उन्होंने आपका उद्धार किया है
परिचय
13 जनवरी 1982 को, एयर फ्लोरिडा उड़ान संख्या 90 वाशिंगटन डी.सी. से उड़ान भर रही थी, जो कि पोटोमॅक नदी में दुर्घटनाग्रस्त हो गई। यह सर्दी के दिन थे और नदी बर्फ से भरी हुई थी। यह दुर्घटना नदी पर बने पुल के पास हुई थी। टी.वी. कैमरा ने सब कुछ देखा होगा। लाखों दर्शकों ने, अपने कमरे में बैठकर यह देखा होगा कि एक हैलिकॉप्टर ने उस व्यक्ति के लिए एक लाइफ - बेल्ट नीचे डाली जो पानी में संघर्ष कर रहा था। उसने लाइन पकड़ी और उसके करीब एक दूसरे व्यक्ति के पास तैरकर गया, और एक महिला को क्लिप किया और वे सुरक्षित ऊपर आ गए। हैलिकॉप्टर ने फिर से लाइन नीचे डाली और दोबारा उस व्यक्ति ने वैसा ही किया। वह किसी और के पास तैरकर गया और उन्हें बचाया। उसने पाँच लोगों को बचाया, अंत में वह थक गया, और उसमें खुद बह गया।
उस व्यक्ति ने खुद को क्यों नहीं बचाया? उत्तर यह है कि वह वहाँ पर बचाने के लिए ही गया था। बल्कि और आश्चर्यचकित तरीके से यीशु ने इस दुनिया को बचाया है। और इस बात पर आप विचार करें कि उन्होंने क्रूस पर अपनी मृत्यु के द्वारा आपको और मुझे कैसे बचाया है।
आज, अपने विचारों को यीशु पर केन्द्रित करें, दुनिया के उद्धारकर्ता, और इस बात पर विचार करें कि उन्होंने आपको कैसे बचाया है।
भजन संहिता 21:1-7
संगीत निर्देशक को दाऊद का एक पद।
21हे यहोवा, तेरी महिमा राजा को प्रसन्न करती है, जब तू उसे बचाता है।
वह अति आनन्दित होता है।
2 तूने राजा को वे सब वस्तुएँ दी जो उसने चाहा,
राजा ने जो भी पाने की विनती की हे यहोवा, तूने मन वांछित उसे दे दिया।
3 हे यहोवा, सचमुच तूने बहुत आशीष राजा को दी।
उसके सिर पर तूने स्वर्ण मुकुट रख दिया।
4 उसने तुझ से जीवन की याचना की और तूने उसे यह दे दिया।
परमेश्वर, तूने सदा सर्वदा के लिये राजा को अमर जीवन दिया।
5 तूने रक्षा की तो राजा को महा वैभव मिला।
तूने उसे आदर और प्रशंसा दी।
6 हे परमेश्वर, सचमुच तूने राजा को सदा सर्वदा के लिये, आशिर्वाद दिये।
जब राजा को तेरा दर्शन मिलता है, तो वह अति प्रसन्न होता है।
7 राजा को सचमुच यहोवा पर भरोसा है,
सो परम परमेश्वर उसे निराश नहीं करेगा।
समीक्षा
परमेश्वर द्वारा उद्धार पाना
आप खुद अपने आप का उद्धार नहीं कर सकते। केवल परमेश्वर ही आपका उद्धार कर सकते हैं। अपने अटूट प्रेम के कारण उन्होंने आपको बचाया है। इसलिए आप दाऊद की तरह अपना भरोसा उन पर रखिये (पद - 7)।
यह भजन अपने उद्धार के लिए दाऊद द्वारा परमेश्वर की स्तुति से शुरु होता है: 'हे यहोवा तेरी सामर्थ से राजा आनन्दित होगा; और तेरे किए हुए उद्धार से वह अति मगन होगा। ' (पद - 1)।
इस पद्यांश में हम अनेक आशीषों को देखते हैं जो उद्धार में शामिल हैं:
1. प्रार्थना का उत्तर मिलना
'तू ने उसके मनोरथ को पूरा किया है, और उसके मुंह की विनती को तू ने अस्वीकार नहीं किया ' (पद - 2)।
2. हमेशा के लिए आशीष पाना
'तू उत्तम आशीषें देता हुआ उससे मिलता है…. तू ने उसको सर्वदा के लिये आशीषित किया है; ' (पद - 3,6अ)।
3. अनंत जीवन
'उसने तुझ से जीवन मांगा, और तू ने जीवन दान दिया; तू ने उसको युगानुयुग का जीवन दिया है ' (पद - 4)।
4. जयवंत जीवन पाना
'तेरे उद्धार के कारण उसकी महिमा अधिक है; तू उसको वैभव और ऐश्वर्य से आभूषित कर देता है ' (पद - 5)।
5. आनंद और खुशियाँ पाना
'तू अपने सम्मुख उसको हर्ष और आनन्द से भर देता है' (पद - 6ब)।
प्रार्थना
प्रभु आपका धन्यवाद, कि आपने मेरा उद्धार किया है। आपके अटूट प्रेम और अनेक अशीषों के लिए धन्यवाद। आज मैं अपना भरोसा आप पर रखता हूँ।
मत्ती 27:11-44
पिलातुस का यीशु से प्रश्न
11 इसी बीच यीशु राज्यपाल के सामने पेश हुआ। राज्यपाल ने उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का राजा है?”
यीशु ने कहा, “हाँ, मैं हूँ।”
12 दूसरी तरफ जब प्रमुख याजक और बुज़ुर्ग यहूदी नेता उस पर दोष लगा रहे थे तो उसने कोई उत्तर नहीं दिया।
13 तब पिलातुस ने उससे पूछा, “क्या तू नहीं सुन रहा है कि वे तुझ पर कितने आरोप लगा रहे हैं?”
14 किन्तु यीशु ने पिलातुस को किसी भी आरोप का कोई उत्तर नहीं दिया। पिलातुस को इस पर बहुत अचरज हुआ।
यीशु को छोड़ने में पिलातुस असफल
15 फसह पर्व के अवसर पर राज्यपाल का रिवाज़ था कि वह किसी भी एक कैदी को, जिसे भीड़ चाहती थी, उनके लिए छोड़ दिया करता था। 16 उसी समय बरअब्बा नाम का एक बदनाम कैदी वहाँ था।
17 सो जब भीड़ आ जुटी तो पिलातुस ने उनसे पूछा, “तुम क्या चाहते हो, मैं तुम्हारे लिये किसे छोड़ूँ, बरअब्बा को या उस यीशु को, जो मसीह कहलाता है?” 18 पिलातुस जानता था कि उन्होंने उसे डाह के कारण पकड़वाया है।
19 पिलातुस जब न्याय के आसन पर बैठा था तो उसकी पत्नी ने उसके पास एक संदेश भेजा, “उस सीधे सच्चे मनुष्य के साथ कुछ मत कर बैठना। मैंने उसके बारे में एक सपना देखा है जिससे आज सारे दिन मैं बेचैन रही।”
20 किन्तु प्रमुख याजकों और बुज़ुर्ग यहूदी नेताओं ने भीड़ को बहकाया, फुसलाया कि वह पिलातुस से बरअब्बा को छोड़ने की और यीशु को मरवा डालने की माँग करें।
21 उत्तर में राज्यपाल ने उनसे पूछा, “मुझ से दोनों कैदियों में से तुम अपने लिये किसे छुड़वाना चाहते हो?”
उन्होंने उत्तर दिया, “बरअब्बा को!”
22 तब पिलातुस ने उनसे पूछा, “तो मैं, जो मसीह कहलाता है उस यीशु का क्या करूँ?”
वे सब बोले, “उसे क्रूस पर चढ़ा दो।”
23 पिलातुस ने पूछा, “क्यों, उसने क्या अपराध किया है?”
किन्तु वे तो और अधिक चिल्लाये, “उसे क्रूस पर चढ़ा दो।”
24 पिलातुस ने देखा कि अब कोई लाभ नहीं। बल्कि दंगा भड़कने को है। सो उसने थोड़ा पानी लिया और भीड़ के सामने अपने हाथ धोये, वह बोला, “इस व्यक्ति के खून से मेरा कोई सरोकार नहीं है। यह तुम्हारा मामला है।”
25 उत्तर में सब लोगों ने कहा, “इसकी मौत की जवाबदेही हम और हमारे बच्चे स्वीकार करते हैं।”
26 तब पिलातुस ने उनके लिए बरअब्बा को छोड़ दिया और यीशु को कोड़े लगवा कर क्रूस पर चढ़ाने के लिए सौंप दिया।
यीशु का उपहास
27 फिर पिलातुस के सिपाही यीशु को राज्यपाल निवास के भीतर ले गये। वहाँ उसके चारों तरफ सिपाहियों की पूरी पलटन इकट्ठी हो गयी। 28 उन्होंने उसके कपड़े उतार दिये और चमकीले लाल रंग के वस्त्र पहना कर 29 काँटों से बना एक ताज उसके सिर पर रख दिया। उसके दाहिने हाथ में एक सरकंडा थमा दिया और उसके सामने अपने घुटनों पर झुक कर उसकी हँसी उड़ाते हुए बोले, “यहूदियों का राजा अमर रहे।” 30 फिर उन्होंने उसके मुँह पर थूका, छड़ी छीन ली और उसके सिर पर मारने लगे। 31 जब वे उसकी हँसी उड़ा चुके तो उसकी पोशाक उतार ली और उसे उसके अपने कपड़े पहना कर क्रूस पर चढ़ाने के लिये ले चले।
यीशु का क्रूस पर चढ़ाया जाना
32 जब वे बाहर जा ही रहे थे तो उन्हें कुरैन का रहने वाला शिमौन नाम का एक व्यक्ति मिला। उन्होंने उस पर दबाव डाला कि वह यीशु का क्रूस उठा कर चले। 33 फिर जब वे गुलगुता (जिसका अर्थ है “खोपड़ी का स्थान।”) नामक स्थान पर पहुँचे तो 34 उन्होंने यीशु को पित्त मिली दाखरस पीने को दी। किन्तु जब यीशु ने उसे चखा तो पीने से मना कर दिया।
35 सो उन्होंने उसे क्रूस पर चढ़ा दिया और उसके वस्त्र पासा फेंक कर आपस में बाँट लिये। 36 इसके बाद वे वहाँ बैठ कर उस पर पहरा देने लगे। 37 उन्होंने उसका अभियोग पत्र लिखकर उसके सिर पर टाँग दिया, “यह यहूदियों का राजा यीशु है।”
38 इसी समय उसके साथ दो डाकू भी क्रूस पर चढ़ाये जा रहे थे एक उसके दाहिने ओर और दूसरा बायीं ओर। 39 पास से जाते हुए लोग अपना सिर मटकाते हुए उसका अपमान कर रहे थे। 40 वे कह रहे थे, “अरे मन्दिर को गिरा कर तीन दिन में उसे फिर से बनाने वाले, अपने को तो बचा। यदि तू परमेश्वर का पुत्र है तो क्रूस से नीचे उतर आ।”
41 ऐसे ही महायाजक, धर्मशास्त्रियों और बुज़ुर्ग यहूदी नेताओं के साथ उसकी यह कहकर हँसी उड़ा रहे थे: 42 “दूसरों का उद्धार करने वाला यह अपना उद्धार नहीं कर सकता! यह इस्राएल का राजा है। यह क्रूस से अभी नीचे उतरे तो हम इसे मान लें। 43 यह परमेश्वर में विश्वास करता है। सो यदि परमेश्वर चाहे तो अब इसे बचा ले। आखिर यह तो कहता भी था, ‘मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ।’” 44 उन लुटेरों ने भी जो उसके साथ क्रूस पर चढ़ाये गये थे, उसकी ऐसे ही हँसी उड़ाई।
समीक्षा
खुद के बलिदान (त्याग) द्वारा बचाया जाना
पुराने नियम में परमेश्वर के लोग मसीहा की आशा कर रहे थे। यह मसीहा ' दाऊद की राजगद्दी पर इस समय से ले कर सर्वदा के लिये न्याय और धर्म के द्वारा स्थिर किए और संभाले रहेगा' (यशायाह 9:7)।
फिर भी पुराने नियम में मुक्तिदाता - संबंधी आशा की एक और धारा थी। यह यशायाह के 40-55 में ‘कष्ट उठाने वाले सेवक’ के रूप में देखा गया, जो दुनिया के पाप खुद पर ले लेगा और उनके अपराधों की खातिर अपनी जान दे देगा (पद - 5-6)।
किसी ने भी यह आशा नहीं की थी कि मुक्तिदाता - संबंधी राजा और कष्ट उठाने वाला सेवक एक ही व्यक्ति है। फिर भी, विस्मयकारी ढंग से यीशु मुक्तिदाता-संबंधी इन विषयों को एक साथ लाए। यीशु राजा और कष्ट उठाने वाले सेवक दोनों हैं।
1. मुक्तिदाता - संबंधी राजा
जब ‘हाकिम ने उस से पूछा; कि क्या तू यहूदियों का राजा है? (मत्ती 27:11अ) तब यीशु ने उस से कहा, तू आप ही कह रहा है। ’ (पद - 11ब)। सैनिकों ने उनका मज़ाक उड़ाया और उन्हें राजा के कपड़े पहनाकर और उन्हें राजा मानते हुए उन्हें सलाम किया और उनके सामने दंडवत किया। उन्होंने कहा, ‘हे यहूदियों के राजा नमस्कार!’ (पद - 29ब)।
' उसका दोषपत्र, उसके सिर के ऊपर लगाया, कि “यह यहूदियों का राजा यीशु है' (पद - 37)। धार्मिक गुरूओं ने भी यह कहकर उनका मज़ाक उड़ाया कि 'यह तो “इस्राएल का राजा है' (पद - 42)।
मत्ती ने स्पष्ट किया कि यीशु का केवल यही अपराध था कि वह ‘एक राजा’ (पद - 11), ‘मसीहा’ (पद - 22) और ‘परमेश्वर के पुत्र’ हैं (पद - 43)।
2. कष्ट उठाने वाला सेवक
यीशु ने ये भविष्यवाणियाँ भी पूरी कीं। ‘जिस प्रकार भेड़ वध होने के समय और भेड़ी ऊन कतरने के समय चुपचाप शान्त रहती है, वैसे ही उसने भी अपना मुंह न खोला’ (यशायाह 53:7)।
जब अधिकारियों और पुरनियों द्वारा उन पर दोष लगाया गया, तो ‘उन्होंने कुछ उत्तर नहीं दिया’ (मत्ती 27:12)। जब पिलातुस ने उनसे पूछा, ‘क्या तू नहीं सुनता, कि ये तेरे विरोध में कितनी गवाहियां दे रहे हैं?’ (पद - 13), तो यीशु ने ‘उस को एक बात का भी उत्तर नहीं दिया’ – ‘यहां तक कि हाकिम को बड़ा आश्चर्य हुआ’ (पद - 14)।
यीशु, सताए जाने वाले निर्दोष दास, आपके बदले मरे – ताकि आपको मुक्ति मिल सके। इस संदर्भ में बरअब्बा हमारा प्रतिनिधित्व करते हैं - अपराधी। वह एक नामी अपराधी था (पद - 16)। यह एक प्रश्न है ‘बरअब्बा या यीशु’ (पद - 17)। लोगों ने बरअब्बा को मांगा और यीशु को मार डाला (पद - 20)। बरअब्बा आज़ाद हो गया (पद - 26)। सताए जाने वाले दास के बारे में यशायाह की भविष्यवाणी पूरी हुई: ‘वह हमारे ही अपराधो के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के हेतु कुचला गया’ (यशायाह 53:5)।
हालाँकि यीशु चिरप्रतिक्षित राजा हैं, परंतु वह उस तरह के राजा नहीं थे जैसा कि लोगों ने आशा की थी – उदाहरण के लिए जो जय से दूसरी जय पाता रहेगा। बजाय इसके, यीशु को धार्मिक लोगों और धर्मनिरपेक्ष दुनिया बल्कि लुटेरों की ईर्ष्या, गलत आरोप, अन्याय, अपमान, अनौचित्य, गलतफहमी, कमज़ोर अधिकार, ठठ्ठा और मज़ाक से निपटना पड़ा। यह हर तरफ से हुआ था।
पिलातुस जानता था कि यीशु निर्दोष हैं, क्योंकि वह जानता था कि उन्होंने उसे डाह से पकड़वाया है (मत्ती 27:18)। (डाह हमेशा से धर्म का पाप रहा है। उस व्यक्ति के प्रति ईर्ष्या रखने की इच्छा ज़्यादा होती है जिसे परमेश्वर हम से ज़्यादा उपयोग करते हैं।) पिलातुस जानता था कि अन्य कारणों से भी यीशु निर्दोष हैं। उसकी पत्नी को स्वप्न में चेतावनी मिली थी और इस बात की पुष्टि की गई थी कि यीशु एक ‘निर्दोष व्यक्ति’ हैं (पद - 19)। मूर्खता से पिलातुस ने उसकी राय को अनदेखा किया था।
पिलातुस ने सोचा कि वह किसी और को दोषी ठहराकर अपनी ज़िम्मेदारी को टाल सकता है। प्रतिकूल तरीके से, जिस व्यक्ति को पूरे इतिहास में यीशु की मृत्यु के लिए ज़िम्मेदार के रूप में याद किया जाएगा (‘पिलातुस के कारण क्रूस पर चढ़ाया गया’ – पूरी दुनिया में सैकड़ों वर्षों तक यही दोहराया जाएगा) उसने कहा, ‘ मैं इस धर्मी के लोहू से निर्दोष हूँ; तुम ही जानो’ (पद - 24)।
यीशु का लहू बहाया गया क्योंकि यीशु को कोड़े लगवाकर दूसरों को सौंप दिया गया, कि क्रूस पर चढ़ाया जाए (पद - 24-26ब)। एक बार फिर, मत्ती इस स्थिति की विडंबना को लिखता है: वहाँ आस - पास के लोग कहने लगे ' यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो क्रूस पर से उतर आ ' (पद - 40ब), लेकिन यीशु परमेश्वर के मेम्ने की तरह मरे जिन्होंने दुनिया के पाप अपने ऊपर ले लिए। देखने वाले यह समझ नहीं पाए कि यीशु का आत्म-बलिदान स्वेच्छा से हुआ है। उन्होंने कहा, ‘उसने दूसरों को बचाया…… लेकिन खुद को नहीं बचा पाए!’ (पद - 42अ)।
उन्होंने आपको और मुझे बचाया क्योंकि उन्होंने खुद को बचाने की इच्छा नहीं की थी।
प्रार्थना
प्रभु, आपका धन्यवाद कि आप मेरे लिए इन सब से गुज़रे। आपका धन्यवाद कि आपने मुझे चुना, ताकि मैं उद्धार पाऊँ।
निर्गमन 11:1-12:51
पहलौठों की मृत्यु
11तब यहोवा ने मूसा से कहा, “फिरौन और मिस्र के विरुद्ध मैं एक और विपत्ति लाऊँगा। इसके बाद वह तुम लोगों को मिस्र से भेज देगा। वस्तुतः वह तुम लोगों को यह देश छोड़ने को विवश करेगा। 2 तुम इस्राएल के लोगों को यह सन्देश अवश्य देना: ‘तुम सभी स्त्री और पुरुष अपने पड़ोसियों से चाँदी और सोने की बनी चीजें माँगना। 3 यहोवा मिस्रियों को तुम लोगों पर कृपालु बनाएगा। मिस्री लोग, यहाँ तक कि फ़िरौन के अधिकारी भी पहले से मूसा को महान पुरुष समझते हैं।’”
4 मूसा ने लोगों से कहा, “यहोवा कहता है, ‘आज आधी रात के समय, मैं मिस्र से होकर गुजरुँगा, 5 और मिस्र का हर एक पहलौठा पुत्र मिस्र के शासक फ़िरौन के पहलौठे पुत्र से लेकर चक्की चलाने वाली दासी तक का पहलौठा पुत्र मर जाएगा। पहलौठे नर जानवर भी मरेंगे। 6 मिस्र की समूची धरती पर रोना—पीटना मचेगा। यह रोना—पीटना किसी भी गुजरे समय के रोने—पीटने से अधिक बुरा होगा और यह भविष्य के किसी भी रोने—पीटने के समय से अधिक बुरा होगा। 7 किन्तु इस्राएल के किसी व्यक्ति को कोई चोट नहीं पहुँचेगी। यहाँ तक कि उन पर कोई कुत्ता तक नहीं भौंकेगा। इस्राएल के लोगों के किसी व्यक्ति या किसी जानवर को कोई चोट नहीं पहुँचेगी। इस प्रकार तुम लोग जानोगे कि मैंने मिस्रियों के साथ इस्राएल वालों से भिन्न व्यवहार किया है। 8 तब ये सभी तुम लोगों के दास मिस्री झुक कर मुझे प्रणाम करेंगे और मेरी उपासना करेंगे। वे कहेंगे, “जाओ, और अपने सभी लोगों को अपने साथ ले जाओ।” तब मैं फ़िरौन को क्रोध में छोड़ दूँगा।’”
9 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “फ़िरौन ने तुम्हारी बात नहीं सुनी। क्यों? इसलिए कि मैं अपनी महान शक्ति मिस्र में दिखा सकूँ।” 10 यही कारण था कि मूसा और हारून ने फ़िरौन के सामने ये बड़े—बड़े चमत्कार दिखाए। और यही कारण है कि यहोवा ने फ़िरौन को इतना हठी बनाया कि उसने इस्राएल के लोगों को अपना देश छोड़ने नहीं दिया।
फसह पर्व के निर्देश
12मूसा और हारून जब मिस्र में ही थे, यहोवा ने उनसे कहा, 2 “यह महीना तुम लोगों के लिए वर्ष का पहला महीना होगा। 3 इस्राएल की पूरी जाति के लिए यह आदेश है: इस महीने के दसवें दिन हर एक व्यक्ति अपने परिवार के लोगों के लिए एक मेमना अवश्य प्राप्त करेगा। 4 यदि पूरा मेमना खा सकने वाले पर्याप्त आदमी अपने परिवारों में न हों तो उस भोजन में सम्मिलित होने के लिए अपने कुछ पड़ोसियों को निमन्त्रित करना चाहिए। खाने के लिए हर एक को पर्याप्त मेमना होना चाहिए। 5 एक वर्ष का यह नर मेमना दोषरहित होना चाहिए। यह जानवर या तो एक भेड़ का बच्चा हो सकता है या बकरे का बच्चा। 6 तुम्हें इस जानवर को महीने के चौदहवें दिन तक सावधानी के साथ रखना चाहिए। उस दिन इस्राएल जाति के सभी लोग सन्ध्या काल में इन जानवरों को मारेंगे। 7 इन जानवरों का खून तुम्हें इकट्ठा करना चाहिए। कुछ खून उन घरों के दरवाजों की चौखटों के ऊपरी सिरे तथा दोनों पटों पर लगाना चाहिए जिन घरों में लोग यह भोजन करें।
8 “इस रात को तुम मेमने को अवश्य भून लेना और उसका माँस खा जाना। तुम्हें कड़वी जड़ी—बूटियों और अखमीरी रोटियाँ भी खानी चाहिए। 9 तुम्हें मेमने को पानी में उवालना नहीं चाहिए। तुम्हें पूरे मेमने को आग पर भूनना चाहिए। इस दशा में भी मेमने का सिर, उसके पैर तथा उसका भीतरी भाग ठीक बना रहना चाहिए। 10 उसी रात को तुम्हें सारा माँस अवश्य खा लेना चाहिए। यदि थोड़ा माँस सबेरे तक बच जाये तो उसे आग में अवश्य ही जला देना चाहिए।
11 “जब तुम भोजन करो तो ऐसे वस्त्रों को पहनो जैसे तुम लोग यात्रा पर जा रहे हो तुम लोगों के लबादे तुम्हारी पेटियों में कसे होने चाहिए। तुम लोग अपने जूते पहने रहना और अपनी यात्रा की छड़ी को अपने हाथों में रखना। तुम लोगों को शीघ्रता से भोजन कर लेना चाहिए। क्यों? क्योंकि यह यहोवा का फसह है वह समय जब यहोवा ने अपने लोगों की रक्षा की और उन्हें शीघ्रता से मिस्र के बाहर ले गया।
12 “आज रात मैं मिस्र से होकर गुजरूँगा और मिस्र में प्रत्येक पहलौठे पुत्र को मार डालूँगा। मैं सभी पहलौठे जानवरों और मनुष्यों को मार डालूँगा। मैं मिस्र के सभी देवताओं को दण्ड दूँगा और दिखा दूँगा कि मैं यहोवा हूँ। 13 किन्तु तुम लोगों के घरों पर लगा हुआ खून एक विशेष चिन्ह होगा। जब मैं खून देखूँगा, तो तुम लोगों के घरों को छोड़ता हुआ गुजर जाऊँगा। मैं मिस्र के लोगों के लिए हानिकारक चीज़ें उत्पन्न करूँगा। किन्तु उन बुरी बीमारियों में से कोई भी तुम लोगों को हानि नहीं पहुँचाएगी।
14 “सो तुम लोग आज की इस रात को सदा याद रखोगे, तुम लोगों के लिए यह एक विशेष पवित्र पर्व होगा। तुम्हारे वंशज सदा इस पवित्र पर्व को यहोवा की भक्ति किया करेंगे। 15 इस पवित्र पर्व पर तुम लोग अख़मीरी आटे की रोटियाँ सात दिनों तक खाओगे। इस पवित्र पर्व के आने पर तुम लोग पहले दिन अपने घरों से सारे ख़मीर को निकाल बाहर करोगे। इस पवित्र पर्व के पूरे सात दिन तक किसी को भी ख़मीर नहीं खाना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति ख़मीर खाए तो उसे तुम इस्राएल के अन्य व्यक्तियों से निश्चय ही अलग कर देना। 16 इस पवित्र पर्व के प्रथम और अन्तिम दिनों में धर्म सभा होगी। इन दिनों तुम्हें कोई भी काम नहीं करना होगा। इन दिनों केवल एक काम जो किया जा सकता, वह है अपना भोजन तैयार करना। 17 तुम लोगों को अवश्य अख़मीरी रोटी का पवित्र पर्व याद रखना होगा। क्यों? क्योंकि इस दिन ही मैंने तुम्हारे लोगों के सभी वर्गो को मिस्र से निकाला। अतः तुम लोगों के सभी वंशजों को यह दिन याद रखना ही होगा। यह नियम ऐसा है जो सदा रहेगा। 18 इसलिए प्रथम महीने निसन के चौदहवें दिन की सन्ध्या से तुम लोग अख़मीरी रोटी खाना आरम्भ करोगे। उसी महीने के इक्कीसवें दिन की सन्ध्या तक तुम ऐसी रोटी खाओगे। 19 सात दिन तक तुम लोगों के घरों में कोई ख़मीर नहीं होना चाहिए। कोई भी व्यक्ति चाहे वह इस्राएल का नागरिक हो या विदेशी, जो इस समय ख़मीर खाएगा अन्य इस्राएलियों से अवश्य अलग कर दिया जाएगा। 20 इस पवित्र पर्व में तुम लोगों को ख़मीर नहीं खाना चाहिए। तुम जहाँ भी रहो अख़मीरी रोटी ही खाना।”
21 इसलिए मूसा ने सभी बुजुर्गों (नेताओं) को एक स्थान पर बुलाया। मूसा ने उनसे कहा, “अपने परिवारों के लिए मेमने प्राप्त करो। फसह पर्व के लिए मेमने को मारो। 22 जूफा के गुच्छों को लो और खून से भरे प्यालों में उन्हें डुबाओ। खून से चौखटों के दोनों पटों और सिरों को रंग दो। कोई भी व्यक्ति सवेरा होने से पहले अपना घर न छोड़े। 23 उस समय जब यहोवा पहलौठी सन्तानों को मारने के लिए मिस्र से होकर जाएगा तो वह चौखट के दोनों पटों और सिरों पर खून देखेगा, तब यहोवा उस घर की रक्षा करेगा। यहोवा नाश करने वाले को तुम्हारे घरों के भीतर आने और तुम लोगों को चोट नहीं पहुँचाने देगा। 24 तुम लोग इस आदेश को अवश्य याद रखना। यह नियम तुम लोगों तथा तुम लोगों के वंशजों के निमित्त सदा के लिए है। 25 तुम लोगों को यह कार्य तब भी याद रखना होगा जब तुम लोग उस देश में पहुँचोगे जो यहोवा तुम लोगों को देगा। 26 जब तुम लोगों के बच्चे तुम से पूछेंगे, ‘हम लोग यह त्योहार क्यों मनाते हैं?’ 27 तो तुम लोग कहोगे, ‘यह फसह पर्व यहोवा की भक्ति के लिए है। क्यों? क्योंकि जब हम लोग मिस्र में थे तब यहोवा इस्राएल के घरों से होकर गुजरा था। यहोवा ने मिस्रियों को मार डाला, किन्तु उसने हम लोगों के घरों में लोगों को बचाया।’”
इसलिए लोग अब यहोवा को झुककर प्रणाम करते हैं तथा उपासना करते हैं। 28 यहोवा ने यह आदेश मूसा और हारून को दिया था। इसलिए इस्राएल के लोगों ने वही किया जो यहोवा का आदेश था।
29 आधी रात को यहोवा ने मिस्र के सभी पहलौठे पुत्रों, फ़िरौन के पहलौठे पुत्र (जो मिस्र का शासक था) से लेकर बन्दीगृह में बैठे कैदी के पुत्र तक सभी को मार डाला। पहलौठे जानवर भी मर गए। 30 मिस्र में उस रात को हर घर में कोई न कोई मरा। फ़िरौन, उसके अधिकारी और मिस्र के सभी लोग ज़ोर से रोने चिल्लाने लगे।
इस्राएलियों द्वारा मिस्र को छोड़ना
31 इसलिए उस रात फ़िरौन ने मूसा और हारून को बुलाया। फ़िरौन ने उनसे कहा, “तैयार हो जाओ और हमारे लोगों को छोड़ कर चले जाओ। तुम और तुम्हारे लोग वैसा ही कर सकते हैं जैसा तुमने कहा है। जाओ और अपने यहोवा की उपासना करो। 32 और तुम लोग जैसा तुमने कहा है कि तुम चाहते हो, अपनी भेड़ें और मवेशी अपने साथ ले जा सकते हो, जाओ! और मुझे भी आशीष दो!” 33 मिस्र के लोगों ने भी उनसे शीघ्रता से जाने के लिए कहा। क्यों? क्योंकि उन्होंने कहा, “यदि तुम लोग नहीं जाते हो हम सभी मर जाएंगे।”
34 इस्राएल के लोगों के पास इतना समय न रहा कि वे अपनी रोटी में खमीर डालें। उन्होंने गुँदे आटे की परातों को अपने कपड़ों में लपेटा और अपने कंधों पर रख कर ले गए। 35 तब इस्राएल के लोगों ने वही किया जो मूसा ने करने को कहा। वे अपने मिस्री पड़ोसियों के पास गए और उनसे वस्त्र तथा चाँदी और सोने की बनी चीज़ें माँगी। 36 यहोवा ने मिस्रियों को इस्राएल के लोगों के प्रति दयालु बना दिया। इसलिए उन्होंने अपना धन इस्राएल के लोगों को दे दिया।
37 इस्राएल के लोग रमसिज से सुक्काम गए। वे लगभग छ: लाख पुरुष थे। इसमें बच्चे सम्मिलित नहीं हैं। 38 उनके साथ अनेक भेड़ें, गाय—बकरियाँ और अन्य पशुधन था। उनके साथ ऐसे अन्य लोग भी यात्रा कर रहे थे। जो इस्राएली नहीं थे, किन्तु वे इस्राएल के लोगों के साथ गए। 39 किन्तु लोगों को रोटी में खमीर डालने का समय न मिला। और उन्होंने अपनी यात्रा के लिए कोई विशेष भोजन नहीं बनाया। इसलिए उन्हें बिना खमीर के ही रोटियाँ बनानी पड़ीं।
40 इस्राएल के लोग मिस्र में चार सौ तीस वर्ष तक रहे। 41 चार सौ तीस वर्ष बाद, ठीक उसी दिन, यहोवा की सारी सेना ने मिस्र से प्रस्थान किया। 42 वह विशेष रात है जब लोग याद करते हैं कि यहोवा ने क्या किया। इस्राएल के सभी लोग उस रात को सदा याद रखेंगे।
43 यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, “फसह पर्व के नियम ये हैं: कोई विदेशी फसह पर्व में से नहीं खाएगा। 44 किन्तु यदि कोई व्यक्ति दास को खरीदेगा और यदि उसका खतना करेगा तो वह दास उस में से खा सकेगा। 45 किन्तु यदि कोई व्यक्ति केवल तुम लोगों के देश में रहता है या किसी व्यक्ति को तुम्हारे लिए मजदूरी पर रखा गया है तो उस व्यक्ति को उस में से नहीं खाना चाहिए। वह केवल इस्राएल के लोगों के लिए है।
46 “प्रत्येक परिवार को घर के भीतर ही भोजन करना चाहिए। कोई भी भोजन घर के बाहर नहीं ले जाना चाहिए। मेमने की किसी हड्डी को न तोड़ें। 47 पूरी इस्राएली जाति इस उत्सव को अवश्य मनाए। 48 यदि कोई ऐसा व्यक्ति तुम लोगों के साथ रहता है जो इस्राएल की जाति का सदस्य नहीं है किन्तु वह फसह पर्व में सम्मिलित होना चाहता है तो उसका खतना अवश्य होना चाहिए। तब वह इस्राएल के नागरिक के समान होगा, और वह भोजन में भाग ले सकेगा। किन्तु यदि उस व्यक्ति का खतना नहीं हुआ हो तो वह इस फसह पर्व के भोजन को नहीं खा सकता। 49 ये ही नियम हर एक पर लागू होंगे। नियमों के लागू होने में इस बात को कोई महत्व नहीं होगा कि वह व्यक्ति तुम्हारे देश का नागरिक है या विदेशी है।”
50 इसलिए इस्राएल के सभी लोगों ने उन आदेशों का पालन किया जिन्हें यहोवा ने मूसा और हारून को दिया था। 51 इस प्रकार यहोवा उसी दिन इस्राएल के सभी लोगों को मिस्र से बाहर ले गया। लोगों ने समूहों में प्रस्थान किया।
समीक्षा
परमेश्वर के मेम्ने द्वारा बचाया जाना
यीशु अपने शिष्यों से कहते हैं, ‘तुम जानते हो, कि दो दिन के बाद फसह का पर्व होगा; और मनुष्य का पुत्र क्रूस पर चढ़ाए जाने के लिये पकड़वाया जाएगा’ (मत्ती 26:2)। संत पौलुस लिखते हैं, ‘क्योंकि हमारा भी फसह जो मसीह है, बलिदान हुआ है’ (1कुरिंथियों 5:7ब)।
पुराने नियम में पहले फसह के पर्व पर मेम्ने के लहू ने परमेश्वर के लोगों की रक्षा की (निर्गमन 12:1-30)। नये नियम में अब आप उनसे बेहतर हैं। यीशु (परमेश्वर के मेम्ने) का लहू आपको हमेशा के लिए पवित्र करता है और आपकी रक्षा करता है (इब्रानियों 9:12-26)।
पहले फसह पर एक मेम्ने को बलि किया जाना था। वह मेम्ना ‘निर्दोष’ होना ज़रूरी है (निर्गमन 12:5), जो कि भविष्य में यीशु के निर्दोष होने को दर्शाता है। मेम्ने के लहू पर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिया गया है (पद - 7, 13, 22-23)। निर्दोष मेम्ने का लहू एक बलि के रूप में बहाया जाना था (पद - 27)। जब यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने यीशु को देखा, तो उसने कहा, ‘देखो, यह परमेश्वर का मेम्ना है, जो जगत के पाप उठा ले जाता है!’ (युहन्ना 1:29)।
मेम्ने का लहू लोगों को परमेश्वर के न्याय से सुरक्षित रखा। यह ‘फसह की बलि’ थी (निर्गमन 12:27), जो कि यीशु के बलिदान का पूर्वाभास था।
यह ध्यान में रखना एक दिलचस्प बात है कि परमेश्वर का निर्देश, ‘बलिपशु की कोई हड्डी न तोड़ना’ (पद - 46) यह विशेष रूप से यीशु की मृत्यु पर पूरी हुई। किसी व्यक्ति के पैर तोड़ने से क्रूस पर चढ़ाए गए व्यक्ति की मृत्यु जल्दी हो जाती है। उन्होंने यीशु के साथ क्रूस पर चढ़ाए गए दो व्यक्तियों के पैर तोड़ दिये थे, ‘परन्तु जब यीशु के पास आकर देखा कि वह मर चुका है, तो उस की टांगें न तोड़ीं’ (युहन्ना 19:33)।
जिस घर की चौखट पर लहू लगा था, यह इस बात को दर्शाता है कि इस परिवार में पहले ही मृत्यु हो चुकी है। जिन्होंने अपने घर के चौखट पर लहू लगाकर परमेश्वर के निर्दश का पालन किया था। यीशु, परमेश्वर के मेम्ने का लहू आपके लिए और मेरे लिए बहाया गया है। फसह इस बात को दर्शाता है कि हमारे बदले यीशु को किस तरह से बलि किया गया है। उन्होंने आपको बचाया है।
मुझे जॉयस मेयर की प्रार्थना अच्छी लगी:
प्रार्थना
पिता, मैं यीशु के नाम में आपके पास आता हूँ और मैं अपने जीवन पर, और मुझ से संबंधित सभी चीज़ों पर जो आपने मुझे सेवा करने के लिए दी हैं, यीशु का लहू लगाता हूँ। मैं अपने मन, अपने शरीर, अपनी भावनाओं और अपनी इच्छाओं पर यीशु का लहू लगाता हूँ। अपने लहू से मेरी सुरक्षा करने के लिए धन्यवाद।
पिप्पा भी कहते है
मत्ती 27:19
पिलातुस की गलती यह थी कि उसने अपनी पत्नी की नहीं सुनी!
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संदर्भ
नोट्स
जॉयस मेयर, एवरीडे लाइफ बाइबल, (फेथवर्ड्स, 2013) पन्ना 105
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