पिता, कृपया मुझे यीशु की जैसी बुद्धि दीजिये ताकि मैं कपट पूर्ण सवालों और कसौटी वाले सवालों के जाल से बच सकूँ।
अय्यूब 30:1-32:22
30“अब, आयु में छोटे लोग मेरा माजक बनाते हैं।
उन युवा पुरुषों के पित बिलकुल ही निकम्मे थे।
जिनको मैं उन कुत्तों तक की सहायता नहीं करने देता था जो भेंड़ों के रखवाले हैं।
2 उन युवा पुरुषों के पिता मुझे सहारा देने की कोई शक्ति नहीं रखते हैं,
वे बूढे हो चुके हैं और थके हुये हैं।
3 वे व्यक्ति मुर्दे जैसे हैं क्योंकि खाने को उनके पास कुछ नहीं है
और वे भूखे हैं, सो वे मरुभूमि के सूखे कन्द खाना चाहते हैं।
4 वे लोग मरुभूमि में खारे पौधों को उखाड़ते हैं
और वे पीले फूल वाले पीलू के पेड़ों की जड़ों को खाते हैं।
5 वे लोग, दूसरे लोगों से भगाये गये हैं
लोग जैसे चोर पर पुकारते हैं उन पर पुकारते हैं।
6 ऐसे वे बूढ़े लोग सूखी हुई नदी के तलों में
चट्टानों के सहारे और धरती के बिलों में रहने को विवश हैं।
7 वे झाड़ियों के भीतर रेंकते हैं।
कंटीली झाड़ियों के नीचे वे आपस में एकत्र होते हैं।
8 वे बेकार के लोगों का दल है, जिनके नाम तक नहीं हैं।
उनको अपना गाँव छोड़ने को मजबूर किया गया है।
9 “अब ऐसे उन लोगों के पुत्र मेरी हँसी उड़ाने को मेरे विषय में गीत गाते हैं।
मेरा नाम उनके लिये अपशब्द सा बन गया है।
10 वे युवक मुझसे घृणा करते हैं।
वे मुझसे दूर खड़े रहते हैं और सोचते हैं कि वे मुझसे उत्तम हैं।
यहाँ तक कि वे मेरे मुँह पर थूकते हैं।
11 परमेश्वर ने मेरे धनुष से उसकी डोर छीन ली है और मुझे दुर्बल किया है।
वे युवक अपने आप नहीं रुकते हैं बल्कि क्रोधित होते हुये मुझ पर मेरे विरोध में हो जाते हैं।
12 वे युवक मेरी दाहिनी ओर मुझ पर प्रहार करते हैं।
वे मुझे मिट्टी में गिराते हैं वे ढलुआ चबूतरे बनाते हैं,
मेरे विरोध में मुझ पर प्रहार करके मुझे नष्ट करने को।
13 वे युवक मेरी राह पर निगरानी रखते हैं कि मैं बच निकल कर भागने न पाऊँ।
वे मुझे नष्ट करने में सफल हो जाते हैं।
उनके विरोध में मेरी सहायता करने को मेरे साथ कोई नहीं है।
14 वे मुझ पर ऐसे वार करते हैं, जैसे वे दिवार में सूराख निकाल रहें हो।
एक के बाद एक आती लहर के समान वे मुझ पर झपट कर धावा करते हैं।
15 मुझको भय जकड़ लेता है।
जैसे हवा वस्तुओं को उड़ा ले जाती है, वैसी ही वे युवक मेरा आदर उड़ा देते हैं।
जैसे मेघ अदृश्य हो जाता है, वैसे ही मेरी सुरक्षा अदृश्य हो जाती है।
16 “अब मेरा जीवन बीतने को है और मैं शीघ्र ही मर जाऊँगा।
मुझको संकट के दिनों ने दबोच लिया है।
17 मेरी सब हड्डियाँ रात को दुखती हैं,
पीड़ा मुझको चबाना नहीं छोड़ती है।
18 मेरे गिरेबान को परमेश्वर बड़े बल से पकड़ता है,
वह मेरे कपड़ों का रूप बिगाड़ देता है।
19 परमेश्वर मुझे कीच में धकेलता है
और मैं मिट्टी व राख सा बनता हूँ।
20 “हे परमेश्वर, मैं सहारा पाने को तुझको पुकारता हूँ,
किन्तु तू उत्तर नहीं देता है।
मैं खड़ा होता हूँ और प्रार्थना करता हूँ,
किन्तु तू मुझ पर ध्यान नहीं देता।
21 हे परमेश्वर, तू मेरे लिये निर्दयी हो गया है,
तू मुझे हानि पहुँचाने को अपनी शक्ति का प्रयोग करता है।
22 हे परमेश्वर, तू मुझे तीव्र आँधी द्वारा उड़ा देता है।
तूफान के बीच में तू मुझको थपेड़े खिलाता है।
23 मैं जानता हूँ तू मुझे मेरी मृत्यु की ओर ले जा रहा है
जहाँ अन्त में हर किसी को जाना है।
24 “किन्तु निश्चय ही कोई मरे हुये को,
और उसे जो सहायता के लिये पुकारता है, उसको नहीं मारता।
25 हे परमेश्वर, तू तो यह जानता है कि मैं उनके लिये रोया जो संकट में पड़े हैं।
तू तो यह जानता है कि मेरा मन गरीब लोगों के लिये बहुत दु:खी रहता था।
26 किन्तु जब मैं भला चाहता था, तो बुरा हो जाता था।
मैं प्रकाश ढूँढता था और अंधेरा छा जाता था।
27 मैं भीतर से फट गया हूँ और यह ऐसा है कि
कभी नहीं रुकता मेरे आगे संकट का समय है।
28 मैं सदा ही व्याकुल रहता हूँ। मुझको चैन नहीं मिल पाता है।
मैं सभा के बीच में खड़ा होता हूँ, और सहारे को गुहारता हूँ।
29 मैं जंगली कुत्तों के जैसा बन गया हूँ,
मेरे मित्र बस केवल शतुर्मुर्ग ही है।
30 मेरी त्वचा काली पड़ गई है।
मेरा तन बुखार से तप रहा है।
31 मेरी वीणा करुण गीत गाने की सधी है
और मेरी बांसुरी से दु:ख के रोने जैसे स्वर निकलते हैं।
31“मैंने अपनी आँखो के साथ एक सन्धि की है कि
वे किसी लड़की पर वासनापूर्ण दृष्टि न डालें।
2 सर्वशक्तिमान परमेश्वर लोगों के साथ कैसा करता है
वह कैसे अपने ऊँचे स्वर्ग के घर से उनके कर्मो का प्रतिफल देता है
3 दुष्ट लोगों के लिये परमेश्वर संकट और विनाश भेजता है,
और जो बुरा करते हैं, उनके लिये विध्वंस भेजता है।
4 मैं जो कुछ भी करता हूँ परमेश्वर जानता है
और मेरे हर कदम को वह देखता है।
5 “यदि मैंने झूठा जीवन जिया हो
या झूठ बोल कर लोगों को मूर्ख बनाया हो,
6 तो वह मुझको खरी तराजू से तौले,
तब परमेश्वर जान लेगा कि मैं निरपराध हूँ।
7 यदि मैं खरे मार्ग से हटा होऊँ
यदि मेरी आँखे मेरे मन को बुरे की
ओर ले गई अथवा मेरे हाथ पाप से गंदे हैं।
8 तो मेरी उपजाई फसल अन्य लोग खा जाये
और वे मेरी फसलों को उखाड़ कर ले जायें।
9 “यदि मैं स्त्रियों के लिये कामुक रहा होऊँ,
अथवा यदि मैं अपने पड़ोसी के द्वार को उसकी पत्नी के साथ व्यभिचार करने के लिये ताकता रहा होऊँ,
10 तो मेरी पत्नी दूसरों का भोजन तैयार करे
और उसके साथ पराये लोग सोंये।
11 क्यों? क्योंकि यौन पाप लज्जापूर्ण होता है?
यह ऐसा पाप है जो निश्चय ही दण्डित होना चाहिये।
12 व्यभिचार उस पाप के समान है, जो जलाती और नष्ट कर डालती है।
मेरे पास जो कुछ भी है व्यभिचार का पाप उसको जला डालेगा।
13 “यदि मैं अपने दास—दासियों के सामने उस समय निष्पक्ष नहीं रहा,
जब उनको मुझसे कोई शिकायत रहीं।
14 तो जब मुझे परमेश्वर के सामने जाना होगा,
तो मैं क्या करूँगा? जब वह मुझ को मेरे कर्मो की सफाई माँगने बुलायेगा तो मैं परमेश्वर को क्या उत्तर दूँगा?
15 परमेश्वर ने मुझको मेरी माता के गर्भ में बनाया, और मेरे दासों को भी उसने माता के गर्भ में हीं बनाया,
उसने हम दोनों ही को अपनी—अपनी माता के भीतर ही रूप दिया है।
16 “मैंने कभी भी दीन जन की सहायता को मना नहीं किया।
मैंने विधवाओं को सहारे बिना नहीं रहने दिया।
17 मैं स्वार्थी नहीं रहा।
मैंने अपने भोजन के साथ अनाथ बच्चों को भूखा नहीं रहने दिया।
18 ऐसे बच्चों के लिये जिनके पिता नहीं है, मैं पिता के जैसा रहा हूँ।
मैंने जीवन भर विधवाओं का ध्यान रखा है।
19 जब मैंने किसी को इसलिये कष्ट भोगते पाया कि उसके पास वस्त्र नहीं हैं,
अथवा मैंने किसी दीन को बिना कोट के पाया।
20 तो मैं सदा उन लोगों को वस्त्र देता रहा,
मैंने उन्हें गर्म रखने को मैंने स्वयं अपनी भेड़ों के ऊन का उपयोग किया,
तो वे मुझे अपने समूचे मन से आशीष दिया करते थे।
21 यदि कोई मैंने अनाथ को छलने का जतन अदालत में किया हो
यह जानकर की मैं जीतूँ,
22 तो मेरा हाथ मेरे कंधे के जोड़ से ऊतर जाये
और मेरा हाथ कंधे पर से गिर जाये।
23 किन्तु मैंने तो कोई वैसा बुरा काम नहीं किया।
क्यों? क्योंकि मैं परमेश्वर के दण्ड से डरता रहा था।
24 “मैंने कभी अपने धन का भरोसा न किया,
और मैंने कभी नहीं शुद्ध सोने से कहा कि “तू मेरी आशा है!”
25 मैंने कभी अपनी धनिकता का गर्व नहीं किया
अथवा जो मैंने सम्पत्ति कमाई थी, उसके प्रति मैं आनन्दित हुआ।
26 मैंने कभी चमकते सूरज की पूजा नहीं की
अथवा मैंने सुन्दर चाँद की पूजा नहीं की।
27 मैंने कभी इतनी मूर्खता नहीं की
कि सूरज और चाँद को पूजूँ।
28 यदि मैंने इनमें से कुछ किया तो वो मेरा पाप हो और मुझे उसका दण्ड मिले।
क्योंकि मैं उन बातों को करते हुये सर्वशक्तिशाली परमेश्वर का अविश्वासी हो जाता।
29 “जब मेरे शत्रु नष्ट हुए तो
मैं प्रसन्न नहीं हुआ,
जब मेरे शत्रुओं पर विपत्ति पड़ी तो,
मैं उन पर नहीं हँसा।
30 मैंने अपने मुख को अपने शत्रु से बुरे शब्द बोल कर पाप नहीं करने दिया
और नहीं चाहा कि उन्हें मृत्यु आ जाये।
31 मेरे घर के सभी लोग जानते हैं कि
मैंने सदा अनजानों को खाना दिया।
32 मैंने सदा अनजानों को अपने घर में बुलाया,
ताकि उनको रात में गलियों में सोना न पड़े।
33 दूसरे लोग अपने पाप को छुपाने का जतन करते हैं,
किन्तु मैंने अपना दोष कभी नहीं छुपाया।
34 क्यों क्योंकि लोग कहा करते हैं कि मैं उससे कभी नहीं डरा।
मैं कभी चुप न रहा और मैंने कभी बाहर जाने से मना नहीं किया
क्योंकि उन लोगों से जो मेरे प्रति बैर रखते हैं कभी नहीं डरा।
35 “ओह! काश कोई होता जो मेरी सुनता!
मुझे अपनी बात समझाने दो।
काश! शक्तिशाली परमेश्वर मुझे उत्तर देता।
काश! वह उन बातों को लिखता जो मैंने गलत किया था उसकी दृष्टि में।
36 क्योंकि निश्चय ही मैं वह लिखावट अपने निज कन्धों पर रख लूँगा
और मैं उसे मुकुट की तरह सिर पर रख लूँगा।
37 मैंने जो कुछ भी किया है, मैं उसे परमेश्वर को समझाऊँगा।
मैं परमेश्वर के पास अपना सिर ऊँचा उठाये हुये जाऊँगा, जैसे मैं कोई मुखिया होऊँ।
38 “यदि जिस खेत पर मैं खेती करता हूँ उसको मैंने चुराया हो
और उसको उसके स्वामी से लिया हो जिससे वह धरती अपने ही आँसुओं से गीली हो।
39 और यदि मैंने कभी बिना मजदूरों को मजदूरी दिये हुये,
खेत की उपज को खाया हो और मजदूरों को हताश किया हो,
40 हाँ! यदि इनमें से कोई भी बुरा काम मैंने किया हो,
तो गेहूँ के स्थान पर काँटे और जौ के बजाये खर—पतवार खेतों में उग आयें।”
अय्यूब के शब्द समाप्त हुये!
एलीहू का कथन
32फिर अय्यूब के तीनों मित्रों ने अय्यूब को उत्तर देने का प्रयत्न करना छोड़ दिया। क्योंकि अय्यूब निश्चय के साथ यह मानता था कि वह स्वयं सचमुच दोष रहित हैं। 2 वहाँ एलीहू नाम का एक व्यक्ति भी था। एलीहू बारकेल का पुत्र था। बारकेल बुज़ नाम के एक व्यक्ति के वंशज था। एलीहू राम के परिवार से था। एलीहू को अय्यूब पर बहुत क्रोध आया क्योंकि अय्यूब कह रहा था कि वह स्वयं नेक है और वह परमेश्वर पर दोष लगा रहा था। 3 एलीहू अय्यूब के तीनों मित्रों से भी नाराज़ था क्योंकि वे तीनों ही अय्यूब के प्रश्नों का युक्ति संगत उत्तर नहीं दे पाये थे और अय्यूब को ही दोषी बता रहे थे। इससे तो फिर ऐसा लगा कि जैसे परमेश्वर ही दोषी था। 4 वहाँ जो लोग थे उनमें एलीहू सबसे छोटा था इसलिए वह तब तक बाट जोहता रहा जब तक हर कोई अपनी अपनी बात पूरी नहीं कर चुका। तब उसने सोचा कि अब वह बोलना शुरु कर सकता हैं। 5 एलीहू ने जब यह देखा कि अय्यूब के तीनों मित्रों के पास कहने को और कुछ नहीं है तो उसे बहुत क्रोध आया। 6 सो एलीहू ने अपनी बात कहना शुरु किया। वह बोला:
“मैं छोटा हूँ और तुम लोग मुझसे बड़े हो,
मैं इसलिये तुमको वह बताने में डरता था जो मैं सोचता हूँ।
7 मैंने मन में सोचा कि बड़े को पहले बोलना चाहिये,
और जो आयु में बड़े है उनको अपने ज्ञान को बाँटना चाहिये।
8 किन्तु व्यक्ति में परमेश्वर की आत्मा बुद्धि देती है
और सर्वशक्तिशाली परमेश्वर का प्राण व्यक्ति को ज्ञान देता है।
9 आयु में बड़े व्यक्ति ही नहीं ज्ञानी होते है।
क्या बस बड़ी उम्र के लोग ही यह जानते हैं कि उचित क्या है?
10 “सो इसलिये मैं एलीहू जो कुछ मैं जानता हूँ।
तुम मेरी बात सुनों मैं तुम को बताता हूँ कि मैं क्या सोचता हूँ।
11 जब तक तुम लोग बोलते रहे, मैंने धैर्य से प्रतिक्षा की,
मैंने तुम्हारे तर्क सुने जिनको तुमने व्यक्त किया था, जो तुमने चुन चुन कर अय्यूब से कहे।
12 जब तुम मार्मिक शब्दों से जतन कर रहे थे, अय्यूब को उत्तर देने का तो मैं ध्यान से सुनता रहा।
किन्तु तुम तीनों ही यह प्रमाणित नहीं कर पाये कि अय्यूब बुरा है।
तुममें से किसी ने भी अय्यूब के तर्को का उत्तर नहीं दिया।
13 तुम तीनों ही लोगों को यही नहीं कहना चाहिये था कि तुमने ज्ञान को प्राप्त कर लिया है।
लोग नहीं, परमेश्वर निश्चय ही अय्यूब के तर्को का उत्तर देगा।
14 किन्तु अय्यूब मेरे विरोध में नहीं बोल रहा था,
इसलिये मैं उन तर्को का प्रयोग नहीं करुँगा जिसका प्रयोग तुम तीनों ने किया था।
15 “अय्यूब, तेरे तीनो ही मित्र असमंजस में पड़ें हैं,
उनके पास कुछ भी और कहने को नहीं हैं,
उनके पास और अधिक उत्तर नहीं हैं।
16 ये तीनों लोग यहाँ चुप खड़े हैं
और उनके पास उत्तर नहीं है।
सो क्या अभी भी मुझको प्रतिक्षा करनी होगी?
17 नहीं! मैं भी निज उत्तर दूँगा।
मैं भी बताऊँगा तुम को कि मैं क्या सोचता हूँ।
18 क्योंकि मेरे पास सहने को बहुत है मेरे भीतर जो आत्मा है,
वह मुझको बोलने को विवश करती है।
19 मैं अपने भीतर ऐसी दाखमधु सा हूँ, जो शीघ्र ही बाहर उफन जाने को है।
मैं उस नयी दाखमधु मशक जैसा हूँ जो शीघ्र ही फटने को है।
20 सो निश्चय ही मुझे बोलना चाहिये, तभी मुझे अच्छा लगेगा।
अपना मुख मुझे खोलना चाहिये और मुझे अय्यूब की शिकायतों का उत्तर देना चाहिये।
21 इस बहस में मैं किसी भी व्यक्ति का पक्ष नहीं लूँगा
और मैं किसी का खुशामद नहीं करुँगा।
22 मैं नहीं जानता हूँ कि कैसे किसी व्यक्ति की खुशामद की जाती है।
यदि मैं किसी व्यक्ति की खुशामद करना जानता तो शीघ्र ही परमेश्वर मुझको दण्ड देता।
समीक्षा
लालसाओं पर विजय
अय्यूब की पुस्तक हमेशा के लिए दर्शाती है कि पाप और तकलीफें किसी व्यक्ति के पाप से या पाप की कमी से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित नहीं हैं। अय्यूब की पुस्तक का पूरा मकसद यह है कि, यद्यपि अय्यूब सिद्ध नहीं था (13:26; 14:17), फिर भी उसकी तकलीफों का कारण अय्यूब का पाप नहीं था। अय्यूब 'निर्दोष और खरा था; वह परमेश्वर का भय मानता था और बुराई से दूर रहता था' (1:1)।
अय्यूब अपने दोस्तों के लगाए दोषों के बाद यह जानते थे कि उनका विवेक पूरी तरह से साफ है। यह ऐसा है, 'भला होता कि जो शिकायतनामा मेरे मुद्दई ने लिखा है वह मेरे पास होता! ' (31:35)। आज के लेखांश में वह अपनी सफाई देते हैं (पद - 35)।
अय्यूब का जीवन एक उदाहरण, एक प्रेरणा और एक चुनौती थी। यह सच्चाई और खराई से जीने की एक आश्चर्यजनक तस्वीर है।
- अपने आपको पवित्र रखें
उसने कहा, ' मैं ने अपनी आंखों के विषय वाचा बान्धी है, फिर मैं किसी कुंवारी पर क्योंकर आंखें लगाऊं? '(पद - 1)। उसके दिल में व्यभिचार करने का प्रलोभन नहीं था। वह जान गए थे कि 'व्यभिचार ऐसी आग है जो जला कर भस्म कर देती है,' (पद - 12)।
- भौतिकवाद को टालें
उसने अपना भरोसा धन या बड़ी कमाई पर नहीं रखा था। ना ही उसने अपनी आशा खरे सोने पर रखी थी यह कहते हुए कि, 'तुम मेरी सुरक्षा हो' (पद - 24)। फिर से, वह मन ही मन मोहित नहीं हुआ था (पद - 27)।
- अपने शत्रु से प्रेम करें
उसने अपने शत्रुओं से नफरत करने की इच्छा का प्रतिकार किया था। जब उसके शत्रु परेशानी में थे तब वह आनंदित नहीं हुआ (पद - 29ब) - जो कि एक शक्तिशाली इच्छा है। क्रोध में आकर कटु शब्द कहने की बहुत इच्छा होती है, परंतु अय्यूब ने न तो उसे शाप देते हुए, और न उसके प्राणदण्ड की प्रार्थना करते हुए अपने मुंह से अपने शत्रुओं के विरूद्ध पाप किया (पद - 30)।
- उदार रहें
वह सिर्फ अपने वैयक्तिक जीवन में ही पाप से दूर नहीं रहता था बल्कि वह अपने कर्मचारियों के साथ भी खरा था (पद - 13)। उसने कभी भी कंगालों की इच्छा पूरी करने से मना नहीं किया (पद - 16अ। )। वह यात्रियों के लिए अपना द्वार खुला रखता था (पद - 32)।
प्रार्थना
प्रभु, खुद को पवित्र रखने के लिए साफ अंत:करण के साथ जीने में और सिर्फ आप पर भरोसा रखने में मेरी मदद कीजिये। आपको धन्यवाद कि यीशु के क्रूस के द्वारा, आपने मेरे अतीत की असफलताओं को क्षमा कर दिया है और पवित्र आत्मा की सामर्थ के द्वारा मैं लालसाओं पर विजय पा सकता हूँ।
पिप्पा भी कहते है
मैं अय्यूब के आत्मविश्वास से बहुत ही प्रभावित हुई हूँ कि परमेश्वर उसे निर्दोष पाएंगे (अय्यूब 31:6)। जिस तरह से उसने अपना जीवन बिताया था उसकी वह बहुत बड़ी सूची देते हैं, जिसमें यह भी शामिल है कि उसने खुद के लिए रोटी भी बचाकर नहीं रखी थी (पद - 17)। जब मैं घर पर वापस आकर देखती हूँ कि निकी ने मेरी बनाई हुई सारी चॉकलेट - ब्राउनीज़ मेहमानों में बांट दी है तो मुझे ज़रा भी उदारता महसूस नहीं होती।
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संदर्भ
नोट्स:
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है। कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।