दिन 81

प्रलोभन को कैसे रोकें

बुद्धि नीतिवचन 7:21-27
नए करार लूका 3:23-4:13
जूना करार गिनती 11:4-13:25

परिचय

‘द साइरन तीन रहस्यमय स्त्रियां थी, जो कि होमर्स ओडेसी के अनुसार, एक द्वीप पर रहती थी। जब कभी एक जहाज वहॉं से गुजरता था, वे ऊँची चट्टानों पर खड़ी होकर गीत गाती थी। उनका सुंदर गीत नाविकों को नजदीक आने पर मजबूर कर देता था, और आखिरकार उनका जहाज चट्टान से टकाराकर डूब जाता था।

ओडेसी साइरन का गीत सुनना चाहते थे, लेकिन खतरे को अच्छी तरह से जानते थे। उसने अपने मनुष्यों को आदेश दिया कि जैसे ही वे द्वीप के पास पहुंचते हैं, वैसे ही उन्हें जहाज के मस्तूल से बाँध दिया जाए और तब अपने कानों को मोम से बंद कर दें। जब ओडेसी ने साइरन की आवाज सुनी तब उसने उसे खोलने के लिए कहा, लेकिन उनके सहकर्मीयों ने उन्हें और भी जोर से बॉंध दिया, केवल तभी उन्हें खोला गया जब खतरा टल चुका था।

यह कहानी उस शक्तिशाली खिंचाव के बारे में बताती है जो हम सभी महसूस करते हैं जब हम उस चुनाव को करने का खतरा मोल लेते हैं जो कि बुरी है और विनाशकारी भी। कुछ् भी जीवन में बिना प्रलोभन के नहीं है। प्रलोभन पाप नहीं है; यीशु पापरहित थे, फिर भी उन्हें प्रलोभन का सामना करना पड़ा (इब्रानियो 4:15)।

बुद्धि

नीतिवचन 7:21-27

21 उसने उसे लुभावने शब्दों से मोह लिया।
 उसको मीठी मधुर वाणी से फुसला लिया।
22 वह तुरन्त उसके पीछे ऐसे हो लिया
 जैसे कोई बैल वध के लिये खिंचा चला जाये।
 जैसे कोई निरा मूर्ख जाल में पैर धरे।
23 जब तक एक तीर उसका हृदय नहीं बेधेगा
 तब तक वह उस पक्षी सा जाल पर बिना
 यह जाने टूट पड़ेगा कि जाल उसके प्राण हर लेगा।

24 सो मेरे पुत्रों, अब मेरी बात सुनो और
 जो कुछ मैं कहता हूँ उस पर ध्यान धरो।
25 अपना मन कुलटा की राहों में मत खिंचने दो
 अथवा उसे उसके मार्गो पर मत भटकने दो।
26 कितने ही शिकार उसने मार गिरायें हैं।
 उसने जिनको मारा उनका जमघट बहुत बड़ा है।
27 उस का घर वह राजमार्ग है जो कब्र को जाता है
 और नीचे मृत्यु की काल—कोठरी में उतरता है!

समीक्षा

धोखा देने का प्रलोभन

यह लेखांश शारीरिक संबंध के प्रलोभन की ताकत और खतरे का वर्णन करता है।

1. चिकनी चुपड़ी बातों से सावधान रहे

सावधान रहें आप क्या सुनते हैं और आप क्या पढ़ते हैं: 'ऐसी बातें कह कहकर, उसने उसको अपनी प्रबल माया में फँसा लिया; और अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से उसको अपने वश में कर लिया' (व.21)।

2. मूर्खता के कामों को न करें

विचार और शब्द कार्य की ओर ले जाते हैं: 'वह तुरंत उसके पीछे हो लिया...और नहीं जानता था कि उसमें उसके प्राण जाएंगे' (वव.22-23)।

3. भटकाने वाले विचारों को नियंत्रित करें

अक्सर प्रलोभन की शुरुवात हमारे हृदय से होती हैः'तेरा मन ऐसी स्त्री (व्यभिचारिनी) के मार्ग की ओर न फिरे' (व.25; मत्ती 5:28 देखें)।

इस चेतावनी पर ध्यान देः 'सुनो...मेरे इन वचनों को गंभीरता से लो। मूर्ख की तरह मत घूमो...उसके आस-पड़ोस में भी मत जाओ' (नीतिवचन 7:24-25, एम.एस.जी)। उसका घर अधोलोक का मार्ग है, वह मृत्यु के घर में पहुँचाता है।

प्रार्थना

प्रभु, मेरी अगुआई कीजिये कि मैं परीक्षा में न पड़ूँ, बल्कि मुझे हरएक बुराई से बचाइये. मेरे हृदय की रक्षा कीजिये, और भले और बुरे का ज्ञान दीजिये और मेरे कदमों का मार्गदर्शन कीजिये.

नए करार

लूका 3:23-4:13

यूसुफ की वंश परम्परा

23 यीशु ने जब अपना सेवा कार्य आरम्भ किया तो वह लगभग तीस वर्ष का था। ऐसा सोचा गया कि वह

 एली के बेटे यूसुफ का पुत्र था।

24 एली जो मत्तात का,

 मत्तात जो लेवी का,

 लेवी जो मलकी का,

मलकी जो यन्ना का,

 यन्ना जो यूसुफ का,

25 यूसुफ जो मत्तित्याह का,

मत्तित्याह जो आमोस का,

आमोस जो नहूम का,

नहूम जो असल्याह का,

असल्याह जो नोगह का,

26 नोगह जो मात का,

मात जो मत्तित्याह का,

मत्तित्याह जो शिमी का,

शिमी जो योसेख का,

योसेख जो योदाह का,

27 योदाह जो योनान का,

योनान जो रेसा का,

रेसा जो जरुब्बाबिल का,

जरुब्बाबिल जो शालतियेल का,

शालतियेल जो नेरी का,

28 नेरी जो मलकी का,

मलकी जो अद्दी का,

अद्दी जो कोसाम का,

कोसाम जो इलमोदाम का,

इलमोदाम जो ऐर का,

29 ऐर जो यहोशुआ का,

यहोशुआ जो इलाज़ार का,

इलाज़ार जो योरीम का,

योरीम जो मत्तात का,

मत्तात जो लेवी का,

30 लेवी जो शमौन का,

शमौन जो यहूदा का,

यहूदा जो यूसुफ का,

यूसुफ जो योनान का,

योनान जो इलियाकीम का,

31 इलियाकीम जो मेलिया का,

मेलिया जो मिन्ना का,

मिन्ना जो मत्तात का,

मत्तात जो नातान का,

नातान जो दाऊद का,

32 दाऊद जो यिशै का,

यिशै जो ओबेद का,

ओबेद जो बोअज का,

बोअज जो सलमोन का,

सलमोन जो नहशोन का,

33 नहशोन जो अम्मीनादाब का,

अम्मीनादाब जो आदमीन का,

आदमीन जो अरनी का,

अरनी जो हिस्रोन का,

हिस्रोन जो फिरिस का,

फिरिस जो यहूदाह का,

34 यहूदाह जो याकूब का,

याकूब जो इसहाक का,

इसहाक जो इब्राहीम का,

इब्राहीम जो तिरह का,

तिरह जो नाहोर का,

35 नाहोर जो सरूग का,

सरूग जो रऊ का,

रऊ जो फिलिग का,

फिलिग जो एबिर का,

एबिर जो शिलह का,

36 शिलह जो केनान का,

केनान जो अरफक्षद का,

अरफक्षद जो शेम का,

शेम जो नूह का,

नूह जो लिमिक का,

37 लिमिक जो मथूशिलह का,

मथूशिलह जो हनोक का,

हनोक जो यिरिद का,

यिरिद जो महललेल का,

महललेल जो केनान का,

38 केनान जो एनोश का,

एनोश जो शेत का,

शेत जो आदम का,

और आदम जो परमेश्वर का पुत्र था।

यीशु की परीक्षा

4पवित्र आत्मा से भावित होकर यीशु यर्दन नदी से लौट आया। आत्मा उसे वीराने में राह दिखाता रहा। 2 वहाँ शैतान ने चालीस दिन तक उसकी परीक्षा ली। उन दिनों यीशु बिना कुछ खाये रहा। फिर जब वह समय पूरा हुआ तो यीशु को बहुत भूख लगी।

3 सो शैतान ने उससे कहा, “यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो इस पत्थर से रोटी बन जाने को कह।”

4 इस पर यीशु ने उसे उत्तर दिया, “शास्त्र में लिखा है:

‘मनुष्य केवल रोटी पर नहीं जीता।’”

5 फिर शैतान उसे बहुत ऊँचाई पर ले गया और पल भर में ही सारे संसार के राज्यों को उसे दिखाते हुए, 6 शैतान ने उससे कहा, “मैं इन राज्यों का सारा वैभव और अधिकार तुझे दे दूँगा क्योंकि वह मुझे दिया गया है और मैं उसे जिसको चाहूँ दे सकता हूँ। 7 सो यदि तू मेरी उपासना करे तो यह सब तेरा हो जायेगा।”

8 यीशु ने उसे उत्तर देते हुए कहा, “शास्त्र में लिखा है:

‘तुझे बस अपने प्रभु परमेश्वर की ही उपासना करनी चाहिये।
तुझे केवल उसी की सेवा करनी चाहिए!’”

9 तब वह उसे यरूशलेम ले गया और वहाँ मन्दिर के सबसे ऊँचे शिखर पर ले जाकर खड़ा कर दिया। और उससे बोला, “यदि तू परमेश्वर का पुत्र है तो यहाँ से अपने आप को नीचे गिरा दे! 10 क्योंकि शास्त्र में लिखा है:

 ‘वह अपने स्वर्गदूतों को तेरे विषय में आज्ञा देगा कि वे तेरी रक्षा करें।’

11 और लिखा है:

‘वे तुझे अपनी बाहों में ऐसे उठा लेंगे
कि तेरा पैर तक किसी पत्थर को न छुए।’”

12 यीशु ने उत्तर देते हुए कहा, “शास्त्र में यह भी लिखा है:

‘तुझे अपने प्रभु परमेश्वर को परीक्षा में नहीं डालना चाहिये।’”

13 सो जब शैतान उसकी सब तरह से परीक्षा ले चुका तो उचित समय तक के लिये उसे छोड़ कर चला गया।

समीक्षा

प्रलोभन पर नियंत्रण

परमेश्वर आपके जीवन में प्रलोभन को आने देते हैं। जैसे ही आप इन परीक्षाओं से गुजरते हैं, आपका विश्वास मजबूत बनता है।

यीशु प्रलोभन के विषय में सबकुछ जानते हैं। चालीस दिनों तक यीशु की परीक्षा हुई (4:2)। यद्यपि शैतान परीक्षा ले रहा था (व.3), परमेश्वर ने इसे होने दिया (वह 'आत्मा के द्वारा जंगल में ले जाया गया, व.1')।

बपतिस्मा के समय पवित्र आत्मा के शक्तिशाली अनुभव के बाद यह परीक्षा हुई। यह घटनाक्रम सामान्य है, यही कारण है कि हम अल्फा में लोगों को चिताते हैं कि हो सकता है कि सप्ताह के बाद वे बढ़े हुए प्रलोभन का अनुभव करें (जब ध्यान काम पर और पवित्र आत्मा के अनुभव पर होता है)।

लूका यीशु की पहचान को परमेश्वर के पुत्र के रूप में बताते हैं (3:23-38) लेकिन यीशु ने जिन प्रलोभनों का सामना किया अक्सर वहीं प्रलोभन हैं जिनका हम सामना करते हैं।

ये सभी प्रलोभन नियंत्रण के ईर्द - गिर्द घूमते हैं – हमारी भूख पर नियंत्रण, हमारे अभिप्राय पर नियंत्रण, और हमारे जीवन पर नियंत्रण। शैतान आपके जीवन को नियंत्रित करना चाहता है। इसके विपरीत, परमेश्वर चाहते हैं कि आप उस स्वतंत्रता को जाने जो पवित्र आत्मा की अगुवाई में चलने से मिलती है।

1. शीघ्र तृप्ति

  • शैतान यीशु से भौतिक भोजन करने का अनुरोध करता है (व.3) और शीघ्र तृप्ति का प्रस्ताव रखता है। यीशु उत्तर देते हैं, 'यह लिखा है कि मनुष्य केवल रोटी से नहीं जीवित रहेगा' (व.4)।
  • शीघ्र तृप्ति आगे चलकर निराशा, खालीपन और उदासी लाती है। परमेश्वर की बातें सुनना और उनके साथ एक संबंध को बनाने से गहरा आत्मिक संतोष, आनंद और उद्देश्य प्राप्त होता है।

2. स्वार्थी अभिप्राय

  • एक ही पल में शैतान ने यीशु को जगत के सारे राज्य दिखाए। 'उसने उनसे कहा, 'मैं यह सब अधिकार और इनका वैभव तुझे दूँगा...यदि तू मुझे प्रणाम करे, तो यह सब तेरा हो जाएगा' (वव.6-7)।
  • अपने लिए चीजों को इकट्ठा करने का प्रलोभन बहुत ही शक्तिशाली होता है। भौतिक समृद्धि इस जीवन में 'अधिकार' और 'वैभव' को लाती है (व.6), लेकिन खतरा यह है कि आर्थिक सुरक्षा हमारा अभिप्राय बन जाता है और हम अपना भरोसा धन पर रखते हैं नाकि परमेश्वर में।

यीशु ने यह कहते हुए इस प्रलोभन का उत्तर दिया, 'यह लिखा है, 'तू अपने प्रभु परमेश्वर को प्रणाम कर; और केवल उसी की उपासना कर' (व.8)। केवल एक चीज है जो पूरी तरह से सुरक्षित है और वह है परमेश्वर के साथ आपका संबंध। इसे आपका प्राथमिक अभिप्राय होना चाहिए।

3. आत्मविश्वास की शक्ति

  • शैतान यीशु को मंदिर के कंगूरे पर खड़ा करके कहता है, 'यदि तू परमेश्वर का पुत्र है...तो अपने आप को यहाँ से नीचे गिरा दे' (व.9)। तब वह उसे बाईबल का वचन सुनाते हैं (निश्चित ही, संदर्भ के बाहर)। यीशु ने इस वचन का उत्तर वचन से दिया, 'यह कहा गया हैः'तू अपने प्रभु परमेश्वर की परीक्षा न करना' (व.12)।
  • आप परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता और सेवा के एक जीवन में बुलाए गए हैं। यीशु ने अपनी सेवकाई के दौरान चमत्कार किए। किंतु इन्हें करने में उन्होंने परमेश्वर की आज्ञा मानी और पवित्र आत्मा की अगुवाई में चले। यह परमेश्वर की परीक्षा करने और उनसे माँगने कि वह आपका समर्थन करें, इससे थोड़ा अलग है। अपनी खुद की योजनाओं को लाकर परमेश्वर को इसे आशीष देने की विनती करने के बजाय, परमेश्वर की योजनाओं को खोजने का प्रयास करें और उनकी बुलाहट को मानें।

परमेश्वर के वचन से यीशु ने शैतान और उसके प्रलोभन को भगा दिया। उन्होंने बार बार कहा 'यह लिखा है...' और फिर वचनों को दोहराया जिसने शैतान के झूठ और प्रलोभन को सीधा उत्तर दिया।

शैतान 'उन्हें छोड़कर चला गया।' लेकिन वह 'थोड़ी देर के लिए गया, दूसरे अवसर का इंतजार करते हुए' (व.13 एम.एस.जी.)। यह एक राहत की बात है जब जीवन में प्रलोभन उतने मजबूत नहीं होते है – लेकिन आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि शैतान आपको फिर से भटकाने की कोशिश करेगा।

प्रार्थना

परमेश्वर, मैं आपकी पवित्र आत्मा की अगुवाई में चलना चाहता हूँ। मेरी सहायता कीजिए कि मैं आपके नजदीक रह सकूं, ताकि आपके वचनों को जानूँ और प्रलोभन को दूर करुं।

जूना करार

गिनती 11:4-13:25

सत्तर अग्रज नेता

4 इस्राएल के लोगों के साथ जो विदेशी मिल गए थे अन्य चीज़ें खाने की इच्छा करने लगे। शीघ्र ही इस्राएल के लोगों ने फिर शिकायत करनी आरम्भ की। लोगों ने कहा, “हम माँस खाना चाहते हैं! 5 हम लोग मिस्र में खायी गई मछलियों को याद करते हैं। उन मछलियों का कोई मुल्य नहीं देना पड़ता था। हम लोगों के पास बहुत सी सब्जियाँ थीं जैसे ककड़ियाँ, खरबूजे, गन्ने, पयाज और लहसुन। 6 किन्तु अब हम अपनी शक्ति खो चुके हैं हम और कुछ भी नहीं खाते, इस मन्ने के अतिरिक्त!” 7 (मन्ना धनियाँ के बीज के समान था, वह गूगुल के पारदर्शी पीले गोंद के समान दिखता था। 8 लोग इसे इकट्ठा करते थे और तब इसे पीसकर आटा बनाते थे या वे इसे कुचलने के लिए चट्टान का उपयोग करते थे। तब वे इसे बर्तन में पकाते थे अथवा इसके “फुलके” बनाते थे। फुलके का स्वाद जैतून के तेल से पकी रोटी के समान होता था। 9 हर रात को जब भूमि ओस से गीली होती थी तो मन्ना भूमि पर गिरता था।)

10 मूसा ने हर एक परिवार के लोगों को अपने खेमों के द्वारो पर खड़े शिकायत करते सुना। यहोवा बहुत क्रोधित हुआ। इससे मूसा बहुत परेशान हो गया। 11 मूसा ने यहोवा से पूछा, “यहोवा, तूने अपने सेवक मुझ पर यह आपत्ति क्यों डाली है मैंने क्या किया है जो बुरा है। मैंने तुझे अप्रसन्न करने के लिए क्या किया है तूने मेरे ऊपर इन सभी लोगों का उत्तरदायित्व क्यों सौंपा है? 12 तू जानता है कि मैं इन सभी लोगों का पिता नहीं हुँ। तू जानता है कि मैंने इनको पैदा नहीं किया है। किन्तु यह तो ऐसे हैं कि मैं इन्हें अपनी गोद में वैसे ही ले चलूँ जैले कोई धाय बच्चे को ले चलती है। तू हमें ऐसा करने को विवश क्यों करता है तू मुझे क्यों विवश करता है कि मैं इन्हें उस देश को ले जाऊँ जिसे देने का वचन तूने उनके पूर्वजों को दिया है 13 मेरे पास इन लोगों के लिए पर्याप्त माँस नहीं है, किन्तु वे लगातार मुझसे शिकायत कर रहे हैं। वे कहते हैं, ‘हमें खाने के लिए माँस दो!’ 14 मैं अकेले इन सभी लोगों की देखभाल नहीं कर सकता। यह बोझ मेरी बरदाश्त के बाहर है। 15 यदि तू उनके कष्ट को मुझे देकर चलाते रहना चाहता है तो तू मुझे अभी मार डाल। यदि तू मुझे अपना सेवक मानता है तो अभी मुझे मर जाने दे। तब मेरे सभी कष्ट समाप्त हो जाएंगे!”

16 यहोवा ने मूसा से कहा, “मेरे पास इस्राएल के ऐसे सत्तर अग्रजों को लाओ, जो लोगों के अग्रज और अधिकारी हों। इन्हें मिलापवाले तम्बू में लाओ। वहाँ उन्हें अपने साथ खड़ा करो। 17 तब मैं आऊँगा और तुमसे बातें करूँगा। अब तुम पर आत्मा आई है। किन्तु मैं उन्हें भी आत्मा का कुछ अंश दूँगा। तब वे लोगों की देखभाल करने में तुम्हारी सहायता करेंगे। इस प्रकार, तुमको अकेले इन लोगों के लिए उत्तरदायी नहीं होना पड़ेगा।

18 “लोगों से कहोः कल के लिए अपने को तैयार करो। कल तुम लोग माँस खाओगे। यहोवा ने सुना है जब तुम लोग रोए—चिल्लाए। यहोवा ले तुम लोगों की बातें सुनीं जब तुम लोगों ने कहा, ‘हमें खाने के लिए माँस चाहिए! हम लोगों के लिए मिस्र में अच्छा था।’ अब यहोवा तुम लोगों को माँस देगा और तुम लोग उसे खाओगे। 19 तुम लोग उसे केवल एक दिन नहीं, दो, पाँच, दस या बीस दिन भी खा सकोगे। 20 तुम लोग वह माँस, महीने भर खाओगे। तुम लोग वह माँस तब तक खाओगे जब तक उससे ऊब नहीं जाओगे। यह होगा, क्योंकि तुम लोगों ने यहोवा के विरुद्ध शिकायत की है। यहोवा तुम लोगों में घूमता है और तुम्हारी आवश्यकताओं को समझता है। किन्तु तुम लोग उसके सामने रोए—चिल्लाए और शिकायत की है! तुम लोगों ने कहा, हम लोगों ने आखिर मिस्र छोड़ा ही क्यों”

21 मूसा ने कहा, “यहोवा, यहाँ छः लाख पुरुष साथ चल रहे हैं और तू कहता है, ‘मैं उन्हें पूरे महीने खाने के लिए पर्याप्त माँस दूँगा!’ 22 यदि हमें सभी भेड़ें और मवेशी मारने पड़े तो भी इतनी बड़ी संख्या में लोगों के महीने भर खाने के लिए वह पर्याप्त नहीं होगा और यदि हम समुद्र की सारी मछलियाँ पकड़ लें तो भी उनके लिए वे पर्याप्त नहीं होंगी।”

23 किन्तु यहोवा ने मूसा से कहा, “यहोवा की शक्ति को सीमित न करो। तुम देखोगे कि यदि मैं कहता हूँ कि मैं कुछ करूँगा तो उसे मैं कर सकता हूँ।”

24 इसलिए मूसा लोगों से बात करने बाहर गया। मूसा ने उन्हें वह बताया जो यहोवा ने कहा था। तब मूसा ने सत्तर अग्रज नेताओं को इकट्ठा किया। मूसा ने उनसे तम्बू के चारों ओर खड़ा रहने को कहा। 25 तब यहोवा एक बादल में उतरा और उसने मूसा से बातें कीं। आत्मा मूसा पर थी। यहोवा ने उसी आत्मा को सत्तर अग्रज नेताओं पर भेजा। जब उनमें आत्मा आई तो वे भविष्यवाणी करने लगे। किन्तु यह केवल उसी समय हुआ जब उन्होंने ऐसा किया।

26 अग्रजों में से दो एलदाद और मेदाद तम्बू में नहीं गए। उनके नाम अग्रज नेताओं की सूची में थे। किन्तु वे डेरे में रहे किन्तु आत्मा उन पर भी आई और वे भी डेरे में भविष्यावाणी करने लगे। 27 एक युवक दौड़ा और मूसा से बोला। उस पुरुष ने कहा, “एलदाद और मेदाद डेरे में भविष्यावाणी कर रहे हैं।” 28 किन्तु नून के पुत्र यहोशू ने मूसा से कहा, “मूसा, तुम्हें उन्हें रोकना चाहिए!” (यहोशू मूसा का तब से सहायक था जब वह किशोर था।)

29 किन्तु मूसा ने उत्तर दिया, “क्या तुम्हें डर है कि लोग सोचेंगे कि अब मैं नेता नहीं हूँ मैं चाहता हूँ कि यहोवा के सभी लोग भविष्यवाणी करने योग्य हों। मैं चाहता हूँ कि यहोवा अपनी आत्मा उन सभी पर भेजे।” 30 तब मूसा और इस्राएल के नेता डेरे में लौट गए।

बटेरें आईं

31 तब यहोवा ने समुद्र की ओर से भारी आंधी चलाई। आंधी ने उस क्षेत्र में बटेरों को पहुँचाया। बटेरें डेरों के चारों ओर उड़ने लगीं। वहाँ इतनी बटेरें थीं कि भूमि ढक गई। भूमि पर बटेरों की तीन फीट ऊँची परत जम गई थी। कोई व्यक्ति एक दिन में जितनी दूर जा सकता था उतनी दूर तक चारों ओर बटेरें थीं। 32 लोग बाहर निकले और पूरे दिन और पूरी रात बटेरों को इकट्ठा किया और फिर पूरे अगले दिन भी उन्होंने बटेरें इकट्ठी कीं। हर एक आदमी ने साठ बुशेल या उससे अधिक बटेरें इकट्ठी की। तब लोगों ने बटेरों को अपने डेरे के चारों ओर फैलाया।

33 लोगों ने माँस खाना आरम्भ किया किन्तु यहोवा बहुत क्रोधित हुआ। जब माँस उनके मुँह में था और लोग जब तक इसको खाना खत्म करें इसके पहले ही, यहोवा ने एक बीमारी लोगों में फैला दी। 34 इसलिए लोगों ने उस स्थान का नाम किब्रोथत्तावा रखा। उन्होंने उस स्थान को वह नाम इसलिए दिया कि यह वही स्थान है जहाँ उन्होंने उन लोगों को दफनाया था जो स्वादिष्ट भोजन की प्रबल इच्छा रखते थे।

35 किब्रोथत्तावा से लोगों ने हसेरोत की यात्रा की और वे वहीं ठहरे।

मरियम और हारून मूसा की पत्नी के विरुद्ध कहते हैं

12मरियम और हारून मूसा के विरुद्ध बात करने लगे। उन्होंने उसकी आलोचना की, क्योंकि उसकी पत्नी कूशी थी। उन्होंने सोचा कि यह अच्छा नहीं कि मूसा ने कूशी लोगों में से एक के साथ विवाह किया। 2 उन्होंने आपस में कहा, “यहोवा ने लोगों से बात करने के लिए मूसा का उपयोग किया है। किन्तु मूसा ही एकमात्र नहीं है। यहोवा ने हम लोगों के द्वारा भी कहा है।”

यहोवा ने यह सुना। 3 (मूसा बहुत विनम्र व्यक्ति था। वह न डींग हाँकता था,न शेखी बघारता था। वह धरती पर के किसी व्यक्ति से अधिक विनम्र था।) 4 इसलिए यहोवा अचानक आया और मूसा,हारून और मरियम से बोला। यहोवा ने कहा, “तुम तीनों को अब मिलापवाले तम्बू में आना चाहिए।”

इसलिए मूसा, हारून और मरियम तम्बू में गए। 5 तब यहोवा बादल में उतरा। यहोवा तम्बू के द्वार पर खड़ा हुआ। यहोवा ने “हारून और मरियम” को अपने पास आने के लिए कहा! जब दोनों उसके समीप आए तो, 6 यहोवा ने कहा, “मेरी बात सुनो जब मैं तुम लोगों में नबी भेजूँगा, तब मैं अर्थात् यहोवा अपने आपको उसके दर्शन में दिखाऊँगा और मैं उससे उसके सपने में बात करूँगा। 7 किन्तु मैंने अपने सेवक मूसा के साथ ऐसा नहीं किया। मैंने उसे अपने सभी लोगों को ऊपर शक्ति दी है। 8 जब मैं उससे बात करता हूँ तो मैं उसके आमने सामने बात करता हूँ। मैं जो बात कहना चाहता हुँ उसे साफ—साफ कहता हुँ मैं छिपे अर्थ वाले विचित्र विचारों को उसके सामने नहीं रखता और मूसा यहोवा के स्वरूप को देख सकता है। इसलिए तुमने मेरे सेवक मूसा के विरुद्ध बोलने का साहस कैसे किया?”

9 तब यहोवा उनके पास से गया। किन्तु वह उनसे बहुत क्रोधित था। 10 बादल तम्बू से उठा। तब हारून मुड़ा और उसने मरियम को देखा और उसे दिखाई पड़ा कि उसे भयंकर चर्मरोग हो गया है। उसकी त्वचा बर्फ की तरह सफेद थी!

11 तब हारून ने मूसा से कहा, “महोदय, कृपा करके जो मूर्खता भरा पाप हम लोगों ने किया है, उसके लिए क्षमा करें। 12 उसकी त्वचा का रंग उस प्रकार न उड़ने दे जैसा मरे हुए उत्पन्न बच्चे का होता है।” (कभी कभी इस प्रकार का बच्चा आधी गली हुई त्वचा के साथ उत्पन्न होता है।)

13 इसलिए मूसा ने यहोवा से प्रार्थना की, “परमेश्वर, कृपा करके इस बीमारी से उसे स्वस्थ कर!”

14 यहोवा ने मूसा को उत्तर दिया, “यदि उसका पिता उसके मुँह पर थूके, तो वह सात दिन तक लज्जित रहेगी। इसलिए उसे सात दिन तक डेरे से बाहर रखो। उस समय के बाद वह ठीक हो जायेगी। तब वह डेरे में वापस आ सकती है।”

15 इसलिए मरियम सात दिन के लिए डेरे से बाहर ले जाई गई और तब तक वे वहाँ से नहीं चले जब तक वह फिर वापस नहीं लाई गई। 16 उसके बाद लोगों ने हसेरोत को छोड़ा और पारान मरुभूमि की उन्होंने यात्रा की। लोगों ने उस मरुभूमि में डेरे लगाए।

जासूस कनान को गए

13यहोवा ने मूसा से कहा, 2 “कुछ व्यक्तियों को कनान देश का अध्ययन करने के लिए भेजो। यही वह देश है जिसे मैं इस्राएल के लोगों को दूँगा। हर एक बारह परिवार समूह से एक नेता को भेजो।”

3 इसलिए मूसा ने यहोवा की आज्ञा मानी। उसने परान के रेगिस्तान से नेताओं को भेजा। 4 ये उनके नाम

जककूर का पुत्र शम्मू—रुबेन के परिवार के समूह से,

5 होरी का पूत्र शापात—शिमोन के परिवार समूह से;

6 यपुन्ने का पुत्र कालेब—यहूदा के परिवार समूह से;

7 योसेप का पुत्र यिगास—इस्साकार के परिवार समूह से;

8 नून का पुत्र होशे—एप्रैम के परिवार समूह से;

9 रापू का पुत्र पलती—बिन्यामीन के परिवार समूह से;

10 सोदी का पुत्र गद्दीएल—जबूलून के परिवार समूह से;

11 सूसी का पुत्र गद्दी—मनश्शे के परिवार समूह से;

12 गमल्ली का पुत्र अम्मीएल—दान के परिवार समूह से;

13 मीकाएल का पुत्र सतूर—आशेर के परिवार समूह से;

14 वोप्सी का पुत्र नहूबी—नप्ताली परिवार समूह से;

15 माकी का पुत्र गूएल—गाद के परिवार समूह से;

16 ये उन व्यक्तियों के नाम हैं जिन्हें मूसा ने प्रदेश को देखने और जाँच करने के लिए भेजा। (मूसा से नून के पुत्र होशे को दूसरे नाम से पुकारा। मूसा ने उसे यहोशू कहा।)

17 मूसा जब उन्हें कनान की छानबीन के लिए भेज रहा था, तब उसने कहा, “नेवेक घाटी से होकर पहाड़ी प्रदेश में जाओ। 18 यह देखो कि देश कैसा दिखाई देता है और उन लोगों की जानकारी प्राप्त करो जो वहाँ रहते हैं। वे शक्तिशाली हैं या कमजोर हैं? वे थोड़े हैं या अधिक संख्या में हैं? 19 उस प्रदेश के बारे में जानकारी करो जिसमें वे रहते हैं। क्या यह अच्छा प्रदेश है या बुरा? किस प्रकार के नगरों में वे रहते हैं? क्या उन नगरों के परकोटे हैं? क्या नगर शक्तिशाली ढगं से सुरक्षित है? 20 और प्रदेश के बारे में अन्य बातों की जानकारी प्राप्त करो। क्या भूमि उपज के लिए उपजाऊ है या ऊसर है? क्या जमीन पर पेड़ उगे हैं? और उस भूमि से कुछ फल लाने का प्रयत्न करो।” (यह उस समय की बात है जब अंगूर की पहली फसल पकी हो।)

21 तब उन्होंने प्रदेश की छानबीन की। वे जिन मरुभूमि से रहोब और लेबो हमात तक गए। 22 वे नेगेव से होकर तब तक यात्रा करते रहे जब तक वे हेब्रोन नगर को पहुँचे। (हेब्रोन मिस्र में सोअन नगर के बसने के सात वर्ष पहले बना था।) अहीमन, शेशै और तल्मै वहाँ रहते थे। ये लोग अनाक के वंशज थे। 23 तब वे लोग एश्कोल की घाटी में आये उन व्यक्तियो ने अंगूर की बेल की एक शाखा काटी। उस शाखा में अंगूर का एक गुच्छा था। लोगों में से दो व्यक्ति अपने बीच एक डंडे पर उसे रख कर लाए। वे कुछ अनार ओर अंजीर भी लाए। 24 उस स्थान का नाम एश्कोल की घाटी था। क्योंकि यह वही स्थान है जहाँ इस्राएल के आदमियों में ने अंगुर के गुच्छे काटे थे।

25 उन व्यक्तियों ने उस प्रदेश की छानबीन चालीस दिन तक की। तब वे डेरे को लौटे।

समीक्षा

तुलना करने का प्रलोभन

ठीक जैसे 'जंगल' में यीशु की परीक्षा हुई (लूका 4:1), वैसे ही परमेश्वर के लोगों की परीक्षा हुई जब वे जंगल में थे। इस लेखांश में उदाहरण हमारे लिए चेतावनी के रूप में लिखे गए हैं (1कुरिंथियो 10:6 देखे)।

1. असंतुष्ट

  • परमेश्वर ने उन्हें भोजन प्रदान किया था लेकिन वे 'दूसरे भोजन' की लालसा कर रहे थे (गिनती 11:4)। परमेश्वर के चमत्कारी प्रावधान के लिए उन्हें धन्यवाद देने के बजाय, उन्होंने कहा, 'काश हमारे पास खाने के लिए माँस होता!' (व.4ब)। वे लगातार 'रो रहे थे' (वव.10,13, एम.एस.जी.) और शिकायत कर रहे थे।
  • मिस्र में उनके पुराने जीवन के साथ तुलना करने और जहाँ से वे आएँ थे वहाँ वापस जाने के लिए वे प्रलोभित हो चुके थे। इस जाल में फँसना आसान है। शिकायत करने के लिए हमेशा कुछ न कुछ होता है। फिर भी, यदि हमारे पास देखने के लिए आँखे हो, तो हम नियमित रूप से परमेश्वर की भलाई, दया, क्षमा, प्रेम और अनुग्रह से घिरे हुए हैं।

2. ईर्ष्या

  • मरियम और हारुन के साथ हम ईर्ष्या के एक उदाहरण को देखते हैं, वे पूछते हैं, 'क्या यहोवा ने केवल मूसा ही के साथ बातें की हैं? क्या उसने हम से भी बातें नहीं की?' (12:2)। जब यहोशू कैंप में दूसरो के द्वारा भविष्यवाणी किए जाने से दुखी था, तब मूसा ने जवाब दिया, 'क्या तू मेरे कारण जलता है?' (11:29)। यहाँ पर विषय आत्मिक लीडरशिप और उपहार का है।
  • मूसा की लीडरशिप संरचना में तीन लोगों का एक समूह था (हारुन, मरियम और यहोशू)। फिर, इस्राइल के गोत्र के बारह लीडर थे (13:4-15), तब सत्तर लीडर और अधिकारी (11:16 से लेकर)। यह यीशु के तीन नजदीकी समूह, बारह प्रेरित, और तब बहत्तर दूसरे लोगों के समांतर था (लूका 10 देखें)। जब पवित्र आत्मा मूसा के सत्तर लोगों पर उतरा, 'उन्होंने भविष्यवाणी की' (गिनती 11:25)।
  • मूसा की तरह, तुलना करने और ईर्ष्या करने के प्रलोभन को मना कर दीजिए जब आप देखते हैं कि परमेश्वर एक शक्तिशाली तरीके से दूसरों का इस्तेमाल कर रहे हैं। मूसा ने पहचाना कि उसे सहायता की आवश्यकता थी। उसने उत्तर दिया, 'मैं चाहता हूं कि परमेश्वर के सभी लोग भविष्यवक्ता हो और परमेश्वर उनमें अपना आत्मा रखे!' (व.29)। उसने यह महसूस नहीं किया कि परमेश्वर को केवल उसका ही इस्तेमाल करना चाहिए। परमेश्वर ने कहा था, 'जो आत्मा तुझ में है उसमें से कुछ लेकर उनमें समवाऊँगा; और वे इन लोगों का भार तेरे संग उठाए रहेंगे, और तुझे उसको अकेले उठाना न पड़ेगा' (व.17)।

3. घमंड

  • ईर्ष्या आती है दूसरों के साथ अपनी तुलना करने से और यह सोचने से कि हम थोड़े कम अच्छे हैं। घमंड अपने आपको अधिक समझने से आता है, दूसरों के साथ अपनी तुलना करना और यह सोचना कि हम बेहतर हैं।
  • मूसा ने भी घमंड के प्रलोभन को रोका। परमेश्वर और मनुष्यों के बीच में घमंड सबसे बड़ा अवरोध है। परमेश्वर दीन व्यक्ति से प्रेम करते हैं। जैसा कि सी.एस. लेविस इसे कहते हैं, 'सच्ची दीनता अपने बारे में कम सोचना नहीं है। बल्कि अपने आपको कम मानना है।'
  • 'अब मूसा एक बहुत ही दीन व्यक्ति थे, पृथ्वी पर सबसे दीन व्यक्ति' (12:3)। शायद इसीलिए परमेश्वर ने शक्तिशाली तरीके से मूसा का इस्तेमाल किया।
  • मूसा 'दीन' (व.3), 'वफादार' (व.7) करुणामयी और क्षमा करने वाले थे (व.13)। परमेश्वर के साथ अत्यधिक नजदीकी संबंध से यह विकसित हुआ था, जिसके कारण परमेश्वर ने आत्मिय रूप से उससे बाते की (उसके साथ आमने –सामने बात की, व.8)।

प्रार्थना

परमेश्वर, मेरी सहायता कीजिए कि असंतुष्टि, जलन और घमंड के प्रलोभन को रोक दूँ। मेरी सहायता कीजिए कि भरोसेयोग्य, वफादार और दीन व्यक्ति बनूँ।

पिप्पा भी कहते है

गिनती 11:4-6

मुझे इस्रालियों के प्रति थोड़ी सहानुभूति है। चालीस साल तक हर दिन मन्ना थोड़ा रुखा लगता है। मेरा शारीरिक गठन थोड़ा सा संवेदनशील है इसलिए मैं भोजन के विषय में थोड़ा चिंता करता हूँ। निश्चित ही मैं जानता हूँ कि मन्ना आपके लिए बहुत ही स्वादिष्ट और बहुत अच्छा है। जब आपको भूख लगती है, तब बहुत सी चीजों का स्वाद अच्छा लगने लगता है।

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संदर्भ

नोट्स:

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

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