दान देना आपके हृदय को शुद्ध करता है
परिचय
मदर टेरेसा ने एक बार हैलो! मैग्जिन को एक इंटरव्यूह दिया। उनसे प्रश्न पूछा गया कि, 'क्या केवल अमीर लोग देते हैं?'
उन्होंने जवाब दिया, 'नहीं, गरीब से गरीब भी देते हैं। एक दिन एक गरीब भिखारी मेरे पास आया और कहा, 'हर कोई आपको भेंट देते हैं और मैं भी आपको बीस पैसा देना चाहता हूँ' – जो कि दो पेंस के बराबर है। मैंने अपने आपमें सोचा कि मैं क्या करुं? यदि मैं इसे ले लेता हूँ तो उसके पास खाने के लिए कुछ नहीं रहेगा, लेकिन यदि मैं इसे नहीं लूँगा तो उसे बहुत बुरा लगेगा। इसलिए, मैंने ले लिया और वह बहुत खुश था क्योंकि उसने कलकत्ता की मदर टेरेसा को गरीबों को मदद करने के लिए दान दिया ज्ञा। दान देना हृदय को शुद्ध करता है और परमेश्वर के नजदीक जाने में आपकी सहायता करता है। बदले में आपको बहुत कुछ वापस मिलता है।
उदारता केवल एक अच्छा चरित्र नहीं है जो कि लोगों के पास है। यह हमारे विश्वास के विषय में है। सी.एस. लेविस ने मसीहत को 'देने के एक प्रकार' के रूप में परिभाषित किया। परमेश्वर ने यीशु में आपको अपनी उदारता दी है (यूहन्ना 3:16), और आप दूसरों के प्रति विश्वास और उदारता में उत्तर देने के लिए बुलाए गए हैं। आज का हर लेखांश आशीषों और श्रापों के विषय में है। आशीष की पूँजी है उदारता - 'सत्यनिष्ठ उदारतापूर्वक देते हैं' (भजनसंहिता 37:21)।
भजन संहिता 37:21-31
21 दुष्ट तो तुरंत ही धन उधार माँग लेता है, और उसको फिर कभी नहीं चुकाता।
किन्तु एक सज्जन औरों को प्रसन्नता से देता रहता है।
22 यदि कोई सज्जन किसी को आशीर्वाद दे, तो वे मनुष्य उस धरती को जिसे परमेश्वर ने देने का वचन दिया है, पाएंगे।
किन्तु यदि वह शाप दे मनुष्यों को, तो वे मनुष्य नाश हो जाएंगे।
23 यहोवा, सैनिक की सावधानी से चलने में सहायता करता है।
और वह उसको पतन से बचाता है।
24 सैनिक यदि दौड़ कर शत्रु पर प्रहार करें,
तो उसके हाथ को यहोवा सहारा देता है, और उसको गिरने से बचाता है।
25 मैं युवक हुआ करता था पर अब मैं बूढा हूँ।
मैंने कभी यहोवा को सज्जनों को असहाय छोड़ते नहीं देखा।
मैंने कभी सज्जनों की संतानों को भीख माँगते नहीं देखा।
26 सज्जन सदा मुक्त भाव से दान देता है।
सज्जनों के बालक वरदान हुआ करते हैं।
27 यदि तू कुकर्मो से अपना मुख मोड़े, और यदि तू अच्छे कामों को करता रहे,
तो फिर तू सदा सर्वदा जीवित रहेगा।
28 यहोवा खरेपन से प्रेम करता है,
वह अपने निज भक्त को असहाय नहीं छोड़ता।
यहोवा अपने निज भक्तों की सदा रक्षा करता है,
और वह दुष्ट जन को नष्ट कर देता है।
29 सज्जन उस धरती को पायेंगे जिसे देने का परमेश्वर ने वचन दिया है,
वे उस में सदा सर्वदा निवास करेंगे।
30 भला मनुष्य तो खरी सलाह देता है।
उसका न्याय सबके लिये निष्पक्ष होता है।
31 सज्जन के हृदय (मन) में यहोवा के उपदेश बसे हैं।
वह सीधे मार्ग पर चलना नहीं छोड़ता।
समीक्षा
हमेशा उदार बनें
कुछ लोग जीवन में 'देने वाले' हैं और कुछ 'लेने वाले'। दाऊद के अनुसार, यही 'सत्यनिष्ठ' और 'दुष्ट' के बीच का मुख्य अंतर है। 'दुष्ट लेता है और कभी वापस नहीं लौटाता; सत्यनिष्ठ देता है और देता है। अंत में उदार को बहुत कुछ मिलता है।
उदारता कभी कभी किया जाने वाला एक कार्य नहीं है; यह जीने का एक तरीका है। उदार व्यक्ति 'हमेशा उदार होते हैं और मुक्त रूप से देते हैं' (व.26)। परमेश्वर को वे लोग पसंद हैं जो इस तरह से जीते हैं (व.23)। शायद आपके सामने परेशानी आए और आप डगमगा जाएं लेकिन आप गिरेंगे नहीं (व.24)। परमेश्वर का वादा है कि वह आपको और आपके बच्चों को आशीष देंगे (वव.25-26)।
आज के विश्व में हम बहुत से ऐसे बच्चों से मिलते हैं 'जो रोटी की भीख मॉंगते हैं' (व.25)। इस भजन का सबसे बड़ा चित्र है एक दर्शन, कि परमेश्वर के सभी लोग आपसी उदारता दिखाए : देना और ग्रहण करना। जो लोग उदारतापूर्वक गरीबों को देते हुए परमेश्वर के पीछे हो लिए, उनकी खुद की जरुरतें भी पूरी हो गई थी, जब वस्तुएँ बदतर हो चुकी थी। चाहे आर्थिक रूप से, या किसी और क्षेत्र में, बाकी का समुदाय उनकी जरुरत में उनकी सहायता करेगा।
आज हम जानते हैं कि स्थानीय रूप से और इसके परे बहुत जरुरत है। परमेश्वर चाहते हैं कि उसके सभी बच्चे ' उदारतापूर्वक (देने) के द्वारा एक दूसरे को सँभाले।
प्रार्थना
परमेश्वर, आपका धन्यवाद उन अद्भुत वाचाओं के लिए जो उदारतापूर्वक देने वालों के लिए हैं। मेरी सहायता कीजिए कि मैं कभी भी अपने देने के स्तर से संतुष्ट न हो जाऊ बल्कि हमेशा और अधिक उदार बनने के लिए खोजता रहूँ।
लूका 6:12-36
बारह प्रेरितों का चुना जाना
12 उन्हीं दिनों ऐसा हुआ कि यीशु प्रार्थना करने के लिये एक पहाड़ पर गया और सारी रात परमेश्वर की प्रार्थना करते हुए बिता दी। 13 फिर जब भोर हुई तो उसने अपने अनुयायियों को पास बुलाया। उनमें से उसने बारह को चुना जिन्हें उसने “प्रेरित” नाम दिया: 14 शमौन (जिसे उसने पतरस भी कहा) और उसका भाई अन्द्रियास, याकूब और यूहन्ना, फिलिप्पुस, बरतुलमै, 15 मत्ती, थोमा, हलफ़ई का बेटा याकूब, और शमौन जिलौती; 16 याकूब का बेटा यहूदा, और यहूदा इस्करियोती (जो विश्वासघाती बना।)
यीशु का लोगों को उपदेश देना और चंगा करना
17 फिर यीशु उनके साथ पहाड़ी से नीचे उतर कर समतल स्थान पर आ खड़ा हुआ। वहीं उसके शिष्यों की भी एक बड़ी भीड़ थी। साथ ही समूचे यहूदिया, यरूशलेम, सूर और सैदा के सागर तट से अनगिनत लोग वहाँ आ इकट्ठे हुए। 18 वे उसे सुनने और रोगों से छुटकारा पाने वहाँ आये थे। जो दुष्टात्माओं से पीड़ित थे, वे भी वहाँ आकर अच्छे हुए। 19 समूची भीड़ उसे छू भर लेने के प्रयत्न में थी क्योंकि उसमें से शक्ति निकल रही थी और उन सब को निरोग बना रही थी!
20 फिर अपने शिष्यों को देखते हुए वह बोला:
“धन्य हो तुम जो दीन हो,
स्वर्ग का राज्य तुम्हारा है,
21 धन्य हो तुम, जो अभी भूखे रहे हो,
क्योंकि तुम तृप्त होगे।
धन्य हो तुम जो आज आँसू बहा रहे हो,
क्योंकि तुम आगे हँसोगे।
22 “धन्य हो तुम, जब मनुष्य के पुत्र के कारण लोग तुमसे घृणा करें, और तुमको बहिष्कृत करें, और तुम्हारी निन्दा करें, तुम्हारा नाम बुरा समझकर काट दें। 23 उस दिन तुम आनन्दित होकर उछलना-कूदना, क्योंकि स्वर्ग में तुम्हारे लिए बड़ा प्रतिफल है, उनके पूर्वजों ने भी भविष्यवक्ताओं के साथ ऐसा ही किया था।
24 “तुमको धिक्कार है, ओ धनिक जन,
क्योंकि तुमको पूरा सुख चैन मिल रहा है।
25 तुम्हें धिक्कार है, जो अब भरपेट हो
क्योंकि तुम भूखे रहोगे।
तुम्हें धिक्कार है, जो अब हँस रहे हो,
क्योंकि तुम शोकित होओगे और रोओगे।
26 “तुम्हे धिक्कार है, जब तुम्हारी प्रशंसा हो क्योंकि उनके पूर्वजों ने भी झूठे नबियों के साथ ऐसा व्यवहार किया।
अपने बैरी से भी प्रेम करो
27 “ओ सुनने वालो! मैं तुमसे कहता हूँ अपने शत्रु से भी प्रेम करो। जो तुमसे घृणा करते हैं, उनके साथ भी भलाई करो। 28 उन्हें भी आशीर्वाद दो, जो तुम्हें शाप देते हैं। उनके लिए भी प्रार्थना करो जो तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते। 29 यदि कोई तुम्हारे गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल भी उसके आगे कर दो। यदि कोई तुम्हारा कोट ले ले तो उसे अपना कुर्ता भी ले लेने दो। 30 जो कोई तुमसे माँगे, उसे दो। यदि कोई तुम्हारा कुछ रख ले तो उससे वापस मत माँगो। 31 तुम अपने लिये जैसा व्यवहार दूसरों से चाहते हो, तुम्हें दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिये।
32 “यदि तुम बस उन्हीं को प्यार करते हो, जो तुम्हें प्यार करते हैं, तो इसमें तुम्हारी क्या बड़ाई? क्योंकि अपने से प्रेम करने वालों से तो पापी तक भी प्रेम करते हैं। 33 यदि तुम बस उन्हीं का भला करो, जो तुम्हारा भला करते हैं, तो तुम्हारी क्या बड़ाई? ऐसा तो पापी तक करते हैं। 34 यदि तुम केवल उन्हीं को उधार देते हो, जिनसे तुम्हें वापस मिल जाने की आशा है, तो तुम्हारी क्या बड़ाई? ऐसे तो पापी भी पापियों को देते हैं कि उन्हें उनकी पूरी रकम वापस मिल जाये।
35 “बल्कि अपने शत्रु को भी प्यार करो, उनके साथ भलाई करो। कुछ भी लौट आने की आशा छोड़ कर उधार दो। इस प्रकार तुम्हारा प्रतिफल महान होगा और तुम परम परमेश्वर की संतान बनोगे क्योंकि परमेश्वर अकृतज्ञों और दुष्ट लोगों पर भी दया करता है। 36 जैसे तुम्हारा परम पिता दयालु है, वैसे ही तुम भी दयालु बनो।
समीक्षा
सभी के प्रति उदार बनें
यीशु ने रातभर परमेश्वर से प्रार्थना की। वह अंतर्ज्ञान से भरे हुए थे जैसे ही उन्होंने अपने चेलो को चुना। वह बीमारों को चंगा करने वाली सामर्थ से भी भर गए थेः 'और लोग उन्हें छूने की कोशिश कर रहे थे, क्योंकि सामर्थ उनमें से निकल रही थी और उन सभी को चंगा कर रही थी' (व.19)।
यीशु उन दो लोगों के बीच अंतर को समझाते हैं जो स्वयं के लिए इकट्ठा करते हैं (लेनेवाले) और वे लोग जिनके पास आत्मा की उदारता है (देनेवाले)।
ऐसे एक जीवन में एक खालीपन है जिसमें शामिल है 'अमीर' बनना, 'अच्छा भोजन खाना', बहुत सी नकली हँसी और एक प्रसिद्धी को पाना (वव.24-26)। यह लोगों को आखिरकार असंतुष्ट और 'भूखा' छोड़ देता है (व.25)।
आशीष का तरीका पूरी तरह से अलग है। यह उदारता का तरीका है। शायद से इसमें शामिल हो, गरीबी, भूख, रोना, दूसरों के द्वारा नफरत किया जाना, बहिष्कृत किया जाना, अपमान सहना और नकार दिया जाना (वव.20-22) – लेकिन यह संतुष्टि का एक रास्ता है ('आप संतुष्ट होगे', व.21) और आनंद ('आप हँसेंगे, व21')।
यीशु हमें अपने शत्रुओं के प्रति उदार बनने के लिए कहते हैं: 'अपने शत्रुओं से प्रेम करो...यदि कोई तुम्हारी कमीज ले लेता है, तो अपने सर्वश्रेष्ठ कोट को उसे भेंट दे दो...अब जैसे का बदला तैसा नहीं। उदारतापूर्वक जीओ' (वव.27-29, एम.एस.जी.)।
सभी के प्रति उदार बने; 'सभी को दें' (व.30)। यह एक उदारता का व्यवहार है, 'कुछ वापस पाने की आशा किए बिना देना' (व.35)।
हमेशा की तरह, यीशु हमें केवल परमेश्वर की उदारता की नकल करने के लिए कह रहे हैः' सहायता कीजिए और दीजिए बदले में वापस पाने की आशा किए बिना। मैं वायदा करता हूँ कि आप कभी पछताएंगे नहीं। इस परमेश्वर –सृजित पहचान को जीएँ, जिस तरह से हमारे पिता हमारे प्रति जीते हैं, उदारतापूर्वक और अनुग्रही रूप से, यहॉं तक कि जब हम बुरी स्थिति में होते हैं। हमारे पिता दयालु हैं; आप दयालु बने' (वव.35-36, एम.एस.जी.)।
अपने शत्रुओं के प्रति उदारता का अर्थ है ना केवल उन्हें क्षमा करना बल्कि उन्हें आशीष भी देना। आपको अवश्य ही उनके विषय में बुरा नहीं बोलना चाहिए, यहॉं तक कि जब आपको लगता है कि वे इसके लायक हैं। आपको उनके लिए प्रार्थना करनी है, उन्हें आशीष देना है और उनके बारे में अच्छी बातें करनी है। जैसा कि नेल्सन मंडेला इसे कहते हैं, 'नाराजगी है जहर को पीना और आशा करना कि यह आपके शत्रुओं को मार डाले।' इसके बजाय, परमेश्वर की तरह सभी के प्रति उदार बने (व.36)।
प्रार्थना
पिता, मेरी सहायता कीजिए कि मैं अपने शत्रुओं से प्रेम करुं, जो मुझसे नफरत करते हैं उनका भला करुं, जो मुझे श्राप देते हैं उन्हें आशीष दूं और जो मेरे साथ बुरा बर्ताव करते हैं उनके लिए प्रार्थना करुँ। मेरी सहायता कीजिए कि बिना किसी प्रतिफल की आशा करते हुए मैं दे सकूं और दूसरों के साथ वैसा व्यवहार कर सकूं जैसा मैं चाहता हूँ कि वे मेरे साथ करें। मेरी सहायता कीजिए कि मैं दयालु बनूं, जैसा कि आप दयालु हैं।
गिनती 21:4-22:20
काँसे का साँप
4 इस्राएल के लोगों ने होर पर्वत को छोड़ा और लाल सागर के किनारे—किनारे चले। उन्होंने ऐसा इसलिए किया जिससे वे एदोम कहे जाने वाले स्थान के चारों ओर जा सकें। किन्तु लोगों को धीरज नहीं था। जिस समय वे चल रहे थे उसी समय उन्होनें लम्बी यात्रा के विरुद्ध शिकायत करनी आरम्भ की। 5 लोगों ने परमेश्वर और मूसा के विरुद्ध बातें की। लोगों ने कहा, “तुम हमें मिस्र से बाहर क्यों लाए हो? हम लोग यहाँ मरुभूमि में मर जाएंगे! यहाँ रोटी नहीं मिलती! यहाँ पानी नहीं है और हम लोग इस खराब भोजन से घृणा करते हैं।”
6 इसलिए यहोवा ने लोगों के बीच जहरीले साँप भेजे। साँपों ने उन लोगों को डसा और बहुत से लोग मर गए। 7 लोग मूसा के पास आए और उससे कहा, “हम जानते हैं कि जब हमने यहोवा और तुम्हारे विरुद्ध शिकायत की तो हमने पाप किया। यहोवा से प्रार्थना करो। उनसे कहो कि इन साँपों को दूर करे।” इसलिए मूसा ने लोगों के लिए प्रार्थना की।
8 यहोवा ने मूसा से कहा, “एक काँसे का साँप बनाओ और उसे एक ऊँचे डंडे पर रखो। यदि किसी व्यक्ति को साँप काटे, तो उस व्यक्ति को डंडे के ऊपर काँसे के साँप को देखना चाहिए। तब वह व्यक्ति मरेगा नहीं।” 9 इसलिए मूसा ने यहोवा की आज्ञा मानी और एक काँसे का साँप बनाया तथा उसे एक डंडे के ऊपर रखा। तब जब किसी व्यक्ति को साँप काटता था तो वह डंडे के ऊपर के साँप को देखता था और जीवित रहता था।
होर पर्वत से मोआब घाटी को
10 इस्राएल के लोग यात्रा करते रहे। उन्होंने ओबोत नामक स्थान पर डेरा डाला। 11 तब लोगों ने ओबोत से ईय्ये अबीराम तक की यात्रा की और वहाँ डेरा डाला। यह मोआब के पूर्व में मरुभूमि में था। 12 तब लोगों ने उस स्थान को छोड़ा और जेरेद की यात्रा की। उन्होंने वहाँ डेरा डाला। 13 तब लोगों ने अर्नोन घाटी की यात्रा की। उन्होंने उस क्षेत्र के समीप डेरा डाला। यह एमोरियों के प्रदेश के पास मरुभूमि में था। अर्नोन घाटी मोआब और एमोरी लोगों के बीच की सीमा है। 14 यही कारण है कि यहोवा के युद्धों की पुस्तक में निम्न विवरण प्राप्त हैः
“…और सूपा में वाहेब, अर्नोन की घाटी 15 और आर की बस्ती तक पहुँचाने वाली घाटी के किनारे की पहाड़ियाँ।ये स्थान मोआब की सीमा पर हैं।”
16 इस्राएल के लोगों ने उस स्थान को छोड़ा और उन्होंने बैर की यात्रा की। इस स्थान पर एक कुँआ था। यहोवा ने मूसा से कहा, “यहाँ सभी लोगों को इकट्ठा करो और मैं उन्हें पानी दूँगा।” 17 तब इस्राएल के लोगों ने यह गीत गायाः
“कुएँ! पानी से उमड़ बहो!
इसका गीत गाओ!
18 महापुरुषों ने इस कुएँ को खोदा।
महान नेताओं ने इस कुएँ को खोदा।
अपनी छड़ों और डण्डों से इसे खोदा।
यह मरुभूमि में एक भेंट है।”
लोग “मत्ताना” नाम के कुएँ पर थे।
19 तब लोगों ने मत्ताना से नहलीएल की यात्रा की। तब उन्होंने नहलीएल से बामोत की यात्रा की। 20 लोगों ने बामोत घाटी की यात्रा की। इस स्थान पर पिसगा पर्वत की चोटी मरुभूमि के ऊपर दिखाई पड़ती है
सीहोन और ओग
21 इस्राएल के लोगों ने कुछ व्यक्तियों को एमोरी लोगों के राजा सीहोन के पास भेजा। इन लोगों ने राजा से कहा,
22 “अपने देश से होकर हमें यात्रा करने दो। हम लोग किसी खेत या अंगूर के बाग से होकर नहीं जाएंगे। हम तुम्हारे किसी कुएँ से पानी नहीं पीएंगे। हम लोग केवल राजपथ से यात्रा करेंगे। हम लोग तब तक उस सड़क पर ही ठहरेंगे जब तक हम लोग तुम्हारे देश से होकर यात्रा पूरी नहीं कर लेते।”
23 किन्तु राजा सीहोन इस्राएल के लोगों को अपने देश से होकर यात्रा करने की अनुमति नहीं दी। राजा ने अपनी सेना इकट्ठी की और मरुभूमि की ओर चल पड़ा। वह इस्राएल के लोगों के विरुद्ध आक्रमण कर रहा था। यहस नाम के एक स्थान पर राजा की सेना ने इस्राएल के लोगों के साथ युद्ध किया।
24 किन्तु इस्राएल के लोगों ने राजा को मार डाला। तब उन्होंने अर्नोन घाटी से लेकर यब्बोक क्षेत्र तक के उसके प्रदेश पर अधिकार कर लिया। इस्राएल के लोगों ने अम्मोनी लोगों की सीमा तक के प्रदेश पर अधिकार किया। उन्होंने और अधिक क्षेत्र पर अधिकार नहीं जमाया क्योंकि वह सीमा अम्मोनी लोगों दूारा दृढ़ता से सुरक्षित थी। 25 किन्तु इस्रएल ने अम्मोनी लोगों के सभी नगरों पर कब्जा कर लिया। उन्होंने हेशबोन नगर तक को और उसके चारों ओर के छोटे नगरों को भी हराया। 26 हेशबोन वह नगर था जिसमें राजा सीहोन रहता था। इसके पहले सीहोन ने मोआब के राजा को हराया था और सीहोन से अर्नोन घाटी तक के सारे प्रदेश पर अधिकार कर लिया था। 27 यही कारण है कि गायक यह गीत गाते हैं:
“आओ हेशबोन को, इसे फिर से बसाना है।
सीहोन के नगर को फिर से बनने दो।
28 हेशबोन में आग लग गई थी।
वह आग सीहोन के नगर में लगी थी।
आग ने आर (मोआब) को नष्ट किया
इसने ऊपरी अर्नोन की पहाड़ियों को जलाया।
29 ऐ मोआब! यह तुम्हारे लिए बुरा है,
कमोश के लोग नष्ट कर दिए गए हैं।
उसके पुत्र भाग खड़े हुए।
उसकी पुत्रियाँ बन्दी बनीं एमोरी लोगों के राजा सीहोन द्वारा।
30 किन्तु हमने उन एमोरियों को हराया,
हमने उनके हेशबोन से दीबोन तक नगरों को मिटाया मेदबा के निकट नशिम से नोपह तक।”
31 इसलिए इस्राएल के लोगों ने एमोरियों के देश में अपना डेरा लगाया।
32 मूसा ने गुप्तचरों को याजेर नगर पर निगरानी के लिए भेजा। मूसा के ऐसा करने के बाद, इस्राएल के लोगों ने उस नगर पर अधिकार कर लिया। उन्होंने उसके चारों ओर के छोटे नगर पर भी अधिकार जमाया। इस्राएल के लोगों ने उस स्थान पर रहने वाले एमोरियों को वह स्थान छोड़ने को विवश किया।
33 तब इस्राएल के लोगों ने बाशान की ओर जाने वाली सड़क पर यात्रा की। बाशान के राजा ओग ने अपनी सेना ली और इस्राएल के लोगों का सामना करने निकला। वह एद्रेई नाम के क्षेत्र में उनके विरुद्ध लड़ा।
34 किन्तु यहोवा ने मूसा से कहा, “उस राजा से मत डरो। मैं तुम्हें उसको हराने दूँगा। तुम उसके पूरी सेना और प्रदेश को प्राप्त करोगे। तुम उसके साथ वही करो जो तुमने एमोरी लोगों के राजा सीहोन के साथ किया।”
35 अतः इस्राएल के लोगों ने ओग और उसकी सारी सेना को हराया। उन्होने उसे, उसके पुत्रों और उसकी सारी सेना को हराया। तब इस्राएल के लोगों ने उसके पूरे देश पर अधिकार कर लिया।
बिलाम और मोआब का राजा
22तब इस्राएल के लोगों ने मोआब के मैदान की यात्रा की। उन्होंने यरीहो के उस पार यरदन नदी के निकट डेरा डाला।
2-3 सिप्पोर के पुत्र बालाक ने एमोरी लोगों के साथ इस्राएल के लोगों ने जो कुछ किया था, उसे देखा था औ मोआब बहुत अधिक भयभीत था क्योंकि वहाँ इस्राएल के बहुत लोग थे। मोआब इस्राएल के लोगों से बहुत आतंकित था।
4 मोआब के नेताओं ने मिद्यान के अग्रजों से कहा, “लोगों का यह विशाल समूह हमारे चारों ओर की सभी चीज़ों को वैसे ही नष्ट कर देगा जैसे कोई गाय मैदान की घास चर जाती है।”
इस समय सिप्पोर का पुत्र बालाक मोआब का राजा था। 5 उसने कुछ व्यक्तियों को बोर के पुत्र बिलाम को बुलाने के लिए भेजा। बिलाम नदी के निकट पतोर नाम के क्षेत्र में था। बालाक ने कहा,
“लोगों का एक नया राष्ट्र मिस्र से आया है। वे इतने अधिक हैं कि पूरे प्रदेश में फैल सकते हैं। उन्होंने ठीक हमारे पास डेरा डाला है। 6 आओ और इन लोगों के साथ निपटने में मेरी सहायता करो। वे मेरी शक्ति से बहुत अधिक शक्तिशाली हैं। संभव है कि तब इनको मैं हरा सकूँ। तब मैं उन्हें अपना देश छोड़ने को विवश कर सकता हूँ। मैं जानता हूँ कि तुम बड़ी शक्ति रखते हो। यदि तुम किसी व्यक्ति को आशीर्वाद देते हो तो उसका भला हो जाता है। यदि तुम किसी व्यक्ति के विरुद्ध कहते हो तो उसका बुरा हो जाता है। इसलिए आओ और इन लोगों के विरुद्ध कुछ कहो।”
7 मोआब और मिद्यान के अग्रज चले। वे बिलाम से बातचीत करने गए। वे उसकी सेवाओं के लिए धन देने को ले गए। तब उन्होंने, बालाक ने जो कुछ कहा था, उससे कहा।
8 बिलाम ने उनसे कहा, “यहाँ रात में रुको। मैं यहोवा से बातें करुँगा और जो उत्तर, वह मुझे देगा, वह तुमसे कहूँगा।” इसलिए उस रात मोआबी लोगों के नेता उसके साथ ठहरे।
9 परमेश्वर बिलाम के पास आया और उसने पूछा, “तुम्हारे साथ ये कौन लोग हैं?”
10 बिलाम ने परमेश्वर से कहा, “मोआब के राजा सिप्पोर के पुत्र बालाक ने उन्हें मुझको एक संदेश देने को भेजा है। 11 सन्देश यह हैः लोगों का एक नया राद्र मिस्र से आया है। वे इतने अधिक हैं कि सारे देश में फैल सकते हैं। इसलिए आओ और इन लोगों के विरुद्ध कुछ कहो। तब सम्भ्व है कि उनसे लड़ने में मैं समर्थ हो सकूँ और अपने देश को छोड़ने के लिए उन्हे विवश कर सकूँ।”
12 किन्तु परमेश्वर ने बिलाम से कहा, “उनके साथ मत जाओ। तुम्हें उन लोगों के विरुद्ध कुछ नहीं कहना चाहिए। उन्हें यहोवा से वरदान प्राप्त है।”
13 दूसरे दिन सवेरे बिलाम उठा और बालाक के नेताओं से कहा, “अपने देश को लौट जाओ। यहोवा मुझे तुम्हारे साथ जाने नहीं देगा।”
14 इसलिए मोआबी नेता बालाक के पास लौटे और उससे उन्होंने ये बातें कहीं। उन्होंने कहा, “बिलाम ने हम लोगों के साथ आने से इन्कार कर दिया।”
15 इसलिए बालाक ने दूसरे नेताओं को बिलाम के पास भेजा। इस बार उसने पहली बार की अपेक्षा बहुत अधिक आदमी भेजे और ये नेता पहली बार के नेताओं की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण थे। 16 वे बिलाम के पास गए और उन्होंने उससे कहा, “सिप्पोर का पुत्र बालाक तुमसे कहता हैः कृपया अपने को यहाँ आने से किसी को रोकने न दें। 17 जो मैं तुमसे माँगता हूँ यदि तुम वह करोगे तो मैं तुम्हें बहुत अधिक भुगतान करूँगा। आओ और इन लोगों के विरुद्ध मेरे लिए कुछ कहो।”
18 किन्तु बिलाम ने उन लोगों को उत्तर दिया। उसने कहा, “मुझे यहोवा मेरे परमेश्वर की आज्ञा माननी चाहिए। मैं उसके आदेश के विरुद्ध कुछ नहीं कर सकता। मैं बड़ा छोटा कुछ भी तब तक नहीं कर सकता जब तक यहोवा नहीं कहता कि मैं उसे कर सकता हूँ। यदि राजा बालाक अपने सोने चाँदी भरे सुन्दर घर को दे तो भी मैं अपने परमेश्वर यहोवा के आदेश के विरुद्ध कुछ नहीं करूँगा। 19 किन्तु तुम भी उन दूसरे लोगों की तरह आज की रात यहाँ ठहर सकते हो और रात में मैं जान जाऊँगा कि यहोवा मुझसे क्या कहलवाना चाहता है।”
20 उस रात परमेश्वर बिलाम के पास आया। परमेश्वर ने कहा, “ये लोग अपने साथ ले जाने के लिए कहने को फिर आ गए हैं। इसलिए तुम उनके साथ जा सकते हो। किन्तु केवल वही करो जो मैं तुमसे करने को कहूँ।”
समीक्षा
परमेश्वर की तरह – उदार बनें
इस लेखांश में भी हम आशीष और श्राप के विषय को देखते हैं (22:6), और 'लेने' और 'देने' के बीच के अंतर को देखते हैं। हम लोगों के प्रति परमेश्वर की निरंतर उदारता को देखते हैं। उनका जीवन सरल नहीं था। यदि आप कुछ समय से एक मसीह हैं तो शायद से आपने ऐसे समय का अनुभव किया होगा। वे 'रेगिस्तान', 'घाटी' और 'बंजर भूमि' से गुजरे (21:18-20)। इसे जीवन की परिक्षाओं के रूप में देखा जा सकता है; सूखे दाग, गहरे धब्बे और अफलदायी होने जैसा.
लेकिन परमेश्वर पानी देते हैं (व.16)। यीशु ने कहा, 'जो कोई यह जल पीएगा वह फिर प्यासा होगा। परंतु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनंतकाल तक प्यासा न होगा' (यूहन्ना 4:13-14)।
इसके विपरीत, सिहोन एक दानी नहीं था। वह मतलबी थाः 'सिहोन इस्राइल को अपने क्षेत्र से गुजरने नहीं देना चाहता था (गिनती 21:23)।
बालाम भी एक लेने वाला व्यक्ति था। वह 'भविष्यवाणी करने की फीस' के पीछे था (22:7)। नये नियम में वह दोषी ठहरा है क्योंकि उसने 'दुष्टता के धन से प्रेम किया' (2पतरस 2:5)। बालाम की 'गलती' थी 'लाभ के पीछे भागना' (यहूदा 1:11)।
इस्रायली परमेश्वर के विरूद्ध और मूसा के विरूद्ध कुड़कुड़ाने लगे (गिनती 21:4-5)। जो कुछ परमेश्वर ने उनके लिए किया था, उन सभी चीजों के बावजूद वे संतुष्ट नहीं थे और उन्होंने परमेश्वर के विरूद्ध बलवा किया। उनके विद्रोह को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था और इसलिए परमेश्वर ने लोगो को दण्ड दिया (व.6)। यद्यपी परमेश्वर की योजना थी उनके लोगों को छुड़ाना और आशीष देना, अपने साथ उनके संबंध को सुधारना।
उन्होंने अपने पापों को मान लिया और 'परमेश्वर ने मूसा से कहा, 'एक साँप बनाओ और इसे एक खंभे पर लटका दो; जिस किसी को साँप ने काटा हो और वह इसे देख लेता है तो वह जीवित रहेगा।' तो मूसा ने एक पीतल का साँप बनाया और इसे एक खंभे पर लटका दिया। फिर जब किसी को साँप काट लेता और वह व्यक्ति पीतल के साँप को देखता, तो वह जीवित रहता (वव.8-9)।
रेगिस्तान में इस घटना को बताते हुए यीशु ने कहा, 'जिस रीति से मूसा ने जंगल में साँप को ऊँचे पर चढ़ाया, उसी रीति से अवश्य है कि मनुष्य का पुत्र भी ऊंचे पर चढ़ाया जाए, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह अनंत जीवन पाए (यूहन्ना 3:14-15)। निश्चित ही यीशु क्रूस पर अपनी मृत्यु के विषय में बात कर रहे हैं (12:32-33)।
परमेश्वर अपनी उदारता में ऐसा बलिदान देते हैं जो आपको क्षमा को जानने में सक्षम बनाता है। मूसा के दिनों में ऊँचे पर चढ़ाया गया उन लोगों को भौतिक जीवन देता था जो विश्वास में इसे देखते थे। ऊँचे स्थान में क्रूस पर चढ़ाया गया मसीह उन लोगों के पास अनंत जीवन को लाता है जो विश्वास में देखते हैं और उनमें विश्वास करते हैं। आप क्षमा को कमा नहीं सकते हैं। अनंत जीवन एक मुफ्त उपहार है, लेकिन तब भी आपको उस उपहार को स्वीकार करना चुनना है। विश्वास करना इच्छापूर्वक किया गया कार्य है जो परमेश्वर के मुफ्त उपहार को स्वीकार करता है (3:15)।
उन्नीसवीं शताब्दी में चार्ल्स हेडोन स्पर्जन एक महान और सबसे प्रभावी वक्ता थे। उन्होनें अपने उद्धार के बारे में बताया, जब एक टीनेजर के रूप में, उन्होंने उपदेशक को कहते हुए सुना, 'यीशु मसीह को देखो। देखो! देखो! देखो! आपको कुछ और नहीं करना है, केवल देखना है और जीना है।'
जब पीतल के साँप को ऊँचे पर चढ़ाया गया, तब लोगों ने केवल इसे देखा और वे चंगे हो गए, और वैसा ही मेरे साथ भी हुआ...जब मैंने यह शब्द सुना, ' देखो! मुझे यह शब्द कितना अच्छा लगा! ओह!' मैंने तब तक देखा जब तक यह मेरी नजरों से ओझल नहीं हो गया..... और उसी वक्त खड़ा होकर मैंने उनके साथ बड़े जोश से गाया, मसीह का बहुमूल्य लहू और साधारण विश्वास जो केवल उसे ही प्रतीत हो रहा था.'
यह परमेश्वर की उदारता है। आपके लिए परमेश्वर की उदारता से आपको उदारता की शाखा बनना है। जैसा कि पौलुस प्रेरित लिखते हैं, 'परमेश्वर का धन्यवाद हो उनके वर्णन के परे उपहार के लिए!' (2कुरिंथियो 9:15)।
प्रार्थना
परमेश्वर, मेरे प्रति आपकी उदारता के लिए आपका धन्यवाद, क्योंकि आपने मुझे अपने पास वापसी का रास्ता प्रदान किया है। मेरी सहायता कीजिए कि मैं हर दिन आपसे क्षमा को पा सकूं। मेरी सहायता कीजिए कि आपके जीवन के जल में से मैं पी सकूँ जो कि मुझे जीवित रखता है। परमेश्वर का धन्यवाद हो उनके वर्णन के परे उपहार के लिए!
पिप्पा भी कहते है
गिनती 21:4-22:20
परमेश्वर के लोगों का जीवन सरल नहीं दिखता है। वे सूरज की रोशनी में खेलते हुए अपने दिन को बिताते नहीं दिखते हैं। हर जगह कठिनाई है; भूख और प्यास, उग्र पड़ोसी और अब साँप! (मेरा पसंदीदा नहीं है)। जैसा कि मार्क ट्विन ने एक बार कहा, 'जीवन एक के बाद एक भयानक बातों से भरा हुआ है.' परमेश्वर कठिनाईयों को नहीं लेते, बल्कि वह संघर्ष में हमारी सहायता करते हैं।
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संदर्भ
नोट्स:
'मदर टेरेसा के साथ इंटरव्यु,' हैलो, संस्करण 324, 1 अक्तूबर 1994
लेविस ए. ड्रमोंड, स्पर्जन प्रिंस ऑफ प्रिचर्स, व्रेगाल पब्लिकेशन, 1992, पी.2
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
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जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।